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दीपावली (पंच पर्व) - पूर्ण पूजा विधि एवं महत्व (मंत्र, आरती, पूजन सामग्री, महत्वपूर्ण पूजा सहित )



दीपावली पर लक्ष्मी पूजा क्यो?

      कार्तिक माह  मे अमावस्या के समय सूर्य तुला राशि में नीचस्थ होता है। शुक्र प्रभावशाली होता है। शुक्र भोग विलास, ऐश्वर्य, संपदा एवं लक्ष्मी से संबंधित है। कृष्णपक्ष में पूर्वज पितर प्रभावशाली होते हैं। इनकी प्रसन्नता के लिए आकाशत्रायी पटाखे एवं जल अर्पित करते हैं। उनकी पूजा या प्रसन्नता, हानि, कष्टों से सुरक्षा करती है। तुला राशि एवं स्वाति नक्षत्र पर चन्द्रमा सुख सौभाग्य, संपदा एवं सिद्धिप्रद होता है। ज्योतिष पर्व है, ज्योति जलाना उपयोगी है।

दीपावली की रात्रि के चारो प्रहरों का (निशा, दारुण, काल, महा) विशेष महत्व है। लक्ष्मी, गणेश एवं कुबेर पूजा का विशेष महत्व है धनकोष हेतु कुबेर एवं काल रात्रि शत्रु विनाशिनी है, अतः गणेश विघ्रहर्ता की पूजा की जाती है।
     अलक्ष्मी बडी बहन है, लक्ष्मी की। अतः सूर्योदय पूर्व घर से झाडू द्वारा इन्हें बाहर करने की कामना की जाती है।

पंचपर्वा कालरात्रि गणेश्वरी कार्तिक अमावस्या

लक्ष्मी प्रसन्नता हेतु ज्ञातव्य

* अर्द्धरात्रि की पूजा श्रेष्ठ, प्रदोष काल की पूजा उत्तम होती है।
* अखण्ड दीपक धनतेरस से दीपावली रात्रि तक जलाना चाहिए।
* लक्ष्मी पूजा श्रेष्ठ पश्चिम सांय / रात्रि दिन में पूर्व की ओर मुंह कर, कर सकते है।
* पीला आसन, पीला वस्त्र या लाल वस्त्र।

* चमेली तैल का दीपक।
* कलश ताम्र, उसमे पानी भरकर मोती डालें। पते बिल्व एवं आम वृक्ष के डालें।
लक्ष्मी गणेश विष्णु प्रतिमा के बाएं ओर कलश रखें, दाहिनी ओर दीपक (पीतल /तांबा) रखे। स्टील दीपक नहीं रखे।
कलश पर हल्दी, रोली, चावल मिश्रित कर स्वस्तिक बनाएं। चावल एक कटोरी में भरकर कलश पर रखें तथा उस पर लेटी / आडी अवस्था में एक नारियल पानीयुक्त जिसका पतला / पूंछ वाला भाग भगवान की ओर रखे/ नारियल पर कलावा या मौति बांधे।

* चमेली तैल का दीपक।
* कलश ताम्र, उसमे पानी भरकर मोती डालें। पते बिल्व एवं आम वृक्ष के डालें।
लक्ष्मी गणेश विष्णु प्रतिमा के बाएं ओर कलश रखें, दाहिनी ओर दीपक (पीतल /तांबा) रखे। स्टील दीपक नहीं रखे।
कलश पर हल्दी, रोली, चावल मिश्रित कर स्वस्तिक बनाएं। चावल एक कटोरी में भरकर कलश पर रखें तथा उस पर लेटी / आडी अवस्था में एक नारियल पानीयुक्त जिसका पतला / पूंछ वाला भाग भगवान की ओर रखे/ नारियल पर कलावा या मौति बांधे।

के दूसरे दिन सुपारी एवं तांबा लाल वस्त्र में बांधकर भण्डार में रखें।

जल में अन्य पदार्थ मिश्रित कर, स्नान कर, लाभ उठाएं
1. दीपावली पर्व के उपलक्ष्य में स्वाति केे संयोग में बरगद, गूलर, पीपल, आम और पाकड़ की छाल को पानी में उबालकर स्नान करने से लक्ष्मी प्रसन्न होती है।
2. दीपावली को प्रातः काल सूर्योदय के पूर्व अभ्यंग स्नान करने से दरिद्रता का नाश होता है।
3. गाय के गोबर को पवित्र जल से स्पर्श करा, कर गोमय स्नान से धन एवं लक्ष्मी की वृद्धि होती है।
4. दुग्ध मिश्रित स्नान करने से शक्ति एवं बल बढते है।
5. रक्त मिश्रित स्नान करने से आभूषणों की प्राप्ति होती है।
6. तिल मिश्रित स्नान करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
7. दधि मिश्रित जल से स्नान करने से सम्पति बढती है।
8. घृत स्नान करने से आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य प्राप्ति होती है।
9. शतमूल या शतावरी की जड से सिद्ध जल से स्नान कामनापूर्ति में सहायक होता है।
10. पलाश, बेल पत्र, कमल एवं कुशा से सिद्ध जल स्नान, लक्ष्मी प्राप्ति का अचूक साधन है।

लक्ष्मी वृद्धि हेतु
ऊँ हीं श्रीं क्लीं त्रैलौक्य व्यापी
हीं श्रीं क्लीं ऋद्धि वृद्धि कुरु -कुरु स्वाहा।
दीपावली के दिन शुभ मुहूर्त में
27 या 54 आहुति जौ, तिल, महुआ तैल या गौ घृत, सुपाडी, कमल गटा, चावल चंदन इत्र गूगल दें।

विवाह हेतु
धनतेरस से दीपावली तक 108 मंत्र प्रतिदिन।
ऊँ श्रीं हीं श्रीं महालक्ष्म्यै वर वरद
श्रीं हीं श्रीं ऊँ मम विवाह कुरु 2 नमः।
गुरु गोरखनाथाय् नमः।एश्वर्य हेतु
ऊँ श्रीं श्रीं हीं हीं एश्वर्य महालक्ष्यै पूर्ण सिद्धि देहि देहि नमः।
व्यवसाय वृद्धिः
ऊँ श्रीं हीं व्यापारलक्ष्म्यै हीं श्रीं क्लीं।
प्रदोषकाल एवं महानिशीथ काल श्रेष्ठ 108 जप एवं 11 आहुति दें।

चिंता मुक्ति एवं धन वृद्धि
108 बार जप करें। ऊँ हीं क्रीं श्रीं क्लीं श्रीं लक्ष्मी मम गृहे धने पूरय 2 चिंतायै दूरय् स्वाहा। 51 आहुति

 दरिद्रता नाशक पांच दिन धनतेरस से भाईदूज तक

* ऊँ हीं अष्टलक्ष्मयै दारिद्रय विनाशिनी सर्व सुख समृद्धि देहि हीं ऊँ नमः।
नरक चतुर्दशी एवं दीपावली के दिन हथेली में जौ एवं तिल लेकर दक्षिण दिशा की ओर मुँह कर पूर्वजों का स्मरण कर, सुख संपदा मांगे तथा तर्जनी एवं अंगूठे के मध्य से जौ, तिल पानी तीन बार पृथ्वी पर छोडें।
पूजा में बिना टूटे चावल, पांच सुपारी, नारियल, पांच कौडी, शंख, खडा, नमक, हल्दी साबुत धनिया, लाल, पीला, श्वेत वस्त्र, दूध, दही अवश्य रखें।
धनतेरस से दीपावली के दूसरे दिन तक सूर्योदय पूर्व घर में झाडू लगाने से आगामी छह माह तक धन संपदा का स्थायित्व रहता है।
इन छह दिन तुलसी को बिना स्पर्श किए दूध अर्पित करें।
भवन एवं द्वार के मध्य प्रातः या प्रदोष काल में सात हरी मिर्च तथा एक नीबू धागे से बांधे। ग्यारह अमावस्या तक लगातार करने से सर्वसुरक्षा एवं संपदा रहती है।
लगातार पांच दिन प्रातः सूर्योदय समय से पूर्व द्वार के दाहिने दूध, पांचे चावल एवं जल अर्पित करे। द्वार की ओर मुंह हो।
पांच सफेद, तीन लाल एवं तीन काले गुजा रती दीपावली को पूजा में देवी को अर्पित कर, पर्स या धन स्थान में  रखना धन के लिऐ उत्तम होता है।
प्रतिपदा एक तथा द्वितीया को दो दीपक जलाएं।
दो नारियल पूजा कर लाल वस्त्र में बांध कर एक भंडार स्थान तथा एक हनुमान मंदिर में धनतेरस तथा दीपावली को रखे या अर्पित करे।
ग्रहदोष निवारण
चंद्र, राहु के अनिष्ट दूर करने हेतु तथा बाधा नियंत्रण के लिए, चावल, जौ, तिल एक मुट्ठी में लेकर परिवार का प्रत्येक सदस्य सिर के चारों ओर तीन घुमाएं एवं एक बार सिर से पैर तक स्पर्श करें। एक नारियल को सभी स्पर्श कर एक नए मटके में जौ, तिल के साथ डाल दें तथा लाल या श्वेत वस्त्र से उसका मुह बांध दे। पानी में दीपावली के दूसरे दिन छोड दे।
द्वार को सजाए। रंगोली डाले। कमल पुष्प या भवन आकार की रंगोली श्रेष्ठ फलदायी होती है। दरवाजे पर स्वास्तिक एवं दो नाग बनाएं। चावल एक मुट्ठी रखकर उस पर सुपारी, कलावा, हल्दी, रोली चढ़ाएं।
भवन द्वार एवं दुकान के द्वार पर फिटकरी लेकर ग्यारह बार घुमाएं द्वार के चारों ओर चैराहे पर दक्षिण या उत्तर दिशा में मुंह कर छोड दे। इससे इष्र्या, जलन, नजर का प्रभाव दूर होगा।
पांच दिन तक हल्दी एवं चावल पीसकर उसमें कुंकुम, इत्र चंदन मिला लें। इससे पूर्व या उतर की ओर मुंहकर ओम द्वार पर बनाएं।
दीपावली के दिन विकलांग, वृद्ध को भोजन अवश्य दें।
गाय को गुड, हाथी को केला या गन्ना, कुते को सरसो / तिल तैल लगाकर नमकीन रोटी, कौआ को तिल मिश्रित अन्न एवं मछलियों को आटा की गोली देना चाहिए।
शमी, अशोक, तुलसी, आम, वट, आवंला, पीपल पर जल दूध, चावल चढाएं तथा सर्वसुख याचना करें।
पितरों की प्रसन्नता एवं श्राप सुरक्षा
धनतेरस से दीपावली तक घर के ऊपर दीप द्वारा रोशनी करे। दीप लेकर संध्या समय पितरों को गृह पथ दर्शन कराऐ। उपर जाने वाले राकेट आदि रोशनी वाले पटाखे संध्या से मध्यरात्रि तक के मध्य अवश्य चलाए।

* एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाए। अष्टदल कमल पर गणेश जी लक्ष्मी का मुह पश्चिम में हो श्रेष्ठ या पूर्व में हो।
* गणेश जी के दाहिनी ओर लक्ष्मी हो।
* कलश लक्ष्मी के सामने हो।
* एक तेल दीपक चैकी के बाएं, घी दीपक अपने दाहिने गणेश जी के सामने। दो दीपक जलाए।
* दूसरी चैकी पर / पृथ्वी पर लाल वस्त्र बिछाए। बायीं ओर चावल की नौ ढेरी बनाए।
सामग्री:
       घी, तेल, 29 दीपक, खील, बतासा, मिठाई पांच प्रकार, वस्त्र श्वेत, पीला, लाल, कौडी, शंख, रोली, इत्र, पुष्प, हार, चंदन, दूध, दही, शहद, सिंदूर, कुंकम, पान, सुपारी, दूर्वा, शर्मी, आम - पते, लौंग, इलायची, हल्दी, गांठ, चावल, साबुत, धनिया, खडा, नमक, गूगल, धूप।
दीवार पर बनाएं या लाल / पीले कागज पर लिखे, सिंदूर एवं घी से बनाएं।
ऊँ श्रीं श्रियै नमः।
पारिवारिक सुख शांति प्रद
27 बार पढ़ें या ऊँ श्रीं हीं क्लीं लक्ष्मीनारायणाय नमः।
ऊँ श्रीं हीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मयै नमः।
संक्षिप्त पंच पर्व पूजा
धन त्रयोदशी
* पीतल, स्वर्ण, चांदी स्टील, कांसा नहीं, यह क्लेश एवं अपव्यय कारक है। की कोई वस्तु क्रय तथा भगवान को अर्पित कर भोग लगाएं।
द्वार एवं देहरी पूजा
* द्वार - स्वस्तिक, शुभ लाभ एवं श्री गणेशाय नमः द्वार पर सिंदूर, घी एवं इत्र मिश्रित कर लिखें।
* देहरी - ऊँ देहरी विनायकाय नमः कहकर रोली, पुष्प एवं चावल अर्पित करे।
दवात पूजा महाकाली पूजा
* स्याही दवात रखकर उस पर श्रीं महाकाल्यै नमः, महालक्ष्मयै नमः कहकर पुष्प रोली चढाए।
कलम पूजा
* लेखनी पर कलावा मौलि बांधे।
श्री सरस्वत्यै नमः।
लेखनीस्थ्यै देव्यैं नमः।
लेखनी निर्मिता पूर्व ब्रहाणा परमेष्ठिना।
लोकानां हितार्थाय तस्मातो पूजयाम्हम्।
बहीखाता पूजा
* बहीखाता एवं उस वस्त्र पर जिनमें बहीखाता रखें। रोली, चंदन, केसर से स्वस्तिक चिन्ह बनाए। चिन्ह बनाते समय मन में कहते रहें -
श्रीं श्रीं श्रीं नमः।
हल्दी गांठ, धनिया, चावल, दूर्वा, इत्र, कमल, गटा रखे।
श्रीं हीं ऐं नमः 11 बार बोले।
कुबेर पूजा
धन के अध्यक्ष कोष या संचय के देवता कुबेर हैं।
जहां धन आदि रखते हों, तिजोरी संदूक या आलमारी।
मंत्र - आपहयामि देवि त्वामिहा याहि कृपा कुरुं।
कोशं वर्धय नित्य त्वं परिरक्ष सुरेश्वर।
धनाध्यक्षाय कुबेराय नमः
धन दाय नमस्तुभ्यं निधि पदम अधिपाय च भगवत् त्वत् प्रसादेन धन धान्य आदि संपदः।
मंत्र पढ़कर इत्र, हल्दी, धनिया, कमलगटा दूर्वा श्वेत हो तो उतम लाल वस्त्र में बांधकर रखें।

तुला पूजा
सिंदूर से तराजू पर स्वस्तिक मध्य में बनाएं शुभ तथा दाएं तथा दाएं लाभ लिखें।
मंत्र - ऊँ तुला अधिष्ठात दैव्यै नमः।
नमस्ते सर्व देवानाम् शक्तित्वे सत्यम् आश्रिता।
साक्षी भूता जगदधात्री निर्मिता विश्वयोनिना।
दीपक पूजा
21 दीपक श्रेष्ठ अभाव में 11 उतम या 5 दीपक शुभद माने जाते हैं। इन्हें एक थाली में रखेए वं रोली, इत्र, चंदन, खील, मिठाई, केसर, हल्दी इत्र पर छिडके।
मंत्र - त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चन्द्रो विधुदग्रिश्र तारकाः।
सर्वेषाम् ज्योतिर दीपावल्यै नमो नमः।।
घर के बडे सदस्य को धनत्रयोदशी से पांच दिन तक तथा देव उठनी एकादशी को राकेट / उल्का आकाशगामी पटाखा अवश्य छोडना चाहिए। यह पितरों की प्रसन्नता के लिए आवश्यक माना गया है। इसे उल्का छोडना कहते है।

सर्व सुख समृद्धि प्रदाताः श्री सूक्त
लक्ष्मी को प्रसन्न और घर में उसे चिरस्थायित्व देने हेतु श्री सूक्त से श्रेष्ठ कोई संतान नहीं है। किसी भी रात्रि को या दीपावली की रात्रि को इस सूक्त के एक सौ एक पाठ करने से समस्त प्रकार की दरिद्रता समाप्त होकर पूर्ण धनधान्य ऐवश्र्य की प्राप्ति होती है।
नित्य इस सूक्त का एक बार किया गया पाठ कामनाओं की पूर्ति करता है।
हिरण्यवर्णा मिति पंचदशर्चस्य सूक्तस्य आनन्द कर्दम धीदचिक्लीता इन्दिरा सुता ऋषयः, श्री रिग्रर्देवते, आद्यास्तिस्त्रो-नुष्टुभः चतुर्थी बृहती, पंचमी षष्ठयौ त्रिष्टुभौ, ततोअष्टौ, अनुष्ठभः, अन्त्या आस्तारपड्क्तिः जपे विनियोगः।
मंत्र पढकर पृथ्वी पर जल छोड दें।
ऊँ हिरण्यवर्णा हरिणीं सुवर्ण रजत स्त्रजाम्।
 चन्द्राम  हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो  म आ वह।।
अर्थः
हे लक्ष्मी आप स्वर्ण के समान कांति वाली और मनुष्यों की दरिद्रता को हरण करने वाली हैं, आपके गले में हमेशा स्वर्ण की मालाऐं शोभायमान रहती है आप प्रसत्रवदना हैं और सारे शरीर से दिव्य आभा प्रगट होती है, आप लक्ष्मी आप मेरे घर में आकर स्थापित हो, और हमेशा के लिए मेरी दरिद्रता दूर कर दें।
ताम आ वह जातवेदो लक्ष्मीनप गामिनीम।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्।।
अर्थ -
समस्त संसार के पालन करने वाले भगवान विष्णु आप मेरे लिए भगवती लक्ष्मी को मेरे घर में लावें, जो यहां पर स्थिर रहे, और जीवन में कभी भी मेरे घर को छोड़ कर अन्यत्र नहीं जाए, उस लक्ष्मी की कृपा से मैं स्वर्ण प्राप्त करुं, धन प्राप्त करुं, गायें, नौकर और समृद्धि प्राप्त करुं, आप दोनों की कृपा से ही समाज में मेरा नाम हो और मैं पूर्ण ऐश्वर्य भोगने में समर्थ हो सकूं।
अश्वपूर्वा रथमध्यां हस्ति नाद प्रमोदिनीम्।
 श्रियं देवीमुप हृये श्रीर्मा देवी जुषताम्।।

लक्ष्मी प्रसन्नता मंत्र
मन्त्रः ऊँ नमो भूतनाथाय नमः मम सर्वा सिद्धि देहिं देहि श्रीं क्लीं स्वाहा।
यह मन्त्र गोपनीय होने के साथ-साथ महत्वपूर्ण है, मन्त्र जप सिद्धि हो जाने पर लक्ष्मी स्वयं सामने प्रकट होती है और उसे इच्छानुसार वरदान मांगने को कहती हैं, जो भी भावना की जाती है पूरी होती है, जीवन में किसी प्रकार का अभाव नहीं रहता।
मन्त्र सिद्ध मूंगे की माला से 51 माला नित्य मंत्र जाप 11 दिन होना चाहिए।
लक्ष्मी पूजन विधि
संकल्प - ऊँ विष्णुः विष्णुः विष्णुः श्रीमद्धगवते महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रहाणोहि द्वितीय परार्धे श्री श्वेत वाराह कल्पे वैवस्वत मन्वंतरे अष्टविंशातितमें कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे भूलों के जंबुद्वीपे भरतखण्डज्ञ भारतवर्षे मध्यक्षेत्र ----- नगरे शोभन संवत्सरे विक्रम संवत् 2071 दक्षिणायने कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे चतुर्दश परम अमावस्या तिथौ गुरुवासरे हस्त परं चित्रा  नक्षत्रे....गोत्रे ...नाम अहं श्रुतिः स्मृति पुराणोक्त फल प्राप्ति कामनया स्थिर लक्ष्मी प्राप्ये श्री महालक्ष्मी पूजनं करिष्ये। जल पृथ्वी पर छोड दें।

लक्ष्मी पूजन मंत्रानि
सर्वलोकस्य जननीं सर्वसौख्य प्रदायिनीम्। सर्वदेवयीमीशां देवीं आवाहयाम्यहम्।
श्री महालक्ष्मयै नमः आवाहनार्थे अक्षत समर्पयामि। लाल पुष्प चढावे।
ऊँ महालक्ष्म्यै नमः आसनं समर्पयामि। पुष्प अर्पित करे।
ऊँ महालक्ष्मयैः नमः पाद्यं समर्पयामि। जल अर्पित करें।
ऊँ महालक्ष्मयै नमः हस्तयोरध्र्य समर्पयामि अष्टगंध सुगंध मिश्रित जल अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः आचमनीयं समर्पयामि जल अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः स्नानं समर्पयामि जल अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः पंचामृतं स्नानं समर्पयामि पंचामृत अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः स्नानं समर्पयामि जल अर्पित करे
ऊँ महालक्ष्मयै नमः वस्त्रोवस्त्रं समर्पयामि वस्त्र आभूषण अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः गधं समर्पयामि केसर का तिलक अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः रक्तचंदनं समर्पयामि लालचंदन रोली सौभाग्य द्रव्य अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयैनमः अक्षतान समर्पयामि अक्षत, हल्दी, धनिया अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः पुष्पमाला दूर्वाकुरान समर्पयामि दूर्वा पुष्पमाला कमल पुष्प अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः धूपमाघ्रापयामि धूप दिखावें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः दीपं दर्शयामि दीप दिखावें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः नैवेद्यं निवेदयामि गुड, मिठाई भोजन का भोग दिखावें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः आचमनीयं समर्पयामि जल अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः ऋतुफल समर्पयामि ऋतु फल एवं अनार अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः तांबूल समर्पयामि लगा हुआ पान अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः दक्षिणां समर्पयामि श्रीफल सहित दक्षिणा अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः आरार्तिक्यं समर्पयामि 5 या 7 दीपकों से आरती उतारें
ऊँ महालक्ष्यै नमः मंत्र पुष्पांलि समर्पयामि पुष्प अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः प्रदक्षिणां समर्पयामि परिक्रमरा करें
अनेन पूजनेन महालक्ष्मी देवी प्रीयताम नमम्।
श्री महालक्ष्म्यै नमः

दीप पूजा: दीप मालिका पूजन मंत्र दीपको की पूजा करे त्वं ज्योतिरत्वं रविश्चन्द्रो विद्युदग्निश्च तारकाः सर्वेषाम् ज्योतिषाम् ज्योतिर्दीपावल्यै नमो
नमः ऊँ दीपवल्यै नमः
अष्ट लक्ष्मी पूजन: 1. ऊँ आद्यलक्ष्मै नमः, 2. ऊँ विद्यालक्ष्मै नमः, 3. ऊँ सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः, 4. अमृतलक्ष्म्यै नमः, 5. ऊँ कामलक्ष्म्यै नमः, 6. ऊँ सत्यलक्ष्म्यै नमः, 7. ऊँ भोगलक्ष्म्ये नमः, 8. ऊँ योगलक्ष्म्यै नमः।
1. ऊँ अणिम्ने नमः (पूर्वे), 2. ऊँ महिम्ने नमः (अग्निकोणे), 3. ऊँ गरिम्णे नमः (दक्षिणे), 4. ऊँ लघिम्ने नमः (नैर्त्ये), 5. प्राप्त्यै नमः (पश्चिमे), 6. ऊँ प्राकाम्यै नमः वायव्ये, 7. ऊँ ईशितायै नमः उतरे 8. ऊँ वशितायै नमः ऐशान्याम।
दृष्टा दृष्ट फलप्रदायै नमः सर्व अभीष्ट फलप्रदायै नमः।
सुप्रीता भव सुप्रसन्ना भव सर्व अभीष्ट फलप्रदा भव।।

मार्तनमामि कमले कमला यताश्रि।
श्री विष्णु हत कमल वासिनी विश्वमातः।।
क्षीरोदजे कमल कोमल गर्भ गौरि।
लक्ष्मी प्रसीद सतंत नमतं शरण्ये।।
रोली, कुकुंममिश्रित अक्षत एवं कमल पुष्पों से निम्नांकित एक-एक नाम मंत्र पढते हुए अंगपूजा करें।
ऊँ चलायै नमः, पादौ पूजयामि।
ऊँ चंचलायै नमः, जानौ पूजयामि।
ऊँ कमलायै नमः, कटि पूजयामि।
ऊँ कात्यायिन्यै नमः, नाभिं पूजयामि।
ऊँ जगन्मात्रे नमः, जठरं पूजयामि।
ऊँ विश्ववल्लभायै नमः, वक्षः स्थलं पूजयामि।
ऊँ कमलवासिन्यै नमः, हस्तौ पूजयामि।
ऊँ पद्माननायै नमः, मुख पूजयामि।
ऊँ कमलपत्राक्ष्यै नमः, नेत्रत्रयं पूजयामि।
ऊँ श्रियै नमः, शिरः पूजयामि।
ऊँ महलक्ष्म्यै नमः, सर्वागम् पूजयामि।
पुष्पांजलि
ऊँ धनः ऊँ कोषः ऊँ संपदा सत्यम्।
ऊँ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्रयै
च धीमहि। तन्नौ लक्ष्मी प्रचोदयात्।
ऊँ आपो ज्योति रसोमृतं लक्ष्मी स्वरोम्।
मंत्र पुष्पांजलि समर्पयामि।
क्षमा याचना
मंत्र हीनम् क्रियाहीनम् भक्ति हीनम् सुरेश्वरी
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे।
भगवति हरिवल्लभे मनोजे
त्रिभुवन भूतकिरि प्रसीद मह्यम्।
अंत में -
अक्षत एवं पुष्प मिटटी नहीं धातु की पाषाण की प्रतिमा पर छोडें।
मंत्र - 
देवगणाः सर्वे पूजामादाय भामकीम।
ईष्ट काम समृद्ध यर्थ पुनर आगमनाय च।।
श्री लक्ष्मीजी की आरती
ऊँ जय लक्ष्मी माता, भैया जय लक्ष्मी माता।
 तुमको निसिदिन सेवत हर -विष्णु धाता।।
उमा, रमा, ब्रम्हाणी, तुम ही जग माता। 
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।
दुर्गारुप निरंजनि, सुख सम्पति दाता। 
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि सिद्ध धन पाता।
तुम पाताल निवासिनि तुम ही शुभदाता। 
कर्म प्रभाव प्रकाशिनि भवनिधि की त्राता।
जिस घर तुम रहती, सब सदगुण आता। 
सब सम्भव हो जाता, मन नहि घबराता।
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता । 
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता।
शुभ गुण मंदिर सुंदर क्षीरोदधि जाता। 
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहि पाता।
महालक्ष्मीजी की आरति, जो कोई नर गाता।
 उर आनंद समाता पाप उतर जाता।

श्री महाकाली दवात: पूजन:

स्याही मुक्त दावात को भगवती महालक्ष्मी के सामने पुष्प तथा अक्षत पुंच ढेरी में रखकर उसमें सिन्दूर से स्वस्तिक बना दे तथा मौली लपेट दे। 
 ऊँ महाकाल्यै नमः इस मंत्र से गंध पुष्पादि पचोपचार या षोडशोपचार से दवात में भगवती महाकाली का पूजन करे और अंत में इस प्रकार ध्यान, प्रार्थना पूर्वक उन्हे प्रणाम करें।

ध्यानम्

ऊँ मषित्वं लेखनी युक्ता चित्रगुप्ताशयस्थिता।
सदक्षराणां पत्रे च लेख्यं कुरु सदामम।।
या माया प्रकृतिः शक्तिश्रण्ड मुण्ड विमर्दिनी।
सा पूज्या सर्वदेवैश्र हास्माकं वरदा भव।।
सद्यश्छित्र शिरः कृपाणमभयंहस्तैर्वरं बिभ्रतीं।।
घोरास्यां शिरसां स्त्रजं सुरुचिरामुन्मुक्त-केशावलीम्।।
सृक्कासृक्-प्रवहांश्मशान निलयांश्रुत्योः शवालंकृतिं।
श्यामाडीं कृत मेखलां शव-करैदेवीं भजे कालिकाम।।

प्रार्थना करे:

ऊँ शारदा शारदम्भोज वदना वदनाम्बुजे।
सर्वदा सर्वदाअस्माकं सत्रिधिं सत्रिधिं क्रियात्।।

कुबेर पूजनम्:

तिजोरी अथवा रुपये रखे जाने वाले सन्दूक आदि को स्वस्तिकादि से अलड्कृत कर उसमें निधिपति कुबेर का आवाहन करे - 
आवाहन मुद्रा दिखाकर - उन पर मोली बांध पर कुबेर का पूजन करे।

विसर्जन:

पूजन के अन्त में हाथ में अक्षत लेकर नूतन गणेश एवं महालक्ष्मी की प्रतिमा को छोड़ कर अन्य सभी आवाहित प्रतिष्ठित एवं पूजित देवताओं को अक्षत छोडते हुए निम्न मन्त्र से विसर्जित करे -
यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम्।
इष्टकाम समृद्धर्थ पुनरागमनाय च।।


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श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चाहिए । पिता जीवित हो तो, गया श्राद्ध न करें । २. मां की मृत्यु (सौभाग्यवती स्त्री) किसी भी तिथि को हुईं हो , श्राद्ध केवल

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहि

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती है | अवि

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा जाता है   | पितृ पक्ष में अपने मित्रगण के मरण तिथि

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक होता है | पितृ श्राद्ध किस देव से स

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामान्य रूप से सभी मंगल कार्यों क

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नारंगी एवं लाल रंग के वस्त्र वस्तुओं का विशेष महत्व है। लाल पुष्प अक्षत रोली कलावा या मौली दूध द

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र हो | - क

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -