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सोमवती अमावस्या कथा -रोचक विवरण -महाभारत संदर्भ

सोमवती वती अमास्या ,

सोमवती अमावस्या का महत्व -

 अमावस्या के दिन सोमवार का योग होने पर उस दिन देवताओं को भी दुर्लभ हो ऐसा पुण्यकाल होता है क्योंकि गंगा, पुष्कर एवं दिव्य अंतरिक्ष और भूमि के जो सब तीर्थ हैं, वे ‘सोमवती (दर्श) अमावस्या के दिन जप, ध्यान, पूजन करने पर विशेष धर्मलाभ प्रदान करते हैं ।  

सूर्यग्रहण तुल्य महत्व की 4 तिथियाँ-                                                                 सोमवती अमावस्या, रविवारी सप्तमी, मंगलवारी चतुर्थी, बुधवारी अष्टमी - ये चार तिथियाँ सूर्यग्रहण के बराबर कही गयी हैं । इनमें किया गया स्नान, दान व श्राद्ध अक्षय होता है ।                      -*सोमवती अमावस्याः दरिद्रता निवारण इस दिन भी मौन महत्व+ स्नान करने से हजार गौदान का फल होता है।                                                                                               -- - चिरंजीव उपाय -पीपल और भगवान विष्णु का पूजन तथा उनकी 108 प्रदक्षिणा करने का विधान है। 108 में से 8 प्रदक्षिणा पीपल के वृक्ष को कच्चा सूत लपेटते हुए की जाती है। प्रदक्षिणा करते समय 108 फल पृथक रखे जाते हैं। बाद में वे भगवान का भजन करने वाले ब्राह्मणों या ब्राह्मणियों में वितरित कर दिये जाते हैं। ऐसा करने से संतान चिरंजीवी होती है।                                                                                                              - तुलसी की 108 परिक्रमा करने से धन भाव या दरिद्रता मिटती है।                                                     किस राशी को अवश्य दान एवं पूजा या दर्शन करना चाहिए   -ज्योतिष-वृष,कन्या एवं मीन ,वृश्चिक,मेष,कुम्भ राशी , दान पूजा करेंगे तो आपत्ति विपत्ति नष्ट होगी .                       महाभारत के युद्ध के पश्चात युधिष्ठिर पितामह भीष्म के पास गए। पितामह भीष्म शर शया पर उतरायण सूर्य की प्रतीक्षा में मृत्यु को रोके हुए, बाणों की पीडा दायी चुमन पर अशक्त शयासीन थे।                     कथा घटना- पितामह भीष्म को नमन कर युधिष्ठिर बोले .पितामह दुर्योधन की हठ एवं राज्य लिप्सा, भीम की कौरवो का नाश प्रतिज्ञा के कारण आज कोई राजा योग्य शेष नही रहा है। भरतवंशी केवल हम पांडव ही पांच शेष है। एक छत्र निर्विघ्न शत्रुविहीन हमारा राज्य है। बहु उतरा के गर्भ का पिंड भी अश्वत्थामा ने समाप्त कर दिया। मुझे वैसे ही भोग विलास से कोई रुचि नही है। वंश विनाश से मन व्यथित, दुखित है। संतान शेष नही रहने से संतृप्त हृदय है। हे पितामह आप ही कोई चिरजीवी संतान का उपाय बताइये।                                                                                                          पितामह भीष्म ने कहा - चिरजीवी, दीर्घायु वाली संतान के लिये सफल उपाय सुनो। जब सोमवार के दिन सोमवती अमावस्या हो। वनस्पतियों में जनार्दन विष्णु स्वरुप वृक्ष है पीपल उस वृक्ष की एक सौ आठ परिक्रमा करना चाहिये। 108 की संख्या में कोई भी प्रिय वस्तु पुष्प फल, मिठाई, रत्न आभूषण धातु जो सार्मथ्य तथा श्रद्धा में हो। प्रति परिक्रमा पृथक पृथक रखते जाओ। पीपल की 108 परिक्रमा पूर्ण करे। यह व्रत तुम उत्तरा से कराओ। उसका गर्भ जो उदर में अश्वत्थामा के प्रयोग से मृत हो गया है वह जीवित हो जाएगा। ।राजा युधिष्ठिर ने जिज्ञासा, उत्सुकतावश प्रश्न किया- पितामह इस व्रत को सर्वप्रथम किसने किया तथा कैसे परंपरा प्रचलन में आयी।                                                                                           पितामह भीष्म - धनदेव कुबेर की नगरी जैसी धन, सुख उपभोग भोग विलास वाली एक कांची नगरी विख्यात थी । इस नगरी में अप्सरा सदृश अनुपम सौंदर्यशालिनी नारियां थी । गणिकाए नगर वधू, वेश्याओ इस नगरी में बहुसंख्य थी ।                                                                      राजा रत्नसेन इस कांची नगरी का राजा था। इस नगर में सर्व वर्ग जातियां अपने अपने कार्य में दक्ष एवं पूर्ण मनोयोग से धर्म पालनरत थे। देवस्वामी नामक श्रेष्ठ ब्राहम्ण इस राज्य में रहता था। इसकी सर्वांग सुंदरी धनवती पत्नी लक्ष्मी स्वरुपा थी। ब्राहम्ण देवस्वामी के सात पुत्र व एक गुणज्ञा रुपवती छोटी कन्या गुणवती नामकी थी। सभी पुत्र विवाहित थे परंतु समतुल्य वर नही मिलने से कन्या गुणवती अविवाहित ही थी।       एक दिन एक ब्राहम्ण भिक्षार्थ उस ब्राहम्ण के द्वार आया। उसका मुखमंडल तेज से देदीप्त था। ब्राहम्ण की सभी पुत्र बधुओ ने इस ब्राहम्ण को कुछ न कुछ भेंट किया। उस याचक ब्राहम्ण को कुछ न कुछ भेट किया उस याचक ब्राहम्ण ने सब बधुओ को सुख सौभाग्य संपति का आशीर्वाद दिया। कन्या गुणवती भी तेजवान सुंदर ब्राहम्ण के पास गयी, उसको नमन किया तथा भोज्य सामग्री उसको प्रदान की।                    ब्राहम्ण ने आशीर्वाचन में कहा - शुभे कल्याणि तुम सदैव धर्मवती रहो। कन्या गुणवती ने इस आशीष को सुना ग्रहण किया तथा त्वरित गति से मां के समीप जाकर कहा मां द्वार पर उपस्थित ब्राहम्ण ने सब भाभियो को सुख सौभाग्य संपति का आशीर्वाद दिया। मुझे केवल धर्मवती रहने का आर्शीवचन कहा।               मां, शीघ्र बिटिया का हाथ पकड कर उस ब्राहम्ण के पास गयी। बिटिया गुणवती के अभिवादन के उत्तर में ब्राहम्ण ने पूर्ववत धर्मानुरागिणी रहने का आशीर्वाद दिया।                                                   मां उस श्रेष्ठ द्वारागत विप्र से चिंता एवं जिज्ञासा के स्वर में कहने लगी हे "श्रेष्ठज्ञ विप्र आपने मेरी पुत्रवधुओ को सुख सौभाग्य संपति की शुभकामना प्रदान की परंतु मेरी अनुपम सुंदरि गुणवती को धर्मवती होने का आशीष ही केवल क्यो दुहराया? कृपया समाधान करे, किस कारण क्यो आप धर्मवती होना ही कह रहे है?                                                                                                        श्रेष्ठ विप्र त्रिकालज्ञ था उसने कहा" धनवती तुम पृथ्वीमंडल पर अपने चरित्र एवं धर्म के लिये प्रसिद्ध हो तुम धन्य हो। तुम्हारी पुत्री को मैने यथायोग्य ही आशीर्वचन कहे है। प्रारब्ध प्रबल होता है ,विवाह-संस्कार के समय ही वैधव्य  से ग्रस्त हो जाएगी। इसलिये धर्माचरण ही एक मात्र इसका शेष जीवन रह जाएगा। अतः मैने ऐसा कहा था कि तू धर्मवती हो।                                   यह आशीर्वाद और उसका कारण परम रहस्य उदघाटित होते ही मां धनवती ने व्याकुल, चिंतातुर हो कर विप्र से निवेदन याचना भरे दुखी रचर में कहा हे "विप्र श्रेष्ठ यदि आप इस प्रारब्ध जन्य पाप मोचन भवितव्यता को रोकने का कोई उपाय अवश्य जानते होगे, कृपया उस उपाय पर प्रकाश डालकर मुझे अवसाद ,चिंता से मुक्त करने की परम कृपा करिये।                                                                                                         विद्वान ब्राहम्ण ने यत्किंचित क्षण विचार मुद्रा बनायी फिर धीर गंभीर बाणी में बोला -       कल्याणि परमा धनवती यदि तेरे घर में सोमा का प्रवेश हो जाए तो उसके पूजन अर्चन मात्र से इसका वैधव्य दोष / पाप समाप्त हो जाएगा। ब्रहाणी धनवती.यह सोमा कौन है? इसका निवास कहा है ? इसकी जाति क्या है? मैं आपका समय अपने स्वार्थ के कारण व्यर्थ नहीं करना चाहती, कृपया शीघ्र बताकर आप गंतव्य दिशा को प्रस्थान   कर सकतेहैं. *                                                                                                          विप्र याचक भिक्षार्थी ने कहा .सिंहल द्वीप पर एक प्रसिद्ध धोबिन सोमा है। प्रयास करो। ब्रहाणी ने अपने परिवार के साथ बैठकर ,रातः जलपान के समय सभी  परिवार के सदस्यों को कन्या गुणवती के वैधव्य वाली वार्ताए विप्र के कथन से अवगत कराया। सभी सदस्यों के चेहरो पर चिंता की रेखाऐ उभर गयी ।सभी अवाक रह गए।                                                                                                     मां ने पुत्रो को संबोधित कर कहा - तुम्हारी यह छोटी बहिन, हतभाग्या बैचारी वैधव्य का प्रारब्ध, इस जन्म में लिखवा लायी है। सोमा धोबिन के इस घर में आनेे से भाल का कुअक मिट जाएगा दुर्भाग्य रेखा दूर हो जाएगी। गुणवती के भाईयो तथा अपने पुत्रो की ओर से कोई तात्कालिक प्रतिक्रिया नही मिलने से ब्रहाणी धनवती पुनः कहने लगी. जो पुत्र पिता का आज्ञाकारी हो एवं मां का गौरव हो ,लाल हो, वह गुणवती को साथ लेकर सिंहल द्वीप जाऐ एवं सोमा धोबिन को लेकर इस घर में आए । सभी सात पुत्र एक दूसरे की ओर देखने लगे।  कल्पना से ही पुत्र वधुऐ चिंता ग्रस्त हो गयी।  भाई अधोमुखी बैठ गए।                        एक भाई ने कहा - मां आप हमारी गुणवती बहिन के भविष्य का लेेकर चिंतित हो, हम सब समझ रहे है। हमारे लिये भी यह बात चिंता का विषय है। आप संतान व्यामोह में, यह तो सोचिये चार सौ कोस ;800 मील समुद्र के उस पार सिंहल द्वीप हमे जाने को कह रही है। यह पथ कितना दुर्गम, दुसह, दुसाध्य और दुर्दान्त मानव पशुओ से युक्त है। आप गुणवती के स्नेह में भावनाओ की उत्ताल तरंगो से व्यथित, दुखित प्रताडित है, इसलिये विचार निर्णय बुद्धि से नहीं कर पा रही है। भावनाओं के अथाह स्नेह सागर से बाहर वास्तविक प्रायोगिक संसार में आकर धैर्य, शंति से तो तनिक सोचिये। हम लौट कर वापस न आ सके, हम विवाहित है, हमारे न रहने पर पत्नी का क्या होगा? उसका वैधव्य नही हो जाएगा आदि आदि। हम सिंहल द्वीप नही जा सकते है। ऐसा कहकर भाई चुप हो गया। अन्य भाई सहमति, स्वीकारोक्ति की मुद्रा में अबोले निःशब्द बैठे रहे। पुत्र वधुओ  के मुखमंडलो स अनहोनी की लकीर,दुश्चिता की रेखा तिरोहित हो गयी .अदृश्य हो गयी। संतोष के भाव ,मुक्ति के भाव उभर आए मुखमंडलो पर ।                                  - ब्राहम्ण देवस्वामी इस अनपेक्षित उत्तर को सुनकर आक्रोशित एवं असहाय जन्य दुख से बोला .मेरे सात पुत्र है। आज मैं पुत्र हीनता की प्रतीति कर रहा हूं। इनको जन्म देना इनका भरण पोषण करना व्यर्थ गया। मैं स्वयं अपनी पुत्री गुणवती के भविष्य के लिये ,सिंहल द्वीप कल ही प्रस्थान करुंगा। -  अभी ब्राहम्ण देवसेन भावावेश में क्रोधजन्य कथ्य पूरा कर भी नहीं सके थे कि,सबसे छोटा पुत्र शिवस्वामी जो देवसेन का सर्वाधिक लाडला था, व्यतिक्रम, व्यवधान करते हुए दृढ़़ प्रतिज्ञ शब्दो का प्रयोग करके  बोलने उठ खडा हुआ.. हे देवतुल्य पिता आप भइया के अनपेक्षित उत्तर से क्रोधावेश में ओर कुछ नही बोलिये। मेरे होते हुए आपको कोई चिंता करने की आवश्यकता नही है। मैं आज ही अभी सिंहल द्वीप बहिन गुणवती को लेकर प्रस्थान करना चाहता हूं। मां धनवती पिता देवसेन अवाक छोटे पुत्र को देखते रह गए ।उसकी निश्चय भरी बातो ने उनका मुंह बंद कर दिया। मध्यान्ह तक आवश्यक समान ले बहिन गुणवती को साथ लेकर सबको चरणभिवादन कर सिंहलद्वीप हेतु छोटा पुत्र प्रस्थित हो गया। 

देव कृपा एवं अनुकूलतावश- गहन वन , निर्जन पथ ,मांस भक्षी मानव पशुओ ,विषैले जीवो से सुरक्षित दोनो भाई बहिन निर्विहन यात्रा कर अपेक्षा से पूर्व विशाल समुंद्र तट पर पहुंच गए। समुंद्र तट पर एक विशाल वट वृक्ष था। उस वृक्ष के एक कोटर ,खोखले भाग में विशाल गृधराज  गिद्ध के बच्चे बैठे थे। उस वट वृक्ष के नीचे दोनो भाई बहिन विश्राम करने लगे। सायं समय गृध अपने बच्चो के लिये भोजन लेकर आया और बच्चो को भोजन कराने का उपक्रम करने लगा।                                                          बच्चे भोजन नीचे गिराने लगे। गृध ने पूछा. बच्चो भोजन क्यो नीचे गिरा रहे हो तुम दिन भर से भूख प्यासे हो? तुम्हारे लिया ताजा कोमल कोमल मांस लाया हूं। भूखे प्यासे क्षुधातुर होकर भी क्यों ग्रहण नही कर रहे हो, बच्चो ने कहा - हे तात  दिन भर से वृक्ष की जड़ पर इस वृक्ष की शरण में दो मानव बैठे है. वे निश्चय ही भूखे है ,अतः उनके बिना, हमे भोजन करना अच्छा व उचित नही प्रतीत हो रहा है। गृध पिता बच्चो की परोपकारी बाते सुनकर प्रसन्न हुआ और स्वयं दया से भरकर करुणार्द्र हो कर उन दोनोे के पास पहुंचा।    गृध बोला. हे विप्र आप दोनो कौन है? किस उद्देश्य से आपका आगमन हुआ? आप मुझे सब कुछ बताइये। भोजन करिये। जो भी संभव होगा, मैं आपके लिये प्रयास कर स्वयं को कृतार्थ समझूंगा।                 शिव स्वामी गुणवती के भाई ने अपने आने का उद्देश्य बताया तथा कहा बहिन के वैधव्य नाश हेतु सिंहल द्वीप जाकर, सोमा घोबिन को घर ले जाना है। गृध ने कहा .आप विश्राम करे रात्रि यही शयन करे। प्रातः मैं आप दोनों को समुद्र के उस पार ले जाउंगा तथा सोमा धोबिन का घर भी दिखा दूंगा।                    अपने वचनानुसार गृधराज ने दोनो भाई बहनो को समुद्र पार उतर कर सोमा धोबिन कर घर भी दिखा दिया। दोनो भाई बहनो विचार किया कि ,यह सोमा धोबिन, हमारे साथ हमारे हितार्थ अपना परिवार छोडकर क्यो जाएगी? इसके पश्चात दोनो ने सोमा धोबिन को  प्रसन्न करने के लिये एक  योजना बनायी ओर अपनी  योजना कार्य करने लगे।                                                                        सोमा प्रातः नित्य प्रति प्रातःदेखती कि  उसका आंगन द्वार स्वच्छ लिपा पुता सुंदर मिलता। सोमा सोचती रही कि मेरी कोई बहू ये सब तो करती है क्या?  परंतु फिर उसके मन में विचार आया पहले आज तक इसके पूर्व इतनी स्वच्छता, सुंदरता लिपाई पुताई तो कभी नही होती थी। ऐसी कौन सी बहु है ,जो प्रातः सूर्योदय पूर्व मेरा घर द्वार इतना स्वच्छ सुंदर करती है।                                                               यह जानकारी के लिये पुत्र वधुओ को बुलाकर उसने पूछा. "तुम में से कौन मेरी ऐसी बहू है ,जो मुझसे पूर्व उठकर रोज झाडू बुहारी गोबर से लिपाई तथा घर का द्वार पुष्पो से सजाती है?"                      सभी बहू एक दूसरे को देखने लगी,फिर समवेत स्वर में कहा. मां हम ने तो यह नही किया। फिर वे स्वयं आश्चर्यान्वित हो गयी कि ,हमने नही ता ये कौन करता है?                                                   सोमा आगामी रात्रि को अर्धरात्रि के पश्चात स्वयं छिप कर बैठ गयी ,यह देखने के लिये यह कार्य कौन करता है? सूर्योदय से दो ढाई घंटा पूर्व उसने देखा ,एक अनुपम सुंदर कन्या घर द्वार पर झाडू लगा रही है। एक सुंदर लडका पीछे पीछे झडे हुए स्थान पर बडी सफाई, स्वच्छता से लीपने का कार्य कर रहा है। जब वे दोनो कार्य करते के पश्चात जाने लगे तो सोमा उनके पास पहुंचकर बोली रुको, सुनो तुम दोनों कौन हो? क्यो ये सब करते हो?                                                                                                  भाई ने कहा .हम ब्राहम्ण है। 

बस इतना सुनते ही सोमा प्रायश्चित भरे शेष भरे स्वर में बोली ."कैसे ब्राहम्ण हो? मैं धोबिन हूं छोटी जाति की हूं? पाप जातिन हूं। तुमने मेरा धर्म नष्ट कर दिया। मेरे घर झाडू बुहारी कर मुझे पाप भागिनी बना दिया। न जाने मेरी क्या दुर्दशा होगी  ? क्या क्या मुझे भोगना पडेगा।? तुम ब्राहम्ण होकर यह सब दोनो क्यो करते हो?"                                                                                                  शिवस्वामी ने पूरा वृतांत सोमा धोबिन, को बताया तथा याचना पूर्ण स्वर में निवेदन किया यदि आप मेरी बहिन गुणवती के पास होगी तो इसका वैधव्य दोष समाप्त हो जाएगा .कृपया आप मेरी बहिन पर कृपा करे। सोमा ने पूरी बात अपने पुत्र पुत्र वधुओ को बतायी तथा कहा ."मैं इनके साथ जा रही हूं। मेरे वापस आने तक यदि इस राज्य में किसी की मृत्यु हो जाए तो उस शव को सुरक्षित रखना। दाह कर्म नही करने देना ,उस मृतक की रक्षा करना।"                                                                सोमा ने अपने तपोबल से दोनो भाई बहन को समुद्र पार उतार दिया ओर फिर सब कांचीपुर नगर पहुच गए। सोमा का धनवती ने स्वागत सत्कार सम्मान आतिथ्य किया। पिता के निर्देश पर पुत्र शिव स्वामी ने उज्जयनी नगर में पहुच कर ,पंडित देवशर्मा के पुत्र रुद्रशर्मा को आमंत्रित किया तथा विधिवत गुणवती बहिन का पाणि ग्रहण संस्कार रुद्रशर्मा के साथ धोबिन सोमा की उपस्थिति में प्रारंभ हो गया परंतु सप्तपदी फेरे के मध्य रुद्रशर्मा अचेत होकर गिर गया ।                                                                            सब उपस्थित जन रुदन ,विलाप ,शोक करने लगे। सोमा शांत थी । सोमा ने मृत्युनाशक पुण्य, संकल्प कर विधि पूर्वक गुणवती के हाथ में दे दिया। इस पुण्य के प्राप्त होते ही रुद्रशर्मा उठ बैठा।                      सोमा ने धनवती को व्रतराज सोमवती अमावस्या व्रत की विधि बतायी तथा गुणवती को आशीष देकर घर के लिये प्रस्थित हो गयी।                                                                                      1-सोमा को मार्ग में मृतको को जीवन देने वाली सोमवती अमावस्या पडी। सोमा को मार्ग में एक रुई के बोझ के नीचे दबी करुण क्रंदन करती हुई एक वृद्धा दिखी। सोमा उसके पास पहुची बोली मां आज सोमवती अमावस्या है .मैं रुई को स्पर्श नही करती।                                                                2-इसके बाद एक वृद्धा लकडी जडो से दबी दिखी उसकी याचना पर भी सोमा ने कहा मूल जड ,में मै सोमवती अमावस्या के कारण स्पर्श नही करती। इसलिये आपकी सहायता नही कर सकती क्षमा करे। 

3-फिर उसे एक पीपल का वृक्ष नदी के किनारे दिखा। सोमा ने पीपल वृक्ष की भगवान विष्णु का ध्यान व पूजा की पीपल वृक्ष की 108 परिक्रमा की।                                                                सोमा के द्वारा जैसे ही पाणिग्रहण संस्कार के समय मृत्युनाशी पुण्य गुणवती को दिया गया था उसके पश्चात ही , उसके पुत्र, पति तथा दामाद की मृत्यु एक एक कर होती गयी। सोमा का घर वियोग जन्य विलाप करुण कंदन के कोहराम युक्त स्वरो से भर गया।                                                              सास के निर्देशानुसार पुत्र वधुओ ने मन पर धीरज रख कर, उन सब मृतको के शव सुरक्षित रख लिये थे। सोमवती अमावस्या की 108 वी परिक्रमा करते ही एउसके सभी संबंधी पति, पुत्र दामाद उठ कर बैठ गए। सोमा जब घर पहुंची तो पुत्रवधुओ ने अपने 2 अपने तरीके से सब घटनाक्रम बताया। .

 सोमा बोली .मैने सोमवती अमावस्या को व्रत रखा। पीपल वृक्ष तथा भगवान विष्णु की ध्यान. पूजा की एवं रुई, जड मूल को स्पर्श नही किया। 108 परिक्रमा गुड की डलियो से की। मुझे ज्ञात है 108वीं परिकमा पूरी होते ही सब प्राणवान हो गए। तुम सब अभी पीपल वृक्ष की पूजा विष्णु भगवान का मंत्र का जप एवं 108 प्रदक्षिणा करो । इस व्रत के प्रभाव से वेधव्य ,पुत्र की आकस्मिक मृत्यु, दामाद मत्यु नही, आयु वृद्धि होती हैं ।  

 विधि-                                                                                                  यह सौभाग्य व्रत हैं, भीष्म ने यह व्रत अर्जुन एवं पांडवो को बताया। पूजा पश्चाताप विष्णवे नमः कहकर 108 परिक्रमा बच्चे धागे को बांधते हुए एवं प्रति परिक्रमा गुड या शकर से 108 गोल गोल छोटे छोटे बरगद के फल जैसे बना ले .बरगदा पकवान किसी थाली में रखते जाए। बाद मे बच्चो के वितरित कर दें। मृत्युनाशी, वैद्यव्यहारी पुण्यप्रदा सोमवार के दिन अमावस्या होने पर सोमवती अमावस्या पर्व कहलाता है। आकस्मिक मृत्यु को रोकने के लिये यह श्रेष्ठ है। इस योग में पीपल वृक्ष की पूजा की जाती है। विष्णु स्मरण होता है।  108 परिक्रमा की विधि है। युधिष्ठिर अर्जुन को पितामह भीष्म द्वारा उत्तरा के गर्भ में मृत बच्चे को जीवित करने हेतु उपाय के रुप में यह पूजा बतायी गयी थी।                                                 avoid-वर्जित -हल्दी,तिल या सरसों तैल,का प्रयोग.,रुई की बत्ती ;                                 सोमवती अमावस्या क्या है - जब चंद्र अपनी भ्रमण पथिका पर सूर्य के ठीक एक लम्ब में सोमवार के दिन आ जाए तो सोमवती अमावस्या होती है। सोमवार देवाधिदेव शिव का दिन माना गया है इस दिन शिव की पूजा करने से शीघ्र मनोवांछित फल मिलता है। शिव का संबंध देवी सरित श्रेष्ठ गंगा से है।         सोमवती अमावस्या को क्याकरे?                                                                          इस योग में सर्वप्रथम स्नान का विशेष महत्व है। गंगा जल स्नान जल में मिलाकर स्नान करता अनेक पापो को नाश करने वाला होता है। गंगा, नर्मदा, सतलुज या नर्मदा सोमवार श्राद्ध फल / निर्णय सिंधु ग्रन्थ -         1. देव ब्रहस्पति के अनुसार सोमवार को श्राद्ध / पितरो को दान सौभाग्य सुख वर्धक होता है।     2. स्नान, जप, मौन रह कर करना हजार गाय दान जैसा फलप्रद होता है।                                  3. पीपल पर पानी, दीपक, परिक्रमा का विशेष महत्व है। नदी में अथवा इनके जल में खडे होकर शिव की आराधना, स्मरण करना चाहिये। पितरो को जल अर्पण करे, दक्षिण में मुंह कर। वस्त्र भोजन अन्न आदि का दान करे।                                                                                                उपयोग निषेध- सोमवती अमावस्या को पूजा में रुई की वर्तिका का स्पर्श या प्रज्वलन न करे।       -अगरबती न जलाए। श्वेत वस्त्र का स्पर्श या प्रयोग नही करे।                                               भोजन में आलू, जिमिकंद, रतालू, अरबी एवं कंद मूल का प्रयोग न करे।                                    - तिल का तेल, भाजी का प्रयोग निषिद्ध है।                                                               -इस दिन बिल्ब पत्र न तोडे क्या करे?                                                                                    उपयोगी दान भोजन -  मूंग का प्रयोग उपयोगी है। तिल दान करे .तिल दूध में अथवा ऐसे ही विष्णवे नमः कहकर पूर्व की ओर मुह में चबाए खाऐ।                                                    दीपक - पीपल,दीपक,सूर्य स्मरण गूगल, धूप, कपूर, गोरोचन का प्रयोग करे। घी का दीपक वृक्ष के दाहिने एवं तेल का दीपक वृक्ष क बाऐ रखे। चार या पांच दीपक या बतियां प्रयोग करे। दीपक की वर्तिका कलावा, (मौलि जो पूजा के समय हाथ में बांधते है।) ले यह विशेष उपयोगी होती है।                              दीप वर्तिका दिशा पीपल - पूर्व दिशा दीपक लगाने से मतभेद विरोध बढता है। धन के लिये-उत्तर दिशा एवं दीर्घायु के लिये दक्षिण दिशा में लगाए। पीपल वृक्ष की पूजा से एवं ओम खखोल्काय नमः मन्त्र से सूर्य प्रसन्न होकर पद यश प्रदान करते है।                                                                               व्रत सरल विधि- प्रातः स्नान  गंगा, समुंद्र एवं तीर्थ जल से स्नान करे। पीत वस्त्र धारण करे। भक्ष्य पदार्थ में हल्दी का प्रयोग करे। सरल मंत्र 108 बार ओम विष्णवे नमः या ओम नमो भगवते वासुदेवाय को जब समय हो स्मरण करे।                                                                             पीपल की जड़़ में चार मुखी दीपक प्रज्जवलित करे। गाय का घी सर्वश्रेष्ठ है।                              बाधा दोष नाशक सरसों तेल  दीपक बत्ती पश्चिम की ओर हो ।                                         सौभाग्य वधर्क महुऐ का तेल- वर्तिका उत्तरमुखी हो।                                                      तिल का तेल शत्रुनाशक मृत्युरक्षक पितर प्रसन्नकर्ता - दक्षिण में दीपक वर्तिका हो ।                       गाय के घी की वर्तिका पूर्व मुखी होे।                                                                        एक दीपक आकाश तत्व हेतु (उर्ध्वमुखी ऊपर बत्ती खड़ी) वर्तिका वाला पांच दीपक /पांच बत्ती का जलाऐ तो श्रेष्ठ है।                                                                                        पीपल अश्वत्थ को सिंदूर एवं सुहाग सामग्री स्पर्श कराकर ग्रहण करे या सौभाग्य वती स्त्री को दान हेतु रख ले पीपल वृक्ष को नमन कर कहे - विष्णवे नमः ओम उधत कोटि दिवाकर , मम निशं शंखं गदां पकजं चक्र सुमति संशोभि पाशव द्वयम। कोटि कोटि अंगद हार कुंडल धरं पीत अम्बर कौस्तुभै र्दीप्तं विश्वधरं स्ववक्षसि लसच्छी वत्स चिन्ह भजे . ध्यानार्थे अक्षत पुष्पाणि समर्पयामि .ओम विष्णवे नमः।                                                                                                    अर्थ-उदित होते करोडो सूर्य जैसा चमक वाले चारो हाथो में शंख गदा, पदम तथा चक्र धारक आपके दोनो ओर भगवती लक्ष्मी तथा पृथ्वी है ।किरीट मुकुट केयूर हार व कुंडली से अलंकृत कौस्तुभ मणि धारी पीत वस्त्र से सज्जित वक्ष सीने पर श्री वत्स प्रतीक भगवान विष्णु का मैं सदैव ध्यान करती हूं।                 पीपल वृक्ष वंदना - नारद ने कहा अनायास, सहज ही इस लोक में पीपल वृक्ष सब कामना पूर्ण करने वाला सर्वदेव का निवासक है। अश्वत्थदक्षिणे रुदेः पश्चिमे विष्णु स्थितः ब्रम्हा च उत्तर देशस्थ, पूर्वे त्विन्द्र देवताः।                                                                                                  पीपल के दक्षिण में शिव, पश्चिम में विष्णु भगवानः उत्तर दिशा में ब्रम्हा एवं पूर्ण मां इंद्र स्थित है।       अश्वत्थ यस्मात त्वयि वृक्षराज नारायणस्तिष्ठति सर्वकाले। अतः श्रुतस्तवं सततं तरुणां धन्योसि चारिष्ट विनाशोकोसि।                                                                                  पीपल वृक्ष में सदैव भगवान विष्णु विराजित है इनका स्मरण, श्रवण, अरिष्ट, बाधा शोक दुख विनाशक है। आर्युबलं यशो वर्चः प्रजाः पशुवहानि च। ब्रम्हा प्रज्ञां च मेघां च त्वं नो देहि वनस्पते।              आयु, यश, बाक सिद्धि ज्ञान बुद्धि हे वृक्षराज प्रदान करे।                                                     अश्वत्थाय वरेण्याय सर्वेश्वर्य प्रदायिने नमो दुस्वप्ननाशाय सुस्वरनफल दायिने।                         है वृक्षराज आप आपको वरण करने वाले सभी सुख वैभव तथा ऐश्वर्य प्रदान करते हो।                  मूलतः ब्रम्हारुपाय मध्यतो विष्णु रुपिणे। अग्रहः शिव रुपाय वृक्षराजाय ते नमः।                आपकी जड में ब्रम्हा जी तने मध्य में विष्णु भगवान उपरी भाग ने देवाधिदेव शिव जी निवास करते है। है वृक्षराज पीपल आपको बार बार नमस्कार करता हूं।                                                         ये दृष्टवा मुच्यते रोगै स्पृष्टवा पापैः प्रमुच्यते। यदाश्रयाचिरंजीवी तमश्वत्थे नमाम्यहम।             आपके दर्शन से रोग नाश होते है। स्पर्श से सब त्रुटियां पापो से मुक्ति मिलती है। आपके आश्रय में बैठने से दीर्घायु हेाते है हे वृक्षराज पीपल आपको मेरा नमन।                                                    अश्वत्थ सुमहाभागे सुभग प्रियदर्शन। इष्ट कामांश्च मे देहि शत्रु भयस्तु पराभवम।                   आपके दर्शन से सौभाग्य मिलता है, शत्रु पराजित होते है। कामनाऐ पूर्ण होती है। प्रिय मित्रो से मिलन होता है आयुः प्रजां धनं धान्यं सौभाग्यं सर्वसम्पदाम। देहि देव महावृक्ष त्वामहं शरणं गतः।               आयु प्रजा पद अधिकार धन धान्य सुख सौभाग्य सब प्रकार की संपति है देव वृक्षराज मुझे प्रदान करे। मैं आपकी शरण में हूं। पूजन सामग्री तथा भोज्य पदार्थ अर्पण है वृक्षराज पीपल, अग्नि का आप मे निवास है। गोविद भगवान विष्णु के आप आधारभूत है। मेरे समस्त प्रारब्ध कर्म पाप और त्रुटियो का हरण करे। आपको मेरा कोटिशः नमस्कार।                                                                                     संकल्प: हाथ में जल लेकर संकल्प – ऊँ विष्णुः विष्णुः विष्णुः अथ भारतवर्षे माद्र शुक्ल अष्टभ्याम, वसरे, गोत्रा नाम्यहे, सकल पाप प्रारब्ध क्षय पूर्वक अखिल पुण्य फल उपलब्धये, पत्युः संततेश्च दीर्घायु, आरोग्य, लाभाय, सुख, समृद्धये संतति सुख लाभाय च पीपल तन्निष्ठस्य शंकरस्य विष्णो, गणेश्स्य पूजनं करिष्यामि। विशेष मंत्र: सामवेदियो हेतु आवश्यक अन्य हेतु सिद्धिप्रद दुर्लभ है। ओम अश्वत्थाय नमः। ओम सर्वेश्वर ईश्वराय सर्व विघ्न विनाशिने मधुसूदनाय नमः  स्वाहा आहुति.                                     कपूर से आरती करे तो निम्न मंत्र पढे़ -                                                               कदली गर्भ संभूत कर्पूर च प्रदीपितम्। आरर्तिक्य महं कुर्वे पश्य मे वरदोभव। कर्पूर आरर्तिक्यं समर्पयामि।                                                                                                     पुष्पांजलि मंत्र - 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चंद्रमा की पूजा- चन्द्रमसे नम:। । पितृगण पित्रेभ्य नम:।। -स्नान जल मे काले तिल मिला कर स्नान करे ।। -शमी वृक्ष पर जल अर्पण करे । -पीपल वृक्ष में मिश्री मिश्रित दूध से अर्घ्य देने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। -पीपल वृक्ष की जड़ के समीप तिल तैल का चर बत्तियों का दीपक , चार वत्तियाँ ,चार दिशाओं में हों । -दीपक वर्तिकाये लाल,नारंगी या अनेक रंग की हो (श्वेत रंग की नहीं)। दीपक की बत्ती की दिशा उत्तर श्रेष्ठ,पूर्व दिशा उत्तम । मंत्र -- ॐ पिप्पलाद , कौशिक ऋषये नमः । विष्णवे नम:,हनुमते नम:।। सर्व वांछाम पूरय पूरय च सर्व सिद्धिम देहि में नम । -दान- उड़द ,तिल,काला,वस्त्र,नीले पुष्प,लोभान,करे । दान – वृद्ध व्यक्ति ,कनिष्ठ या सेवक को दे सकते है।। नम: | स्मरण करे 5 बार प्रातः,दोपहर,सायन समय| प्रातः पीपल का पत्ता अपने साथ रखे | ****************************************************** वट सावित्री का व्रत 30 मई . पति की लंबी आयु के लिए व्रत . दिन वटवृक्ष / बरगद के वृक्ष या अभाव में वटवृक्ष की शाखा स्थापित कर पूजा की जाती हैं. सौभाग्यवती महिलाएं वट वृक्ष की9, 11, या 108 परिक्रमा करती हैं. पुराण अनुसार बरगद के वृक्ष में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और शिव का वास होता है. भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है. वट सावित्री व्रत भगवान विष्णु से संबंधित है . भगवान विष्णु की पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है. संदर्भ भविष्य पुराण, जाबाली उपनिषद. वैशाख पूर्णिमा भोग, मोक्ष दायिनी पूर्व काल में श्रुतदेव द्वारा राजा जनक को उपदेश दिया गया था, नारद जी द्वारा, राजा अंबरीश को बताया गया( भविष्य पुराण). सुख, समृद्धि एवम यश का दिन. विष्णु पूजा सर्वोत्तम फ़ल दायिनी. विष्णु जी को दूध से स्नान कराना चाहिए. केवल फल से क्षुधा पूर्ति. अन्न आगामी दिन सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही ग्रहण करते हैं. वट वृक्ष की पूजा में अर्पित चीजों का (सेवनपूजा समाप्त होने के बाद) कर सकते हैं. जैसे पुआ, खरबूजा व आम आदि . व्रत में आप अन्न व फल खा सकते हैं या नहीं? ये व्रत सावित्री को समर्पित किया जाता है. मान्यता है कि इसी दिन सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से बचाए थे, इसलिए इस दिन व्रत करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. इस दिन विधि-विधान से पूजा अर्चना करे.

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विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -