वट पूजा ,सौभाग्य
सृजन रहस्य कथानक 22 मई 2020
पूजा प्रारम्भ समय-
सूर्योदय से एक घंटे तक ,08:50-12:45
कर्क एवं सिंह लग्न | विशेष 08:50- 10:10
| पुजा प्रारम्भ के समय का महत्व है |
ज्योतिष शिरोमणि - पण्डित वी के
तिवारी
(9424446 706, jyotish9999@gmail.com)
ज्योतिष उपाधि : वाचस्पति, भूषण, महर्षि, शिरोमणि, मनीषी,
रत्नाकर, मार्तण्ड, महर्षि वेदव्यास1(1990 तक),
विशेषज्ञता :(1976 से) वास्तु, जन्म
कुण्डली, मुहूर्त,
रत्न परामर्श, हस्तरेखा, पंचांग
संपादक |
(संदर्भ- भविष्योत्तर ,स्कंद पुराण, निर्णयामृत, व्रतपरिचय, व्रत
पर्वोतत्सव)
वट एक वृक्ष का नाम है ।सामान्य वृक्ष की कोटी में ना होकर
वट एक वृक्ष का नाम है ।सामान्य वृक्ष की कोटी में ना होकर
,देव वृक्ष के रूप में पूजित
है। आयुर्वेदिक औषधि जगत
में भी
इसका विशिष्ट महत्व है।
देव वृक्ष ?
यह देव वृक्ष कहलाता है ।
पौराणिक आधार पर इस वृक्ष की जड़ में भगवान ब्रह्मा
देव वृक्ष ?
यह देव वृक्ष कहलाता है ।
पौराणिक आधार पर इस वृक्ष की जड़ में भगवान ब्रह्मा
मध्य में विष्णु जी तथा ऊपरी भाग में शिव जी का
निवास माना गया है अर्थात तीन देव इस वृक्ष से संबंधित हैं।
देवी
सावित्री भी वटवृक्ष में अति स्थित मानी गई हैं ।
प्रसिद्ध वट वृक्ष-
भारत में कुछ स्थानों के वटवृक्ष अति
प्रसिद्ध हैं. जैसे पंचवटी। कुंभज मुनि
के परामर्शसे भगवान राम एवं
उनके वनवास काल मेंसीता लक्ष्मण
जी ने यहां निवास किया था।
अक्षय वट यह प्रयागराज में गंगा
के किनारे बेनी माधव के समीप है।
इसे तीर्थराज का छत्र तुलसीदास ने कहा।
वट सावित्री शब्द?
बट सावित्री व्रत इसलिए प्रसिद्ध हुआ
क्योंकि इसके नीचे सावित्री ने अपने पतिव्रत ,आस्था, विश्वास ,श्रद्धा से
मृत पति को जीवित कर लिया था ।
किस माह एवं तिथ?
इस व्रत का नाम वट सावित्री प्रचलित हुआ।
यह जेष्ठ मास में ही आता है ।
स्कंद पुराण, शिव पुराण के आधार पर
पूर्णिमा के दिन वट सावित्री व्रत किया जाता है।
निर्णयामृत ग्रंथ एवम उत्तर भारत
के अधिकांश क्षेत्रों में इसे जेष्ठ मास की अमावस्या को
प्रसिद्ध वट वृक्ष-
भारत में कुछ स्थानों के वटवृक्ष अति
प्रसिद्ध हैं. जैसे पंचवटी। कुंभज मुनि
के परामर्शसे भगवान राम एवं
उनके वनवास काल मेंसीता लक्ष्मण
जी ने यहां निवास किया था।
अक्षय वट यह प्रयागराज में गंगा
के किनारे बेनी माधव के समीप है।
इसे तीर्थराज का छत्र तुलसीदास ने कहा।
वट सावित्री शब्द?
बट सावित्री व्रत इसलिए प्रसिद्ध हुआ
क्योंकि इसके नीचे सावित्री ने अपने पतिव्रत ,आस्था, विश्वास ,श्रद्धा से
मृत पति को जीवित कर लिया था ।
किस माह एवं तिथ?
इस व्रत का नाम वट सावित्री प्रचलित हुआ।
यह जेष्ठ मास में ही आता है ।
स्कंद पुराण, शिव पुराण के आधार पर
पूर्णिमा के दिन वट सावित्री व्रत किया जाता है।
निर्णयामृत ग्रंथ एवम उत्तर भारत
के अधिकांश क्षेत्रों में इसे जेष्ठ मास की अमावस्या को
मनाने की परंपरा में है।
महिलाओं का व्रत एवम लाभ?
महिलाओं से संबंधित व्रत है।
किसी भी आयु की कोई भी महिला
इसको अपने सुख सौभाग्य के लिए
कर सकती हैं।
यह व्रत सुख, सौभग्य,आपत्ति -विपत्ति
नाशक भी माना गया है।
व्रत नियम-
A.त्रयोदशी तिथि को संकल्प करना।
केवल रात्रि भोजन किया जावे।
संकल्प मंत्र-पूर्व या उत्तर(Face to be either East or North)
महिलाओं का व्रत एवम लाभ?
महिलाओं से संबंधित व्रत है।
किसी भी आयु की कोई भी महिला
इसको अपने सुख सौभाग्य के लिए
कर सकती हैं।
यह व्रत सुख, सौभग्य,आपत्ति -विपत्ति
नाशक भी माना गया है।
व्रत नियम-
A.त्रयोदशी तिथि को संकल्प करना।
केवल रात्रि भोजन किया जावे।
संकल्प मंत्र-पूर्व या उत्तर(Face to be either East or North)
हाथ मे
जल लेकर कहे-
मम वैधव्य आदि सकल दोष परिहारार्थम,
ब्रह्म सावित्री प्रीत्यर्थम च
वट सावित्री व्रतं अहम करिष्ये।
पृथ्वी पर छोड़ दे।
B-चतुर्दशी को अयाचित भोजन करे।
C-अमावस्या को उपवास एवं पूजा।
विधि-
किसी 2 पात्र में सप्त धान अर्थात सात प्रकार के अनाज रखें ।
मम वैधव्य आदि सकल दोष परिहारार्थम,
ब्रह्म सावित्री प्रीत्यर्थम च
वट सावित्री व्रतं अहम करिष्ये।
पृथ्वी पर छोड़ दे।
B-चतुर्दशी को अयाचित भोजन करे।
C-अमावस्या को उपवास एवं पूजा।
विधि-
किसी 2 पात्र में सप्त धान अर्थात सात प्रकार के अनाज रखें ।
इन
दोनों पात्रों मैं से एक पर ब्रह्मा एवं ब्रह्मा सावित्री एवं
दूसरे पर सत्यवान एवं सावित्री रखें ।
इनको आटे या मिट्टी से भी प्रतीक स्वरूप बनाया जा सकता है ।
इनको आटे या मिट्टी से भी प्रतीक स्वरूप बनाया जा सकता है ।
इनकी
पूजा करे। पुष्प , फल, रोली, सिंदूर, चावल ,
काले
तिल आदि अर्पित करें।
पास में ही यम बनाकर उनकी भी पूजा की जाती है।ॐ यमाय नम:।
वट वृक्ष जड़ पर जल अर्पण-मंत्र
वट सिंचामि ते मूलं सलिल अमृत उपमै:।
यथा शाखा प्रशाखा अभि वृद्धिअसि
त्वं महीतले।
तथा पुत्रेश्च पौत्रेशच सम्पन्नम कुरु मांम मॉ सर्वदा।
चने पर रुपये रख कर सास को देकर
आशीर्वाद लिया जाता है ।
सौभाग्य सामग्री मंदिर में दान या देवी को अर्पित।
जल अर्पण(अर्ध्य)-मंत्र
अवैध्वयं च सौभाग्यम देहि त्वम मम सुव्रते।
पुत्रां पौत्रान्श्च सौख्यम च ग्रहणार्ध्यम नमोस्तुते।
D- 108 परिक्रमा(यथा शक्ति या9,11,54)-
परिक्रमा मंत्र-
"नमो वैवस्वताय"बोलते रहे।या एक परिक्रमा पर एक बार।
108 या परिक्रमा संख्या गिनने के लिए ,पहले किसी वस्तु
वट वृक्ष जड़ पर जल अर्पण-मंत्र
वट सिंचामि ते मूलं सलिल अमृत उपमै:।
यथा शाखा प्रशाखा अभि वृद्धिअसि
त्वं महीतले।
तथा पुत्रेश्च पौत्रेशच सम्पन्नम कुरु मांम मॉ सर्वदा।
चने पर रुपये रख कर सास को देकर
आशीर्वाद लिया जाता है ।
सौभाग्य सामग्री मंदिर में दान या देवी को अर्पित।
जल अर्पण(अर्ध्य)-मंत्र
अवैध्वयं च सौभाग्यम देहि त्वम मम सुव्रते।
पुत्रां पौत्रान्श्च सौख्यम च ग्रहणार्ध्यम नमोस्तुते।
D- 108 परिक्रमा(यथा शक्ति या9,11,54)-
परिक्रमा मंत्र-
"नमो वैवस्वताय"बोलते रहे।या एक परिक्रमा पर एक बार।
108 या परिक्रमा संख्या गिनने के लिए ,पहले किसी वस्तु
रेवड़ी, बताशा,चुरोंजी दाना, इलायची
आदि गईं ले।
हर
परिक्रमा के बाद छोड़ते जाए।
E-प्रतिपदा तिथि को अन्न ग्रहण करे।
व्रत की तुलना में पूजा महत्व पूर्ण है।
****††************
सावित्री और उसके पति सत्यवान का
विवरण वट सावित्री व्रत के प्रसंग में-
मद्र देश के राजा अश्वपति को यज्ञ विशेष
द्वारा पुत्री की प्राप्ति हुई जिसका
नाम सावित्री रखा गया।
द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से सावित्री
की शादी का निर्णय हुआ ।
महर्षि नारद जी को जब यह ज्ञात हुई
तो वे राजा के पास पहुंचे ।
नारद जी ने कहा- वर ढूंढने में
आपके द्वारा भूल, गलती या त्रुटि हुई है ।
यह वर अल्पायु है। इसकी 1 वर्ष के
अंदर मृत्यु हो जाएगी ।इसलिए किसी
और वर को चुन लेना उचित होगा ।
परंतु सावित्री द्वारा कहा गया कि,
मेरे द्वारा पति का वरण किया जा चुका है ।
अतः अब इसमें किसी भी प्रकार
के परिवर्तन या पुनर्विचार का
कोई प्रश्न ही नहीं उठता है ।
अंततः सत्यवान से सावित्री का
विवाह कर दिया गया।
महर्षि नारद सत्यवान की मृत्यु
तिथि, सावित्री को सत्यवान की
आयु के लिए व्रत पूजा के निर्देश
देकर ,वहां से प्रस्थित हो गए।
नारद जी के निर्देशानुसार सावित्री
अपने पति की आयु के लिए उपवास
पूजन आदि करने लगी अंततः
मृत्यु का दिन भी आ पहुंचा
जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष पूर्णिमा।
मृत्यु तिथि यही नारद के द्वारा बताई
गई थी अतः सावित्री छाया की
तरह अपने पति सत्यवान के साथ
प्रातः सूर्योदय काल से ही साथ रही।
यज्ञ हेतु संमिधा लाने सत्यवान
वन की ओर प्रस्थान करने लगे ।
सास ससुर से आज्ञा लेकर सावित्री
भी संमिधा एकत्र करनेके लिए साथ में गई।
वहां एक वट वृक्ष के नीचे, एक विष धर
/सर्प ने सत्यवान को डस लिया ।
उस समय ही यमराज उपस्थित हुए
और सत्यवान के सूक्ष्म शरीर को
लेकर जाने लगे ।
यम देव के पीछे 2 सावित्री अनुगमन
करने लगी।परंतु यमराज के समझाने
पर वह वापस नहीं हुई ।
तो यमराज ने उससे वर मांगने को कहा।
और सावित्री की लौट जाने के लिए परामर्श दिया।
सावित्री ने कहा- मेरे अंधे सास ससुर को नेत्र ज्योति प्रदान करें ।
E-प्रतिपदा तिथि को अन्न ग्रहण करे।
व्रत की तुलना में पूजा महत्व पूर्ण है।
****††************
सावित्री और उसके पति सत्यवान का
विवरण वट सावित्री व्रत के प्रसंग में-
मद्र देश के राजा अश्वपति को यज्ञ विशेष
द्वारा पुत्री की प्राप्ति हुई जिसका
नाम सावित्री रखा गया।
द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से सावित्री
की शादी का निर्णय हुआ ।
महर्षि नारद जी को जब यह ज्ञात हुई
तो वे राजा के पास पहुंचे ।
नारद जी ने कहा- वर ढूंढने में
आपके द्वारा भूल, गलती या त्रुटि हुई है ।
यह वर अल्पायु है। इसकी 1 वर्ष के
अंदर मृत्यु हो जाएगी ।इसलिए किसी
और वर को चुन लेना उचित होगा ।
परंतु सावित्री द्वारा कहा गया कि,
मेरे द्वारा पति का वरण किया जा चुका है ।
अतः अब इसमें किसी भी प्रकार
के परिवर्तन या पुनर्विचार का
कोई प्रश्न ही नहीं उठता है ।
अंततः सत्यवान से सावित्री का
विवाह कर दिया गया।
महर्षि नारद सत्यवान की मृत्यु
तिथि, सावित्री को सत्यवान की
आयु के लिए व्रत पूजा के निर्देश
देकर ,वहां से प्रस्थित हो गए।
नारद जी के निर्देशानुसार सावित्री
अपने पति की आयु के लिए उपवास
पूजन आदि करने लगी अंततः
मृत्यु का दिन भी आ पहुंचा
जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष पूर्णिमा।
मृत्यु तिथि यही नारद के द्वारा बताई
गई थी अतः सावित्री छाया की
तरह अपने पति सत्यवान के साथ
प्रातः सूर्योदय काल से ही साथ रही।
यज्ञ हेतु संमिधा लाने सत्यवान
वन की ओर प्रस्थान करने लगे ।
सास ससुर से आज्ञा लेकर सावित्री
भी संमिधा एकत्र करनेके लिए साथ में गई।
वहां एक वट वृक्ष के नीचे, एक विष धर
/सर्प ने सत्यवान को डस लिया ।
उस समय ही यमराज उपस्थित हुए
और सत्यवान के सूक्ष्म शरीर को
लेकर जाने लगे ।
यम देव के पीछे 2 सावित्री अनुगमन
करने लगी।परंतु यमराज के समझाने
पर वह वापस नहीं हुई ।
तो यमराज ने उससे वर मांगने को कहा।
और सावित्री की लौट जाने के लिए परामर्श दिया।
सावित्री ने कहा- मेरे अंधे सास ससुर को नेत्र ज्योति प्रदान करें ।
जिससे
वे देख सकें।यमराज ने वर दे दिया। इ
सके
पश्चातभी सावित्री निरंतर यमराज के
पीछे चलती रही।यमराज ने कहा-
हे देवी, अब तुम्हें वापस जाना चाहिए।
तुम एक वर और मांग लो ।
सावित्री बोली यदि वर देना चाहते हैं -
तो मेरे ससुर को उनका राज्य वापस मिल जाए ।
यमराज जी ने तथास्तु कह कर वर दे दिया।
इसके पश्चात भी यमराज ने जब
पलट कर देखा तो सावित्री उनका
अनुगमन कर रही थी।
यमराज बोले- हे है पति व्रता सावित्री
तुमको मैं ने वर दिए ।अब तुमकोवापस चला जाना चाहिए ।
सावित्री ने उत्तर दिया- कि जहां सत्यवान होगा।
पीछे चलती रही।यमराज ने कहा-
हे देवी, अब तुम्हें वापस जाना चाहिए।
तुम एक वर और मांग लो ।
सावित्री बोली यदि वर देना चाहते हैं -
तो मेरे ससुर को उनका राज्य वापस मिल जाए ।
यमराज जी ने तथास्तु कह कर वर दे दिया।
इसके पश्चात भी यमराज ने जब
पलट कर देखा तो सावित्री उनका
अनुगमन कर रही थी।
यमराज बोले- हे है पति व्रता सावित्री
तुमको मैं ने वर दिए ।अब तुमकोवापस चला जाना चाहिए ।
सावित्री ने उत्तर दिया- कि जहां सत्यवान होगा।
वही मैं
भी गी मैं उसकी पत्नी हूं इसलिए उसके साथ ही रहूंगी।
द्रवि भूत होकर यमराज बोले =सावित्री तुम्हें अब वापिस जाना चाहिए
द्रवि भूत होकर यमराज बोले =सावित्री तुम्हें अब वापिस जाना चाहिए
अब एक बार और मांग लो परंतु वापस चली जाओ ।‘
सावित्रीबोली
के याराज जी वर देना ही चाहते हैं तो मुझे वर दीजिए कि
=मैं सत्यवान के पुत्रों की मां बनुं/
यमराज द्वारा अंततः सत्यवान को मृत्यु पाश से
मुक्त
कर सावित्री को सौंप दिया गया इससे इस
प्रसंग
के बाद इस घटना के बाद
एक विश्वास प्रचलन में आया, प्रचलित हुआ की आस्था
और विश्वास से पति
परायणता से नारी इस दिन वट
वृक्ष की पूजा कर अपने पति को दीर्घायु बना सकती है
एवं आने
वाले विपत्ति को रोक सकती है
समस्या
आने से पूर्व ही शिथिली करण |समस्या आपकी समाधान हमारे |
।-LiFe-Gita- Do’s &Dont’s-To
protect unseen dashes
कौनसी वस्तु,रंग,दिन
रत्न,अशुभ है
A.Know Yours-Lucky -Days
Night, Color, Period,
आजीवन कौनसे माह सफलता विफलता के रहेंगे
आदि |
B-दान -क्या ,किसको,किस दिनांक को
करे
C-कौन2 से देवता , मंत्र ,आपके
कुल के देवता,
सर्प,ज्योतर्लिंग,अप्सरा,ऋषि कौन
हें एवं उनके मंत्र क्या हैं /-
- किस अक्षर
से प्रारम्भ देवता नाम तथा मंत्र अशुभ है
- ओर किस
अक्षर से प्रारम्भ शीघ्र फल देगा ?यह जानना
आवश्यक है |
, 4--Compability -Match Methood ।कुंडली
मिलान की श्रेष्ठ विधि | अष्टकूट के 8 पॉइंट के
स्थान पर 31 पॉइंट ओर 36 गुण के स्थान
पर 108 गुण से कुंडली मिलवाए
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