सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

पंचमुखी हनुमान विशेषताएँ और प्रभाव श्रीपञ्च मुख हनुमत्कवचं

 

पंचमुखी हनुमान के स्वरूप, विशेषताएँ और प्रभाव

1. पंचमुखी हनुमान अवतार का कारण

  • रामायण की कथा में, जब भगवान राम और लक्ष्मण का अपहरण कर लिया गया था और वे पाताल लोक में थे, हनुमान ने पंचमुखी रूप धारण किया।
  • अहिरावण की मायावी शक्तियों को हराने और श्रीराम-लक्ष्मण की रक्षा करने के लिए यह रूप आवश्यक था।
  • पाँच दीपकों को बुझाने के लिए हनुमान ने पंचमुखी रूप लिया, जिससे अहिरावण की मृत्यु और श्रीराम-लक्ष्मण की मुक्ति हो सकी।
  • दूसरी बार पंचमुखी हनुमान रूप का धारण
    पंचमुखी हनुमान जी ने दूसरी बार यह रूप तब धरा था, जब माँ सीता रावण का वध करने के लिए महाकाली रूप धारण किया था। इस समय ऋषि गर्ग ने माँ सीता को हनुमान मंत्र का ज्ञान दिया, जिसके प्रभाव से सीता माता ने पंचमुखी हनुमान जी के कंधे पर बैठकर महाकाली रूप में शतानंद रावण की सेना का संहार किया।जैसे-जैसे राक्षस मारे जा रहे थे, उनकी रक्त की प्रत्येक बूंद से और अधिक राक्षस उत्पन्न होने लगे। तब पंचमुखी हनुमान जी ने अपनी पूंछ से धरती को ढक लिया, जिससे उन राक्षसों की संख्या में वृद्धि रुक गई और पूरी दुर्गति का अंत हो गया।


    पंचमुखी हनुमान जी का महिमा
    पंचमुखी हनुमान जी की महिमा कई ग्रंथों में वर्णित है, जैसे कि विद्यार्णव तंत्र, सुदर्शन संहिता, पराशर संहिता, और कृत्तिवासी रामायण इत्यादि। इन सभी ग्रंथों में पंचमुखी हनुमान जी की शक्ति और उनके प्रभाव का उल्लेख किया गया है।

    ग्रंथों में पंचमुखी हनुमान जी के बारे में मंत्र भी हैं, जैसे:

    • ॐ वायुपुत्राय शिखायै वंषट्
    • ॐ अग्निगर्भाय कवचाय हुं
    • ॐ रामदूताय नेत्रत्रयाय वौषट्
    • ॐ पंचमुखहनुमते अस्राय फट्

    इन मंत्रों के माध्यम से पंचमुखी हनुमान जी की शक्ति को पहचानने और उनके आशीर्वाद को प्राप्त करने का मार्ग बताया गया है।

    श्री गणेशाय नमः।


2. पंचमुखी हनुमान के पांच मुखों के स्वरूप और उनके प्रभाव


पंचमुखी हनुमत्कवच का महत्व और लाभ

1. पंचमुखी हनुमान का स्वरूप
पंचमुखी हनुमान का स्वरूप अत्यंत दिव्य और महाक्रूर है। यह स्वरूप हनुमान जी के पाँच मुखों से संबंधित है, जिनमें प्रत्येक मुख का विशेष प्रभाव और उद्देश्य होता है। उनके पाँच मुखों में से प्रत्येक दिशा में स्थित है:

  • पूर्व दिशा (वानर रूप): यह मुख करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी और दंतों से सुसज्जित है। इसका प्रभाव व्यक्ति के शत्रुओं का संहार करता है और भयंकर संकटों से सुरक्षा प्रदान करता है।

  • दक्षिण दिशा (नरसिंह रूप): यह मुख अत्यंत उग्र और भय के नाशक है। यह शत्रुओं के सभी प्रकार के भय और कष्टों का नाश करने वाला है। इसे नरसिंह रूप कहा जाता है, जो महाक्रूर राक्षसों का संहार करता है।

  • पश्चिम दिशा (गरुड़ रूप): गरुड़ के रूप में यह मुख नागों और विष के नाशक रूप में प्रभावी है। यह मुख बुरी शक्तियों, भूत-प्रेतों और नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करता है।

  • उत्तर दिशा (वराह रूप): यह रूप नीले रंग का और आकाश की तरह दीप्तिमान है। वराह रूप पाताल लोक, ज्वर और अन्य रोगों का नाश करता है।

  • ऊर्ध्व दिशा (हयग्रीव रूप): यह रूप घोर दानवों का संहार करने वाला है और महाकाली रूप में तारकासुर का वध करने के लिए प्रसिद्ध है। यह मानसिक और शारीरिक शांति और शक्ति का प्रतीक है।

2. पंचमुखी हनुमान की पूजा का लाभ
पंचमुखी हनुमान की पूजा से भक्तों को बहुत सारे लाभ होते हैं। विशेष रूप से यह ध्यान और मंत्र जाप करने से:

  • शत्रु संहार: यह हनुमान रूप शत्रुओं और बुरी शक्तियों का नाश करता है।
  • सिद्धि और समृद्धि: पंचमुखी हनुमान मंत्र का जप करने से व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आर्थिक सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
  • सुरक्षा और संरक्षण: यह पूजा और ध्यान सभी प्रकार के भय और संकटों से मुक्ति दिलाती है।
  • दुष्ट शक्तियों से मुक्ति: यह रूप भूत-प्रेत, तंत्र-मंत्र और अन्य बुरी शक्तियों से रक्षा करता है।

3. पंचमुखी हनुमान के शस्त्र और मुद्राएँ
पंचमुखी हनुमान के हाथों में विभिन्न शस्त्र होते हैं जो उनके सामर्थ्य और दिव्यता को दर्शाते हैं। इनमें प्रमुख हैं:

  • खड़ग, त्रिशूल, खट्वांग, पाश, अंकुश, मुष्टि, पर्वत इत्यादि।
    इनके अतिरिक्त, हनुमान जी ने भिंदीपाल और ज्ञान मुद्राएँ धारण की हुई हैं। ये शस्त्र उनके विभिन्न शक्तियों का प्रतीक हैं जो हर प्रकार के संकट से मुक्ति दिलाने में सक्षम हैं।

4. पंचमुखी हनुमान मंत्र का जप
पंचमुखी हनुमान मंत्र का जप करने से मानसिक शांति, धन और ऐश्वर्य प्राप्त होता है। इस मंत्र में हर मुख का विशिष्ट कार्य और प्रभाव है, जैसे:

  • पूर्व मुख (वानर रूप) – शत्रु पर विजय प्राप्ति और मानसिक शांति।
  • दक्षिण मुख (नरसिंह रूप) – भय और आतंक का नाश।
  • पश्चिम मुख (गरुड़ रूप) – नागों और बुरी शक्तियों से रक्षा।
  • उत्तर मुख (वराह रूप) – रोगों और कष्टों से मुक्ति।
  • ऊर्ध्व मुख (हयग्रीव रूप) – दानवों और मानसिक अशांति से छुटकारा।

5. पंचमुखी हनुमत्कवच का महत्व
पंचमुखी हनुमत्कवच अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावी कवच है, जो विशेष रूप से मानसिक और शारीरिक कष्टों से मुक्ति दिलाता है। यह कवच सुदर्शन संहिता से लिया गया है और इसे पढ़ने और जपने से व्यक्ति को हर प्रकार की सुरक्षा, समृद्धि, और शत्रु से विजय प्राप्त होती है।
कवच का मंत्र और ध्यान विधि भी इस कवच की शक्ति को और बढ़ाते हैं। इसके नियमित जाप से जीवन में सुख, समृद्धि, और शांति का वास होता है।

6. पंचमुखी हनुमान की शरण में आने के लाभ
जब व्यक्ति अत्यधिक परेशानियों और संकटों से घिरा होता है, तो पंचमुखी हनुमान जी की शरण में आने से सभी शत्रुओं का संहार होता है और दुष्कर्मों का नाश होता है। उनकी पूजा से भक्तों की सारी कामनाएँ पूरी होती हैं और दुर्गति का अंत होता है।

निष्कर्ष
पंचमुखी हनुमान का रूप अत्यधिक शक्तिशाली है और प्रत्येक दिशा में विशेष प्रभाव डालता है। इनके द्वारा दिए गए आशीर्वाद से जीवन में समृद्धि, सुरक्षा, मानसिक शांति और शत्रु से विजय प्राप्त होती है। पंचमुखी हनुमान जी की पूजा और मंत्र जाप से हर प्रकार के संकटों का समाधान होता है और भक्तों के जीवन में सुख और सफलता का संचार होता है।

श्रीगणेशाय नमः ।

 ॐ श्री पञ्चवदनायाञ्जनेयाय नमः ।

 ॐ अस्य श्री पञ्चमुख हनुमन्मन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः ।

 गायत्रीछन्दः । पञ्चमुखविराट् हनुमान्देवता । ह्रीं बीजं ।

श्रीं शक्तिः । क्रौं कीलकं । क्रूं कवचं । क्रैं अस्त्राय फट् ।

इति दिग्बन्धः ।

श्री गरुड उवाच ।

अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि श्रृणु सर्वाङ्ग सुन्दरि ।

यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमतः प्रियम् ॥ १॥

पञ्चवक्त्रं महाभीमं त्रिपञ्च नयनैर्युतम् ।

बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्व   ॥ २॥

 पूर्वं तु वानरं वक्त्रं कोटि सूर्य सम प्रभम् ।

दन्ष्ट्रा कराल वदनं भृकुटी कुटिले क्षणम् ॥ ३॥

 अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम् ।

अत्युग्रतेजोवपुषं भीषणं भयनाशनम् ॥ ४॥

 पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम् ॥

 सर्वनाग प्रशमनं विष भूतादि कृन्तनम् ॥ ५॥

 उत्तरं सौकरं वक्त्रं कृष्णं दीप्तं नभोपमम् ।

पाताल सिंह वेताल ज्वर रोगादि कृन्तनम् ॥ ६॥

 ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम् ।

येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र तारकाख्यं महासुरम् ॥ ७॥

 जघान शरणं तत्स्यात्सर्व शत्रुहरं परम् ।

ध्यात्वा पञ्चमुखं रुद्रं हनुमन्तं दया निधिम् ॥ ८॥

 खड्गं त्रिशूलं खट्वाङ्गं पाशमङ्कुश पर्वतम् ।

मुष्टिं कौमोदकीं वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुम् ॥ ९॥

 भिन्दि पालं ज्ञान मुद्रां दशभिर्मुनि पुङ्गवम् ।

एतान्यायुध जालानि धारयन्तं भजाम्यहम् ॥ १०॥

 प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभरण भूषितम् ।

दिव्य माल्याम्बर धरं दिव्य गन्धानुलेपनम् ॥ ११॥

 सर्वाश्चर्य मयं देवं हनुमद्विश्वतो मुखम् ।

पञ्चास्यमच्युतमनेक विचित्र वर्ण वक्त्रं

शशाङ्क शिखरं कपिराजवर्यम ।

पीताम्बरादि मुकुटै रूप शोभिताङ्गं

पिङ्गाक्षमाद्यम निशं मनसा स्मरामि ॥ १२॥

 मर्कटेशं महोत्साहं सर्व शत्रुहरं परम् ।

शत्रु संहर मां रक्ष श्रीमन्नापदमुद्धर ॥ १३॥

 ॐ हरिमर्कट मर्कट मन्त्रमिदं

परिलिख्यति लिख्यति वामतले ।

यदि नश्यति नश्यति शत्रुकुलं

यदि मुञ्चति मुञ्चति वामलता ॥ १४॥

 

ॐ हरिमर्कटाय स्वाहा ।

ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पूर्व कपि मुखाय

सकल शत्रु संहारकाय स्वाहा ।

 ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय दक्षिण मुखाय कराल वदनाय

नरसिंहाय सकल भूत प्रमथनाय स्वाहा ।

 ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पश्चिम मुखाय गरुडाननाय

सकल विष हराय स्वाहा ।

 ॐ नमो भगवते पञ्चवदनायोत्तर मुखायादि वराहाय

सकल सम्पत्कराय स्वाहा ।

 ॐ नमो भगवते पञ्चवदनायोर्ध्व मुखाय हयग्रीवाय

सकल जन वशङ्कराय स्वाहा ।

 ॐ अस्य श्री पञ्च मुख हनुमन्मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र

ऋषिः । अनुष्टुप्छन्दः । पञ्चमुख वीर हनुमान् देवता ।

 हनुमानिति बीजम् । वायुपुत्र इति शक्तिः । अञ्जनी सुत इति कीलकम् ।

श्रीरामदूत हनुमत्प्रसाद सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।

इति ऋष्यादिकं विन्यसेत् ।

 ॐ अञ्जनीसुताय अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।

ॐ रुद्रमूर्तये तर्जनीभ्यां नमः ।

ॐ वायुपुत्राय मध्यमाभ्यां नमः ।

ॐ अग्निगर्भाय अनामिकाभ्यां नमः ।

ॐ रामदूताय कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।

ॐ पञ्चमुखहनुमते करतल कर पृष्ठाभ्यां नमः ।

इति करन्यासः ।

 

ॐ अञ्जनीसुताय हृदयाय नमः ।

ॐ रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा ।

ॐ वायुपुत्राय शिखायै वषट् ।

ॐ अग्निगर्भाय कवचाय हुम् ।

ॐ रामदूताय नेत्रत्रयाय वौषट् ।

ॐ पञ्चमुखहनुमते अस्त्राय फट् ।

पञ्चमुखहनुमते स्वाहा ।

इति दिग्बन्धः ।

 

अथ ध्यानम् ।

 

वन्दे वानर नारसिंह खगराट्क्रोडाश्व वक्त्रान्वितं

दिव्यालङ्करणं त्रिपञ्चनयनं देदीप्यमानं रुचा ।

हस्ताब्जैरसिखेट पुस्तक सुधा कुम्भाङ्कुशाद्रिं हलं

खट्वाङ्गं फणि भू रुहं दशभुजं सर्वारिवीरापहम् ।

 अथ मन्त्रः ।

 ॐ श्रीरामदूतायाञ्जनेयाय वायुपुत्राय महाबल पराक्रमाय

सीतादुःखनिवारणाय लङ्कादहन कारणाय महाबल प्रचण्डाय

फाल्गुनसखाय कोलाहल सकल ब्रह्माण्ड विश्वरूपाय

सप्त समुद्र निर्लङ्घनाय पिङ्गल नयनायामित विक्रमाय

सूर्य बिम्ब फल सेवनाय दुष्टनिवारणाय दृष्टि निरालङ्कृताय

सञ्जीविनी सञ्जीविताङ्गद लक्ष्मण महाकपि सैन्य प्राणदाय

दश कण्ठ विध्वंसनाय रामेष्टाय महाफाल्गुन सखाय सीता सहित-

रामवर प्रदाय षट्प्र योगागम पञ्चमुख वीर हनुमन्मन्त्रजपे विनियोगः ।

 ॐ हरि मर्कट मर्कटाय बंबंबंबंबं वौषट् स्वाहा ।

ॐ हरि मर्कट मर्कटाय फंफंफंफंफं फट् स्वाहा ।

ॐ हरि मर्कट मर्कटाय खेंखेंखेंखेंखें मारणाय स्वाहा ।

ॐ हरि मर्क टमर्कटाय लुंलुंलुंलुंलुं आकर्षित सकल सम्पत्कराय स्वाहा ।

ॐ हरि मर्कट मर्कटाय धंधंधंधंधं शत्रुस्तम्भनाय स्वाहा ।

ॐ टंटंटंटंटं कूर्म मूर्तये पञ्च मुख वीर हनुमते

पर यन्त्रपर तन्त्रोच्चाटनाय स्वाहा ।

 ॐ कंखंगंघंङं चंछंजंझंञं टंठंडंढंणं

तंथंदंधंनं पंफंबंभंमं यंरंलंवं शंषंसंहं

ळंक्षं स्वाहा ।

इति दिग्बन्धः ।

 ॐ पूर्व कपिमुखाय पञ्चमुख हनुमते टंटंटंटंटं

सकल शत्रु संहरणाय स्वाहा ।

 ॐ दक्षिण मुखाय पञ्च मुख हनुमते करालवदनाय नरसिंहाय

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः सकलभूतप्रेतदमनाय स्वाहा ।

ॐ पश्चिममुखाय गरुडाननाय पञ्चमुख हनुमते मंमंमंमंमं

सकल विषहराय स्वाहा ।

 ॐ उत्तरमुखायादिवराहाय लंलंलंलंलं नृसिंहाय नील कण्ठ मूर्तये

पञ्चमुखहनुमते स्वाहा ।

 ॐ उर्ध्वमुखाय हय ग्रीवाय रुंरुंरुंरुंरुं रुद्रमूर्तये

सकल प्रयोजन निर्वाहकाय स्वाहा ।

 ॐ अञ्जनीसुताय वायुपुत्राय महाबलाय सीताशोक निवारणाय

श्रीरामचन्द्र कृपा पादुकाय महावीर्य प्रमथनाय ब्रह्माण्ड नाथाय

कामदाय पञ्चमुखवीरहनुमते स्वाहा ।

 भूतप्रेत पिशाच ब्रह्मराक्षस शाकिनी डाकिन्यन्तरिक्ष ग्रह-

परयन्त्र परतन्त्रोच्चटनाय स्वाहा ।

सकल प्रयोजन निर्वाहकाय पञ्चमुखवीरहनुमते

श्रीरामचन्द्रवरप्रसादाय जंजंजंजंजं स्वाहा ।

इदं कवचं पठित्वा तु महाकवचं पठेन्नरः ।

एकवारं जपेत्स्तोत्रं सर्वशत्रुनिवारणम् ॥ १५॥

 द्विवारं तु पठेन्नित्यं पुत्रपौत्रप्रवर्धनम् ।

त्रिवारं च पठेन्नित्यं सर्वसम्पत्करं शुभम् ॥ १६॥

 चतुर्वारं पठेन्नित्यं सर्वरोगनिवारणम् ।

पञ्चवारं पठेन्नित्यं सर्वलोकवशङ्करम् ॥ १७॥

 षड्वारं च पठेन्नित्यं सर्वदेववशङ्करम् ।

सप्तवारं पठेन्नित्यं सर्वसौभाग्यदायकम् ॥ १८॥

 अष्टवारं पठेन्नित्यमिष्टकामार्थसिद्धिदम् ।

नववारं पठेन्नित्यं राजभोगमवाप्नुयात् ॥ १९॥

 दशवारं पठेन्नित्यं त्रैलोक्यज्ञानदर्शनम् ।

रुद्रावृत्तिं पठेन्नित्यं सर्वसिद्धिर्भवेद्ध्रुवम् ॥ २०॥

 निर्बलो रोगयुक्तश्च महाव्याध्यादिपीडितः ।

कवचस्मरणेनैव महाबलमवाप्नुयात् ॥ २१॥

 ॥ इति श्रीसुदर्शनसंहितायां श्रीरामचन्द्रसीताप्रोक्तं

श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचं सम्पूर्णम् ॥


Significance of Five Faces & Their Directions

  1. Shri Hanuman (Facing East)

    • Removes sins and bestows mental purity.
  2. Narasimha (Facing South)

    • Removes fear, brings victory over adversaries.
  3. Garuda (Facing West)

    • Removes negative effects, drives away evil spirits.
  4. Varaha (Facing North)

    • Protects from negative planetary influences, grants success and prosperity.
  5. Hayagriva (Facing Upwards)

    • Bestows knowledge, triumph, good marriage, and progeny.

Conclusion

  • Panchamukhi Hanuman is a powerful incarnation of Lord Hanuman, symbolizing mastery over all five elements and offering protection and blessings in every direction (East, West, North, South, and Up).
  • Worship of Panchamukhi Hanuman is believed to bring success, spiritual strength, and complete protection from all kinds of troubles.



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्राद्ध की गूढ़ बाते ,किसकी श्राद्ध कब करे

श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चा...

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं ना...

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती...

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा ज...

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...