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दुर्गा आराधना - नवरात्रि पर्व मनोकामना पूरक, दुर्गति नाशक( पूजा सरल विधि रहस्य)

नवरात्रि पर्व मनोकामना पूरक दुर्गति नाशक पूजा विधि रहस्य
(पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी )
नवरात्रि का पर्व दिनांक 21 सितंबर से 29 सितंबर 2017
कलश की स्थापना
नव दुर्गा पूजा में सबसे अधिक प्रधानता रहती है कलश की स्थापना|
कलश स्थापना का समय प्रतिपदा तिथि में ही श्रेष्ठ होता है |इस वर्ष कलश स्थापना का समय प्रातः 8:00 बज के 6:00 मिनट से 10: 21 बजे तक उत्तम रहेगा|
द्वितीया तिथि में कलश स्थापना या घट स्थापना शुभ नहीं मानी गई है |
दुर्गा जी को बुलाएं |सप्तमी तक कलश में दुर्गा जी बिराजित होती हैं |
कलश धातु एवं उसमे मनोकामना के लिए क्या डाले –
कलश तांबे का हो तो अति उत्तम है| दुर्गा यंत्र बनाए उस पर कलश की स्थापना करें |कलश में नदी ,तीर्थ जल एवं आम बट पीपल पाकड़ आंवला मोरपंखी के पत्ते डालें |कलश में धन के लिए मोती, अभिलाषा पूर्ण के लिए कमल पुष्प, विजय के लिए अपराजिता पुष्प ,सर्व सुख के लिए पंचरत्न ,एवं सुरक्षा के लिए नवरत्न का प्रयोग कर सकते हैं|
कलश कैसे रखे –
* कलश पर कटोरी में चावल रखें या जौ रखना चाहिए ,यह टूटे हुए नहीं हो |
*कटोरी पर नारियल इस प्रकार रखें कि उसका पिछला भाग , पूछ वाला भाग देवी की ओर हो और मोटा भाग या  बड़ा हिस्सा पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए|
* नारियल कैसे रखे कलश पर -सावधान रहे , कभी भी कलश में नारियल को फंसाकर उल्टा या सीधा रखना (यज्ञ मीमांसा ग्रंथ के आधार पर) अत्यंत हानिप्रद एवं नियम विरुद्ध है|
*कौन से पुष्प अर्पित करे - दुर्गा जी को बिल्व, चमेली ,गुड़हल, सुगंधित पुष्प, कनेर ,चांदनी आदि विशेष प्रिय है |इसलिए दुर्गा जी को इन्हीं पुष्पों को अर्पित करना चाहिए इसके अतिरिक्त तुलसीदल भी अर्पित किया जा सकता है|
राहुकाल अथवा गुलिक काल दुर्गा पूजा हेतु श्रेष्ठ -
पाठ एवं जप आदि के लिए सर्वश्रेष्ठ समय राहुकाल माना जाता है ,क्योंकि दुर्गा देवी दुर्गति नाश करती हैं ये अशुभ काल का नाश करती हैं ||इसलिए राहुकाल अथवा गुलिक काल दुर्गा पूजा के लिए श्रेष्ठ माने गए हैं|
*यदि आप 9 दिन व्रत ना रख सके तो सप्तमी प्रतिपदा अष्टमी का व्रत अवश्य  रखना चाहिए |
* दुर्गा जी की पूजा इस तिथ्यों में करने से आगामी छह माह सुरक्षा कवच रहेगा | प्रतिपदा सप्तमी अष्टमी यह तीन तिथियां दुर्गा पूजा में विशेष महत्व रखती हैं |
*देवी दुर्गा की पूजा करते समय पुरुषों को श्वेत वस्त्र एवं महिलाओं को लाल मिश्रित रंग के वस्त्र या नारंगी रंग के वस्त्र धारण करना चाहिए
कन्या भोजन * बहुत उत्तम होता है कि हम प्रतिदिन एक कन्या को भोजन कराएं|
अथवा अष्टमी नवमी को नौ कन्या एवं 1 बच्चों को भोजन कराने के उपरांत उनको उपहार दें|
पूजा के शुभ समय –किस राशी के लिए कब शुभ समय होता है -
*सामान्य दृष्टि से अभिजीत मुहूर्त जो बुधवार का दिन छोड़कर लगभग 11:50 से 12:30 के मध्य रहेगा या मनोकामना पूर्ति के लिए उत्तम समय माना गया है|
*यह समय श्रेष्ठ सिद्ध होता है कन्या एवं तुला राशि के लिए परंतु मेष , सिंह धनु मीन राशि वालों के लिए यह उतना सिद्ध प्रदेश समय नहीं है|
*उत्तम होरा - 11:00 बज के 13 मिनट से 12:00 बचकर 13 मिनट तक रहेगी|
*पूजा के लिए स्थिर वृश्चिक लग्न भी महत्वपूर्ण मानी गई है जिसका समय 10:19 से 12:35 तक उत्तम या उचित होगा|
*सामान्य- दिन में -सिंह  सिंह लग्न दिन में 2:24 से 25 मिनट से 4:00 बज के 37 मिनट तक रहेगी यह लगना विशेष रुप से तुला वृश्चिक राशि के लिए उत्तम दृश्य कन्या मकर राशि के लिए अनुपयोगी होती है|
* यदि आप ब्रह्म मुहूर्त में अथवा सूरत से पूर्व पूजा कर श्रेष्ठ लाभ प्राप्त करना चाहते हैं तो कुंभ लग्न सर्वाधिक श्रेष्ठ सिद्ध होती है इसका समय 3:12 से 4:45 तक विशेष फलदाई है
नवरात्रि में पूजा के रात्रि कालीन समय भी विशेष महत्व रखते हैं ,क्योंकि दुर्गा देवी कष्ट दूर करने वाली है और शक्ति प्रधान है |इसलिए इनका रात्रि पूजा में विशेष महत्व है |
*हवन देवी दुर्गा का रात्रि काल में विशेष महत्व रखता है एवं शीघ्र सफलता प्रदान करता है|
रात्रि काल में पूजा के लिए वृषभ लग्न जो की कर्क सिंह राशि के लिए उत्तम एवं मिथुन तुला कुंभ राशि के लिए अनुपयोगी है रात को 9:30 से 10:40 तक रहेगी |
दीपक
किसी भी पूजा में दीपक का अपना विशेष महत्व होता है इसलिए तांबा चांदी धातु या मिट्टी का दीपक उत्तम है लोहे का या स्टील का दीपक श्रेष्ठ नहीं माना जाता है|
* तेल का दीपक वाई और एवं घी का दीपक दाहिनी ओर रखना चाहिए|
आरती -प्रतिदिन आरती की जाना चाहिए और सर्वप्रथम दीपक प्रज्वलित कर दीपक का मंत्र पढ़ना चाहिए|
*दीपक की वर्तिका
सफेद वर्जित है अतः या तो आप रुईको लाल नारंगी रंग में रंग ले या मौली या कलावे का प्रयोग करें जिसमें लाल नारंगीरंग पूर्व से ही उपस्थित होता है |उसकी वर्तिका को उत्तर दिशा में मुंह करके मुंह होना चाहिए अथवा आप चारों दिशाओं चार वर्तिका / बत्ती  वर्तिका रख सकते हैं|
पूर्व ,ईशान एवं उत्तर दिशा उत्तरोत्तर शुभ होती हैं | कलावा श्रेष्ठ है क्योकि उसमे तंतुओं या धागों की संख्या अन्य से अधिक होती है |११ धागों वाली वर्तिका अतिउत्तम होती  है |
दीपक प्रज्वलित करने के बाद मंत्र पढ़ना चाहिए-
 दीप ज्योति परब्रम्ह दीप ज्योति जनार्दन |
 दीपो हरतु मे पापम् पूजा दीपम नमोस्तुते |
शुभम करोति कल्याणम आरोग्य सुख संपदाम |
 शत्रु बुद्धि विनाशाम च मम सर्व बाधा हरणम दीप ज्योति नमोस्तुते |

*कामना पूरक उपाय -
किसी विशेष मनोकामना के लिए हमें अर्गला के कोई भी इस मंत्र का उपयोगिता के आधार पर संपुट लगाना चाहिए |
*बाधाओं को नाश करने के लिए द्वादश अध्याय का पाठ कर उसका हवन करें |
* सुख समृद्धि के लिए दुर्गा सप्तशती के चतुर्थ अध्याय के 34-37 श्लोक से उसका हवन करें |
*लक्ष्मी प्रसन्नता के लिए दो  दूसरे अध्याय क्या हुआका पाठ एवं हवन करना चाहिए|
 सप्तमी तिथि को द्वार पूजा का विधान-
सर्व बाधाओं से मुक्ति के लिए हमें नकारात्मक ऊर्जा को प्रवेश करने से रोकने के लिए ,सप्तमी तिथि को द्वार पर दो घट लाल वस्त्र  में लपेटकर |
आम के पत्ते एवं दूर्वा लगाकर रखें |
*घट के पीछे दीपक जलाएं| बिल्वपत्र सहित आम अशोक तुलसी पीपल बट आंवला शमी अपराजिता पारिजात पत्तों को अर्पित कर पूजा करें|
*द्वारपूजा स्वस्तिक एवं ओम से प्रारंभ करें|
*दसवीं से अमावस्या तक मध्यान में उग्र चंडा देर्वी  की पूजा करें
*आद्रा नक्षत्र में 18 भुजा वाली उग्र चंडिका का ध्यान कर आवाहन कर हमें द्वार पूजा करना चाहिए इसका विशेष मंत्र है-
रावणस्य वध  अर्थाय ,रामस्य  अनुग्रह च ,अकाले ब्रह्मणा बोधो देव्यस्त्वयी कृता पूरा |
अहम् अपि अश्विने कृष्णे नव्म्याम बोधयामी अहम् |
मन्त्र- एम् ह्रीं श्रीम क्लीं भगवती महोग्र चण्डिके उत्तिष्ठ उत्तिष्ठ|
निद्राम जही जही प्रति बुध्यस्व बुध्यस्व ,मम शत्रून हाँ हाँ पातय  पातय स्वाहा |
नवरात्री में दुर्गा जी को अर्पण या पूजन सामग्री –
गोरोचन,सुंगंध,सुगन्धित पुष्प,धूप,गुग्गल ,कपूर, कमल गटा,श्वेत सरसों ,कुष्मांड(सफेद कुम्हडा)
जायफल, आम के पत्ते ,दूर्वा,शमी,बिल्व,सुपारी ,घी आदि |
पूजा प्रारंभ – पूजा की छोटी २ बाते ध्यान रखना अति आवश्यक है | शुद्ध वाचन के बिना अनिष्ट भी होता है |
*कलश स्थापन एवं दीपक प्रज्वलित करने के पश्चात उत्तर या पूर्व मुख कर ,पुस्तक की पूजा करे |
नवग्रह का स्मरण उनकी कृपा के लिए - नवग्रह्भ्यो नम:|
शाप नाशन मन्त्र -देवी की मन्त्र  शक्ति को श्राप दे कर रोका गया इसलिए ,शाप से मुक्ति की प्रार्थना आवश्यक -ॐ ह्रीं ह्रीं ह्री ह्रां ह्रां चंडिका देव्यै शाप नाश अनुग्रह कुरु कुरु स्वाहा |
ॐ ब्रह्म वशिष्ठ विश्वामित्र शापाद विमुक्ता भव् |
कुल्ल्का मन्त्र -देवी पूजा के पूर्व उनका कुल्ल्का मन्त्र पढने के पश्चात ही मंत्रो का फल मिलता है ,इसलिए कुल्ल्का मन्त्र परमावश्यक है – तीन बार पढ़े /बोले ,दुर्गा पाठ गा कर या सगीत के साथ या मन मे पढना वर्जित है शक्ति  का उद्घोष उच्चस्वर में ही  वाचन या पठन करे |
 क्रीम हूं स्त्रीम ह्रीं फट |
अंग - न्यास – मन्त्र के साथ अंग स्पर्श –
ॐ मूलं (नौ बार बोले )नम: शिरशे स्वाहा |(सर का स्पर्श )
ॐ मूलं (नौ बार बोले )नम: कवचाय हम  |(दोनों हाथ क्रास में कंधे से  स्पर्श )
ॐ मूलं (नौ बार बोले )नम: नेत्र त्रयाय वोषट |(नेत्र एवं भ्रूमध्य  का स्पर्श )
21 सितम्बर से2 सितम्बर –मन्त्र,अर्पण सामग्री विवरण -
21 सितम्बर -
मन्त्र -ऊँ जगतपूत्ये जगद् वन्द्ये शक्ति स्वरूपिणी पूजाम ग्रहण कौमारी जगत् मातर नमोस्तुते। 
ऊँ शां शीं शूं शैलपुत्र्यै मे शुंभ कुरू 2 स्वाहा |
ब्राह्मी-  ऊँ आं हौं ग्लूं क्रौ व्रीफट् ।
अर्पण सामग्री -सिंदूर, लाजा अक्षत , खीर, लाल एवं श्वेत पुष्प, फल, मिठाई      गाय,घी, भजिया, शकर दूध ,पीली वर्तिका |
22 सितम्बर -
मन्त्र-ऊँ त्रिपुरां त्रिगुण धारां मार्ग ज्ञान स्वरूपिणी्। त्रैलोक्य वंदितां देवी त्रिमूर्ति पूजयाम् अहम्।
ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रूं ब्रह्मचारिण्यै नमः।
महेष्वरी ऊँ ह्रीं नमो भगवती महाष्वर्ये- स्वाहा ।
अर्पण -अंगूर, खीर,काजल, महावर, गुड़, चूड़ी, पुष्प, लाल वó    शकर, शहद, खीर,लवण रहित|
वर्तिका- अनेक रंग की|
23सितम्बर -
-मन्त्र -ऊँ कालिकां तु कालातीतां कल्याण हृदयाम् षिवम्। कल्याण जननीं नित्यं कल्याणीं पूजयाम्य अहम्।
ऊँ ह्रीं क्लीं श्रीं चंद्रघंटायै स्वाहा ।
क्रौं कौमार्ये नमः।   
अर्पण -लाल चंदन, पुष्प, दर्पण, सिंदूर, अनार, लद्दूू, पान,शहद, चंदन, श्वेत पुष्प, दूध, खीर,पुआ, शहद, घी,तिल|
      वर्तिका –लाल+नारंगी
24सितम्बर -
मन्त्र -ऊँ अणिमादि गुणोदारां मकराकार चक्षुषम्। अनंज शक्ति भेदाम ताम कामाक्षीम् पूज्ययाम्य हम्।
ऊँ ह्रीं नमो भगवती कूष्माण्डायै मम शुभाषुभं स्वप्ने सर्व प्रर्दषय प्रर्दष्य। 
अर्पण -चंदन, नींबू, खजूर, काजल, बिल्व पत्र,शहद, चंदन, श्वेत पुष्प, दूध, खीर,दूध, चना, लड्डू |
वर्तिका हरी+लाल
 25 सितम्बर -
मन्त्र - ऊँ चण्डवीरां चण्डमायां चण्डमुडं प्रभंजनीम् तां नमामि च देवेर्षीं चण्डिकां पूजयाम्य अहम्।
ऊँ ह्रीं सः स्कंदमात्र्यै नमः।
वाराही- ऐं ग्लौं ठं ठं ठं हुं स्वाहा।   अर्पण -जायफल, गेहूँ, दही, शहद,गूगल,            तिल, जौ, उड़द, विष्णुकांता पुष्प,शांक, शहद, लड्डू,हरा धनिया|
वर्तिका रंग -  लाल
26सितम्बर -
      मन्त्र -ऊँ सुखानंद करीं शांतां सर्व देत्यै नमस्कृताम्। सर्व भूतात्मिकां देवीं शांभवी पूजयाम्य अहम्।
ऊँ ह्रीं श्रीं कात्यायन्यै स्वाहा।
ऊँ श्रीं ह्रीं ऐ सौः क्लीं इंद्राक्षि वज्र हस्तो फट् स्वाहा।
 अर्पण -रक्तचंदन,दुर्वा, जायफल,केला,ó नीलकमल, लाल पुष्प, रिबिन, गुड़ गुड़, मिश्री, खीर बिल्व पत्र|
र्तिका रंग -  लाल
27 सितम्बर -
मन्त्र - ऊँ चण्डवीरा चंडमायां रक्तबीज प्रभंजनीम्। तां नमामि च देवेषीं गायत्री पूजयाम्य अहम्।
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्रि सर्व वष्यं कुरू 2 वीर्य देहि 2 गणेष्वर्ये नमः।
अर्पण -रत्न,औषधियुक्तजल, हल्दी,ईख,खीर,केसर,श्रीखंड, बिल्वपत्र,श्रीफल, मोदक, खीर, खजूर, कलावा, फल, पूड़ी मुनक्का, मावा- मिठाई|
वर्तिका रंग -नीली लाल|
28 सितम्बर -
मन्त्र - ऊँ सुन्दरी स्वर्ण वर्णागीम् सुख सौभाग्य दायिनीम् संतोष जननीं देवीं सुभद्राम् पूजां अहम्।
ऊँ ह्रीं गौरी दयिते योगेष्वरि हुं फट् स्वाहा।
ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।
अर्पण –खीर,पूड़ी केसर, हींग, जायफल खीर, लाल एवं श्वेत पुष्प, फल, खीर, मीठी पूड़ी,कच्चा भोजन      वर्तिका रंग –हरी लाल
29 सितम्बर 
 मन्त्र -ऊँ दुर्गमे दुस्तर कार्ये भव दुख विनाशिनीं। पूजां अहम् सदा भक्तया दुर्गा दुर्गति नाषिनीम्।
ऊँ ह्रीं सः सर्वार्थसिद्धि दात्री स्वाहा।
 क्षौं नारसिंहये नमः। ह्रीं षिव दूत्यै नमः। 
संकल्प-पूर्ति   ,-तिल, शक्कर चूड़ी, गुलाल, शहद, पान, खीर, मीठी पूड़ी, पान|
            वर्तिका रंग सफेद लाल
प्रतिदिन क्षमा याचनाः- मंत्र हीनम् क्रिया हीनम् भक्ति हीनम् सुरेष्वरिः तत् सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरी । पुष्पं सर्मपयांमि |
Regards,Pt V K Tiwari 
(Horoscope, Vastu,​ ​PalmistryNumerology,Fengshui)
Mobile - 9424446706 
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श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र हो | - क

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -