हरतालिका तीज व्रत कथा –
सात जन्म तक अखंड सौभाग्यवती, रूपवती
भाद्रपद माह, शुक्ल पक्ष की तृतीया
तिथि
हर तालिका व्रत किस प्रकार प्रचलित हुआ ?
यह व्रत शिव जी की पूजा से सम्बंधित है | जिसे उमा अर्थात पारवती जी द्वारा
भगवान् शिव को पति स्वरूप में वरण करने के लिए या उनसे विवाह के लिए किया गया था |
व्रत का नाम हरतालिका का क्यों पड़ा?
शिव जी द्वारा पार्वती जी को बताया गया कि आपकी सहेलियों द्वारा आपका अपहरण कर लिया गया था इस
कारण इस व्रत का नाम हरतालिका अर्थात हरण कर छुपा देना पड़ा|
पार्वती जी का प्रश्न- हरतालिका व्रत को व्रतराज क्यों
कहा जाता है? व्रत की
विधि क्या है एवं इस व्रत को करने से क्या फल प्राप्त होते हैं?
पार्वती जी के प्रश्न का उत्तर शिवजी द्वारा निम्नानुसार दिया गया|
शंकर जी ने कहा स्त्री वर्ग के लिए यह विशिष्ट व्रत है |जिन
विवाहिताओं को सौभाग्य की इच्छा है ,उन्हें इस व्रत को करना चाहिए |इस व्रत में
रात्रि जागरण करने का विशेष महत्व है| रात्रि जागरण की अवधि में शिव
पार्वती किसी पवित्र नदी की बालू या रेत से निर्मित या मिट्टी सभी बनाए जा सकते
हैं| इनकी पूजा
करना चाहिए
पुराण में इस संबंध में विभिन्न संस्कृत भाषा मैं कथन है या
मंत्र हैं| जिनका
संक्षेप मैं अर्थ निम्नानुसार है-
हे शिव आप ,जगत का कल्याण करने वाले शिव है, मंगल स्वरूपी महेश्वर हैं| हे पार्वती आप हमारी सभी
मनोकामनाएं को पूर्ण करने वाली हैं हे देवी आप के कल्याण स्वरूप को नमस्कार करती हूं| कल्याण भाई पार्वती जी हमारा नमन
स्वीकार करें हम शंकर जी का निरंतर ध्यान एवं उनको नमस्कार करते हैं आप जगत की
पालनकर्ता मातासुरूपा है आप को मेरा नमन| आप प्रसन्न होकर कृपापूर्वक मुझे सौभाग्य प्रदान कीजिए
इस प्रकार यह व्रत पूजा अपने दांपत्य साथी के साथ अपने जीवन
साथी के साथ करना विशेष उपयोगी होता है |
व्रत रखने से क्या लाभ होते हैं?
क्या इस व्रत में अन्य का आहार या भोजन किया जा सकता है? भोजन
करने के क्या दुष्परिणाम होते है ?
क्या यह व्रत परलोक या आगामी जीवन आगामी जन्म को सुधारने के
लिए भी उपयोगी है?
शिव जी द्वारा बताया गया कि इस
व्रत को रखने वाली नारी के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं| वह सात जन्म तक विभिन्न प्रकार के
राज्य सुख वैभव को भोगने का भाग्य प्राप्त करती है| जो स्त्री इस दिन अन्न का आहार
नहीं करती है एवं व्रत पूजा करती है वह आगामी सात जन्म तक बंध्या या विधवा नहीं होती है| यह दिन धन पुत्र पति के सुख के
लिए उपयोगी है अन्यथा जो स्त्री इस व्रत एवं पूजा को नहीं करती है वह निर्धन पति
सुख विहीन और पुत्र शोक जैसे दुख को भोगने को विवश होती है उसको मृत्युपरांत
घोर नरक की यातना भी झेलना होती है|
हरतालिका के दिन
अन्न का भोजन करने वाली अगले जन्म में सुअर की योनि में फल खाने वाली बंदर की योनि
में जल पीने वाली टिटहरी पक्षी शरबत पीने वाली जोक दूध पीने वाली सर्प योनि में मांस का प्रयोग
करने वाली रागिनी दही खाने वाली बिल्ली मिठाई का प्रयोग करने वाली सिटी अनेक चीजों
का प्रयोग करने वाली भोजन में मुर्गी का जन्म प्राप्त करती है| आगामी जन्म में सुख संपत्ति संतान
पति आदि के सुख के लिए यह व्रत एवं पूजा करना चाहिए|
व्रत के दूसरे दिन भी कोई नियम विशेष है? क्या इस बात से पार्वती जी के
समान रूपवती भी हो सकती है? क्या
अकेले ही यह व्रत करना चाहिए ?
*दूसरे दिन किसी पात्र में ब्राह्मण को अन्न दान करना चाहिए|
*मां पार्वती का कथन है जो स्त्रियां मृत्यु लोक में पृथ्वी
लोक में मेरे समान दाम्पत्य सुख ,सौंदर्य पाना चाहती हैं उन्हें या व्रत करना
चाहिए इससे सांसारिक सुख एवं पार्वती जी जैसी सौन्दर्यवती ,रूपवती होने का सौभाग्य
प्राप्त होता है|
*पूजा का विशेष काल रात्री है |सामूहिक या अनेक स्त्रियों की
उपस्थिति या मिल कर पूजा कर सकती हैं |पार्वती जी के साथ भी उनकी अनन्यतम सहेलियां
व्रत के समय उपस्थित थी |
*इस व्रत की कथा को सुनने से हजारों अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है|
हरतालिका व्रत एवं पूजा की सामान्य सामग्री क्या है?
सामान्य रुप से यह शिव पार्वती जी की पूजा-अर्चना से संबंधित व्रत है| इसकी पूजा संपूर्ण रात्रि के
प्रहारों अर्थात संध्या से सूर्योदय पूर्व तक तीन बार कि जाना चाहिए| सामग्री में आम के पत्ते और यदि
बट पीपल पाकड़ आंवला वृक्षों के पत्ते भी प्राप्त हो तो अति उत्तम |
कलश, यज्ञोपवीत, पंचरत्न, वस्त्र, साबुत चावल, रोली सुपारी, मौसमी फल, पुष्प, शिव जी को प्रिय समस्त प्रकार के
पुष्प, बेलपत्र,विशेष रुप से कनेर कमल पुष्प तथा शमी
पत्र मदार पुष्प,महावर, दीपक एवं यदि हवन की व्यवस्था कर
सकें तो अति उत्तम होगा|
संकल्प विधि -
अपना नाम लेकर ,पूजा स्थल का नाम लेकर, पूर्व दिशा में मुंह कर आसन पर
बैठ जाएं
|हथेली में जल लेकर एक सिक्का एक
सुपारी रखकर शिवजी एवं पार्वती जी से अपनी मनोकामना सुख सौभाग्य संपदा एवं सर्व
भोग वैभव प्राप्त हो तथा समस्त शत्रु एवं विघ्नों का नाश हो, इसलिए आपकी कृपा एवं प्रसन्नता के
लिए यह व्रत पूजा कर रही हूं|
किस प्रकार के कर चल को अपने आसन के समीप पृथ्वी पर समर्पित कर
दें|
शिव पार्वती हरतालिका कथा-
दीपक प्रज्वलित कर उस को नमस्कार करें| एवं दीपक से भी कामना करें, याचना
करें कि समस्त बाधाएं दूर हो तथा सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण हो| शिव पार्वती जी आप मेरे घर इस पूजा
स्थान पर पधार कर ,मेरी पूजा एवं अर्पित सामग्री ग्रहण करें | सर्व सुख सौभाग्य
संपदा का आशीर्वाद प्रदान करें |
सामग्री पुष्प फल रोली चंदन आदि के द्वारा शिव पार्वती जी की
सजा करें एवं उन्हें प्रसन्न भाव से अर्पित करें|
कथा प्रारंभ के पहले
आक के पुष्प या उसकी माला भगवान शिव शंकर को अर्पित करें उनको नमस्कार करें |
मां पार्वती द्वारा जनकल्याण एवं सर्वसामान्य के हित में शिव
जी से पूर्ण विवरण इस व्रत की कथा का निवेदन किया गया जो किस प्रकार है-
महादेव जी द्वारा पार्वती जी को बताया गया कि, यह व्रत मेरा
सर्वप्रिय व्रत है | अत्यंत गोपनीय है |यह उस प्रकार ही मुझे प्रिय एवं मेरे लिए
महत्वपूर्ण है जैसे आकाश के तारों में चंद्रमा, ग्रह में सूर्य, जातियों में
ब्राह्मण, नदियों में गंगा, पुराणों में महाभारत, वेदों में सामवेद ,एवं इंद्रियों
में मन श्रेष्ठ है|
इस व्रत के प्रभाव से
ही हे, पार्वती आपको मेरा अर्ध आसन या अर्धांगिनी होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है |
यह व्रत सूर्य चंद्रमा की विशेष स्थिति में होने पर भाद्र माह
के शुक्ल पक्ष को जब हस्त नक्षत्र हो एवं तृतीया तिथि हो उस दिन ही किया जाता है
इससे सब प्रकार के पाप एवं दुर्भाग्य नष्ट हो जाते हैं|
हे पार्वती यह व्रत सबसे पहले तुम्हारे द्वारा किया गया था |
तुमने पर्वत राज
हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया था |तुमको विगत जन्म का स्मरण था |पूर्व
जन्म में अपने पिता दक्ष के द्वारा मेरा अपमान होने पर तुम योग अग्नि के द्वारा
सती हो गयी थी |जब राजा हिमालय के घर तुम्हारा जन्म हुआ ,हिमाचल पर्वत पर जहां
अनेक प्रकार के सुंदर पुष्प वृक्ष पक्षी गंधर्व किन्नर सिद्ध पुरुष योगी आदि निवास
करते हुए सुखी जीवन व्यतीत करते थे |
वहां मेरे लिए तुमने विभिन्न तप किये जेसे - 12 वर्ष नीचे मुख कर यज्ञ धूम का पान
किया , तुमने 64 वर्ष बेल
के पत्तों को भोजन के रूप में ग्रहण किया, माघ महीने में जल में स्थित होकर एवं
वैशाख महीने में अग्नि में प्रवेश कर , सावन महीने में अन्य जल त्यागकर तपस्या
करती रही |
तुम्हारे तप एवं कष्ट
को देखकर तुम्हारे पिताजी हिमालय को अत्यंत चिंता में रहते थे |एक दिन अत्यंत
चिंता में निमग्न बैठे थे क्या करू..क्या न करू ? उस ही समय ही ब्रह्मा जी के पुत्र आकाश चारी देवर्षि नारद आकस्मिक रुप से वहां पहुंचे तो
तुम्हारे पिता हिमवान ने उनको आदर सहित
स्वागत कर बिठाया | उनके आने का प्रयोजन पूछा ?नारद जी बोले कि मैं विष्णु जी के
द्वारा एक संदेश लेकर आया हूं ,तुम अपनी पुत्री शैलपुत्री को वरदान देकर विष्णु जी
को सौंप दो ,क्योंकि समस्त संसार में विष्णु के समान कोई नहीं है | विष्णु भगवान
को पुत्री का दान करसमस्त चिंता से मुक्त हो जाओ ,ईएसआई विष्णु जी इच्छा है |
हिमाचल ने कहा कि यदि
भगवान विष्णु स्वयं ही मेरी पुत्री से विवाह करना चाहते हैं तो यह मेरे लिए अत्यंत
हर्ष एवं सौभाग्य की बात होगी मैं अवश्य ही अपनी कन्या का दान उनको करूंगा |
नारद जी के चले जाने के पश्चात राजा हिमाचल ने यह जानकारी अपने
परिवार में दी कि पुत्री का विवाह भगवान
विष्णु का विवाह प्रस्ताव नारद जी लाये थे |मेने सहमती एवं स्वीकृति दे दी है
|विष्णु जी साथ के साथ विवाह पुत्री का करने का निर्णय कर लिया है |
यह जानकारी ज्ञात होने पर, तुम अत्यंत दुखी होकर चिंता एवं
दुःख के कारन रोने लगी एवं मूर्छित हो गयी | होश आने के पश्चात तुमने सहेलियों को बताया कि,बचपन से ही शिवजी के अतिरिक्त तुम किसी से विवाह नहीं करना
चाहती हो और तुम्हारे पिता ,भगवान विष्णु से तुम्हारा विवाह करने का निर्णय ले
चुके हैं| इसलिए तुम इतनी दुखी हो और अब
विवश होकर शरीर का
त्याग करने का विचार सहेलियों पर प्रकट किया
| सहेली के
परर्ष अपर तुम उसके साथ अत्यंत घने जंगल की एक गुफा में में पहुँच गयी |
| तुम्हारे पिता को जब तुम कहीं नहीं
दिखी, कोई तुम्हारी कोई जानकारी नहीं दे सका तो वे चिंतातुर हो कर व्यथित हो उठे
,उनके साथ २ सब चिंता में पड़ गए कि, कौन हरण कर ले गया ?कौन उठा ले गया? किस दे,व
दानव, गंधर्व, किन्नर ने अत्यंत रूपवती कन्या का अपहरण कर लिया | तुम्हारे पिता
अत्यंत चिंतित हो गए कि मैं भगवान विष्णु तो अब क्या कहूंगा ?
नारद जी द्वारा भगवान
विष्णु को यह समाचार दे दिया गया था कि, पर्वतराज हिमालय अपनी पुत्री का विवाह उनसे
करने के लिए तैयार हैं| राजा हिमाचल अंततः अपने सैनिकों के साथ तुम्हें ढूंढने निकल पड़े |
तुमने अपनी सहेलियों के साथ एक गुफा में अन्य जल त्यागकर ,रेत
बालू से मेरा लिंग बनाकर, मेरी आराधना प्रारंभ कर दी |हे उमे वह समय, दिन यही
भाद्र मास की तृतीय शुक्ल पक्ष, हस्त नक्षत्र था |इससे मेरी तपस्या में विघ्न होने
लगा | मुझे ज्ञात हुआ कि , तुम्हारी पूजा आस्था ,श्रद्धा,ही मेरे विघ्न का कारणहै
| मैं तुम्हारे पास उस गुफा के पूजा स्थल पर पहुंचा और तुमसे वर मांगने के लिए कहा
–
हे पार्वती ,आपने तब यह कहा कि आप ही मेरे पति हो यही वरदान
दीजिये |
मैं तथास्तु कहकर अपने
निवास कैलाश पर्वत चला गया |प्रात उस बालू निर्मित लिंग को नदी में तुमने विसर्जित
कर दिया |
तुम्हारे पिता भी तुमको ढूंढ़ते हुए उसी स्थान पर पहुंच गए |नदी
के तट पर तुम्हें देखकर हर्ष विभोर हो कर ,तुम्हें अपने हृदय से लगा कर रोने लगे
और बोले कि बेटी तुम इस घने जंगल में जहां पर शेर जेसे हिंसक जानवर हैं क्यों चली
आई? तुमने कहा हे ,पिता मैंने अपना पति शंकर जी को ही माना है और इसलिए मेरा प्रण
है कि उनके साथ ही विवाह करूंगी |परंतु आप ने मेरी इच्छा के विरुद्ध मेरा विवाह
विष्णुजी से निर्धारित कर दिया , इसलिए मेरे पास कोई विकल्प नहीं था | मैं इस घने
जंगल में आकर भगवान शिव शंकर की पूजा करने लगी |
यह सुनकर तुम्हारे पिता ने वचन दिया कि तुम मेरे साथ घर चलो
तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध मैं कोई भी कार्य नहीं करूंगा| तुम्हारा विवाह शिव जी के साथ ही होगा| इस प्रकार हे पार्वती
तुमको यह मेरा अर्धांगिनी पद प्राप्त हुआ|
इस प्रकार मैंने अभी तक भाद्रपद माह,शुक्ल पक्ष,तृतीया तिथि की
विशेषता तथा मुझे प्रिय इस इस व्रत की जानकारी तुम्हारे अतिरिक्त किसी को नहीं दी
थी|
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