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छट पूजा करे,मनचाहा फल पाये - कथा,मंत्र,एवं विधि जानिए (2 नवंबर 2019)





छट देवी? 
सृष्टि संचालन के लिए ब्रह्मा की मानस पुत्री, कृत्तिका प्रमुख,देवसेना,भगवान कार्तिकेय की पत्नी की) पुजा करे,मनचाहा पाये

(षष्ठी देवी एवं अस्ताचल गामी सूर्य देव की सूर्य उपासना पर्व)

छठ पूजा सूर्य एवं देवी  पूजा : 2 नवंबर 2019

(31 अक्टूबर से 3 नवंबर तक)


विशेषताएं -बच्चों के आरोग्य, दीर्घायु एवं सुख समृद्धि के लिए इसका विशेष महत्व है.
राजनीति मे पुन: -

पद ,प्रतिष्ठा,सम्मान,रोजगार मे निलंबन समाप्ती, आरोप निराकृत, एवं व्यापार

डूबा धन वसूली |

प्रातः इन दिनों 05 बज क 31 मिनट तकआम के पत्ते स्नान का शुभ काल है


संकल्प का शुभ समय 31 अक्टूबर को 11 :41 से 12:26 बजे तक विशेष .

अशुभ समय प्रातः सूर्योदय से 7:50 तक 9:00 बज तक



   2 नवंबर को शुभ समय
स्नान के लिए प्रात: 5:32 तक शुभ काल है


पूजा के लिए प्रात 06:26 बजे तक अनुकूल समय है

एवं छठ पूजा के लिए सूर्यास्त कालीन 05:42 शुभ समय है

दिन में अशुभ समय दोपहर 11:26 बजे 12:40 एवं शाम को 6:01 से 7:40 तक कृत्य कार्य  शुभ समय है

    
बाधा कारक एवं वर्जित समय
प्रात: 6:26 से 10:38 . एवं दोपहर काल 1:28से 2:53;तक अशुभ |


छठ पूजन सामग्री 

नए वस्त्र पहने, दो  बांस से टोकरी, सूप, गिलास,, लोटा, थालीलाल सिंदूर,पानी वाला नारियल,  धूप,  दीपक, 

चावल, , दूध,  आम के पत्ते, ऋतु फल,पुष्प,शाक, , शकरगंदी, केला, सेब, सिंघाड़ा नींबू , अदरक और कच्ची 


हल्दी, शहद, पान, सुपारी, , कपूर, कुमकुम और चंदन. 


षष्ठी देवी मंत्र
षष्ठांशां प्रकृते: शुद्धां सुप्रतिष्ठाण्च सुव्रताम्।
सुपुत्रदां च शुभदां दया रूपां जगत्प्रसूम्।।
श्वेत चम्पक वर्णाभां रत्न भूषणभूषिताम्।
पवित्र रुपां परमां देवसेनां परां भजे।।

सूर्यदेव आराधना मंत्र - 
सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।



सूर्य ध्यान मंत्र
-ध्येय सदा सविष्तृ मंडल मध्यवर्ती।
नारायण: सर सिंजासन सन्नि: विष्ठ:।।
-केयूरवान्मकर कुण्डलवान किरीटी।
हारी हिरण्यमय वपुधृत शंख चक्र।

मंत्र-
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाधुतिम।

तमोहरि सर्वपापध्‍नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम।।

नमन-
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर।
 दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते।।


 सूर्य अर्घ्य मंत्र
ॐ ऐही सूर्यदेव सहस्त्रांशो 
तेजो राशि जगत्पते।
अनुकम्पय मां भक्त्या 
गृहणार्ध्य दिवाकर:।।
ॐरवये नम:, ॐ आदित्याय नम:, ॐ नमो खखोलकायय नम:।
 श्रेमाणं योन तन्द्रयते।अर्घ्य समर्पयामि।।

हवन के लिए
बुध ग्रह का हवन अनुकूल रहेगा .जिनकी बुद्ध की महादशा अंतर्दशा.  जिनके जन्मपत्रिका में बुद्ध 

अशुभ  हो उन्हें 11:00 बजे तक बुध ग्रह के लिए आहुति देना चाहिए


 देवी की छठ पूजा, दिनांक 31 अक्टूबर से 3 नवंबर तक छठ पर्व . 


चतुर्थी को सात्विक भोजन अर्थात 31 अक्टूबर को सात्विक भोजन एवं 3 नवंबर को प्रसाद ग्रहण कर सप्तमी तिथि को व्रत की समाप्ति का विधान है


      उत्तर भारत में बिहार प्रांत में सर्वाधिक प्रचलित,नेपाल मे भी लोकप्रिय छठ पूजा है छठ पूजा 

विशेष रूप से स्वस्थ ही देवी एवं सूर्य उपासना से संबंधित है | विभिन्न पुराणों वेदों में सूर्य की 


उपासना का सर्वाधिक महत्व है |


बाल्मीकि रामायण में भी आदित्य ह्रदय स्त्रोत के द्वारा भगवान के सूर्य की स्तुति उल्लेखित है | 

सूर्य को प्रातः जल अर्पण करना रोग नाशक एवं दुख नाशक है परंतु षष्ठी तिथि को अस्ताचलगामी


 सूर्यास्त के समय सूर्य की पूजा जलाशा में खड़े होकर यह जलाशय के निकट अर्ध्य प्रदान कर 


पुजा करने का विधान है |


यह पर्व स्त्रियों में लोकप्रिय है परंतु इस पर्व को पुरुषों द्वारा भी बड़े स्तर पर किया जाता है | 

 इस के संदर्भ में अनेकों कथाएं एवं ऐतिहासिक तथ्य हैं संध्या उपासना सामान्य रूप से वैदिक


 निर्देश के अंतर्गत है सूर्य मंडल में भगवान विष्णु का ध्यान किया जाता है।



गायत्री मंत्र भी सूर्य की शक्ति है।
व्रत विधि क्रमवार -
     "नहाए खाए" 31 oct-

चतुर्थी  को सात्विक भोजन भोजन ग्रहण करने का नियम है. जिस में तामसी अर्थात मिर्च मसालेदार


 जिमीकंद तामसी वृत्ति के भोजन  वर्जित है.


       सरना” किया


     1 नवंबर को अर्थात पंचमी तिथि को पूरे दिन व्रत रखने का विधान है.
यह सरना या लोहन्द कहलाता है |


   2 नवंबर को सूर्यास्त समय पूजा  छठ पूजा


   संध्या काल में जब सूर्य अस्त होता है |महिला पुरुष सूर्यास्त के समय अनेक प्रकार के पकवान को


 बास्केट टोकनी या सूप में सजाकर, सूर्य को दोनों हाथों से अर्ध अर्पित करते हैं .


3 नवंबर को प्रात: सूर्य को जल अर्पण कर प्रसाद ग्रहण कर व्रत समापन |


ॐ सूर्य देवं नमस्तेस्तु गृहाणं करूणा करं |

अर्घ्यं च फ़लं संयुक्त 
गन्ध माल्याक्षतै युतम् ||
अर्घ्य समर्पयामि।

    छठ पर्व से संबंधित अनेक कथाएं,प्रमाण-

      वेदो में सर्वाधिक सूर्य पूजा का महत्व है|

छठ पूजा का प्रचलन

 छठ पूजा का प्रचलन सर्वप्रथम मग क्षेत्र में ब्राह्मणों द्वारा आरंभ हुआ था |

 ये ब्राहमण सूर्य के उपासक थे | सूर्य की किरणों से चिकित्सा करने मैं निपुण थे  |

इसलिए नियमानुसार पूर्ण विधान के चार दिन का सूर्य व्रत उपासना के रूप में छठ पर्व की परंपरा प्रचलित थी जो उत्तर भारत में विकसित हुई उत्तर भारत के बिहार प्रदेश में सर्वाधिक इस पर्व की मान्यता है | 


    कार्तिक महीने में व्रत प्रारंभ
क्यो?


कार्तिक महीने में इस पर्व को मनाते हैं ?        

शिव पुत्र स्कं की रक्षा हो सके. भगवान शिव के पुत्र

 स्कंद को कृतिकाओं द्वारा स्तनपान कराया गया था . उस समय शिव के पुत्र स्कं के छे मुख हो


 गए  थे. छह कृतिका द्वारा दुग्ध पान कराने के कारण यह कार्तिकेय के नाम से प्रसिद्ध हुए.


यह  घटना कार्तिक मास में घटी थी. इसलिए इस माह  छठ देवी की पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष

 छठ  को करने का विधान.

  **

    
भगवान मनु का भी इससे संबंध हे.
षष्ठी देवी नाम क्यो ?


मनु पुत्र राजा प्रियव्रत की कोई संतान नहीं होने पर महर्षि कश्यप के द्वारा पुत्र श्री यज्ञ किया गया .
उसके पश्चात पुत्र उत्पन्न हुआ परंतु यह पुत्र  मृत अवस्था में था. इस कारण राजा  प्रियव्रत उसको 


श्मशान भूमि में ले गए और स्वयं दुखी के कारण अपना शरीर त्याग करने के प्रयास करने लगे

.
  राजा प्रियव्रत जैसे ही अपने प्राणों की आहुति देने को तत्पर हुए तभी एक मणि युक्त विमान पर 


देवी प्रस्तुत हुई ।


    
राजा ने उनको प्रणाम किया और उनसे परिचय पूछा ।देवी ने कहा मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना 


हूं ।कार्तिकेय मेरे पति हैं।


       मैं मूल प्रकृति के छठ में अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी देवी कहलाती हूं ।


       मैं  पुत्र ,निर्धनों को धन, रोगी को आरोग्य और कर्म वालों को उनके अच्छे कर्मों का फल प्रदान करती हूं ।


       तुम मेरा पूजन करो । इस प्रकार राजा ने नियमानुसार  देवी की पूजा  कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की कोई 


पूजा की गई थी इसलिए स्थिति को शष्ठी  देवी का व्रत होने लगा |


राजा पुत्र का पुत्र शष्ठी देवी ने जीवित कर दिया भागवत पुराण में भी इसका उल्लेख है कि मूल 

प्रकृति के छठ में अंश से प्रकट होने कारण देवी का नाम षष्ठी देवी है |


  ओम ह्रीम षष्ठी देव्यै स्वाहा।


      *
महाभारत द्रौपदी द्वारा सूर्य पूजा,छठ तिथि को पुन:राज्य प्राप्त


         पांडव जब अपने वनवास की अवधि काट रहे थे | तब जंगल जंगल भटक रहे थे उस समय 


उनके साथ द्रोपदी ने इस व्रत को किया था ,जिससे जुआ में खोए राज्य की प्राप्ति उनको हुई  


द्रोपदी द्वारा कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को सूर्य की अराधना एवं या व्रत किया गया था इस व्रत के प्रभाव से सूर्यदेव ने कृपा कर द्रोपदी को उनको खोया हुआ राज्य प्रदान किया

       मुनि को नेत्र ज्योति पुनः प्राप्त हुई थी। षष्ठी देवी के व्रत के कारण।


       इसका कथानक इस प्रकार है कि ,राजा शार्याती एक बार अपनी इकलौती संतान सुकन्या के साथ जंगलमें शिकार करने गए । 10 दिन तक वे जंगल में रहै।

इस अवधि में एक  दिन एक मात्र कन्या जिसका नाम सुकन्या था | जंगल में घूमते हुए चली गई।


वहां पर उसे एक टीले नुमा बांबी  के घर जैसे आकार में दो चमकती हुई रोशनी दिखी।

     उत्सुकतावश उसने उन रोशनी के छेद में तिनके डालें ।परंतु ऋषि च्यवन वहां पर तपस्या कर रहे थे ।उनके
 ऊपर दीमको ने अपना घर बना लिया था ,ऋषि  की आंखें ही चमक रही थ, जो कि सुकन्या द्वारा तिनकों के डालने से फूट गई और ऋषि अंधे हो गए।


यह बात जब राजा शर्यती को पता चली तो वे  मुनि के पास क्षमा हेतु दुखी होकर गए और उन्होंने


 अपनी एकमात्र संतान सुकन्या को उनकी सेवा के लिए उनके पास छोड़ दिया।     


   एक दिन सुकन्या ने एक नागकन्या से उपस्थिति का कारण पूछा तो उसको द्वारा बताया गया

कि,कार्तिक मास की छठ तिथि को सूर्य की उपासना एवं व्रत करने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती

 हैं । यही व्रत करती हूँ |


           सुकन्या के द्वारा सूर्य व्रत करने से मुनि की आंखों की ज्योति वापस आ गई।


      *
सूर्य उपासना एवं कुष्ठ रोग समाप्ति छठ पर्व


     मगध के राजा जरासंध के पूर्वज को कुष्ठ रोग हो गया था और उससे मुक्ति के लिए प्रयासरत थ।

एक एक ब्राह्मण जो सूर्य उपासक था उपस्थित हुआ और उसके माध्यम से  राजा  कुष्ठ रोग समाप्त हुआ।

     सूर्य की उपासना के द्वारा कुष्ठ रोग समाप्त हुआ इसके पश्चात मगध में छठ पर्व सूर्य की पुजा सूर्यास्त समय 


अर्ध्य देकर मनाने का प्रचलन प्रारंभ हुआ




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