उपयोगी जानकारी – धनतेरस से दीपावली
स्मरणीय – *किसी भी कार्य की पूर्णता,सफलता उस कार्य के प्रारंभ समय (जो प्रचलन में मुहूर्त कहलाता है,जबकि मुहूर्त का शाब्दिक अर्थ भिन्न है
)की श्रेष्ठता पर आधारित
होती है |
Ø पूजा प्रदत्त समय में प्रारंभ करना मुख्य तथ्य है |मुहूर्त के बाद ,कार्य पूर्ण होने से कोई हानि नहीं |
क्योकि सही समय किया गया कार्य सभी विघ्न बाधाओं
का शमन करता है |
Ø *तिथि,दिन,योग,करण,लग्न ,होरा,द्विघटी किसी कार्य के लिए श्रेष्ठ समय के निर्धारक
बिंदु है |
Ø *चौघडिया का मुहूर्त में प्रयोग अवांछनीय है |(चौघडिया निर्माता ने स्वयं चौघडिया मुहूर्त के
लिए कहा की जब यात्रा का कोई मुहूर्त नहीं हो तो निकृष्ट मुहर्त के रूप में इसका
प्रयोग करे |)
स्थिर लग्न--स्थिर लग्न में कोई भी कार्य प्रारंभ करने से
स्थायी परिणाम मिलते हैं | लक्ष्मी पूजा करने से धन ,गणेश पूजा से विघ्न नाश ,कुबेर पूजा सम्पदा,वस्त्र अलंकार प्रयोग से जब भी उन वस्त्रो या
आभूषण पहने गे सफलता मिलेगी एवं वे टिकाऊ रहेंगे |
वृषभ लग्न - तुला
राशी ,कुम्भ
राशी ,मिथुन
राशी के लिए विशेष उपयोगी नहीं हैं | परन्तु पूजा लाभदायी होतीहै |
सिंह लग्न स्थिर लग्न - सिंह लग्न 24.38-26.45 |
वृश्चिक स्थिर लग्न- पूजा हेतु अनुकूल राशि -मकर ,कुम्भ,वृष,मिथुन | अशुभ राशि- मेष सिह,धनु,|
Ø *आत्मीय सुविज्ञ वर्ग हेतु -समस्त अशुभ काल हटा कर /छोड़ कर | राहु काल ही नहीं अनेक और भी अशुभ,बाधक कालावधि हैं जैसे-गुलिक(शनि ),नक्षत्र घटी दोष ,कालवेला कुलिक ,काल,कंटक,यमघंट आदि दुर्महुर्त एवं सभी पंचक (रोग,चोर,रंज,आदि )आदि अशुभ प्रभावोत्पादक अशुभ कालों को
परिमार्जित कर सर्व मांगलिक कायों हेतु श्रेष्ठ समय प्रस्तुत है
धनतेरस 05 नवम्वर –
थोड़ी-सी नागकेसर, एक ताँबे का सिक्का, अखण्डित हल्दी की एक गाँठ, एक मुट्ठी नमक, एक बड़ी हरड़, एक मुट्ठी गेहूँ और चाँदी या ताँबे की एक जोड़ा छोटी-सी पादुकाएँ
लें । यह समस्त सामग्री हल्दी से रंगे एक स्वच्छ पीले कपड़े में बाँध
लें ।
बुध की होरा में यह कपड़ा अपने रसोईघर
में कहीं ऐसे स्थान पर टाँग दें, ।
ü तीसरे
दिन दीपावली की रात्रि लक्ष्मी जी की पूजा के पश्चात् टंगी
हुई, उस पोटली पर एक पिसी हल्दी डालकर ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’ मंत्र
की एक माला जपें ।
इसके बाद नित्य सायंकाल पोटली के
पास जाकर यथा-भक्ति धूप-दीप जलाएँ और उक्त मंत्र की एक संख्या निश्चित करके
जप करते रहें ।
ü अगले
वर्ष धनतेरस को यह पोटली समस्त सामग्री बदल कर उपरोक्त विधि से पूजा-अर्चना
करके पुनः यथास्थान टाँग द
ü प्रयोग
से पूरे वर्ष घर में अन्नपूर्णा की कृपा के साथ-साथ सुख और शान्ति का वातावरण बना
रहेगा ।
धनतेरस को किसी भी समय कुछ कचनार के पत्ते तथा नागकेसर ले आइए । उसी दिन एक चाँदी की छोटी-सी डिब्बी भी ले आइए । दीवाली की रात्रि तीनों वस्तुओं की लक्ष्मी स्वरुप मानकर श्रद्धा से पूजा-अर्चना करें । इसके बाद पत्ते तथा नागकेसर डिब्बी में बन्द करके घर या दुकान में किसी अलमारी या पैसे रखने के स्थान में रख दें ।
धनतेरस को किसी भी समय कुछ कचनार के पत्ते तथा नागकेसर ले आइए । उसी दिन एक चाँदी की छोटी-सी डिब्बी भी ले आइए । दीवाली की रात्रि तीनों वस्तुओं की लक्ष्मी स्वरुप मानकर श्रद्धा से पूजा-अर्चना करें । इसके बाद पत्ते तथा नागकेसर डिब्बी में बन्द करके घर या दुकान में किसी अलमारी या पैसे रखने के स्थान में रख दें ।
ü समुद्र मंथन प्रकरण -भगवान विष्णु 'धनवंतरि' के रूप में कलश में अमृत लेकर
समुद्र से निकले /प्रकट हुए (देवो को अमरत्व प्रदान करने के लिए) थे। * -स्टील के अतिरिक्त ताम्बा,चांदी ,पीतल खरीदना शुभ है|
पूजा प्रारम्भ करने का श्रेष्ठ समय-शुभ कार्य समय एवं पूजा समय भोपाल,रायपुर,कानपुर,हैदराबाद,बंगलुरु,रीवा,जबलपुर
शुभ लग्न आधारित हैं-नवमांश पुष्कर काल श्रेष्ठ किसी कार्य को प्रारम्भ करने का १० मिनट तक | **राशि बार दिन का शुभ अशुभ प्रभाव**
यह दिन
तुला एवम वृश्चिक राशि के लिए श्रेष्ठ रहेगा जबकि वृष कन्या मकर राशि वालों के लिए
अशुभ सिद्ध होगा
शेष राशियों के लिए उत्तम रहेगा वृश्चिक लग्न प्रातः 810 से 10:10 तक .
मकर लग्न दोपहर 12:30 से 2:00 बजे तक
कुंभ लग्न 2:17 से 3:35 तक .
मीन लग्न 3:50 से 5:05 तक.
मेष लग्न 521 से 7:00 बजे तक.
कर्क लग्न रात्री में 11:13 से सिंह लग्न रात्रि 1:20 से 325 तक रहेगी.
अभिजीत सर्व कार्य के लिए सफलता का 11:45 से 12:20 तक,
दोपहर विजय मुहूर्त 2:00 बजे से 2:40 बजे तक, पूजा अर्चना के लिए गोधूलि 540 से 6:00 बजे तक शाम को,
रात्रि कालीन निशीथ पूजा के लिए श्रेष्ठ समय 11:45 से 12:20 तक
स्नानादि के लिए शुभ समय प्रातः 4:45 से 5:30 तक रहेगा
शेष राशियों के लिए उत्तम रहेगा वृश्चिक लग्न प्रातः 810 से 10:10 तक .
मकर लग्न दोपहर 12:30 से 2:00 बजे तक
कुंभ लग्न 2:17 से 3:35 तक .
मीन लग्न 3:50 से 5:05 तक.
मेष लग्न 521 से 7:00 बजे तक.
कर्क लग्न रात्री में 11:13 से सिंह लग्न रात्रि 1:20 से 325 तक रहेगी.
अभिजीत सर्व कार्य के लिए सफलता का 11:45 से 12:20 तक,
दोपहर विजय मुहूर्त 2:00 बजे से 2:40 बजे तक, पूजा अर्चना के लिए गोधूलि 540 से 6:00 बजे तक शाम को,
रात्रि कालीन निशीथ पूजा के लिए श्रेष्ठ समय 11:45 से 12:20 तक
स्नानादि के लिए शुभ समय प्रातः 4:45 से 5:30 तक रहेगा
*** होरा काल आधारित श्रेष्ठ समय. सभी दोषों से मुक्त-
लग्न के
पश्चात इसका ही सर्वाधिक महत्व है.
प्रातः 6:22 से 8:00 बजे तक.
10:10 से 10:38 तक.
दोपहर में 1:23 से 1:59 तक.
एवं 2:54 तक भी उपयुक्त है
शाम को 5:13 से 5:26 तक विशेष उपयोगी समय है.
प्रातः 6:22 से 8:00 बजे तक.
10:10 से 10:38 तक.
दोपहर में 1:23 से 1:59 तक.
एवं 2:54 तक भी उपयुक्त है
शाम को 5:13 से 5:26 तक विशेष उपयोगी समय है.
4:21 से 5:26 तक धन से संबंधित कार्यों के लिए श्रेष्ठ समय है.अशुभ-कुम्भ राशि ;
नरक चतुर्दशी 06 नवम्वर – L
थोड़ी.सी
नागकेसरए एक ताँबे का सिक्काए अखण्डित हल्दी की एक गाँठए एक मुट्ठी नमकए एक बड़ी
हरड़ए एक मुट्ठी गेहूँ और चाँदी या ताँबे की एक जोड़ा छोटी.सी पादुकाएँ लें । यह
समस्त सामग्री हल्दी से रंगे एक स्वच्छ पीले कपड़े में बाँध लें ।
बुध की होरा में
यह कपड़ा अपने रसोईघर में कहीं ऐसे स्थान पर टाँग देंए ।
ü तीसरे
दिन दीपावली की रात्रि लक्ष्मी जी की पूजा के पश्चात् टंगी हुईए उस पोटली पर एक
पिसी हल्दी डालकर ष्ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चेष् मंत्र की एक माला जपें ।
इसके बाद नित्य
सायंकाल पोटली के पास जाकर यथा.भक्ति धूप.दीप जलाएँ और उक्त मंत्र की एक संख्या
निश्चित करके जप करते रहें ।
ü अगले
वर्ष धनतेरस को यह पोटली समस्त सामग्री बदल कर उपरोक्त विधि से पूजा.अर्चना करके
पुनः यथास्थान टाँग द
ü ें
। इस प्रयोग से पूरे वर्ष घर में अन्नपूर्णा की कृपा के साथ.साथ सुख और शान्ति का
वातावरण बना रहेगा ।
धनतेरस को किसी
भी समय कुछ कचनार के पत्ते तथा नागकेसर ले आइए । उसी दिन एक चाँदी की छोटी.सी
डिब्बी भी ले आइए । दीवाली की रात्रि तीनों वस्तुओं की लक्ष्मी स्वरुप मानकर
श्रद्धा से पूजा.अर्चना करें । इसके बाद पत्ते तथा नागकेसर डिब्बी में बन्द करके
घर या दुकान में किसी अलमारी या पैसे रखने के स्थान में रख दें ।
Ø
स्कन्दपुराण में कहा गया है कि कार्तिक
के कृष्णपक्ष में त्रयोदशी के प्रदोष.काल में यमराज के निमित्त दीप और नैवेद्य
समर्पित करने पर अपमृत्यु का नाश होता है । ऐसा स्वयं यमराज ने कहा था ।
ü यमदीपदान
प्रदोषकाल में करना चाहिए । इसके लिए मिट्टी का एक बड़ा दीपक लें और उसे स्वच्छ जल
से धो लें । तदुपरान्त स्वच्छ रुई लेकर दो लम्बी बत्तियाँ बना लें । उन्हें दीपक
में एक.दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियोँ के चार मुँह दिखाई
दें । अब उसे तिल के तेल से भर दें और साथ ही उसमें कुछ काले तिल भी डाल दें ।
प्रदोषकाल में इस प्रकार तैयार किए गए दीपक का रोलीए अक्षत एवं पुष्प से पुजन करें
।
ü घर
के मुख्य दरवाजे के बाहर थोड़ी.सी खील अथवा गेहूँ से ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को
रखना है । दीपक को रखने से पहले प्रज्वलित कर लें और दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए
निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए चारमुँह के दीपक को खील ;लाजाद्ध
आदि की ढेरी के ऊपर रख दें
ü मृत्युना
पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह । त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति ।।
अर्थात् त्रयोदशी को दीपदान करने से मृत्युए पाशए दण्डए काल और लक्ष्मी के साथ
सूर्यनन्दन यम प्रसन्न हों । उक्त मन्त्र के उच्चारण के पश्चात् हाथ में पुष्प
लेकर निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए यमदेव को दक्षिण दिशा में नमस्कार
करें ॐ यमदेवाय नमः । नमस्कारं समर्पयामि ।। अब पुष्प दीपक के समीप
छोड़ दें और पुनः हाथ में एक बताशा लें तथा निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए
उसे दीपक के समीप छोड़ दें ॐ यमदेवाय नमः । नैवेद्यं समर्पयामि ।। अब हाथ में थोड़ा.सा जल
लेकर आचमन के निमित्त निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए दीपक के समीप छोड़ें ॐ
यमदेवाय नमः । कहते हुए दक्षिण दिशा में नमस्कार करें ।
पूजा प्रारम्भ करने का श्रेष्ठ समय-
तिल के
तेल का श्रेष्ठ इसका प्रयोग 5:50 से 7:00 बजे तक दक्षिण दिशा की ओर वर्तिका तथा दीपक कर
रखना चाहिए .
प्रदोष काल 8:15 तक है
तथा वृषभ लग्न 6:58 से 8:56 रात्रि तक है.
इस प्रकार दीपदान का श्रेष्ठ समय 5:50 से 8:15 तक सिद्ध होता है.
*मंत्र सिद्धि एवं अनुष्ठान के लिए -
रात्रि 11:40 से 12:25 तक उत्तम समय है. इसके साथ ही रात्रि 1:18 से 3:30 बजे तक सिंह लग्न में में भी अनुष्ठान कार्य किए जा सकते हैं
* विभिन्न राशियों का शुभ अशुभ प्रभाव*
आज का दिन वृश्चिक राशि , धनु राशि के लिए सर्वोत्तम है
मिथुन तुला कुंभ राशि के लिए अशुभ बाधा व्यय विवाद कारक है
जबकि अन्य राशियों के लिए सामान्यतः शुभ दिन .
*विभिन्न विभिन्न अशुभ काल जो कि किसी भी कार्य के लिए बाधा कारक परंतु पूजा के लिए उत्तम है.-
प्रातः 6:22 से 8:28 तक अशुभ योग हैं.
राहुकाल 9:13 से 10:39 तक है .
जबकि यम घंट दोपहर 1:30 बजे से 2:55 तक अशुभ स्थिति दर्शा रहा है.
**किसी पर कार्य के लिए विशिष्ट संशोधित लग्न के अनुसार शुभ समय-
विशिष्ट लग्न के शुभ समय लग्न के मुहूर्त को श्रेष्ठ माना जाता है .
लग्न के शुभ समय को भी इस प्रकार चयन किया गया है ,जो भारत के प्रदेशों के अधिकांश में लागू हो सके .
वृश्चिक लग्न प्रातः 810 से 10:10 तक .
मकर लग्न दोपहर 12:30 से 2:00 बजे तक
कुंभ लग्न 2:17 से 3:35 तक .
मीन लग्न 3:50 से 5:05 तक.
मेष लग्न 521 से 7:00 बजे तक.
कर्क लग्न रात्री में 11:13 से सिंह लग्न रात्रि 1:20 से 325 तक रहेगी.
लग्न के आधार पर वृषभ लग्न स्थिर लग्न होती है तथापि शुभ लग्न की श्रेणी में इस वर्ष नहीं आ रही है.
** विशिष्ट नाम के अनुरूप शुभ समय-
प्रातः स्नान पूजा एवं ध्यान के लिए 4:45 से 5:30 तक
अभिजीत काल 11:41 से 12:25 तक
विजय मुहूर्त 2:00 से 2:40 तक,
रात्रि कालीन निशित मुहूर्त 11:40 से 12:25 तक तथा पूजा-अर्चना के लिए गोधूलि बेला का शुभ मुहूर्त 535 से 555 शाम का विशेष है. ,
प्रदोष काल 8:15 तक है
तथा वृषभ लग्न 6:58 से 8:56 रात्रि तक है.
इस प्रकार दीपदान का श्रेष्ठ समय 5:50 से 8:15 तक सिद्ध होता है.
*मंत्र सिद्धि एवं अनुष्ठान के लिए -
रात्रि 11:40 से 12:25 तक उत्तम समय है. इसके साथ ही रात्रि 1:18 से 3:30 बजे तक सिंह लग्न में में भी अनुष्ठान कार्य किए जा सकते हैं
* विभिन्न राशियों का शुभ अशुभ प्रभाव*
आज का दिन वृश्चिक राशि , धनु राशि के लिए सर्वोत्तम है
मिथुन तुला कुंभ राशि के लिए अशुभ बाधा व्यय विवाद कारक है
जबकि अन्य राशियों के लिए सामान्यतः शुभ दिन .
*विभिन्न विभिन्न अशुभ काल जो कि किसी भी कार्य के लिए बाधा कारक परंतु पूजा के लिए उत्तम है.-
प्रातः 6:22 से 8:28 तक अशुभ योग हैं.
राहुकाल 9:13 से 10:39 तक है .
जबकि यम घंट दोपहर 1:30 बजे से 2:55 तक अशुभ स्थिति दर्शा रहा है.
**किसी पर कार्य के लिए विशिष्ट संशोधित लग्न के अनुसार शुभ समय-
विशिष्ट लग्न के शुभ समय लग्न के मुहूर्त को श्रेष्ठ माना जाता है .
लग्न के शुभ समय को भी इस प्रकार चयन किया गया है ,जो भारत के प्रदेशों के अधिकांश में लागू हो सके .
वृश्चिक लग्न प्रातः 810 से 10:10 तक .
मकर लग्न दोपहर 12:30 से 2:00 बजे तक
कुंभ लग्न 2:17 से 3:35 तक .
मीन लग्न 3:50 से 5:05 तक.
मेष लग्न 521 से 7:00 बजे तक.
कर्क लग्न रात्री में 11:13 से सिंह लग्न रात्रि 1:20 से 325 तक रहेगी.
लग्न के आधार पर वृषभ लग्न स्थिर लग्न होती है तथापि शुभ लग्न की श्रेणी में इस वर्ष नहीं आ रही है.
** विशिष्ट नाम के अनुरूप शुभ समय-
प्रातः स्नान पूजा एवं ध्यान के लिए 4:45 से 5:30 तक
अभिजीत काल 11:41 से 12:25 तक
विजय मुहूर्त 2:00 से 2:40 तक,
रात्रि कालीन निशित मुहूर्त 11:40 से 12:25 तक तथा पूजा-अर्चना के लिए गोधूलि बेला का शुभ मुहूर्त 535 से 555 शाम का विशेष है. ,
दीपावली 7नवम्वर – संक्षिप्त पूजा विधि एवं पूजा शुभ समय
पूजा प्रारम्भ करने का श्रेष्ठ समय-
1- सफलता एवं कामना पूरक अभिजीत / विशुद्ध अमृत काल महत्व है -
श्रेष्ठ
सिद्धि काल रात्रि 11:42 से 12:25 तक, स्थिर लग्न किसी भी कार्य के लिए स्थाई शुभ
प्रभाव देने वाली प्रातः 8:10 से 10:10 तक
कुंभ लग्न 2:17 से 3:35 तक .
रात्रि कालीन सिद्धि काल सिंह राशि की लग्न 1:20 से 3:25 तक उपलब्ध है
कुंभ लग्न 2:17 से 3:35 तक .
रात्रि कालीन सिद्धि काल सिंह राशि की लग्न 1:20 से 3:25 तक उपलब्ध है
होरा आधारित सर्व दोष मुक्त मंगल शुभ कल्याण प्रद कार्यों
के लिए शुभ समय**
*व्यापारिक, ज्ञान नए वस्त्र आदि धारण करने एवं अनुबंध आदि कार्यों के लिए प्रातः 8:16 से 9:13 तक रात्रि 9:58 से 11:01 तक विशिष्ट काल है.
*विभिन्न राशियों के लिए शुभ अशुभ समय*
कर्क राशि वालों के लिए यह समय वर्जित है शेष सभी राशियों के लिए उत्तम समय है विशेष रूप से ब्रश मिथुन कन्या तुला मकर कुंभ राशि वालों के लिए श्रेष्ठ समय है.
*शैक्षिक विद्या नए वस्त्र एवं आभूषण धारण करने के लिए एवं मंगल कार्यों के लिए 1:07 से 2:04 बजे तक अति उत्तम समय है.
तथा दोपहर पश्चात 5:48 से 6:49 एवं रात्रि कालीन 1:07 से 2:11 तक जिससे शुभ समय है.
-* राशियों के लिए लिए समय शुभ अशुभ*
मकर एवं कुंभ राशि के लिए वर्जित के अनुरूप है जबकि अन्य राशि वालों के लिए शुभ है विशेष रूप से मेष कर्क सिंह वृश्चिक धनु एवं मीन राशि के लिए श्रेष्ठतम है.
*सामान्यता सभी प्रकार के मंगल कार्यों के लिए प्रातः 9:13 से 10:10 तक एवं रात्रि 11:07 से 12:02 तक विशेष अनुकूल समय है.
*राशियों के लिए समय शुभ अशुभ*
मिथुन राशि के लिए यह समय उपयुक्त नहीं है जबकि अन्य सभी राशियों के लिए उत्तम है
*व्यापारिक, ज्ञान नए वस्त्र आदि धारण करने एवं अनुबंध आदि कार्यों के लिए प्रातः 8:16 से 9:13 तक रात्रि 9:58 से 11:01 तक विशिष्ट काल है.
*विभिन्न राशियों के लिए शुभ अशुभ समय*
कर्क राशि वालों के लिए यह समय वर्जित है शेष सभी राशियों के लिए उत्तम समय है विशेष रूप से ब्रश मिथुन कन्या तुला मकर कुंभ राशि वालों के लिए श्रेष्ठ समय है.
*शैक्षिक विद्या नए वस्त्र एवं आभूषण धारण करने के लिए एवं मंगल कार्यों के लिए 1:07 से 2:04 बजे तक अति उत्तम समय है.
तथा दोपहर पश्चात 5:48 से 6:49 एवं रात्रि कालीन 1:07 से 2:11 तक जिससे शुभ समय है.
-* राशियों के लिए लिए समय शुभ अशुभ*
मकर एवं कुंभ राशि के लिए वर्जित के अनुरूप है जबकि अन्य राशि वालों के लिए शुभ है विशेष रूप से मेष कर्क सिंह वृश्चिक धनु एवं मीन राशि के लिए श्रेष्ठतम है.
*सामान्यता सभी प्रकार के मंगल कार्यों के लिए प्रातः 9:13 से 10:10 तक एवं रात्रि 11:07 से 12:02 तक विशेष अनुकूल समय है.
*राशियों के लिए समय शुभ अशुभ*
मिथुन राशि के लिए यह समय उपयुक्त नहीं है जबकि अन्य सभी राशियों के लिए उत्तम है
1- मन्त्र-Ø ॐ गं गणाधिपतये नमः |v -ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभ्यो नमः॥
v ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं
श्रीं महालक्ष्मयै नम॥Ø : ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो
लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥
v ॐ
यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये देहि दापय स्वाहा॥धनधान्यसमृद्धिं मे ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं
श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः॥v ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं
पुरय पुरय नमः॥
दीपमालिका दीपक
पूजनम्ः
किसी पात्र में
ग्यारह इक्कीस या उससे अधिक दीपकों को प्रज्जवलित कर महालक्ष्मी के समीप रख कर उस
दीपज्योति का ऊँ दीपावल्यै नमः इस नाम मन्त्र से गन्धादि उपचारों द्वारा पूजन कर
इस प्रकार प्रार्थना करे -
ध्यानम् -
भो दीप! ब्रम्हा
रुपस्त्वं हान्धकार विनाशकः।
गृहाण मया कृतां
पूजां, ओजस्तेज, प्रवर्धय।।
प्रार्थना करे:
त्वं ज्योतिस्त्वं
रविश्रन्द्रो विद्युदग्निश्च तारका।
सर्वेषां ज्योतिषां
ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नमः।
शुभं करोतु
कल्याणमारोग्यं सुख सम्पदाम्।
मम बुद्धि प्रकाशं च
दीप-ज्योतिर्नमोअस्तुते।।
शुभं भवतु
कल्याणमारोग्यं पुष्टि-वर्धनम्।
आत्म तत्व-प्रबोधाय
दीप ज्योतिर्नमोअस्तु ते।।
दीपावलिर्मया दता
गृहाणात्वं सुरेश्ररि।
अनेन दीप दानेन ज्ञान
दृष्टि प्रदा भव।।
दीप मालिकाओं का पूजन कर अपने आचार के अनुसार संतरा, ईख पानी फल धान का
लावा इत्यादि पदार्थ चढाये। धान का लावा खील गणेश महालक्ष्मी तथा अन्य देवी
देवताओं को भी अर्पित करे। अन्त में सभी दीपकों को प्रज्जवलित कर सम्पूर्ण गृह
अंलकृत करे।
प्रधान आरती -
इस प्रकार भगवती महालक्ष्मी तथा उनके सभी अग प्रत्यगों एवं
उपागों का पूजन कर लेने के अनन्तर प्रधान आरती करनी चाहिये। इसके लिये एक थाली में
स्वस्तिक आदि मांगलिक चिन्ह बनाकर अक्षत तथा पुष्प के आसन पर किसी दीप आदि में
घृतयुक्त बती प्रज्जवलित करे। एक पृथक पात्र में कपूर प्रज्जवलित कर वह पात्र थाली
में यथा स्थान रख ले। आरती थाल का जल से प्रोक्षण कर ले।
आरती -
ऊँ चक्षुर्द सर्व
लोकानां तिमिरस्य निवारणं।
आर्तिक्यं कल्पितं
भक्त या गृहाण परमेश्वरी।।
देवि प्रपत्रार्ति
हरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोअखिलस्य।
प्रसीद विश्रेश्वरि
पाहि विश्रत्वमीश्वरी देवि चराचरस्य।।
नीराजनं सुमाडल्यं
कर्पूरेण समन्वितम्।
चन्द्रार्क वहि सदृशं
महादेवि नमोअस्तुते।।
कर्पूरगौरं
करुणावतारंसंसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदावसन्तं
हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि।।
श्री लक्ष्मीजी की आरती
ऊँ जय लक्ष्मी माता
मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निसिदिन सेवत
हर विष्णु धाता।
उमा रमा ब्रहाणी तुम
ही जग माता।
सूर्य चन्द्रमा
ध्यावत नारद ऋषि गाता।
दुर्गा रुप निरजनि
सुख-सम्पति दाता।
जो कोई तुम को ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन
पाता।।
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभ दाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि
भवनिधि की त्राता।।
जिस घर तुम रहती तॅह
सब सदुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता।
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता।
खान पान का वैभव सब
तुम से आता।।
शुभ गुण मन्दिर
सुन्दर क्षीरोदधि जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन
कोई नहि पाता।
महालक्ष्मी जी की
आरति, जो कोई नर गाता।
उर आनंद समाता, पाप उतर जाता।।
मंत्र-पुष्पाजलि-
दोनों हाथो में कमल
आदि के पुष्प लेकर हाथ जोड़कर निम्न मन्त्रों का पाठ करे।
ऊँ यज्ञेन यज्ञ मय
जन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्। ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे
साध्याः सन्ति देवाः। ऊँ राजाधि राजाय प्रसहा साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे। स
मे कामान् काम कामाय महां कामेश्ररो वैश्रवणो ददातु कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय
नमः।
ऊँ स्वस्ति
साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्यं राज्यं महाराज्यमधिपत्यमयं
समन्तपर्यायी स्यात् सार्वभौमः सार्वायुषान्ता दापरार्धात्। पृथिव्यै समुद्र
पर्यन्ताया एकराडिति तदप्येष श्लोकोअभिगीतो मरुतः परिवेष्ठारो मरुतस्यावसन् गृहे।
आविक्षितस्य काम प्रेर्विश्वेदेवाः सभासद ।
ऊँ विश्रतश्रक्षुरुत
विश्र तो मुखो विश्रतो बाहुरुत विश्रतस्पात्।
सं बाहुभ्यां धमति सं
पतत्रैद्यावाभूमी जनयन् देव एकः।।
महालक्ष्म्यै च
विद्यहे विष्णुु पत्न्यैच धीमहि तत्रो लक्ष्मी प्रचोदयात्।।
ऊँ या श्रीः स्वयं
सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः
पापात्मनां कृतधियां
हदयेषु बुद्धिः।
श्रद्धा सतां कुलजन
प्रभवस्य लज्जा।
तां त्वां नताः स्म
परिपालय देवि विश्रम्।।
ऊँ महालक्ष्म्यै नमः
मन्त्र पुष्पाजलिं समर्पयामि।।
हाथ में लिये फूल
महालक्ष्मी पर चढा दें।
प्रदक्षिणा कर
साष्टाग प्रणाम करें।
प्रदक्षिणाः
ऊँ यानि कानि च
पापानि जन्मान्तर कृतानि च।।
तानि तानि, विनश्यन्ति
प्रदक्षिणा पदे पदे।।
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेष
शरणं देवि।।
तस्मात्
कारुण्य-भावेन, क्षमस्व परमेश्ररि।।
श्री महालक्ष्मी
देव्यै प्रदक्षिणां समर्पयामि।।
साष्टाग प्रणाम
मन्त्रः
ऊँ नमः सर्व
हितार्थाय जगदाधार हेतवे।
साषाडोअयं प्रणामस्ते
प्रयत्नेन मयाकृतः।।
ऊँ भवानि! त्वं
महालक्ष्मीः सर्व काम प्रदायिनि।
प्रसत्रा सन्तुष्टा
भव देवि! नमोअस्तु ते।।
अनेन पूजनेन श्री
लक्ष्मी देवी प्रीयताम् नमो नमः।।
क्षमा-प्रार्थना
नमस्ते सर्वदेवानां
वरदासि हरिप्रिये।
या
गतिस्त्वत्प्रपत्रानां सामेभूयात्वदर्चनात्।।
आवाहनं न जानामि न
जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि
क्षमस्व परमेश्ररि।।
मन्त्रहीनं
क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्ररि।।
यत्पूजितं मया देवि
परिपूर्ण तदस्तु मे।।
त्वमेव माताच पिता
त्वमेव। त्वमेव बन्धुश्रसखात्वमेव।।
त्वमेव विद्या
द्रविणं त्वमेव। त्वमेव सर्वं मम देव देव।।
पापोअहं पापकर्माहं
पापात्मा पापसम्भवः।
त्राहिमां परमेशानि
सर्वपापहरा भव।।
अपराध सहस्त्राणि
क्रियन्तेअहर्निशं मया।
दासोअयमिति मां मत्वा
क्षमस्व परमेश्ररि।
सर सिज निलये सरोज
हस्ते, धवल तरांशुक गंध माल्य शोभे।
भगवति हरि वल्लभे
मनोज्ञे त्रिभुवन भूति करि प्रसीद महाम्।।
पुनः प्रणाम करके ऊँ
अनेन यथाशक्त्यर्चनेन श्री महालक्ष्मीः प्रसीदति। यह कह कर जल छोड दे। ब्राहम्ण
एवं गुरुजनों को प्रणाम कर चरणामृत तथा प्रसाद वितरण करे।
विसर्जन:
पूजन के अन्त में हाथ
में अक्षत लेकर नूतन गणेश एवं महालक्ष्मी की प्रतिमा को छोड़ कर अन्य सभी आवाहित
प्रतिष्ठित एवं पूजित देवताओं को अक्षत छोडते हुए निम्न मन्त्र से विसर्जित करे -
यान्तु देवगणाः सर्वे
पूजामादाय मामकीम्।
इष्टकाम समृद्धर्थ
पुनरागमनाय च।।
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