विशेष -सप्तमी द्वार -पूजा विधि ,देवी विसर्जन दशमी ,
मण्डल वेदि विसर्जन त्रयोदशी |
दुर्गा पूजा नवरात्र
में सप्तमी अष्टमी एवं नवमी तिथि पूजा विधि एवं महत्व -
अश्विनी मास - यह देवी का शयन काल है| इस काल में देवी की पूजा वह बोधन अर्थात देवी को अकाल समय में जागरण कराने का
विधान है इसलिए इसका नाम बोधन हुआ|
*अश्वनी कृष्ण अष्टमी
के दिन आद्रा नक्षत्र में देवी को घंटा एवं अन्य ध्वनियों के साथ जगाने की
प्रक्रिया की जाती है|
*चामुंडा देवी के
दोनों और नागराज होते हैं और नागराज को षडाक्षरी मंत्र द्वारा जगाया जाता है
चामुंडा देवी का नाम शिवा है इनके चार हाथ हैं और ओम चामुंडाए विच्चे मंत्र है|
सप्तमी अष्टमी
एवं नवमी तिथि का विशेष महत्व है|
* पार्वती देवी
सप्तमी अष्टमी नवमी इन 3 दिनों में अपने माता पिता के घर होती हैं तथा
दसवीं को अपने पति के घर गमन करती हैं| इन 3 दिनों में ही पूजा का विशेष महत्व है|
*अष्टमी एवं नवमी को हवन का विशेष विधान है| अष्टमी को रात्रि समय एवं नवमी को शाम के सम
शाम के समय हवन करना चाहिए| दसवीं को श्रवण नक्षत्र में
विसर्जन करना चाहिए| परंतु यदि
नवमी को ही शाम के समय दसवीं यशवंत नक्षत्र आ जाए तो नवमी को ही विसर्जन कर देना चाहिए|
भोजन किस दिन करना चाहिए- यदि आप नवदुर्गा या नवरात्र व्रत
करते हैं तो आपको भोजन नवे दिन ही करना चाहिए |दसवें दिन भोजन करने से स्त्री वंश
की हानि होती है| अर्थात
व्रत केवल 8 दिन ही व्रत
करना
चाहिए |
सप्तमी को क्या करें-
बिल्व ब्रुक्ष् की पूजा,करे या अधिकतम 18 इन्च लम्बी शाखा काटे| पत्ते उत्तम हो |
ॐ छिन्दि छिन्दि छेदय छेदय ॐ स्वाहा|
किसी थाली या बर्तन में रखे -ॐ चल चल चालय चालय
शीघ्रम शीघ्रम मम गृहम प्रविश पुजलयम स्वाहा|
लाल वस्त्र लपेट कर ,आम के पत्ते लगा कर ,दो घटप्रवेश द्वार पर रखे | उनके
पीछे दीपक रखे | नमकीन ,मिर्च सहित भोग लगायें |
गृह मंदिर स्थल या आगन में वेदी पर शुभ पत्ते (विष्णुकान्ता,,आम.वाट,पीपल,अपराजिता,पारिजात, अशोक,केला,हल्दी,अमलतास,मेहदी.अनार,जवारे,
आवला,गुलर,पाकड़,)|पर बिल्व शाखा, पीले वस्त्र से लपेट, रख कर पूजा करे |
ॐ शारदीय मिमां
पूजां गृहाण
त्वमीहान्गता |स्वगतम ते महादेवी विश्वेश्वरी नमोस्तुते|
धन्यो अहम् कृत कृत्यों अहम् सफलं जीवितं च न: | आगत असी दुर्गे
माहेश्वरी ममाश्र्मम |
अर्ध्य मंत्रम फलं पाद्यम मलय वासिनी | गृहाण वरदे देवि कल्याणं च
प्रदेहि में |
चण्डिके चण्ड रूपे त्वं सर्व काम् प्रदे
शुभे|| गृहाण अर्ध्य मिदं भद्रे आगच्छ मम मन्दिरम ||
चण्डि त्वं चंडा रुपासी सुर तेजो महा बला | चण्डिके प्रविश्य तिष्ठ
मद गेहे यावत् पूजां कराम्य अहम् |
सप्तमी तिथि को षोडश न्यास महागणपति की पूजा त्रिपुर सिद्ध
करन्यास श्री यंत्र के अष्टदल चक्र में देवताओं का पूजन करने से सब रोग कष्ट दूर
होते हैं|
त्रिपुर सुंदरी का ध्यान करना चाहिए-
आगच्छ त्रिपुरा सिद्धे वाशिन्याद्य समन्विते |
सर्व रोग हरे
चक्रे तिष्ठ त्वां पूजयामि अहम |
7 वर्ष की कन्या कि रमा ज्ञाना नाम
से पूजा करें|
दोपहर में कुल गणपति की पूजा कर चंद्रिका देवी का नीले कमल
पुष्प से या अपराजिता पुष्प से अर्चना करें|
दोपहर पश्चात केला अनार धान हल्दी बिल्ब अशोक जयंती आदि के
पत्तों से जय दुर्गा मंत्र से जल छिड़क कर प्रधान घाट पर रखकर कर्म कुंजिका की पूजा करें|
नव पत्तों पर शारदा का पूजन कर उनको जल भोजन और वस्त्र आधी
अर्पण करें वह आरोप पिता से चामुंडा मंत्र नमः श्री फले पिक्चर स्त्री भूत वास्तु
सत्संग रहे तुम कामदा भव|
अष्टमी को जागरण
-
आगच्छ मद
गृहे देवी सह शक्ति अभिरष्टभि |पूजां गृहाण विधिवत सर्व कल्याण हेतवे |
ख़म खड्गाय
नम: || गौर्यैनाम | गमगणेशाय नम| अतिचंडीकाये नम:||
देवी जी इस
मन्त्र के साथ पुष्प,सुगंध वस्त्र आदि सौभाग्य वस्तुएं अर्पित करे |८वर्श की कानी
स्वरूप देवी कीपूजा |
शाम को महा
कुब्जिका पूजा –
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
अवतीर्य क्रमान्तस्था मंडल उर्ध्वे
तू पंक्जे|
त्रयस्त्र आसन
समारूढे सिद्ध कुतें संस्थिताम | वक्त्रानते दुती संयुक्ता सैम अलंकृताम |
अराधये
महादेवीम सर्वेषाम सर्व संस्थिताम | या सा परा परा शक्तिः खगस्था ख स्वरूपिणी|
सोम सूर्य
पदान्तस्था आयान्तु इह मण्डले |गृहाण मत् कृताम पूजां पश्चिमआग्न्याय नायिके |
रात्रि को
उग्र चंडा देवि का स्मरण –
कुष्मांड (बलि)
समर्पयामि | उग्र चंडिकायै नम: | 5बार बोल
कर कुम्हड़ा पूजा कर बलिस्वरूप काटे | कुष्मांड (बलि) समर्पयामि |
नवमी के
कार्य –
आज व्रत नहीं करे | दशमी को व्रत तोडना स्त्री वंश हेतु
अशुभ माना गया है |
आगच्छ मद
गृहे देवी त्रिपुरे भैरवीश्वरी | पूजां गृहाण मत कृताम नवम्याम परमेश्वरी | पूजां
गृहाण विधिवत सर्व कल्याण हेतवे |
महागणपति
पूजा –ओन वक्रतुण्डाय हुं |
ॐ महापद्म वनान्त्स्थे
कार्नानन्द् विग्रहे |
सर्व भूत
हिते मात्रेःयोहि पर्मेश्वरि |
दशमी कार्य – देवि विसर्जन |
घट पूजा करे
|गणपति पूजा |श्री यन्त्र पूजा |१८ भुज देवी का ध्यान | त्रिपुर सुन्दरी क ध्यान
करे |सभी देवी देवो को शक्ति को घट मे विलीन होने कि कालोन / विचार करे |
पुष्पाञ्जली अर्पन ,अपराजिता पूजा | कुष्माण्ड् बलि |देवि विसर्जन |
ॐ रश्मि रूप
महादेव्या ह्यत्र पूजित: देवताः|सुन्दर्यन्गे विलिनास्ताः संतुः सर्वा शुभावहाः|
**विशेष -ASHWANI
शुक्ल त्रयोदशी के दिन यज्ञ वेदि ,मण्डल आदि का विसर्जन करे |
Regards,
Pt V K Tiwari
(Horoscope, Vastu,
Palmistry,
Numerology,
Fengshui)
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