ज्योतिष शिरोमणि - पण्डित वी के
तिवारी (9424446706,
jyotish9999@gmail.com)
ज्योतिष उपाधि : वाचस्पति, भूषण, महर्षि, शिरोमणि, मनीषी, रत्नाकर, मार्तण्ड, महर्षि वेदव्यास1(1990 तक),
विशेषज्ञता :(1976 से) वास्तु, जन्म
कुण्डली, मुहूर्त, रत्न परामर्श, हस्तरेखा, पंचांग संपादक |
14 वर्ष के वनवास
की प्रतिज्ञा ,
दूरदृष्टिज्ञ
राज महिषी कैकयी से कैसे कराई-
मायाधीपति
बालक राम ने ,(धरा अवतार उद्देश्य की
पूर्ति
के लिए,अपने
लिए )
वर्तमान छत्तीसगढ़ ,सरगुजा के बैकुंठपुर जिले में
जटाशंकरी गुफा प्रसिद्ध है इस गुफा
में पुलस्त्य ऋषि
के
पुत्र त्रिकालदर्शी महामुनि निदाघ निवास करते थे। .
निदाघ मुनि ने यह कथा सुतीक्षण को संबोधित कर कहा-
चैत्र शुक्ल नवमी मंगलवार को परब्रह्म परमेश्वर
निदाघ मुनि ने यह कथा सुतीक्षण को संबोधित कर कहा-
चैत्र शुक्ल नवमी मंगलवार को परब्रह्म परमेश्वर
विष्णु
ने अयोध्या में राम
के रूप में अवतार लिया.
तत्कालीन
ज्योतिषियों ने श्री राम की कुंडली बनाकर बताया
उनकी
कुंडली में 5 ग्रह केंद्र मेंउच्च राशि के है राम ही
विश्व
के चक्रवर्ती सम्राट होंगे .
------ और एक दिन अपराहन में सोते हुए , एकाएक
------ और एक दिन अपराहन में सोते हुए , एकाएक
उठकर
कोतुकेश्वर बालक श्रीराम अनायास जोर जोर से रोने लगे।
मां कौशल्या अविलम्ब त्वरित गति से दौड़ती हुई आई ।
मां कौशल्या अविलम्ब त्वरित गति से दौड़ती हुई आई ।
घबराकर,अपने लाल को
वक्ष स्थल से चिपका कर ,
दाएं
वाएँ हिलाने लगी।माथा चूम ,प्यार से पुचका कर ,
कोमल
कपोलों पर बहते नैनो से झरते मोटे2 मोती(आँसू)
साड़ी के
आंचल से ,पल्लू से पोंछते।ओ-ओ,आ आ ,
मेरे लाल,का हुआ। चुप हो जा ।अश्रु
सिक्त कपोल
चूमने
से उनका खारा स्वाद ममता मयि कौसल्या के
अधरों से जिह्वा तक,पर मां बेहाल हो रही थी।
माँ के
प्रयासो पर पानी फेर रहे थे,लीलेश्वर बालक राम।
महारानी कौशल्या लीलाधर बाल राम के उच्च स्वर में
महारानी कौशल्या लीलाधर बाल राम के उच्च स्वर में
रोने से
पगलाती जा रही थी।
परंतु बालेश्वर राम का रोना बंद नहीं हो रहा था।
परंतु बालेश्वर राम का रोना बंद नहीं हो रहा था।
और देखते ही देखते सारा रनिवास इकट्ठा हो गया।
रंग
बिरंगी वेश भूषा वाली दासियाँ।बालक राम को
अपनी2 तरह से चुपाने के लिए ,कोई मटक रहा,
अपनी2 तरह से चुपाने के लिए ,कोई मटक रहा,
उछल कूद
कर रहा, तो कोई
तोतली भाषा मे बतिया रहा,
कोई गोद में देने के लिए कौशल्या रानी से आग्रह कर रही
तो कोई
नैनो से ,मुंह से विशेष भाव भंगिमा बना बना कर
बिलखते बालक
राम का ध्यान खींच रही। परंतु बालक
राम वह तो कुछ और ही प्रतीक्षित था।
और फिर वृद्ध पिता महाराज दशरथ भी आ गए।
और फिर वृद्ध पिता महाराज दशरथ भी आ गए।
चुप
निर्विकार अन्मयस्क से जय करे?सोचते हुए
ठिठक कर
महा रानी कौशल्या के पार्श्व में खड़े हो गए।
सब ही बाल नीलेश्वर राम को चुपाने की बहु तेरी
सब ही बाल नीलेश्वर राम को चुपाने की बहु तेरी
कोशिश कर रहे थे।।कोई कसर बाकी नहीं रखी किसी ने।
अपने-अपने
प्रकार से तरह-तरह की आवाजें निकालते
मुह बनाते भरसक कोशिश कर रहे थे। परंतु बालक
राम स्वर बदल कर करुण क्रंदन कर ,जैसे
अकथ पीड़ा हो रही हो ,अविराम, अविरल,रोते ही रहे ।
ममता मूर्ति मां कौशल्या घबरा गई ।
ममता मूर्ति मां कौशल्या घबरा गई ।
परेशान
होकर ।कोई उपाय कारगर होते न देख ।
उन्है
प्रतुत्पन्नमती महारानी केकई की सुध आयी।
दासियाँ
दौड़ पड़ी, आसन्न
संकट का समाचार देने राज महिषी कैकयी को ।
एकाएक कई दासियाँ आने, उनके एक साथ लीलाधर
एकाएक कई दासियाँ आने, उनके एक साथ लीलाधर
राम के
रुदन का अष्पष्ट समाचार सुनते ही,किसी
अनिष्ट
की आशंका से घबराकर महारानी केकई
सुध बुध खो कर,रत्न जटित भारी भरकम साड़ी के
सुध बुध खो कर,रत्न जटित भारी भरकम साड़ी के
गिरते
पल्लू को संभालती, भागी भागी बालक राम के
पास पहुंची। क्या हुआ राम को?फिर राम और भी
उच्च
रुदन स्वर सुनकर। राज महिषी बाज सा झपट्टा मारते हुए
ओ,ई,ओ कहती कौशल्या की गोद से ,झपपट राम को अपने अंक में समेटते, उच्च स्वर में हटो हटो सब आदेश देती हुई।
ओ,ई,ओ कहती कौशल्या की गोद से ,झपपट राम को अपने अंक में समेटते, उच्च स्वर में हटो हटो सब आदेश देती हुई।
सबकी
भीड़ से दूर,पिता
दशरथ, व्याकुल
व्यग्र
मां से
दूर समग्र विश्वास के साथ अपने कक्ष में ,
बाएं हाथ से वक्ष से चिपकाए हुए ,दूर।
अपनी गोद में बालक राम को अपने कक्ष,
अपनी गोद में बालक राम को अपने कक्ष,
नीरव
शांति, निशब्द स्वर
सुसज्जित ,झरोखों से
बहती
सुरभि से सुगंधित कक्ष में ले गई।
और बालेश्वर राम से बतियाने लगी ।
और बालेश्वर राम से बतियाने लगी ।
(और
प्यार से दुलारने लगी ,बतियाने लगी।) चुप हो जा मेरे लाल,
मेरा
छोना, मेरा राज कुमार, क्यों रो रहे हो, मुझे बताओ क्या हुआ ?
किसने
क्या किया, सबकी पिट्टी लगाउंगी।
धीरे धीरे उन्होंने बाल राम को हिलाते हुए अपने बक्ष स्थल से
धीरे धीरे उन्होंने बाल राम को हिलाते हुए अपने बक्ष स्थल से
चिपका कर, उसका माथा चूम लिया।
परंतु बालक राम के रुदन का स्वर कम तो हुआ परंतु
परंतु बालक राम के रुदन का स्वर कम तो हुआ परंतु
रह-रहकर ,गहरी उसाँस ले ले कर,सिसक उठते ।
अश्रुपूरित राज मशीनें अवरुद्ध करंट रूंधी गले से बार-बार
अश्रुपूरित राज मशीनें अवरुद्ध करंट रूंधी गले से बार-बार
पूछा मां पूछती- तुम्हें क्या हुआ, क्या
चाहिए, तुम्हारी
क्या इच्छा है ,.
बाल राम ने सिसकते हुए कहा-
माँ, मुझे बहुत बड़ी चीज चाहिए। आप दोगी?
केकई मात् सुलभ वात्सल्य भाव से क्सप्लोन प
बाल राम ने सिसकते हुए कहा-
माँ, मुझे बहुत बड़ी चीज चाहिए। आप दोगी?
केकई मात् सुलभ वात्सल्य भाव से क्सप्लोन प
पल्लू
से पूछते हुए कहां -अरे ,बेटा तुम जो कहोगे।
तुम्हें
जो चाहिए। वह मैं दूंगी।
बालक राम खुश होते हुए-सच माँ दोगी?
मां के कैकयी अंततः वचन पाश में बांधते,
बालक राम खुश होते हुए-सच माँ दोगी?
मां के कैकयी अंततः वचन पाश में बांधते,
वचनबद्ध
कराकर मां बालक राम बोले-
"मां तुम मेरा राज्याभिषेक मत होने देना.
"मां तुम मेरा राज्याभिषेक मत होने देना.
मुझे राजा नहीं बनने देना .ऐसे समय
मेरे
लिए 14 वर्ष का दंडकारण्य निवास करवा देना ."
मां तू ही मुझे दे सकती हो ।प्रतिज्ञा कर चुकी है ।
मां तू ही मुझे दे सकती हो ।प्रतिज्ञा कर चुकी है ।
दोगी ना ?
केकई आवाक, किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई
केकई आवाक, किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई
इस बालक
ने क्या मांग लिया। क्या मुझसे कहलवा लिया ।
कैकयी को विचार मग्न देख ,राम का रोना बढ़ता गया ।
केकई ने बहु तेरा समझाया पर राम अपनी जिद पर अडिग रहे ।
कैकयी को विचार मग्न देख ,राम का रोना बढ़ता गया ।
केकई ने बहु तेरा समझाया पर राम अपनी जिद पर अडिग रहे ।
और केकई
जब भी ,बहाने बनाती ,समझाती तो और
जोर जोर
से रोने लगते बालक राम ।
अंततः राजरानी केकई ने तर्क के हथियार डाल दिए
अंततः राजरानी केकई ने तर्क के हथियार डाल दिए
और विवेक शून्य हो गई ।अंततः केकई ने नीलेश्वर
राम की बात मान ली और प्रतिज्ञाबद्ध हो गई।
बालक राम खिलखिला कर हंसने लगे जैसे कुछ हुआ है ही नहीं ।
बालक राम खिलखिला कर हंसने लगे जैसे कुछ हुआ है ही नहीं ।
उनके
बाल सुलभ खिलखिला हट का स्वर बाहर गूंजने लगा।
केकई कक्ष के द्वार खड़ी दासियों एवं कक्ष तक पहुंचती
केकई कक्ष के द्वार खड़ी दासियों एवं कक्ष तक पहुंचती
कौशल्या
मां के कानो में रस घोलने लगा,मंथर गति से
सबके पीछे आते महाराज दशरथ के स्मित अधरो
के पीछे धवल ड्सन्त दंत पंक्ति झांकने लगी।
बालक राम के बेटे की गोद में उनके कंधे पर
बालक राम के बेटे की गोद में उनके कंधे पर
सिर
रखकर पीठ पर जोर जोर से हाथ चलाते खिलखिला रहे थे।
कोई नहीं समझ पाया की राज रानी कैकई ने
कोई नहीं समझ पाया की राज रानी कैकई ने
बालकराम
पर ऐसा कौन सा जादू किया कि
उनके
खिलखिला खिलाने के स्वर उच्च और उच्च होते चले जा रहे हैं।
मां कौशल्या ने कैकयी के कर कमलों से ,
मां कौशल्या ने कैकयी के कर कमलों से ,
राम को
लेते हुए, उनकी ओर
देखा ।अश्रुपूरित केकई
के तेजस
मुख मंडल की आभा क्षीण हो चली थी,
म्लान
मुखमनडल, उनके
चेहरे पर उदासी और
माथे पर
चिंता की अस्पष्ट लकीर है उभरती देखी ,
परंतु
वात्सल्य महिमा कौशल्या ने इसको बच्चे बेटे
राम की प्रसन्नता से जोड़कर अश्रुपूरित आनंद
समझा।
कैकयी जब भी अकेली होती या राम को देखती
कैकयी जब भी अकेली होती या राम को देखती
तो अपने
को ठगा पाती और दिन रात अव्यक्त
अकथ चिंता में लीन वो मुर झाती जा रही
थी।
महाराज दशरथ वृद्धावस्था में, युद्ध से मुंह मोड़ने लगे थे ।
महाराज दशरथ वृद्धावस्था में, युद्ध से मुंह मोड़ने लगे थे ।
और
अयोध्या के दशरथ के राज्य में राक्षसों का
आतंक
उत्तरोत्तर बढ़ रहा था।
विश्वामित्र के आश्रम नैमिषारण्य तक ताड़का
विश्वामित्र के आश्रम नैमिषारण्य तक ताड़का
सुबाहु
मारीच का आतंक था ।ऋषि मुनि भय
त्रस्त
सूर्य कुल की प्रतिष्ठा और चक्रवर्ती सम्राट के
राज्य की विशेष सुरक्षा महारानी की चिंता कैकई
को थी ।
किस प्रकार और कैसे राम को दी हुई
किस प्रकार और कैसे राम को दी हुई
प्रतिज्ञा
को पूरा किया जाए। इस पर ही चिंता पाश में
आबद्ध
होकर ,भावी योजना के ताने-बाने बुनती रहती थी।
दंडकारण्य का क्षेत्र रावण के आधिपत्य में था
परंतु
कोई भी उसके समक्ष सशक्त नहीं था
समर्थ
नहीं था ।केकई भी समझती थी कि
राम ही
एक विकल्प हैं
और वह दिन भी आ गया जब महाराज
और वह दिन भी आ गया जब महाराज
दशरथ में भगवान राम को राज्यभषेक करने
का निर्णय किया। महारानी ने अयोध्या कुमार
राम के
लिए 14 वर्ष दंडकारण्य निवास का वरदान ले लिया ।
इस प्रकार बचपन में केकई ने जो लीलाधर
इस प्रकार बचपन में केकई ने जो लीलाधर
राम से
प्रतिज्ञा की थी उसे, कार्य
रूप, अपने
हृदय पर पत्थर रखकर करते हुए ,अयोध्या
कुमार को
वन में
भेजकर, पूर्ण
कर दिया ।
इस प्रकार दूरदर्शी केकई को भगवान राम ने
इस प्रकार दूरदर्शी केकई को भगवान राम ने
उनकी
कूटनीतिज्ञ विशेषता के कारण, उनकी
राजनीति
में पटुता, वीरता
में पारंगतता के
कारण
गुप्त रूप से अपने जन्म के उद्देश्य की
पूर्ति
का मार्ग खोल लिया।
बालक राम की प्रबंध क्षमता ही थी,
बालक राम की प्रबंध क्षमता ही थी,
माँ
कौशल्या इस कार्य के लिए कभी ततपर नही होती।
(देवभूमि सरगुजा में वनवासी राम पुस्तक
(देवभूमि सरगुजा में वनवासी राम पुस्तक
संदर्भ, लेखक डॉ
मन्नूलाल यदु साभार) प्रस्तुति भाषा पंडित तिवारी विजेंद्र।
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