गणेश चतुर्थी व्रत
श्री गणेश जन्म महोत्सव
एवं चन्द्र दर्शन निषेध
अमंगल, आपत्ति, विपत्ति से सुरक्षा
तथा अपयश, आरोप
से बचे
आगामी वर्ष तक भविष्य सुरक्षित करे
(पंडित वी.के .तिवारी, 9424446706, jyotish9999@gmail.com)
श्री गणेश जन्म महोत्सव
भाद्रपद शुक्ल पक्ष, चतुर्थी तिथि को विघ्नों के स्वामी, भगवान श्री
गणेश जी का
जन्म दोपहर के समय हुआ था | यह भगवान
श्रीकृष्ण की तरह ही जन्म का महत्व रखता है | इस दिन विशेष महत्व रविवार या
मंगलवार का है |
किसी भी पूजा या शुभ कार्य के
पहले भगवान गणेश जी की पूजा या स्मरण करने का विधान है| यह इसलिए, क्योंकि समस्त विघ्नों बाधाओं के
स्वामी गणेश जी हैं| उनका स्मरण
पूजा कर, यदि कोई
कार्यक्रम किया जाए तो आपत्ति विपत्ति विघ्न-बाधाएं उपस्थित नहीं होती हैं |
इनका जन्म दोपहर का समय हुआ है ,इसलिए पूजा भी दोपहर के समय ही की
जाना चाहिए |जब भाद्र शुक्ल पक्ष में, चतुर्थी तिथि दोपहर के समय या
मध्य दिन के समय ,हो वही
अनुकूल एवं सही इनका जन्म का समय होगा|
यह पूजा किस नाम या राशी वालो
को करना चाहिए
ज्योतिष के आधार पर चतुर्थी तिथि को रिक्ता नाम दिया गया है
अर्थात कोई भी शुभ कार्य यदि इस तिथि में किया जाएगा तो उसकी सफलता संदिग्ध होगी| इसलिए इस तिथि में कोई भी मंगल
कार्य करना वर्जित है| तुला एवं
मकर राशि वालों को यह व्रत एवं पूजा अवश्य करना चाहिए जिससे उनको चतुर्थी तिथि के
अमंगलकारी प्रभाव के कुप्रभाव सुरक्षा प्राप्त हो|
यदि राशि ज्ञात नहीं है र,त,ज,ख,ग, अक्षर से जिनके नाम प्रारंभ हो ,उनको भी व्यवहार एवं बाहरी जगत
में सफलता के लिए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए |
पूजा की सरल विधि
*सामान्य रूप से एक आसन पर पूर्व
दिशा की ओर मुंह करके बैठे |
*अपने दाहिने और तिल या महुआ के
तेल का दीपक, अपनी वाएं
हाथ की तरफ घी का दीपक रखें |
एक कलश अपने दाहिने और रखें उसमें जल भरें| कलश के ऊपर एक प्लेट या कटोरी में
साबुत चावल भरे ,उस पर एक
नारियल रखें| नारियल का
बड़ा भाग आपकी ओर हो एवं छोटा या पूछ वाला भाग भगवान गणेश जी की ओर होना चाहिए|
*सिंदूर अक्षत पुष्प धूप कपूर फल
मोदक या लड्डू एवं दूर्वादल पूजा की सामग्री के रूप में रखिए|
संकल्प
दाहिनी हथेली में जल लेकर आप
बोले
हे विष्णु ,दक्षिणायन सूर्य के समय, भाद्र मास में, शुक्ल पक्ष में, गणेश चतुर्थी तिथि को अपना नाम ले, अपना गोत्र बोले, मैं विद्या ,रोजगार ,पद ,पुत्र, संतान, धन प्राप्ति के लिए सपरिवार ,अपने संकट दूर करने के लिए ,श्री गणपति जी आपकी की कृपा के
लिए यह व्रत उपलब्ध पूजन सामग्री के साथ करूंगा|
संस्कृत भाषा में भी इसको बोल सकते हैं परंतु यह आवश्यक नहीं
है ,क्योंकि यह
संकल्प मंत्र नहीं है |आप अपनी
किसी भी भाषा में इस प्रकार का संकल्प लेकर पृथ्वी पर जल छोड़ सकते हैं|
इस प्रकार हथेली के जल,पुष्प,अक्षत,चावल आदि गणेश जी के सामने छोड़
दीजिए |
निम्नांकित प्रत्येक मंत्र के
साथ दो
दूब अर्पित कर
(कुल २१ दूर्वादल )
अंत में समस्त 10 मंत्र पढ़कर शेष एक दूर्वादल गणेश
जी को अर्पित करें| दूर्वा
अर्थात एक प्रकार की घास जो गणेश जी को विशेष प्रिय है|
१-ॐ गणेशाय नमः | २-ओम उमा पुत्राय नमः
|
३-ओम विघ्न नाशनाय नमः| ४-ॐ विनायकाय नमः |
५-ॐ ईश पुत्राय नमः | ६-ओम सर्व सिद्ध प्रदाय नमः|
७-ॐ एकदंताय नमः
| ८- ओम इभ वक्त्राय नमः |
९-ॐ मूषक वाहनाय नमः |
१०- ओम
कुमार गुरुवे नमः|
21 मोदक /लड्डू का भोग अर्पित करें
|
5 लड्डू मूर्ति के पास पांच मंदिर
या ब्राह्मण को दें | शेष स्वयं तथा परिवार के लिए प्रयोग
करें|
*दिन में प्रातः या जब समय मिले -ॐ
गं गण अधिपतये नम:| इस मन्त्र
का जप भी कर सकते हैं |
*संध्या पश्चात भोजन ग्रहण कर सकते
हैं |
इस दिन दान पूजा का फल १००
गुना अधिक होता है |इसलिए आपत्ति विपत्ती ,अपयश नाश एवं सुरक्षित भविष्य के लिए
गणेश पूजा ,दान करे |
सावधान रहे,ध्यान रखे चन्द्रमा देखा तो झूठे आरोप लगेंगे
केसे बचे
चतुर्थी के भविष्य चौपट करने वाले बुरे प्रभाव से ?
चतुर्थी को चन्द्रमा दिख जाए तो क्या करे ?
चतुर्थी के दोष से
मुक्त होने का दुर्लभ परन्तु सरल उपाय
चतुर्थी को हलुआ (आटा,सूजी,आलू,) खाना चाहिए | गणेश पूजा करे |
विष्णु पुराण - विष्णु पुराण के अध्याय 4 // 42 में चंद्र दर्शन हो जाने पर दोष
का निराकरण कैसे किया जाए उसका एक मंत्र दिया है |यदि किसी कारण से चंद्रमा भाद्र
माह के शुक्ल पक्ष चतुर्थी को दिख जाए / दर्शन हो जाए तो उस दोष को दूर करने के
लिए इस मंत्र को पढ़ना चाहिए-
सिंह : प्रसेंनम वधित्सिंहो जाम्बवताहत|
सकुमारक
मा रोदिस्तव ह्रोष स्यमन्तक||
क्यों सुने या पढ़े इस कथा को ?
राजनीति एवं रोजगार वाले विशेष ध्यान रखे \जीवन संकट में पड सकता है |
भविष्य चोपट हो सकता है | जो कार्य नहीं किया उसके दोष ,आरोप भी लग सकते हैं|
शत्रु के षड्यंत्र के शिकार हो सकते है | विरोधी फसा सकते हैं | यश ,प्रतिष्ठा
दांव पर लग सकते हैं |
भाद्र माह के शुक्ल पक्ष चतुर्थी को,
इस कथा को पढने एवं सुनने वाले को चतुर्थी के चंद्रमा का दोष या इसके कारण आरोप
कलंक से सुरक्षा होती है |
मिथ्या ,झूठा
आरोप भगवान श्री कृष्ण पर लगा था कि, “श्री कृष्ण द्वारा लालच वश ,सूर्य प्रदत्त
स्यमन्तक मणि के लिए निर्दोष सूर्य भक्त सत्राजित यादव के पुत्र प्रसेन यादव की
हत्या कर दी गयी |”
द्वापर युग में ,द्वारकापुरी में, सूर्य
देव का परम भक्त सत्राजित यादव निवास करता था
| भगवान सूर्य ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर . उसको स्यमंतक मणि दी थी | मणि
अत्यंत प्रभावशाली थी | यह मणि प्रतिदिन स्वर्ण प्रदान करती थी| इस मणि की क्षमता
थी कि, देश में रोग नहीं हो |वर्षा समय पर हो | सर्प,चोर ,आदि का नहीं हो |
उग्रसेन राजा की सभा
में ,इस मणि के साथ सत्राजित यादव आया |अत्यंत कांतिमय मणि जो सूर्य के समान दिखाई
दे रही थी| अलोकिक मणि को देख कर उसके विषय मे पूछने पर सत्राजित ने ने मणि के प्रभाव विशेषता के विषय में राजा
उग्रसेन को सम्पूर्ण जानकारी दी | इसको सुनकर एवं देखकर भगवान कृष्ण के मन में
इच्छा उत्पन्न हुई यदि यह अलोकिक मणि राजा उग्रसेन के पास हो तो देश का और अधिक जन कल्याण,तथा विकास,हो सकता
है |
इस प्रकार श्री कृष्ण के मंतव्य ,विचार या इच्छा ज्ञात होने पर ,उसने श्री कृष्ण की शक्ति,भय,चिंता या डर से उस
मणि को अपने से शक्तिशाली भाई प्रसेनजित को दे दी |प्रसेन जित एक दिन उस मणि को
गले में डाल कर सिंह के आखेट / शिकार करने
के लिए घने जंगल में निकल गया | जहां पर
एक शेर के द्वारा प्रसेन जित को मार दिया
गया |
सिंह के मुंह में वृक्षराज भालू जामवान या जामवंत ने देखा,
उन्होंने उस शेर को मारकर मणि अपने बच्चे को खेलने के लिए दे दी |
प्रसेनजित जब शिकार या आखेट से लौटकर नहीं आया तो जनसामान्य
यदाव वर्ग में कानाफूसी होने लगी कि ,प्रसेनजित को मणि के लालच में श्री कृष्ण को
मार दिया गया है और उनसे और उससे मणि छीन ली गई है |
यह बात धीरे २ प्रचारित-प्रसारित होते हुए भगवान श्रीकृष्ण तक
पहुंची| श्री कृष्ण को यह सुनकर अत्यंत
दुःख | जनसमूह में चर्चा का विषय उके लिए असहनीय था |इसका निराकरण या समाधान होना
आवश्यक था | उनके लिए यह आवश्यक हो गया कि इस प्रकार के आरोप जनचर्चा जो उनके
प्रतिष्ठा के विरुद्ध थे उसका निराकरण करें एवं सत्यता को उद्घाटित करें|
अंततः भगवान कृष्ण अपने कुछ साथियों के साथ जंगल में गए | वहां
पर प्रयाद के पश्चात प्रसेनजित के घोड़े
को एक स्थान पर मारा पाया और उसके पास सिंह के पैरों के चिन्ह देखे |सिंह के पग चिन्हों का अनुसरण करते हुए वे आगे गए तो सिंह को मृत पाया | इस स्थान पर उनको वृक्ष
राज जामवंत के पैरों के निशान दिखयियो दिये |वृक्षराज के पग चिन्हों का अनुसरण
करते हुए वे एक गुफा के समीप पहुँच गए |
भगवान श्रीकृष्ण ने सोचा कोई ऐसा है जो सिंह से भी अधिक
शक्तिशाली है| जिस ने उसको मारा और इसी गुफा में रहता है परंतु उनके पास उस गुफा में प्रवेश करने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प
नहीं था | अपने साथियों को वहीं रुकने का कहकर श्री कृष्ण उस गुफा में प्रवेश कर गए |१२ दिन तक गुफा के
बाहर रुके उनके सैन्य साथी उनको मृत /पराजित मान कर द्वारका वापस आगये |
गुफा में श्रीकृष्ण को वृक्ष राज जामवान /जामवंत मिले |मणि के
लिए उनका युद्ध 21 दिन तक, वृद्ध जामवंत से हुआ|
जामवंत युद्ध करते समय इस तथ्य को जान गए
कि यह भगवान श्री राम ही है जो द्वापर में मुझे दर्शन दे रहे हैं |उन्होंने युद्ध
बंद कर भगवान कृष्णको नमन प्रणाम किया |
अपनी कन्या जांबवती तथा मणी उनको प्रदान कर उनको विदा दी|
भगवान श्रीकृष्ण मणि तथा वृक्ष राज की पुत्री जांबवती के साथ द्वारका पहुंचे |उनके आगमन के
समाचार से है ,द्वारका नगरी में हर्ष की लहर दौड़ गई |
भगवान कृष्ण ने यादवों की सभा में वह मणि सत्यजीत को बुला कर उसे
सौप दी| यादव सत्राजित , सही बात ज्ञात होने के कारण लज्जित,शर्मसार हुआ | सत्य सबके समक्ष उद्घाटित हो चूका था
|सत्र्जित का आरोप मिथ्या था |
सत्र्जित ने प्रायश्चित के रूप में सूर्य द्वारा प्रदत्त स्यमन्तक मणी श्री
कृष्ण जी को देते हुए क्षमा याचना कर ,अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्रीकृष्ण से
कर दिया |
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