ज्योतिष शिरोमणि - पण्डित वी के तिवारी (9424446706, jyotish9999@gmail.com)
ज्योतिष उपाधि : वाचस्पति, भूषण, महर्षि, शिरोमणि, मनीषी, रत्नाकर, मार्तण्ड, महर्षि वेदव्यास1(1990 तक),
कृत्तिवास बंगला रामायण-कथानक संदर्भ -,
अपने आराध्य ,इष्ट देव या सर्वेश्वर की पूजा,
अपने आराध्य ,इष्ट देव या सर्वेश्वर की पूजा,
अर्चना, प्रार्थना याचना व्यर्थ नहीं होती।
सच्चे मन से ,श्रद्धा, विश्वास एवं समर्पित भाव
सच्चे मन से ,श्रद्धा, विश्वास एवं समर्पित भाव
से किये गए प्रयास कभी व्यर्थ नहीं होते।
प्रारब्ध के पाप सागर को भी सुखा देने की
प्रारब्ध के पाप सागर को भी सुखा देने की
क्षमता,होती है।
इष्ट की प्रार्थना, तपस्या, याचना,दास भाव से
इष्ट की प्रार्थना, तपस्या, याचना,दास भाव से
,उनमे एकाकार हो,आत्मसात कसर,
अटूट अनवरत,
निरंतर की जावे तो कभी प्रत्यक्ष तो
कभी परोक्ष रूप से देववशात,परिस्थिति वश या कारण उपस्थित होकर पूर्ण फलदाई अवश्य होती है।
इसका एक प्रमाण है अंजना ओर वानर राज केसरी
इसका एक प्रमाण है अंजना ओर वानर राज केसरी
की पुत्र कामना से प्रार्थना ओर धवल
का प्राण अंत
एवं भगवान शिव को संतान के अंश के के
रूप में
वानर योनी में जन्म लेने को विवश होना
पड़ा।
घटनाक्रम इस प्रकार है-
गौतम ऋषि ओर उनकी पत्नी अहिल्या की पुत्री ,
गौतम ऋषि ओर उनकी पत्नी अहिल्या की पुत्री ,
ब्रह्मा सभा की शापित अप्सरा
पुंजिकास्थला
सर्व सुंदरी अंजना एवं वनराज
केसरी पुत्र संतान
के लिए विभिन्न प्रकार के प्रयास रत ,प्रभास तीर्थ ,
तपस्थली में ऋषि
मुनियों के आश्रम के समीप तपस्या
रहते थे।
प्रभास तीर्थ के पास एक सरोवर था। जिसमें एक
प्रभास तीर्थ के पास एक सरोवर था। जिसमें एक
उद्दंड मत गजराज जिसका नाम धवल था।
हमेशा
किलोले करता रहता था। उस सरोवर में
अपनी
उपस्थिति में ,किसी को स्नान नहीं
करने देता था ।
इसलिए उसकी अनुपस्थिति में ही ऋषि गण
इसलिए उसकी अनुपस्थिति में ही ऋषि गण
स्नान ध्यान करते थे। उस गज के उत्पात से
समस्त प्रभास क्षेत्र के ऋषि मुनि आतंकित
रहते।
अनेक मुनियों को धवल गजराज,सरोवर में स्नान
करता देख,उनको यमलोक भेज
चुका था।
एक दिन जब नित्य प्रति दिन की भाँति धवल
एक दिन जब नित्य प्रति दिन की भाँति धवल
को सरोवर के निकट न देख कर,भरद्वाज जी
सरोवर में स्नान कसर ही रहे थे तो
उनको गजराज
धबल ने , वृक्षों के ओट से सरोवर में स्नान
करते देख लिया।
धवल उनकी ओर प्राणघातक हमले की दृष्टि से चिंघाड़ते
धवल उनकी ओर प्राणघातक हमले की दृष्टि से चिंघाड़ते
हुए आने लगा। ऋषि भारद्वाज अपने प्राण लेकर
आश्रम की ओर भागे।
उन्मत्त मतवाला गजराज धवल उनके पीछे
उन्मत्त मतवाला गजराज धवल उनके पीछे
उन तक उन तक पहुंच कर उनकी इहलीला,
प्राणान्त समाप्त करने ही वाला था।
देववशात, अजेय, पराक्रमी , बानराज केसरी ने
देववशात, अजेय, पराक्रमी , बानराज केसरी ने
भारद्वाज ऋषि के पीछे भागते हाथी धवल
को देख लिया ।अबिलम्ब, बिना क्षणांश
अपव्यय किये,
बलशाली , महा पराक्रमी
वानरराज केसरी ने
दौड़कर उस हाथी के बड़े2 दांतों को पकड़
लिया।
और दोनों के शक्ति परीक्षण में धवल के
और दोनों के शक्ति परीक्षण में धवल के
दाँत टूट गए ।धवल गजराज का प्राणान्त हो गया।
ऋषि भरद्वाज आसन्न मृत्यु के भयावह बबंडर
ऋषि भरद्वाज आसन्न मृत्यु के भयावह बबंडर
से आतंक से पलार्द्ध पश्चात जब मुक्त
हो नेत्र खोले
तो समीप ही दुष्ट उन्मत्त धवल गजराज निश्चेष्ट
धरा पर, मृत प्रायः, अंतिम स्वांस लेते
दृष्टिगत हुआ।
समीप ही वानर केसरी को देख।सब कुछ
घटित समझ कर।
अत्यंत प्रसन्न हो। कृतघ्न भावविभोर
हो ,प्रसन्नतावेग
में श्रुअपूरित नेत्रो से, वानर केसरी पर
दृष्टिपात किया। ।
बनराज केसरी ने समीप ही खड़े ऋषि भारद्वाज को
बनराज केसरी ने समीप ही खड़े ऋषि भारद्वाज को
प्रणाम किया । भारद्वाज ने प्रसन्न
होकर कोई भी
इच्छा प्रकट करने के लिए ,वर मांगने के लिए
कहा।
केसरी ने करबद्ध मुद्रा में कहा- ऋषिवर आपके लिए
केसरी ने करबद्ध मुद्रा में कहा- ऋषिवर आपके लिए
कुछ भी देना आसंभव नहीं है ।अदेय नहीं है।
आप यदि कृपा करना ही चाहते हैं, तो मुझे एक
पुत्र संतान की परम इच्छा है, उसकी पूर्ति, पूर्णता का वर
दीजिए।
ऋषि भरद्वाज वचनबद्ध हो चुके थे अतः उन्होंने
ऋषि भरद्वाज वचनबद्ध हो चुके थे अतः उन्होंने
अपने तपोबल से, भगवान शंकर से
तपस्या के
परिणाम स्वरूप वानर राज केसरी को पुत्र
संतान प्रदान करने के लिए प्रार्थना
की।
भगवान शिव ने ऋषि भारद्वाज की तप शक्ति के
भगवान शिव ने ऋषि भारद्वाज की तप शक्ति के
परिणाम स्वरूप ऋषि वचन निर्वाहार्थ ,अंततः
वानर राज केसरी के शरीर में ,अपने एकादश रुद्र
के
तेज अंश को संचारित
किया।फलतः शिव के
एकादश रुद्रांश से वानर योनि में जन्म
लिया।
अर्थात तपस्या की शक्ति का फल परोक्ष रूप से
अभीष्ट देव ने कारण प्रस्तुत कर दिया।।अर्थात तपस्या की शक्ति का फल परोक्ष रूप से
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