सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

धन वृद्धि;गोमय लक्ष्मी कथा (GAAY KE GOBAR SE LAKSHMI NIRMAN SE DHAN VRUDDHI UPAY )

 

–गोमय लक्ष्मी कथा : धन वृद्धि का सिद्ध सरल उपाय

(गोमय की  लक्ष्मी निर्माण ,पूजा धन भंडार भरे ,व्यापर निर्बाध बढे )

 (पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी भोपाल9424446706, कुंडली मिलान, मुहूर्त,वास्तु)
गोमय अर्थात गाय का गोबर ,इससे निर्मित लक्ष्मी तिजोरी में  धन की स्थिरता प्रद होती है |वर्ष में सर्व श्रेष्ठ मुहूर्त दीपावली अर्थात “कार्तिक अमावस्या “ के दिन  गोमय ग्रहण कर ,उससे लक्ष्मी जी की आकृति का निर्माण (06इन्च से बड़ी न हो )शुद्ध स्थान पर करना चाहिए | इसको धुप में सूखने दे द्वितीया के दिन लाल वस्त्र में लपेट कर तिजिरी में रखे या पूजा कक्ष में रखकर प्रतिदिन धुप दीप पुष्प से पूजा करे |

गोसदन एवं गो पालक की आय का साधन-

-गोसदन या गो पालक गोमय की लक्ष्मी सिद्ध मुहूर्त में निर्माण कर धन उपार्जन कर सकते है | कार्तिक अमावस्या का गोमय(गोबर ) अमूल्य अद्भुत प्रभावी धन व्रद्धी एवं लक्ष्मी की कृपा के लिए है | इसको मुहूर्त में एकत्र करे फिर दिए गए मुहूर्त में लक्ष्मी निर्माण कर रंग  रोगन ,श्रृंगार कर लक्ष्मी जी को सुखा ले |इसका विक्रय कर धन अर्जन भी कर सकते हैं |

धन हानि ,अपव्यय रोकने एवं बचत तथा लाभ वृद्धि के लिए लक्ष्मी का उपाय- गोमय की लक्ष्मी निर्माण एवं पूजा |

निर्माण समय मन्त्र- कोई भी लक्ष्मी जी का मन्त्र |या

श्रीम ह्रीं क्लीम महालक्ष्म्यै नम:||

दीपावली अर्थात कार्तिक माह की अमावस्या (वर्ष में एक बार )गोमय लक्ष्मी निर्माण पूजा एवम् स्थायित्व का मुहूर्त-शुभ लग्न एवं होरा का विशिष्ट समय-निम्न समय बजे तक -

1- ग्रहण का मुहूर्त एवं निर्माण -

-निर्माण (गोवर्धन पूजा ,सर्वार्थ सिद्ध योग )को उत्तम है परन्तु गोमय ग्रहण ek din purv को ही उक्त समय में किया जाना आवश्यक है |

वर्ष में एक बार सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त लक्ष्मी की स्थिरता का होता है

गाय के गोमय अथवा पुरीष अथवा  गोबर में लक्ष्मी जी का निवास होता है |

बुधवार या शुक्रवार को शुक्र होरा मे गोबर की लक्ष्मी निर्माण करे ,धूप मे सूखा ले |
कार्तिक अमावस्या को लक्ष्मी से प्रार्थना।
***
वैष्णव खंड 4/1/10
"कार्तिक दीपाली के दिन गोशाला में लक्ष्मी विराजती हैं।

ये लक्ष्मी मेरे लिए सदा वर दायिनी रहे।*
**
वराह पुराण में गाय के शरीर में सर्व देवी निवास लिखा गया है।

गौ का सर्वांग पावन है।

ऋग्वेद,यजुर्वेद,उपनिषद ,महाभारत,आन्नदेवाम आध्टम आदि  भी  गाय की प्रशंशा है।
गोमय एवं लक्ष्मी की कथा -(महाभारत संदर्भ ग्रंथ)-
     लक्ष्मी जी एक बार गायों के समूह में प्रविष्ट हुई ।लक्ष्मी जी ने गाय के समूह को संबोधित कर कहा" तुम्हारा कल्याण हो इस संसार में सब मुझे लक्ष्मी कहते हैं ।"
दैत्य सब समाप्त हो गए हैं ।मैंने उनको छोड़ दिया है ।
इंद्र आदि देवताओं को मैंने आश्रय दिया दे सुख उपभोग कर रहे हैं ।
देवता और ऋषि मेरी शरण में आने के लिए प्रयास करते हैं और तपस्या के पश्चात उन्हें सिद्धि मिलती है ।धर्मार्थ और यह काम  मेरे सहयोग से ही सुख दे पाते हैं ,परंतु मैं आपके शरीर में सदा निवास करना चाहती हूं ।
     "आप से मेरी प्रार्थना है कि तुम लोग मेरा आश्रय ग्रहण करो और श्री संपन्न हो जाओ ।"
      गायों ने कहा देवी आप चंचला हैं। कहीं स्थिर नहीं रहती इसलिए हमको आपकी इच्छा नहीं है ।
आप का कल्याण हो। हम शरीर से स्वभाव से     कल्याणदऔर सुंदर हैं ।हमें आपसे कोई प्रयोजन नहीं है ।
"आप जहां चाहे वहां जा सकती हैं आपने हम से वार्ता की इसलिए हम अपने को धन्य मानते हैं ।"
       लक्ष्मी जी बोली तुम यह सब क्या कह रही हो मैं दुर्लभ हूं ।परम सती हूं ,और तुम मुझे अस्वीकार कर रही हो ।
आज मुझे समझ में आया कि ,बिना आमंत्रण के कहीं जाने से अनादर ही होता है ।देवता, दानव ,गंधर्व, पिशाच ,नाग ,मनुष्य राक्षस बहुत तपस्या करने के बाद मेरी सेवा का सौभाग्य प्राप्त करते हैं ।
" तुम लोग मुझे स्वीकार करो इस संसार में मेरा कोई अपमान नहीं करता ।"
      गाय बोली हे देवी हम आपका अपमान या आप की उपेक्षा नहीं कर रहे हैं ।हम केवल त्याग कर रहे हैं वह भी आपके चंचल प्रकृति के कारण हम आपको नहीं अपना सकती हैं।इसलिए आप जहां चाहे वहां जाने के लिए प्रस्थान करिए।
      लक्ष्मी जी बोली की आप लोग मुझे त्याग दोगी तो संसार में मेरा अनादर होने लगेगा। मैं निर्दोष हूं आपकी शरण में आई हूं ।इसलिए मेरी रक्षा करो। मुझे अपनाओ ।तुम महान सौभाग्य शालिनी सदा सबका कल्याण करने वाली पवित्र और सौभाग्यवती हो। मुझे केवल यह बताओ कि तुम्हारे शरीर के किस भाग में में स्थिर निवास करू ।
      गायों ने कहा है लक्ष्मी आप यश प्रदायका है ।
हमें आपका सम्मानअवश्य करना चाहिए ।
आप हमारे गोबर और मूत्र में निवास करिए ।यह दोनों चीजें हमारी  पवित्र है।
       लक्ष्मी जी ने कहा सुख प्रदायिनी गाय तुम लोगों ने मुझ पर बड़ी कृपा की है ।मेरा मान रख लिया है।
 तुम लोगों का कल्याण हो इस प्रकार देखते ही देखते लक्ष्मी अंतर्ध्यान हो गई ।
महाभारत के अध्याय 82 में इस प्रकार का उल्लेख प्राप्त है।
दीपावली के दिन गाय के गोबर से लक्ष्मी का निर्माण कर ,उसकी पूजा कर ,लाल कपड़े लपेट कर ,धन स्थान में रखने से धन वृद्धि या धन का स्थायित्व होता है ।
उस स्थान पर लक्ष्मी विराजित होती हैं जीवन में धन का आभाव नहीं होता है ।    
*गोमय का मत्र् गोबर से प्रार्थना रोग शोक शमन ।**
वन  में चरने वाली अनेक रस ग्रहण करने वाली वृषभ पत्नी गाय के पवित्र और शरीर को शुद्ध करने वाले गोबर,आप मेरे रोग ,शोक,पाप दूर करो।


-उरुग्वे में तो गो हत्या पर म्रत्यु दंड का प्रावधान है |

पूजा के उपरांत लाल वस्त्र मे लपेट कर तिजोरी मे रखना चाहिए |इससे धन का अभाव नहीं रहता है ||

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्राद्ध की गूढ़ बाते ,किसकी श्राद्ध कब करे

श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चाहिए । पिता जीवित हो तो, गया श्राद्ध न करें । २. मां की मृत्यु (सौभाग्यवती स्त्री) किसी भी तिथि को हुईं हो , श्राद्ध केवल

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहि

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती है | अवि

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा जाता है   | पितृ पक्ष में अपने मित्रगण के मरण तिथि

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक होता है | पितृ श्राद्ध किस देव से स

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामान्य रूप से सभी मंगल कार्यों क

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नारंगी एवं लाल रंग के वस्त्र वस्तुओं का विशेष महत्व है। लाल पुष्प अक्षत रोली कलावा या मौली दूध द

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र हो | - क

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -