(V.K. Tiwari -Since1972 -Astrology ,Palmistry & Vastu –Best Award (1976)-Jyotish Shiromani;contact-Online08:30-20:30; 942444670-Bangalore)
-Muhurt,Puja –Aanusthan
Din-guruvar Pratipada tithi,hast nakshtr,endr yog,bab yog,kanya rashi par chandr,yog-rakshas,vaidhriti-ratri-04:25 tak;
स्वस्तिक निर्माण-
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निर्माण-
नारियल कलश पर रखने की विधि-
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विशेष- 03अक्तुबर २०२४ को वैधृति योग(रात्रि-04:25 बजे तक ) है इसलिए मध्य दिन उपरांत - घट स्थापना शास्त्रोक्त है,इसके पूर्व वर्जित.
घट स्थापना समय अधिकतम 12:17-01:53 बजे दिन तक .
.मध्य दिन से पूर्व भी वैध्रती के कारण वर्जना -अभिजीत में भी मुहूर्त से 12:17 के पश्चत घट स्थापना 12:33 तक श्रेष्ठ –
घट स्थापना के लिए –
ज्ञातव्य (निवेदित) : कलश में प्रथम छह दिन दुर्गा जी विराजती हें। नारियल कलश में फंसाकर शास्त्रीय नियम की अनदेखी न करें। स्थापना एवं विसृजन काल? देवी पुराण : प्रातः प्रातश्च सम्पूज्य प्रातरेव विसृज्येत।
मत्स्य पुराण - कलश स्थापनं रात्रौ न कार्यं - रात्रि में कलश स्थापन किया नहीं जाना चाहिए। देवी आवाहन, प्रवेश, स्थापना, दैनिक पूजा एवं विसर्जन प्रातः ही किया जाना चाहिए। रात्रि या संध्या काल में नहीं।
पौराणिक नियमों के परिप्रेक्ष्य में घट स्थापना एवं व्रत पूजा :
रुद्रयामल तंत्र -
वैधृतौ पुत्र नाशस्या चित्रायां धन
नाशनम।
तस्मान्न स्थापयेत कुम्भं
चित्रायां वैधृतौ।
स्यात्तदा मध्यं दिने
रवौ। चित्रादि निषेधे
मूलम।
- वैधृति (पुत्र के लिए कष्टप्रद ) ;चित्रा नक्षत्र, वैधृति एवं व्यतिपात योग कुम्भ स्थापन या पूजा प्रारम्भ हेतु वर्जित हैं।
जब प्रातः एवं प्रतिपदा काल में चित्रा, वैधृति कुयोग हो तो क्या करना चाहिए ?
रुद्रयामल तंत्र ग्रन्थ : अभिजीत या मध्य दिन में कलश स्थापन पूजा करे। कात्यायन : आद्यपादौ परित्यज्य प्रारम्भे नवरात्रकाम। अर्थात प्रारम्भ के दो पाद त्याग कर नवरात्र प्रारम्भ करे। अर्थात लगभग आधा दिन का समय छोड़ना चाहिए।
दुर्गोत्सव ग्रन्थ : चित्रा वैधृति युक्तापि द्वितीययुक्त चेतसेव ग्राह्यत्युक्तं दुर्गोत्सवे।...श्री पुत्र राज्य आदि विवृद्धि हेतु : अर्थात चित्रा, वैधृति से युक्त द्वितीया को ग्रहण करे। धन, पुत्र, राज्य सुख में वृद्धि। प्रमुख ध्यातव्य है कि चित्रा एवं वैधृति संयोग कुयोग प्रतिपदा तिथि को नहीं होना चाहिए।
प्रारभ्यम नवरात्रम स्याद्वित्वा चित्राम च वैधृति। देवी भागवत।
ग्रंथो के अनुसार द्वितीया तिथि इन कुयोगो की उपस्थिति में भी ग्रहण कि जा सकती है।
ग्रंथो आधार पर अमावस्या के दिन प्रतिपदा वर्जित ,
जबकिे एक ही दिन प्रतिपदा द्वितीया होना ग्रहण करने योग्य शुभ होता है।
मध्य दिन या अभिजीत मुहूर्त में कुम्भ स्थापना कि जा सकती है।
ज्योतिष मुहूर्त सिद्धांत से कलश स्थापना द्विस्वभाव लग्न में शुभ होता है। दिन में वृश्चिक एवं मकर लग्न है जो अनुपयोगी वर्जित है।
1-प्रथम नियम-प्रतिपदा तिथि हो .
2-चित्रा,वैधृति या भद्रा नहीं होना चाहिए.
3- सूर्योदय से दिन के तृतीय भाग तक उचित .
4*-यदि सूर्योदय से 04 घंटे की अवधि में स्थापना मुहूर्त न हो तो अभिजित अन्यथा अभिजित नहीं.
5-वैधृति या चित्रा हो तो दोपहर पश्चात घट स्थापना
घट स्थापना विधि
रूद्र मंडल इशान कोण में
1बाए से दाहिने-रूद्रमंडल पर कलश पर नारियल रखे आडा मोटा भाग अपनी और नारियल का होना चाहिए.(कलश में नारियल फसा कर रखना अशुभ?वर्जित) कलश एवं नव ग्रह
सर्वतोभद्र मंडल में नवग्रह मध्य में बनाये.
मध्य में 2-सर्वतोभद्र चित्र पर कलश ,कलश में जल,रत्न, के साथ 1.आम 2.पीपल 3.वरगद 4.पाखर 5.ऊमर (गूलर) पत्ते लगाये,(इनके अभाव मे अपराजिता,पलाश ,जामुन, कैंथ, बिजौरा तथा बेल के नवीन पत्ते). रूद्र मंडल इशान कोण में नवग्रह मध्य में सर्वतोभद्र मंडल इसके
कलश पर कटोरी में बिना टूटे चावल उस पर देवी प्रतिमा स्थापित करे .सप्तमी तक देवी कलश में विराजित रहती हैं .इसलिए कलश पूजन अनिवार्य .
क्षेत्रपाल इसके नीचे वास्तु आग्नेयकोण में ऊपर दीपक नीचे स्वस्तिक
3-दाहिने – योगिनी,मातृका,गणेश स्वस्तिक एवं दीपक . आवला अपराजिता शमी तथा मोती या कोई रत्न सोने चांदीके सिक्के नर्मदा गंगा तीर्थ जल इसके ऊपर एक प्लेट मे दुर्गा यन्त्र हल्दी या पीले रंगसे बना कर उस पर दुर्गा प्रतिमा )इसके बाद 16 मातृका योगिनी क्षेत्रपाल वास्तु तथा पूजा स्थल की अग्नी दिशा (SE डायरेक्शन) मे दीपक रखे
नारियल रुद्र तथा दुर्गा कलश पर किस प्रकार रखना चाहिए -
नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर मौली बांध दें। नारियल को कलश पर रखें। नारियल का मुँह /मोटा या बड़ा भाग आपकी तरफ होना चाहिए।
(नारियल का मुँह ऊपर की तरफ - रोग बढ़ाने वाला;
नीचे की तरफ हो तो शत्रु विवाद मतभेद बढ़ाने वाला ;
पूर्व की और धन को नष्ट करने वाला है। )
पुष्प.- बिल्व चमेली गुड़हल सुगंधित वाले पुष्प/श्वेत पुष्प कनेर चांदनी आदि।
दीपक .अखंड दीपक 9 दिन जलना श्रेष्ठ फलदायी ।
पुष्प. बिल्व चमेली,गुड़हल सुगंधित वाले पुष्प/श्वेत पुष्प कनेर चांदनी आदि।
दीपक .अखंड दीपक 9 दिन जलना श्रेष्ठ फलदायी ।
.यश, पद, प्रभाव, आयु के लिये दीपक वर्तिका पूर्व या इषान (छम्) दिशा की ओर हो।
. धन वं संपदा तथा ेश्वर्य के लिये उत्तर की ओर दीप वर्तिका हो , वर्तिका रंग लाल, नारंगी, पीली हो सकती है
दीप वर्तिका- कलावा की (रूई से) श्रेष्ठ, पांच वर्तिका दीपक श्रेष्ठ,या 13 वर्तिका का मुंह पूर्व, ईषान, उत्तर दिषा में उत्तरोत्तर श्रेष्ठ।
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uoxzgsH;ks ue%A vkse âha dzha dzha dzka pafMdk nsO;S 'kki uk'k vuqxzga dq: 2A ue% xkkf/kir;s ue%A vkse czge of'k"B fo'okfe= 'kkikn~ foeqDrk HkoA नवग्रहाय नमः। ओम हृीं क्रीं क्रीं क्रां चंडिका देव्यै शाप नाश अनुग्रहं कुरू 2। बार.
नमः गणाधिपतये नमः। ओम ब्रहम वशिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव।
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आवश्यक- dqYyqdk ea=------ -Øha gwa L=ha gzha QV~A
पूजा के पूर्व अंगों को स्पर्श करते हुए पढ़े:-
ओम ऐं हृीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै नमः ।
ओम मूलं 9 नमः शिरसे स्वाहा।
ओम मूलं 9 नमः शिखायै वशट्।
ओम मूलं 9 नमः कवचाय हुम।
ओम मूलं 9 नमः नेत्रत्रयाय वौशट।
ओम मूलं 9 नमः अस्त्राय फट्। हृदयाय नमः।
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दीपक प्रज्वलित नमस्कार मंत्र
रुई की श्वेत बत्ती वर्जित लाल नरगी रंग ले या मौली;कलावा की बत्ती प्रयोग करे.13 दीपक या 13 बत्ती युक्त दीपक से पूजा श्रेष्ठ –
या एक अध्याय पर एक दीपक जलाये.
दीप ज्योति पर ब्रह्म, दीप ज्योति जनार्दनाः।
दीपो हरतु पापम, संध्या दीप नमोस्तुतेः।
शुभं करोति कल्याणं, आरोग्य सुख संपदामः।
शत्रु बुद्धि विनाशानं, मम् सर्व बाधा हरणं,
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अथ कुंजिका मन्त्रः
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
‘(”ऐं” यह सरस्वती बीज है। ‘ऐ का अर्थ सरस्वती है और ‘बिन्दु का अर्थ है दु:खनाशक। अर्थात् सरस्वती हमारे ज्ञान संबन्धित अर्थात अज्ञान को दूर करें।
‘”ह्रीं” भुवनेश्वरी बीज है और महालक्ष्मी का बीज मन्त्र है। बिन्दु का अर्थ है दु:खनाशक। अर्थात् महालक्ष्मी हमारे धन संबन्धित दु:ख अर्थात निर्धनता को दूर करें।
‘”क्लीं “ यह कृष्ण बीज काली बीज एवं काम बीज माना गया है। बिन्दु का अर्थ है दु:खनाशक। अर्थात् महाकाली हमारे मन,शरीर के कष्ट दु:ख को दूर करें।)
ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा
इति मन्त्रः॥
नमस्ते रुद्र रूपिण्यै नमस्ते मधु मर्दिनि।
नमः कैटभ हारिण्यै नमस्ते महिशार्दिनि ॥१॥
नमस्ते शुम्भ हन्त्र्यै च निशुम्भासुर घातिन ॥२॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ।
ऐंकारी सृष्टि रूपायै ह्रींकारी प्रति पालिका ॥३॥
क्लीं कारी काम रूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ।
चामुण्डा चण्ड घाती च यैकारी वर दायिनी ॥४॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण ॥५॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वाग धीश्वरी ।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥६॥
हुं हुं हुंकार रूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी ।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥७॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ॥८॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्र सिद्धिं कुरुष्व मे ॥
इदं तु कुंजिका स्तोत्रं मंत्र जागर्ति हेतवे ।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥
यस्तु कुंजिकया देवि हीनां सप्त शतीं पठेत् ।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥
इति श्रीरुद्रयामले गौरी तंत्रे शिव पार्वती
संवादे कुंजिका स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
इसके पश्चात् दुर्गासप्तशती पाठ-या अंत में भी पढ़ सकते हैं.
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संपूर्ण पाठ क्रम:- 09 दिन मे पूरा पाठ कैसे करे –तिथि के अनुसार
प्रतिपदा-प्रथम अध्याय;
द्वितीया-द्वितीय;तृतीय अध्याय;
तृतीया-चतुर्थ अध्याय;
चतुर्थी-पंच, शष्ठ सप्तम, अध्याय;
पंचमी-अष्ठम नवंम;
शष्ठी-दषंम, एकादश ;
सप्तमी-द्वादश अष्टमी- त्रयोदश।
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-एक दिन में सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती- पाठ के श्रेष्ठ क्रम-
1-मुक्क्द्मा विजय या धन के लिए- -
पहले पढ़े 5 से 13 अध्याय पहले पढ़े, इनके बाद प्रथम,अंत में 2,3,4- अध्याय पढ़े.
2-धन एवं ज्ञान तथा बाधा नाशके लिए दुर्गा सप्तशती के अध्ह्याय पाठ का क्रम –
पहले पढ़े 2-4 अध्याय,इसके बाद प्रथम अध्याय एवं अंत में 5-13 अध्याय का पाठकरे. या पढ़े,
-आरोग्य-के लिए पाठ क्रम-
पहले 2,3,4था अध्याय पाठ ;इसके बाद पहला या प्रथम अध्याय 1,
अंत में 5से 13 तक अध्याय पाठ करे ;
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लघु-दुर्गा-सप्तशती::-
प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती पाठ के लिए समय अभाव हो तो –
मार्कन्डेय ऋषि द्वारा
दुर्गा लघु सप्तशती की रचना की गयी |इसको पढ़ने से दुर्गा सप्तशती के तुल्य फल मिलता है |)
ॐ वीं वीं वीं वेणु हस्ते स्तुति विध वटुके हां तथा तानमाता,
स्वानंदेमंद रुपे अविहत निरुते भक्ति दे मुक्ति दे त्वम् ।
हंसः सोहं विशाले वलय गतिह से सिद्धि दे वाम मार्गे,
ह्रीं ह्रीं ह्रीं सिद्धलोके कष कष विपुले वीरभद्रे नमस्ते ।। १ ।।
ॐ ह्रीं-कारं चोच्चरंती मम हरतु भयं चर्ममुंडे प्रचंडे,
खांखांखां खड्ग पाणे ध्रक ध्रक ध्रकिते उग्ररुपे स्वरुपे ।
हुंहुंहुं-कार-नादे गगन-भुवि तथा व्यापिनी व्योमरुपे,
हंहंहं-कार नादे सुर गण नमिते राक्षसानां निहंत्रि ।। २ ।।
ऐं लोके कीर्तयंती मम हरतु भयं चंडरुपे नमस्ते,
घ्रां घ्रां घ्रां घोर रुपे घघघघ घटिते घर्घरे घोररावे ।
निर्मांसे काकजंघे घसित-नख-नखा-धूम्र-नेत्रे त्रिनेत्रे,
हस्ताब्जे शूलमुंडे कल कुल कुकुले श्री महेशी नमस्ते ।। ३ ।।
क्रीं क्रीं क्रीं ऐं कुमारी कुह कुहम अखिले कोकिले,
मानुरागे मुद्रा संज्ञ त्रिरेखां कुरु कुरु सततं श्री महामारि गुह्ये ।
तेजोंगे सिद्धि नाथे मनु पवन चले नैव आज्ञा निधाने,
ऐंकारे रात्रि मध्ये शयित पशु जने तंत्र कांते नमस्ते ।। ४ ।।
ॐ व्रां व्रीं व्रुं व्रूं कवित्ये दहन पुरगते रुक्म रुपेण चक्रे,
त्रिःशक्त्या युक्त वर्णादिक कर नमिते दादिवं पूर्ण वर्णे ।
ह्रीं-स्थाने कामराजे ज्वल ज्वल ज्वलिते कोशितैस्त अस्तुपत्रे
स्वच्छंदं कष्ट नाशे सुर वर वपुषे गुह्य मुंडे नमस्ते ।। ५ ।।
ॐ घ्रां घ्रीं घ्रूं घोर तुंडे घघघघघघघे घर्घर अन्यांघ्रि घोषे,
ह्रीं क्रीं द्रं द्रौं च चक्र र र र र रमिते सर्व बोध प्रधाने ।
द्रीं तीर्थे द्रीं तज्येष्ठ जुग जुग जुगे म्लेच्छदे काल मुंडे,
सर्वांगे रक्त घोरा मथन कर वरे वज्रदंडे नमस्ते ।। ६ ।।
ॐ क्रां क्रीं क्रूं वाम भित्ते गगन गड गडे गुह्य योन्याहि मुंडे,
वज्रांगे वज्र हस्ते सुर पति वरदे मत्त मातंग रुढे ।
सूतेजे शुद्धदेहे लललल ललिते छेदिते पाशजाले,
कुंडल्य आकार रुपे वृष वृषभ हरे ऐंद्रि मातर्नमस्ते ।। ७ ।।
ॐ हुंहुंहुंकार नादे कषकष वासिनी मांसि वैताल हस्ते,
सुंसिद्ध र्षैः सुसिद्धिर्ढढढढढढढः सर्व भक्षी प्रचंडी ।
जूं सः सौं शांति कर्मे मृत मृत निगडे निःसमेसी समुद्रे,
देवि त्वं साधकानां भव भय हरणे भद्रकाली नमस्ते ।। ८ ।।
ॐ देवि त्वं तुर्यहस्ते कर धृत परिघे त्वं वराह स्वरुपे,
त्वं चेंद्री त्वं कुबेरी त्वमसि च जननी त्वं पुराणी महेंद्री ।
ऐं ह्रीं ह्रीं कार भूते अतल तल तले भूतले स्वर्ग मार्गे,
पाताले शैल भृंगे हरि हर भुवने सिद्धि चंडी नमस्ते ।। ९ ।।
हंसि त्वं शौंडदुःखं शमित भव भये सर्वविघ्नांत कार्ये,
गांगींगूंगैंषडंगे गगन गटि तटे सिद्धिदे सिद्धि साध्ये ।
क्रूं क्रूं मुद्राग जांशोगस पवन गते त्र्यक्षरे वै कराले,
ॐ हीं हूं गां गणेशी गज मुख जननी त्वं गणेशी नमस्ते ।। १० ।।
।। इति मार्कण्डेय कृत लघु-सप्तशती दुर्गा स्तोत्रं ।।
पुष्प अर्पण-कामना पूरक-
बिलब-धन ;कनेर दाम्पत्य या प्रेम सुख;पुत्र सुख-जपाकुसुम; तुलसी मंजरी पत्ता नहीं-सुख सग्लता;मनोकामना या कार्य विशेष-कमल पुष्प;
1-मनोकामना पूर्ण हेतु सर्व बाधा शमन हेतु:-
अष्टमी-नवमी को पूरा पाठ करें
2-ग्रह दोष -वाधाओं में कमी हेतु .....
द्वादश अध्याय पढ़े/हवन करें ।
3- भौतिक सुख समृद्धि के लिये –
चतुर्थ अध्याय के 34-37 श्लोको से हवन करें ।
4- धन हेतु –
अध्याय का पाठ तथा खीर से हवन करें ।
5- प्रतियोगी परीक्षा, या विद्यार्थियों को 5वें अध्याय को पढ़कर हवन करना चाहिए ,तो सरस्वती प्रसन्न होंगी ।
6- लक्ष्मी प्रसन्नता के लिए-
द्वितीय अध्याय पठन से होती है ।
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प्रतिदिन दुर्गा जी को अर्पण वस्तु –
गोरोचन, श्वेत सरसों, चंदन, धूप,गंध,कपूर,
शंख से अधर्य दें,
कुष्मांड (सफेद कुम्हड़ा अष्टमी को ) बलि,
-प्रतिदिन आहुति दुर्गा मन्त्र की 1.4.या 6 दे. ।
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