अप्सरा एकादश रुद्रअवतार की माँ
कैसे बनी ,रोचक रहस्य कथा
यह सर्व विदित है कि हनुमान
जी के रूप मे शिव जी के एकादश
रुद्र स्वरूप ने हनुमान
जी का अवतार भूलोक पर लिया |
अजर, अमर ,अष्ट सिद्धि, नव निधि से
संपन्न हनुमान जी की मां अंजना कौन थी?
इस विषय की जानकारी रोचक एवं रहस्य पूर्ण भी है।
ग्रंथों में विभिन्न स्थानों पर विवरण अभिलिखित हैं।
ऐसे उदभट् शक्तिमान, महावीर, मृत्युंजय, कालजयि हनुमानजी जी ,
बजरंगबली की मां कोई साधारण बांदरी
या युवती होने का तो प्रश्न ही नहीं है ।
यथार्थ में अंजना कौन थी? कैसे भूतल पर अवतीर्ण हुई? बाल्मीकि रामायण पर आधारित लगभग 300 से अधिक
रामायण समय-समय पर लिखी गई ।
बाल्मीकि के अतिरिक्त हनुमान जी द्वारा भी रामायण
लिखने का उल्लेख मिलता है ।बाल्मीकि
रामायण में अंजना
के विषय में जो तथ्य हैं उन्हें सर्वाधिक
प्रमाणिक मानना
कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
देवराज इंद्र की सर्व प्रिय अप्सरा पुंजिकास्थला, कैसे अंजना बनी?
प्रथम विवरण- बाल्मीकि रामायण के किष्किंधा कांड के 66 वे सर्ग में
जामवंत के द्वारा हनुमान जी को उनकी
मां के विषय में बताया गया ।
" आपकी मां अंजना, सर्व अप्सराओं में प्रमुख सर्व सुंदरी पुंजिकास्थला है ।
देवराज इंद्र की सभा में सभी
अप्सराओं में सर्व सुंदरी लावण्या तेज मयि,
अप्सरा पुंजिकस्थला थी।
देवेश्वर इंद्र को अत्यंत प्रिय होने के कारण,सर्वसग्रेष्ठ सुंदरी,
अत्यंत वाचाल, रूप गर्विता, अहम वादी चंचला
थी।
अपने सौंदर्य गर्व में वह बड़ों के साथ शिष्टता का भाव भी भूल जाती थी।
एक दिन ,जेसा कि प्राय अप्सरा
पुंजिक्स्थ्ला अशिष्टता,व्यंग्य,
आदि पूर्ण हास परिहास
कर रही थी कि एक महर्षि का उसने
अपने
व्यंग वचनों से उपहास किया ।जिससे ऋषि ने
क्रोध वशात
,उस सर्व सौंदर्य मयि, रूप गर्विता अप्सरा को श्राप दिया
कि-
"तुझे अपने रूप यौवन पर इतना अभिमान है
कि तू गुरुजनों का अनादर
उपहास करने में नहीं चूकती है ।बंदर
जैसी अमर्यादित तेरी कार्य व्यवहार प्रणाली है।
अतः जा तू बांनरी हो जा ।"
ऋषि के शाप से पुंजिकस्थला अप्सरा का भविष्य अंधकार मयि हो गया ,
भयभीत हो थी और
भविष्य को सोचकर याचना,प्रार्थना,
अनुनय, विनय,करने लगी।
अपनी अधोगति ,पतन एवं निम्न स्थिति को सोचकर दुखी
होकर
उसने ऋषि के पैर पकड़
लिए। उनसे अनेक प्रकार से क्षमा के लिए
निवेदन करते हुए अपने अपराध क्षमा की अर्चना करते हुए ,
अश्रु धारा से ऋषि चरण कमल भिगोने
लगी।
पुंजिकस्थला ने कहा "मैं तो एक छोटी, अज्ञानी, वाचाल हूं ।मूर्खतापूर्ण मेरे इस कृत्य को क्षमा कीजिए।"
अंततः क्षमा याचना के वचनों से द्रवित होकर ऋषि ने कहा कि
"तुम्हारा जन्म तो वानर योनि
में होगा परंतु तुम को मै शक्ति देता हूं कि,
जो तुम रूप चाहो वह धारण कर सकोगी।
तुम भूतल पर मृत्युलोक में प्रसिद्ध होगी ।
तुम्हारे एक पुत्र संतान होगी। जो सर्वगुण संपन्न होगा ।"
अंततः पुंजिकास्थला ने वानर योनि में महेंद्रपुर के राजा कुंजर की पुत्री
के रूप में उस ने जन्म लिया ।वानर राजा महा
विद्वान कुंजर की पुत्री
यह कोई भी रूप धारण करने में सक्षम
थी । भूतल पर सौंदर्य
की प्रसिद्धि,ख्याति थी और उनका नाम अंजना रखा गया।
उसका नाम अंजना रखा गया। द्वितीय विवरण- शिव पुराण के अनुसार- अंजना को गौतम ऋषि की पुत्री बताया गया। तृतीय विवरण- एक असुर केसरी नाम का शिव का परम भक्त था ।दिन-रात ,
क्षण प्रतिक्षण "ओम नमः शिवाय
"मंत्र का जप, चिंतन ,मनन करता रहता था ।
अंततः शिवजी ने प्रसन्न होकर उसे
कोई वर मांगने के लिए कहा ।
असुरराज केसरी ने निवेदन किया "हे प्रभु यदि कोई वर देना चाहते हैं ,
तो मुझे ऐसा पुत्र दीजिए जो विजय
पराक्रमी एवं
इस भूतल पर सर्वाधिक विद्वान
हो।"
भगवान शंकर ने अपनी असमर्थता व्यक्त करते हुए कहा कि
"हे असुर राज केसरी ,ब्रह्मा द्वारा आपके लिएपुत्र संतान
का कोई योग नहीं रखा
है।
अतः मैं तुमको एक ऐसी कन्या के जन्म का वरदान
देता हूं।
जिसका पुत्र ठीक उसी प्रकार का होगा ,जैसा तुम चाहते
हो।
पराक्रमी ,महाबली, सर्व विजयि एवं
सर्वश्रेष्ठ विद्वान होगा ।"
कालांतर में असुर राज केसरी के यहां एक कन्या का जन्म हुआ ।
उसके सौंदर्य की प्रसिद्धि इस भूतल
पर विख्यात होने लगी ।
सुनकर वानर राज केसरी ने विवाह का
प्रस्ताव ,
असुरराज केसरी के पास भेजा असुर केसरी ने इस
प्रस्ताव को
सहर्ष स्वीकार किया | क्योंकि तत्कालीन समय में असुर राज केसरी
के
समकक्ष वानर राज केसरी ही बलशाली एवं अजय थे।
चतुर्थ विवरण-
किष्किंधा क्षेत्र में महेंद्र पुर के राजा महेंद्र राय की कन्या का नाम अंजना था
यह कन्या महामुनि चेचक के आश्रम में
अपने शिक्षा दीक्षा ले रही थी
परंतु किसी कारण से महामुनि द्वारा साथ देने
पर महेंद्र राय राजा
को मुनि चञ्च्क ने बताया कि यह
आपकी बालिका अंजना
कोई सामान्य राजकुमारी नहीं है
यह तो देवाधिदेव शिव जी की मां है जिसमें आपके
यहां जन्म लिया है
यह सब प्रभु की इच्छा से आपके पुण्य
प्रताप से आपको प्राप्त हुई है
कालांतर में मुनि चंचल चंचल से
शिक्षा लेने के बाद महेंद्र राय ने
बेटी अंजना का विवाह केसरी नामक वानर राज से करने का उल्लेख मिलता
है।
निष्कर्ष- सभी विवरणों में अतुलित बलशाली पराक्रमी हनुमान जी की मां का
नाम अंजना ही प्राप्त होता है।
यह भी निर्विवाद रूप से निसंदेह,निसंदिग्ध सिद्ध होता है कि ,
देवराज इंद्र की सर्वप्रिय अप्सरा
श्रेष्ठ पुंजिकास्थला ही मां
अंजना के रूप में इस भूतल पर
अवतीर्ण हुई थी।
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