ज्योतिष उपाधि : वाचस्पति, भूषण, महर्षि, शिरोमणि, मनीषी, रत्नाकर, मार्तण्ड, महर्षि वेदव्यास1(1990 तक),
विशेषज्ञता :(1976 से) वास्तु, जन्म कुण्डली, मुहूर्त, रत्न परामर्श, हस्तरेखा, पंचांग संपादक
यह तो सर्वविदित है कि
समुद्र मंथन के समय दानव दैत्यों
अथवा राक्षसों को अमृत से
वंचित करने के लिए भगवान
विष्णु ने मोहनी रूप धारण
किया था। अमृत देवताओं में वितरण
कर दिया था ।उस समय भगवान
शिव को कालकूट विष ग्रहण
करना पड़ा था। जिससे उनका
कंठ नीलवर्ण का हो गया।
वह नीलकंठ कहलाए। कालांतर
में एक समय नारद जी
द्वारा भगवान विष्णु के
मोहिनी स्वरूप के सौंदर्य का वर्णन,
योगेश्वर शिव से इस
प्रकार किया गया कि भगवान शिव
स्वयं भगवान चतुर्भुज के
मोहनी स्वरूप को देखने के लिए
लालायित, उत्कंठापूर्व
मोहवश हो गए।
चूंकि भगवान शिव तात्कालिक रूप से भगवान विष्णु के
चूंकि भगवान शिव तात्कालिक रूप से भगवान विष्णु के
मोहनी
स्वरूप का दर्शन नहीं कर सके थे।नारद द्वारा वर्णित
विषणु जी के
मोहनी रूप के अद्भुत प्रसंग ,अद्भुत
कार्य से अचंभित हो गए।।
नारद जी ने रस और रास भरे, मोहनी
स्वरूप का अतिशय
अतीव मनोमुग्ध कारी वर्णन
इस प्रकार वाक चातुर्य
आनन्दित होकर किया कि
शंकर भगवान शिव,चतुर्भुज
विष्णु विश्वरूप
के मोहनी दर्शन के लिए व्याकुल, अधीर, हो
उठे।।
इसलिएतत्काल ही वह
भगवान विष्णु के पासपार्वती जी के साथ पहुंचे ।
जब भगवान विष्णु ने उनके स्वागत के पश्चात पूछा कि –
जब भगवान विष्णु ने उनके स्वागत के पश्चात पूछा कि –
हे
गिरजापति आप स्वयं क्यों पधारे हैं ?आपकी
सर्व कामना पूर्ण हो ।
शिव जी ने संकोची रसभरे विनम्र यथासम्भव मधुर मीठे
शिव जी ने संकोची रसभरे विनम्र यथासम्भव मधुर मीठे
अनुनय गुक्त स्वर में कहा
- है लक्ष्मीपति लीलाधारी
,समुद्र
मंथन काल में, अमृत
वितरण, आप ने मोहिनी
रूप धारण
कर किया था।समस्त दैत्य, राक्षस विमोहित होगये।
कोई कैसे आपको पहचान नही
सका।ये सब किस प्रकार हो सका?
अतीव चतुर चालक, माया
रचने में देवों से भी श्रेष्ठ दैत्य, दानव
आपके मोहनी स्वरूप में
इतने विमोहित कैसे होगये कि
आपको मोहनी स्वरूप में, पहचानने
मेंमाया विद्या विस्मृत
कर, सुध-बुध
खो बैठे? तह प्रश्न मॉन को उद्देलित कर रहा है।
नारद जी ने आज ही जब आपके मनोमुग्धकारी मोहनी
नारद जी ने आज ही जब आपके मनोमुग्धकारी मोहनी
क्रिया कलापों का वर्णन
ओर दानव, दैत्यों की काम पिपास्य
चरम मनोदशा बताई तो मै
अचंभित हो अविश्वसनीय जैसे
स्वरूप
को देखने जे लिए लालायित। हो उठा।देववशात आपके
उस दर्शन से मैं वंचित रह
गया था ।अतः कृपया मुझे अपने
मोहनी स्वरूप का दर्शन
देने का कष्ट करें ।
भगवान विष्णु ने कहा -महेश ,त्रिपुरारी आप योगेश है मत्सर
भगवान विष्णु ने कहा -महेश ,त्रिपुरारी आप योगेश है मत्सर
मदन के
दहन करता है ।आप एक नारी स्वरूप देख कर क्या करेंगे।
परंतु शिवजी मोहनी रूप की मोहनी के मोहक क्रिया
परंतु शिवजी मोहनी रूप की मोहनी के मोहक क्रिया
कलापों
के वशीभूत दैत्य, दानवों
की चरमोत्कर्ष कामपीड़ा
ग्रस्त
हो पतनोन्मुखी विवेकहीन त्रस्तता ,मोहनी
शक्ति की
व्यापकता
का प्रत्यक्ष दर्शन , अनुभव कर महर्षि नारद की
बात की पुष्टि कर लेना
चाहते थे। इसलिए उन्होंने पुनः 2
आग्रह किया।
एवमस्तु कह कर,भगवान विष्णु ने तत्काल ही अपनी
एवमस्तु कह कर,भगवान विष्णु ने तत्काल ही अपनी
लीला
प्रारंभ कर दी ।पलक झपकते ही देखते
देखते ही ,
क्षीर सिंधु पर अत्यंत
लुभावना वातावरण प्राकृतिक सौंदर्य
सुषमा
अटूट बिखर पड़ी . भगवान शिव पार्वती के साथ
उस दृश्य को देखने लगे
क्षणशः पश्चात ही उन्होंने देखा कि
एक
अत्यंत सौंदय शालिनी ,अतुलनीय ,अप्रतिम
रूपवती,
कल्पनातीत नारी किसी
वृक्ष की ओट से प्रेमिल काम पिपासु
चितवन से उनकी ओर सकुचाये 2 देख
रही है ।
उसके नख शिख सौंदर्य को भली भांति देख भी नही
उसके नख शिख सौंदर्य को भली भांति देख भी नही
पाते थे की वह बार-बार
अपना रूप दिखा कर ,वृक्ष लता की
ओट में
छुप जाती भगवान शिव उसके मोहनी स्वरूप पूर्ण
निकटता
से देखने के लिए ,पार्वती जी के साथ आगे बढ़ते,
जिज्ञासा
उत्तरोत्तर बढ़ती है रही थी।देखने की त्वरा ओर
प्रयास
गतिमान हो उठे।सुध बुध खो शिव मोहवश वश
में हो गए । मोहनी दिखाई
देने लगी।
इसी समय उस मोहनी के अस्त के वस्त्र हवा के
इसी समय उस मोहनी के अस्त के वस्त्र हवा के
झोंकों
से अस्त-व्यस्त होने लगे और वह शर्म, संकोच
से लजाती परिधान ,आँचल
ठीक करने की असफल चेष्टा
लीला
करती हुई कभी वृक्षों की ओट में कभी लताओं के
झुरमुट
में अपने को छिपा लेती।
कामदेव दहन कर्ता भगवान मदहोश होकर उस मोहनी
कामदेव दहन कर्ता भगवान मदहोश होकर उस मोहनी
के पीछे ,उसके
समीप जाने के लिए दौड़ पड़े पार्वती जी पीछे छूट गयी।
।मोहनी भी अब इधर उधर अपने को छुपाने की कोशिश
।मोहनी भी अब इधर उधर अपने को छुपाने की कोशिश
करती
यत्र तत्र भाग रही थी। इस प्रयास में बार-बार वह
अपने हवा के झोंके से खुलते
वस्त्र को संभालती और अंततः
योगेश्वर शिव में मोहनी
को अपने बहु पाश में बांध लिया
और लीला का समापन
योगीराज शिव के तेज स्खलन के साथ हुआ।
योगेश्वर ने तेज स्खलन का आभास होते ही,संकोच लज्जा
योगेश्वर ने तेज स्खलन का आभास होते ही,संकोच लज्जा
भाव से विष्णु
जी से इस संदर्भ में क्षमा याचना की।
विष्णु जी चतुर्भुज रूप में प्रकट होकर विहंसते हुए बोले- हैं
विष्णु जी चतुर्भुज रूप में प्रकट होकर विहंसते हुए बोले- हैं
योगीराज आपने जिस दर्शन
को देखने की कामना की थी।
वह आपको दिखाया परंतु
उसका एक उद्देश्य और एक अभिप्राय भी था
आपके इस स्खलन से जो
पुत्र उत्पन्न होगा ।वह मेरे कार्य को पूर्ण करेगा।
यह सब प्रकरण सप्त ऋषि ऋषि एवं सर्व सभी देवता
यह सब प्रकरण सप्त ऋषि ऋषि एवं सर्व सभी देवता
मूकदर्शक बनकर देख रहे थे, परंतु
कोई इसमें किसी भी प्रकार
का
विघ्न डालने का साहस नहीं रखता था।
शंभू शिव के शुक्र को सप्त ऋषियों ने संजो कर रखा और
शंभू शिव के शुक्र को सप्त ऋषियों ने संजो कर रखा और
तपस्या रत अंजना के कर्ण
द्वारा अंदर प्रवेश करा दिया था ।
इस शुभ शुक्र से ही अंजना पुत्र शंकर सुवन हनुमान जी
इस शुभ शुक्र से ही अंजना पुत्र शंकर सुवन हनुमान जी
का जन्म हुआ। इस प्रकार
शिव के एकादश रुद्र अवतार
को विष्णु की सहायतार्थ वानर बनना पड़ा।
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