भगवान राम भक्त हनुमान को अपना भाई क्यों क्यों माना ?
क्या दशरथ के पुत्रष्टि यज्ञ से पांच पुत्र हुए थे?
मुनि श्रृंगी, दशरथके दामाद थे।उनके द्वारा दशरथ के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ किया गया था।जिससे पांच पुत्र उतपन्न हए।
दशरथ जी का पांचवा पुत्र कौन था?
चक्रवर्ती सम्राट महाराजा दशरथ की आयु 60हजार वर्ष होने वाली थी। उनका कोई पुत्र ही नहीं था ।इसका उन्हें बहुत दुख और बहुत व्यथा थी ।
महाराज दशरथ कुल गुरु वशिष्ट जी के आश्रम में पहुंचे ,( तुलसीदास जी ने भी इस प्रकार का समर्थन किया है)।
वशिष्ट जी ने महाराज दशरथ को अपनी त्रिकाल काल दृष्टि से बताया कि, आप के चार पुत्र होंगे।
इसके लिए उन्होंने श्रृंगी ऋषि जो *पुत्रेष्टि
यज्ञ* के मर्मज्ञ विद्वान थे ,उनको आमंत्रित किया यज्ञ संपन्न हुआ। यज्ञ देवता प्रसन्न होकर प्रकट हुए ,उनके हाथ में एक पात्र में खीर या पायस का पात्र था ।
राजा दशरथ को,खीर का पात्र देकर, यज्ञ देवता ने कहा "आप अपनी तीनों रानियों को दे दीजिए इससे आपकी मनोकामना पूर्ण होगी" उस पायस को तीनों रानियों को दे दिया गया ।। होनी बलबान ,उस समय ही आकाश से एक बडी चील आयी।
सुमित्रा के हाथ का वह पायस लेकर उड़ गई। रानी सुमित्रा इस विलक्षण एकाएक घटित, घटना से ,निरुपाय, असहाय हो,उदास,दुखित, व्यथितओर किंकर्तव्यविमूढ ,हतप्रभ रह गयी।
रानी सुमित्रा को उदास देखकर रानी कौशल्या और मां केकई ने अपने अपने खीर या पायस का 1-1 भाग सुमित्रा को दे दिया कालांतर में तीनों रानियों से राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न का जन्म हुआ ।
*अब प्रश्न उठता है की रानी सुमित्रा के हाथ का पायस का क्या हुआ, जो चील आकाश मार्ग ले उड़ी थी?*
रानी सुमित्रा के हाथ से हविष्य खीर /पायस लेकर उड़ने वाली चील की चोंच से बह पायस छूट गया ।
इसके पश्चात जो खीर उस चील के मुख से छूटी थी ।वह अंजलि की हथेली में आ गिरी। अपनी अंजलि में खीर देखकर उस पायस को भगवान शिव के प्रसाद के रूप में अंजना ने ग्रहण कर लिया और इस प्रकार हनुमान जी का जन्म हुआ।
केसरी वानर राज की पत्नी अंजना जो पुत्र प्राप्ति के लिए तपस्या रत थी। उनको भगवान शंकर ने प्रकट होकर कहा था "*मै अपने अंश से तुम्हारे पुत्र के रूप में अवतार लूंगा तुम पवन देव का दिया हुआ प्रसाद ग्रहण कर लेना।*"
मुनि श्रृंगी के द्वारा ,पुत्रेष्टि यज्ञ दशरथ के लिए किया गया था। उस यज्ञ का, अग्नि देव द्वारा हविष्य भाग अंजना को प्राप्त हुआ। इस प्रकार भक्त हनुमान राम के भ्राता समान हुए।
* इसलिए राम ने हनुमान जी को, अपने भाई के समान अथवा दशरथ का पांचवा पुत्र माना ।
*(संदर्भ ग्रंथ-आनंद रामायण तथा कर्नाटक रामायण ).
*विलक्षण चील कौन थी?*
यह प्रसंग समाप्त होने के पूर्व प्रसंग वश उस विलक्षण चील के विषय में उत्सुकता, जिज्ञासा के विषय मे रोचक घटना जान लीजिए। ब्रह्म लोक में सुवर्चला नामक अप्सरा थी। एक बार देव सभा में एक पुष्प उसे इतना पसंद आया कि उसने त्वरित गति से, झपट कर उस पुष्प को उठा लिया।
यह देखकर बड़ो के सामने,उसके इस अशिष्ट मोह जन्य धैर्य हीन व्यवहार से ,रुष्ट ब्रह्मा जी ने उसे क्रोधित हो कर शाप दिया कि
*तुम देवलोक में रहकर भी ,धैर्यहीन ,चंचल, अशिष्ट व्यवहार करती हो ।तुमने झपट कर एक पुष्प को उठाया।जाओ, तुम मृत्यु लोक में जाकर एक चील हो जाओ ।*
इस शाप से अप्सरा सुवर्चला, हतप्रभ,कुत्सित योनि के भावी जीवन से भयभीत हो , ब्रह्मा जी के चरण पकड़कर क्षमा याचना करने लगी और साप मुक्ति की प्रार्थना की।
ब्रह्मा जी ने कहा *त्रेता में चक्रवर्ती सम्राट दशरथ के द्वारा पुत्र हेतु यज्ञ होगा। अग्निदेव स्वयं प्रसन्न होकर भविष्य पात्र देंगे। जो दशरथ की तीनों रानियों में वितरित होगा। तू महारानी सुमित्रा का भाग,उनसे इस पुष्प की तरह झपट कर लेकर उड़ेगी ।उस खीर के स्पर्श से तू पवित्र होकर, उस अधम, निकृष्ट योनि से मुक्त हो जाएगी । पुनः ब्रह्मलोक में अप्सरा बन कर वापस आ जाएगी।*
यह वही चील थी ।जिससे पायस या खीर (पवन देव ने ग्रहण कर ,)अंजना की अंजलि तक पहुंची थी,जिससे उसकी पुत्र संतान मानी कामना पूर्ण हुई थी।
क्या दशरथ के पुत्रष्टि यज्ञ से पांच पुत्र हुए थे?
मुनि श्रृंगी, दशरथके दामाद थे।उनके द्वारा दशरथ के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ किया गया था।जिससे पांच पुत्र उतपन्न हए।
दशरथ जी का पांचवा पुत्र कौन था?
चक्रवर्ती सम्राट महाराजा दशरथ की आयु 60हजार वर्ष होने वाली थी। उनका कोई पुत्र ही नहीं था ।इसका उन्हें बहुत दुख और बहुत व्यथा थी ।
महाराज दशरथ कुल गुरु वशिष्ट जी के आश्रम में पहुंचे ,( तुलसीदास जी ने भी इस प्रकार का समर्थन किया है)।
वशिष्ट जी ने महाराज दशरथ को अपनी त्रिकाल काल दृष्टि से बताया कि, आप के चार पुत्र होंगे।
इसके लिए उन्होंने श्रृंगी ऋषि जो *पुत्रेष्टि
यज्ञ* के मर्मज्ञ विद्वान थे ,उनको आमंत्रित किया यज्ञ संपन्न हुआ। यज्ञ देवता प्रसन्न होकर प्रकट हुए ,उनके हाथ में एक पात्र में खीर या पायस का पात्र था ।
राजा दशरथ को,खीर का पात्र देकर, यज्ञ देवता ने कहा "आप अपनी तीनों रानियों को दे दीजिए इससे आपकी मनोकामना पूर्ण होगी" उस पायस को तीनों रानियों को दे दिया गया ।। होनी बलबान ,उस समय ही आकाश से एक बडी चील आयी।
सुमित्रा के हाथ का वह पायस लेकर उड़ गई। रानी सुमित्रा इस विलक्षण एकाएक घटित, घटना से ,निरुपाय, असहाय हो,उदास,दुखित, व्यथितओर किंकर्तव्यविमूढ ,हतप्रभ रह गयी।
रानी सुमित्रा को उदास देखकर रानी कौशल्या और मां केकई ने अपने अपने खीर या पायस का 1-1 भाग सुमित्रा को दे दिया कालांतर में तीनों रानियों से राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न का जन्म हुआ ।
*अब प्रश्न उठता है की रानी सुमित्रा के हाथ का पायस का क्या हुआ, जो चील आकाश मार्ग ले उड़ी थी?*
रानी सुमित्रा के हाथ से हविष्य खीर /पायस लेकर उड़ने वाली चील की चोंच से बह पायस छूट गया ।
इसके पश्चात जो खीर उस चील के मुख से छूटी थी ।वह अंजलि की हथेली में आ गिरी। अपनी अंजलि में खीर देखकर उस पायस को भगवान शिव के प्रसाद के रूप में अंजना ने ग्रहण कर लिया और इस प्रकार हनुमान जी का जन्म हुआ।
केसरी वानर राज की पत्नी अंजना जो पुत्र प्राप्ति के लिए तपस्या रत थी। उनको भगवान शंकर ने प्रकट होकर कहा था "*मै अपने अंश से तुम्हारे पुत्र के रूप में अवतार लूंगा तुम पवन देव का दिया हुआ प्रसाद ग्रहण कर लेना।*"
मुनि श्रृंगी के द्वारा ,पुत्रेष्टि यज्ञ दशरथ के लिए किया गया था। उस यज्ञ का, अग्नि देव द्वारा हविष्य भाग अंजना को प्राप्त हुआ। इस प्रकार भक्त हनुमान राम के भ्राता समान हुए।
* इसलिए राम ने हनुमान जी को, अपने भाई के समान अथवा दशरथ का पांचवा पुत्र माना ।
*(संदर्भ ग्रंथ-आनंद रामायण तथा कर्नाटक रामायण ).
*विलक्षण चील कौन थी?*
यह प्रसंग समाप्त होने के पूर्व प्रसंग वश उस विलक्षण चील के विषय में उत्सुकता, जिज्ञासा के विषय मे रोचक घटना जान लीजिए। ब्रह्म लोक में सुवर्चला नामक अप्सरा थी। एक बार देव सभा में एक पुष्प उसे इतना पसंद आया कि उसने त्वरित गति से, झपट कर उस पुष्प को उठा लिया।
यह देखकर बड़ो के सामने,उसके इस अशिष्ट मोह जन्य धैर्य हीन व्यवहार से ,रुष्ट ब्रह्मा जी ने उसे क्रोधित हो कर शाप दिया कि
*तुम देवलोक में रहकर भी ,धैर्यहीन ,चंचल, अशिष्ट व्यवहार करती हो ।तुमने झपट कर एक पुष्प को उठाया।जाओ, तुम मृत्यु लोक में जाकर एक चील हो जाओ ।*
इस शाप से अप्सरा सुवर्चला, हतप्रभ,कुत्सित योनि के भावी जीवन से भयभीत हो , ब्रह्मा जी के चरण पकड़कर क्षमा याचना करने लगी और साप मुक्ति की प्रार्थना की।
ब्रह्मा जी ने कहा *त्रेता में चक्रवर्ती सम्राट दशरथ के द्वारा पुत्र हेतु यज्ञ होगा। अग्निदेव स्वयं प्रसन्न होकर भविष्य पात्र देंगे। जो दशरथ की तीनों रानियों में वितरित होगा। तू महारानी सुमित्रा का भाग,उनसे इस पुष्प की तरह झपट कर लेकर उड़ेगी ।उस खीर के स्पर्श से तू पवित्र होकर, उस अधम, निकृष्ट योनि से मुक्त हो जाएगी । पुनः ब्रह्मलोक में अप्सरा बन कर वापस आ जाएगी।*
यह वही चील थी ।जिससे पायस या खीर (पवन देव ने ग्रहण कर ,)अंजना की अंजलि तक पहुंची थी,जिससे उसकी पुत्र संतान मानी कामना पूर्ण हुई थी।
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