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भद्रकाली पूजा : 10.10.2024:मुहूर्त
10.10.2024
- भद्रा: 12:31 PM से 12:24 AM (11 अक्टूबर)
- राहुकाल: 01:36 PM से 03:05 PM
- यमगण्ड: 06:09 AM से 07:39 AM
- गुलिक काल: 09:08 AM से 10:37 AM
11.10.2024
- राहुकाल: 10:37 AM से 12:06 PM
- यमगण्ड: 03:04 PM से 04:34 PM
- गुलिक काल: 07:39 AM से 09:08 AM
अष्टमी महानिशीथ व राहू काल मे पूजा मुहूर्त
अश्वनी मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को अर्ध रात्रि में पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में भद्रकाली देवी अवतरित हुई थी। इसलि अष्टमी की रात्रि को दुर्गा उत्सव किया जाना, जागरण किया जाना विशेष उपयोगी सिद्ध होता है।
अष्टमी - नवमी को दुर्गा का पूरा पाठ या दुर्गा सप्तशती सप्तश्लोकी का पाठ अवश्य करें।अथवा लघुसप्तशती या कुंजिका स्त्रोत का पठन अवश्य करे |
राहूकाल में दुर्गा पूजा : आपत्ति-विपत्ति सांक्त मुक्ति दूर करे|
राहुकाल में पूजा करे आसुरी शक्ति /शत्रु दमन करे -
शुभ कार्यों के मुहूर्त में अनेक दोष होते है |सर्वाधिक प्रचलित राहुकाल है जबकि शनि का गुलिक काल वं अन्य अनेक ग्रह जन्य दोष जैसे काल,यमघण्ट,कुलिक ,कालबेला ,आदि भी दोष है |
राहु काल में देवी पूजा श्रेष्ठ फलदायिनी होती है | अष्टमी को महानिशीथ काल का भी बहुत महत्व है |यह अर्ध रात्री के समय होता है |
"ॐ ए ह्रीं क्लीम चामुण्डायै विच्चै |" मंत्र का जप या कुंजिका स्त्रोत पढे |
मन्त्र द्वारा भी राहुकाल में पूजा की जा सकती है | अशुभ काल मे पूजा से संकट नाश होते हें .
अशुभ काल के बुरे परिणाम से सुरक्षा होती है |
- राहुकाल की पूजा एवं रात्रि पूजा का विशेष महत्व है। अष्टमी को विभिन्न शहरों में राहुकाल का समय निम्न अनुसार रहेगा - इस समय दुर्गा जी के किसी मंत्र का प्रयोग किया जा सकता है . राशि मेष, कर्क ,सिंह ,वृश्चिक, धनु ,मीन है उनके लिये विशेष शुभ अवसर है। -जिनकी जन्म कुंडली में शुक्र या शनि ग्रह पीड़ित अवस्था में हो अथवा शुक्र शनि की दशा अंतर्दशा शनि की साढ़ेसाती ढैया चल रही हो उनके लि भी अष्टमी के दिन हवन करना विशेष अनुकूल प्रसिद्ध होगा । |
शुभ कार्यों के मुहूर्त में अनेक दोष होते है |
सर्वाधिक प्रचलित राहुकाल है जबकि शनि का गुलिक काल वं अन्य अनेक ग्रह जन्य दोष जैसे काल,यमघण्ट,कुलिक ,कालबेला ,आदि भी दोष है |
राहु काल में देवी पूजा श्रेष्ठ फलदायिनी होती है |
-दुर्गा देवी का क स्वरूप छिन्नमस्ता या प्रचंड चंडिका देवी भी है |
राहुकाल की अधिष्ठात्री छिन्नमस्ता या प्रचंड चंडिका देवी है |
भद्रकाली अवतरित-
अश्वनी मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को अर्ध रात्रि में पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में भद्रकाली देवी अवतरित हुई थी।
-इसलिये अष्टमी की रात्रि को दुर्गा उत्सव किया जाना, जागरण किया जाना विशेष उपयोगी सिद्ध होता है।
अष्टमी - नवमी को दुर्गा का पूरा पाठ या दुर्गा सप्तशती सप्तश्लोकी का पाठ अवश्य करें
हवन सामग्री
अष्टमी तिथि को सफेद तिल , खीर सरसों ,सुपारी, लावा, दुर्वांकुर ,जौ, नारियल ,लाल चंदन ,गूगल, जायफल आदि मिलाकर हवन
करना श्रेष्ठ माना गया है।
अष्टमी को बलि वर्जना-
कालिका पुराण,
कामरूप निबंध आदि ग्रंथ में अष्टमी तिथि को बलिदान करने के बलि वर्जना का उल्लेख
ग्रंथो मे है।
दुर्गा
स्तुति
दुर्गम शिवम शांति करीम ब्रह्माणी ब्राह्मण प्रियाम।
सर्वलोक प्रण नेत्रीम च प्रणामी सदा शिवाम।।
मंगलाम शिवाम शुद्धां निष्कलाम परमाम कलाम।
विश्वेश्वरीम विश्व माताम चंडिकाम प्रणमाम्य अहं।
सर्व देव मयिं देवीं सर्व रोग भया पहाम ।
ब्रह्मेश विष्णू नमिताम प्रणमामी सदा उमाम्।
मंगला शिवा शुद्धा निष्कला परमा कला।
(विश्वेश्वरी विश्वमाता चंडिका को।मैं प्रणाम ।सर्व देव युक्तसर्व रोग नाशिनी ब्रह्मा विष्णू शिव जिनकी पूजा करते हैं उनको मैं नमस्कार करता हुँ।)
प्रार्थना
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके
शर्ण्ड्ये त्रयंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।
ओम महिश्घ्न महामाये चामुंडे मुंड मालिनी ।
आयु आरोग्यम ऐश्वर्यम देहि देवी नमोस्तुते।।
कुमकुमें समालब्धे चंदनेन विलेपिते
बिल्वपत्र कृता पीडे दुर्गे अहम शरणं गत |\
अष्टमी तिथि को देवी भागवत वं तन्त्रोक्त देवी के विभिन्न स्वरूपों की अर्चना मंत्र.
1.ऊँ सुन्दरी स्वर्ण वर्णागीम् सुख सौभाग्य दायिनीम् संतोष
जननीं देवीं सुभद्राम् पूजयाम्य अहम ।
2.ऊँ ह्री ंगौरी दयिते योगेष्वरि हुं फट् स्वाहा।
3.ह्रीं श्री ंमहालक्ष्म्यै नमः।
4.पूर्णेन्दु निभां गौरी सोम चक्र स्थितां अष्टमं महागौरी त्रिनेत्राम्।
वरा भीति करां त्रिशूल डमरू धरां महा गौरी भजेम्॥
क्षमा याचनाः-मंत्र हीनम् क्रिया हीनम् भक्ति हीनम्
सुरेष्वरिः तत् क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेष्वरि।
पुष्पं सर्मपयांमि
02 अप्रेल नवमी तिथि बलि-तिथी श्रेष्ठ मानी गई है-
नवमी
तिथि पापनाशिनी है, वं
महान पुण्य प्रदान करने वाली है ।
बलि-नारियल या कुम्हडा या उड़द पिण्ड की दी जाना चाहिये ।
उत्तर
दिशा मे आपका मुह वं बलि वस्तु का मुह पूर्व की और हो।
*कलश मे बिभिन्न स्थानो का जल भर कर उसमे
निम्न पत्तों की पुजा कर डाले -
बिल्व पत्र त,आम,अशोक ,पीपल ,आंवला, शमी, अपराजिता, पारिजात के पत्तों का पूजन कर कलश में स्थापित करें |
* आम के पत्तों का बंदनवार बनाएं।तोरण अर्थात आम के पत्तों की माला बना कर द्वार पर लगा | यह पूजा प्रातः वं अभिजित मुहूर्त में की जाना विशेष उपयोगी है।
अभिजीत काल bhopal-31 मार्च दिनांक-12:00 - 12:49
भोपाल के समय मे (-/+मिनट) ग्वालियर—03;बंगलोर -01;रायपुर-7;हेदरबाद-04;कानपुर-02;मिनट समय रहेगा |
प्रार्थना –
"सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके|
शर्ण्ड्ये त्रयंबके
गौरी नारायणी नमोस्तुते।
ओम महिश्घ्न
महामाये चामुंडे मुंड मालिनी ।
आयु आरोग्यम
ऐश्वर्यम देहि देवी नमोस्तुते।।
कुमकुमें
समालब्धे चंदनेन विलेपिते |
बिल्वपत्र कृता पीडे दुर्गे अहम शरणं गत :।"
दुर्गा स्तुति
दुर्गम शिवम शांति करीम ब्रह्माणी ब्राह्मण प्रियाम।
सर्वलोक प्रणनेत्रीम च प्रणामी सदा शिवाम।।
"मंगलाम शिवाम शुद्धां निष्कलाम परमाम
कलाम।
,विश्वेश्वरीम विश्व माताम चंडिकाम प्रणमाम्य अहं।
सर्व देवमयिं देवीं सर्व रोग।भयापहाम ।
ब्रह्मश विध्णु नमिताम प्रणमामी सदा उमाम्ं।"
मंगला, शिवा,शुद्धा, निश्कला, परमा, कला।
विश्वेश्वरी, विश्वमाता,चंडिका,को।मैं प्रणाम ।सर्व
देव युक्त,सर्व
रोग नाशिनी,ब्रह्मा,विष्णू,शिव जिनकी पूजा करते
हैं,उनको
मैं नमस्कार करता हुँ।
02 अप्रेल नवमी तिथि बलि-तिथी श्रेष्ठ मानी गई है-
कालिका
पुराण कामरूप निबंध आदि ग्रंथ में अष्टमी तिथि को बलिदान करने के लि वर्जना का
उल्लेख ग्रंथो मे है।
नवमी
तिथि पापनाशिनी है, वं
महान पुण्य प्रदान करने वाली है ।
बलि-नारियल या कुम्हडा या उड़द पिण्ड की दी जाना चाहिये ।
उत्तर दिशा मे आपका मुह वं बलि वस्तु का
मुह पूर्व की और हो।
24.10.2020:: दुर्गाअष्टमी
अष्टमी भद्रा काल मे पूजा
भद्रा वं राहूकाल में दुर्गा पूजा : आपत्ति-विपत्ति दूर करे|
- भद्रा में दुर्गा जी के पूजा का विशेष महत्व है।
- स्मृतिवं समुच्य ग्रंथ में लेख है 'भौमेति प्रशस्ता' अर्थात मंगलवार को सप्तमी होना अति उत्तम ।
निर्णय अमृत ग्रंथ - भद्रा को छोड़कर जो महाष्टमी को मेरी पूजा करता है ।उसने मेरा अपमान किया है ।उसको पूजा का फल नहीं मिलेगा।
("विष्टीं त्यक्त्वा महाअष्टंयाम मं पूजां करोति य:।
तस्य
पूजा फल्ंन स्यात्तेनाहं अवामनीता।")
अश्वनी
मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को अर्ध रात्रि में पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में भद्रकाली
देवी अवतरित हुई थी। इसलि अष्टमी की रात्रि को दुर्गा उत्सव किया जाना, जागरण किया जाना विशेष
उपयोगी सिद्ध होता है। अष्टमी वं नवमी को दुर्गा का पूरा पाठ या दुर्गा सप्तशती
सप्तश्लोकी का पाठ अवश्य करें।
राहुकाल में पूजा करे आसुरी शक्ति /शत्रु दमन करे -
शुभ कार्यों के मुहूर्त में अनेक दोष होते है |सर्वाधिक प्रचलित राहुकाल है जबकि शनि का गुलिक काल वं अन्य अनेक गृह जन्य दोष जैसे काल,यमघण्ट,कुलिक ,कालबेला ,आदि भी दोष है |
राहु काल में देवी पूजा श्रेष्ठ फलदायिनी होती है |
"ॐ म् ह्रीं क्लीम चामुण्डायै विच्चै |"
मन्त्र द्वारा भी राहुकाल में पूजा की जा सकती है | अशुभ काल मे पूजा से संकट नाश होते हें वं अशुभ काल के बुरे परिणाम से सुरक्षा होती है |
भोपाल-राहूकाल-31मार्च दिनांक-15:29-17:00;
शनि
दोष नाशक गुलिक काल--12:17-13:57;
बुध ग्रह का हवन बुध दोष नाशक योग |
दुर्मुहूर्त-08:45-09:30;
शुभ कार्यों के मुहूर्त में अनेक दोष होते है |सर्वाधिक प्रचलित राहुकाल है जबकि शनि का गुलिक काल वं अन्य अनेक गृह जन्य दोष जैसे काल,यमघण्ट,कुलिक ,कालबेला ,आदि भी दोष है |
राहु काल में देवी पूजा श्रेष्ठ फलदायिनी होती है |दुर्गा देवी का क स्वरूप छिन्नमस्ता या प्रचंड चंडिका देवी भी है |राहुकाल की अधिष्ठात्री छिन्नमस्ता या प्रचंड चंडिका देवी है |
अश्वनी मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को अर्ध रात्रि में पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में भद्रकाली देवी अवतरित हुई थी। इसलि अष्टमी की रात्रि को दुर्गा उत्सव किया जाना, जागरण किया जाना विशेष उपयोगी सिद्ध होता है। अष्टमी वं नवमी को दुर्गा का पूरा पाठ या दुर्गा सप्तशती सप्तश्लोकी का पाठ अवश्य करें।।("विष्टीं त्यक्त्वा महाअष्टंयाम मं
पूजां करोति य:। तस्य पूजा फल्ंन स्यात्तेनाहं अवामनीता।")
हवन
अष्टमी तिथि को सफेद तिल , खीर सरसों ,सुपारी, लावा, दुर्वांकुर ,जो, नारियल ,लाल चंदन ,गूगल, जायफल आदि मिलाकर हवन
करना श्रेष्ठ माना गया है।
हवन
अष्टमी
तिथि को
सफेद तिल , खीर सरसों ,सुपारी, लावा, दुर्वांकुर ,जो, नारियल ,लाल चंदन ,गूगल, जायफल आदि मिलाकर हवन
करना श्रेष्ठ माना गया है।
02 अप्रेल नवमी तिथि बलि-तिथी श्रेष्ठ मानी गई है-
कालिका
पुराण कामरूप निबंध आदि ग्रंथ में अष्टमी तिथि को बलिदान करने के लि वर्जना का
उल्लेख ग्रंथो मे है।
नवमी
तिथि पापनाशिनी है, वं
महान पुण्य प्रदान करने वाली है ।
बलि-नारियल या कुम्हडा या उड़द पिण्ड की दी जाना चाहिये ।
उत्तर
दिशा मे आपका मुह वं बलि वस्तु का मुह पूर्व की और हो।
*कलश मे बिभिन्न स्थानो का जल भर कर उसमे निम्न
पत्तों की पुजा कर डाले -
बिल्व पत्र त,आम,अशोक ,पीपल ,आंवला, शमी, अपराजिता, पारिजात के पत्तों का पूजन कर कलश में स्थापित करें |
* आम के पत्तों का बंदनवार बनाएं।तोरण अर्थात आम के पत्तों की माला बना कर द्वार पर लगा | यह पूजा प्रातः वं अभिजित मुहूर्त में की जाना विशेष उपयोगी है।
अभिजीत काल bhopal-31 मार्च दिनांक-12:00 - 12:49
भोपाल के समय मे (-/+मिनट) ग्वालियर—03;बंगलोर -01;रायपुर-7;हेदरबाद-04;कानपुर-02;मिनट समय रहेगा |
प्रार्थना –
"सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके|
शर्ण्ड्ये त्रयंबके
गौरी नारायणी नमोस्तुते।
ओम
महिश्घ्न महामाये चामुंडे मुंड मालिनी ।
आयु
आरोग्यम ऐश्वर्यम देहि देवी नमोस्तुते।।
कुमकुमें
समालब्धे चंदनेन विलेपिते |
बिल्वपत्र कृता पीडे दुर्गे अहम शरणं गत
:।"
दुर्गा स्तुति
दुर्गम शिवम शांति करीम ब्रह्माणी ब्राह्मण प्रियाम।
सर्वलोक प्रणनेत्रीम च प्रणामी सदा शिवाम।।
"मंगलाम शिवाम शुद्धां निष्कलाम परमाम
कलाम।
,विश्वेश्वरीम विश्व माताम चंडिकाम प्रणमाम्य अहं।
सर्व देवमयिं देवीं सर्व रोग।भयापहाम ।
ब्रह्मश विध्णु नमिताम प्रणमामी सदा उमाम्ं।"
मंगला, शिवा,शुद्धा, निश्कला, परमा, कला।
विश्वेश्वरी, विश्वमाता,चंडिका,को।मैं प्रणाम ।सर्व
देव युक्त,सर्व
रोग नाशिनी,ब्रह्मा,विष्णू,शिव जिनकी पूजा करते
हैं,उनको
मैं नमस्कार करता हुँ।
02 अप्रेल नवमी तिथि बलि-तिथी श्रेष्ठ मानी गई है-
कालिका
पुराण कामरूप निबंध आदि ग्रंथ में अष्टमी तिथि को बलिदान करने के लि वर्जना का
उल्लेख ग्रंथो मे है।
नवमी
तिथि पापनाशिनी है, वं
महान पुण्य प्रदान करने वाली है ।
बलि-नारियल या कुम्हडा या उड़द पिण्ड की दी जाना चाहिये ।
उत्तर दिशा मे आपका मुह वं बलि वस्तु का
मुह पूर्व की और हो।
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