सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मकर का शनि-फल (जानिए),रहस्य 2020 |बिना राशि के भी जानिए |



शनि-फल रहस्य 2020 शोधपूर्ण-  बिना राशि के भी जानिए |
-शनि के परिणाम जानने की राशि स्थूल विधि पर्याप्त नहीं ,इसके साथ नाम,लग्न,शनि किस राशि पर जन्म कुंडली मे,दशा,शनि किस ग्रह पर से कितनी दूरी पर आदि निर्णायक हें
केवल राशि 
आधार पर चिंता करना उचित नहीं हे | 
यदि गुरु गोचर मे आपकी राशि के अनुकूल हे तो अशुभ प्रभाव शनि के 50%भी नहीं होंगे |
मंगल,सूर्य,गुरु,राहू आदि के शुभ प्रभाव के कारण शनि प्रतीक्षा इनके अशुभ होने की करेगा | 
   गुरु ग्रहके आपकी राशि पर 2020 मे क्या प्रभाव हें जानने के लिए -
https://ptvktiwari.blogspot.com/2019/10/2019.html

  ध्यान रखे - शनि अपनी एवं मित्र  राशियों  यथा मकर,कुम्भ,तुला,वृष,मिथुन कन्या राशि या लग्न वालों के लिए अशुभ कम होता हे |  लग्न वालों को शनि मंत्र स्त्रोत उपयोग करना उचित हे परंतु शनि की वस्तुएं दान करना उचित नहीं कहा जा सकता,सारसो तैल,लोहा,आदि |
************
शनि के प्रभाव जानने के लिए- विशेष उपयोगी लेख-( नाम से शनि के प्रभाव पूर्व मे पढ़ चुके होंगे यदि नहीं तो -  2020 मे शनि के शुभ अशुभ प्रभाव के विषय  मे अधिक जानकारी के लिए पढ़िये 
1-शनि का राशियों पर शुभ अशुभ प्रभाव -24 जनवरी 2020   से
2--नाम से जाने,24 जनवरी  शनि 2020 से शनि के प्रभाव
https://ptvktiwari.blogspot.com/2019/12/2020.html
             आपको अपने जन्म के वर्ष की जानकारी हो तो भी यह लेख शनि के शुभ अशुभ प्रभाव की जानकारी देगा |निम्न मे से कोई ही जानकारी हो आप शनि की कारगुजारी जान सकते हैं 
1-जन्म किस लग्न हुआ? नहीं मालूम  ,कोई बात नहीं ,
2-जन्म किस नक्षत्र मे हुआ? नहीं मालूम  ,कोई बात नहीं ,
3-आपको ,आपकी राशि नहीं मालूम कोई बात नहीं,
4-किन माह के मध्य हुआ ?नहीं मालूम
5-आपका जन्म किस वर्ष मे हुआ ? शनि प्रभाव जानिए |
राशि, जन्म -माह,जन्म नक्षत्र,वर्ष अवधि ,
(वृष,मिथुन,कन्या,तुला,मकर,कुम्भ लग्न वालों को अनुकूलन रहेगा।)
 जन्म अबधि के अनुसार शनि के अशुभ प्रभाव -
जिनका जन्म 14 जनवरी से 13 फरवरी ;
14 
अप्रैल से 13 मई ;
17 
जुलाई से 16 अगस्त ;
17 
नवंबर से 16 दिसंबर ;की अवधि में हुआ होगा उनको शनि ,रोजगार व्यापार में समस्या उत्पन्न करेगा .राज्य पक्ष से कष्ट होगा. राजनेताओं को परेशानी होगी .पिता के स्वास्थ्य उनके सुख में कमी होगी .
            जिनका जन्म निम्नांकित वर्ष,माह,अवधि में हुआ होगा-
उनको कनिष्ठ वर्ग से हानि .
भूमि सामान्य संपत्ति चिंता,पैरों में दर्द ,दुख वियोग की स्थिति मिल सकती है ।
-जून 46 से 27 जुलाई 48,-12.11 .1955 से 2.6.1958.-फरवरी 1958 से नवंबर 1958.-23 सितंबर 1945 से 22 दिसंबर 1945.-17 जून 1968 से 27 सितंबर 68.-मार्च 1969 से 27 अप्रैल 71 
-फरवरी 1961 से  17 सितंबर 1961
-8अक्टूबर 1961- जनवरी 64 .-24जुलाई 1975 से सितंबर1977
-21-दिसंबर1984 से 31 मई 1985
-18 सितंबर1985 से 16 दिसंबर 1987
उक्त अवधि में  जिनका जन्म हुआ होगा उनको समस्याएं अवश्य उत्पन्न हो सकती हैं ।
जन्म  लग्न के आधार पर शुभ ,अशुभ शनि के प्रभाव-
1-वृष,मिथुन,कन्या,तुला,मकर,कुम्भ लग्न वालों को अनुकूलन रहेगा।
2-मेष,कर्क,धनु लग्न मे जन्म वालों को अवश्य ही प्रतिकूलन होगा |
                 शनि  राशि फल राशि-
धनु राशि पर -
शनि का अंतिम पड़ाव रहेगा . इस वर्ष शनि धनु राशि को परिस्थिति के अनुसार चलने को बाध्य करेगा.गुरु ग्रह के कारण कोई विशेष प्रतिकूल प्रभाव संभव नहीं है |
12 
अगस्त तक शनि के कुप्रभाव अधिक दिखाई देंगे उसके बाद आगामी 300 दिन तक शनि के कोई भी प्रभाव नहीं होंगे वरन अनुकूल स्थितियां शनि पैदा करेगा.
      
मकर राशि पर
शनि का प्रभाव शुरू हो चुका है .यह 14 अगस्त तक स्थान परिवर्तन ,भागदौड़ ,यात्रा अधिकता,विदेश,नए परिचय नए संबंधएवं स्थाई संपत्ति  भवन आदि निर्माण या क्रय-विक्रय आदि की स्थितियां बनाएगा.
इसके पश्चात आगामी 16 माह तक शनि सुखद स्थितियां निर्मित करता रहेगा.
कुंभ राशि पर-
शनि की साढ़ेसाती प्रारंभ होगी. प्रथम ढाई साल में या मई तक विशेष कष्टप्रद स्थितियां निर्मित करेगा.
इसके पश्चात अनुकूलन की स्थितियां बनेंगी ।
          विभिन्न नक्षत्र एवं -राशियों पर शनि  प्रभाव-
1- 
मेष राशि में शनि मिले-जुले प्रभाव देगा .इसमें भी अश्विनी नक्षत्र पर कोई भी प्रतिकूल प्रभाव नहीं होगा. जबकि जिनका जन्म भरनी है ,कृतिका नक्षत्र पर हुआ होगा उनको शनि निश्चित रूप से प्रतिकूल स्थितियों मैं डालेगा .

2-वृषभ
राशि में शनि के कुप्रभाव अत्यल्प होंगे .और विशेषता रोहिणी नक्षत्र पर शनि का कोई प्रतिकूल प्रभाव न होकर सुखद स्थितियां बनेंगी.
चांदी के पाए से शनि का प्रवेश है .
कृतिकामृगशिरा नक्षत्र कुप्रभावी रहेंगे.
3-
मिथुन राशि में शनि प्रबल कष्ट,या आपत्ति-विपत्ति कारी स्थिति में है.
सबसे अधिक शारीरिक कष्ट एवं प्रयास विफलता की प्रतिक्रिया निर्मित करेगा .परंतु आद्रा नक्षत्र पर इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होगा .मृगशिरा एवं पुनर्वसु नक्षत्र में जन्म हुआ होगा उनको विशेष कष्ट की स्थितियां बनेंगी।
4- 
कर्क राशि में शनि तांबे के पाए से मिला जुला प्रभाव। तांबे का प्रवेश हुआ है ।
पुनर्वसु पर सामान्य प्रभाव रहेगा। अश्लेषा नक्षत्र पर किसी भी प्रकार का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होगा ।
जबकि पुनर्वसु नक्षत्र में जन्म हुआ होगा उनको कष्टदायक स्थितियां उत्पन्न कर सकेगा।
5- 
सिंह राशि में शनि स्वर्ण पाद से अनुकूल स्थितियां बनाएगा ।
जिसमें मघा नक्षत्र में विशेष प्रगति के योग बनाएगा एवं जिनका जन्म पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में जन्म आंशिक रूप से अनुकूल स्थितियां निर्मित कर सकता है ।
अन्यथा शनि के शुभ प्रभाव ही इस वर्ष प्राप्त होंगे ।प्रत्येक क्षेत्र में अनुकूलता मिलेगी ।
6-
कन्या राशि में चांदी के पाये से शनि का प्रवेश है ।ढैया समापन.
यह प्रयासों पर सफलता देगा ।
हस्त नक्षत्र को प्रत्येक दृष्टि से अनुकूलता प्रदान होगी। जबकि चित्रा नक्षत्र आंशिक रूप से कष्ट में रहेगा ।
उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र वालों को विशेष रूप से शनि के दान आदि करना चाहिए ।प्रतिकूलता अधिक रहेगी।
7-
तुला राशि पर – ढैया प्रारम्भ-



शनि के प्रतिकूल प्रभाव लोहपाद के कारण बहुत अधिक होंगे ।
प्रत्येक क्षेत्र में बाधाएं दिन विवाद कष्ट होंगे ।
चित्रा एवं विशाखा नक्षत्र पर आपत्ति विपत्ति की स्थिति रहेगी ।
*
जबकि स्वाति नक्षत्र में उत्पन्न हुए लोगों को अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव पड़ेंगे।
8- 
वृश्चिक राशि के तांबे से  प्रविष्ट है ।
ज्येष्ठा नक्षत्र वालों का सर्व सफलता मिलेगी ।
अनुराधा वालों को सामान्यता अनुकूल रहेगा एवं प्रगति होगी ।
विशाखा नक्षत्र को सामान्य रूप से प्रतिकूलता दिख सकती है अन्यथा वृश्चिक राशि के लिए शनि अनुकूल है।
9- 
धनु राशि शनि का प्रवेश चांदी के पाये से हुआ है इस वर्ष कोई विशेष प्रतिकूल स्थितिया नहीं बनेगी ।
जबकि मूल नक्षत्र वालों के लिए अनुकूल स्थिति रहेगी। पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र वालों को कष्ट हो सकता है ।  रोग से कष्ट होगा ।
10-
मकर राशि शनि का स्वर्ण पाद से प्रवेश एवं शनि की राशि होने के कारण प्रतिकूलता अत्यल्प होगी।
श्रवण नक्षत्र में प्रगति होगी।
धनिष्ठा नक्षत्र को भागदौड़ एवं खर्च बढ़ेगा ।
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के लिए  प्रतिकूलता रहेगी ।
11-
कुंभ राशि वालों के लिए शनि का लोह पाद से प्रवेश प्रत्येक क्षेत्र में समस्या उत्पन्न करने वाला रहेगा ।
परंतु अति मित्र की श्रेणी के कारण एवं शनि के स्वयं की राशि होने के कारण प्रतिकूलता कम रहेगी। खर्चविवाद,रहेंगे।
पूर्वाभाद्र नक्षत्र वालों के लिए यह विशेष कष्ट है ।
जबकि शतभिषा नक्षत्र पर जिनका जन्म हुआ है उनके लिए सामान्यता अनुकूल स्थितियां बनी रहेंगी।
12- 
मीन राशि के लिए स्वर्णपाद है इसलिए प्रत्येक दृष्टि से अत्यंत श्रेष्ठ वर्ष।
पिछले 30 वर्षों में श्रेष्ठ सिद्ध हो सकता है ।
रेवती नक्षत्र के लिए सर्वाधिक अनुकूल है ।
उत्तराभद्र में जन्म लेने वालों के लिए सामान्य उपयोगी है।




************
  
प्रचलित नाम के प्रथम अक्षर से ,शनि के उत्तम प्रभाव-दैनिक जीवन,रोजगार,व्यवहार में -
चु,के,चो,,ला,रूरेरोताया- यू ,भा-भी खा गो,शा -शु स-सु,देदो ,चा,ची जिनके नाम का प्रथम अक्षर है उनके लिए शनि के कोई प्रतिकूल प्रभाव होने की संभावनाएं नहीं है ।
            जन्म अबधि के अनुसार शनि के अशुभ प्रभाव -
जिनका जन्म 14 जनवरी से 13 फरवरी ;
14 
अप्रैल से 13 मई ;
17 
जुलाई से 16 अगस्त ;
17 
नवंबर से 16 दिसंबर ;की अवधि में हुआ होगा उनको शनि ,रोजगार व्यापार में समस्या उत्पन्न करेगा .राज्य पक्ष से कष्ट होगा. राजनेताओं को परेशानी होगी .पिता के स्वास्थ्य उनके सुख में कमी होगी .
               जिनका जन्म निम्नांकित वर्ष,माह,अवधि में हुआ होगा-
उनको कनिष्ठ वर्ग से हानि .
भूमि सामान्य संपत्ति चिंता,पैरों में दर्द ,दुख वियोग की स्थिति मिल सकती है ।
-जून 46 से 27 जुलाई 48,-12.11 .1955 से 2.6.1958.-फरवरी 1958 से नवंबर 1958.-23 सितंबर 1945 से 22 दिसंबर 1945.-17 जून 1968 से 27 सितंबर 68.-मार्च 1969 से 27 अप्रैल 71 
-फरवरी 1961 से  17 सितंबर 1961
-8अक्टूबर 1961- जनवरी 64 .-24जुलाई 1975 से सितंबर1977
-21-दिसंबर1984 से 31 मई 1985
-18 सितंबर1985 से 16 दिसंबर 1987
उक्त अवधि में  जिनका जन्म हुआ होगा उनको समस्याएं अवश्य उत्पन्न हो सकती हैं ।
 उपाय पूर्व सावधानी -शनि स्त्रोत,मंत्र,पीपल वुक्ष पुजा |
      
कुंडली के आधार पर शनि को या तो शक्तिवान बनाये या दान शनि की कुटिलता कम करे का करे।
परामर्श किसी सुयोग्य जानकार व्यक्ति से ही करे।
एक ही राशि के लिए शनि कारक या मारक अकारक हो सकता है। इसका निर्णय जन्म कुंडली के साथ षोडश वर्ग एवं जेमिनी कारक से करे।
                      दशा के अनुसार जन्म नक्षत्र से शनि फल- –
-उत्तरा फाल्गुनी,अश्वनी उत्तरषाढ़ा मे जन्म वालों को राहू की दशा के कारण राहू गृह का मंत्र एवं तिल दान शनिवार को करना चाहिए |
-आर्द्र,स्वाति,शतभीषा नक्षत्र मे जन्म वालों को विशेष रूप से 25 से कम आयु वाओ को शनि की दशा चलेगी इसलिए शनि स्त्रोत, सारसो तेल ,तिल दान,पीपल वृक्ष पर दीपक शनिवार को बार्फन |
-3- पुनर्वसु,विशाखा,पूर्वभाद्र-नक्षत्र वाले जिनकी आयु 25 वर्ष से कम  उनको शनि के कुप्रभाव नहीं होंगे शुक्र की दशा के कारण ।


शनि के शुभ अशुभ प्रभाव मे गुरु /ब्रहस्पति ग्रह बहुत महत्व पूर्ण है ,यदि वर्ष 202 0 मे गुरु ग्रह अनुकूल है तो आपको हानी कष्ट अत्यल्प  होगा ,शनि के शुभ प्रभाव अधिक होंगे |इसके लिए देखिये-

https://ptvktiwari.blogspot.com/2019/10/2019.html


*Astro Vastu Do’s Don’t’s  for Better Life  Planning
  Vastu-with experienced Interior expert team



टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्राद्ध की गूढ़ बाते ,किसकी श्राद्ध कब करे

श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चाहिए । पिता जीवित हो तो, गया श्राद्ध न करें । २. मां की मृत्यु (सौभाग्यवती स्त्री) किसी भी तिथि को हुईं हो , श्राद्ध केवल

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहि

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती है | अवि

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा जाता है   | पितृ पक्ष में अपने मित्रगण के मरण तिथि

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक होता है | पितृ श्राद्ध किस देव से स

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामान्य रूप से सभी मंगल कार्यों क

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नारंगी एवं लाल रंग के वस्त्र वस्तुओं का विशेष महत्व है। लाल पुष्प अक्षत रोली कलावा या मौली दूध द

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र हो | - क

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -