शिव पूजा जानने योग्य .
1.परिक्रमा . शिव लिंग परिक्रमा कभी नहीं लगाना चाहिए। जिस और और योनि होती है उसका उल्लंघन करना वर्जित है। इसलिए शिव मंदिर की पूर्ण परिक्रमा शास्त्रो मे निषिद्ध है। अर्ध प्रदिक्षिणा करना चाहिए। अर्थात आधी से अधिक नहीं करे। बारबार आधी भी नहीं करे।
2.बिल्व पत्र कब नहीं तोड़ना वर्जित . बिल्ब पत्र बासी नहीं माने जाते। निषिद्ध दिन पूर्व तोड़े या अर्पित बिल्ब पत्र भी पुन जल से धोकर चढ़ाये जा सकते हैं। बिल्ब पत्र बासी नहीं माने जाते। तोड़ना वर्जित .सोमवार |यतिथि.चतुर्थीएनवमीएचतु सोमवार यतिथि.चतुर्थीएनवमीएचतुर्दशीएअमावस्या यसंक्रांति।
3.पुष्प तोड़ने तोड़ने एवं अर्पित करने की विधि .पूर्ण विकसित सुंगधित पुष्प ; कमल पुष्प के अतिरिक्त अन्य किसी पुष्प कली वर्जित एटूटी या विखरी पंखुरी का पुष्प भीनिषिद्ध है। ,
पुष्प जिस प्रकार से पेड़ पर लगा हो उस प्रकार अर्पित करे।
’ पुष्प तोड़ते समय दाहिने हाथ प्रयोग करे। पुष्प तोड़ते समयए पुष्प से तर्जनी ;अंगूठे के पास की ऊँगली का स्पर्श नहीं होना चाहिए।
’वर्जित पुष्प .केवड़ा एबकुल एकपास ,सेमल,केतकी ,कांड ,जूही ,शिरीष ,जूही ,दोपहरिया ,सुगन्धहीन पुष्प।
4.पूजा उपयोगी पत्ते .चिचड़े ,भंगरैया ,खैर ,शमी ,दूर्वा ,कुश,दोना ,तुलसी ,विल्व।
5. कब, नहीं तोड़े .तुलसी पत्र , बासी नहीं माने जाते। बाएं हाथ या कपड़े पर नहीं रखे। रविवार ,मंगलवार ,शुक्रवार ,द्वादशी ,अमावस्या,पूर्णिमा ,संक्रांति ,सायं काल ,वैधृति एवं व्यतिपात योग मे नहीं तोड़े। अतः रखे हुए तुलसी पत्र या स्वयं गिरे हुए तुलसी पत्र अर्पित किये जा सकते हैं।
6.त्रिपुण्ड .;चन्दन या भस्म का लगाना चाहिये,.शिव जी को लगाने के बाद बचे हुए चन्दन या भस्म से त्रिपुण्ड लगाएं। प्रातः.जल मिलाकर ,दोपहर बिना जल मिलाये परन्तु चंदन मिलाकर,सायंकाल सुखा चन्दन या भस्म का,पुण्ड लगाना चाहिए।
7.लगाने की,विधि .अंगूठे से भ्रू मध्य से ऊपर की और लगाएं। इसके बाद मध्यमा एवं अनामिका मिलाकर ,माथे पर बाएं से दाहिने भस्मध्चन्दन लगाएं ,फिर अगुठे से दाहिने से बाएं ;तीसरी रेखा ,भस्म,न्दन लगाएं।
8. रूद्र मंडल बनाकर एउसपर ताम्बे का जल कलश रखें। बत्ती श्वेत रंग की हो उत्तर की और र्धव मुखी हो। ।
पूजा का समय .श्रेष्ठ रात्रि .उत्तम सायं काल है। तिथि कृष्ण पक्ष अमावस्या अष्टमी हैं।
9.पूजा सामग्री कहाँ रखे, .अपने वाई ओर सुंगधित जल कलश घंटी धूप एतैल का दीपक रखे दाहिनी ओर घी का दीपक ,चावल या जल भरा शंख रखे। सामने कुमकुम ,चन्दन कपूर के साथ घिसा हुआ , +-परन्तु रखे ताम्बे के पात्र मे चन्दन नहीं रखे।
10.विभिन्न धातु पत्थर आदि के शिवलिंग की पूजा रूद्र अभिषेक के क्या २ फल होते हैं .
अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए आप शिवलिंग को चुन सकते हैं।
’लोहे के शिवलिंग की पूजा .शनि बाधा एवं आकस्मिक हानि से सुरक्षा।
’ ताम्बे के शिवलिंग की पूजा. पराजय। चाँदी के शिवलिंग की पूजा. धन अन्न भंडार भरे रहते हैं।
’स्वर्ण के शिवलिंग की पूजा.संपत्ति गरिमा सुख मिलते हैं।
’पीतल के शिवलिंग की पूजा.गरीबी का नाश होता है।
मोती के शिवलिंग पूजा की पूजा . विबाह बाधा दूर एवं सौभाग्य वृद्धि होती है।
नर्मदेश्वर ;नर्मदा के पत्थरसे स्वयं निर्मितद्ध शिवलिंग की पूजा.बाधाओं पर विजय एवं कार्य सफलता मिलती है।
काले . शिवलिंग की पूजा.शत्रु वर्ग वश मे होता है।
’माणिक्य शिवलिंग पूजा .उच्च पद राजसी वैभव सुख मिलते मिलते हैं।
’ मोती के शिवलिंग पूजा की पूजा . विबाह बाधा दूर एवं सौभाग्य वृद्धि होती है।
’स्फटिक के शिवलिंग पूजा की पूजा . धनलक्ष्मी के लिए श्रेष्ठ।
माखन निर्मित शिवलिंग. अभिषेक करने से संतान योग्य एवं पुत्र सुख प्राप्त होता है।
पारे के शिवलिंग पूजा की पूजा . समस्त कामना पूर्ति एवं पाप नाशक एमोक्ष प्रदायक होता है। आकस्मिक मृत्यु से सुरक्षा प्रद एवं पाप ग्रह दोषो का शमन करता है।
अभिषेक पदार्थ से कामना पूर्ति .
स्फटिक शिवलिंग का अभिषेक दूध से करना चाहिए।
*दूध धन यश प्रदायक होता है।
*गाय का घी आयु वृद्धि अकाल मृत्यु से सुरक्षा प्रदायक होता है।
* सरसो तैल से अभिषेक करने से समाप्त होते हैं एवं शत्रु नाश होता है।
* तिल के तैल से अभिषेक करने से राहु दोष का नाश होता है।
*मूँगफली के तैल मे हल्दी मिलाकर अभिषेक करने से से गुरु ग्रह दोष नष्ट होते हैं।
* महुए के तैल से से अभिषेक करने से सुख सौभाग्य नारी वर्ग का बढ़ता है।
*शहद से अभिषेक करने से माकन ध्भवनकठिनतम समस्या के शमन समाधान के लिए 108 यजुर्वेद या आपका जो वेद हो उसकी पूजा कर मंदिर या योग्य ब्रह्मणो को दान करे।
* रूद्र अभिषेक पूजा की 108 पुस्तके दान करने से या 108 बार 7 दिन मे पढ़ने से अकाल मृत्यु दोष समाप्त हो जाता है।
सुख मिलता है।
* कच्चा गाय का दूध एवं पानी से अभिषेक करने से शरीर कष्ट मे कमी होती है।
दुर्लभ औघड शिव शाबर मंत्र. ;सर्व आपत्ति .विपत्ति निवारक-
ॐ नमो आदेश गुरु जी को आदेश धरती माता को आदेश पौन पानी को आदेश औघड़ फकर को आदेश|
हे ||महेश ज्ट्टा जूट, ज्ञान की भभूत आओ लहर में शिव योगी अवधूत ,घुंगरू , डोरियाँ ,मणि , शैंकरी , तड़ाम , जंजीर ,पैर ,पोसा , डंड का वाजू ,हाथ का लोह लंगर, ज्ञान का पूरा ,पंथ सूरा , सेली ,सिंगी,नाद, मुँदरा, सिद्धक संधूरी , दिल दरिया के बीच में औघड़ फकर बोलिये ,औघड़ फकर फूल माला बनाई , बाबा आदम माँ हवा करो |रक्षा रखना बाल बाल सँभाल शिव गोरख की माया , नील गगन से उतरी छाया , भिक्षा दे नागर सागर की बेटी औघड़ फकर बचन सुनाया,आदेश |आदेश आदेश औघड़ दानी शिव को आदेश।
श्री शिव पंचाक्षरस्तोत्रम्;
;बुद्धि, विधां, पठनीय विद्या . दायिनी
शिव कृपा स्त्रोत .
ॐ नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मान्गरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै न काराय नमः शिवाय।
मन्दाकिनी सलिल चन्दन चर्चिताय नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मन्दार पुष्पबहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै म काराय नमः शिवाय।
शिवाय गौरी वदनाब्ज वृन्द सूर्याय दक्षाध्वर नाशकाय
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै शि काराय नमः शिवाय।
वसिष्ठ कुम्भोद्वव गौतमार्य मुनीन्दर,देवार्चित शेखराय
चन्द्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नमः शिवाय।
यक्षस्वरुपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै य काराय नमः शिवाय।
सुनने या पढने के लाभण्ण्
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिसंनिधौ। शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।
इति श्रीमच्छडराचार्यविरचितं शिव पंचाक्षर स्तोत्रं सम्पूर्णम।
1 बाणासुरकृतं शिवस्तोत्रम्
;कीर्त सर्वतीर्था बुद्धि एविधां , पुत्र दुर्लभ शिव स्तुति .
इदं च कवचं प्रोक्तं स्तोत्रं च श्रृणु शौनक। मन्त्रराजः कल्पतरुर्वसिष्ठो दतवान् पुरा।
ऊँ नमः शिवाय।
वन्दे सुराणां सारं च सुरेश नील लोहितम। योगीश्वरं योगबीज योगिनां च गुरोर्गुरुम।
ज्ञानानंद ज्ञानरुप ज्ञानबीजं सनातनम्। तपसां फलदातारं दातारं सर्व सम्पदाम।
तपोरुपं तपोबीजं तपो धन धनं बरम। वरं वरेण्यं वरद मीड सिद्ध गणैर्वरैः।
कारण भक्ति मुक्तीनां नर कर्ण वतारणम्। आशुतोषं प्रसत्रास्यं करुणामय सागरम्।
हिम चन्दन कुन्देन्दु कुदाम्भोज संनिभम। ब्रहाज्योतिः स्वरुप च भक्तानुग्रह विग्रहम।
विषयाणा विभेदेन विभ्रन्तं बहु रुपकम्। जल रुपमग्रिरुपमाकाशरुपमीश्वरम
वायुरुपं चन्द्ररुपं सूर्यरुप महत्प्रभुम। आत्मनः स्वपदं दातुं समर्थ वलीलया।
भक्त जीवनमीशं च भक्तानुग्रह कातरम। वेदा न शक्ता यं स्तोतु किमह स्तौमि त प्रभुम।
अपरिच्छित्रमीशानमहो वाड्मनसो परम व्याघ्र चर्माम्बर धरं वृषभस्थं दिगम्बरम।।
त्रिशूल पदिृश धरं सस्मितं चद्रशेखरम। इत्युक्त्वा स्तवराजेन नित्यं बाणः सुसंयतः।
प्राणमच्छकरं भक्त्या दुर्वासाश्र मुनीश्रवरः ।इदं दतं वसिष्ठेन गन्धर्वाय पुरा मुनेः।
सुनने या पढने के लाभण्ण्
कथितं च महास्तोत्रं शूलिन परमादभुतम ।इदं स्तोत्रं महापुण्यं पठेद भक्त्या च यो नरः ।
स्नानस्य सर्वतीर्थानां फलमाप्रोति निश्चितम। अपुत्रो लभते पुत्र वर्षमेकं श्रृणोति यः ।
संयतर हविष्याशी प्रणम्य शंकरं गुरुम।
गलत्कुष्ठी महाशूली वर्षमेकं श्रृणोति यः। अवश्यं मुच्यते रोगाद व्यास वाक्य मिति श्रुतम।
कारागारेअपि बद्धो यो नैव प्राप्रोति निवृतिम। स्तोत्रं श्रुत्वा मासमेकं मुच्यते बन्धनाद धु्रवम।
भ्रष्टराज्यो लभेद रायं भक्त्या मासं श्रृणोति यः । मासं श्रुत्वा संयतश्र लभेद भ्रष्टधनो धनम।
यक्ष्मग्रसतो वर्षमेकमास्तिको यः श्रृणोति चेत। निश्चित मुच्यते रोगाच्छकरस्य प्रसादतः ।
यः श्रृणोति सदा भक्त्या स्तवराजमिम द्विज। तस्यासाधयं त्रिभुवने नास्ति किचिच्च शौनक।
कदाचिद बन्धुविच्छेदो न भवेत तस्य भारते। अचल परमैशर्लभते नात्र संशयतः ।
सुसंयतो अतिभक्त्या च मासमेकं श्रृणोति यः । अभार्यो लभते भार्या सुविनीतां सती वराम।
महामूखशर्च दुर्मेधो मासमकं श्रृणोति यः । बुद्धि विधां च लभते गुरुपदेशामात्रतः।
कर्मदुःखी दरिद्रश्च मासं भक्त्या श्रृणोति यः।धु्रवं वितं भवेत तस्य शंकरस्य प्रसादतः ।
इहलोके सुखं भुक्त्वा कृत्वा कीर्ति सुदुर्लभाम। नानाप्रकारधर्म च यात्यन्ते शंकरालयम ।
पार्षदप्रवरो भूत्वा सेवते तत्र शंकरम्। यः श्रृणोति त्रिसंध्यं च नित्यं स्तोत्रमनुतमम।
असितकृतं शिवस्तोत्रम्
जगदगुरो नमस्तुभ्यं शिवाय शिवदाय च। योगीन्द्राणां च योगीन्द्र गुरुणां गुरवे नमः।
मृत्योर्मृत्यु स्वरुपेण मृत्यु संसार खंडन। मृत्योरीश मृत्युंजय मृत्युबीज नमोस्तु ते।
काल रुपं कलयताम काल कालेश कारण। कालादतीत कालस्य काल काल नमोस्तु ते।
गुणातीत गुणाधार गुणबीज गुणात्मक। गुणीश गुणिना बीज गुणिना गुरवे नमः।
ब्रम्ह स्वरुप ब्रम्हज्ञ ब्रम्ह भावन तत्पर। ब्रम्ह बीज स्वरुपेण ब्रम्हबीज नमोस्तु ते।
सुनने या पढने के लाभण्ण्
इति स्तुत्वा शिवं नत्वा पुरस्तस्थौ मुनीश्वरः। दीनवत् साश्रुनेत्रश्च पुलकाचित विग्रहः।
असितेन कृतं स्तोत्रं भक्ति युक्तश्च यः पठेत। वर्षमेकं हविष्याशी शंकरस्य महात्मनः।
स लभेद वैष्णवं पुत्रं ज्ञानिंन चिरजविनम। भवेद धनाढयो दुःखी च मूको भवति पण्डितः ।
अभार्यो लभते भार्या सुशीलां च पतिव्रताम। इहलोके सुख भुक्त्वा यात्यन्ते शिवसंनिधतम।
शिवस्त्रोत
शिव कृपा प्रदायक दाम्पत्य सुख वर्धक शिव स्मरण.
नमामि ईशम ईशान निर्वाण रूपं ।विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं । चिदाकाशम आकाश वासं भजेहं ।
निराकार ओम कारम मूलं तुरीयं ।गिराज्ञान गोतीतम ईशम गिरीशं ।
करालं महाकाल कालं कृपालं ।गुणागार संसार पारं नतोहं ।
तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं ।मनोभूति कोटि प्रभा श्री शरीरं ।
स्फुरंमौली कल्लोलीनि चार गंगा ।लसद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा ।
चलत्कुण्डलं भू सुनेत्रं विशालं ।प्रसन्नाननम नीलकंठं दयालं ।
मृगाधीश चर्माम्बरम मुंडमालं ।प्रियम शंकरम् सर्व नाथं भजामि ।
प्रचंडम प्रकिष्ट्म प्रगल्भम परेशं ।अखंडम अजम भानु कोटि प्रकाशम ।
त्रयः शूल निर्मूलनम शूलपाणीम ।भजेहम भवानी पतिम भावगम्यं ।
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी ।सदा सज्ज्नानंद दाता पुरारी ।
चिदानंद संदोह मोहापहारी ।प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ।
न यावत उमानाथ पादार विन्दम ।भजंतीह लोके परे वा नाराणं ।
न तावत सुखं शान्ति संताप नाशं ।प्रभो पाहि आपन्नम नमामीश ;(नमामि ईश) शम्भो ।
1.परिक्रमा . शिव लिंग परिक्रमा कभी नहीं लगाना चाहिए। जिस और और योनि होती है उसका उल्लंघन करना वर्जित है। इसलिए शिव मंदिर की पूर्ण परिक्रमा शास्त्रो मे निषिद्ध है। अर्ध प्रदिक्षिणा करना चाहिए। अर्थात आधी से अधिक नहीं करे। बारबार आधी भी नहीं करे।
2.बिल्व पत्र कब नहीं तोड़ना वर्जित . बिल्ब पत्र बासी नहीं माने जाते। निषिद्ध दिन पूर्व तोड़े या अर्पित बिल्ब पत्र भी पुन जल से धोकर चढ़ाये जा सकते हैं। बिल्ब पत्र बासी नहीं माने जाते। तोड़ना वर्जित .सोमवार |यतिथि.चतुर्थीएनवमीएचतु सोमवार यतिथि.चतुर्थीएनवमीएचतुर्दशीएअमावस्या यसंक्रांति।
3.पुष्प तोड़ने तोड़ने एवं अर्पित करने की विधि .पूर्ण विकसित सुंगधित पुष्प ; कमल पुष्प के अतिरिक्त अन्य किसी पुष्प कली वर्जित एटूटी या विखरी पंखुरी का पुष्प भीनिषिद्ध है। ,
पुष्प जिस प्रकार से पेड़ पर लगा हो उस प्रकार अर्पित करे।
’ पुष्प तोड़ते समय दाहिने हाथ प्रयोग करे। पुष्प तोड़ते समयए पुष्प से तर्जनी ;अंगूठे के पास की ऊँगली का स्पर्श नहीं होना चाहिए।
’वर्जित पुष्प .केवड़ा एबकुल एकपास ,सेमल,केतकी ,कांड ,जूही ,शिरीष ,जूही ,दोपहरिया ,सुगन्धहीन पुष्प।
4.पूजा उपयोगी पत्ते .चिचड़े ,भंगरैया ,खैर ,शमी ,दूर्वा ,कुश,दोना ,तुलसी ,विल्व।
5. कब, नहीं तोड़े .तुलसी पत्र , बासी नहीं माने जाते। बाएं हाथ या कपड़े पर नहीं रखे। रविवार ,मंगलवार ,शुक्रवार ,द्वादशी ,अमावस्या,पूर्णिमा ,संक्रांति ,सायं काल ,वैधृति एवं व्यतिपात योग मे नहीं तोड़े। अतः रखे हुए तुलसी पत्र या स्वयं गिरे हुए तुलसी पत्र अर्पित किये जा सकते हैं।
6.त्रिपुण्ड .;चन्दन या भस्म का लगाना चाहिये,.शिव जी को लगाने के बाद बचे हुए चन्दन या भस्म से त्रिपुण्ड लगाएं। प्रातः.जल मिलाकर ,दोपहर बिना जल मिलाये परन्तु चंदन मिलाकर,सायंकाल सुखा चन्दन या भस्म का,पुण्ड लगाना चाहिए।
7.लगाने की,विधि .अंगूठे से भ्रू मध्य से ऊपर की और लगाएं। इसके बाद मध्यमा एवं अनामिका मिलाकर ,माथे पर बाएं से दाहिने भस्मध्चन्दन लगाएं ,फिर अगुठे से दाहिने से बाएं ;तीसरी रेखा ,भस्म,न्दन लगाएं।
8. रूद्र मंडल बनाकर एउसपर ताम्बे का जल कलश रखें। बत्ती श्वेत रंग की हो उत्तर की और र्धव मुखी हो। ।
पूजा का समय .श्रेष्ठ रात्रि .उत्तम सायं काल है। तिथि कृष्ण पक्ष अमावस्या अष्टमी हैं।
9.पूजा सामग्री कहाँ रखे, .अपने वाई ओर सुंगधित जल कलश घंटी धूप एतैल का दीपक रखे दाहिनी ओर घी का दीपक ,चावल या जल भरा शंख रखे। सामने कुमकुम ,चन्दन कपूर के साथ घिसा हुआ , +-परन्तु रखे ताम्बे के पात्र मे चन्दन नहीं रखे।
10.विभिन्न धातु पत्थर आदि के शिवलिंग की पूजा रूद्र अभिषेक के क्या २ फल होते हैं .
अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए आप शिवलिंग को चुन सकते हैं।
’लोहे के शिवलिंग की पूजा .शनि बाधा एवं आकस्मिक हानि से सुरक्षा।
’ ताम्बे के शिवलिंग की पूजा. पराजय। चाँदी के शिवलिंग की पूजा. धन अन्न भंडार भरे रहते हैं।
’स्वर्ण के शिवलिंग की पूजा.संपत्ति गरिमा सुख मिलते हैं।
’पीतल के शिवलिंग की पूजा.गरीबी का नाश होता है।
मोती के शिवलिंग पूजा की पूजा . विबाह बाधा दूर एवं सौभाग्य वृद्धि होती है।
नर्मदेश्वर ;नर्मदा के पत्थरसे स्वयं निर्मितद्ध शिवलिंग की पूजा.बाधाओं पर विजय एवं कार्य सफलता मिलती है।
काले . शिवलिंग की पूजा.शत्रु वर्ग वश मे होता है।
’माणिक्य शिवलिंग पूजा .उच्च पद राजसी वैभव सुख मिलते मिलते हैं।
’ मोती के शिवलिंग पूजा की पूजा . विबाह बाधा दूर एवं सौभाग्य वृद्धि होती है।
’स्फटिक के शिवलिंग पूजा की पूजा . धनलक्ष्मी के लिए श्रेष्ठ।
माखन निर्मित शिवलिंग. अभिषेक करने से संतान योग्य एवं पुत्र सुख प्राप्त होता है।
पारे के शिवलिंग पूजा की पूजा . समस्त कामना पूर्ति एवं पाप नाशक एमोक्ष प्रदायक होता है। आकस्मिक मृत्यु से सुरक्षा प्रद एवं पाप ग्रह दोषो का शमन करता है।
अभिषेक पदार्थ से कामना पूर्ति .
स्फटिक शिवलिंग का अभिषेक दूध से करना चाहिए।
*दूध धन यश प्रदायक होता है।
*गाय का घी आयु वृद्धि अकाल मृत्यु से सुरक्षा प्रदायक होता है।
* सरसो तैल से अभिषेक करने से समाप्त होते हैं एवं शत्रु नाश होता है।
* तिल के तैल से अभिषेक करने से राहु दोष का नाश होता है।
*मूँगफली के तैल मे हल्दी मिलाकर अभिषेक करने से से गुरु ग्रह दोष नष्ट होते हैं।
* महुए के तैल से से अभिषेक करने से सुख सौभाग्य नारी वर्ग का बढ़ता है।
*शहद से अभिषेक करने से माकन ध्भवनकठिनतम समस्या के शमन समाधान के लिए 108 यजुर्वेद या आपका जो वेद हो उसकी पूजा कर मंदिर या योग्य ब्रह्मणो को दान करे।
* रूद्र अभिषेक पूजा की 108 पुस्तके दान करने से या 108 बार 7 दिन मे पढ़ने से अकाल मृत्यु दोष समाप्त हो जाता है।
सुख मिलता है।
* कच्चा गाय का दूध एवं पानी से अभिषेक करने से शरीर कष्ट मे कमी होती है।
दुर्लभ औघड शिव शाबर मंत्र. ;सर्व आपत्ति .विपत्ति निवारक-
ॐ नमो आदेश गुरु जी को आदेश धरती माता को आदेश पौन पानी को आदेश औघड़ फकर को आदेश|
हे ||महेश ज्ट्टा जूट, ज्ञान की भभूत आओ लहर में शिव योगी अवधूत ,घुंगरू , डोरियाँ ,मणि , शैंकरी , तड़ाम , जंजीर ,पैर ,पोसा , डंड का वाजू ,हाथ का लोह लंगर, ज्ञान का पूरा ,पंथ सूरा , सेली ,सिंगी,नाद, मुँदरा, सिद्धक संधूरी , दिल दरिया के बीच में औघड़ फकर बोलिये ,औघड़ फकर फूल माला बनाई , बाबा आदम माँ हवा करो |रक्षा रखना बाल बाल सँभाल शिव गोरख की माया , नील गगन से उतरी छाया , भिक्षा दे नागर सागर की बेटी औघड़ फकर बचन सुनाया,आदेश |आदेश आदेश औघड़ दानी शिव को आदेश।
श्री शिव पंचाक्षरस्तोत्रम्;
;बुद्धि, विधां, पठनीय विद्या . दायिनी
शिव कृपा स्त्रोत .
ॐ नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मान्गरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै न काराय नमः शिवाय।
मन्दाकिनी सलिल चन्दन चर्चिताय नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मन्दार पुष्पबहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै म काराय नमः शिवाय।
शिवाय गौरी वदनाब्ज वृन्द सूर्याय दक्षाध्वर नाशकाय
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै शि काराय नमः शिवाय।
वसिष्ठ कुम्भोद्वव गौतमार्य मुनीन्दर,देवार्चित शेखराय
चन्द्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नमः शिवाय।
यक्षस्वरुपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै य काराय नमः शिवाय।
सुनने या पढने के लाभण्ण्
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिसंनिधौ। शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।
इति श्रीमच्छडराचार्यविरचितं शिव पंचाक्षर स्तोत्रं सम्पूर्णम।
1 बाणासुरकृतं शिवस्तोत्रम्
;कीर्त सर्वतीर्था बुद्धि एविधां , पुत्र दुर्लभ शिव स्तुति .
इदं च कवचं प्रोक्तं स्तोत्रं च श्रृणु शौनक। मन्त्रराजः कल्पतरुर्वसिष्ठो दतवान् पुरा।
ऊँ नमः शिवाय।
वन्दे सुराणां सारं च सुरेश नील लोहितम। योगीश्वरं योगबीज योगिनां च गुरोर्गुरुम।
ज्ञानानंद ज्ञानरुप ज्ञानबीजं सनातनम्। तपसां फलदातारं दातारं सर्व सम्पदाम।
तपोरुपं तपोबीजं तपो धन धनं बरम। वरं वरेण्यं वरद मीड सिद्ध गणैर्वरैः।
कारण भक्ति मुक्तीनां नर कर्ण वतारणम्। आशुतोषं प्रसत्रास्यं करुणामय सागरम्।
हिम चन्दन कुन्देन्दु कुदाम्भोज संनिभम। ब्रहाज्योतिः स्वरुप च भक्तानुग्रह विग्रहम।
विषयाणा विभेदेन विभ्रन्तं बहु रुपकम्। जल रुपमग्रिरुपमाकाशरुपमीश्वरम
वायुरुपं चन्द्ररुपं सूर्यरुप महत्प्रभुम। आत्मनः स्वपदं दातुं समर्थ वलीलया।
भक्त जीवनमीशं च भक्तानुग्रह कातरम। वेदा न शक्ता यं स्तोतु किमह स्तौमि त प्रभुम।
अपरिच्छित्रमीशानमहो वाड्मनसो परम व्याघ्र चर्माम्बर धरं वृषभस्थं दिगम्बरम।।
त्रिशूल पदिृश धरं सस्मितं चद्रशेखरम। इत्युक्त्वा स्तवराजेन नित्यं बाणः सुसंयतः।
प्राणमच्छकरं भक्त्या दुर्वासाश्र मुनीश्रवरः ।इदं दतं वसिष्ठेन गन्धर्वाय पुरा मुनेः।
सुनने या पढने के लाभण्ण्
कथितं च महास्तोत्रं शूलिन परमादभुतम ।इदं स्तोत्रं महापुण्यं पठेद भक्त्या च यो नरः ।
स्नानस्य सर्वतीर्थानां फलमाप्रोति निश्चितम। अपुत्रो लभते पुत्र वर्षमेकं श्रृणोति यः ।
संयतर हविष्याशी प्रणम्य शंकरं गुरुम।
गलत्कुष्ठी महाशूली वर्षमेकं श्रृणोति यः। अवश्यं मुच्यते रोगाद व्यास वाक्य मिति श्रुतम।
कारागारेअपि बद्धो यो नैव प्राप्रोति निवृतिम। स्तोत्रं श्रुत्वा मासमेकं मुच्यते बन्धनाद धु्रवम।
भ्रष्टराज्यो लभेद रायं भक्त्या मासं श्रृणोति यः । मासं श्रुत्वा संयतश्र लभेद भ्रष्टधनो धनम।
यक्ष्मग्रसतो वर्षमेकमास्तिको यः श्रृणोति चेत। निश्चित मुच्यते रोगाच्छकरस्य प्रसादतः ।
यः श्रृणोति सदा भक्त्या स्तवराजमिम द्विज। तस्यासाधयं त्रिभुवने नास्ति किचिच्च शौनक।
कदाचिद बन्धुविच्छेदो न भवेत तस्य भारते। अचल परमैशर्लभते नात्र संशयतः ।
सुसंयतो अतिभक्त्या च मासमेकं श्रृणोति यः । अभार्यो लभते भार्या सुविनीतां सती वराम।
महामूखशर्च दुर्मेधो मासमकं श्रृणोति यः । बुद्धि विधां च लभते गुरुपदेशामात्रतः।
कर्मदुःखी दरिद्रश्च मासं भक्त्या श्रृणोति यः।धु्रवं वितं भवेत तस्य शंकरस्य प्रसादतः ।
इहलोके सुखं भुक्त्वा कृत्वा कीर्ति सुदुर्लभाम। नानाप्रकारधर्म च यात्यन्ते शंकरालयम ।
पार्षदप्रवरो भूत्वा सेवते तत्र शंकरम्। यः श्रृणोति त्रिसंध्यं च नित्यं स्तोत्रमनुतमम।
असितकृतं शिवस्तोत्रम्
जगदगुरो नमस्तुभ्यं शिवाय शिवदाय च। योगीन्द्राणां च योगीन्द्र गुरुणां गुरवे नमः।
मृत्योर्मृत्यु स्वरुपेण मृत्यु संसार खंडन। मृत्योरीश मृत्युंजय मृत्युबीज नमोस्तु ते।
काल रुपं कलयताम काल कालेश कारण। कालादतीत कालस्य काल काल नमोस्तु ते।
गुणातीत गुणाधार गुणबीज गुणात्मक। गुणीश गुणिना बीज गुणिना गुरवे नमः।
ब्रम्ह स्वरुप ब्रम्हज्ञ ब्रम्ह भावन तत्पर। ब्रम्ह बीज स्वरुपेण ब्रम्हबीज नमोस्तु ते।
सुनने या पढने के लाभण्ण्
इति स्तुत्वा शिवं नत्वा पुरस्तस्थौ मुनीश्वरः। दीनवत् साश्रुनेत्रश्च पुलकाचित विग्रहः।
असितेन कृतं स्तोत्रं भक्ति युक्तश्च यः पठेत। वर्षमेकं हविष्याशी शंकरस्य महात्मनः।
स लभेद वैष्णवं पुत्रं ज्ञानिंन चिरजविनम। भवेद धनाढयो दुःखी च मूको भवति पण्डितः ।
अभार्यो लभते भार्या सुशीलां च पतिव्रताम। इहलोके सुख भुक्त्वा यात्यन्ते शिवसंनिधतम।
शिवस्त्रोत
शिव कृपा प्रदायक दाम्पत्य सुख वर्धक शिव स्मरण.
नमामि ईशम ईशान निर्वाण रूपं ।विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं । चिदाकाशम आकाश वासं भजेहं ।
निराकार ओम कारम मूलं तुरीयं ।गिराज्ञान गोतीतम ईशम गिरीशं ।
करालं महाकाल कालं कृपालं ।गुणागार संसार पारं नतोहं ।
तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं ।मनोभूति कोटि प्रभा श्री शरीरं ।
स्फुरंमौली कल्लोलीनि चार गंगा ।लसद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा ।
चलत्कुण्डलं भू सुनेत्रं विशालं ।प्रसन्नाननम नीलकंठं दयालं ।
मृगाधीश चर्माम्बरम मुंडमालं ।प्रियम शंकरम् सर्व नाथं भजामि ।
प्रचंडम प्रकिष्ट्म प्रगल्भम परेशं ।अखंडम अजम भानु कोटि प्रकाशम ।
त्रयः शूल निर्मूलनम शूलपाणीम ।भजेहम भवानी पतिम भावगम्यं ।
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी ।सदा सज्ज्नानंद दाता पुरारी ।
चिदानंद संदोह मोहापहारी ।प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ।
न यावत उमानाथ पादार विन्दम ।भजंतीह लोके परे वा नाराणं ।
न तावत सुखं शान्ति संताप नाशं ।प्रभो पाहि आपन्नम नमामीश ;(नमामि ईश) शम्भो ।
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