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कुंभ-अर्धकुंभ: स्नान क्यों ,वैदिक काल में,महत्व,फल

 


कुंभ स्नान – mahaparv-

कुंभ क्या है?

कुंभ (या कलश) हिंदू धर्म में पूजा और धार्मिक अनुष्ठानों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह विशेष रूप से जल से भरे पात्र के रूप में होता है, जिसे पूजा में अनिवार्य माना जाता है। कुंभ की उपस्थिति न केवल धार्मिक कृत्यों में महत्वपूर्ण है, बल्कि इसे पवित्रता, आशीर्वाद और अमृत का प्रतीक भी माना जाता है।

कुंभ से अभिप्राय:

कुंभ शब्द का संबंध मुख्य रूप से अमृत कलश से है, जो 12 वर्ष के अंतराल पर होने वाले कुंभ पर्व से जुड़ा होता है। यह पर्व समुंदर मंथन से प्राप्त अमृत के साथ जुड़ा हुआ है, जो दानवों से बचाने के लिए देवताओं द्वारा सुरक्षित किया गया था। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें चार नदियों (गंगा, यमुन, गोदावरी, और नर्मदा) में गिरीं, जो आज भी कुंभ स्नान के स्थान माने जाते हैं।

कुंभ पर्व और कुंभ स्थल के महत्व:

  1. अमृत कुंभ: समुंदर मंथन के दौरान अमृत की प्राप्ति हुई थी, जिसे देवताओं ने सुरक्षित रखा था। यह अमृत चार स्थानों पर गिरा, जो बाद में कुंभ मेला स्थलों के रूप में प्रसिद्ध हो गए।
    • गंगा (हरिद्वार),
    • यमुन (प्रयाग/इलाहाबाद),
    • गोदावरी (नासिक),
    • कृष्णा (उज्जैन)
  2. कुंभ पर्व का महत्व:
    • कुंभ पर्व का आयोजन हर 12 वर्ष में एक बार होता है, जब ग्रहों की विशेष स्थिति होती है। इसे पापों के नाश, मोक्ष और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक माना जाता है।
    • स्कंद पुराण में कहा गया है कि जो व्यक्ति कुंभ योग में स्नान करता है, वह अमृतत्व और मोक्ष प्राप्त करता है।
    • ऋग्वेद 10.89.7 में कुंभ पर्व को पापों के नाशक और जीवन के नकारात्मक प्रभावों को समाप्त करने वाला बताया गया है।
    •  

कुंभ 12 वर्ष बाद क्यों?

कुंभ पर्व हर 12 वर्ष में आयोजित होता है क्योंकि:

  • समुंदर मंथन के दौरान देवताओं और दानवों के बीच युद्ध हुआ था। इस युद्ध में देवताओं ने एक दिन और मनुष्यों ने एक वर्ष का समय लिया। अत: यह 12 वर्षों के अंतराल पर मनाया जाता है।

वैदिक काल में कुंभ का महत्व:

  • अथर्ववेद (4.34.7) में चार कुंभ पर्वों का उल्लेख किया गया है जो चार प्रमुख स्थानों पर होते हैं: प्रयाग (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक।
  • अथर्ववेद (16.68) में कुंभ पर्व के दौरान जो स्नान करता है, उसे अपार पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कुंभ पर्व का समय निर्धारण:

कुंभ पर्व का समय ग्रहों की स्थिति के आधार पर तय किया जाता है। आकाश में ग्रहों के योग से यह पर्व हर 12 वर्ष में होता है। यह समय सामवेद और अथर्ववेद के अनुसार निर्धारित होता है, जिसमें ग्रहों की स्थिति और उनकी चाल को ध्यान में रखा जाता है।

कुंभ स्नान का फल:

  • शुक्ल यजुर्वेद (19.53.3) में बताया गया है कि कुंभ पर्व के दौरान स्नान करने से पापों का नाश होता है और व्यक्ति को पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • कुंभ स्नान से प्रारब्ध पाप और पूर्व जन्म के पापों का नाश होता है। यह विशेष रूप से उन पापों को समाप्त करता है जो व्यक्ति ने पिछले जन्म में किए थे।

कुंभ और अर्धकुंभ:

  • कुल मिलाकर 12 कुंभ पर्व होते हैं, जिनमें से 4 कुंभ पर्व पृथ्वी पर होते हैं और शेष 8 पर्व देवलोक में मनाए जाते हैं।
  • अर्धकुंभ और कुंभ पर्व का आयोजन विशेष ग्रह योग की स्थिति के आधार पर होता है:
    1. प्रयाग (इलाहाबाद): जब गुरु (बृहस्पति) मेष राशि में और सूर्य एवं चंद्र मकर राशि में होते हैं, तब प्रयाग में कुंभ पर्व आयोजित होता है।
    2. उज्जैन: जब सूर्य मेष राशि में और गुरु सिंह राशि में होते हैं, तब उज्जैन में कुंभ पर्व होता है।
    3. नासिक: जब सूर्य सिंह राशि में और गुरु सिंह राशि में होते हैं, तब नासिक में अर्धकुंभ पर्व आयोजित होता है।
    4. हरिद्वार: जब गुरु कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में होते हैं, तब हरिद्वार में कुंभ पर्व आयोजित होता है।

कुंभ पर्व और मानव जीवन:

कुंभ पर्व को एक आध्यात्मिक उन्नति और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। यह न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह व्यक्ति को अपने पापों से मुक्ति और मोक्ष की ओर मार्गदर्शन करता है। कुंभ पर्व के दौरान स्नान और धार्मिक अनुष्ठान व्यक्ति के जीवन को शुद्ध और पवित्र बना देते हैं।


कुंभ पर्व और उसका धार्मिक एवं ज्योतिषीय महत्व

कुंभ पर्व हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है, जिसका संबंध विशेष रूप से चार प्रमुख तीर्थ स्थलोंउज्जैन, प्रयाग, हरिद्वार और नासिक से है। इसे अमृत कलश से जोड़ा जाता है, जो देव-दानवों के समुद्र मंथन से प्राप्त हुआ था। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें चार प्रमुख नदियोंगंगा, यमुन, गोदावरी और शिप्रा में गिरी थीं, जो कुंभ स्नान के स्थान माने जाते हैं।

कुंभ का महत्व और स्थान

  1. कुंभ स्नान के स्थान:
    • उज्जैन: विष्णु पुराण और पद्म पुराण के अनुसार, उज्जैन को वेशाख माह (अप्रैल-मई) में विशेष महत्व दिया गया है। यहाँ की शिप्रा नदी का जल पुण्यदायी माना जाता है।
    • प्रयाग (इलाहाबाद): माघ माह (जनवरी-फरवरी) में यहाँ कुंभ मेला आयोजित होता है।
    • हरिद्वार: आषाढ़ माह (अप्रैल-मई) में कुंभ मेला यहाँ आयोजित होता है।
    • नासिक: आश्विन माह (अगस्त-सितंबर) में नासिक में कुंभ मेला आयोजित होता है।
  2. कुंभ पर्व के दौरान स्नान:
    • कुंभ पर्व के दौरान नदी के जल में स्नान का महत्व अत्यधिक है। यदि किसी कारणवश व्यक्ति कुंभ स्थल तक नहीं जा सकता, तो वह संबंधित नदी का जल एकत्र कर अपने स्थान पर स्नान कर सकता है। इससे भी कुंभ स्नान के समान पुण्य की प्राप्ति होती है।
    • वृहस्पति (गुरु) का मंदिर उज्जैन में स्थित है, जो विशेष रूप से गुरु दोष को दूर करने के लिए प्रसिद्ध है। गुरु महादशा या गुरु अंतरदशा में स्नान करने से गुरु ग्रह से संबंधित कष्टों का नाश होता है।

कुंभ स्नान का ज्योतिषीय महत्व

कुंभ पर्व का महत्व केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि ज्योतिषीय दृष्टि से भी है। कुंभ के दौरान सूर्य, चंद्र और गुरु (वृहस्पति) ग्रहों का विशिष्ट प्रभाव रहता है, जो व्यक्ति के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

  1. ग्रहों का प्रभाव:
    • सूर्य, गुरु और चंद्र ने अमृत कलश की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सूर्य ने कलश को टूटने से बचाया और चंद्र ने उसके छलकने से। इसी कारण इन ग्रहों की स्थिति कुंभ स्नान के महत्व को बढ़ाती है।
    • ग्रहों की स्थिति के अनुसार विभिन्न राशियों को कुंभ स्नान से अलग-अलग लाभ हो सकते हैं। जैसे:
      • मकर और कुंभ राशि वाले व्यक्तियों के लिए कुंभ स्नान और गुरु वृहस्पति की पूजा विशेष लाभकारी होती है।
      • वृष, मिथुन, कन्या, तुला राशि के लोग भी कुंभ स्नान से लाभ प्राप्त कर सकते हैं, विशेष रूप से जब गुरु की स्थिति उनके लिए शुभ होती है।
      • सिंह, धनु, वृश्चिक राशियों के लिए कुंभ स्नान और सूर्य पूजा का महत्व बढ़ जाता है, क्योंकि यह राशियाँ सूर्य और गुरु के प्रभाव से प्रभावित होती हैं।
  2. कुंभ स्नान से लाभ:
    • सूर्य, गुरु, चंद्र और शनि के अशुभ प्रभावों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए कुंभ स्नान अत्यंत लाभकारी है।
    • उज्जैन (शिप्रा नदी), प्रयाग (गंगा), नासिक (गोदावरी), और हरिद्वार (गंगा) में स्नान करने से जीवन के रोगों, पापों और विपत्तियों का नाश होता है।

कुंभ के समय में ग्रहों का योग

  • हरिद्वार कुंभ: गुरु व सूर्य मेष राशि में होते हैं, जिससे यहाँ के कुंभ स्नान का विशेष महत्व है।
  • प्रयाग कुंभ: वृष राशि में गुरु और मकर राशि में सूर्य की स्थिति होती है, जो यहाँ के स्नान के फल को अधिक प्रभावी बनाती है।
  • नासिक कुंभ: वृश्चिक राशि में गुरु और सिंह राशि में सूर्य की स्थिति होती है।
  • उज्जैन कुंभ: सिंह राशि में गुरु और मेष राशि में सूर्य की स्थिति होती है।

कुंभ स्नान और रोगनाशक प्रभाव

कुंभ स्नान विशेष रूप से उन रोगों को शमन करता है जो सूर्य, गुरु, मंगल, और शनि के प्रभाव से उत्पन्न होते हैं:

  1. प्रयाग: गुरु व सूर्य की स्थिति में यह स्नान शीतजन्य रोगों, एलर्जी, मानसिक विकारों, और भूत-प्रेत बाधाओं के शमन के लिए लाभकारी है।
  2. हरिद्वार: शनि और गुरु की स्थिति में यहाँ स्नान करने से गर्मीजन्य रोगों का नाश होता है, खासकर ग्रीष्मकालीन बीमारियाँ।
  3. नासिक: गुरु और सूर्य की स्थिति में स्नान करने से मानसिक तनाव, उच्च रक्तचाप, कैंसर और दांपत्य जीवन में सुधार होता है।
  4. उज्जैन: सिंह राशि में गुरु और मेष राशि में सूर्य की स्थिति में स्नान करने से कार्यबाधाएँ, जोडों का दर्द, लीवर और गुर्दे के रोगों का शमन होता है।

कुंभ पर्व का इतिहास और उत्पत्ति

कुंभ पर्व की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी, जब देवता और दानव मिलकर अमृत प्राप्त करने के लिए मंथन कर रहे थे। इसी दौरान अमृत कलश की कुछ बूंदें चार प्रमुख नदियों में गिरीं। इसके बाद, इन स्थानों पर कुंभ स्नान की परंपरा शुरू हुई।

सतयुग से तीर्थराज के रूप में प्रतिष्ठित हरिद्वार और अन्य कुंभ स्थलों पर स्नान करने की परंपरा का प्रचार महर्षि विष्णु और अन्य ऋषियों द्वारा किया गया था।

प्रयाग स्नान का पौराणिक महत्व और कुंभ की जानकारी

प्रयाग (अब इलाहाबाद) में स्नान का पौराणिक और धार्मिक महत्व अत्यधिक है, विशेष रूप से कुंभ मेले के समय। हिंदू धर्म में प्रयाग का बहुत महत्व है, और इसे तीन नदियोंगंगा, यमुन और सरस्वतीके संगम स्थल के रूप में जाना जाता है। यहां पर स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है, यह मान्यता है।


 

कुंभ स्नान का पौराणिक महत्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवता और असुरों ने समुद्र मंथन किया था, तो अमृत कलश का प्रकट होना हुआ था। इस अमृत कलश से कुछ बूंदें गिरने के स्थानों को विशेष पवित्र माना जाता है, और यही स्थान कुंभ स्नान के लिए प्रमुख स्थल बने। इन स्थानों में प्रयाग (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक आते हैं।

प्रयाग में कुंभ स्नान का महत्व बहुत विशेष है क्योंकि यह त्रिवेणी संगम है जहाँ तीन पवित्र नदियाँ मिलती हैंगंगा, यमुन और सरस्वती। यही स्थान धर्म और मोक्ष की प्राप्ति का प्रतीक है।

कुंभ स्नान के प्रमुख स्थान और समय

कुंभ स्नान का आयोजन हर 12 वर्ष में एक बार होता है, और यह चार प्रमुख स्थानों पर किया जाता है:

  1. प्रयाग (इलाहाबाद)माघ मास (जनवरी-फरवरी)
  2. हरिद्वारआषाढ़ माह (अप्रैल-मई)
  3. उज्जैनवैशाख माह (अप्रैल-मई)
  4. नासिकआश्विन माह (सितंबर-अक्टूबर)

इन स्थानों पर विशेष संयोग और ग्रहों की स्थिति के आधार पर कुंभ मेला आयोजित होता है, और स्नान का महत्व बढ़ जाता है। विशेष समय पर स्नान करने से व्यक्ति के जीवन में पुण्य, शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कुंभ स्नान के धार्मिक और ज्योतिषीय लाभ

कुंभ स्नान के समय ग्रहों के विशेष संयोग का महत्व है। इस समय, ग्रहों की स्थिति और ज्योतिषीय प्रभाव के कारण स्नान करने से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं:

  1. ग्रहों के शुभ प्रभावकुंभ स्नान से सूर्य, गुरु, मंगल और शनि के अशुभ प्रभाव से मुक्ति मिलती है।
  2. पापों का नाशपौराणिक मान्यता है कि कुंभ स्नान से पूर्व जन्मों के पाप समाप्त हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  3. मानसिक शांति और रोग निवारणकुंभ स्नान से मानसिक शांति और शारीरिक विकारों में राहत मिलती है। प्रयाग में यह विशेष रूप से शीतजन्य और मानसिक रोगों के लिए लाभकारी माना जाता है।

प्रयाग (इलाहाबाद) में कुंभ स्नान का विशेष महत्व

प्रयाग में कुंभ स्नान का विशेष महत्व है क्योंकि यह स्थान त्रिवेणी संगम का स्थल है, जहां गंगा, यमुन और सरस्वती नदियाँ मिलती हैं। यहाँ स्नान करने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, यह स्थान नदी के जल को विशेष रूप से शुद्ध और पवित्र माना जाता है, जो आत्मा की शुद्धि में सहायक है।

प्रयाग में कुंभ स्नान के दौरान बहुत से महात्मा, संत, साधु और श्रद्धालु एकत्र होते हैं, और यह एक विशेष धार्मिक आयोजन होता है। यहाँ पर पद्म पुराण में वर्णित कहा गया है कि एक बार प्रयाग में स्नान करने से व्यक्ति के जीवन के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

कुंभ स्नान और ज्योतिषीय महत्व

कुंभ स्नान का महत्व ग्रहों के संयोग और तिथियों पर भी निर्भर करता है। विशेषतः:

  1. वृषभ, मिथुन, कन्या, तुला, मकर, और कुंभ राशि वाले यदि कुंभ स्नान के समय विशेष रूप से शिप्रा नदी में स्नान करें, तो उन्हें गुरु ग्रह से जुड़ी बाधाओं में कमी आती है।
  2. गुरु महादशा या गुरु की अशुभ स्थिति में कुंभ स्नान से विशेष लाभ होता है।
  3. सूर्य के अशुभ प्रभावों से मुक्ति पाने के लिए भी कुंभ स्नान महत्वपूर्ण होता है, खासकर उन लोगों के लिए जिनकी राशि मकर, कन्या या वृषभ है।

  4.  

कुंभ स्नान के धार्मिक लाभ

कुंभ स्नान से रोग नाशक, पाप प्रक्षालन, और आध्यात्मिक उन्नति के अलावा, यह भी माना जाता है कि इस समय पर स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। यह पर्व व्यक्ति के जीवन में आध्यात्मिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। इसके साथ ही, यह व्यक्ति के कर्मों की शुद्धि का भी एक बड़ा साधन माना जाता है।

निष्कर्ष

कुंभ स्नान एक अत्यंत पवित्र और धार्मिक प्रक्रिया है, जो न केवल व्यक्ति के जीवन में शांति और सुख की प्राप्ति करता है, बल्कि ग्रहों के अनिष्ट प्रभावों से भी रक्षा करता है। प्रयाग (इलाहाबाद) का कुंभ स्नान विशेष रूप से इस प्रक्रिया का केंद्र है, जहां त्रिवेणी संगम के जल में स्नान करने से अद्वितीय पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कुंभ स्नान से जुड़े धार्मिक, पौराणिक और ज्योतिषीय लाभों को समझकर यह साबित होता है कि यह एक अत्यंत प्रभावशाली और लाभकारी कार्य है।

 

कुंभ स्नान के समय मंत्र विधि
कुंभ स्नान के समय विशेष मंत्रों का जाप और विधि का पालन करने से धार्मिक पुण्य और ग्रहों के अनुकूल प्रभाव प्राप्त होते हैं। जब आप कुंभ स्थल पर स्नान करने जाते हैं, तो निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण करने से पुण्य की प्राप्ति और पापों का नाश होता है।



 1. प्रथम मंत्र - स्नान आरंभ करते समय

कुंभ स्नान के पहले, पवित्र जल में स्नान करते समय यह मंत्र पढ़ा जाता है:

मंत्र:
"
ॐ नमो भगवते श्री विष्णवे, सर्व पाप विनाशाय, कुंभ तीर्थ स्नानं कुरु"
(
ॐ नमो भगवते श्री विष्णु जी को, जिनकी उपासना से सभी पाप समाप्त होते हैं, इस कुंभ तीर्थ स्नान के पुण्य का लाभ मुझे प्राप्त हो।)

इस मंत्र का उच्चारण करने से व्यक्ति का तन और मन शुद्ध होते हैं, और वह पापों से मुक्त हो जाता है।


2. दूसरा मंत्र - नदी के जल में स्नान करने से पहले

जब आप कुंभ स्थल की नदी में स्नान करते हैं, तो जल में प्रवेश करते समय यह मंत्र पढ़ें:

मंत्र:
"
गंगायमुनासरस्वती तत्त्वं पवित्रं शरणं पावनं,
पाप नाशं पुण्य दायकं स्नानं कुरु जगतां पतिं।"

(गंगा, यमुन और सरस्वती नदियाँ पवित्र हैं, ये पापों का नाश करती हैं और पुण्य का प्रसार करती हैं। मैं इन नदियों के पवित्र जल में स्नान करता हूँ, ताकि मेरी आत्मा को शुद्धि मिले।)

यह मंत्र स्नान से पहले उच्चारण करना चाहिए, जिससे नदी के जल की शक्ति से व्यक्ति को शुद्धि प्राप्त हो और उसके पाप समाप्त हो जाएं।


3. तीसरा मंत्र - सूर्य और गुरु के प्रभाव से मुक्ति के लिए

कुंभ स्नान के दौरान सूर्य और गुरु ग्रह के प्रभाव को शुद्ध करने के लिए यह मंत्र विशेष रूप से लाभकारी होता है:

मंत्र:
"
ॐ आदित्याय च सोमाय मंगलाय बुधाय च,
गुरु शुक्र शनिभ्यश्च राहवे केतवे नमः।"
(
ॐ सूर्य देवता, चंद्रदेव, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु को प्रणाम करता हूँ, ताकि इनके प्रभाव से होने वाली कष्टों से मुक्ति मिल सके।)

यह मंत्र ग्रहों के अनिष्ट प्रभावों से मुक्ति पाने में सहायक होता है।


4. चतुर्थ मंत्र - मोक्ष प्राप्ति के लिए कुंभ स्नान के बाद

कुंभ स्नान के बाद यदि आप मोक्ष की प्राप्ति की कामना करते हैं, तो यह मंत्र पढ़ सकते हैं:

मंत्र:
"
ॐ त्रिवेणी महा तीर्थे, पाप नाशनं जयंतकम्,
निवेशितं कुंभ स्नानं, मोक्षार्थं प्रियतं स्वप्नम्।"

(ॐ त्रिवेणी संगम में स्नान करके मैं अपने पापों का नाश करता हूँ और मोक्ष की प्राप्ति की कामना करता हूँ।)


5. पंचम मंत्र - समापन मंत्र (स्नान के बाद)

कुंभ स्नान के बाद, स्नान समाप्ति पर यह मंत्र पढ़ने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है:

मंत्र:
"
ॐ जयन्ति जयन्ति भगवती, पुण्यतमा,
सर्व पाप निवारिणी, त्रिवेणी संगमे।
मोक्षदायिनी भव शांति, सुख समृद्धि का दायिनी।"

(, भगवती गंगा, यमुन और सरस्वती का जयकारा हो, जिनका संगम पुण्य, पाप निवारण और मोक्ष दायक है, और जो जीवन में शांति और समृद्धि प्रदान करती हैं।)


निष्कर्ष:

कुंभ स्नान के समय इन मंत्रों का उच्चारण करने से न केवल शारीरिक और मानसिक शुद्धि होती है, बल्कि धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। इन मंत्रों का जाप करने से व्यक्ति का मन शांत होता है और वह आंतरिक रूप से शुद्ध होता है। कुंभ स्नान के साथ-साथ ये मंत्र व्यक्ति को पुण्य और मोक्ष की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।

महत्वता पदम पुराण के अनुसार कुंभ स्नान का महत्व हिंदू धर्म में कुंभ स्नान का अत्यधिक धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व है।

कुंभ स्नान का महत्व: पद्म पुराण के अनुसार

  1. धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व:
    • हिंदू धर्म में कुंभ स्नान का अत्यधिक धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व है।
    • यह स्नान विशेषत: कुछ निश्चित महीनों में और विशेष स्थानों पर करना उत्तम माना जाता है।
  2. कुंभ स्नान के प्रमुख स्थान और समय:
    • उज्जैन (वैशाख माह, अप्रैल-मई): गुरु वृहस्पति पूजा के साथ विशेष महत्व।
    • प्रयाग (माघ माह, जनवरी-फरवरी): त्रिवेणी संगम के कारण विशेष पुण्य लाभ।
    • पुष्कर (कार्तिक माह, नवंबर): विशेष संयोग में स्नान से पुण्य लाभ।
    • हरिद्वार (आषाढ़ माह, अप्रैल-मई): गंगा में स्नान करने से विशेष लाभ।
  3. गृहस्थ जीवन और कुंभ स्नान:
    • यदि किसी प्रमुख कुंभ क्षेत्र (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर स्नान करना संभव न हो, तो उस क्षेत्र की पवित्र नदी का जल मंगवाकर घर पर स्नान करना भी फलदायी होता है।
    • इस प्रकार के स्नान से अमृत जल और ग्रहों के सकारात्मक प्रभाव प्राप्त होते हैं, हालांकि देवों और सिद्ध पुरुषों के दर्शन का अनुभव नहीं होता।
  4. गुरु वृहस्पति मंदिर और उसकी पूजा:
    • उज्जैन में स्थित गुरु वृहस्पति का मंदिर गुरु ग्रह की पूजा के लिए प्रसिद्ध है, विशेष रूप से गुरु महादशा या अंतरदशा में।
    • यहाँ गुरु ग्रह की पूजा करना विशेष फलदायक माना जाता है।
  5. राशियों के आधार पर कुंभ स्नान के लाभ:
    • वृषभ, मिथुन, कन्या, तुला, मकर, कुंभ लग्न वालों को शिप्रा नदी के जल से स्नान करने से गुरु जन्य बाधाओं में कमी आती है।
    • मकर और कुंभ राशि वालों को विशेष रूप से गुरु वृहस्पति पूजा करनी चाहिए।
    • गुरु महादशा में कुंभ स्नान या संबंधित क्षेत्र की नदी के जल से स्नान अत्यधिक फलदायी होता है।
    • सूर्य को जल अर्पण करने से सूर्य के अशुभ प्रभावों से सुरक्षा मिलती है, विशेषकर मकर, कन्या, वृष राशि वालों को।
  6. रोगनाशक और पाप प्रक्षालन में कुंभ स्नान:
    • प्रयाग में कुंभ स्नान से शीतजन्य, एलर्जी, कफजन्य, मानसिक रोग, भूत-प्रेत बाधा और विकलांगता में लाभ होता है।
    • हरिद्वार में कुंभ स्नान से ग्रीष्मकालीन उष्णताजन्य रोगों में शमन होता है।
    • नासिक में मानसिक रोग, क्रोध, तनाव, उच्च रक्तचाप, कैंसर, दांपत्य जीवन, मुकदमे में सफलता के लिए कुंभ स्नान विशेष लाभकारी है।
    • उज्जैन में कुंभ स्नान से स्नायु, धर्म, मुकदमे और रोजगार संबंधित बाधाओं में कमी आती है।
  7. ग्रह संयोग का महत्व:
    • कुंभ स्नान का महत्व ग्रहों के संयोग और तिथि पर निर्भर करता है।
    • देवों और असुरों द्वारा समुद्र मंथन के बाद अमृत कलश की बूंदें जिन नदियों में गिरीं, जैसे प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक, उन स्थानों पर कुंभ स्नान की परंपरा विकसित हुई।
  8. कुंभ के प्रमुख क्षेत्र और ग्रहों का प्रभाव:
    • उज्जैन (वैशाख माह)विशेष गुरु और सूर्य प्रभाव।
    • प्रयाग (माघ माह)त्रिवेणी संगम और विशेष पुण्य लाभ।
    • हरिद्वार (आषाढ़ माह)गंगा स्नान और मंगल के प्रभाव।
    • नासिक (आश्विन माह)विशेष ग्रह संयोग के प्रभाव में लाभ।
  9. तीर्थ यात्रा और कुंभ पर्व:
    • कुंभ पर्व विशेष रूप से उन स्थानों पर मनाया जाता है जहां देवता और दानवों के बीच समुद्र मंथन हुआ था।
    • यह पर्व ग्रहों के विशेष संयोग और चंद्र-सूर्य की स्थिति से जुड़ा होता है, और इन क्षेत्रों में स्नान करने से पापों की शुद्धि और कर्मों में सुधार होता है।
    • कुंभ पर्व की परंपरा अत्यंत प्राचीन है, और इसका आयोजन हड़प्पा सभ्यता (लगभग 3464 ईसा पूर्व) से किया जा रहा था।
  10. समाप्ति और कुंभ स्नान का समग्र लाभ:
    • कुंभ स्नान एक शुद्ध और धार्मिक प्रक्रिया है जो व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति और ग्रहों के अनिष्ट प्रभावों से सुरक्षा प्रदान करने का एक महान उपाय है।
    • सूर्य, गुरु, और चंद्र के प्रभावों को समझते हुए इन विशेष समयों और स्थानों पर स्नान करना व्यक्ति के जीवन को सकारात्मक दिशा में मोड़ सकता है।
    • कुंभ स्नान सम्पूर्ण जानकारी

 


 सभी उच्च आत्मा देवतुल्य के चित्र साभार सौजन्य से प्रस्तुत।

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*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं ना...

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती...

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा ज...

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...