दिवाली -लक्ष्मी पूजा –मन्त्र
-पूजा मे कमल पुष्प कमलगटा प्रयोग करे विल्ब वृक्ष पत्र , फल श्री फ़ल (लक्ष्मी जी से सम्बंधित है )प्रयोग करे ।
-चौराहे पर तेल का दीपक जलाएं शंख और घंटी बजाना चाहिए.
- महालक्ष्मी को तुलसी के पत्ते भी चढ़ाने चाहिए।
-पीपल के पेड़ के नीचे तेल का दीपक रखे ।
-हल्दी की 11 गांठ लें। इन्हें पीले कपड़े में बांध लें।
- पांच गोमती चक्र को लाल वस्त्र में बांधकर घर की चौखट के ऊपर बांधने से धन लाभ मिलता है।
-- लक्ष्मी यंत्र, कुबेर यंत्र और श्रीयंत्र रखना चाहिए।–
किन्नर से उसकी खुशी से एक रुपया लें और इस सिक्के को अपने पर्स में रखें। बरकत बनी रहेगी।
A-लक्ष्मी पूजा मुहूर्त = = 17.35से 19.05 प्रदोष काल ;(19.40 to 21.25PM-nakshtra dosh kaal;)-
दीपावली पर ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान करते समय नहाने के पानी में कच्चा दूध और गंगाजल मिलाएं। - स्नान के बाद अच्छे वस्त्र धारण करें और सूर्य को जल अर्पित करें।विशेष- पश्चिम मे मुँह कर लक्ष्मी एवं उत्तर मे मुँह कर कुबेर गणेश आदि पंचदेव पूजा ।
-दीपक वर्तिका भी चारो दिशाओं उत्तर , पश्चिम चाहिए । रंग'लाल ,पीला केसरिया हरा हो श्वेत रंग वर्जित इसलिए कलावा या मौली की वर्तिका बनाये ।
लक्ष्मी पूजा समय सायं-समय एवं श्रेष्ठ समय अर्धरात्रि समय ही होता है । अमावस्या सम्बन्ध रात्रि से है।
एक बड़ी हरड़, एक मुट्ठी गेहूँ और चाँदी या ताँबे की एक जोड़ा छोटी-सी पादुकाएँ लें ।
यह समस्त सामग्री हल्दी से रंगे एक स्वच्छ पीले कपड़े में बाँध लें । बुध की होरा में यह कपड़ा अपने रसोईघर में कहीं ऐसे स्थान पर टाँग दें, जहाँ जल्दी किसी अनजान व्यक्ति की दृष्टि उस पर न पड़े । तीसरे दिन पड़ने वाली दीपावली की रात्रि लक्ष्मी जी की पूजा के पश्चात् टंगी हुई, उस पोटली पर एक चुटकी पिसी हल्दी डालकर ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’ मंत्र की एक माला जपें । इसके बाद नित्य सायंकाल पोटली के पास जाकर यथा-भक्ति धूप-दीप जलाएँ और उक्त मंत्र की एक संख्या निश्चित करके जप करते रहें । अगले वर्ष धनतेरस को यह पोटली समस्त सामग्री बदल कर उपरोक्त विधि से पूजा-अर्चना करके पुनः यथास्थान टाँग दें । इस प्रयोग से पूरे वर्ष घर में अन्नपूर्णा की कृपा के साथ-साथ सुख और शान्ति का वातावरण बना रहेगा । यह प्रयोग दीवाली के अतिरिक्त किसी गुरु-पुष्य नक्षत्र से भी प्रारम्भ किया जा सकता है।
धनतेरस को किसी भी समय कुछ कनार के पत्ते तथा नागकेसर ले आइए । उसी दिन एक चाँदी की छोटी-सी डिब्बी भी ले आइए । दीवाली की रात्रि तीनों वस्तुओं की लक्ष्मी स्वरुप मानकर श्रद्धा से पूजा-अर्चना करें । इसके बाद पत्ते तथा नागकेसर डिब्बी में बन्द करके घर या दुकान में किसी अलमारी या पैसे रखने के स्थान में रख दें ।
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यमदीप दान विधि मंत्र धनतेरस की संध्या
स्कन्दपुराण -कार्तिक के कृष्णपक्ष में त्रयोदशी के प्रदोष-काल में यमराज के निमित्त दीप और नैवेद्य समर्पित करने पर अपमृत्यु का नाश होता है ।
- यम को दीप दान प्रदोषकाल (संध्या)में करना चाहिए ।
*मिट्टी का एक बड़ा दीपक लें ।
* रुई लेकर दो लम्बी बत्तियाँ बना लें । उन्हें दीपक में एक-दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियोँ के चार मुँह दिखाई दें ।
* दीपक को तिल के तेल से भर दें और उसमें कुछ काले तिल डाल दें ।
* दीपक का रोली, अक्षत एवं पुष्प से पूजन करें ।
*घर के मुख्य दरवाजे के बाहर थोड़ी-सी खील अथवा गेहूँ से ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को रखना है । 1*दीपक को प्रज्वलित कर लें .दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए मन्त्र का उच्चारण करते हुए ,दीपक को खील (लाजा) आदि की ढेरी के ऊपर रख दें.
मंत्र- – मृत्युना पाश दण्डाभ्यां कालेन च मया सह । त्रयोदश्यां दीप दानात् सूर्यजः प्रीयता मिति ।।
अर्थात् त्रयोदशी को दीपदान करने से मृत्यु, पाश, दण्ड, काल और लक्ष्मी के साथ सूर्यनन्दन यम प्रसन्न हों ।
2-हाथ में पुष्प लेकर यमदेव को दक्षिण दिशा में नमस्कार करें –
ॐ यमदेवाय नमः । नमस्कारं समर्पयामि ।। पुष्प दीपक के समीप छोड़ दें। ।
3-हाथ में एक बताशा लें उसे दीपक के समीप छोड़ दें – ॐ यमदेवाय नमः । नैवेद्यं समर्पयामि ।।
4-हथेली मे जल लेकर दीपक के समीप छोड़ें – ॐ यमदेवाय नमः । आचमनार्थे जलं समर्पयामि ।।
5-यमदेव को ‘ॐ यमदेवाय नमः’ कहते हुए दक्षिण दिशा में नमस्कार करें ।
.महालक्ष्मी के ऐसे चित्र का पूजन करें, जिसमें लक्ष्मी अपने स्वामी भगवान विष्णु के पैरों के पास बैठी
-1-ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नमः॥2-ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:3-॥ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॥4-ॐ अष्ट-
हवन-मन्त्रः- “ॐ श्रीं ह्रीं महा-लक्ष्म्यै सर्वाभीष्ट सिद्धिदायै स्वाहा।”
लक्ष्मी शाबर मन्त्र
1-“विष्णु-प्रिया
लक्ष्मी, शिव-प्रिया सती से प्रकट हुई। कामाक्षा भगवती आदि-शक्ति, युगल
मूर्ति अपार, दोनों की प्रीति अमर, जाने संसार। दुहाई कामाक्षा की। आय बढ़ा
व्यय घटा। दया कर माई। ॐ नमः विष्णु-प्रियाय। ॐ नमः शिव-प्रियाय। ॐ नमः
कामाक्षाय। ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।”
2-“आवो लक्ष्मी बैठो आँगन, रोरी तिलक चढ़ाऊँ। गले में हार पहनाऊँ।। बचनों की बाँधी, आवो हमारे पास। पहला वचन श्रीराम का, दूजा वचन ब्रह्मा का, तीजा वचन महादेव का। वचन चूके, तो नर्क पड़े। सकल पञ्च में पाठ करुँ। वरदान नहीं देवे, तो महादेव शक्ति की आन।।”
3-“ॐ नमः विष्णु-प्रियायै, ॐ नमः कामाक्षायै। ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं श्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।”
विधि-
‘दीपावली’ की सन्ध्या को पाँच मिट्टी के दीपकों में गाय का घी डालकर रुई
की बत्ती जलाए। ‘लक्ष्मी जी’ को दीप-दान करें और ‘मां कामाक्षा’ का ध्यान
कर उक्त प्रार्थना करे। मन्त्र का १०८ बार जप करे। ‘दीपक’ सारी रात जलाए
रखे और स्वयं भी जागता रहे। नींद आने लगे, तो मन्त्र का जप करे। प्रातःकाल
दीपों के बुझ जाने के बाद उन्हें नए वस्त्र में बाँधकर ‘तिजोरी’ या ‘बक्से’
में रखे। इससे श्रीलक्ष्मीजी का उसमें वास हो जाएगा और धन-प्राप्ति होगी।
प्रतिदि महा-लक्ष्मी
4-“राम-राम क्ता करे, चीनी मेरा नाम। सर्व-नगरी बस में करुँ, मोहूँ सारा गाँव।
राजा की बकरी करुँ, नगरी करुँ बिलाई। नीचा में ऊँचा करुँ, सिद्ध गोरखनाथ की दुहाई।।”
विधिः- दिवाली / गुरु-पुष्य योग हो, उस दिन से प्रतिदिन एकान्त में बैठ कर कमल-गट्टे की माला से उक्त मन्त्र को ~~
7-ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये देहि दापय स्वाहा॥धनधान्यसमृद्धिं मे ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः॥ ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय॥ नमः
8-लक्ष्मी की प्राप्ति
विष्णुप्रिया लक्ष्मी, शिवप्रिया सती से प्रकट हुई कामेक्षा भगवती आदि शक्ति युगल मूर्ति महिमा अपार, दोनों की प्रीति अमर जाने संसार, दुहाई कामाक्षा की, आय बढ़ा व्यय घटा, दया कर माई। ऊँ नमः विष्णुप्रियाय, ऊँ नमः शिवप्रियाय, ऊँ नमः कामाक्षाय ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।
9-श्री शुक्ले महाशुक्ले, महाशुक्ले कमलदल निवासे श्री महालक्ष्मी नमो नमः। लक्ष्मी माई सबकी सवाई, आओ चेतो करो भलाई, ना करो तो सात समुद्रों की दुहाई, ऋद्धि नाथ देवों नौ नाथ चैरासी सिद्धों की दुहाई।
, कारोबार में उन्नति होगी। जप के बाद दुकान पर चारों दिशाओं को नमस्कार करके धूप-दीप देकर फिर लेन-देन करें, धन लाभ होगा।
10-ऊँ क्रीं श्रीं चामुंडा सिंहवाहिनी कोई हस्ती भगवती रत्नमंडित सोनन की माल, उत्तर पथ में आप बैठी हाथ सिद्ध वाचा, सिद्धि धन धान्य कुरु-कुरु स्वाहा।
दुर्गा के उपासक लक्ष्मी प्राप्ति के इस मंत्र का सवा लाख जप करें, सभी कार्य सिद्ध होंगे लक्ष्मी की प्राप्ति होगी।
11+-ऊँ ह्रीं श्रीं ठं ठं ठं नमो भगवते, मम सर्वकार्याणि साधय, मां रक्ष रक्ष शीघ्रं मां धनिनं।
कुरु कुरु फट् श्रीयं देहि, मम आपत्तिम निवारय निवारय स्वाहा।।
12-ऊँ श्रीं श्रीं श्रीं परमाम् सिद्धिं श्रीं श्रीं श्रीं। भगवती लक्ष्मी के 18 पुत्र माने जाते हैं। 1. ॐ देवसखाय नम:, 2. ॐ चिक्लीताय नम:, 3. ॐ आनंदाय नम:, 4. ॐ कर्दमाय नम:, 5. ॐ श्रीप्रदाय नम:,
6. ॐ जातवेदाय नम:, 7. ॐ अनुरागाय नम:, 8. ॐ संवादाय नम:, 9. ॐ विजयाय नम:,
5 मन्त्र-
ॐ विष्णु-प्रिया दिग्दलस्था नमो, विश्वाधार-जननि कमलायै नमो ।
बीजाक्षरों की तुम्हीं सृष्टि करती, चरण-शरण भक्त के क्लेश हरती ।।
सिन्धु-कन्या माया-बीज-काया, मोह-पाश से जग को भ्रमाया ।
योगी भी हुए नहैं हैरान तुमसे, कराओ अन्तर्बहिर्याग नित्य मुझसे ।।
न करता हूँ जाप-पूजा मैं तेरी, इतना ही जानता हूँ माँ तू मेरी ।
पद्म-चक्र-शंख-मधु-पात्र धारे, विकट वीर योद्धा तूने सँहारे ।।
श्रीअपराजिता वैष्णवी नाम तेरा, माँ एकाक्षरी तू आधार मेरा ।
तू ही गुरु-गोविन्द करुणा-मयी, जै जै श्रीशिवानन्दनाथ-लीला-मयी ।।
ऐरावत है शुण्डाभिषेक करते, दे प्रत्यक्ष दरशन हे विश्व-भर्ते ।
योग-भोगदा रमा विष्णु-रुपा, मेरी कामधेनु काम-स्वरुपा ।।
सिद्धैशवर्य-दात्री हे शेष-शायी, करे दास बिनती करो माँ सहाई ।
पद्मा चञ्चला श्रीलक्ष्मी कहाई, पीताम्बरा तू गरुड़-वाहना सुहाई ।।
त्रिलोक-मोहन-करी कामिनी, जयति जय श्रीहरि-भामिनी ।
रुक्मिणी राज्ञी अर्थ-क्लेश-त्राता, जय श्रीधन-दात्री विश्व-माता ।। म
हा-लक्ष्मी लक्ष्मणा श्यामलांगी, पद्म-गन्धा श्री श्रीकोमलांगी ।
6-कालिन्दी कमले कर्म-दोष-हन्त्री, सुदर्शनीया ग्रीवा में माला वैजन्ती ।। श्रीमहा-लक्ष्मी कमला समर्पणम् ।।१० १०८ बार जपें। ४० दिनों में यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है,
13-ऊँ भंवर वीर तू चेला मेरा, खोल दुकान बिकरा कर मेरा। उठे जो डण्डी बिके जो माल भंवर वीर सो नहीं जाय।।
शनिवार को प्रातःकाल नहा धोकर हाथ में काले उड़द के इक्कीस साबुत दानें लेकर उक्त मंत्र को 21 बार पढ़कर दुकान के भीतर चारों ओर बिखेर देने से दुकान की बिक्री अभूतपूर्व रूप से बढ़ जाती है।
दुकान खोलने के बाद सफाई करके लक्ष्मी की फोटो के सामने ‘ऊँ लक्ष्म्यै नमः’ मंत्र का एक माला जप करें, दुकान की बिक्री और लाभ में वृद्धि होगी। उक्त मंत्रों के अतिरिक्त निम्न मंत्र का भी 108 बार जप करें-
ऊँ श्री शुक्ला महाशुक्ले निवासे।
श्री महाक्ष्मी नमो नमः।।
भगवती
लक्ष्मी के 18 पुत्र माने जाते हैं। शुक्रवार के दिन इनके नाम के आरंभ में
ॐ और अंत में 'नम:' लगाकर जप करने से मनचाहे धन की प्राप्ति होती है। जैसे
-
1. ॐ देवसखाय नम:, 2. ॐ चिक्लीताय नम:, 3. ॐ आनंदाय नम:, 4. ॐ कर्दमाय नम:, 5. ॐ श्रीप्रदाय नम:,
6. ॐ जातवेदाय नम:, 7. ॐ अनुरागाय नम:, 8. ॐ संवादाय नम:, 9. ॐ विजयाय नम:,
दिवाली के अमूल्य पर्व पर धन समृद्धि प्रयोग मनर-
-लक्ष्मी जी के 24 नाम –
श्रीं श्रियै नमः।
2. श्रीं लक्ष्म्यै वरदायै नमः।3. श्रीं विष्णुपत्न्यै नमः।4. श्रीं क्षीरसागर वासिन्यै नमः।
5. श्रीं हिरण्यरूपायै नमः।6. श्रीं सुवर्णमालिन्यै नमः।7. श्रीं भक्तिमुक्ति दात्र्यै नमः।
8. श्रीं पद्मवासिन्यै नमः।9. श्रीं यज्ञप्रियायै नमः।10. श्रीं मुक्तालंकारिण्यै नमः।
11. श्रीं सूर्यायै नमः।12. श्रीं चन्द्राननायै नमः।13. श्रीं विश्वमूर्त्यै नमः।
14. श्रीं मुक्त्यै नमः।15. श्रीं मुक्तिदात्र्यै नमः।16. श्रीं श्रद्धये नमः।17. श्रीं समृद्धये नमः।18. श्रीं तुष्टयै नमः।19. श्रीं पुष्टयै नमः।20. श्रीं धनेश्वर्यै नमः।21. श्रीं श्रद्धायै नमः।
22. श्रीं भोगिन्यै नमः।23. श्रीं भोगदायै नमः।24. श्रीं धात्र्यै नमः।
॥इति श्रीलक्ष्मीचतुर्विंशतिनामावलिः सम्पूर्णा॥
-श्री सूक्त-लक्ष्मी कृपा एवं समृद्धि के लिए -
हाथ में जल लेकर विनियोग
श्रीं अस्य श्री सूक्तस्या आनंद कर्दम चिकलीथ ऋषि:,
अग्नि
देवता: आदौ त्रयस्य अनुष्टुप छंद शेष अंसा पसार पंक्ति त्रिष्टुप अनुष्टुप
छंद पुनः प्रसार पंक्ति श्च छंद:, हिरण्य वरणाम बीजम, ताम आवह इति
शक्ति:, कीर्तिम वृद्धि ददातु तू इति कीलकम ,श्री महालक्ष्मी वर प्रसाद
सिद्धयर्थम पाठे जपे विनियोग :l
जल पृथ्वी सर्व सुख समृद्धि प्रदाताः श्री सूक्त
कर-न्यासः-
श्रीं हिरण्मय्यै अंगुष्ठाभ्यां नमः। श्रीं चन्द्रायै तर्जनीभ्यां स्वाहा। श्रीं रजत-स्त्रजायै मध्यमाभ्यां वषट्। श्रीं हिरण्य-स्त्रजायै अनामिकाभ्यां हुं। श्रीं हिरण्य-स्त्रक्षायै कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्। श्रीं हिरण्य-वर्णायै कर-तल-करपृष्ठाभ्यां फट्।
अंग-न्यासः-
श्रीं हिरण्मय्यै नमः हृदयाय नमः। श्रीं चन्द्रायै नमः शिरसे स्वाहा। श्रीं रजत-स्त्रजायै नमः शिखायै वषट्। श्रीं हिरण्य-स्त्रजायै नमः कवचाय हुं। श्रीं हिरण्य-स्त्रक्षायै नमः नेत्र-त्रयाय वौषट्। श्रीं हिरण्य-वर्णायै नमः अस्त्राय फट्।
ध्यानः-
श्रीं अरुण-कमल-संस्था, तद्रजः पुञ्ज-वर्णा,
कर-कमल-धृतेष्टा, भीति-युग्माम्बुजा च।
मणि-मुकुट-विचित्रालंकृता कल्प-जालैर्भवतु-
भुवन-माता सततं श्रीः श्रियै नः।।
मानस-पूजनः-
श्रीं लं पृथ्वी तत्त्वात्वकं गन्धं श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रीतये समर्पयामि नमः।
श्रीं हं आकाश तत्त्वात्वकं पुष्पं श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रीतये समर्पयामि नमः।
श्रीं यं वायु तत्त्वात्वकं धूपं श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रीतये घ्रापयामि नमः।
श्रीं रं अग्नि तत्त्वात्वकं दीपं श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रीतये दर्शयामि नमः।
श्रीं वं जल तत्त्वात्वकं नैवेद्यं श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रीतये निवेदयामि नमः।
श्रीं सं सर्व-तत्त्वात्वकं ताम्बूलं श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रीतये समर्पयामि नमः।
-श्री लक्ष्मीसूक्तम्-
पद्मानने पद्मिनि पद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि।
विश्वप्रिये विश्वमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व॥
पद्मानने पद्मऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे।
तन्मे भजसिं पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम्॥
- हे लक्ष्मी देवी! आपका श्रीमुख, ऊरु भाग, नेत्र आदि कमल के समान हैं। आपकी उत्पत्ति कमल से हुई है। हे कमलनयनी! मैं आपका स्मरण करता हूँ, आप मुझ पर कृपा करें।
अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने।
धनं मे जुष तां देवि सर्वांकामांश्च देहि मे॥
- हे देवी! अश्व, गौ, धन आदि देने में आप समर्थ हैं। आप मुझे धन प्रदान करें। हे माता! मेरी सभी कामनाओं को आप पूर्ण करें।
पुत्र पौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम्।
प्रजानां भवसी माता आयुष्मंतं करोतु मे॥
- हे देवी! आप सृष्टि के समस्त जीवों की माता हैं। आप मुझे पुत्र-पौत्र, धन-धान्य, हाथी-घोड़े, गौ, बैल, रथ आदि प्रदान करें। आप मुझे दीर्घ-आयुष्य बनाएँ।
धनमाग्नि धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसु।
धन मिंद्रो बृहस्पतिर्वरुणां धनमस्तु मे॥
- हे लक्ष्मी! आप मुझे अग्नि, धन, वायु, सूर्य, जल, बृहस्पति, वरुण आदि की कृपा द्वारा धन की प्राप्ति कराएँ।
वैनतेय सोमं पिव सोमं पिवतु वृत्रहा।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः॥
- हे वैनतेय पुत्र गरुड़! वृत्रासुर के वधकर्ता, इंद्र, आदि समस्त देव जो अमृत पीने वाले हैं, मुझे अमृतयुक्त धन प्रदान करें।
न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभामतिः।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां सूक्त जापिनाम्॥
- इस सूक्त का पाठ करने वाले की क्रोध, मत्सर, लोभ व अन्य अशुभ कर्मों में वृत्ति नहीं रहती, वे सत्कर्म की ओर प्रेरित होते हैं।
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गंधमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरी प्रसीद मह्यम्॥
- हे त्रिभुवनेश्वरी! हे कमलनिवासिनी! आप हाथ में कमल धारण किए रहती हैं। श्वेत, स्वच्छ वस्त्र, चंदन व माला से युक्त हे विष्णुप्रिया देवी! आप सबके मन की जानने वाली हैं। आप मुझ दीन पर कृपा करें।
विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम्।
लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम॥
- भगवान विष्णु की प्रिय पत्नी, माधवप्रिया, भगवान अच्युत की प्रेयसी, क्षमा की मूर्ति, लक्ष्मी देवी मैं आपको बारंबार नमन करता हूँ।
महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्॥
- हम महादेवी लक्ष्मी का स्मरण करते हैं। विष्णुपत्नी लक्ष्मी हम पर कृपा करें, वे देवी हमें सत्कार्यों की ओर प्रवृत्त करें।
चंद्रप्रभां लक्ष्मीमेशानीं सूर्याभांलक्ष्मीमेश्वरीम्।
चंद्र सूर्याग्निसंकाशां श्रिय देवीमुपास्महे॥
- जो चंद्रमा की आभा के समान शीतल और सूर्य के समान परम तेजोमय हैं उन परमेश्वरी लक्ष्मीजी की हम आराधना करते हैं।
श्रीर्वर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाभिधाच्छ्रोभमानं महीयते।
धान्य धनं पशु बहु पुत्रलाभम् सत्संवत्सरं दीर्घमायुः॥
- इस लक्ष्मी सूक्त का पाठ करने से व्यक्ति श्री, तेज, आयु, स्वास्थ्य से युक्त होकर शोभायमान रहता है। वह धन-धान्य व पशु धन सम्पन्न, पुत्रवान होकर दीर्घायु होता है।
॥ इति श्रीलक्ष्मी सूक्तम् संपूर्णम् ॥
गायत्री
लक्ष्मी स्थिरता - वृद्धि के लिए
(प्रचलित गायत्री मंत्र संध्या समय ही उल्लेखित)
अर्ध रात्रि मे उपयोगी
श्रीं
श्रीं भूः श्रीं भुवः श्रीं स्वः श्रीं महः, श्रीं जनः श्रीं तपः श्रीं
सत्यम्। श्रीं तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः
प्रचोदयात्। श्रीं आपो ज्योती रसोमृतं, ब्रह्म भूर्भुवः स्वः श्रीं।
दरिद्रता निर्धनता दूर का उपाय
दीवाली के दूसरे दिन प्रात: , देवी धूमावती का ध्यान करने के बाद
धूम धूमावती स्वाहा ।
ध्यायेत कालाभ्र नीलाम विकलित वदनाम काकनासाम विकरणाम ।
सम्मार्ज न्यूंक शुर्पेमयुत मुसल कराम वक्र दंताम विषास्याम।
ज्येष्ठाम निर्वाण वेशाम प्रकुटीत नयनाम मुक्ते केशीम उदाराम।
शुष्क उत्तांगाती तिर्यक स्तन भर युगलाम निष्कृपाम शत्रु हंत्रीम।
नारसिंह ऋषि पंक्ति श्च छंद:, धूमावती देवता ,धूम बीज, स्वाहा शक्तिय :शत्रु च विपत्ति निग्रहे जपे विनियोग :.
धाम धीम धूम धैम धौम ध: !
धूम धूम धूमावती स्वाहा।
इसके
पश्चात झाड़ू लगाने के बाद कचरा सुख में रखने के पश्चात यह कल्पना करें या
कहीं मेरे समस्त रिंग रोग दोष प्लेस विघ्न बाधा भूत प्रेत टोने टोटके को
आप अपने रूप में समेटकर हमारे घर से विदा हो रही हैं और हमें धनलक्ष्मी सुख
शांति का आशीर्वाद दे रही हैं शत्रु नाश हो रहे हैं आपत्ति विपत्ति दूर हो
रही हैं शत्रु के धन वैभव यश पराक्रम को अपने सुख में समेट रही हैं मुसल
से उसे प्रताड़ित कर रही हैं शत्रु के घर में दुख दरिद्रता का निवास हो गया
है शत्रु के घर में कौआ पक्षी बहुत संख्या में विराजित हैं उनका घर निर्जन
हो रहा है शत्रु के घर की सुख शांति समृद्धि में झाडू लगाए ।
।।श्री सूक्त।।
ॐ हिरण्य-वर्णां हरिणीं, सुवर्ण-रजत-स्त्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवह।।
तां म आवह जात-वेदो, लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्।।
अश्वपूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुपह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।।
कांसोऽस्मि तां हिरण्य-प्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं।
पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।।
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देव-जुष्टामुदाराम्।
तां पद्म-नेमिं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणोमि।।
आदित्य-वर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः।।
उपैतु मां दैव-सखः, कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्तिं वृद्धिं ददातु मे।।
क्षुत्-पिपासाऽमला ज्येष्ठा, अलक्ष्मीर्नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वान् निर्णुद मे गृहात्।।
गन्ध-द्वारां दुराधर्षां, नित्य-पुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्व-भूतानां, तामिहोपह्वये श्रियम्।।
मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः।।
कर्दमेन प्रजा-भूता, मयि सम्भ्रम-कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले, मातरं पद्म-मालिनीम्।।
आपः सृजन्तु स्निग्धानि, चिक्लीत वस मे गृहे।
निच-देवी मातरं श्रियं वासय मे कुले।।
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं, सुवर्णां हेम-मालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो ममावह।।
आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं, पिंगलां पद्म-मालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो ममावह।।
तां म आवह जात-वेदो लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरूषानहम्।।
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा, जुहुयादाज्यमन्वहम्।
श्रियः पंच-दशर्चं च, श्री-कामः सततं जपेत्।।
सुख-शान्ति-दायक महा-लक्ष्मी महा-मन्त्र प्रयोग
विनियोगः-
ॐ
अस्य श्रीपञ्च-दश-ऋचस्य श्री-सूक्तस्य
श्रीआनन्द-कर्दम-चिक्लीतेन्दिरा-सुता ऋषयः,
अनुष्टुप्-वृहति-प्रस्तार-पंक्ति-छन्दांसि, श्रीमहालक्ष्मी देवताः,
श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रसाद-सिद्धयर्थे राज-वश्यार्थे
सर्व-स्त्री-पुरुष-वश्यार्थे महा-मन्त्र-जपे विनियोगः।
ऋष्यादि-न्यासः-
श्रीआनन्द-कर्दम-चिक्लीतेन्दिरा-सुता
ऋषिभ्यो नमः शिरसि। अनुष्टुप्-वृहति-प्रस्तार-पंक्ति-छन्दोभ्यो नमः मुखे।
श्रीमहालक्ष्मी देवताय नमः हृदि। श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रसाद-सिद्धयर्थे
राज-वश्यार्थे सर्व-स्त्री-पुरुष-वश्यार्थे महा-मन्त्र-जपे विनियोगाय नमः
सर्वांगे।
कर-न्यासः-
ॐ हिरण्मय्यै अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ
चन्द्रायै तर्जनीभ्यां स्वाहा। ॐ रजत-स्त्रजायै मध्यमाभ्यां वषट्। ॐ
हिरण्य-स्त्रजायै अनामिकाभ्यां हुं। ॐ हिरण्य-स्त्रक्षायै कनिष्ठिकाभ्यां
वौषट्। ॐ हिरण्य-वर्णायै कर-तल-करपृष्ठाभ्यां फट्।
अंग-न्यासः-
ॐ
हिरण्मय्यै नमः हृदयाय नमः। ॐ चन्द्रायै नमः शिरसे स्वाहा। ॐ रजत-स्त्रजायै
नमः शिखायै वषट्। ॐ हिरण्य-स्त्रजायै नमः कवचाय हुं। ॐ हिरण्य-स्त्रक्षायै
नमः नेत्र-त्रयाय वौषट्। ॐ हिरण्य-वर्णायै नमः अस्त्राय फट्।
ध्यानः-
ॐ अरुण-कमल-संस्था, तद्रजः पुञ्ज-वर्णा,
कर-कमल-धृतेष्टा, भीति-युग्माम्बुजा च।
मणि-मुकुट-विचित्रालंकृता कल्प-जालैर्भवतु-
भुवन-माता सततं श्रीः श्रियै नः।।
मानस-पूजनः-
ॐ लं पृथ्वी तत्त्वात्वकं गन्धं श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रीतये समर्पयामि नमः।
ॐ हं आकाश तत्त्वात्वकं पुष्पं श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रीतये समर्पयामि नमः।
ॐ यं वायु तत्त्वात्वकं धूपं श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रीतये घ्रापयामि नमः।
ॐ रं अग्नि तत्त्वात्वकं दीपं श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रीतये दर्शयामि नमः।
ॐ वं जल तत्त्वात्वकं नैवेद्यं श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रीतये निवेदयामि नमः।
ॐ सं सर्व-तत्त्वात्वकं ताम्बूलं श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रीतये समर्पयामि नमः।
।।महा-मन्त्र।।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ हिरण्य-वर्णां हरिणीं, सुवर्ण-रजत-स्त्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवह।।१
दारिद्रय-दुःख-भय हारिणि का त्वदन्या, सर्वोपकार-करणाय सदाऽऽर्द्र-चित्ता।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
तां म आवह जात-वेदो, लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्।।२
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
अश्वपूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुपह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।।३
दारिद्रय-दुःख-भय हारिणि का त्वदन्या, सर्वोपकार-करणाय सदाऽऽर्द्र-चित्ता।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा-लक्ष्म्यै नमः।
ॐ दुर्गे, स्मृता हरसि भीतिमशेष-जन्तोः, स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव-शुभां ददासि।।
कांसोऽस्मि तां हिरण्य-प्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं।
पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।।४
दारिद्रय-दुःख-भय हारिणि का त्वदन्या, सर्वोपकार-करणाय सदाऽऽर्द्र-चित्ता।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा-लक्ष्म्यै नमः।
ॐ दुर्गे, स्मृता हरसि भीतिमशेष-जन्तोः, स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव-शुभां ददासि।।
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देव-जुष्टामुदाराम्।
तां पद्म-नेमिं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणोमि।।५
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
आदित्य-वर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः।।६
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
उपैतु मां दैव-सखः, कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्ति वृद्धिं ददातु मे।।७
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
क्षुत्-पिपासाऽमला ज्येष्ठा, अलक्ष्मीर्नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वान् निर्णुद मे गृहात्।।८
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
गन्ध-द्वारां दुराधर्षां, नित्य-पुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्व-भूतानां, तामिहोपह्वये श्रियम्।।९
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः।।१०
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
कर्दमेन प्रजा-भूता, मयि सम्भ्रम-कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले, मातरं पद्म-मालिनीम्।।११
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
आपः सृजन्तु स्निग्धानि, चिक्लीत वस मे गृहे।
निच-देवी मातरं श्रियं वासय मे कुले।।१२
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं, सुवर्णां हेम-मालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो ममावह।।१३
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं, पिंगलां पद्म-मालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो ममावह।।१४
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
तां म आवह जात-वेदो लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरूषानहम्।।१५
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा, जुहुयादाज्यमन्वहम्।
श्रियः पंच-दशर्चं च, श्री-कामः सततं जपेत्।।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
।।स्तुति-पाठ।।
।।ॐ नमो नमः।।
पद्मानने पद्मिनि पद्म-हस्ते पद्म-प्रिये पद्म-दलायताक्षि।
विश्वे-प्रिये विष्णु-मनोनुकूले, त्वत्-पाद-पद्मं मयि सन्निधत्स्व।।
पद्मानने पद्म-उरु, पद्माक्षी पद्म-सम्भवे।
त्वन्मा भजस्व पद्माक्षि, येन सौख्यं लभाम्यहम्।।
अश्व-दायि च गो-दायि, धनदायै महा-धने।
धनं मे जुषतां देवि, सर्व-कामांश्च देहि मे।।
पुत्र-पौत्र-धन-धान्यं, हस्त्यश्वादि-गवे रथम्।
प्रजानां भवति मातः, अयुष्मन्तं करोतु माम्।।
धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः।
धनमिन्द्रा वृहस्पतिर्वरुणो धनमश्नुते।।
वैनतेय सोमं पिब, सोमं पिबतु वृत्रहा।
सोमं धनस्य सोमिनो, मह्मं ददातु सोमिनि।।
न क्रोधो न च मात्सर्यं, न लोभो नाशुभा मतीः।
भवन्ती कृत-पुण्यानां, भक्तानां श्री-सूक्तं जपेत्।।
विधिः-
उक्त
महा-मन्त्र के तीन पाठ नित्य करे। ‘पाठ’ के बाद कमल के श्वेत फूल, तिल,
मधु, घी, शक्कर, बेल-गूदा मिलाकर बेल की लकड़ी से नित्य १०८ बार हवन करे।
ऐसा ६८ दिन करे। इससे मन-वाञ्छित धन प्राप्त होता है।
श्री साबर-शक्ति-पाठ
श्रीसाबर-शक्ति-पाठ
श्री
‘साबर-शक्ति-पाठ’ के रचियता ‘अनन्त-श्रीविभूषित-श्रीदिव्येश्वर योगिराज’
श्री शक्तिदत्त शिवेन्द्राचार्य नामक कोई महात्मा रहे है। उनके उक्त पाठ की
प्रत्येक पंक्ति रहस्य-मयी हैकिसी कामना से इस पाठ का प्रयोग करने से पहले
तीन रात्रियों में लगातार इस पाठ की १११ आवृत्तियाँ ‘अखण्ड-दीप-ज्योति’ के
समक्ष बैठकर कर लेनी चाहिए। तदनन्तर निम्न प्रयोग-विधि के अनुसार
निर्दिष्ट संख्या में निर्दिष्ट काल में अभीष्ट कामना की सिद्धि मिल सकेगी।
प्रयोग-विधिः-
१॰ लक्ष्मी-प्राप्ति हेतु
नैऋत्य-मुख बैठकर दो पाठ नित्य करें।
२॰ सन्तान-सुख-प्राप्ति हेतु
पश्चिम-मुख बैठकर पाँच पाठ तीन मास तक करें।
३॰ शत्रु-बाधा-निवारण हेतु
उत्तर-मुख बैठकर तीन दिन सांय-काल ग्यारह पाठ करें।
४॰ विद्या-प्राप्ति एवं परीक्षा उत्तीर्ण करने हेतु
पूर्व-मुख बैठकर तीन मास तक ३ पाठ करें।
५॰ घोर आपत्ति और राज-दण्ड-भय को दूर करने के लिए
मध्य-रात्रि में नौ दिनों तक २१ पाठ करें।
६॰ असाध्य रोग को दूर करने के लिए
सोमवार को एक पाठ, मंगलवार को ३, शुक्रवार को २ तथा शनिवार को ९ पाठ करें।
७॰ नौकरी में उन्नति और व्यापार में लाभ पाने के लिए
एक पाठ सुबह तथा दो पाठ रात्रि में एक मास तक करें।
८॰ देवता के साक्षात्कार के लिए
चतुर्दशी के दिन रात्रि में सुगन्धित धूप एवं अखण्ड दीप के सहित १०० पाठ करें।
९॰ स्वप्न में प्रश्नोत्तर, भविष्य जानने के लिए
रात्रि में उत्तर-मुख बैठकर ९ पाठ करने से उसी रात्रि में स्वप्न में उत्तर मिलेगा।
१०॰ विपरीत ग्रह-दशा और दैवी-विघ्न की निवृत्ति हेतु
नित्य एक पाठ सदा श्रद्धा से करें।
पूर्व-पीठिका
।। विनियोग ।।
श्रीसाबर-शक्ति-पाठ का, भुजंग-प्रयात है छन्द ।
भारद्वाज शक्ति ऋषि, श्रीमहा-काली काल प्रचण्ड ।।
ॐ क्रीं काली शरण-बीज, है वायु-तत्त्व प्रधान ।
कालि प्रत्यक्ष भोग-मोक्षदा, निश-दिन धरे जो ध्यान ।।
।। ध्यान ।।
मेघ-वर्ण शशि मुकुट में, त्रिनयन पीताम्बर-धारी ।
मुक्त-केशी मद-उन्मत्त सितांगी, शत-दल-कमल-विहारी ।।
गंगाधर ले सर्प हाथ में, सिद्धि हेतु श्री-सन्मुख नाचै ।
निरख ताण्डव छवि हँसत, कालिका ‘वरं ब्रूहि’ उवाचै ।
ध्यान ।। मेघ-वर्ण शशि मुकुट में, त्रिनयन पीताम्बर-धारी । मुक्त-केशी मद-उन्मत्त सितांगी, शत-दल-कमल-विहारी ।। गंगाधर ले सर्प हाथ में, सिद्धि हेतु श्री-सन्मुख नाचै । निरख ताण्डव छवि हँसत, कालिका ‘वरं ब्रूहि’ उवाचै ।। ।।
पाठ-प्रार्थना ।। जय जय श्रीशिवानन्दनाथ ! भगवम्त भक्त-दुःख-हारी । करो स्वीकार साबर-शक्ति-पाठ, हे महा-काल-अवतारी ।। साबर-शक्ति-पाठ
ॐ नमो जगदम्बा भवानी, करो सिद्ध कारज महरानी ।
त्रिभुवन महिमा तिहारी, जै श्रीजया गगन-विहारी ।।
तेरे भक्त को दुःख न व्यापे, शाक्त से यम-राज भी काँपे ।
हनुमत वीर चले अगुवानी, बाँऐं भैरव है महारानी ।।
पीछे वीरभद्र जब गरजें, दाँऐं नृसिंह वीर हैं हर्षे ।
कलि प्रत्यक्ष प्रभाव तुम्हारा, जो सुमरे दुःख विनसे सारा ।।
रक्त-नैनन से प्रगटी ज्वाला, काँप उठे सुरासुर दिग्-पाला ।
त्राहि-त्राहि भव-दुःख-भञ्जन माता, कर जोर कहें सुर सिद्ध विधाता ।।
जब-जब धर्म पर संकट आया, उठा त्रिशूल सब दुःख मिटाया ।
धर्म सनातन की माँ तुम रक्षक, पामर खल मानव दल भक्षक ।।
भक्ति-पूर्ण हूँ शरण तुम्हारी, जय दुर्गे श्यामा शिव की प्यारी ।। श्रीरक्त-काली-समर्पणम् ।।१ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
~~ श्रीतारा- ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
~~ ॐ नमो श्रीतारिणी क्लेश-हारिणी, भक्त-रक्षक माँ गगन-विहारिणी ।
कर खप्पर-खड्ग मुण्ड की माला, पाश गदा है भुजा विशाला ।।
मद-भरे नयन त्रिभुवन-जग मोहें, पाँयन सुवरन घुँघरु सोहें ।
राम-रुप तुमने जब धारा, भार भूमि सब असुर सँहारा ।।
जल-संकट-हर्ता बुद्धि की दाता, जय जय श्रीताराम्बा माता ।
वाहन मयूर कर वीणा बाजे, साम-वेद सुन्दर ध्वनि गाजे ।।
रुप कालिका घोर भयंकर, शाक्त जनों को लगता सुन्दर ।
मतवाली हो रण में धावे, दानव-दल तोहि देख घबरावे ।।
वाहन सिंह चढ़ो अब श्यामा, द्वेष-संहार का बजे दमामा ।
उग्र प्यास भैरव की बुझाओ, कला-कोटि नर-मेध रचाओ ।।
उग्र-तारा है नाम तिहारा, धूम-केतु बन प्रगटो तारा ।।
संहार करो कु-सृष्टि को काली, जय जय श्रीदुर्गे डमरु वाली ।।
नहीं आँच तेरे भक्त को आवे, मदान्ध खलों की सत्ता मिट जावे ।
जब भी पाप बढ़ा है जग में, काली-रुप हो मेटा क्षण में ।।
भक्ति-पूर्ण कहता माँ तुझसे, पाप साम्राज्य उठा भू-तल से ।
‘धर्म की जय’ हो गूँजे नारा, अखण्ड वर्ग धर्म रहे तुम्हारा ।।
सत्य की शान्ति ब्रह्मचर्य व्रत, मातृ-बक्ति से रहे सदा रत ।
सहस्त्र-भुजे माँ दुर्ग-नन्दिनी, शिवा शाम्भवी दुष्ट-वर्षिणी ।।
त्रिपुर-मालिनी हे विन्ध्य-वासिनी, भाल कुअंक विधि-लेख-नाशिनी ।
अष्ट-वीर योगिनी मंगल गावें, शक्र तुम्हारा चँवर डुलावें ।।
मणि-द्वीप में राज भवानी, धन्य-धन्य माँ उमा महरानी ।
मुझे जगज्जये ! आशा तेरी, अष्ट-भुजे ! भाग्य बदल दे मेरा ।।
जो सुमरे काली-तारा, पाप-त्रिताप भस्म हो सारा ।
चरण पाताल शीश कैलाशा, रुप विराट तोड़े यम-पाशा ।।
अनन्त रुप युग-युग में धारे, भक्त-जनों के काज सँवारे ।
त्रिभुवन-दानी श्रीनाद-नादिनी, रवि-शत-कोटि-प्रभा-प्रकाशिनी ।। श्रीतारा-समर्पणम् ।।२ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
~ ॐ नमो श्री षोडशी षण्मुख-जननि, सदा बसो मम हृदय वर-वर्णिनी ।
हूँ भक्ति-पूर्ण तेरा ही अंशी, वर्द्धित हो यह सत्कुल सद्-वंशी ।।
श्रीयन्त्र-राज-स्मरण की शक्ति, चरण-कमल की माँ दे दो भक्ति ।
चक्र त्रिशूल खड्ग कमल धारे, घन गर्जन कर राक्षस मारे ।।
अरुण वरण पद सुन्दर रुपा, ध्यावत जो नर होय सो भूपा ।
रवि-शशि लज्जित निरख पद-शोभा, सेवे शाक्त हृदय अति लोभा ।।
त्रि-भुवन-सुन्दरी वयस किशोरा, मोहे शिव ज्यों चन्द्र-चकोरा ।
स्तन अमृत-रस-भण्डारा, पीवत होय बुद्दि-बल-भारा ।।
जेहि पर कृपा तुम्हारी होई, स्तन-अमृत पावे सोई ।
करुणा-दृष्टि विलोके जोई, विश्व-विख्यात कवि सो होई ।।
जो भगवती षोडशी को ध्यावे, अक्षय आयुष-यौवन पावे ।
निर्द्वन्द विमल गति मति दाता, जय श्री श्यामे !
त्रिभुवन भाग्य-विधाता ।।
पंकज आभा सुगन्ध शरीरा, श्याम-गात विविध रंग चीरा ।
महीष-मर्द्दिनी अमित बल-शाली, जै-जै सती सिद्दिदा काली ।।
आसव-पान-मत्त अट-पट वाणी, शाक्त-मण्डल को सुख-खानी ।
जल-थल-नभ किलोल करन्ती, जय भद्रकाली माँ मम दुख-हन्त्री ।।
निर्धन सृष्टि-गत जो बालक तोरे, उनके शीघ्र बसा दे डेरे ।
संसार-इच्छुक जिनका मन, दे दो माँ उन्हें स्त्री-सुत-धन ।।
हूँ भक्ति-पूर्ण तेरे चरणों का भौंरा, तुमको नैना देखत चहुँ ओरा ।
भोग-मोह से भक्त यह है न्यारा, मन चाहत तव चरण-अधारा ।। ब्रह्म-वादिनी ब्रह्म-ज्ञान दे, विमला विमल मति-विज्ञान दे । सावित्री सर्व-शोक-दुःख-हर्ता, मम जीवन-धन तू जग-भर्ता ।।
मम मात-पिता गुरु-बन्धु तुम पद्मा, तू गौरी सत्-असत्-रुपा माँ ।
रत्न-द्वीप की तुम महारानी, सिद्धि ऐश्वर्य दो मुझे भवानी ।।
जहाँ जब सुमरुँ प्रकट हो जाओ, उठा त्रिशूल सब विघ्न मिटाओ ।।
अटल छत्र है राज तुम्हारा, जो सुमरे हो भव-सिन्धु के पारा ।। श्रीषोडशी-समर्पणम् ।।३ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
ॐ नमो श्रीभुवनेश्री-परमेश्वरी, श्रीपार्वती माँ राजेश्वरी ।
श्रीकामदा काल-रात्रि एक-वीरा, तेज-स्वरुपिणी दुर्धर्ष-बल-धीरा ।।
ऋण-नाश-कर्त्री श्री-शक्ति तू है, माँ-माँ सुत पुकारे तू किधर है ?
सर्वार्थ-दात्री नाम तेरा जग में, मेरी बार कहाँ भूली हो मग में ।।
पुत्र हो कुपुत्र पर कु-माता न होवे, श्रीगंगा की धारा ज्यों पाप धोवे ।
मैं हूँ तेरा-आशा है सिर्प तेरी, भला या बुरा हूँ-पर माँ हो तुम मेरी ।।
खड्ग-खप्पर-पाश-माला हाथ में, चलता है भैरव तेरे साथ में ।
जिधर भी माँ नजर तूने फिराई, वहाँ ही बटुक जा करता सहाई ।।
शाकम्भरी श्रीपूर्णा गिरि-नन्दिनी, परमार्थ-शीले माँ नित्यानन्दिनी ।
क्षीर-सिन्धु किनारे बजाती हो वेणु, श्रीजयाम्बे तू ही मेरी कामधेनु ।।
दारिद्र-महिषासुर ने है घेरा, उठा त्रिशूल दुर्गे ! क्लेश मेटो मेरा ।
तू ही हरि-हर-विरञ्चि रुप शक्ति, जय श्रीश्यामा दे श्री-कीर्ति-भक्ति ।।
राज-रानी तेरे सिवा कौन दाता, मिटा दे बुरा जो लिखा हो विधाता ।
तेरे ही प्रताप से कुबेर धनेश्वर कहलाया, जयति जै श्री भुवने माया ।। श्रीभुवनेश्वरी-समर्पणम् ।।४ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
ॐ नमो श्रीधूमावती लीला-मयी, कलि प्रत्यक्ष तुम हो माहेश्वरी ।
जो चन्द्र-मण्डल में ध्यान धरते, पा कवित्व मोह-सिन्धु से तरते ।।
षण्मास जो तेरा स्वरुप ध्याता, पुष्प-धन्वी भी उससे हार जाता ।
पद्म-मालाएँ तेरे चरणों में धरता, विश्व-मण्डल का होता वह भर्त्ता ।।
तू ही अनेक रुपों से भासे, जो जान जाये-मृत्यु भी नासे ।
सिद्ध-विद्या तू अमृत-सवरुपी, जिसके हृदय में वही है देव-रुपी ।।
भ्रामरी भद्रिका मंगल-करी, जयन्ती जया तुम दुःख-हरी।
त्रिगुण से परे है धाम तेरा, सदा ही कल्याण करो माँ मेरा ।।
तू ही पूर्णागिरीश्वरी कामेश्वरी, करुणा-मयी हो श्रीराज-राजेश्वरी ।
भूति-विभूति-दात्री श्री सती, भक्तों को देती हो श्री-कीर्ति-गती ।।
दिव्य-दृष्टि सिद्धैश्वर्य-दाता, भक्ति-पूर्ण करुँ मैं प्रणाम माता ।
तेरा ही गुण गाता रहता हूँ शाक्त, दया-मयी चाहता हूँ तेरी भक्ति ।।
बिगाड़ो या बनाओ अधिकार तुमको, न होगा जरा भी मलाल मुझको ।
किश्ती ये कर दी माँ तेरे हवाले, चाहे डुबा दे या चाहे बचा ले ।।
तमन्नओं की धूप देता हूँ तुमको, तेरे नाम से है इश्क मुझको ।
तेरी याद में माँ दिल आँसू बहाता, हठी मुसाफिर राह चलता जाता ।।
पीताम्बरा चाहे जितना सता, कभी-न-कभी पाऊँगा तेरा पता ।
अभयंकरी हे मणि-द्विप-रानी, तेरी सेवा में रत है सिद्ध-ज्ञानी ।।
त्रिशुल खप्पर गले मुण्ड-माला, मुक्त-केशी त्रिनयन है विशाला ।
श्रीखेचरी गन्धर्व-लोक-दात्री, अष्टांग योग-वक्ता तू श्री-विधात्री ।।
पीला कमल-सा चरण तेरा, बना है जीवन का आधार मेरा ।
तेरी लीला श्री तू ही जाने, भक्त तो यथा-शक्ति गुण बखाने ।।
कुलाचार से योगी करते हैं पूजा, तू ही तो ब्रह्म न और दूजा ।
माँ-पुत्र सबसे बड़ा है नाता, पुत्र हो कु-पुत्र-न माता कु-माता ।।
इतना ही बस-मैं जानता हूँ, मानो न मानो-मैं मानता हूँ। श्रीधूमावती-समर्पणम् ।।५ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
~~ ॐ नमो श्रीभैरवी भूतेश्वरी, आनन्द-दाता त्वं ज्ञाने-मातेश्वरी ।
श्री वीर-विद्या चतुर्भुजा सोहे, पात्र नाग शूल पाश शत्रु मोहे ।।
श्मशाने निवासिनी श्यामा दिगम्बरा, माँ भेरवी भक्त-पालन-तत्परा ।
अस्थि-मुण्ड-माल त्रिनेत्र-कराला, चरणों में सोहत गुञ्ज-माला ।।
मद-मत्त हो तुम खिलखिलाती, आ-सेतु पृथ्वी काँप जाती ।
बिगड़ी को बनाता है नाम तेरा, तव पदाम्बुज में लिपटा रहे मन मेरा ।।
संग्राम में जीत पाए, वही, जिस पर माँ ! तेरी छाया रही ।
जो हुआ जग में तेरे सहारे, उसका यम भी क्या बिगाड़े ।।
मृत्युञ्जयी तू हृदय में जिसके, काल भी घबराता है उससे ।
मारकण्डे पर की तूने मेहर, हो गया उसी क्षण माँ ! वो अमर ।।
हनुमान ने जब स्तुति गाई, पा आशिर्वाद जा लंका जलाई ।
मेघनाद ने जब तुझे ध्याया, इन्द्र को जा बाँध लाया ।।
श्रीत्रिपुरा-चक्र-यज्ञ राम ने रचाया, तेरी कृपा से ही रावण मिटाया ।
श्री-तत्त्वागम जो नित्य ध्याता, कलि में वही भोग-मोक्ष पाता ।।
विन्दु-शक्ति शिव पृथ्वी को, भैरव-रुप हो पावे । पाप-पुण्य से निर्द्वन्द होवे, नित्यानन्द-पद जावे ।।
चक्र-योग का विषय है, मैथुन पात्र आनन्द ।
जो समझे शिव-रुप वे, नहीं तो पामर-वृन्द ।।
विद्या-साधन अगम है, चलना तलवार की धार ।
गुरु-कृपा से सफलता, वरना टुकड़े होय हजार ।।
दिगम्बरा विपरीत-रति ध्यावे, या हो अमर या नरक में जावे ।
कुल-पथ अमृत-मय धारा, जिसमें कापालिक करें विहारा ।।
भैरवी-भूतनाथ जपता जो नर, मन-वाञ्छित सिद्धि हो सत्वर । श्रीमहा-भैरवी-समर्पणम् ।।६ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
~ ॐ नमो श्रीबगलामुखी-स्वरुपा, शत्रु-संहार करो देवि ! अनूपा ।
चरण तेरे कोमल कमल-जैसे, जिसके हृदय में वही देव जैसे ।।
दुःख-शुम्भ ने आ घेरा है मुझको, मिटा क्लेश मैया भक्त कहे तुझको ।
पीताम्बरा श्रीअपराजिता तू कहाई, अभी भक्त सुमरे तू करती सहाई ।।
गदा-चक्र-पाश-शंख हाथों सोहे, चतुर्भुज रुप तेरा शिव को मोहे ।
योग-दीक्षा-हीन को न होता ज्ञान तेरा । पूर्णाभिषिक्त भी न जान पाएँ धाम तेरा ।।
जिस पर तेरी कृपा हो वही गुण-गान करता । दम्भी तन्त्र-साधक क्लेशित हो के मरता ।।
तेरे अनन्त रुपों ने की भक्त-रक्षा । तेरे वीर-भद्र सुत मने मारा था दक्षा ।।
कलि में महिमा-मयि ! व्यर्थ है कर्म सारे । भक्ति-पूर्ण हो जै-जै जयाम्बा पुकारे ।।
तम-प्रबल युग में भ्रमित है कर्म-काण्डी । शुष्क वेदान्त छाँटे बक-वत् त्रि-दण्डी ।।
वाक्-मनो-काय-निग्रह कोई न करते । गृह-सदृश पलँग पर फल-फूल चरते ।।
जिधर देखा उधर ही सभी ब्रह्म-वक्ता । उपासना बिन स्वरुप-ज्ञान कैसा ।। आहार-निद्रा-पटु पृथ्वी-जल-चारी । कैसे हो माता सहस्त्रार-विहारी ? कहते कपिल सहस्त्रार हो आए ।
ईश्वर-सम शक्ति-प्रतिभा को पाए ।। नाभि-चक्र तक योगी जाता, अष्ट-सिद्धि-गुण प्रगट हो जाता ।
अनाहत-प्रकाश प्रत्यक्ष हो जाए, सहस्त्र-वर्ष आयु वह पाए ।।
मैं तो स्वाधीष्ठान तक आया, अति अद्भुत देखी तेरी माया ।
मान-सरोवर त्रिकोण दिव्य सुन्दर, श्रीधाता-शारदा बैठे हैं कमल पर ।।
भुजंग स्वर्ण-मयी महा-काम-स्वरुपा, नत-मस्तक हो पूजत सुर-भूपा ।
गायत्री प्रकृति श्री-यन्त्र मनोहर, श्रीशुभ्र-ज्योत्स्ने विश्व-मोहन-कर ।।
राज-राजेश्वरी अमित बल-शाली, सर्वार्थ-पूर्ण-करी श्री-हंस-काली ।
श्री दिव्य सिद्ध-धाम गुरु-रुप धरी, जै श्रीबगला शाक्त-मनोरथ पूर्ण करी ।।
जिह्वा पकड़कर गदा उठाए, पाश डाल शत्रु को मिटाए ।
उन्मत्त नेत्र बक-वाहन सुहाए, भक्त-रक्षा हेतु शीघ्र ही धाए ।।
सिद्ध-विद्या श्री स्तम्भनी मंगला, करो त्राण मम भीमा चञ्चला ।
त्र्यक्षरी मन्त्र-मूर्ति माँ माहेश्वरी, कलि-प्रत्यक्ष फलदा तू परमेश्वरी ।।
भुक्ति-मुक्तिदा भक्त-शरण्ये, नमामि भजामि श्रीगिरि-राज-कन्ये !
श्रीचक्र-राज-शक्ति तुम कहाती, विधि का लिखा कु-अक्षर मिटाती ।।
सिद्ध-भक्ति-पूर्ण को है विश्वास तेरा, ब्रह्मास्त्र-मन्त्र-रुप है आधार मेरा ।
लोक-लाज-प्रपञ्च-कर्म त्यागा, श्रीबगला-चरण-कमल मन लागा ।। श्रीबगलामुखी समर्पणम् ।।७ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
~~ ॐ नमो श्रित्रिपुर-सुन्दरी-चरणं, ब्रह्मादि-सेवित दारिद्रय-हरणम् ।
बुद्ध-देव-वन्दित दया-सागरी, वज्र-यान-वर्ग-पूज्या श्रीकामेश्वरी ।।
अमृत-पात्र-पद्म-इक्ष-धनुर्बाण-हस्ता, ताम्बूल-पूरित-मुखी श्रीस्वानन्द-मस्ता ।
तृतीयावरण में बाला कहाई, शरण मैं तेरी-करी माँ सहाई ।।
त्रिपथगा त्रिवर्णाराध्य शक्ति, श्री-सुन्दरी दे पद-कमल-भक्ति ।
क्रम-दीक्षाचार-वर्णित श्रीभवानी, हे कु-रंग नेत्री ! तू सर्व-सुख-दानी ।।
पद्मावती सर्वाकर्षिणी कुरुकुल्ला, देखता हूँ तू ही है अहिल्या ।
कामेश्वर-प्रिया आद्या श्री-प्रसूता, पालन करती है तू विश्व-भूता ।।
श्रीशताक्षरी दिव्य-कादि-हादि-मूर्ति, रहस्यार्थ-पूर्णे ! तुम हो सर्व-पूर्ति ।
अभिनव गुप्त सु-पूजित माहेश्वरी, सिद्ध नागार्जुन-वन्दय वागेश्वरी ।।
धाता हरि रुद्र शासन-करी, जयति जय श्रीअभयंकरी ।
पञ्च-प्रेतासन-आरुढ़ा तू अम्बा, बिन्दु-मालिनी जय-जय सिद्धाम्बा ।।
कर्पूर-गौर-वर्णा श्रीकाकिनी, श्रीचक्रेश्वरी मदनातुरा लाकिनी ।
श्रीललिता लक्ष्मी काम-बीज-रुपा, करे प्रदक्षिणा ऋषि-देव-यक्ष-भूपा ।।
राज-राजेश्वरि तू ही अनन्पूर्णा, श्रीपीठाधीश्वरी सर्वाभीष्ट-तूर्णा ।
अर्बुदाचल में अम्बिका कहाई, अष्ट-भुजा सिंह-वाहना कहाई ।।
नील-वस्त्र-धारी सु-कुमारी, जयति जयाज्ञा-चक्र-विहारी ।
अनंग-मेखला है तेरा नाम, श्रीचक्र-राज प्रतिबिम्ब-मय धाम ।।
तू धरा धैर्य धर्म कर्म स्मृति, भक्तों को देती भोग औ सद्-गति ।
देखे चरण तेरे परमेश्वरी, हो गया तभी मुक्त श्रीमाहेश्वरी ।।
पञ्चानन-प्रिया दुर्गमार्थ-दात्री, दुर्गतोद्धारिणी तुम हो विधात्री ।
वारुणी-प्रिया मद-मत्त-हासिनी, जय हेम-कूट-शिखरे विलासिनी ।।
चन्द्र-बिम्बे प्रभा तू चतुर्वग-फलदा, एक-वीरा अपर्णा श्रीकामदा ।
महा-विद्या स्वम्भू श्रीसुधा, त्रिभुवन-वशंकरी हे रत्न-सुविधा ।।
माया-नृत्य-प्रवीणा गंगे-नर्मदे, तू ही है सरस्वती विप्र-वरदे ।
काव्य-छन्द-गति ऋद्धि सन्मति, शाक्त-सेवित श्रीवामा त्रिमूर्ति ।।
रत्न-हार-भूषित नित्य यौवन-जया, भक्त को सदा दो अभय विजया ।
मधुमती-कला श्रीपार्वती सती, रहूँ तेरे प्रताप से मैं सत्य-व्रती ।।
निर्मला राधिका तू ही कालिका, है तेरा ही रुप तो हर-बालिका ।
कभी न विचलित हो मति मेरी, रहे सदा मुझ पर कृपा-दृष्टि तेरी ।। श्रीत्रिपुराम्बा समर्पणम् ।।८ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
नमो देवी ! मातंगी-पादारविन्दा, रक्ष-यक्ष-सेवित महा कवीन्द्रा ।
चतुर्भुजा-चण्ड-क्लेश-पाप-हन्त्री, भक्त-जनों की सदा जय-करन्ति ।।
शुक-क्रीड़ा-मग्न स्मित-मुखी, शीघ्र तेरा भक्त होता सुखी ।
चतुविंशति-दल पर करे निवासा, धरे ध्यान होते छिन्न सभी पाशा ।।
नाद-गर्भा नारायण-पूजिता शुभा, मंगला भद्रा भक्त-कल्प-सुधा ।
रामेश्वरी रुद्र-प्रिया श्रीरागिनी, स्वर्ण-द्युति-कुञ्जिका विन्ध्य-वासिनी ।।
हेम-वज्र-माला-धारिणी श्रीरति, तेरे प्रताप से होऊँ पृथ्वी-पति ।
संग्राम-क्षेत्र में तू रमा करती, प्रगट हो भक्तों के संकट हरती ।।
शार्दूल-वाहना गले शंख-माला, प्रज्वलित-नेत्रा पीती हो हाला ।
गन्धर्व-बालाएँ करती गुण-गान, तेरे रहे सहायक सर्वदा माँ मेरे ।।
सूर्य-चन्द्र-वह्नि-रुप नेत्र तेरे, रहे सहायक सर्वदा माँ मेरे ।
जब भी सुमरुँ हरो कष्ट मेरा, श्री जयाम्बे मुझे तो आधार तेरा ।।
हे नाग-लोक-पूज्या प्राण-दाता, भक्यि-पूर्वक करता नमस्कार माता । श्रीमहा-मातंगी समर्पणम् ।।९ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
~~ ॐ विष्णु-प्रिया दिग्दलस्था नमो, विश्वाधार-जननि कमलायै नमो ।
बीजाक्षरों की तुम्हीं सृष्टि करती, चरण-शरण भक्त के क्लेश हरती ।।
सिन्धु-कन्या माया-बीज-काया, मोह-पाश से जग को भ्रमाया ।
योगी भी हुए नहैं हैरान तुमसे, कराओ अन्तर्बहिर्याग नित्य मुझसे ।।
न करता हूँ जाप-पूजा मैं तेरी, इतना ही जानता हूँ माँ तू मेरी ।
पद्म-चक्र-शंख-मधु-पात्र धारे, विकट वीर योद्धा तूने सँहारे ।।
श्रीअपराजिता वैष्णवी नाम तेरा, माँ एकाक्षरी तू आधार मेरा ।
तू ही गुरु-गोविन्द करुणा-मयी, जै जै श्रीशिवानन्दनाथ-लीला-मयी ।।
ऐरावत है शुण्डाभिषेक करते, दे प्रत्यक्ष दरशन हे विश्व-भर्ते ।
योग-भोगदा रमा विष्णु-रुपा, मेरी कामधेनु काम-स्वरुपा ।।
सिद्धैशवर्य-दात्री हे शेष-शायी, करे दास बिनती करो माँ सहाई ।
पद्मा चञ्चला श्रीलक्ष्मी कहाई, पीताम्बरा तू गरुड़-वाहना सुहाई ।।
त्रिलोक-मोहन-करी कामिनी, जयति जय श्रीहरि-भामिनी ।
रुक्मिणी राज्ञी अर्थ-क्लेश-त्राता, जय श्रीधन-दात्री विश्व-माता ।। म
हा-लक्ष्मी लक्ष्मणा श्यामलांगी, पद्म-गन्धा श्री श्रीकोमलांगी ।
कालिन्दी कमले कर्म-दोष-हन्त्री, सुदर्शनीया ग्रीवा में माला वैजन्ती ।। श्रीमहा-लक्ष्मी कमला समर्पणम् ।।१० ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
~ गदा-खड्ग-खेट-खप्पर-नाग-चक्र-शूल-शंख-पात्र हाथों में सोहे ।
जय महिषासुर-मर्दिनि चण्डिके, अष्टादश-भुजे विश्वम्भर-मन मोहे ।।
शाकम्भरी दुर्गा दुर्गमा कहलाती, भक्त-रक्षा हित प्रगट तू हो जाती ।
अमृत-दायिनी श्रीश्यामा सहोदरी, विद्युत्प्रभे तू सर्वार्थ-पूर्ण-करी ।।
श्रीइन्द्राक्षी मणि-द्वीपे राज-रानी, जयति जय त्रिभुवन-विख्यात दानी ।
सर्व-मुद्रा-मयी खेचरी भूचरी, कुलजा कौलनी माधवी चाचरी ।।
अगोचरी हो तुम कुल-कमलिनी, सहस्त्रार-शक्ति अर्द्ध-नारीश्वरी ।
इच्छा-क्रिया-ज्ञान-मूर्ति मातेश्वरी, श्रीविद्या तत्त्व-माता परमेश्वरी ।।
भवानी भग-मालिनी हेम-गर्भा परा, सदसत अद्वैत-जननि ऋतम्भरा ।
अहंकार-प्रकृति-स्व-स्वरुप-यजना, ब्रह्म-जननि वेद-माता गगन-वसना ।।
चतुष्षष्टि-तन्त्रागम-यामला, इनसे भी परे हो तुम चित्-कला ।
मातृका वह्निरन्तर्याग-माया, सिद्ध-सनकादि ने भी न भेद पाया ।।
चक्र-वेध से भी परे है धाम तेरा, नम्र-दिव्य-भावी हृदय में वास तेरा ।
मैं दीन भक्त तुम्हें कैसे मनाऊँ, दे चरण-भक्ति सदा गुण गाऊँ ।।
श्रीविन्ध्येश्वरी अजा वर-वर्णिनी, तैजस-तत्त्व-शयामे तू अति गर्विणी ।
आद्या अम्बिका तू है श्रीसुन्दरी, चन्द्र-भगिनी हेम-वदना किन्नरी ।।
तू ही तू है माँ व्याप्त जग में, सर्वत्र तुमको ही देखता हूँ मग में ।
पाप-पुण्य से परे मैं हूँ तेरा, श्रीजयाम्बे मां ! तू मेरी मैं तेरा ।।
महा-काल के वचन से भूतल पर आया, तु शरीरी मैं हूँ तेरी छाया ।
तेरे ही बल से साबरी छन्द कहता, सर्व-शक्ति-दायी शत्रु-वंश-हन्ता ।।
तीन मास ध्यावे दर्शन पावे, वाद-सम्वाद में सुर-गुरु को हरावे ।
साबरी-शक्ति-पाठ-वशी सुरेशा, सर्व-सिद्धि पावे साक्षी हो महेशा ।।
त्रिवर्ण के ही लिए साबरी यह, म्लेच्छ जो पढ़े तो निर्वश हो वह ।
साबरी अधीन है वीर हनुमान, उठो-उठो सिया-राम की आन ।।
अञ्जनि-सुत सुग्रीव के संगी, करो काम मेरा वीर बजरंगी ।
तीन रात्रि में सिद्ध कर कामा, शपथ तोहे रघुपति की बल-धामा ।।
अष्ट-भैरव रक्षण करे तन का, वीरभद्र विकास करे मन का ।
नृसिंह वीर ! मम नेत्रों में रहना, जहाँ पुकारुँ सम्मोहित करना ।।
सिद्ध साबरी है श्यामा का बाण, रुद्र-पाठ हरे शत्रु का प्राण ।
निशा साबरी श्मशान में गावे, नक्षत्र-पाठ जाग्रत हो जावे ।।
वर्ष एक जो पढ़े तट गंगा, अर्द्ध-रात्रि में होकर असंगा ।
ताके संग रहें भैरव-नाथा, राजा-प्रजा झुकावें माथा ।।
बारा वर्ष रटे साबरी हो ज्ञानी, सदा संग में रहें भवानी ।
हो इच्छा-जीवी यो-गति-ज्ञाना, निष्प्रयास प्राप्त हों सकल विज्ञाना ।।
कहे सिद्धि-राज भक्त सुनो माँ काली !
शाबरी-शक्ति तुम्हीं हो कराली । शाबरी-पाठ निन्दा जो करे, होय निर्वश तन कीड़े पड़े ।।
शाक्त-रक्षिणी मम शत्रु-भक्षिणी, श्रीरक्त-कालि ! तव भय-दुःख-हरिणी ।
सिद्धि-भक्त यह चरणों में तेरे, ‘कल्याण करो मम’ बार-बार टेरे ।।
श्री चण्डी समर्पणम् ।।११ ।।श्रीसाबर-शक्ति-पाठं सम्पूर्णं, शुभं भुयात्।।
उक्त श्री ‘साबर-शक्ति-पाठ’ के रचियता ‘अनन्त-श्रीविभूषित-श्रीदिव्येश्वर योगिराज’ श्री शक्तिदत्त शिवेन्द्राचार्य नामक कोई महात्मा रहे है। उनके उक्त पाठ की प्रत्येक पंक्ति रहस्य-मयी है। पूर्ण श्रद्धा-सहित पाठ करने वाले को सफलता निश्चित रुप से मिलती है, ऐसी मान्यता है। किसी कामना से इस पाठ का प्रयोग करने से पहले तीन रात्रियों में लगातार इस पाठ की १११ आवृत्तियाँ ‘अखण्ड-दीप-ज्योति’ के समक्ष बैठकर कर लेनी चाहिए। तदनन्तर निम्न प्रयोग-विधि के अनुसार निर्दिष्ट संख्या में निर्दिष्ट काल में अभीष्ट कामना की सिद्धि मिल सकेगी। प्रयोग-विधिः- १॰ लक्ष्मी-प्राप्ति हेतु नैऋत्य-मुख बैठकर दो पाठ नित्य करें। २॰ सन्तान-सुख-प्राप्ति हेतु पश्चिम-मुख बैठकर पाँच पाठ तीन मास तक करें। ३॰ शत्रु-बाधा-निवारण हेतु उत्तर-मुख बैठकर तीन दिन सांय-काल ग्यारह पाठ करें। ४॰ विद्या-प्राप्ति एवं परीक्षा उत्तीर्ण करने हेतु पूर्व-मुख बैठकर तीन मास तक ३ पाठ करें। ५॰ घोर आपत्ति और राज-दण्ड-भय को दूर करने के लिए मध्य-रात्रि में नौ दिनों तक २१ पाठ करें। ६॰ असाध्य रोग को दूर करने के लिए सोमवार को एक पाठ, मंगलवार को ३, शुक्रवार को २ तथा शनिवार को ९ पाठ करें। ७॰ नौकरी में उन्नति और व्यापार में लाभ पाने के लिए एक पाठ सुबह तथा दो पाठ रात्रि में एक मास तक करें। ८॰ देवता के साक्षात्कार के लिए चतुर्दशी के दिन रात्रि में सुगन्धित धूप एवं अखण्ड दीप के सहित १०० पाठ करें। ९॰ स्वप्न में प्रश्नोत्तर, भविष्य जानने के लिए रात्रि में उत्तर-मुख बैठकर ९ पाठ करने से उसी रात्रि में स्वप्न में उत्तर मिलेगा। १०॰ विपरीत ग्रह-दशा और दैवी-विघ्न की निवृत्ति हेतु नित्य एक पाठ सदा श्रद्धा से करें।
सर्व-कार्य-सिद्धि हेतु शाबर मन्त्र
“काली
घाटे काली माँ, पतित-पावनी काली माँ, जवा फूले-स्थुरी जले। सई जवा फूल में
सीआ बेड़ाए। देवीर अनुर्बले। एहि होत करिवजा होइबे। ताही काली धर्मेर। बले
काहार आज्ञे राठे। कालिका चण्डीर आसे।”
विधिः- उक्त मन्त्र भगवती
कालिका का बँगला भाषा में शाबर मन्त्र है। इस मन्त्र को तीन बार ‘जप’ कर
दाएँ हाथ पर फूँक मारे और अभीष्ट कार्य को करे। कार्य में निश्चित सफलता
प्राप्त होगी। गलत कार्यों में इसका प्रयोग न करें।
==================================
धन्वन्तरी –लक्ष्मी ,कुबेर मन्त्र
(गुलर वृक्ष की पूजा विशेष उपयोगी )
- धन तेरस,धन्वन्तरी –लक्ष्मी ,कुबेर मन्त्र
(गुलर वृक्ष की पूजा विशेष उपयोगी )
धनवंतरि (विष्णु जी के 12 वे अवतार - अंश,चिकित्सा प्रवर्तक)
मंत्र-निरोग्यता कारक
(-प्रिय धातु पीतल है। इसीलिये धनतेरस को पीतल खरीदने की परंपरा )
निम्न शुभ समय धार्मिक कार्य के लिए समस्त राशी के लिए शुभ परन्तु किसी कार्य कार्य के लिए कौन सा समय शुभ नहीं उस राशी का नाम लिखा
गया है-
1-निम्न शुभ लग्न अवधि मे पूजा अर्चना की शुभ अवधि है .
1- वृषभ लग्न का उत्तम समय –
पुजा,जप एवं अनुष्ठान 19:30 से 21:11 ;
कथा -
- समुद्र मंथन प्रसंग-
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरि हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए| उनके प्रकट होने के ही उपलक्ष में धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है|
धन्वन्तरी कथा -
-हरिवंश पुराण (साभार)
धनवंतरि के अवतीर्ण होने पर भगवान नारायण ने साक्षात दर्शन देकर उनसे कहा,‘तुम अप अर्थात जल से उत्पन्न हो, इसलिए तुम्हारा नाम होगा अब्ज।’
इस पर अब्ज धनवंतरि ने कहा,‘प्रभु आप मेरे लिए यज्ञ भाग की व्यवस्था कीजिए और लोक में कोई स्थान दीजिए।’ भगवान बोले,‘तुम देवताओं के बाद उत्पन्न हुए हो, इसलिए यज्ञ भाग के अधिकारी नहीं हो सकते।
किंतु अगले जन्म में मातृ गर्भ में ही तुम्हें आणिमादि संपूर्ण सिद्धियां स्वत: प्राप्त हो जाएंगी। इंद्रियों सहित तुम्हारा शरीर जरा और विकारों से रहित रहेगा और तुम उसी शरीर से देवत्व को प्राप्त हो जाओगे।
द्वापर युग में तुम काशीराज के वंश में उत्पन्न होकर अष्टांग आयुर्वेद का प्रचार करोगे।’ इतना कह कर भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए।
-2-धन्वंतरि वैद्य भगवान की जन्म कथा
'धनतेरस' के दिन जन्म हुआ था। धन्वंतरि आरोग्य देवता हैं। रामायण, महाभारत, सुश्रुत संहिता, चरक संहिता, काश्यप संहिता तथा अष्टांग हृदय, भाव प्रकाश, शार्गधर, श्रीमद्भावत पुराण में उल्लेख है।
देवता एवं दैत्यों के सम्मिलित प्रयास के शांत हो जाने पर समुद्र में स्वयं ही मंथन चल रहा था जिसके चलते भगवान धन्वंतरि हाथ में अमृत का स्वर्ण कलश लेकर प्रकट हुए।
धन्वंतरि लगभग 7 हजार ईसा पूर्व के बीच हुए थे।
वे काशी के राजा महाराज धन्व के पुत्र थे। उन्होंने शल्य शास्त्र पर महत्वपूर्ण गवेषणाएं की थीं। उनके प्रपौत्र दिवोदास ने उन्हें परिमार्जित कर सुश्रुत आदि शिष्यों को उपदेश दिए।
दिवोदास के काल में ही दशराज्ञ का युद्ध हुआ था। धन्वंतरि के जीवन का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग अमृत का है। उनके जीवन के साथ अमृत का स्वर्ण कलश जुड़ा है। अमृत निर्माण करने का प्रयोग धन्वंतरि ने स्वर्ण पात्र में ही बताया था।
उन्होंने कहा कि जरा-मृत्यु के विनाश के लिए ब्रह्मा आदि देवताओं ने सोम नामक अमृत का आविष्कार किया था।
धन्वंतरि आदि आयुर्वेदाचार्यों अनुसार 100 प्रकार की मृत्यु है। उनमें एक ही काल मृत्यु है, शेष अकाल मृत्यु रोकने के प्रयास ही आयुर्वेद निदान और चिकित्सा हैं।
मंत्र 1
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय धन्वन्तरये, अमृत कलश हस्ताय |
सर्वामय विनाशाय, त्रैलोक्य नाथाय महाविष्णवे नमः ||1||
मंत्र 2-
ऊं नमो भगवते महासुदर्शनाय वासु देवाय धन्वंतराये:
अमृत कलश हस्ताय सर्व भय विनाशाय सर्व रोग निवारणाय
त्रैलोक्य पतये त्रैलोक्य निधये श्री महाविष्णुस्वरूप श्री धनवंतरी
स्वरूपश्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय स्वाहा
अर्थ- परमेश्वर विश्व पालन भगवान् , जिन्हें सुदर्शन, वासुदेव ,धन्वंतरि कहते हैं, जो अमृत कलश लिए, सर्व भय,नाशक, सर्व रोग नाश करते हैं|तीनों लोकों के स्वामी है और लोक निर्वाह करते हैं,उन विष्णु स्वरूप धन्वंतरि को सादर नमन है।
धन्वंतरि स्तोत्र :
ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधद अमृत घटं चारु दोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्म स्वच्छाति हृद्यां शुक परिविलसन् मौलिमं भोज नेत्रम॥
काल उम्भोद उज्ज्वलम अंगम कटि तट विलसच्चारू पीतांबर आढ्यम।
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिल गद वन प्रौढ दावाग्नि लीलम॥
कथा एवं मंत्र –
-एक समय भगवान विष्णु मृत्यलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे| लक्ष्मी जी ने भी उनके साथ चलने का आग्रह किया|
विष्णु जी ने लक्ष्मी से कहा जो बात मैं तुम्हे कहुँ अगर वो बात तुम मानोगी तो चलना मेरे साथ| लक्ष्मी जी ने उनकी बात स्वीकार कर ली और भगवान विष्णु के साथ भू मंडल आ गयी|
कुछ देर बाद एक जगह जाकर भगवान विष्णु जी रुक गए| और उन्होंने लक्ष्मी जी से कहा की जब तक मैं ना आऊं तब तक तुम यहीं पर रहना| यह कहकर भगवान विष्णु दक्षिण दिशा की और गए |
विष्णु जी के जाने बाद लक्ष्मी जी ने सोचा ,एसा क्या है, दक्षिण दिशा में जो मुझे मना किया आने के लिए ?|
लक्ष्मी जी रहस्य जानने के लिए चुपचाप पीछे-पीछे चल पड़ी| कुछ ही दूर जा के सरसो के खेत में फूल दिखा ,उनने फूल तोड़ अपने बालों में लगा लिया |
फिर उनको गन्ने का खेत दिखा , उन्होंने चार गन्ने तोड़े और गन्ने चूपने लगी | उसी समय विष्णु जी आये और क्रोधित हो के शाप देते हुए कहा” मैंने तुम्हे मना किया था और तुमने मेरी बात नहीं मानी और किसान के खेत में चोरी करने का अपराध किया |अब तुम इस किसान की १२ साल सेवा करोगी| “
- विष्णु भगवान उन्हें छोड़ के क्षीरसागर चले गए| किसान बहुत ही गरीब था| लक्ष्मी ने , किसान कि पत्नी से कहा अगर तुम स्नान करके मेरी बनाई गयी मूर्ति कि पूजा करोगी और फिर रसोई घर में प्रवेश करोगी तो तुम्हे जो तुम चाहोगी वही मिलेगा|
- किसान कि पत्नी ने निदेशों का पालन किया तो - किसान का घर धन,अन्न रत्न,स्वर्ण से भर गया| लक्ष्मी ने किसान को धन-धान्य से पूर्ण कर दिया| किसान के 12 साल बहुत ख़ुशी से अच्छे से बीत गए|
12 साल हो जाने पे लक्ष्मी जी को भगवान विष्णु लेने के लिए आ गए| किसान ने उन्होंने भेजने से इंकार कर दिया|
- भगवान ने कहा की लक्ष्मी जी को कौन जाने देता है लेकिन यह तो चंचला है यह कहीं नहीं ठहरती| इनको मेरा शाप था इसलिए इन्होने 12 साल तुम्हरी सेवा की है|
-किसान नहीं माना वह कहने लगा नहीं मैं लक्ष्मी जी को नहीं जाने दूंगा|
-लक्ष्मी जी ने कहा अगर तुम मुझे नहीं जाने देना चाहते तो जो मैं कहूँगी तुम्हे वही करना होगा तो किसान ने उनकी बात मान ली| लक्ष्मी जी ने कहा की कल तेरस है तुम अपने घर को अच्छे से सफाई करके घर की लीप-लपाई करना| शाम को पूजन के बाद रात्रि को दीप जला के रखना और एक तांबे के कलश मै मेरे लिए रूपये भर के रखना| मै उस कलश में प्रवेश करुँगी और पूजा के समय तुम्हे दिखाई नहीं दूगी| इस दिन की पूजा के बाद पुरे एक वर्ष तक में तुम्हारे घर से नहीं जाऊगी| अगले दिन किसान ने लक्ष्मी जी के कहे अनुसार सब कुछ किया| उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया| इसी कारन धनतेरस के दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है|
2- कथा-
-एक समय की बात है की भगवान विष्णु ने राजा बलि से देवताओ को मुक्ति दिलाने के लिए वामन अवतार लिया था और उनसे भिक्षा मांगनी शुरू की| लेकिन को भगवान विष्णु की चाल का पता चल गया|
- गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि को वामन बेष में आये भगवान विष्णु को भिक्षा देने से इंकार कर दिया| लेकिन राजा बलि ने ऐसा नहीं किया| राजा बलि ने वामन वेष में आये भगवान विष्णु को दान देने का संकल्प किया|
-भगवान विष्णु ने एक पग में सारी धरती और दूसरे पग में सारे आकाश को नाप दिया| तो राजा बलि ने उनसे आग्रह किया की वह अपना तीसरा पग उनके सिर पे रख दे ताकि उनका वचन पूरा हो सके|
-इस प्रकार भगवान विष्णु ने अपनी माया से राजा बलि का निर्धन कर दिया| उन्होंने फिर से देवताओ का यश और वैभव वापिस लौटाया| इस लिए इसी ख़ुशी में धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है|
- ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं महालक्ष्मी धनदा लक्ष्मी कुबेराय मम गृह स्थिरो ह्रीं ॐ नमः
- 1-ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतयेanku
- धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥
- 2- ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः॥
- 3- ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥
3- ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥
कुबेर जी की आरती
ऊँ जय यक्ष कुबेर हरे,स्वामी जय यक्ष जय यक्ष कुबेर हरे।
शरण पड़े भगतों के,भण्डार कुबेर भरे॥
ऊँ जय यक्ष कुबेर हरे...॥
शिव भक्तों में भक्त कुबेर बड़े,स्वामी भक्त कुबेर बड़े।
दैत्य दानव मानव से,कई-कई युद्ध लड़े॥
ऊँ जय यक्ष कुबेर हरे...॥
स्वर्ण सिंहासन बैठे,सिर पर छत्र फिरे, स्वामी सिर पर छत्र फिरे।
योगिनी मंगल गावैं,सब जय जय कार करैं॥
ऊँ जय यक्ष कुबेर हरे...॥
गदा त्रिशूल हाथ में,शस्त्र बहुत धरे, स्वामी शस्त्र बहुत धरे।
दुख भय संकट मोचन,धनुष टंकार करें॥
ऊँ जय यक्ष कुबेर हरे...॥
भांति भांति के व्यंजन बहुत बने,स्वामी व्यंजन बहुत बने।
मोहन भोग लगावैं,साथ में उड़द चने॥
ऊँ जय यक्ष कुबेर हरे...॥
बल बुद्धि विद्या दाता,हम तेरी शरण पड़े, स्वामी हम तेरी शरण पड़े
अपने भक्त जनों के,सारे काम संवारे॥
ऊँ जय यक्ष कुबेर हरे...॥
मुकुट मणी की शोभा,मोतियन हार गले, स्वामी मोतियन हार गले।
अगर कपूर की बाती,घी की जोत जले॥
ऊँ जय यक्ष कुबेर हरे...॥
यक्ष कुबेर जी की आरती,जो कोई नर गावे, स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत प्रेमपाल स्वामी,मनवांछित फल पावे॥
ऊँ जय यक्ष कुबेर हरे...॥
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