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गूढ रहस्य काल:चित्रगुप्त, देवि महकाली ,व्यापार-बहीखाता पूजने का. 29 अक्टूबर


गूढ रहस्य काल:चित्रगुप्त, देवि महकाली ,व्यापार-बहीखाता पूजने का
चित्र गुप्त,महाकाली सरस्वती ,पूजा विधि एवं श्रेष्ठ पूजा समय 29 अक्टूबर 2019





विद्यार्थीप्रतियोगी परीक्षा वर्ग की सफलता के लिए भी विशेष पुस्तक ,पेन
पूजा एवं व्यापरी वर्ग के लिए बहीखातातराजू पूजा मन्त्र के साथ साथ चित्रगुप्तसरस्वतीकुबेर की पूजा की सरल संक्षिप्त विधि एवं मन्त्र प्रस्तुत सर्वकल्याण एवं जनहित में प्रस्तुत 

व्यापारी वर्ग -व्यापारिक कार्य,का नववर्ष प्रारम्भ होता है।  नए बहीखाते श्री गणेश करने की परम्परा है। कार्तिक शुक्ल द्वितीया को चित्रगुप्त का पूजन लेखनी के रूप में किया जाता है। 

श्रेष्ठ-(सर्व दोष मुक्त) श्रेष्ठ पूजा समय
समय चित्रगुप्त पूजाबहीखाता
1/ 08:17-08:20  :
2/ 10:00--10:10:11
3/ 04:32-05:00 Pm
     
अन्य उत्तम समय पूजा हेतु-
अभिजीत काल-11:45-12:20
विजय काल-02:-02:40
वर्जित या बाधक काल(०८ प्रकार के दोष होते हैं,प्रमुख निम्न हैं-)    
राहू -07:48-09:14;
यमघंट-
गुलिक- 01:29-02:54


 चित्रगुप्त पूजा - कायस्थ समाज में चित्र गुप्त की पूजा का विशेष महत्व है |
यमराज के आलेखक चित्रगुप्त - लेखनीदवात तथा पुस्तकों पूजा की जाती है।
 श्री चित्रगुप्ताय नमः'लेखनी पट्टिकाहस्तं चित्रगुप्त नम: |

चित्रगुप्त प्रार्थना:
 मसिभाजनसंयुक्तं ध्यायेत्तं  महाबलम्।
लेखिनीपट्टिकाहस्तं चित्रगुप्तं नमाम्यहम्।।

श्री महाकाली दवात: पूजन:
स्याही मुक्त दावात को भगवती महालक्ष्मी के सामने पुष्प तथा अक्षत पुंच ढेरी में रखकर उसमें सिन्दूर से स्वस्तिक बना दे तथा मौली लपेट दे।

ऊँ महाकाल्यै नमः इस मंत्र से गंध पुष्पादि पचोपचार या षोडशोपचार से दवात में भगवती महाकाली का पूजन करे और अंत में इस प्रकार ध्यानप्रार्थना पूर्वक उन्हे प्रणाम करें।

ध्यानम्ः
ऊँ मषित्वं लेखनी युक्ता चित्रगुप्ताशय स्थिता।
सदक्षराणां पत्रे  लेख्यं कुरु सदामम।।
या माया प्रकृतिः शक्तिश्रण्ड मुण्ड विमर्दिनी।
सा पूज्या सर्वदेवैश्र हास्माकं वरदा भव।।
सद्यश्छित्र शिरः कृपाणमभयंहस्तैर्वरं बिभ्रतीं।।
घोरास्यां शिरसां स्त्रजं सुरुचिरामुन्मुक्त-केशावलीम्।।
सृक्कासृक्-प्रवहांश्मशान निलयांश्रुत्योः शवालंकृतिं।
श्यामाडीं कृत मेखलां शव-करैदेवीं भजे कालिकाम।।

भगवती काली आवाहन:
भगवती काली का ध्यान करने के बाद लेखनी दवात के सम्मुख आवाहन मुद्रा दिखाकरनिम्न मन्त्र पढते हुए उनका आवाहन करे-
ऊँ देवेशि! भक्ति सुलभे! परिवार-समन्विते।
यावत् त्वां पूजायिष्यामि तावत् त्वं सुस्थिराभव।।

दुष्पारे घोर संसार-सागरे पतितम् सदा।
त्रायस्व वरदे देवि! नमस्ते चित् परात्मिके।

ये देवायाश्र देव्यश्र चलितायां चलन्ति हि।
आवाहयामि तान् सर्वान् कालिके परमेश्ररि।।
प्राणान् रक्षयशोरक्षरक्ष वारान्सुतानधनम्।

सर्वं रक्षा करो यस्मात् त्वं हि देविजगन्मये।
प्रविश्य तिष्ठ यज्ञेअस्मिन् यावत पूजां करोम्यहम।
सर्वानन्द करे देविः। सर्व-सिद्धि प्रयच्छ में।।

तिष्ठात्र कालिके मातः। सर्व कल्याण-हेतवे।
पूजाम् ग्रहाण सुमुखि नमस्ते-शंकर-प्रिये।।

आवाहन करने के बाद निम्न मन्त्र पढ़कर उनके आसन के लिये पांच पुष्प अंजलि में लेकर अपने सामने छोड़े।

नाना-रत्न समायुक्तकार्त-स्वर-विभूषितम्।
आसनं देव-देवेशि! प्रीत्यर्थ प्रति गृहाताम्।।

श्री महाकाली देव्यै आसनार्थे पंच पुष्पाणि समर्पयामि। भगवती श्री काली के आसन के लिये पांच पुष्प अर्पित करे। फिर चन्दन-अक्षत-पुष्प धूप दीप नैवेद्य से निम्न मन्त्रो से पूजन करें।

ऊँ श्री काली देव्यै नमः पादयोः पाद्यं समर्पयामि।
ऊँ श्री काली देव्यै नमः शिरसि अध्र्यं समर्पयामि।
ऊँ श्री काली देव्यै नमः गंधाक्षतं  समर्पयामि।
ऊँ श्री काली देव्यै नमः पुष्पं समर्पयामि।
ऊँ श्री काली देव्यै नमः धूपं आघ्रापयामि।
ऊँ श्री काली देव्यै नमः दीपं दर्शयामि।
ऊँ श्री काली देव्यै नमः नैवेद्यं निवेदयामि।
ऊँ श्री काली देव्यै नमः आचमनीयं समर्पयामि।
ऊँ श्री काली देव्यै नमः ताम्बूलं समर्पयामि।

इस प्रकार पूजन करने के बाद बांए हाथ में गन्धअक्षतपुष्प लेकर दाहिने हाथ द्वारा मन्त्र पढते हुए लेखनी दवात पर छोडे।

ऊँ महाकाल्यै नमः अनेन श्री कालीदेवी प्रीयताम् नमो नमः।

पूजन कर नीचे लिखी प्रार्थना करे।
कालिके! त्वं जगन्मातर्मसिरुपेण वर्त से।
उत्पत्रा त्वं  लोकानां व्यवहार प्रसिद्धये।।

या कालिका रोगहरा सुवन्द्या।
भक्तैः समस्तै व्र्यवहार दक्षैः जनैर्जनानां भयहारणी च।
सा लोकमाता मम सौख्यदास्तु।।

लेखनी पूजन:
लेखनी कलम पर मोली बान्ध कर नीचे लिखा ध्यान करके पूजन करे।
ऊँ शुक्लां ब्रम्हा विचार सार परमामाद्यां जगद् व्यापिनीं।
वीणा पुस्तक धारणीम भयदां जाड्यान्ध कारापहाम।।

हस्ते स्फाटिक मालिकां विदधतीं पदासने संस्थितां।
वन्देतां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धि प्रदां शारदाम।।

लेखनी निर्मिता पूर्वं ब्रहाणा परमेष्ठिना।
लोकानां  हितार्थाय स्मातां पूजयाम्हम्।।

या कुन्देन्दु-तुषार-हारधवलाया शुभ्र वस्त्रावृता।
या वीणा वर दण्ड मण्डित करा या श्वेत पदासना।।

या ब्रहााच्युत शंकर प्रभृति भिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहा।।

सरस्वती पंचिका वही खाता पूजनम्-
पंचिका - बही बसनातथा थैली में रोली या केशर युक्त चन्दन से स्वस्तिक-चिन्ह बनाये तथा थैली में पांच हल्दी की गांठधनियाकमल गटटा अक्षत दूर्वा और द्रव्य रखकर उसमें सरस्वती का पूजन करे - ध्यान् करे।

या कुन्देन्दु तुषार हार धवला या शुभ्र वस्त्रावृता।
या वीणा वर दण्ड मण्डित करा या श्रेत पधासना।।
या ब्रहाच्युत शकर प्रभृति भिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाडयापहा।।

भगवती काली आवाहन:
भगवती काली का ध्यान करने के बाद बही-खाते के सम्मुख आवाहन मुद्रा दिखाकर निम्न मन्त्र पढते हुए उनका आवाहन करे। आगच्छ देव देवेशि। तेजोमयि सरस्वती।। श्री सरस्वती देवी आवाहयामि।।
निम्न मन्त्र पढकर उनके आसन के लिए पाच पुष्प अंजलि में लेकर अपने सामने रक्खे बही खाते के निकट छोडे।

नाना रत्न समायुक्तं कार्त-स्वर विभूषितम्।
आसनं देव देवेशि। प्रीत्यर्थ प्रति गृहाताम्।।
श्री सरस्वती देव्यै आसनार्थे पंच पुष्पाणि समर्पयामि।।

भगवती सरस्वती के आसन के लिये पांच पुष्प अर्पित करता हूं। इसके बाद चन्दन अक्षत पुष्प धूप दीप नैवेद्य से भगवती सरस्वती का पूजन निम्न मन्त्रों द्वारा करे।
ऊँ श्री सरस्वती देव्यै नमः पादयोः पाद्यं (जल) समर्पयामि।
ऊँ श्री सरस्वती देव्यै नमः शिरसि अध्र्य समर्पयामि।
ऊँ श्री सरस्वती देव्यै नमः गंधाक्षतं समर्पयामि।
ऊँ श्री सरस्वती देव्यै नमः पुष्पं समर्पयामि।
ऊँ श्री सरस्वती देव्यै नमः धूपं आघ्रापयामि।
ऊँ श्री सरस्वती देव्यै नमः दीपं दर्शयामि।
ऊँ श्री सरस्वती देव्यै नमः नैवेद्यं समर्पयामि।
ऊँ श्री सरस्वती देव्यै नमः आचमनीयं समर्पयामि।
ऊँ श्री सरस्वती देव्यै नमः ताम्बूलं समर्पयामि।

इस प्रकार पूजन करने के बाद बाएं हाथ में गधं अक्षत पुष्प लेकर दाहिने हाथ द्वारा निम्न मन्त्र पढते हुए बही-खाते पर छोडे़।

ऊँ वीणा पुस्तक धारिण्यै श्री सरस्वत्यै नमः।
अनेन पूजनेन श्री सरस्वती देवी प्रीयताम् नमो नमः।।

गंधादि पुष्प अक्षत उपचारों से पूजन करे।

प्रार्थना करे:
ऊँ शारदा शारदम्भोज वदना वदनअम्बुजे।
सर्वदा सर्वदा अस्माकं सत्रिधिं सत्रिधिं क्रियात्।।

कुबेर पूजनम्:
तिजोरी अथवा रुपये रखे जाने वाले सन्दूक आदि को स्वस्तिकादि से अलड्कृत कर उसमें निधिपति कुबेर का

आवाहन करे:
आवाहन मुद्रा दिखाकर - उन पर मोली बांध पर कुबेर का पूजन करे।

ध्यान -
मनुज-बाहृा विमान् स्थितम्।
गरुड-रत्न निभं निधि नायकम्।।

शिव-सखं मुकुटादि विभूषितम्।
वर गढे दधतं भजे तुन्दिलम्।।

भगवान श्री कुबेर का ध्यान करने के बाद तिजोरीसन्दूक आदि के सम्मुख आवाहन-मुद्रा दिखाकर निम्न मन्त्र द्वारा उनका आवाहन करे।
आवाहयामि देव! त्वामिहायाहि कृपां कुरु।
कोशं वर्द्धय नित्यं त्व परि रक्ष सुरेश्वर।।
श्री कुबेर देवम् आवाहयामि।।

आवाहन करने के बाद निम्न मन्त्र पढ़कर श्री कुबेर देव के आसन के लिये पांच पुष्प अंजलि में लेकर अपने सामने तिजोरी-सन्दूक आदि के निकट छोडे़।

मंत्र-नाना-रत्न-समायुक्तं कार्त-स्वर विभूषितम्।
आसनं देव-देवेश! प्रीत्यर्थं प्रति गृहाताम्।।
श्री कुबेर देवाय आसनार्थे पंच पुष्पाणि समर्पयामि।।
भगवान श्री कुबेर के आसन के लिए मैं पंाच पुष्प अर्पित करता हूं। इसके बाद चन्दनअक्षत पुष्प धूप दीप

नैवेद्य से भगवान कुबेर का पूजन करे।
ऊँ श्री कुबेराय नमः पादयोः पाद्यं समर्पयामि।
ऊँ श्री कुबेराय नमः शिरसि अध्र्य समर्पयामि।
ऊँ श्री कुबेराय नमः गंधाक्षतं समर्पयामि।
ऊँ श्री कुबेराय नमः पुष्पं समर्पयामि।
ऊँ श्री कुबेराय नमः धूपांघ्रापयामि।
ऊँ श्री कुबेराय नमः दीपं दर्शयामि।
ऊँ श्री कुबेराय नमः नैवेद्यं समर्पयामि।
ऊँ श्री कुबेराय नमः ताम्बूलं समर्पयामि।
ऊँ श्री कुबेराय नमः अनेन पूजनेन श्री धनाध्यक्ष
श्री कुबेरः श्री प्रीयताम् नमो नमः।

प्रार्थना करे -
धनदाय नमस्तुभ्यं निधि पद्म अधिपाय च।
भगवान त्वत प्रसादेन धन धान्यादि सम्पदः।।
धनाध्यक्षाय देवाय नर यान उपवेशिने।
नमस्ते राज राजाय कुबेराय महात्मने।।
इस प्रकार प्रार्थना कर पूर्व पूजित हल्दी धनिया कमल गटा द्रव्य दूर्वादि से युक्त थैलीतिजोरी में रखे।

तुला तथा मान पूजा:
सिन्दूर से स्वस्तिक प्रतीक चिन्ह बना कर मोली लपेट कर तुला अधिष्ठातृ देवता का ध्यान करना चाहिये।
मंत्र -नमस्ते सर्व देवानां शक्तित्वे सत्यम आश्रिता।
साक्षी भूता जगद्धात्री निर्मिता विश्व योनिना।।
ऊँ तुलाधिष्ठातृ देवतायै नमः। 
 इस नाम मन्त्र से गन्धा
अक्षत आदि  द्वारा पूजन कर नमस्कार करे।।

प्रार्थना:
ऊँ विपणि त्वं महादेवी धन धान्य प्रवर्द्धनी।
मद् गृहे सुयशो देहि धन धानादिकं तथा।।
आयुः पशून्प्रजां देहि सर्व  सम्पत्करी भव।।

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28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामान्य रूप से सभी मंगल कार्यों क

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नारंगी एवं लाल रंग के वस्त्र वस्तुओं का विशेष महत्व है। लाल पुष्प अक्षत रोली कलावा या मौली दूध द

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र हो | - क

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -