पूजा प्रारम्भ समय-
सूर्योदय से 11:59-12:31; 09:15-10:40 ; 18:19-22:19 पुजा प्रारम्भ के समय का महत्व है |
ज्योतिष शिरोमणि - पण्डित वी के तिवारी
(9424446 706, jyotish9999@gmail.com)
ज्योतिष उपाधि : वाचस्पति, भूषण, महर्षि, शिरोमणि, मनीषी,
रत्नाकर, मार्तण्ड, महर्षि वेदव्यास1(1976-1990 तक),
विशेषज्ञता :(1972से) वास्तु, जन्म कुण्डली, मुहूर्त,
रत्न परामर्श, हस्तरेखा, पंचांग संपादक |
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(संदर्भ- भविष्योत्तर ,स्कंद
पुराण, निर्णयामृत, व्रतपरिचय, व्रत
पर्वोतत्सव)
वट एक
वृक्ष का नाम है ।सामान्य वृक्ष की कोटी में ना होकर
,देव वृक्ष के रूप में पूजित है। आयुर्वेदिक औषधि जगत
में भी इसका विशिष्ट महत्व है।
देव वृक्ष ?
यह देव वृक्ष कहलाता है ।
पौराणिक आधार पर इस वृक्ष की जड़ में भगवान ब्रह्मा
मध्य में विष्णु जी तथा ऊपरी भाग में शिव जी का
निवास माना गया है अर्थात तीन देव इस वृक्ष से संबंधित हैं।
देवी सावित्री भी वटवृक्ष में अति स्थित मानी गई हैं
।
प्रसिद्ध वट वृक्ष-
भारत में कुछ स्थानों के वटवृक्ष अतिप्रसिद्ध हैं.
जैसे पंचवटी। कुंभज मुनि
के परामर्शसे भगवान राम एवंउनके वनवास काल मेंसीता
लक्ष्मण
जी ने यहां निवास किया था।अक्षय वट यह प्रयागराज में
गंगा
के किनारे बेनी माधव के समीप है।इसे तीर्थराज का
छत्र तुलसीदास ने कहा।
वट सावित्री शब्द?
बट सावित्री व्रत इसलिए प्रसिद्ध हुआ
क्योंकि इसके नीचे सावित्री ने अपने पतिव्रत ,आस्था, विश्वास ,श्रद्धा
से
मृत पति को जीवित कर लिया था ।
किस माह एवं TITHI?
इस व्रत का नाम वट सावित्री प्रचलित हुआ।
यह जेष्ठ मास में ही आता है ।
स्कंद पुराण, शिव
पुराण के आधार पर
पूर्णिमा के दिन वट सावित्री व्रत किया जाता है।
निर्णयामृत ग्रंथ एवम उत्तर भारत
के अधिकांश क्षेत्रों में इसे जेष्ठ मास की अमावस्या
को मनाने
की परंपरा में है।
महिलाओं का व्रत एवम लाभ?
महिलाओं से संबंधित व्रत है।किसी भी आयु की कोई भी
महिला
इसको अपने सुख सौभाग्य के लिएकर सकती हैं।
यह व्रत सुख, सौभग्य,आपत्ति
-विपत्तिनाशक भी माना गया है।
व्रत नियम-
A.त्रयोदशी तिथि को
संकल्प करना।
केवल रात्रि भोजन किया जावे।
संकल्प मंत्र-पूर्व या उत्तर(Face to be either East
or North)
हाथ मे जल लेकर कहे-
मम वैधव्य आदि सकल दोष परिहारार्थम,ब्रह्म
सावित्री प्रीत्यर्थम च
वट सावित्री व्रतं अहम करिष्ये।
पृथ्वी पर छोड़ दे।
B-चतुर्दशी को अयाचित भोजन
करे।
C-अमावस्या को उपवास एवं
पूजा।
विधि-
किसी 2 पात्र
में सप्त धान अर्थात सात प्रकार के
अनाज रखें ।
इन दोनों पात्रों मैं से एक पर ब्रह्मा एवं ब्रह्मा सावित्री एवं
दूसरे
पर सत्यवान एवं सावित्री रखें ।
इनको आटे या मिट्टी से भी प्रतीक स्वरूप बनाया जा
सकता है ।
इनकी पूजा करे। पुष्प , फल, रोली, सिंदूर, चावल ,काले तिल आदि अर्पित करें।
पास
में ही यम बनाकर उनकी भी पूजा की जाती है।ॐ यमाय नम:।
वट वृक्ष जड़ पर जल अर्पण-मंत्र
वट सिंचामि ते मूलं सलिल
अमृत उपमै:।
यथा शाखा प्रशाखा अभि वृद्धिअसि
त्वं महीतले।
तथा पुत्रेश्च पौत्रेशच सम्पन्नम कुरु
मांम मॉ सर्वदा।
चने पर रुपये रख कर सास को देकर
आशीर्वाद लिया जाता है ।
सौभाग्य सामग्री मंदिर में दान या देवी को अर्पित।
जल अर्पण(अर्ध्य)-मंत्र
अवैध्वयं च सौभाग्यम देहि त्वम मम सुव्रते।
पुत्रां पौत्रान्श्च सौख्यम च ग्रहणार्ध्यम नमोस्तुते।
D- 108 परिक्रमा(यथा शक्ति
या9,11,54)-
परिक्रमा मंत्र-
"नमो वैवस्वताय"
बोलते
रहे।या एक परिक्रमा पर एक बार।
108 या
परिक्रमा संख्या गिनने के लिए ,पहले किसी
वस्तु
रेवड़ी, बताशा,चुरोंजी दाना, इलायची आदि गईं ले।
हर परिक्रमा के बाद छोड़ते जाए।
E-प्रतिपदा तिथि को
अन्न ग्रहण करे।
व्रत
की तुलना में पूजा महत्व पूर्ण है।
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🌿 वट सावित्री व्रत का महत्व
वट सावित्री व्रत का उद्देश्य पति की दीर्घायु, सौभाग्य और संतान प्राप्ति है। सावित्री-सत्यवान की कथा के अनुसार, सावित्री ने अपने तप, भक्ति और चातुर्य से यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस लिए थे। यह व्रत महिलाओं को अपने पति के प्रति समर्पण, निष्ठा और प्रेम का प्रतीक माना जाता है।
📜 वट सावित्री व्रत के श्लोक
वट सावित्री व्रत के दौरान निम्नलिखित श्लोकों का उच्चारण किया जाता है:
-
सावित्री को अर्घ्य देते समय:
अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।
पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते॥अर्थ: हे सुव्रता सावित्री! मुझे वैधव्य से मुक्त करें, सौभाग्य प्रदान करें, पुत्र-पौत्र और सुख दें। आपको अर्घ्य अर्पित करती हूँ, आपको नमस्कार है।
-
वटवृक्ष की प्रार्थना करते समय:
वट सिञ्चामि ते मूलं सलिलैरमृतोपमैः।
यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले।
तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मां सदा॥अर्थ: हे वटवृक्ष! मैं आपके मूल को अमृत तुल्य जल से सिंचित करती हूँ। जैसे आप शाखा-प्रशाखाओं से पृथ्वी पर विस्तृत हुए हैं, वैसे ही मुझे पुत्र-पौत्रों से समृद्ध करें।
सावित्री और उसके पति सत्यवान काविवरण वट सावित्री
व्रत के प्रसंग में-
मद्र देश के राजा अश्वपति को यज्ञ विशेषद्वारा पुत्री
की प्राप्ति हुई जिसका
नाम सावित्री रखा गया।द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से
सावित्री
की शादी का निर्णय हुआ ।
महर्षि नारद जी को जब यह ज्ञात हुई तो
वे राजा के पास पहुंचे ।
नारद जी ने कहा- वर ढूंढने मेंआपके द्वारा भूल, गलती
या त्रुटि हुई है ।
यह वर
अल्पायु है। इसकी 1 वर्ष
केअंदर मृत्यु हो जाएगी ।इसलिए किसी
और वर को चुन लेना उचित होगा ।
परंतु सावित्री द्वारा कहा गया कि,
मेरे द्वारा पति का वरण किया जा चुका है ।
अतः अब इसमें किसी भी प्रकारके परिवर्तन या
पुनर्विचार का
कोई प्रश्न ही नहीं उठता है ।
अंततः सत्यवान से सावित्री काविवाह कर दिया गया।
महर्षि नारद सत्यवान की मृत्युतिथि, सावित्री
को सत्यवान की
आयु के लिए व्रत पूजा के निर्देशदेकर
,वहां से प्रस्थित हो गए।
नारद जी के निर्देशानुसार सावित्रीअपने पति की आयु के
लिए उपवास
पूजन आदि करने लगी अंततःमृत्यु का दिन भी आ पहुंचा
जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष पूर्णिमा।मृत्यु तिथि यही
नारद के द्वारा बताई
गई थी अतः सावित्री
छाया कीतरह अपने पति सत्यवान के साथ
प्रातः सूर्योदय काल से ही साथ रही।
यज्ञ
हेतु संमिधा लाने सत्यवानवन की ओर प्रस्थान करने लगे ।
सास ससुर से आज्ञा लेकर सावित्रीभी संमिधा
एकत्र करनेके लिए साथ में गई।
वहां एक वट वृक्ष के नीचे, एक
विष धर
/सर्प ने सत्यवान को
डस लिया ।
उस समय ही यमराज
उपस्थित हुएऔर सत्यवान के सूक्ष्म शरीर को
लेकर जाने लगे ।यम देव के पीछे 2 सावित्री
अनुगमन
करने लगी।परंतु यमराज के समझानेपर वह वापस नहीं
हुई ।
तो यमराज ने उससे वर
मांगने को कहा।
और सावित्री की लौट जाने के लिए परामर्श दिया।
सावित्री ने कहा- मेरे अंधे सास ससुर को
नेत्र ज्योति प्रदान करें ।
जिससे वे देख सकें।यमराज ने वर दे दिया। इ
सके पश्चातभी सावित्री निरंतर यमराज के
पीछे चलती रही।
यमराज ने कहा-हे देवी, अब
तुम्हें वापस जाना चाहिए।
तुम एक वर और मांग लो ।
सावित्री बोली यदि वर देना चाहते हैं -
तो मेरे
ससुर को उनका राज्य वापस मिल
जाए ।
यमराज जी ने तथास्तु कह कर वर दे दिया।
इसके पश्चात भी यमराज ने जबपलट कर देखा तो सावित्री
उनका
अनुगमन कर रही थी।
यमराज बोले- हे है पति व्रता सावित्रीतुमको
मैं ने वर दिए ।अब तुमको वापस चला जाना चाहिए ।
सावित्री ने उत्तर दिया- कि जहां सत्यवान होगा।
वही मैं भी गी मैं उसकी पत्नी हूं इसलिए उसके साथ ही
रहूंगी।
द्रवि भूत होकर यमराज बोले
=सावित्री तुम्हें अब वापिस जाना चाहिए
अब एक बार और मांग लो परंतु वापस चली जाओ ।‘
सावित्री बोली के जी वर देना ही चाहते हैं तो मुझे वर दीजिए कि
=मैं सत्यवान के पुत्रों की मां बनुं/ यमराज द्वारा अंततः सत्यवान को मृत्यु पाश सेमुक्त कर सावित्री को सौंप दिया गया इससे इस
प्रसंग के बाद इस घटना के बाद
एक विश्वास प्रचलन में आया, प्रचलित हुआ की आस्था
और विश्वास से पति परायणता से नारी इस दिन वट
वृक्ष की पूजा कर अपने पति को दीर्घायु बना सकती है
एवं आने वाले विपत्ति को रोक सकती है
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