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भद्रकाली पूजा : 10.& 11oct 2024:मुहूर्त

 

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भद्रकाली पूजा : 10.10.2024:मुहूर्त

10.10.2024

  • भद्रा: 12:31 PM से 12:24 AM (11 अक्टूबर)
  • राहुकाल: 01:36 PM से 03:05 PM
  • यमगण्ड: 06:09 AM से 07:39 AM
  • गुलिक काल: 09:08 AM से 10:37 AM

11.10.2024

  • राहुकाल: 10:37 AM से 12:06 PM
  • यमगण्ड: 03:04 PM से 04:34 PM
  • गुलिक काल: 07:39 AM से 09:08 AM

 

अष्टमी महानिशीथ व राहू  काल मे पूजा मुहूर्त

अश्वनी मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को अर्ध रात्रि में पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में भद्रकाली देवी अवतरित हुई थी। इसलि अष्टमी की रात्रि को दुर्गा उत्सव किया जानाजागरण किया जाना विशेष उपयोगी सिद्ध होता है।

अष्टमी - नवमी को दुर्गा का पूरा पाठ या दुर्गा सप्तशती सप्तश्लोकी का पाठ अवश्य करें।अथवा लघुसप्तशती या कुंजिका स्त्रोत का पठन अवश्य करे |

 

राहूकाल में दुर्गा पूजा  : आपत्ति-विपत्ति सांक्त मुक्ति दूर करे|

राहुकाल में पूजा करे आसुरी शक्ति /शत्रु दमन करे -

शुभ कार्यों के मुहूर्त में अनेक दोष होते है |सर्वाधिक प्रचलित राहुकाल है जबकि शनि का गुलिक काल वं अन्य अनेक ग्रह जन्य दोष जैसे काल,यमघण्ट,कुलिक ,कालबेला ,आदि भी दोष है |

राहु काल में देवी पूजा श्रेष्ठ फलदायिनी होती है | अष्टमी को महानिशीथ काल का भी बहुत महत्व है |यह अर्ध रात्री के समय होता है |

"ॐ ए ह्रीं क्लीम चामुण्डायै विच्चै |" मंत्र का जप या कुंजिका स्त्रोत पढे |

मन्त्र द्वारा भी राहुकाल में पूजा की जा सकती है | अशुभ काल मे पूजा से संकट नाश होते हें .

अशुभ काल के बुरे परिणाम से सुरक्षा होती है |

 


- राहुकाल की पूजा एवं रात्रि पूजा का विशेष महत्व है।

 अष्टमी को विभिन्न शहरों में राहुकाल का समय निम्न अनुसार रहेगा -

     इस समय दुर्गा जी के किसी मंत्र का प्रयोग किया जा सकता है .
  
हवन शुक्र वम् शनि ग्रह की शांति
ज्योयिश उपाय-
- अष्टमी हवन के लिये विशेष महत्वपूर्ण है। जिन लोगों की लग्न या

 राशि मेष, कर्क ,सिंह ,वृश्चिक, धनु ,मीन है उनके लिये विशेष शुभ अवसर है।
      
यह दिन शुक्र वं शनि ग्रह ग्रह के हवन अवधि का विशिष्ट दिन है।

-जिनकी जन्म कुंडली में शुक्र या शनि ग्रह पीड़ित अवस्था में हो अथवा शुक्र शनि की दशा

 अंतर्दशा शनि की साढ़ेसाती ढैया चल रही हो उनके लि भी अष्टमी के दिन हवन

 करना विशेष अनुकूल प्रसिद्ध होगा ।
वह शुक्र या शनि ग्रह के किसी भी मंत्र के द्वारा अवश्य प्रदान कर सकते हैं। 


शुभ कार्यों के मुहूर्त में अनेक दोष होते है |

सर्वाधिक प्रचलित राहुकाल है जबकि शनि का गुलिक काल वं अन्य अनेक ग्रह जन्य दोष जैसे काल,यमघण्ट,कुलिक ,कालबेला ,आदि भी दोष है |

राहु काल में देवी पूजा श्रेष्ठ फलदायिनी होती है |

-दुर्गा देवी का क स्वरूप छिन्नमस्ता या प्रचंड चंडिका  देवी भी है |

राहुकाल की अधिष्ठात्री छिन्नमस्ता या प्रचंड चंडिका  देवी है |

भद्रकाली अवतरित-

अश्वनी मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को अर्ध रात्रि में पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में भद्रकाली देवी अवतरित हुई थी।

-इसलिये अष्टमी की रात्रि को दुर्गा उत्सव किया जानाजागरण किया जाना विशेष उपयोगी सिद्ध होता है।

अष्टमी - नवमी को दुर्गा का पूरा पाठ या दुर्गा सप्तशती सप्तश्लोकी का पाठ अवश्य करें

 

हवन सामग्री

अष्टमी तिथि को सफेद तिल , खीर सरसों ,सुपारीलावादुर्वांकुर ,जौनारियल ,लाल चंदन ,गूगलजायफल आदि मिलाकर हवन करना श्रेष्ठ माना गया है।

अष्टमी को बलि वर्जना-

कालिका पुराण, कामरूप निबंध आदि ग्रंथ में अष्टमी तिथि को बलिदान करने के लि वर्जना का उल्लेख ग्रंथो मे है।

दुर्गा स्तुति

दुर्गम शिवम शांति करीम ब्रह्माणी ब्राह्मण प्रियाम।

सर्वलोक प्रण नेत्रीम च प्रणामी सदा शिवाम।।

मंगलाम शिवाम शुद्धां निष्कलाम परमाम कलाम।

विश्वेश्वरीम विश्व माताम चंडिकाम प्रणमाम्य अहं।

सर्व देव मयिं देवीं सर्व रोग भया पहाम ।

ब्रह्मेविष्णू नमिताम प्रणमामी सदा उमाम्।

मंगला शिवा शुद्धा निष्कला परमा कला।

(विश्वेश्वरी  विश्वमाता चंडिका को।मैं प्रणाम ।सर्व देव युक्तसर्व रोग नाशिनी ब्रह्मा विष्णू शिव जिनकी पूजा करते हैं उनको मैं नमस्कार करता हुँ।)

 

प्रार्थना

र्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके

 शर्ण्ड्ये त्रयंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।

ओम महिश्घ्न महामाये चामुंडे मुंड मालिनी ।

आयु आरोग्यम ऐश्वर्यम देहि देवी नमोस्तुते।।

कुमकुमें समालब्धे चंदनेन विलेपिते

          बिल्वपत्र कृता पीडे दुर्गे अहम शरणं गत |\

 

अष्टमी तिथि को देवी भागवत वं तन्त्रोक्त देवी के विभिन्न स्वरूपों की अर्चना मंत्र.

1.ऊँ सुन्दरी स्वर्ण वर्णागीम् सुख सौभाग्य दायिनीम् संतोष

जननीं देवीं सुभद्राम् पूजयाम्य अहम ।

2.ऊँ ह्री ंगौरी दयिते योगेष्वरि हुं फट् स्वाहा।

3.ह्रीं श्री ंमहालक्ष्म्यै नमः।

4.पूर्णेन्दु निभां गौरी सोम चक्र स्थितां अष्टमं महागौरी त्रिनेत्राम्।

वरा भीति करां त्रिशूल डमरू धरां महा गौरी भजेम्॥

           क्षमा याचनाः-मंत्र हीनम् क्रिया हीनम् भक्ति हीनम्

        सुरेष्वरिः तत्  क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेष्वरि।

                  पुष्पं सर्मपयांमि

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

02 अप्रेल नवमी तिथि बलि-तिथी श्रेष्ठ मानी गई है-
नवमी तिथि पापनाशिनी हैवं महान पुण्य प्रदान करने वाली है ।

बलि-नारियल या कुम्हडा या उड़द पिण्ड की दी जाना चाहिये ।

उत्तर दिशा मे आपका मुह वं बलि वस्तु का मुह पूर्व की और हो।

*कलश मे बिभिन्न स्थानो का जल भर कर उसमे निम्न पत्तों की पुजा कर डाले -

बिल्व पत्र त,आम,अशोक ,पीपल ,आंवलाशमीअपराजितापारिजात के पत्तों का पूजन कर कलश में स्थापित करें |

* आम के पत्तों का बंदनवार बनाएं।तोरण अर्थात आम के पत्तों की माला बना कर द्वार पर लगा | यह पूजा प्रातः वं अभिजित मुहूर्त में की जाना विशेष उपयोगी है।

 

अभिजीत काल bhopal-31 मार्च दिनांक-12:00 - 12:49

भोपाल के समय मे (-/+मिनट) ग्वालियर03;बंगलोर -01;रायपुर-7;हेदरबाद-04;कानपुर-02;मिनट समय रहेगा |

प्रार्थना –

"सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके|

 शर्ण्ड्ये त्रयंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।
ओम महिश्घ्न महामाये चामुंडे मुंड मालिनी ।
आयु आरोग्यम ऐश्वर्यम देहि देवी नमोस्तुते।।
कुमकुमें समालब्धे चंदनेन विलेपिते |

बिल्वपत्र कृता पीडे दुर्गे अहम शरणं गत :।"



दुर्गा स्तुति
दुर्गम शिवम शांति करीम ब्रह्माणी ब्राह्मण प्रियाम।

सर्वलोक प्रणनेत्रीम च प्रणामी सदा शिवाम।।
"
मंगलाम शिवाम शुद्धां निष्कलाम परमाम कलाम।
,
विश्वेश्वरीम विश्व माताम चंडिकाम प्रणमाम्य अहं।
सर्व देवमयिं देवीं सर्व रोग।भयापहाम ।
ब्रह्मश विध्णु नमिताम प्रणमामी सदा उमाम्ं।"
मंगलाशिवा,शुद्धानिश्कलापरमाकला।
विश्वेश्वरीविश्वमाता,चंडिका,को।मैं प्रणाम ।सर्व देव युक्त,सर्व रोग नाशिनी,ब्रह्मा,विष्णू,शिव जिनकी पूजा करते हैं,उनको मैं नमस्कार करता हुँ।

 

 

02 अप्रेल नवमी तिथि बलि-तिथी श्रेष्ठ मानी गई है-
कालिका पुराण कामरूप निबंध आदि ग्रंथ में अष्टमी तिथि को बलिदान करने के लि वर्जना का उल्लेख ग्रंथो मे है।
नवमी तिथि पापनाशिनी हैवं महान पुण्य प्रदान करने वाली है ।

बलि-नारियल या कुम्हडा या उड़द पिण्ड की दी जाना चाहिये ।

उत्तर दिशा मे आपका मुह वं बलि वस्तु का मुह पूर्व की और हो।


 

 

 

 

 

24.10.2020:: दुर्गाअष्टमी

अष्टमी भद्रा काल मे पूजा

भद्रा वं राहूकाल में दुर्गा पूजा  : आपत्ति-विपत्ति दूर करे|

  • भद्रा में दुर्गा जी के पूजा का विशेष महत्व है। 
  • स्मृतिवं  समुच्य ग्रंथ में लेख है 'भौमेति प्रशस्ताअर्थात मंगलवार को सप्तमी होना अति उत्तम 

निर्णय अमृत ग्रंथ - भद्रा को छोड़कर जो महाष्टमी को मेरी पूजा करता है ।उसने मेरा अपमान किया है ।उसको पूजा का फल नहीं मिलेगा

("विष्टीं त्यक्त्वा महाअष्टंयाम मं पूजां करोति य:।

तस्य पूजा फल्ंन स्यात्तेनाहं अवामनीता।")
अश्वनी मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को अर्ध रात्रि में पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में भद्रकाली देवी अवतरित हुई थी। इसलि अष्टमी की रात्रि को दुर्गा उत्सव किया जानाजागरण किया जाना विशेष उपयोगी सिद्ध होता है। अष्टमी वं नवमी को दुर्गा का पूरा पाठ या दुर्गा सप्तशती सप्तश्लोकी का पाठ अवश्य करें।

 

 

राहुकाल में पूजा करे आसुरी शक्ति /शत्रु दमन करे -

शुभ कार्यों के मुहूर्त में अनेक दोष होते है |सर्वाधिक प्रचलित राहुकाल है जबकि शनि का गुलिक काल वं अन्य अनेक गृह जन्य दोष जैसे काल,यमघण्ट,कुलिक ,कालबेला ,आदि भी दोष है |

राहु काल में देवी पूजा श्रेष्ठ फलदायिनी होती है |

"ॐ म् ह्रीं क्लीम चामुण्डायै विच्चै |"

मन्त्र द्वारा भी राहुकाल में पूजा की जा सकती है | अशुभ काल मे पूजा से संकट नाश होते हें वं अशुभ काल के बुरे परिणाम से सुरक्षा होती है |

भोपाल-राहूकाल-31मार्च दिनांक-15:29-17:00;  
शनि दोष नाशक गुलिक काल--12:17-13:57;

बुध ग्रह का हवन बुध दोष नाशक योग |

दुर्मुहूर्त-08:45-09:30;

 

 

शुभ कार्यों के मुहूर्त में अनेक दोष होते है |सर्वाधिक प्रचलित राहुकाल है जबकि शनि का गुलिक काल वं अन्य अनेक गृह जन्य दोष जैसे काल,यमघण्ट,कुलिक ,कालबेला ,आदि भी दोष है |

राहु काल में देवी पूजा श्रेष्ठ फलदायिनी होती है |दुर्गा देवी का क स्वरूप छिन्नमस्ता या प्रचंड चंडिका  देवी भी है |राहुकाल की अधिष्ठात्री छिन्नमस्ता या प्रचंड चंडिका  देवी है |

 

अश्वनी मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को अर्ध रात्रि में पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में भद्रकाली देवी अवतरित हुई थी। इसलि अष्टमी की रात्रि को दुर्गा उत्सव किया जानाजागरण किया जाना विशेष उपयोगी सिद्ध होता है। अष्टमी वं नवमी को दुर्गा का पूरा पाठ या दुर्गा सप्तशती सप्तश्लोकी का पाठ अवश्य करें।।("विष्टीं त्यक्त्वा महाअष्टंयाम मं 

पूजां करोति य:। तस्य पूजा फल्ंन स्यात्तेनाहं अवामनीता।")

 

हवन 

अष्टमी तिथि को सफेद तिल , खीर सरसों ,सुपारीलावादुर्वांकुर ,जोनारियल ,लाल चंदन ,गूगलजायफल आदि मिलाकर हवन करना श्रेष्ठ माना गया है।


हवन 

अष्टमी तिथि को सफेद तिल , खीर सरसों ,सुपारीलावादुर्वांकुर ,जोनारियल ,लाल चंदन ,गूगलजायफल आदि मिलाकर हवन करना श्रेष्ठ माना गया है।



02 अप्रेल नवमी तिथि बलि-तिथी श्रेष्ठ मानी गई है-
कालिका पुराण कामरूप निबंध आदि ग्रंथ में अष्टमी तिथि को बलिदान करने के लि वर्जना का उल्लेख ग्रंथो मे है।
नवमी तिथि पापनाशिनी हैवं महान पुण्य प्रदान करने वाली है ।

बलि-नारियल या कुम्हडा या उड़द पिण्ड की दी जाना चाहिये ।

उत्तर दिशा मे आपका मुह वं बलि वस्तु का मुह पूर्व की और हो।

*कलश मे बिभिन्न स्थानो का जल भर कर उसमे निम्न पत्तों की पुजा कर डाले -

बिल्व पत्र त,आम,अशोक ,पीपल ,आंवलाशमीअपराजितापारिजात के पत्तों का पूजन कर कलश में स्थापित करें |

* आम के पत्तों का बंदनवार बनाएं।तोरण अर्थात आम के पत्तों की माला बना कर द्वार पर लगा | यह पूजा प्रातः वं अभिजित मुहूर्त में की जाना विशेष उपयोगी है।

 

अभिजीत काल bhopal-31 मार्च दिनांक-12:00 - 12:49

भोपाल के समय मे (-/+मिनट) ग्वालियर03;बंगलोर -01;रायपुर-7;हेदरबाद-04;कानपुर-02;मिनट समय रहेगा |

प्रार्थना –

"सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके|

 शर्ण्ड्ये त्रयंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।
ओम महिश्घ्न महामाये चामुंडे मुंड मालिनी ।
आयु आरोग्यम ऐश्वर्यम देहि देवी नमोस्तुते।।
कुमकुमें समालब्धे चंदनेन विलेपिते |

बिल्वपत्र कृता पीडे दुर्गे अहम शरणं गत :।"



दुर्गा स्तुति
दुर्गम शिवम शांति करीम ब्रह्माणी ब्राह्मण प्रियाम।

सर्वलोक प्रणनेत्रीम च प्रणामी सदा शिवाम।।
"
मंगलाम शिवाम शुद्धां निष्कलाम परमाम कलाम।
,
विश्वेश्वरीम विश्व माताम चंडिकाम प्रणमाम्य अहं।
सर्व देवमयिं देवीं सर्व रोग।भयापहाम ।
ब्रह्मश विध्णु नमिताम प्रणमामी सदा उमाम्ं।"
मंगलाशिवा,शुद्धानिश्कलापरमाकला।
विश्वेश्वरीविश्वमाता,चंडिका,को।मैं प्रणाम ।सर्व देव युक्त,सर्व रोग नाशिनी,ब्रह्मा,विष्णू,शिव जिनकी पूजा करते हैं,उनको मैं नमस्कार करता हुँ।

 

 

02 अप्रेल नवमी तिथि बलि-तिथी श्रेष्ठ मानी गई है-
कालिका पुराण कामरूप निबंध आदि ग्रंथ में अष्टमी तिथि को बलिदान करने के लि वर्जना का उल्लेख ग्रंथो मे है।
नवमी तिथि पापनाशिनी हैवं महान पुण्य प्रदान करने वाली है ।

बलि-नारियल या कुम्हडा या उड़द पिण्ड की दी जाना चाहिये ।

उत्तर दिशा मे आपका मुह वं बलि वस्तु का मुह पूर्व की और हो।


 

 

 

 

 

 

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सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नारंगी एवं लाल रंग के वस्त्र वस्तुओं का विशेष महत्व है। लाल पुष्प अक्षत रोली कलावा या मौली दूध द

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र हो | - क

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -