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मांगलिक :दोष :अपवाद,दोष कब नहीं होता


   मांगलिक :सत्यता जानिए भ्रम मुक्ति संबन्धित जानकारी -
                   मांगलिक शब्द क्या है?
             
कुंडली में विशेष स्थिति में मंगल होने पर मांगलिक शब्द का प्रयोग किया जाता है ।
            
सामान्य तौर पर धार्मिक एवं ज्योतिष दृष्टि से अशुभ शब्दों का प्रयोग करने की वर्जना है ।इसलिए अमंगलकारी स्थिति को मांगलिक कहने का प्रचलन है।प्रत्येक दिन मे ,24 घंटे मे 12 कुंडली बनती हें |12 मे से 6 कुंडली मांगलिक होती हैं |
      
मांगलिक मंगल किन स्थितियों में अमंगलकारी?
दांपत्य जीवन के लिए ,कुंडली मे , कुछ स्थितियों में मंगल की उपस्थिति अशुभ होती है ।
    
परंतु उसे मांगलिक शब्द के द्वारा व्यक्त किया जाता है ।
       
सामान्य तौर पर जन्मकुंडली में अथवा चंद्र कुंडली में मंगल ग्रह दूसरे ,चौथे ,सातवे, आठवें या बारहवें भाव में किसी भी राशि पर होता है ,तो दांपत्य जीवन के लिए बाधक या अमंगल कारी माना जाता है(हमेशा ही होता नहीं)
                    मांगलिक होना मंगल सामान्य स्थिति-
      
सामान्य तौर पर एक दिन में,सूर्योदय से आगामी सूर्योदय के पूर्व तक कुल 12 कुंडलियां निर्मित होती हैं।
इनमें से प्रतिदिन कुंडली में मंगल,( मांगलिक शब्द से व्यक्त करते हैं )  06 कुंडली मे होता है। अर्थात  यह एक सामान्य बात है ।
      अधूरी विधि /त्रुटिपूर्ण विधि-मंगल को अमंगल घोषित करने की -
   1- 
लग्न एवं चन्द्र कुंडली मे जो शसक्त लग्न हो ,उस कुंडली से मंगल के अमंगल का निर्णय करना चाहिए.
     2-
विशेष बात यह है, लग्न कुंडली लगभग 2 घंटे की अवधि की एक होती है। केवल लग्न कुंडली किसी भी कथन या सोच, निर्णय के लिए पर्याप्त उपकरण नहीं है.         मंगल को मांगलिक कहने के पूर्व , नवमांश कुंडली का अवलोकन भी अति आवश्यक है ।
     
नवमांश कुंडली लगभग 12 मिनट की होती है ।इस प्रकार एक लग्न कुंडली से 9 नवमांश कुंडली बनेगी।
    
ये नवमांश कुंडली 9 प्रकार के  दाम्पत्य भाग्य को बताती है।
     *
यदि लग्न कुंडली में मंगल दूसरे साथ में चौथे आठवें या बारहवें स्थान पर है तो अमंगल कारी स्थिति मानी जाती है परंतु नवमांश कुंडली में इन स्थानों पर नहीं है तो इसका सीधा सा अर्थ है कि उस कुंडली में मंगल दोष नहीं है या अतिसामान्य भय चिंता विहीन है।
     सभी लग्नो में 2,4,7,8,12 भाव मे मंगल अशुभ नही-
         विभिन्न लग्न में विशेष स्थिति में ही मंगलअशुभ -
जैसे 1-सिंह लग्न में आठवें या बारहवें भाव का मंगल,
2-कन्या लग्न में चतुर्थ सप्तम भाव का मंगल ,
3-तुला लग्न में बारहवें भाव का मंगल,
4-वृश्चिक लग्न में अष्टम या द्वादश भाव का मंगल ,
5-मीन लग्न में आठवें या बारहवें भाव का मंगल ,
 
अशुभ होता है। सभी स्थानों पर मंगल अशुभ नही होता।

     
26 वर्ष ,26 गुण एवं अनेक स्थिति में मंगल अशुभ नही-
       (निर्दोष, निष्प्रभावी मंगल के नियम)-प्रत्येक नियम की सीमा एवं अपवाद होते हैं।
 
मंगल 9 ग्रहों में सेनापति एवं युवा ग्रह माना गया है। सामान्य तौर पर कन्या का युवा काल 12 से 22 वर्ष एवं पुरुष का युवा काल 14 से 24 वर्ष माना जाता है ।
       
इसके बाद और अधिक सौंदर्य ,तेज ,वृद्धि नहीं होती । अर्थात युवा अवधि उपरांत मंगल का अमंगल प्रभाव विचार व्यर्थ।
                
मंगल के अमंगल प्रभाव का भय कब    से ,क्यो प्रारम्भ हुआ-
मंगल ,अमंगल प्रभाव  ,प्रारंभ होने का औचित्य कारण भी है।
     
आप विचार करें आज से 50 वर्ष पूर्व, विवाह के समय आयु सीमा क्या प्रचलित थी?
       
कन्या की आयु अधिकतम 22 वर्ष एवं पुरुष की आयु अधिकतम 24 वर्ष ,क्योंकि यह अवधि मंगल के अधीन आती है .
      
यह युवा काल होता है, इसलिए यदि जन्मपत्रिका में जन्म कुंडली में मंगल ,अमंगल कारी स्थिति में होता था तो ,इसका बुरा प्रभाव निश्चित होना स्वाभाविक था .ऐसा अनुभव सत्य,सटीक ज्योतिष नियमों के सनुरूप था।
    आज युवा,सेनापति ग्रह मंगल ,अमंगल प्रभाव वाला क्यो नहीं सिद्ध हो रहा -
            
युवा काल मे जिसको प्रणाम देने की अधिकतम शक्ति एवं अधिकार प्राप्त है, वह आज क्यो अमंगल के लिए चिंतनीय नहीं ?
हम व्यवहारिक दृष्टिकोण से देखैं तो ,विशेष तौर पर शिक्षित एवं नगरीय वर्ग में कन्या का विवाह 24 वर्ष पूर्व एवं पुरुष पर का व्यवहार किसी भी स्थिति में 25 वर्ष पूर्व सामान्यतः नहीं होता है ।
             
आज के दृष्टिकोण से जो विवाह की आयु स्थिर हुई है 24 वर्ष पश्चात विवाह, उसमें मंगल लगभग अपने अमंगल प्रभाव की शक्ति अवधि से बाहर है ।
            
इसलिए अब दांपत्य जीवन में विधुर,वैधव्य योग की कमी होना स्वाभाविक है ।अब मंगल के इस मंगलकारी प्रभाव से भय का कोई विशेष कारण नहीं है .
     
कम्प्यूटर द्वारा कुंडली मिलान विधि अपर्याप्त-
          
एक विशेष तथ्य ध्यान देने का यह है कि ,आज के समय में विज्ञान की उन्नत तकनीक के कारण कंप्यूटर द्वारा कुंडली बनाई जाती है.
      
कंप्यूटर द्वारा निर्मित कुंडली निश्चय ही हाथ से बनी हुई कुंडली की तुलना में श्रेष्ठ एवं सत्यता के निकट है । क्योंकि इसमें गणना की त्रुटि की कोई संभावना नहीं है ।  परंतु कंप्यूटर के द्वारा निर्मित कुंडली के परिणाम ,सत्यता सटीकता के निकट होना आवश्यक नही है
          
विशेष बात यह है कि ,कुंडली मिलान या परिणाम के लिए अभी तक कोई भी सॉफ्टवेयर ज्योतिष का सटीक नहीं है अर्थात अपर्याप्त है अविश्वसनीय अनुपयोगी है ।
       
आ-      क्योंकि ज्योतिष का ज्ञान प्रोग्रामर को हो, या ज्योतिष के तकनीकी शब्द का ज्ञान उसे हो,सामान्यतः संभव नहीं है।
        
ब-कुंडलीसॉफ्टवेयर बनाने वाले को ज्योतिष का ज्ञान है ,इसकी भी कोई कसौटी नहीं है ,इसलिए कंप्यूटर के सॉफ्टवेयर के द्वारा कुंडली मिलान की जानकारी मोटे तौर पर या सामान्यता तो ठीक है परंतु सटीक एवं सत्यता के निकट कोई विशेष अर्थ नहीं रखती ।
        
उत्तर भारत मे, प्रचलित विवाह मिलान विधि में स्थूलता है,सूक्ष्मता नही- अष्टकूट विधि 
  
          1-
कुंडली मिलान में जन्म नक्षत्र का उपयोग किया जाता है .    आप सोचिये क्या जन्म नक्षत्र पूरा जीवन निर्धारित कर सकता है? यदि हां तो कुंडली निर्माण की आवश्यक्ता ही क्या है? विवाह हेतु कुंडली को अनदेखा करना हास्यास्पद है ।
          2-
कुंडली के 9 ग्रह  में से  केवल मंगल ही क्यों विचार में जबकि सूर्य,शनि ग्रह भी दाम्पत्य दुख देने में सक्षम हैं।
        3-
जन्म नक्षत्र के चरण पर विचार आवश्यक।
कोई भी नक्षत्र लगभग 24 घंटे की अवधि का होता है ,अर्थात 24 घंटे में जितने बच्चों का जन्म होगा उनका जन्म नक्षत्र एक ही होगा परंतु प्रकृति तो निश्चय ही भिन्न होगी ।इसलिए समग्र नक्षत्र लेना भी सत्यता के निकट नही,अर्थात  यह व्यवहारिक नहीं है ।
           4-
ग्रह मैत्री राशि से लेना स्थूल सतही-
          
राशि लगभग 60 घंटे अबधि की होती है । राशि अर्थात  समूह Group ,दो से अधिक नक्षत्र का समूह।जैसे मेष राशि, अश्वनी,भरणी एवं कृत्तिका नक्षत्र का आधा भाग।
       
जब नक्षत्र ले रहे तो उसका स्वामी भी लेना चाहिए।प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं । 06 घंटे लगभग एक चरण की अवधि होगी ।
    
नक्षत्र का स्वामी पृथक होता है और उसके चारों चरणों के स्वामी भी पृथक पृथक होते हैं।
     
विशेष-   जन्म नक्षत्र के द्वारा अभी तक किसी भी सॉफ्टवेयर में (जन्म नक्षत्र के स्वामी कौन हैं ?नक्षत्र के चरणों के स्वामी कौन हैं?)गणना नहीं की जाती है ।
           
ग्रह मैत्री जैसी बड़ी बात को राशि का आधार पर लिया जाता है ।
       
5-  वर्तमान मिलान की यह बिधि/व्यवस्था / तकनीक सटीक नहीं है .
          
इसकी तुलना में जब नक्षत्र के चरणों के स्वामी को गृह मैत्री के लिए प्रयोग किया जाना उचित है।
          
मंगल की अंमंगलता को निष्प्रभावी करने वाली स्थितयां-
          जन्म कुंडली में मंगल अकेला ग्रह नहीं होता अन्य 08  ग्रह भी  होते हैं उनकी उपस्थिति भी मंगल के अशुभ प्रभाव को समाप्त करने के लिए पर्याप्त होती है ।
           
अन्य नियम भी है -
     1 -26
से अधिक गुण मिलते हो तो मंगल का दोष नहीं लगता
  2-  26
वर्ष के आयु हो जाए तो मंगल का दोष लगभग समाप्त होता है .
    3-
जन्म कुंडली में मंगल वक्री नीचे अस्त हो.
     4-
वर कन्या की राशि के स्वामी आपस में मित्र हो तो मंगल दोष नहीं होता .
      5-
नवांश राशियों के स्वामियों में मित्रता हो तो भी मंगल दोष नहीं माना जाता या वर कन्या दोनों की राशि जैसे वृषभ मिथुन कन्या तुला मकर कुंभ हो तो भी मंगल दोष निष्प्रभावी होता है
    6- 
कन्या की कुंडली में जिस भाव में मंगल हो वर की कुंडली में भी उसी भाव में पापी ग्रह अर्थात सूर्य शनि राहु केतु हो तो मंगल का दोष समाप्त हो जाता है ।
        
अर्थात मंगल के दोष को समाप्त करने के लिए सूर्य शनि राहु केतु भी यदि साथी की कुंडली में हैं उन्हीं स्थितियों में तो यह दोष समाप्त हो जाता है।
7- 
दूसरे भाव में चंद्रमा शुक्र हो ।
8-
मंगल गुरु साथ हो अथवा गुरु की पूर्ण दृष्टि हो ।
  9-
केंद्र में राहु हो अथवा मंगल राहु की युति हो तो भी मंगल दोष प्रभावी नहीं होता ।
10-
केंद्र या त्रिकोण में शुभ ग्रह हो चंद्र बुध गुरु शुक्र एवं 3,6,11 ग्यारहवें भाव में पाप ग्रह शनि सूर्य राहु हो ।
11- 
सप्तमेश कुंडली में अपनी राशि याहो या उच्च का हो तो मंगल दोष नहीं रहता ।
  
12-    लग्नो में विशेष स्थिति मे  मंगल शुभकारी-
      
लग्न के आधार पर भी अनेक स्थितियां मंगल के प्रभाव को या मंगल के कुप्रभाव से परे होती हैं -
          
जिनमें मंगल अशुभ हो ही नहीं सकता जैस-
1-
मेष लग्न में मंगल हो।
2-
सिंह लग्न में चौथे भाव में वृश्चिक राशि में ,मंगल का दोष नहीं होगा .
3-
कर्क लग्न में सप्तम भाव में मकर का मंगल .
4-
धनु लग्न में अष्टम भाव में कर्क का मंगल.
5-
मकर लग्न में धनु राशि का 12 स्थान में मंगल .
6-
वृश्चिक लग्न में सप्तम भाव में वृष राशि का मंगल
7-
मिथुन लग्न में द्वादश भाव में वृष राशि का मंगल या अष्टम भाव में मकर राशि का मंगल .
8-
कन्या लग्न में अष्टम भाव में मेष राशि या द्वादश भाव में सिंह राशि का मंगल .
9-
तुला लग्न में लग्नेश सप्तम मेष राशि का मंगल .
      
यह सब मंगल के अशुभ प्रभावों को नकारते हैं अर्थात मंगल के अशुभ प्रभाव रोक देते हैं ।
        10- 
इसके अतिरिक्त मंगल अस्त ,संधि गत नीच राशि गत ,
11-. 
गुरु राहु से दृष्ट या उनकी युति वाला हो तो भी मंगल दोष की बात करना ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार तर्कसंगत नहीं है अर्थात व्यर्थ है.
     
लेखक -  1976 से सक्रीय रूप से ज्योतिष में है। ग्रंथ एवं अनुभव  के आधार पर लिखता हूँ कि ,प्रत्येक ग्रह की फल देने की अवधि निर्धारित है। बड़ी उम्र में मंगल दाम्पत्य में बाधक नही होता हैं”
      
कुंडली मे जब तक बिष कन्या,विधुरता,आकस्मिक आयु हानि योग या मृत्यु योग नही होंगे, या मारक मंगल या मारकेश की स्थिति गोचर में नही होगी तब तक मंगल कुछ नही कर सकता।
First Time in world Best New compability /match method-

–Match  method -Match by Navmansh and Lagn
 (30points Instead of 08 Ashtkoot method)


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