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दशहरा विजयादशमी चुनाव, विवाद, विजय -शमी पूजन -mantr muhurt

दशहरा मुकद्दमा, चुनाव, विवाद में विजय दिलवाएगा

              दशहरा क्या है?

पूजा समय-

विजय दशमी / दशहरा शमी तथा नीलकंठ पूजन विधि - 12.10.2024

विजय काल - दोपहर 14:07 से 14:50 तक
पूजन समय - 13:39 से 16:30 तक (कर्क लग्न विशेष सम्माहित)
अवधि - 02 घंटे 23 मिनट्स 

 बंगाल विजयादशमी
रविवार, 13 अक्टूबर, 2024

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 - यह पर्व विजय या शक्ति का पर्व है ,दशहरा नाम से बहु प्रचलित है। 

सस्कृत शब्द दश $ अहा - दस दिन  दस सूर्य + हरा विजय हरण।

जिस प्रकार अहा दिन निश रात और बना अहर्निश अर्थात दिन रात उस प्रकार ही दश और अहा दशहरा निर्मित होना संभव है।

        1   दश अर्थात दस हरा अर्थात दश ग्रीव रावण को पराजित किया। 

इस दिन रावण पराजित हुआ दशग्रीव दश कंधर दशानन विजय से अभिप्राय दस दोषो दस दुर्गणो पर विजय या दश दुर्गणो पर नियंत्रण या अधिकार स्थापित करने का पर्व है।

- दश दुर्गणो पर नियंत्रण या अधिकार स्थापित करने का पर्व है।

- दश दुर्गुण व्यक्त्वि दश दोष - अहंकार अन्याय अमानवीयता काम ्रक्रोध मोह मद मत्सर स्वार्थ लोभ या लालच।

                - इस दिन भगवान विष्णु के सातवे अवतार श्रीराम द्वारा पत्नी सीता के अपहरण के कारण दशग्रीव रावण का वध किया था।

- उत्तर भारत के रघुवंशी राज परिवार के राम द्वारा रावण का वध एव विजय के अवसर पर सहज स्वाभाविक उल्लास हर्ष उत्सव काअ वसर स्मरणीय दिन हुआ दशहरा।

-  मध्यप्रदेश उत्तरप्रदेश बिहार महाराष्ट आदि में रावण दहन कर इस दिन को उत्सव में मनाया जाता है। 

-इसके 10 दिन बाद राम लक्ष्मण सीता अयोध्या पहुंचे। उनके स्वागत के लिये पूरा नगर दीप ज्योतिमय दीप जलाकर बनाया गया दीपावली का दिन।

    यह पर्व विजयादशमी अर्थात विजय का पर्व शक्ति शौर्य का पर्व है।

2   शक्तिदेवी दुर्गा तारा चामुण्डा की पूजा का अंतिम दिन उनके पार्थिव स्वरुप विसर्जन का पर्व है।

दूसरी ओर एक राजा की दूसरे राजा पर विजय का पर्व दशहरा है। 

तीसरा विभिन्न शक्तियो अपराजिता देवी सरस्वती लक्ष्मी की आराधना का पर्व है। चैथा आयुध वाहन पुस्तक पूजा का पर्व है।

पांचवा शमी वृक्ष पूजा सोनपत्ती  आपति एवं ज्वारो के द्वारा चिंता शमन भाग्य वृद्धि समृद्धि की शुभकामना का पर्व है। अनेक विविधतााओ भरा पर्व है विजयदशमी या दशहरा।

    दशहरा या विजयादशमी. दशमी पूजा कौन अवश्य करे

,वृष कन्या एवं मीन राशि वालो दशमी को पूजा सदैव करना चाहिये। विजयादशमी को पूजा करने से वर्ष भर दशमी के हानि कष्ट पीडा दायी फल नही मिलेगे।

यदि राशि ज्ञात न हो तो इ उ ऐ ओ व प ठ दू दो च ची अक्षर से जिनके नाम प्रारंभ हो उन्हे अवश्य पूजा करना चाहिये।

’’’’’’’’’’’’’’’                भारत में सर्वत्र दशमी को पर्व मनाया जाता है।

             दशहरा पर्व की व्यापकता भारत

        भारत के विभिन्न राज्यों /प्रदेशो में पर्व की व्यापकता भारत के समीपवर्ती देशो में दशहरा / विजयादशमी पर्व मनाया जाता है। दशहरा या विजयदशमी  परम्पराएँ कुल्लू में दशहरा की धूमधाम अधिक रहती है।

 -हिमाचल प्रदेश के इस नगर में 17वी सदी में तात्कालीन राजा भगतसिंह द्वारा भगवानराम स्वरुप रघुनथ जी को यहा का राजा घोषित कर दिया था तब से अब तक दश्हारा रघुनाथ जो को समर्पित है।

-आंध्रप्रदेश मेे शस्त्र यश आयुधो की पूजा का पर्व है। इस दिन विधा की देवी सरस्वती की पूजा सरस्वती मंत्र पुस्तक अंध में उपलब्ध है की जाती है।

-र्नाटक में भी आयुध पूजा का पर्व है।

- तेलगाना राज्य में शमी वृक्ष की पूजा का महत्व है। परिवार के छोटे सदस्यो द्वारा अग्रजो या बडो का सम्मान सहित शमी वृक्ष की Leaf यश चिंता मुक्ति हेतु भेट करते है। 

बडो द्वारा छोटो को शुभकामना परक आशीष दिये आने की परंपरा है। 

उत्तराखंड बिहार और उत्तरप्रदेश में आश्वनि शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को जौ पूजा स्थल पर बौने की परंपरा है।

जिनक पौधे जवारे कहलाते है।

 दशहरा के दिन मित्रो परचितों रिश्तेदारे को टोपी या उनके कान पर जवारे सम्मान प्रकट करने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है इससे भाग्यवृद्धि प्राप्त करने वाले ही होती है गले मिलते है। आत्मीयता एकता सामाजिकए क सूत्रबंधन का एकात्मता का पर्व हो जाता है।

-मैसूर में कुल देवी अधिष्ठात्री चामुंडेश्वरी की पूजा की परंपरा है .

मैसूर में दश्हारा पर्व अत्यंत हर्षउल्लासय का पर्व है। शभी वृक्ष की पतियो को भेट करने की परंपरा है। वर्ष चिंता मुक्त कुशलता एवं समद्धि का रहे इसी मनोकामना प्रदानकर्ता की होती है ।

-उडीसा में देवी के नवरुपो में एकम तारा देवी की पूजा का बडा पर्व है शक्ति पूजा का पर्व होता है। शरोपिया पूजा दुर्गा जी की होती है 10 से 16 दिन तक षोडसउपचार पूजा का विधान है।

-केरल में अष्टमी नवमी दशमी तीन दिन इस अवसर पर पूजा की जाती है विधा प्रारंभ के लिये श्रेष्ठ दिन माना जाता है सरस्वती की पूजा का महत्व है पुस्तको की पूजा की जाती है एक प्लेट में चावल बिखेर देते है दो तीन वर्ष के शिशु से तर्जनी अंगूठे के पास वाली उगली से हरि श्री गणपतये नमः लिखवाने का प्रयास किया जाता है।

-बंगाल मे देवी पूजा का सर्वाधिक महत्व है। 

पंचमी से दशमी तक पांच दिन दुर्गा का विराट पूजा होती हैं बंगाल समूचा दुर्गामय देवीमय शकितमय हो जाता है। दशमी को पार्थिव दुर्गा देवी का तालाब में विसर्जन किया जाता है। नेपाल मं यह दशै विजय दशमी कहलाता है नेपाल में इस पर्व पर भारी धूमधाम होती है। गांव 2 तक इसका महत्व है बच्चेा के माथे पर बडो द्वारा हरा पीला मिथित रंग का टीका लंबे आकार में लगाया जाता है। यह टीका सुरक्षा विजय का संकेतक एवं आवश्यक जैसा है। 8वे दिन बकरी भैस चिकन की बलि देकर प्रसाद बांटा जाता है।

बागलादेश में रामकृष्ण मिशन द्वारा संचालित मंदिर है।

- ढाका में ढाकेश्वरी देवी का मंदिर है। हल्दी से दुर्गा जी की पूजा की जाती है। दशमी को पार्थिव दुर्गा का विसर्जन किया जाता है। इस प्रकार भारत में सर्वत्र दशमी को पर्व मनाया जाता है।

उत्तरभारत मे भगवान राम की रावण के विजय के उपलक्ष्य में तो शेष  के पूर्वी एवं दक्षिणी भारत में देवी की शक्तिरुप में दशमी या वि जयादशमी पर्व मनाया जाता है। राम स्वतन सरस्वती तारा दुर्गा आदि विभिन्न देवियो की पजा का पर्व रावण दहन पर्थिव दुर्गा विसज्रन का पर्व है।

      शुभकामना देने समृद्धि की कामना आयुध वाहन पूजा का भी पर्व ह

भारत का कई हिंदु त्यौहार का दिन इतना सर्व व्यापाक प्रचारित प्रसारित नही है और न ही उतनी विभिन्नता वाला है जितना आश्वनि माह शुक्ल पक्ष दश्मी एवं श्रवण नक्षत्र का संयोग वाला दिन है।

सम्पूर्ण भारत वर्ष में विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है। उत्तर भारत में दशहरा नाम अधिक प्रचलित है शेष भारत में विजयादशमी नाम प्रसिद्ध है।      

              अपराजिता देवी पूजा कब करेदशहरा या विजयादशमी

        दशहरा या विजयादशमी के अवसर पर अपराजिता देवी की पूजा करने के विधान है। अपराजिता देवी की पूजा जो करते है अपराजिता देवी की पूजा के दिन नवमी तिथि ये युक्त दशमी होना चाहिये। जयवर्धनी अपराजिता की पूजा ईशान दिशा में की जाती है। एक पौधा भी अपराजिता नामका होता है उसकी पूजा भी की जाती है उडीसा में अपराजिता की पूजा की जाती है ।

        तारा देवी शक्ति पीठ में षोडश उपचार 10 से 16 दिन पूजा होती है । चावल को जल एवं दही में पकाते है। पीठा, मीठा बनाकर मछली तलकर देवी को अर्पित करते है।दशहरा पर्व एवं विजय दशमी को वाचन श्रवण सदैव विजय कारी,दुर्गा जी स्वरूप अपराजिता देवी -

-

अपराजित मंत्र

(1).. ओम ऐं ऐं अपराजितायै क्लीं क्लीं फट्    |

(2.) ओम बलायै महाबलायै असिद्धसाधिनी अपराजितायै नमः  |

(3.)ओम बलायै विदमहे महाबलायै धीमहि तन्नोअपराजिता प्रचोदयात् |

 (4.).ॐ आकर्षिणी आवेशिनी ज्वालामालिनी रमणि रामणि

 धरणि धारणि तपनि तापिनि मनोन्मादिनि,

 शोषिणि सम्मोहिनि नीलपताके महानीले महाप्रिये महाग्रेयि 

महाचण्डे महारौद्रि महावज्रिणि आदित्य रश्मि जाह्नवि यमघण्टे! 

किलि किलि चिन्तामणि सुरभि सुरोत्पन्ने सरस्वति सर्वकामदुधे!

 मम मनीषितं कार्यं तन्मे सिध्यतु स्वाहा|

विष्णुकांता या अपराजिता वृक्ष की पूजा- एवं मन्त्र -

अपराजिता पूजन मंत्र :-

 हारेण तु विचित्रेण भास्वत्कनकमेखला ।अपराजिता भद्ररता करोतु विजयं मम ।।

यात्रा समय माता अपराजिता की स्तुति से यात्रा में कोई विघ्न उपस्थित नहीं होता- 

शृणुध्वं मुनय: सर्वे सर्वकामार्थ सिद्धिदाम्। 

असिद्ध साधिनीं देवीं वैष्णवीम अपराजिताम्।।

नीलोत्पल दल श्यामां भुजङ्गाभरणोज्ज्वलाम्।

 बालेन्दुमौलिसदृशीं नयनत्रितयान्विताम्।।

 पीनोत्तुङ्गस्तनीं साध्वीं बद्धपद्मासनां

 शिवाम्। अजितां चिन्तयेद्देवीं वैष्णवीमपराजिताम्।।

 

शमी पत्ता एवं फूल का महत्व शिव कृपा -

-शनि दोष ,साढ़ेसती,लग्न,पंचम द्ष्टवादश,चतुर्थ गोचर शनि दोष के लिए शनिवार को अवश्य शमी वृक्ष पूजा करे | अनादी देव शिव पर शमी पत्र अर्पण का सर्वाधिक महत्व-

- आक के फूल को चढाने से बहुत मिलता है , हज़ार आक के फूलों कि अपेक्षा एक कनेर का फूल, हज़ार कनेर के फूलों के की अपेक्षा एक बिल्व-पत्र ,हजार बिल्वपत्रों के बराबर एक द्रोण या गूमा फूल ; हजार गूमा के बराबर एक चिचिड़ा, हजार चिचिड़ा के बराबर एक कुश का फूल, 

 हजार कुश फूलों के बराबर एक शमी का पत्ता, हजार शमी के पत्तो के बराकर एक नीलकमल, हजार नीलकमल से ज्यादा एक धतूरा और हजार धतूरों से भी ज्यादा एक शमी का फूल शुभ और पुण्य देने वाला होता है। 

दशमी को नीलकंठ या खंजन पक्षी दर्शन विशेष शुभ अनुकूल भविष्य संकेत-'

                                              मंत्र-

वासुदेव स्वरूपेण सर्व काम फल प्रद।
पृथिव्याम अवतीर्ण असि खंजरीट नमोस्तुते।

 खंजनाय नमस्तुभ्यं सर्व अभीष्ट प्रदाय च।।

 नीलकंठाय  भद्राय भद्र रुपाय ते नमः ।
भद्रं त्वम देही मे  भद्रम आशाम पूरय पूरय।

 स्वस्तिकोअसि कुरु खंजरीट नमोस्तुते ।।
नारायण स्वरूपाय  संवत्सर सुखाप्रद ।
नीलकंठ महादेव खंजरीट नमोस्तुते ।।
देव दानव यक्षणाम नाराणम पुष्टिवर्धनम ।दर्शन तव भद्रस्य विष्णु रूप नमोस्तुते।।

                         शमी पूजा मन्त्र-

 “शमी शमयते पापं शमी लोहित कण्टका। बाण रामस्य प्रिय वादिनी ।

 करिष्यमाण यात्रायां यथा काल सुखं मया।

 तत्र निर्विघ् नकत्र्री त्वं भव श्रीराम पूजिते।।”

 मंत्र अर्थ- शमी पापों का शमन करती है।यात्रा के पूर्व स्मरण से सफलता देती है।

 

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28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामान्य रूप से सभी मंगल कार्यों क

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नारंगी एवं लाल रंग के वस्त्र वस्तुओं का विशेष महत्व है। लाल पुष्प अक्षत रोली कलावा या मौली दूध द

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र हो | - क

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -