नंदी ही हनुमान :
एकादश रुद्र "हुए यह रहस्य कथा ।
ज्योतिष उपाधि : वाचस्पति, भूषण, महर्षि, शिरोमणि, मनीषी,
रत्नाकर, मार्तण्ड, महर्षि वेदव्यास1(1990 तक),
विशेषज्ञता :(1976 से) वास्तु, जन्म कुण्डली, मुहूर्त,
रत्न परामर्श, हस्तरेखा, पंचांग संपादक
सृष्टि के प्रारंभिक काल में एक प्रसिद्ध ऋषि शिलाद हुए।
अद्भुत विद्वान एवं वैद्ज्ञ थे ।इसके साथ ही साथ
महर्षि शिलाद ग्रहस्थ धर्म का पालन भी करते थे ।
अर्थात ग्रहस्थ थे। ग्रहस्थ जीवन के अनेक वर्ष
व्यतीत होने के उपरांत भी उनकी कोई संतान नहीं थी । महर्षि शिलाद तपस्या जप तप यज्ञ हवन में
इतने व्यस्त रहते कि पुत्र संतान की आवश्यकता का
आभास ,अभाव का अनुभव उन्हें हुआ ही नही। बृहत दीर्घकाल के पश्चात 1 दिन महर्षि शिलाद
विश्राम मुद्रा में बैठे थे। उनकी पत्नी उनके समीप उनके चरण कमलों के
पास आकर शांत मुद्रा में जाकर बैठ गई। महर्षि शिलाद से कहा -आप बरसो से अपने
जप तप, भजन ,पूजा ओर परमात्मा में लीन रहे हैं।
कभी आपने यह विचार किया कि मेरी भी कुछ
आवश्यकता एवं मेरे मन की क्या व्यथा है?महर्षि शिलाद ने अपने अर्धमुदित उन्मीलित नेत्रों
को आश्चर्य से खोलते हुए। अपनी पत्नी की ओ
र दृष्टिपात करते हुए प्रश्नवाचक मुद्रा में पूछा-
अरे तुम्हें किस प्रकार का कष्ट है। तुमने आज
तक अपनी व्यथा अपने कष्ट के संदर्भ में मुझसे
कोई चर्चा क्यों नहीं की?पत्नी ने कहा-कब करती एक बार तपस्या जप तप
शुरू तो कब समाप्त होगा, मुझे क्या आपको
भी नही मालूम।फिर पूजा अर्चना पश्चात, थकित
क्लांत शरीर को विश्राम भी चाहिए ।आपकी विश्रांति
मेंकोई व्यवधान भी तो उचित नही। मैं व्यवस्था में
व्यस्त रहतो हूँ।मैं एक नारी हूं। नारी होकर , गृहस्थ
आश्रम मैं रहकर भी ,संतान विहीन हूं। आपकी
पत्नी मातृ सत्ता सुख से विहीन, वंचित है।
मैं आत्मपीडित ,व्यथित, दुखित जीवन व्यतीत कर रही हूँ।
कभी आपने नही सोचा। मैं दीर्घकाल से प्रतीक्षारत थी कि, जब आप कभी
परमपिता परमेश्वर के सानिध्य कर्म से, हेतु विमुक्त
, हो विश्राम करेंगे, तभी आपसे अपने मन की बात करूंगी। (क्योंकि नारी का मातृत्व ही उसके जीवन का चरम सुख है
सर्वोपरि उपलब्धि है ।नारीत्व की पूर्णता संताब
द्वारा ही संभव है .।संतान के बिना नारी का जीवन
फल वाला वृक्ष, बिना फल के रहे। ) विदुषी आत्मा संतोषी पत्नी की पीड़ा से महर्षि शीलाद को
आत्म बोध हुआ, कर्तव्य बोध हुआ, गृहस्थ
जीवन का दायित्व बोध हुआ । उन्होंने विशिष्ट
मुहूर्त में भगवान योगेश्वर शिव का आवाहन किया ।
वे उनके तपोबल से प्रकट हुए और उन्होंने आवाहन का उद्देश्य पूछा। महर्षि सिलाद ने कहा -हे प्रभु मुझे आपके जैसा ही
,सर्वगुण संपन्न मृतुंजय ,कालिजयी, पराक्रमी, अजेय,
पुत्र की कामना है ।कृपया शीघ्र प्रदान करने का कष्ट करें । भगवान शिव ने उन्हें अपने ही अंश से पुत्र संतान
का वरदान दिया ।भगवान एकादश रूद्र ही
महर्षि शिलाद के पुत्र के रूप में "अवतीर्ण हुए। महर्षि शिलाद ने अपने पुत्र का नाम "नंदी" अर्थात जो आनंद प्रद हो रखा । उनके पुत्र नंदी ने आगे चलकर योवना अवस्था में
अपने तपोबल से महारुद्र को प्रसन्न किया।
भगवान शिव से उन्होंने याचना की
- हैभगवान आप प्रकट हुए हैं, तो मेरा मेरी कामना है
कि मैं हमेशा आपके साथ , दास भाव में रहूं।
मैं बांनर मुख रहना चाहता हूं। भगवान शिव ने इसका कारण जानना चाहा,
तो नंदीश्वर बोले कि- हे प्रभु मैं अपने
सुधीर सशक्त शरीर का अभिमान से परे, कुरूप रूप में,
आपके दास ,ओर समीप रहने के लिए वानरमुख रूप चाहता हूं। सदाशिव भगवान शंकर ने उनको कहा कि
नंदी तुम मेरे समस्त गुणों के अधिपति होगे
और मेरे साथ मेरे समीप ही रहोगे।
तुमको वानर रूप मिलेगा।तुम मेरे ही अंश रूप हो। भगवान सदाशिव शिव का एकादश रूद्र स्वरूप
अर्थात नंदी ऋषि शिलाद पुत्र स्वयं रूद्र के अंश
अर्थात हनुमान जी ही थे। जिन्होंने विश्व पोषक
विष्णु जी के राम अवतार के सहायक के रूप में हनुमान बनकर अवतार लिया
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कोरोना कहर कब तक पढ़िये -
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ज्योतिष शिरोमणि - पण्डित वी के तिवारी
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