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सोमवती अमावस्या मृत्युनाशी, वैद्यव्यहारी :, दान : पुजा विधि ,- वर्जित -हल्दी,तिल या सरसों तैल,का प्रयोग.,रुई की बत्ती


सोमवती अमावस्या-क्या करे नहीं करे


मृत्युनाशी, वैद्यव्यहारी पुण्यप्रदा
सोमवार के दिन अमावस्या होने पर सोमवती अमावस्या पर्व कहलाता है। आकस्मिक मृत्यु को रोकने के लिये यह श्रेष्ठ है। इस योग में पीपल वृक्ष की पूजा की जाती है। विष्णु स्मरण होता है। 108 परिक्रमा की विधि है।
युधिष्ठिर अर्जुन को पितामह भीष्म द्वारा उत्तरा के गर्भ में मृत बच्चे को जीवित करने हेतु उपाय के रुप में यह पूजा बतायी गयी थी।
avoid-वर्जित -हल्दी,तिल या सरसों तैल,का प्रयोग.,रुई की बत्ती ;
सोमवती अमावस्या क्या है -
जब चंद्र अपनी भ्रमण पथिका पर सूर्य के ठीक एक लम्ब में सोमवार के दिन आ जाए तो सोमवती अमावस्या होती है।
सोमवार देवाधिदेव शिव का दिन माना गया है इस दिन शिव की पूजा करने से शीघ्र मनोवांछित फल मिलता है। शिव का संबंध देवी सरित श्रेष्ठ गंगा से है।
सोमवती अमावस्या को क्या करे?
इस योग में सर्वप्रथम स्नान का विशेष महत्व है। गंगा जल स्नान जल में मिलाकर स्नान करता अनेक पापो को नाश करने वाला होता है।
गंगा, नर्मदा, सतलुज या नर्मदा सोमवार श्राद्ध फल / निर्णय सिंधु
1. देव ब्रहस्पति के अनुसार सोमवार को श्राद्ध / पितरो को दान सौभाग्य सुख वर्धक होता है।
2. स्नान, जप, मौन रह कर करना हजार गाय दान जैसा फलप्रद होता है।
3. पीपल पर पानी, दीपक, परिक्रमा का विशेष महत्व है।
नदी में अथवा इनके जल में खडे होकर शिव की आराधना, स्मरण करना चाहिये।
पितरो को जल अर्पण करे, दक्षिण में मुंह कर। वस्त्र भोजन अन्न आदि का दान करे।

उपयोग निषेध
सोमवती अमावस्या को पूजा में रुई की वर्तिका का स्पर्श या प्रज्वलन न करे। अगरबती न जलाए। श्वेत वस्त्र का स्पर्श या प्रयोग नही करे। खाने में आलू, जिमिकंद, रतालू, अरबी एवं कंद मूल का प्रयोग न करे।
- तिल का तेल, भाजी का प्रयोग निषिद्ध है। इस दिन बिल्ब पत्र न तोडे क्या करे?
मूंग का प्रयोग उपयोगी है। तिल दान करे तथा दूध में अथवा ऐसे ही विष्णवे नमः कहकर पूर्व की ओर मुह कर चबाए खाऐ।
दीपक -
पीपल,दीपक,सूर्य स्मरण
गूगल, धूप, कपूर, गोरोचन का प्रयोग करे।
घी का दीपक वृक्ष के दाहिने एवं तेल का दीपक वृक्ष क बाऐ रखे।
चार या पांच दीपक या बतियां प्रयोग करे।

दीपक की वर्तिका कलावा, (मौलि जो पूजा के समय हाथ में बांधते है।)  ले यह विशेष उपयोगी होती है।
पीपल - पूर्व दिशा दीपक लगाने से मतभेद विरोध बढता है।
धन के लिये-उत्तर दिशा एवं दीर्घायु के लिये दक्षिण दिशा में लगाए।
पीपल वृक्ष की पूजा से एवं ओम खखोल्काय नमः सूर्य प्रसन्न होकर पद यश प्रदान करते है।

व्रत सरल विधि-
प्रातः स्नान। गंगा, समुंद्र एवं तीर्थ जल से स्नान करे। पीत वस्त्र धारण करे। भक्ष्य पदार्थ में हल्दी का प्रयोग करे। सरल मंत्र 108 बार ओम विष्णवे नमः या ओम नमो भगवते वासुदेवाय को जब समय हो स्मरण करे।
   पीपल की जड़़ में चार मुखी दीपक प्रज्जवलित करे। गाय का घी सर्वश्रेष्ठ है।
बाधा दोष नाशक सरसों तेलए दीपक बत्ती पश्चिम की ओर हो ।
सौभाग्य वधर्क महुऐ का तेलए वर्तिका उत्तरमुखी हो।
तिल का तेल शत्रुनाशक मृत्युरक्षक पितर प्रसन्नकर्ता - दक्षिण में दीपक वर्तिका हो ।
गाय के घी की वर्तिका पूर्व मुखी होे। एक दीपक आकाश तत्व हेतु उघ्र्वमुखी वर्तिका वाला पांच दीपक जलाऐ तो श्रेष्ठ है।
पीपल अश्वत्थ को सिंदूर एवं सुहाग सामग्री स्पर्श कराकर ग्रहण करे या सौभाग्य वती स्त्री को दान हेतु रख ले।
पीपल वृक्ष को नमन कर कहे -
विष्णवे नमः
ओम उधत कोटि दिवाकर ए मम निशं शंखं गदां पकजं चक्र सुमति संशोभि पाशर््व द्वयम। कोटि कोटि अंगद हार कुंडल धरं पीत अम्बर कौस्तुभै र्दीप्तं विश्वधरं स्ववक्षसि लसच्छी वत्स चिन्ह भजे ए
ध्यानार्थे अक्षत पुष्पाणि समर्पयामि .ओम विष्णवे नमः।
उदित होते करोडो सूर्य जैसा चमक वाले चारो हाथो में शंख गदा, पदम तथा चक्र धारक  आपके दोनो ओर भगवती लक्ष्मी तथा पृथ्वी है ।किरीट मुकुट केयूर हार व कुंडली से अलंकृत कौस्तुभ मणि धारी पीत वस्त्र से सज्जित वक्ष सीने पर श्री वत्स प्रतीक भगवान विष्णु का मैं सदैव ध्यान करती हूं।

पीपलवृक्ष वंदना -
नारद ने कहा अनायास, सहज ही इस लोक में पीपल वृक्ष सब कामना पूर्ण करने वाला सर्वदेव का निवासक है।
अश्वत्थदक्षिणे रुदेः पश्चिमे विष्णु स्थितः
ब्रम्हा च उत्तर देशस्थ, पूर्वे त्विन्द्र देवताः।
पीपल के दक्षिण में शिव, पश्चिम में विष्णु भगवानः उत्तर दिशा में ब्रम्हा एवं पूर्ण मां इंद्र स्थित है।
अश्वत्थ यस्मात त्वयि वृक्षराज नारायणस्तिष्ठति सर्वकाले। अतः श्रुतस्तवं सततं तरुणां धन्योसि चारिष्ट विनाशोकोसि।
पीपल वृक्ष में सदैव भगवान विष्णु विराजित है इनका स्मरण, श्रवण, अरिष्ट, बाधा शोक दुख विनाशक है।
आर्युबलं यशो वर्चः प्रजाः पशुवहानि च। ब्रम्हा प्रज्ञां च मेघां च त्वं नो देहि वनस्पते।
आयु, यश, बाक सिद्धि ज्ञान बुद्धि हे वृक्षराज प्रदान करे।
अश्वत्थाय वरेण्याय सर्वेश्वर्य प्रदायिने नमो दुस्वप्ननाशाय सुस्वरनफल दायिने।
है वृक्षराज आप आपको वरण करने वाले सभी सुख वैभव तथा ऐश्वर्य प्रदान करते हो।
मूलतः ब्रम्हारुपाय मध्यतो विष्णु रुपिणे। अग्रहः शिव रुपाय वृक्षराजाय ते नमः।    आपकी जड में ब्रम्हा जी तने मध्य में विष्णु भगवान उपरी भाग ने देवाधिदेव शिव जी निवास करते है। है वृक्षराज पीपल आपको बार बार नमस्कार करता हूं।
ये दृष्टवा मुच्यते रोगै स्पृष्टवा पापैः प्रमुच्यते।
यदाश्रयाचिरंजीवी तमश्वत्थे नमाम्यहम।
आपके दर्शन से रोग नाश होते है। स्पर्श से सब त्रुटियां पापो से मुक्ति मिलती है। आपके आश्रय में बैठने से दीर्घायु हेाते है हे वृक्षराज पीपल आपको मेरा नमन।
अश्वत्थ सुमहाभागे सुभग प्रियदर्शन। इष्ट कामांश्च मे देहि शत्रु भयस्तु पराभवम।
आपके दर्शन से सौभाग्य मिलता है, शत्रु पराजित होते है। कामनाऐ पूर्ण होती है। प्रिय मित्रो से मिलन होता है।
आयुः प्रजां धनं धान्यं सौभाग्यं सर्वसम्पदाम। देहि देव महावृक्ष त्वामहं शरणं गतः।
 आयु प्रजा पद अधिकार धन धान्य सुख सौभाग्य सब प्रकार की संपति है देव वृक्षराज मुझे प्रदान करे। मैं आपकी शरण में हूं।

पूजन सामग्री तथा भोज्य पदार्थ अर्पण
है वृक्षराज पीपल, अग्नि का आप मे निवास है। गोविद भगवान विष्णु के आप आधारभूत है। मेरे समस्त प्रारब्ध कर्म पाप और त्रुटियो का हरण करे। आपको मेरा कोटिशः नमस्कार।
संकल्प:
हाथ में जल लेकर संकल्प - ऊँ विष्णुः विष्णुः विष्णुः अथ भारतवर्षे माद्र शुक्ल अष्टभ्याम, वसरे, गोत्रा नाम्यहे, सकल पाप प्रारब्ध क्षय पूर्वक अखिल पुण्य फल उपलब्धये, पत्युः संततेश्च दीर्घायु, आरोग्य, लाभाय, सुख, समृद्धये संतति सुख लाभाय च पीपल तन्निष्ठस्य शंकरस्य विष्णो, गणेश्स्य पूजनं करिष्यामि।
विशेष मंत्र:
सामवेदियो हेतु आवश्यक अन्य हेतु सिद्धिप्रद दुर्लभ है।
ओम अश्वत्थाय नमः। ओम सर्वेश्वर ईश्वरायए
 सर्व विघ्न विनाशिने मधुसूदनाय नमः। स्वाहा आहुति
कपूर से आरती करे तो निम्न मंत्र पढे़ -
कदली गर्भ संभूत कर्पूर च प्रदीपितम्।
आरर्तिक्य महं कुर्वे पश्य मे वरदोभव। कर्पूर आरर्तिक्यं समर्पयामि।
पुष्पांजलि मंत्र -
नीलकमल से पूजा श्रेष्ठ भविष्य पुराण
नाना सुगंध, पुष्पाणि यथाकाल उदभवानि च। पुष्पांजलिभ्या दंत गृहाण परमेश्वर। मंत्र पुष्पांजलि युक्तं नमस्कारं समर्पयामि भगवान के चरणो में अर्पित करने के पूर्व कहे -
ओम यज्ञेन यज्ञ भय जन्त देव स्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्। ते ह नाकं महिमानः संचत यत्र पूर्वे साध्याः संति देवाः।
परिक्रमा. .यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च। तानि तानि विनशयन्ति प्रदक्षिण पदे पदे। प्रदक्षिणा समर्पयामि।
साष्टांग दंड वत:
पृथ्वी पर भगवती के सामने करबद्वलेरन नमः सर्वहिताथाय जगद आधार हेतवे। साष्टांग अयं प्रणमस्ते प्रयत्नेन मया कृतः साष्टांग नमस्कार समर्पयामि।
क्षमा प्रार्थना:
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम। पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि।


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