दिव्य वरदायी 29 जनवरी चतुर्थी पर्व दिव्य वरदायी 29 जनवरी चतुर्थी पर्व
ज्योतिष के अनुसार तुला राशि एवं मकर राशि वालों को इस स्वर्णिम अवसर पर अवश्य शिव गणेश एवं उमा देवी का पूजा समन करना चाहिए ।
तुला और मकर राशि के लिए यह तिथि पूजा की दृष्टि से सुरक्षा प्रद अनिष्ट रोकने में सफल है ।
तुला मकर लग्न या जिनका नाम का प्रथम अक्षर र,त, ज्ञ,ख, भो अक्षर से प्रारंभ हो उनके लिए भी बाधाएं हैं एवं आपत्ति विपत्ति रोकने की दृष्टि से इस पर्व पर यदि व्रत न भी रहे तो भी शिव पार्वती एवं गणेश का पूजन कर अपना भविष्य सुरक्षित कर लेना चाहिए।
माघ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का विशेष महत्व है । एक प्रकार से यह माघ मास का दिव्य दिन है
। जिसका विभिन्न ग्रंथों में विशद वर्णन है ।
ब्रह्म पुराण में गौरी व्रत ,निर्णय अमृत में वरदा चतुर्थी, देवी भागवत में कुंड चतुर्थी ,
त्रिस्थली सेतु ग्रंथ में ढूंढी पूजा, भविष्य पुराण में शांति चतुर्थी ,एवं मत्स्य पुराण अंगारक चतुर्थी ,भविष्य पुराण गणेश व्रत ,सुख चतुर्थी ,हेमाद्री में यम व्रत आदि अनेक स्थानों पर इस चतुर्थी का विशेष महत्व है ।
धर्म प्राण जन को चाहिए कि इस दिन व्रत कर विभिन्न देवी-देवताओं का स्मरण करें ।
यदि किन्हीं कारणों से व्रत करना संभव ना भी हो तो इस दिन शिव ,गौरी, गणेश जी ,देवी, काशीवासी dhun ढूंढीडीराज ,यम का स्मरण भी करना चाहिए ।
संक्षिप्त में यदि हम विशिष्ट विधान विधि में न भी जाएं तो कम से कम प्रातः दोपहर एवं सायं काल एक एक बार ,आज के इस पर्व के विशिष्ट देवी देवताओं के नाम का स्मरण भी करें।
जो संभव हो यथाशक्ति (पत्र ,पुष्प, फल, अन्न दान कर सकते हैं,अवश्य करना चाहिए।
दान ,स्मरण फल-
निश्चय ही इनका फल संतति, सौभाग्य, दीर्घायु,शांति, स्वास्थ्य आदि विभिन्न प्रकार से प्राप्त होगा।
जैसे -
1- धन का अभाव दूर करने के लिए-शिव पूजा,
निर्णय अमृत ग्रंथ में लिखा है इसको वरदा चतुर्थी का नाम दिया है ।और इस दिन कुंद के पुष्पों से शिवजी का पूजन करने से धन की प्राप्ति होती है, लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं ।लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए शिव की पूजा कुंद के पुष्पों से करने का विधान है ।
मंत्र स्वरूप" ओम नमः शिवाय ,मम सर्व अभिलाषा पूर्णम कुरुकुरू नमः।
2- मनोकामना पूरक, दाम्पत्य सुख- गौरी पूजा,
ब्रह्म पुराण में गौरी व्रत का महत्व दर्शाया है ।गंध पुष्प धूप दीप से उमा या गौरी की पूजा करना चाहिए ।
इसमें आहुति का विशेष महत्व है ।
हवन ,दान-गुड ,अदरक ,नमक ,पालक और खीर हवन में प्रयोग कर सकते हैं एवं इनका दान करना चाहिए या ब्राह्मण भोज कराना चाहिए ।
मंत्र-ओ उमायै नमः ।
3- संतान सुख एवं सौभाग्य। -
देवी भागवत में कुंड चतुर्थी के नाम से इसको प्रचलित किया है ।इसमें भी सामान्य पूजा जो गंध पुष्प धूप दीप फल आदि अन्य यह अर्पण करना चाहिए ।
सूप या मिट्टी के बर्तन में यह सामान रखकर ब्राह्मण को दान करने से संतान सुख एवं सौभाग्य दोनों ही प्राप्त होते हैं।
4- पूर्व जन्म कृत पाप विनाश एवं भाग्य वृद्धि-
"त्रिस्थली सेतु "ग्रंथ में ढूंढीराज पूजा ।
ढूंढीराज काशी निवासी गणेश स्वरूप हैं ।
दान पदार्थ-सफेद तिल और शक्कर के मोदक अर्पण करना चाहिए ।
तिल की आहुति देना चाहिए ।इससे पूर्व जन्म के समस्त पाप नष्ट होते हैं एवं भाग्य वृद्धि होती है ।
मंत्र-ओम ढूंढिराजाय सर्वकामनाम पूर्णम कुरु कुरु स्वाहा।।
5- स्थिर या दीर्घकालिक शांति-गणेश जी की पूजा।
भविष्य पुराण में शांति चतुर्थी के नाम से इसका महत्व प्रतिपादित किया गया है ।गणेश जी का पूजन इसमें पुआ या मीठी पूड़ी और नमक के पदार्थ गणेश जी को अर्पण किए जाते हैं ।
गुरुदेव या गुरु को भी गुड नमक और घी की वस्तु या भोजन कराना चाहिए या अर्पण करना चाहिए ।
इससे स्थिर शांति की प्राप्ति होती है ।
मंगलवार विशेष महत्व-
6 सर्व सुख प्रद-भविष्य पुराण में सुख चतुर्थी के नाम से इसका महत्व है ,परंतु इसके लिए आवश्यक है कि यदि मंगलवार हो तो अत्यंत प्रभावशाली होती है ।
इससे सब प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं ।
मत्स्य पुराण में भी इस प्रकार ही मंगलवार का विशेष महत्व है परंतु वर्ष 2020 मंगलवार को यह चतुर्थी नहीं है इस संबंध में लेख की कोई उपयोगिता नहीं है ।
गणेश व्रत का भी इसमें विशेष महत्व है दाहिने हाथ में जल लेकर "ममअखिल अभिलाषित कार्यम सिद्धिम च सर्व कामनाम गणेश व्रतं करिश्ये" पृथ्वी पर छोड़ देना चाहिए।
इसमें लाल वस्त्र पहन कर पूजा करने का विधान है साथी चावलों से अष्टदल कमल बनाएं और गणेश जी को उस पर रखकर उनको सिंदूर अर्पण करें हल्दी गुड़ शक्कर होगी उनको अर्पित करना चाहिए ।इससे समस्त संपूर्ण अभीष्ट सिद्ध होते हैं।
शनिवार एवं भरणी नक्षत्र का विशिष्ट योग-
इसके साथ ही हेमाद्री ग्रंथ में भरनी नक्षत्र शनिवार का महत्व बताया है ।यम की पूजा करने से आकस्मिक हानि चोट रोग नहीं होते हैं ।
परंतु इस वर्ष शुक्ल चतुर्थी को शनिवार नहीं है।
उपसरी लिखित विवरण से सुस्पष्ट है ,माघ माह की शुक्ल चतुर्थी ,वर्ष भर में सभी चतुर्थी में बहु उपयोगी होने के कारण श्रेष्ठ है क्योंकि इसमें एक देव,देवी, का स्मरण नही वरन अनेक देव ,देवी कृपा करने के लिए तत्पर होते हैं।
शिव, गणेश, देवी ,उमा ,यम आदि विभिन्न देवताओं का एक साथ स्मरण करने से विभिन्न प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है ।
दान के लिए -सर्वश्रेष्ठ समय सूर्योदय से 1 घंटे तक अथवा दोपहर 11:30 से 2:00 का समय श्रेष्ठतम है।
तुला और मकर राशि के लिए यह तिथि पूजा की दृष्टि से सुरक्षा प्रद अनिष्ट रोकने में सफल है ।
तुला मकर लग्न या जिनका नाम का प्रथम अक्षर र,त, ज्ञ,ख, भो अक्षर से प्रारंभ हो उनके लिए भी बाधाएं हैं एवं आपत्ति विपत्ति रोकने की दृष्टि से इस पर्व पर यदि व्रत न भी रहे तो भी शिव पार्वती एवं गणेश का पूजन कर अपना भविष्य सुरक्षित कर लेना चाहिए।
माघ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का विशेष महत्व है । एक प्रकार से यह माघ मास का दिव्य दिन है
। जिसका विभिन्न ग्रंथों में विशद वर्णन है ।
ब्रह्म पुराण में गौरी व्रत ,निर्णय अमृत में वरदा चतुर्थी, देवी भागवत में कुंड चतुर्थी ,
त्रिस्थली सेतु ग्रंथ में ढूंढी पूजा, भविष्य पुराण में शांति चतुर्थी ,एवं मत्स्य पुराण अंगारक चतुर्थी ,भविष्य पुराण गणेश व्रत ,सुख चतुर्थी ,हेमाद्री में यम व्रत आदि अनेक स्थानों पर इस चतुर्थी का विशेष महत्व है ।
धर्म प्राण जन को चाहिए कि इस दिन व्रत कर विभिन्न देवी-देवताओं का स्मरण करें ।
यदि किन्हीं कारणों से व्रत करना संभव ना भी हो तो इस दिन शिव ,गौरी, गणेश जी ,देवी, काशीवासी dhun ढूंढीडीराज ,यम का स्मरण भी करना चाहिए ।
संक्षिप्त में यदि हम विशिष्ट विधान विधि में न भी जाएं तो कम से कम प्रातः दोपहर एवं सायं काल एक एक बार ,आज के इस पर्व के विशिष्ट देवी देवताओं के नाम का स्मरण भी करें।
जो संभव हो यथाशक्ति (पत्र ,पुष्प, फल, अन्न दान कर सकते हैं,अवश्य करना चाहिए।
दान ,स्मरण फल-
निश्चय ही इनका फल संतति, सौभाग्य, दीर्घायु,शांति, स्वास्थ्य आदि विभिन्न प्रकार से प्राप्त होगा।
जैसे -
1- धन का अभाव दूर करने के लिए-शिव पूजा,
निर्णय अमृत ग्रंथ में लिखा है इसको वरदा चतुर्थी का नाम दिया है ।और इस दिन कुंद के पुष्पों से शिवजी का पूजन करने से धन की प्राप्ति होती है, लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं ।लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए शिव की पूजा कुंद के पुष्पों से करने का विधान है ।
मंत्र स्वरूप" ओम नमः शिवाय ,मम सर्व अभिलाषा पूर्णम कुरुकुरू नमः।
2- मनोकामना पूरक, दाम्पत्य सुख- गौरी पूजा,
ब्रह्म पुराण में गौरी व्रत का महत्व दर्शाया है ।गंध पुष्प धूप दीप से उमा या गौरी की पूजा करना चाहिए ।
इसमें आहुति का विशेष महत्व है ।
हवन ,दान-गुड ,अदरक ,नमक ,पालक और खीर हवन में प्रयोग कर सकते हैं एवं इनका दान करना चाहिए या ब्राह्मण भोज कराना चाहिए ।
मंत्र-ओ उमायै नमः ।
3- संतान सुख एवं सौभाग्य। -
देवी भागवत में कुंड चतुर्थी के नाम से इसको प्रचलित किया है ।इसमें भी सामान्य पूजा जो गंध पुष्प धूप दीप फल आदि अन्य यह अर्पण करना चाहिए ।
सूप या मिट्टी के बर्तन में यह सामान रखकर ब्राह्मण को दान करने से संतान सुख एवं सौभाग्य दोनों ही प्राप्त होते हैं।
4- पूर्व जन्म कृत पाप विनाश एवं भाग्य वृद्धि-
"त्रिस्थली सेतु "ग्रंथ में ढूंढीराज पूजा ।
ढूंढीराज काशी निवासी गणेश स्वरूप हैं ।
दान पदार्थ-सफेद तिल और शक्कर के मोदक अर्पण करना चाहिए ।
तिल की आहुति देना चाहिए ।इससे पूर्व जन्म के समस्त पाप नष्ट होते हैं एवं भाग्य वृद्धि होती है ।
मंत्र-ओम ढूंढिराजाय सर्वकामनाम पूर्णम कुरु कुरु स्वाहा।।
5- स्थिर या दीर्घकालिक शांति-गणेश जी की पूजा।
भविष्य पुराण में शांति चतुर्थी के नाम से इसका महत्व प्रतिपादित किया गया है ।गणेश जी का पूजन इसमें पुआ या मीठी पूड़ी और नमक के पदार्थ गणेश जी को अर्पण किए जाते हैं ।
गुरुदेव या गुरु को भी गुड नमक और घी की वस्तु या भोजन कराना चाहिए या अर्पण करना चाहिए ।
इससे स्थिर शांति की प्राप्ति होती है ।
मंगलवार विशेष महत्व-
6 सर्व सुख प्रद-भविष्य पुराण में सुख चतुर्थी के नाम से इसका महत्व है ,परंतु इसके लिए आवश्यक है कि यदि मंगलवार हो तो अत्यंत प्रभावशाली होती है ।
इससे सब प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं ।
मत्स्य पुराण में भी इस प्रकार ही मंगलवार का विशेष महत्व है परंतु वर्ष 2020 मंगलवार को यह चतुर्थी नहीं है इस संबंध में लेख की कोई उपयोगिता नहीं है ।
गणेश व्रत का भी इसमें विशेष महत्व है दाहिने हाथ में जल लेकर "ममअखिल अभिलाषित कार्यम सिद्धिम च सर्व कामनाम गणेश व्रतं करिश्ये" पृथ्वी पर छोड़ देना चाहिए।
इसमें लाल वस्त्र पहन कर पूजा करने का विधान है साथी चावलों से अष्टदल कमल बनाएं और गणेश जी को उस पर रखकर उनको सिंदूर अर्पण करें हल्दी गुड़ शक्कर होगी उनको अर्पित करना चाहिए ।इससे समस्त संपूर्ण अभीष्ट सिद्ध होते हैं।
शनिवार एवं भरणी नक्षत्र का विशिष्ट योग-
इसके साथ ही हेमाद्री ग्रंथ में भरनी नक्षत्र शनिवार का महत्व बताया है ।यम की पूजा करने से आकस्मिक हानि चोट रोग नहीं होते हैं ।
परंतु इस वर्ष शुक्ल चतुर्थी को शनिवार नहीं है।
उपसरी लिखित विवरण से सुस्पष्ट है ,माघ माह की शुक्ल चतुर्थी ,वर्ष भर में सभी चतुर्थी में बहु उपयोगी होने के कारण श्रेष्ठ है क्योंकि इसमें एक देव,देवी, का स्मरण नही वरन अनेक देव ,देवी कृपा करने के लिए तत्पर होते हैं।
शिव, गणेश, देवी ,उमा ,यम आदि विभिन्न देवताओं का एक साथ स्मरण करने से विभिन्न प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है ।
दान के लिए -सर्वश्रेष्ठ समय सूर्योदय से 1 घंटे तक अथवा दोपहर 11:30 से 2:00 का समय श्रेष्ठतम है।
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