सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

दिवाली लक्ष्मी पूजा विधि


 । लक्ष्मी पूजा विधि

      (प्रस्तुत-मुहूर्त मर्मज्ञ- पंडित विजेंद्र तिवारी ‘ज्योतिष शिरोमणि “-9424446706)

ध्यातव्य—1- दिवाली के दिन नए वस्त्र का प्रयोग नहीं करे |चतुर्दशी तिथि या अमावस्या नए वस्त्र के लिए अशुभ होती है |परम्परा से बाहर निकालिए |इस दिन पहने वस्त्र हमेशा हानी प्रद फल देंगे  |धन त्रयोदशी अंतिम शुभ दिन है किसी भी नए वस्त्र ,वास्तु को घर लेन के लिए एवं प्रयोग के लिए |धन त्रयोदशी के बाद 03 दिन कोई वस्तु खरीदना एवं प्रयोग करना अशुभ |

        2-सफलता की पूर्णता के लिए मुहूर्त आवश्यक  -क्या आप चौघडिया जैसा निकृष्ट  मुहूर्त में प्रयोग करेंगे ?- जिसके निर्माता ने स्वयं कहा की “जब यात्रा का कोई मुहूर्त नहीं हो तो निकृष्ट मुहर्त के रूप में चौघडिया का  प्रयोग करे | निवेदन चौघडिया –निकृष्ट-मुहूर्त का उपयोग न करेअपनी पूजा का पूर्ण फल पायें  |

                             पूजा-मुहूर्त

स्थिर लग्न--स्थिर लग्न में कोई भी कार्य प्रारंभ करने से स्थायी परिणाम मिलते हैं | लक्ष्मी पूजा करने से धन ,गणेश पूजा से विघ्न नाश ,कुबेर पूजा सम्पदा,वस्त्र अलंकार प्रयोग से जब भी उन वस्त्रो या आभूषण पहनेगे सफलता मिलेगी |

वृषभ लग्न -  18:40- 20:28 (श्रेष्ठ -19:11)-


-        त्रयोदशी की रात्रि एवं दीपावली APRAHN  को पितरों का स्मरण करें। उनका ध्यान एवं उनमें आशीर्वाद के लिये (दक्षिण दिशा) में कामना करें। आकाशगामी पटाखें  छोड़े। दक्षिण में मुंह कर दीप रखें। दिन में काले तिल हाथ में लेकर तर्पण करें। तिल दान करना भी लाभदायी होता है।

-      त्रयोदशी से भाई दूज तक प्रातः एवं सांय घर में झाड़ू लगाकर ’’दरिद्रता नाश’’ की भावना करें। प्रातः के पूर्व घर से न निकले।

        बाधाओं, अपव्यय का शमन एवं लक्ष्मी प्रसन्नता:-

त्रयोदशी को हल्दी की गांठ, श्वेत गुंजा, केसर, साबुत धनिया, कमलगट्टा, एक सुपाड़ी, शमीपत्ता, साबुत 5 चावल, खड़ा नमक पूजा कर एक लाल वस्त्र में बांधकर उसे केष बाक्स या धन स्थान पर रख लें।

-      त्रयोदशी से भाई दूज तक घर के सामने सुंदर रंगोली डाले। द्वार स्वच्छ रखे । द्वार पूजा करें। स्वस्तिक बनाऐं । आम के पत्ते द्वार पर लगाऐं। द्वार सजावट एवं पूजा त्रयोदषी से भाई दूज तक नित्य करें।

-      धनतेरस (काल रात्रि) शाम से भाई दूज तक या तो पांच दिन दीप प्रज्वलित करें अथवा प्रतिदिन शाम से दूसरे दिन संध्या तक 24 घंटे का अखण्ड दीप जलाऐं। दीपक तैल (तिल, सरसो, घी, महुआ, चमेली का तैल) का विशेष उपयोगी होता  है।

-      त्रयोदषी से दीपावली तक यम पूजा से स्वास्थ्य उत्तम होता है।

-      धनतेरसः- (महाकाली) रूपचतुर्दशी (महालक्ष्मी) दीपावली (महासरस्वती- ंिसद्धप्रदायनी) के रूप में आगमन करती है।

-      नरक चतुर्दषी को सूर्योदय से पूर्व तैल लगाकर स्नान करें। यम की प्रसन्न्ाता हेतु दोपहर एवं संध्या समय दीपक दक्षिण दिषा में  (यमाय नमः) रखें। -' चंदन धारण करने से नित्य पाप नाश होते हैं, पवित्रता प्राप्त होती है, आपदाएँ समाप्त होती हैं एवं लक्ष्मी का वास बना रहता है।'

पूजन हेतु वांछनीय जानकारियाँ

शुभ समय में, शुभ लग्न में पूजन प्रारंभ करें। (दीपावली पूजन की मुहूर्त तालिका पृथक से दी गई है, वहाँ देखें।)

पूजन सामग्री को व्यवस्थित रूप से (पूजन शुरू करने के पूर्व) पूजा स्थल पर जमा कर रख लें, जिससे पूजन में अनावश्यक व्यवधान न हो।

( पूजन सामग्री की सूची भी पृथक से दी गई है, वहाँ देखें।)

महालक्ष्मी पूजन लाल ऊनी आसन अथवा कुशा के आसन पर बैठकर करना चाहिए।उत्तर या पश्चिम की और मुह होना चाहिए |

पूजन सामग्री में जो वस्तु विद्यमान न हो उसके लिए उस वस्तु का नाम बोलकर 'मनसा परिकल्प समर्पयामि' बोलें।

 

-गणेश पूजन यदि गणेश की मूर्ति न हो तो पृथक सुपारी पर नाड़ा लपेटकर कुंकु लगाकर एक कोरे लाल वस्त्र पर अक्षत बिछाकर, उस पर स्थापित कर गणेश पूजन करें।

 

                             

   लक्ष्मी जी की पूजन सामग्री

हल्दी,कुमकुम,बैठने के लिये आसऩ,अक्षत,सोना या चाँदी या रुपया,धूप,दीपक,लाल फूल,श्री गज लक्ष्मी का चित्र,लाल कपड़ा,ताँबे का कलश,शुद्ध देसी घी,कटोरी (कलश को ढ़कने के लिये),नैवेद्य,फल,फूल,पूजन सामग्री में चन्दन, ताल, पत्र, पुष्प माला, अक्षत, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल आदि

-     पीले या लाल वस्त्र पहन कर पूजा करना श्रेष्ठ है। वस्त्र शुभ मुहुर्त एवं दिन पहनें। पुरूषों को पीले एवं महिलाओं को लाल रंग मिश्रित वस्त्र धारण करना चाहिये। नूतन वस्त्र बुधवार, गुरूवार, शुक्रवार को शुभ समय में पहनें।

-     ’’सौभाग्य’’ के लिये महिलाओं को महुऐ के तैल का दीपक प्रज्वलित करना 

      चाहिये। चमेली तैल या शुद्ध घी का दीपक विशेष उपयोगी।

--     धन त्रयोदशी से भाई दूज तक शंख को पानी में डालकर रखे, उसका पानी पीना अलक्ष्मीनाश एवं स्वास्थ्य सफलताप्रद है ।

-     प्रतिदिन शंख ध्वनि भी करे प्रातः - सांय। इससे (स्वास्थ्य वृद्धि एवं वातावरण शुद्ध कीटाणु रहित होता है।

--     पीपल के पेड़ के नीचे शकर, पैसा, सुपारी हल्दी रख कर उसका पत्ता घर ले  आऐं। उसे तिजोरी (केष बाक्स) में अर्धरात्रि को रख दें। धन सुरक्षा एवं वृद्धि का सरल उपाय है।

     - माता लक्ष्मी का आसन आम के पत्तों से सजाएं। इसके लिए आंवले का पत्ता और धान की बालियों भी अवश्य लें।

- इसके बाद कलश स्थापित करें और भगवान गणेश और गज लक्ष्मी का चित्र स्थापति करें। भगवान गणेश के साथ कलश की भी पूजा करें। भगवान गणेश के बाद कलश की पूजा भी अवश्य करें।🅿

-इसके बाद मां लक्ष्मी को पुष्प माला, नैवेध, अक्षत,सोना या चाँदी आदि सभी चीजें अर्पित करें और उनकी विधिवत पूजा करें।                        

 

 

 

 

 

 

 

 

महालक्ष्मी व्रत पूजा विधि

- सबसे पहले प्रात: काल स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद घर के आंगन में चावल के घोल का अल्पना बनाएं। अल्पना में मां लक्ष्मी के पैर अवश्य बनाएं।

-इसके बाद

–“करिष्ये हं महालक्ष्मि व्रतमें त्वत्परायणा ।तदविध्नेन में यातु समप्तिं स्वत्प्रसादत: ।।

व्रत का संकल्प लें।

3इसके बाद हाथ की कलाई पर 16 गांठों वाला धागा बांधना चाहिए।

  दीपक:-

-     बाधा एवं क्लेश से मुक्ति हेतु तिल के तैल का दीपक देवी के लेफ्ट एवं घी का दीपक Right में प्रज्वलित करें ।

-     दीपक वर्तिका दिन में उत्तर दिशा, सांय उपरांत पश्चिम दिशोन्मुखी हो एवं लक्ष्मी, ध्यान पूजा में पश्चिम दिशा श्रेष्ठ होती है ।

-     एक सुपारी पर कलावा बांध कर सिंदूर लगाऐं एवं कलश पर रखें। पूजा के बाद चावल के साथ बांध कर रखें। धन प्राप्ति वृद्धि के लिये उपयोगी है।

-       कलश:-  देवी के left में रखे .

-     चावल का आठ पंखुरी वाला कमल बनाकर उस पर कलश रखें जिसमें पानी, मोती तथा आम, पीपल, अपराजिता, वट के पत्ते डालें। कलश पर चावल भरी  कटोरी उस पर नारियल रखें। कलश पर नारियल का मोटा भाग आपकी ओर हो। कलश पर स्वस्तिक बनाऐं। रोली, चंदन एवं सुगंध मिलाकर ‘‘श्री‘‘ ही लिखें। 

-     शंख में पानी भरकर पूजा स्थल का छिड़काव करें ।

-     केसर, हल्दी तथा चंदन मिलाकर तिलक लगाऐं। ( कांति लक्ष्मी घृति सौरण्यं सौभाग्यं अतुलं मम् (नाम), ददातु चंदनं घरियामि। केषवं अनंत  गोविंद वाराह पुरूषोत्तम पुण्यं यषस्यम् धनं आयुष्यं तिलकं मे प्रसीदत्तु )

-       काले तिल परिवार के सदस्यों के सिर पर तीन बार घुमाकर उत्तर, पश्चिम एवं  दक्षिण दिशा में फेंक दें। इससे स्वास्थ्य तथा टोने टोटकें से सुरक्षा होती है ।                    

 - पूरे घर की सफाई नई झाड़ू से करें। जब झाड़ू का काम न हो तो उसे छिपाकर रखना चाहिए। - इस दिन अमावस्या रहती है और इस तिथि पर पीपल के वृक्ष को जल अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने पर शनि के दोष और कालसर्प दोष समाप्त हो जाते हैं।

 - किसी भी मंदिर में झाड़ू का दान करें। यदि आपके घर के आसपास कहीं महालक्ष्मी का मंदिर हो तो वहां गुलाब की सुगंध वाली अगरबत्ती का दान करें। -

- घर में स्थित तुलसी के पौधे के पास दीपावली की रात में दीपक जलाएं। तुलसी को वस्त्र अर्पित करें।

- जो लोग धन का संचय बढ़ाना चाहते हैं, उन्हें तिजोरी में लाल कपड़ा बिछाना चाहिए। इसके प्रभाव से धन का संचय बढ़ता है।

                                        

 

 

–दीपावली पूजा मुहूर्त एवं लक्ष्मी पूजा विधि

      (प्रस्तुत-मुहूर्त मर्मज्ञ- पंडित विजेंद्र तिवारी ‘ज्योतिष शिरोमणि “-9424446706)

ध्यातव्य—1- दिवाली के दिन नए वस्त्र का प्रयोग नहीं करे |चतुर्दशी तिथि या अमावस्या नए वस्त्र के लिए अशुभ होती है |परम्परा से बाहर निकालिए |इस दिन पहने वस्त्र हमेशा हानी प्रद फल देंगे  |धन त्रयोदशी अंतिम शुभ दिन है किसी भी नए वस्त्र ,वास्तु को घर लेन के लिए एवं प्रयोग के लिए |धन त्रयोदशी के बाद 03 दिन कोई वस्तु खरीदना एवं प्रयोग करना अशुभ |

        2-सफलता की पूर्णता के लिए मुहूर्त आवश्यक  -क्या आप चौघडिया जैसा निकृष्ट  मुहूर्त में प्रयोग करेंगे ?- जिसके निर्माता ने स्वयं कहा की “जब यात्रा का कोई मुहूर्त नहीं हो तो निकृष्ट मुहर्त के रूप में चौघडिया का  प्रयोग करे | निवेदन चौघडिया –निकृष्ट-मुहूर्त का उपयोग न करेअपनी पूजा का पूर्ण फल पायें  |

                             पूजा-मुहूर्त

स्थिर लग्न--स्थिर लग्न में कोई भी कार्य प्रारंभ करने से स्थायी परिणाम मिलते हैं | लक्ष्मी पूजा करने से धन ,गणेश पूजा से विघ्न नाश ,कुबेर पूजा सम्पदा,वस्त्र अलंकार प्रयोग से जब भी उन वस्त्रो या आभूषण पहनेगे सफलता मिलेगी |

वृषभ लग्न - 

सिंह लग्न स्थिर लग्न -

वृश्चिक स्थिर लग्न-

   अन्य शुभ समय-अभिजित-;निशीथ - यह विशेष महत्वपूर्ण माना गया धन देवी लक्ष्मी के लिए |

लक्ष्मी पूजा बृहस्पतिवार, नवम्बर 4, 2021 पर

लक्ष्मी पूजा मुहूर्त - 06:17 पी एम से 08:14 पी एम

अवधि - 01 घण्टा 57 मिनट्स

प्रदोष काल - 05:40 पी एम से 08:14 पी एम

वृषभ काल - 06:17 पी एम से 08:15 पी एम

 

-        त्रयोदशी की रात्रि एवं दीपावली रात्रि को पितरों का स्मरण करें। उनका ध्यान एवं उनमें आशीर्वाद के लिये (दक्षिण दिशा) में कामना करें। आकाशगामी पटाखें  छोड़े। दक्षिण में मुंह कर दीप रखें। दिन में काले तिल हाथ में लेकर तर्पण करें। तिल दान करना भी लाभदायी होता है।

-      त्रयोदशी से भाई दूज तक प्रातः एवं सांय घर में झाड़ू लगाकर ’’दरिद्रता नाश’’ की भावना करें। प्रातः के पूर्व घर से न निकले।

        बाधाओं, अपव्यय का शमन एवं लक्ष्मी प्रसन्नता:-

त्रयोदशी को हल्दी की गांठ, श्वेत गुंजा, केसर, साबुत धनिया, कमलगट्टा, एक सुपाड़ी, शमीपत्ता, साबुत 5 चावल, खड़ा नमक पूजा कर एक लाल वस्त्र में बांधकर उसे केष बाक्स या धन स्थान पर रख लें।

-      त्रयोदशी से भाई दूज तक घर के सामने सुंदर रंगोली डाले। द्वार स्वच्छ रखे । द्वार पूजा करें। स्वस्तिक बनाऐं । आम के पत्ते द्वार पर लगाऐं। द्वार सजावट एवं पूजा त्रयोदषी से भाई दूज तक नित्य करें।

-      धनतेरस (काल रात्रि) शाम से भाई दूज तक या तो पांच दिन दीप प्रज्वलित करें अथवा प्रतिदिन शाम से दूसरे दिन संध्या तक 24 घंटे का अखण्ड दीप जलाऐं। दीपक तैल (तिल, सरसो, घी, महुआ, चमेली का तैल) का विशेष उपयोगी होता  है।

-      त्रयोदषी से दीपावली तक यम पूजा से स्वास्थ्य उत्तम होता है।

-      धनतेरसः- (महाकाली) रूपचतुर्दशी (महालक्ष्मी) दीपावली (महासरस्वती- ंिसद्धप्रदायनी) के रूप में आगमन करती है।

-      नरक चतुर्दषी को सूर्योदय से पूर्व तैल लगाकर स्नान करें। यम की प्रसन्न्ाता हेतु दोपहर एवं संध्या समय दीपक दक्षिण दिषा में  (यमाय नमः) रखें। -' चंदन धारण करने से नित्य पाप नाश होते हैं, पवित्रता प्राप्त होती है, आपदाएँ समाप्त होती हैं एवं लक्ष्मी का वास बना रहता है।'

पूजन हेतु वांछनीय जानकारियाँ

शुभ समय में, शुभ लग्न में पूजन प्रारंभ करें। (दीपावली पूजन की मुहूर्त तालिका पृथक से दी गई है, वहाँ देखें।)

पूजन सामग्री को व्यवस्थित रूप से (पूजन शुरू करने के पूर्व) पूजा स्थल पर जमा कर रख लें, जिससे पूजन में अनावश्यक व्यवधान न हो।

( पूजन सामग्री की सूची भी पृथक से दी गई है, वहाँ देखें।)

महालक्ष्मी पूजन लाल ऊनी आसन अथवा कुशा के आसन पर बैठकर करना चाहिए।उत्तर या पश्चिम की और मुह होना चाहिए |

पूजन सामग्री में जो वस्तु विद्यमान न हो उसके लिए उस वस्तु का नाम बोलकर 'मनसा परिकल्प समर्पयामि' बोलें।

 -गणेश पूजन यदि गणेश की मूर्ति न हो तो पृथक सुपारी पर नाड़ा लपेटकर कुंकु लगाकर एक कोरे लाल वस्त्र पर अक्षत बिछाकर, उस पर स्थापित कर गणेश पूजन करें।  

   लक्ष्मी जी की पूजन सामग्री

हल्दी,कुमकुम,बैठने के लिये आसऩ,अक्षत,सोना या चाँदी या रुपया,धूप,दीपक,लाल फूल,श्री गज लक्ष्मी का चित्र,लाल कपड़ा,ताँबे का कलश,शुद्ध देसी घी,कटोरी (कलश को ढ़कने के लिये),नैवेद्य,फल,फूल,पूजन सामग्री में चन्दन, ताल, पत्र, पुष्प माला, अक्षत, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल आदि

-     पीले या लाल वस्त्र पहन कर पूजा करना श्रेष्ठ है। वस्त्र शुभ मुहुर्त एवं दिन पहनें। पुरूषों को पीले एवं महिलाओं को लाल रंग मिश्रित वस्त्र धारण करना चाहिये। नूतन वस्त्र बुधवार, गुरूवार, शुक्रवार को शुभ समय में पहनें।

-     ’’सौभाग्य’’ के लिये महिलाओं को महुऐ के तैल का दीपक प्रज्वलित करना 

      चाहिये। चमेली तैल या शुद्ध घी का दीपक विशेष उपयोगी।

--     धन त्रयोदशी से भाई दूज तक शंख को पानी में डालकर रखे, उसका पानी पीना अलक्ष्मीनाश एवं स्वास्थ्य सफलताप्रद है ।

-     प्रतिदिन शंख ध्वनि भी करे प्रातः - सांय। इससे (स्वास्थ्य वृद्धि एवं वातावरण शुद्ध कीटाणु रहित होता है।

--     पीपल के पेड़ के नीचे शकर, पैसा, सुपारी हल्दी रख कर उसका पत्ता घर ले  आऐं। उसे तिजोरी (केष बाक्स) में अर्धरात्रि को रख दें। धन सुरक्षा एवं वृद्धि का सरल उपाय है।

     - माता लक्ष्मी का आसन आम के पत्तों से सजाएं। इसके लिए आंवले का पत्ता और धान की बालियों भी अवश्य लें।

- इसके बाद कलश स्थापित करें और भगवान गणेश और गज लक्ष्मी का चित्र स्थापति करें। भगवान गणेश के साथ कलश की भी पूजा करें। भगवान गणेश के बाद कलश की पूजा भी अवश्य करें।🅿

-इसके बाद मां लक्ष्मी को पुष्प माला, नैवेध, अक्षत,सोना या चाँदी आदि सभी चीजें अर्पित करें और उनकी विधिवत पूजा करें।

महालक्ष्मी व्रत पूजा विधि

- सबसे पहले प्रात: काल स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद घर के आंगन में चावल के घोल का अल्पना बनाएं। अल्पना में मां लक्ष्मी के पैर अवश्य बनाएं।

-इसके बाद

–“करिष्ये हं महालक्ष्मि व्रतमें त्वत्परायणा ।तदविध्नेन में यातु समप्तिं स्वत्प्रसादत: ।।

व्रत का संकल्प लें।

3इसके बाद हाथ की कलाई पर 16 गांठों वाला धागा बांधना चाहिए।

  दीपक:-

-     बाधा एवं क्लेश से मुक्ति हेतु तिल के तैल का दीपक देवी के लेफ्ट एवं घी का दीपक Right में प्रज्वलित करें ।

-     दीपक वर्तिका दिन में उत्तर दिशा, सांय उपरांत पश्चिम दिशोन्मुखी हो एवं लक्ष्मी, ध्यान पूजा में पश्चिम दिशा श्रेष्ठ होती है ।

-     एक सुपारी पर कलावा बांध कर सिंदूर लगाऐं एवं कलश पर रखें। पूजा के बाद चावल के साथ बांध कर रखें। धन प्राप्ति वृद्धि के लिये उपयोगी है।

-       कलश:-  देवी के left में रखे .

-     चावल का आठ पंखुरी वाला कमल बनाकर उस पर कलश रखें जिसमें पानी, मोती तथा आम, पीपल, अपराजिता, वट के पत्ते डालें। कलश पर चावल भरी  कटोरी उस पर नारियल रखें। कलश पर नारियल का मोटा भाग आपकी ओर हो। कलश पर स्वस्तिक बनाऐं। रोली, चंदन एवं सुगंध मिलाकर ‘‘श्री‘‘ ही लिखें। 

-     शंख में पानी भरकर पूजा स्थल का छिड़काव करें ।

-     केसर, हल्दी तथा चंदन मिलाकर तिलक लगाऐं। ( कांति लक्ष्मी घृति सौरण्यं सौभाग्यं अतुलं मम् (नाम), ददातु चंदनं घरियामि। केषवं अनंत  गोविंद वाराह पुरूषोत्तम पुण्यं यषस्यम् धनं आयुष्यं तिलकं मे प्रसीदत्तु )

-       काले तिल परिवार के सदस्यों के सिर पर तीन बार घुमाकर उत्तर, पश्चिम एवं  दक्षिण दिशा में फेंक दें। इससे स्वास्थ्य तथा टोने टोटकें से सुरक्षा होती है ।                    

 - पूरे घर की सफाई नई झाड़ू से करें। जब झाड़ू का काम न हो तो उसे छिपाकर रखना चाहिए। - इस दिन अमावस्या रहती है और इस तिथि पर पीपल के वृक्ष को जल अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने पर शनि के दोष और कालसर्प दोष समाप्त हो जाते हैं।

 - किसी भी मंदिर में झाड़ू का दान करें। यदि आपके घर के आसपास कहीं महालक्ष्मी का मंदिर हो तो वहां गुलाब की सुगंध वाली अगरबत्ती का दान करें। -

- घर में स्थित तुलसी के पौधे के पास दीपावली की रात में दीपक जलाएं। तुलसी को वस्त्र अर्पित करें।

- जो लोग धन का संचय बढ़ाना चाहते हैं, उन्हें तिजोरी में लाल कपड़ा बिछाना चाहिए। इसके प्रभाव से धन का संचय बढ़ता है।

                                        

 

 

लक्ष्मीपूजन प्रारंभ

                                        पवित्रकरण :-

पवित्रकरण हेतु बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से स्वयं पर एवं समस्त पूजन सामग्री पर निम्न मंत्र बोलते हुए जल छिड़कें-

' भगवान पुण्डरीकाक्ष का नाम उच्चारण करने से पवित्र अथवा अपवित्र व्यक्ति, बाहर एवं भीतर से पवित्र हो जाता है। भगवान पुण्डरीकाक्ष मुझे पवित्र करें।'

( स्वयं पर व पूजन सामग्री पर जल छिड़कें)

                                          आचमन :-

दाहिने हाथ में जल लेकर प्रत्येक मंत्र के साथ एक-एक बार आचमन करें-

ओम्‌ केशवाय नम-ह स्वाहा (आचमन करें)

ओम्‌ माधवाय नम-ह स्वाहा (आचमन करें)

ओम्‌ गोविन्दाय नम-ह स्वाहा (आचमन करें)

निम्न मंत्र बोलकर हाथ धो लें-

ओम्‌ हृषिकेशाय्‌ नम-ह हस्त-म्‌ प्रक्षाल्‌-यामि।

                                            दीपक :-

शुद्ध घृत युक्त दीपक जलाएँ (हाथ धो लें)। निम्न मंत्र बोलते हुए कुंकु, अक्षत व पुष्प से दीप-देवता की पूजा करें-

' हे दीप ! तुम देवरूप हो, हमारे कर्मों के साक्षी हो, विघ्नों के निवारक हो, हमारी इस पूजा के साक्षीभूत दीप देव, पूजन कर्म के समापन तक सुस्थिर भाव से आप हमारे निकट प्रकाशित होते रहें।'( गंध, पुष्प से पूजन कर प्रणाम कर लें)

                                         स्वस्ति-वाचन :-हिंदी में पढ़े

ॐ! हे पूजनीय परब्रह्म परमेश्वर! हम अपने कानों से शुभ सुनें। अपनी आँखों से शुभ ही देखें, आपके द्वारा प्रदत्त हमारी आयु में हमारे समस्त अंग स्वस्थ व कार्यशील रहें। हम लोकहित का कार्य करते रहें।

ॐ ! हे परब्रह्म परमेश्वर ! गगन मंडल व अंतरिक्ष हमारे लिए शांति प्रदाता हो। भू-मंडल शांति प्रदाता हो। जल शांति प्रदाता हो, औषधियाँ आरोग्य प्रदाता हों, अन्न पुष्टि प्रदाता हो। हे विश्व को शक्ति प्रदान करने वाले परमेश्वर ! प्रत्येक स्रोत से जो शांति प्रवाहित होती है। हे विश्व नियंत्रा ! आप वही शांति मुझे प्रदान करें।

श्री महागणपति को नमस्कार, लक्ष्मी-नारायण को नमस्कार, उमा-महेश्वर को नमस्कार, माता-पिता के चरण कमलों को नमस्कार, इष्ट देवताओं को नमस्कार, कुल देवता को नमस्कार, सब देवों को नमस्कार.

                                               संकल्प :-

दाहिने हाथ में जल, अक्षत और द्रव्य लेकर निम्न वाक्यांश संकल्प हेतु पढ़ें-

( शास्त्रोक्त संकल्प के अभाव में निम्न संकल्प बोलें)

' आज दीपावली महोत्सव- शुभ पर्व की इस शुभ बेला में हे, धन वैभव प्रदाता महालक्ष्मी, आपकी प्रसन्नतार्थ यथा उपलब्ध वस्तुओं से आपका पूजन करने का संकल्प करता हूँ। इस पूजन कर्म में महासरस्वती, महाकाली, कुबेर आदि देवों का पूजन करने का भी संकल्प लेता हूँ। इस कर्म की निर्विघ्नता हेतु श्री गणेश का पूजन करता हूँ।'

                               श्री गणेश पूजन

श्री गणेश का ध्यान व आवाहन-

श्री गणेशजी! आपको नमस्कार है। आप संपूर्ण विघ्नों की शांति करने वाले हैं। अपने गणों में गणपति, क्रांतदर्शियों में श्रेष्ठ कवि, शिवा-शिव के प्रिय ज्येष्ठ पुत्र, अतिशय भोग और सुख आदि के प्रदाता, हम आपका इस पूजन कर्म में आवाहन करते हैं। हमारी स्तुतियों को सुनते हुए पालनकर्ता के रूप में आप इस सदन में आसीन हों क्योंकि आपकी आराधना के बिना कोई भी कार्य प्रारंभ नहीं किया जा सकता है। आप यहाँ पधारकर पूजा ग्रहण करें और हमारे इस याग (पूजन कर्म) की रक्षा भी करें।

( पुष्प, अक्षत अर्पित करें)

                                  स्थापना- (अक्षत)

ॐ भूर्भुवः स्वः निधि बुद्धि सहित भगवान गणेश पूजन हेतु आपका आवाहन करता हूँ, यहाँ स्थापित कर आपका पूजन करता हूँ।

( अक्षत अर्पित करें)पाद्य, आचमन, स्नान पुनः आचमन-

ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेश आपकी सेवा में पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, पुनः आचमन हेतु सुवासित जल समर्पित है। आप इसे ग्रहण करें।  ( यह बोलकर आचमनी से जल एक थाली या बर्तन  में छोड़ दें)

                                           पूजन-

लं पृथ्व्यात्मकम्‌ गंधम्‌ समर्पयामि ।

( कुंकु-चंदन अर्पित करें)

हं आकाशत्मकम्‌ पुष्पं समर्पयामि ।

( पुष्प अर्पित करें)

यं वायव्यात्मकं धूपं आघ्रापयामि ।

( धूप आघ्र्रापित करें)

रं तेजसात्मकं दीपं दर्शयामि ।

( दीपक प्रदर्शित करें)

वं अमृतात्मकं नैवेद्यम्‌ निवेदयामि ।

( नैवेद्य निवेदित करें)

सं सर्वात्मकं सर्वोपचारं समर्पयामि ।

( तांबूलादि अर्पित करें)🅿

                                               प्रार्थना-

हे गणेश ! यथाशक्ति आपका पूजन किया, मेरी त्रुटियों को क्षमा कर आप इसे स्वीकार करें।

                                    श्री लक्ष्मी पूजन-प्रारंभ

                                     1 . ध्यान एवं आवाहन-

( ध्यान एवं आवाहन हेतु अक्षत, पुष्प प्रदान करें)

परमपूज्या भगवती महालक्ष्मी सहस्र दलवाले कमल की कर्णिकाओं पर विराजमान हैं। इनकी कांति शरद पूर्णिमा के करोड़ों चंद्रमाओं की शोभा को हरण कर लेती है। ये परम साध्वी देवी स्वयं अपने तेज से प्रकाशित हो रही हैं। इस परम मनोहर देवी का दर्शन पाकर मन आनंद से खिल उठता है। वे मूर्तमति होकर संतप्त सुवर्ण की शोभा को धारण किए हुए हैं। रत्नमय आभूषण इनकी शोभा बढ़ा रहे हैं। उन्होंने पीतांबर पहन रखा है। इस प्रसन्न वदनवाली भगवती महालक्ष्मी के मुख पर मुस्कान छा रही है। ये सदा युवावस्था से संपन्न रहती हैं। इनकी कृपा से संपूर्ण संपत्तियाँ सुलभ हो जाती हैं। ऐसी कल्याणस्वरूपिणी भगवती महालक्ष्मी की हम उपासना करते हैं।

( अक्षत एवं पुष्प अर्पित कर प्रणाम करें) पुनः अक्षत व पुष्प लेकर आवाहन करें-

हे माता! महालक्ष्मी पूजन हेतु मैं आपका आवाहन करता हूँ। आप यहाँ पधारकर पूजन स्वीकार करें।

( अक्षत, पुष्प अर्पित करें)

                                    2. आसन :- (अक्षत)

भगवती महालक्ष्मी ! जो अमूल्य रत्नों का सार है तथा विश्वकर्मा जिसके निर्माता हैं, ऐसा यह विचित्र आसन स्वीकार कीजिए।

( आसन हेतु अक्षत अर्पित करें)

                                     3. पादय(जल) एवं अर्घ्य :-

ॐ महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपके चरणों में यह पाद्य जल अर्पित है। आपके हस्त में यह अर्घ्य जल अर्पित है।

                                     4. स्नान :-

 (हल्दी, केशर, अक्षतयुक्त जल)

श्री हरिप्रिये ! यह उत्तम गंधवाले पुष्पों से सुवासित जल तथा सुगंधपूर्ण आमलकी चूर्ण शरीर की सुंदरता बढ़ाने का परम साधन है। आप इस स्नानोपयोगी वस्तु को स्वीकार करें।

ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपके समस्त अंगों में स्नान हेतु यह सुवासित जल अर्पित है।

( श्रीदेवी को स्नान कराएँ)

                                  5. लाल रंग का वस्त्र एवं उपवस्त्र :- (वस्त्र)

देवी ! इन कपास तथा रेशम के सूत्र से बने हुए वस्त्रों को आप ग्रहण कीजिए।

ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ विभिन्न वस्त्र एवं उपवस्त्र अर्पित करता हूँ।( श्रीदेवी को वस्त्र व उपवस्त्र अर्पित है)

                                  6. चंदन :- (घिसा हुआ चंदन)

देवी ! सुखदायी एवं सुगंधियुक्त यह चंदन सेवा में समर्पित है, स्वीकार करें।

ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ चंदन अर्पित है।

( चंदन अर्पित करें)

                                 7. पुष्पमाला :- (पुष्पों की माला)

-विविध ऋतुओं के पुष्पों से गूँथी गई, असीम शोभा की आश्रय तथा देवराज के लिए भी परम प्रिय इस मनोरम माला को स्वीकार करें।

ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ विभिन्न पुष्पों की माला अर्पित करता हूँ।( कमल, लाल गुलाब के पुष्पों की माला अर्पित करें)

                               8. नाना परिमल द्रव्य :- (अबीर-गुलाल आदि)

देवी ! यही नहीं, किंतु पृथ्वी पर जितने भी अपूर्व द्रव्य शरीर को सजाने के लिए परम उपयोगी हैं, वे दुर्लभ वस्तुएँ भी आपकी सेवा में उपस्थित हैं, स्वीकार करें।

ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ विभिन्न नाना परिमल द्रव्य अर्पित करता हूँ।( अबीर, गुलाल आदि वस्तुएँ अर्पित करें)

                               9. दशांग धूप :- (सुगंधित धूप बत्ती जलाएँ)

श्रीकृष्णकांते ! वृक्ष का रस सूखकर इस रूप में परिणत हो गया है। इसमें सुगंधित द्रव्य मिला दिए गए हैं। ऐसा यह पवित्र धूप स्वीकार कीजिए।

ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ सुगंधित धूप अर्पित करता हूँ।

( सुगंधित धूप बत्ती के धुएँ को आध्रार्पित करें)

                               10. दीपक :- (घी का दीपक जलाकर हाथ धो लें)

सुरेश्वरी ! जो जगत्‌ के लिए चक्षुस्वरूप है, जिसके सामने अंधकार टिक नहीं सकता तथा जो सुखस्वरूप है, ऐसे इस प्रज्वलित दीप को स्वीकार कीजिए।

ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ यह दीप प्रदर्शित है।

                     11. नैवेद्य :- (विभिन्न मिष्ठान, ऋतुफल व सूखे मेवे आदि)

देवी ! यह नाना प्रकार के उपहार स्वरूप नैवेद्य अत्यंत स्वादिष्ट एवं विविध प्रकार के रसों से परिपूर्ण हैं। कृपया इसे स्वीकार कीजिए। देवी! अन्न को ब्रह्मस्वरूप माना गया है। प्राण की रक्षा इसी पर निर्भर है। तुष्टि और पुष्टि प्रदान करना इसका सहज गुण है। आप इसे ग्रहण कीजिए। महालक्ष्मी! यह उत्तम पकवान चीनी और घृत से युक्त एवं अगहनी चावल से तैयार हैं। इसे आप स्वीकार कीजिए। देवी! शर्करा और घृत में किया हुआ परम मनोहर एवं स्वादिष्ट स्वस्तिक नामक नैवेद्य है। इसे आपकी सेवा में समर्पित किया है। स्वीकार करें।

ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नार्थ नैवेद्य एवं सूखे मेवे आदि अर्पित हैं।

( नैवेद्य अर्पित कर, बीच-बीच में जल छोड़ते हुए निम्न मंत्र बोलें) :-

1. ओम प्राणाय स्वाहा।2. ओम अपानाय स्वाहा।3. ओम समानाय स्वाहा।

4. ओम उदानाय स्वाहा।5. ओम व्यानाय स्वाहा।

इसके पश्चात पुनः आचमन हेतु जल छोड़ें

' हे माता! नैवेद्य के उपरांत आचमन ग्रहण करें।'

निम्न बोलकर चंदन अर्पित करें

ॐ हे माता! करोदवर्तन हेतु चंदन अर्पित है।

                                12. ताम्बूल :- (पान का बीड़ा)

हे माता ! यह उत्तम ताम्बूल कर्पूर आदि सुगंधित वस्तुओं से सुवासित है। यह जिह्वा को स्फूर्ति प्रदान करने वाला है, इसे आप स्वीकार कीजिए।

ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नार्थ ताम्बूल अर्पित करता हूँ।

                               13. दक्षिणा व नारियल :- (द्रव्य व नारियल)

हे जगजननी ! फलों में श्रेष्ठ यह नारियल एवं हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के गर्भ स्थित अग्नि का बीज यह स्वर्ण आपकी सेवा में अर्पित है। आप इन्हें स्वीकार करें। मुझे शांति व प्रसन्नता प्रदान करें।'

 

श्री महालक्ष्मी देवी ! आपको नमस्कार है। द्रव्य दक्षिणा एवं श्रीफल आपको अर्पित करता हूँ।

( श्रीफल दक्षिणा सहित अर्पित करें।)

.(प)   ऊॅं श्री ह्ी श्री महालक्ष्मयै वर वरद श्री हीं श्री ऊॅं ।

(पप)  ऊॅं ह्ीं श्री क्री श्री लक्ष्मी मम गृहे। धन पूरय पूरय, चिंताम दूरय दूरय स्वाहा।

(पपप) आद्य लक्ष्म्यै, विद्यालक्ष्म्यै, कामलक्ष्म्यै, सौभाग्य लक्ष्म्यै, अमृत लक्ष्म्यै, भोगलक्ष्म्य, योग लक्ष्म्यै, सत्य लक्ष्म्यै यथा अष्ट लक्ष्म्यैनमः। सर्व दारिद्रय विनाशिनी च सर्व समृद्धि सौभाग्यं देहि मे नम |          14. आरती :- (कपूर की आरती)

-' हे माता ! केले के गर्भ से उत्पन्न यह कपूर आपकी आरती हेतु जलाया गया है। आप इस आरती को देखकर मुझे वर प्रदान करें।'

श्री महा लक्ष्मी सरस्वती महाकाली देवी आपको नमस्कार है। कपूर निराजन आरती आपको अर्पित है।

( आरती उतारें, आरती लें व हाथ धो लें।)

                                 15 लक्ष्मीजी की आरती

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता ।

तुमको निसिदिन सेवत, हर-विष्णु विधाता ॥ॐ जय...॥

उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग माता ।

सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥ॐ जय...॥

दुर्गारूप निरंजनि, सुख-संपत्ति दाता ।

जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॥ॐ जय...॥

तुम पाताल निवासिनि तुम ही शुभदाता ।

कर्मप्रभाव प्रकाशिनी भवनिधि की त्राता ॥ॐ जय...॥

जिस घर तुम रहती तहं, सब सद्गुण आता ।

सब संभव हो जाता, मन नहिं घबराता ॥ॐ जय...॥

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता ।

खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता ॥ॐ जय...॥

शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षिरोदधि जाता ।

रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहिं पाता ॥ॐ जय...॥

महालक्ष्मी की आरती, जो कोई नर गाता ।

उर आनंद समाता, पाप उतर जाता ॥ॐ जय...॥

आरती करके शीतलीकरण हेतु जल छोड़ें।

( स्वयं व परिवार के सदस्य आरती लेकर हाथ धो लें।)

                                 16. पुष्पांजलि :- (सुगंधित पुष्प हाथों में लेकर बोलें)

' हे माता ! नाना प्रकार के सुगंधित पुष्प मैंने आपको पुष्पांजलि के रूप में अर्पित किए हैं। आप इन्हें स्वीकार करें व मुझे आशीर्वाद प्रदान करें।'

ॐ! श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। पुष्पांजलि आपको अर्पित है।

( चरणों में पुष्प अर्पित करें)

                                 17. प्रदक्षिणा :- (परिक्रमा करें)

-' जाने-अनजाने में जो कोई पाप मनुष्य द्वारा किए गए हैं वे परिक्रमा करते समय पग-पग पर नष्ट होते हैं।'ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। प्रदक्षिणा आपको अर्पित है।

( प्रदक्षिणा करें, दंडवत करें)

                                 18. क्षमा प्रार्थना :-

' सबको संपत्ति प्रदान करने वाली माता ! मैं पूजा की विधि नहीं जानता। माँ ! मैं न मंत्र जानता हूँ न यंत्र। अहो! मुझे न स्तुति का ज्ञान है, न आवाहन एवं ध्यान की विधि का पता। मैं स्वभाव से आलसी तुम्हारा बालक हूँ। शिवे ! संसार में कुपुत्र का होना संभव है किंतु कहीं भी कुमाता नहीं होती।

माँ ! नाना प्रकार की पूजन सामग्रियों से कभी विधिपूर्वक तुम्हारी आराधना मुझसे न हो सकी। महादेवी ! मेरे समान कोई पातकी नहीं और तुम्हारे समान कोई पापहारिणी नहीं है। किन्हीं कारणों से तुम्हारी सेवा में जो त्रुटि हो गई हो उसे क्षमा करना। हे माता ! ज्ञान अथवा अज्ञान से जो यथाशक्ति तुम्हारा पूजन किया है उसे परिपूर्ण मानना। सजल नेत्रों से यही मेरी विनती है।'

                                  19. समर्पण :-

हे देवी ! सुरेश्वरी ! तुम गोपनीय से भी गोपनीय वस्तु की रक्षा करने वाली हो। मेरे निवेदन किए हुए इस पूजन को ग्रहण करो। तुम्हारी कृपा से मुझे अभीष्ट की प्राप्ति हो।

महालक्ष्मी के मंत्रऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद्‌ श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मयै नमइस मंत्र का जप करें। मंत्र जप के लिए कमल के गट्टे की माला का उपयोग करें। दीपावली पर कम से कम 108 बार इस मंत्र का जप करें। -

 दीपावली पर श्रीयंत्र के सामने अगरबत्ती व दीपक लगाकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके कुश के आसन पर बैठें। फिर श्रीयंत्र का पूजन करें और कमलगट्टे की माला से महालक्ष्मी के

 मंत्र   : ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद्‌ श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मयै नम : का जप करें.

 

 

श्री सूक्तं

ॐ हिरण्य वर्णां हरिणीं सुवर्ण रजत स्त्रजाम्।

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह। 1

ॐ तां म आ व ह जात वेदो लक्ष्मी मनप गामिनीम्

यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं परुषानहम।। 2

 ॐ अश्व पूर्वां रथ मध्यां हस्ति ना द्प्रमोदिनिम। 
                 
श्रियं देविमुप हवये श्रीर्मा देवी जुस्ताम।। 3

 ॐ कां सोस्मितां हिरण्य प्रकाराम आर्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्। 
                    
पद्मे स्थितां पदम वर्णां तामिहोप हवये श्रियम्।। 4

ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्ती श्रियं लोके देवजुस्ताम उदराम्।

तां पद्मिनीमी शरणं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां तवां वृणे | 5

 ॐ आदित्य वर्णे तपसोधि जातो वनस्पतस्तव व्रक्षोथ बिल्वः।

तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्य अलक्ष्मीः।।6

 उपैतु मां देव सखः किर्तिश्च मणिना सह।

प्रादुरोअस्मिन राष्ट्रे अस्मिन् कीर्तिंम वृद्धिम ददातु मे|7

 क्षुत्पि पासा मलां ज्येष्ठम लक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
                  
अभूतिम समृद्धि च सर्वां निर्गुद में गृहात्।।8

गन्ध द्वारां दुराधर्षां नित्या पुष्टां करीषिणीम्।

ईश्वरीं सर्व भूतानां तामिहोप हवये श्रियम्।।9

 मनसः कामम आकूतिं वाचः सत्यम शीमहि।

पशुनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः।।10

 कर्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम।

श्रियम वासय मे कुले मातरं पद्म मालिनीम्।।11

 आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस् मे गृहे।

नि च देवीं मातरं श्रियं वास्य मे कुले।।12

 आद्रॉ  पुष्करिणीं  पुष्टिं पिंग्लाम  पदम मालिनीम्।

चन्द्रां  हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आ वह।। (13

 आद्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेम मालिनीम्।

सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आ वह।। 14

 तां म आवह जातवेदो लक्ष्मी मनप गामिनीम् 

यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्यो अश्र्वान् विन्देयं पुरुषानहम्।। 15

  यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुया दाज्य मन्वहम्।

सूक्तं पञ्चदशर्च च श्रीकामः सततं जपेत्।। 16

 

 

 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्राद्ध की गूढ़ बाते ,किसकी श्राद्ध कब करे

श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चाहिए । पिता जीवित हो तो, गया श्राद्ध न करें । २. मां की मृत्यु (सौभाग्यवती स्त्री) किसी भी तिथि को हुईं हो , श्राद्ध केवल

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहि

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती है | अवि

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा जाता है   | पितृ पक्ष में अपने मित्रगण के मरण तिथि

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक होता है | पितृ श्राद्ध किस देव से स

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामान्य रूप से सभी मंगल कार्यों क

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नारंगी एवं लाल रंग के वस्त्र वस्तुओं का विशेष महत्व है। लाल पुष्प अक्षत रोली कलावा या मौली दूध द

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र हो | - क

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -