संदर्भ-रामचरित मानस तुलसीदास विरचित उत्तरकाण्ड-
“रुद्राष्टकम” श्लोक
सन्दर्भ- काकभूशुंडी (शूद्र ) अयोध्या में अकाल पड़ने से भटकते 2 उज्जैंन नगर में पहुचे |
यहाँ वे श्रेष्ठ शिवोपसक ब्राह्मण के आश्रय में (, की छत्र छाया में ज्ञानार्जन करने लगे. जो इनको पुत्रवत स्नेह करते थे.
काकभूशुंडी जी गुरु कृपा से ,शिव मंत्र प्राप्त कर , भूत भगवान सदाशिव महाकाल की भक्ति अराधना में सिद्ध होगये |
गुरु से प्राप्त अद्भुत शीघ्र ज्ञान प्राप्त होने के कारण (जन्म गत स्वभाव के अनुरूप) वे अहम्,दंभ, कुटिल बुद्धि से विष्णु जी एवं उनके ब्रह्मवादी भक्तो से इर्षा ,द्वेष मय दुर्व्यवहार ,अनुचित आचरण करने लगे. |
शिवोपसक ब्राह्मण गुरु ने दुखित होकर , अनेकानेक बार उनको किसी से भी,विशेष विष्णु जी या उनके भक्तों से ,अनुचित व्यवहार नहीं करने के लिए समझाया ,परामर्श दिए. यहाँ तक कहा , "जिन भगवान राम को शिव ,ब्रह्मा भी पूजते हैं, तुझे उनसे व उनके भक्तो से विद्वेष का व्यवहार कदापि नहीं करना नहीं चाहिए |"
काकभूशुंडी ने रोज रोज इस प्रकार गुरु के कहने से ,अंततः ब्राह्मण गुरु की उपेक्षा ही प्रारंभ कर दी |
शिव के समक्ष, काकभूशुंडी जी ने गुरु को , प्रणाम भी नहीं किया ,उपेक्षा, अनादर की दृष्टी से ब्राह्मण गुरु को देखा ,भूत भगवान् शिव ने क्रोधित होकर - काकभूशुंडी को सर्प बनने का श्राप दिया |
काकभूशुंडी सर्प स्वरूप में तत्काल परिवर्तित होगये. ब्राह्मण गुरु पुत्रवत प्रिय शिष्य को, सर्प योनि में देख कर , अत्यंत दुखी हुए . दुखी भावना से पीड़ित होकर , ब्राह्मण गुरु ने आशुतोष सदाशिव से अपने शिष्य पर अनुग्रह की प्रार्थना (कर, वर देने की) याचना की की,सर्प योनी श्राप से काकभूशुंडी को मुक्त कर दे .
वह प्रार्थना,याचना ही “रुद्राष्टक” है |
यह रुद्राष्टक दुखी भाव से ही पढना चाहिए.
प्रस्तुत अष्ट श्लोक में ,(सन्दर्भ -शेवागम ग्रन्थ(शुम्भु,पिनाकी,गिरीश ,स्थाणु,भर्ग,सदाशिव,शिव,हर,शर्व,कपाली,भव ,)उल्लेखित )रूद्र के 11 वे अवतार ईशान स्वरूप की है .
|शिव अजन्मा हैं |
पृथ्वी पर माता अंजना (हनुमान स्वरूप )से रौद्र अवतार में जन्म हुआ |
द्वापर युग में “भव”,रूद्र -सद्योजात,(श्वेत लोहित रंग ),
रूद्र- वामदेव -कामदेव रक्त वर्ण ,
तत्पुरुष रूद्र , एवं ईशान “पीतवासा” नामक २१ वे कल्प में ब्रह्मा की कामना पूर्ण करने हेतु पीले वस्त्र धारी तत्पुरुष रूद्र ” ईशान “नामक में से एक एवं कालान्तर में योग के प्रवर्तक/ अवतरित हुए |
प्रस्तुत प्रार्थना अजन्मा शिव के 11 वे रूद्र ईशान स्वरूप के अवतार की है |
इनकी पूजा के दीपक की वर्तिका पीले रंग की एवं पीले वस्त्र धारण कर प्रार्थना उपयुक्त होगी |
*”भज “ शब्द का प्रयोग श्लोको में हुआ है इसका सम्बन्ध केवल स्वर माधुर्य से या गाने से ही नहीं है व्यापक अर्थ वाला शब्द है ”भजन “ |
आप किसी को आत्मसात कर लेते है ,किसी के प्रति आत्म समर्पित हो जाते हैं , निमग्न (सुधबुध खोकर) या लींन ,तल्लीन हो चिंतन करते हैं|
किसी नाम को रटने, जपने. पुनरावृत्ति करने की क्रिया या सेवा ,प्रार्थना,स्तुति,स्मरण,गुणगान या, भाव विभोर मुग्धित मन आनंदित हो सुख सागर की अनुभूति करे ,मन के अनिवर्चनीय अकथ आनंद में डूब जाने को “भजन”कहते हैं |
हिंदी अनुवाद भाव (शिव कृपा प्रदायक दाम्पत्य सुख वर्धक शिव स्मरण --पं विजेंद्र तिवारी')
१-नमामि ईशम ईशान निर्वाण रूपं ।
विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं ।
चिदाकाशम आकाश वासं भजेहं ।
-हे मोक्ष स्वरूपी ईश्वर ” ईशान “ आपको मेरा प्रणाम |सांसारिक माया आप स्वयं है|
माया जनित बन्धनों से मुक्त है |कल्पना रहित (कामना ,विचार शून्य )भेदभाव रहित
(निरीहों के संरक्षक ),सर्वत्र (आकाश वत) हैं,आकाश वासी ,आकाश ही वस्त्र (दिकम्बर)
है आपका ,आपके इसे ही स्वरूप का मै स्मरण करता हूँ |
२-निराकार ओम कार, मूलंम तुरीयंम ।
गिरा ज्ञान गोतीतम ईशम गिरीशंम ।
करालंम महाकाल, कालंम कृपालंम ।
गुणागार संसार पारं नतोहंम ।
-आपका कोई स्वरूप नहीं है | “ॐ” के जनक हैं ,तीन गुणों (सत्व,रज,तम )
से परे ,वाणी ज्ञान एवं सर्व इन्द्रियों से परे , आप ही रूद्र “गिरीश” जो पर्वत राज
कैलाश (हिमालय )वासी हैं |विकराल,कालजयी,(काल से परे),दयावान ,सर्व गुणों के उत्सर्जक
(जनक) ,संसारिक बन्धनों से मुक्त ,ऐसे परमेश्वर को मै नमन करता हूँ \
३-तुषाराद्रि संकाश गौरंम गम्भीरंम ।.
मनोभूति कोटि प्रभा श्री शरीरंम ।
स्फुरंमौली कल्लोलीनि चार गंगा ।
लसद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा ।
-आप तुषार (हिमकण,शबनम-हवा में मिले/उडने वाले जल के ठोस बिंदु(हिम /बर्फ कण) जो जम
कर पृथ्वी पर गिरते हैं) के जेसे कोमल एवं गौर वर्ण एवं गंभीर है |करोडो कामदेव जेसी सौन्दर्य
शालिनी प्रभा युक्त हैं |आपकी जटाओं में गंगा जी स्वछन्द विहार कर रही हैं ,मस्तक पर द्वितिया
का चन्द्र(सर्व सौन्दर्यशाली शाली मनोहारी ) विराजित है , और गले में सर्प राज लिपटे हुए है |
४-चलत्कुण्डलं भू सुनेत्रं
विशालं ।
प्रसन्नानम नीलकंठं दयालं ।
मृगाधीश चर्माम्बरम मुंडमालं ।
प्रियम शंकरम् सर्व नाथं भजामि ।
-आपके कानो के कुंडल हिल रहे हैं,घनी विशाल भोहें ,बड़ी बड़ी आंखे ,मंद हास्य स्मित
मुखमंडल ,विषपायी आपका गला नीली प्रभा युक्त और आप कृपालु हैं | सिंह के चर्म
का वस्त्र और मुंडो की माला (कालजयी ,मृत्युजयी ) धारित , सर्व प्रिय एवं सर्वेश्वर्य
(लोकप्रिय ,सबके हितचिन्तक,कल्याण को तत्पर,सर्व सामर्थ्यवान)आपके शंकर स्वरूप
का नाम भजता (आन्नदमयी ,रसभरी,प्रेम विभोर भाव से सेवा, प्रार्थना,स्तुति,
स्मरण,गुणगान,लीन,जप,दोहराना,रटना,पुनरावृत्ति, आत्मसात ,अंगीकृत,चिंतन,)
करता हूँ |
५-प्रचंडम प्रकृष्टम प्रगल्भम परेशं ।
अखंडम अजम भानु कोटि प्रकाशम ।
त्रयः शूल निर्मूलनम शूलपाणीम ।
भजेहम भवानी पतिम भावगम्यं ।
-परम उग्र (प्रतापी,रौद्र,)परम तेजस्वी, परमेश्वर,अखंड ,अजन्मा,करोड़ो
आदित्य(सूर्य,प्रभाकर) सद्रश्य प्रभावान,तीन प्रकार(देह,देव,भोतिक), के दुखो
को दूर करने में सक्षम, त्रिशूलधारी एवं संसार की माता पार्वती के पति
जो भाव (प्रेम,श्रद्धा,मनके विचार मात्र )से प्रसन्न हो जाते है उन शंकर जी
को (समर्पित भाव से सेवा, प्रार्थना,स्तुति,स्मरण,गुणगान, जप,)भजता हूँ |
६-कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी ।
सदा सज्ज्नानंद दाता पुरारी ।
चिदानंद संदोह मोहापहारी ।
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ।
-कलाओं से परे ,कल्याणकारी ,युगांतकारी,सदैव सज्जन वर्ग को
आनद देने वाले(हित चिंतक),आनंदमग्न रहने वाले,संदेह से परे
माया मोह के बन्धनों से उपजे कष्टों को दूर करने /हरने वाले
मन को कष्ट देने वाले कामदेव के शत्रु,हे परमेश्वर प्रसन्न होइए
प्रसन्न होइए|
७-न यावद उमानाथ पादार विन्दम ।
भजंतीह लोके परे वा नाराणं ।
न तावत सुखं शान्ति संताप नाशं ।
प्रसीद प्रभो सर्व भूताधि वासं ||
-जब तक मनुष्य ,पार्वती के पति परमेश्वर की स्तुति /वंदना नहीं करते ,तब तक उनको
सुख शांति नहीं मिलती एवं उनके कस्तो ,दुखो का अंत भी नहीं होता है |सम्पूर्ण जगत
में व्याप्त (घट घट वासी )सर्व हृदय वासी प्रभु प्रसन्न होइए प्रसन्न होइए|
८- न जानामि योगम जपं नैव पूजां ,
नातोहम सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यं |
जरा जन्म दुखोघ तातप्यमानं,
प्रभो पाहि आपन नमामीश शम्भो|
-मै योग,जप ,पूजा, की विधि नहीं जानता |मै सर्वदा सदैव शम्भू ,आपको
ही नमन करता हूँ |वृद्ध वस्था एवं जन्म म्रत्यु के कष्टों से मुझ दुखी की
रक्षा करिए /बचाइए |हे रूद्र स्वरूपी शम्भू मैं आपकी वंदना (नमन ) करता हूँ |
(पंडित विजेंद्रकुमार तिवारी –www.astrobyvk.com.;9424446706,jyotish9999@gmail.com )
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