दुर्गा --शाप विमोचन ?एक श्लोकी.सप्त श्लोकी एवं लघु दुर्गा सप्तशती
दुर्गा पूजा- किस तिथि ?किस समय?
अष्टमी,चतुर्दशी ,भद्रा, राहुकाल में विशेष .
या सूर्योदय का पहला घंटा, अष्टम घंटा या मध्य रात्रि में करना .
शाप
से मुक्ति के उपाय
सप्त बिना इन मंत्रों
के जप के सप्तशती का पाठ पूर्ण फलदायी नहीं होता।
शापमोचन मंत्र
"ॐ ह् सौं हस करी हुम से ॐ ह्रीं ह्रीं सौं क्षम्ल प्लीं डम्ल क्ष्फ क्षां क्षीं क्षं क्ष क्षी कन्याभि राक्षिप्त षट् कर्माणि त्रोटय त्रोटय, सप्त-शन्मन्त्राणि जाग्रय जाग्रय, क्रौञ्च वशिष्ठयो श्च शाप निवृत्तिं कुरु कुरु, मोचय मोचय, हुँ फट् स्वाहा।"
ब्रह्म वशिष्ठ शापाद विमुक्त भव .
उत्कीलन मंत्र
"ॐ क्लीं ह्रीं क्लीं विशुद्ध ज्ञान देहाय त्रिवेदी दिव्य-चक्षुषे
श्रेय प्राप्ति निमिते नमः। सोमार्द्ध-धारिणे ह्रीं ऐं स्वाहा॥"
लघु सप्तशती (मार्कण्डेय ऋषि कृत) का पाठ करें।
इससे दुर्गा सप्तशती पाठ करने का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
दुर्गा सप्तशती - "एक श्लोकी सप्तशती" -
"या अंबा मधु कैटभ प्रमथिनी,
या माहिष उन्मूलिनी, या धूम्रेक्षण चण्ड मुंड मथिनी,
या रक्त बीजाशिनी, शक्तिः शुंभ निशुंभ दैत्य दलिनी, या सिद्ध लक्ष्मी: परा, सा दुर्गा नवकोटि विश्व सहिता, माम् पातु विश्वेश्वरी।"
सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र
शिव उवाच:
देवि त्वं
भक्त सुलभे सर्व कार्य विधायिनी ।
कलौ हि कार्य
सिद्ध्यर्थम उपायं ब्रूहि यत्नतः ॥
देव्युवाच:
शृणु देव
प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्ट साधनम् ।
मया तवैव
स्नेहेनाआप्यम्बा स्तुतिः प्रकाश्यते ॥
विनियोग:
ॐ अस्य श्री
दुर्गा सप्त श्लोकी स्तोत्र मन्त्रस्य नारायण ऋषिः,
अनुष्टुप
छन्दः,
श्रीमहाकाली महालक्ष्मी
महासरस्वत्यो देवताः, श्री दुर्गाप्रीत्यर्थं सप्त श्लोकी दुर्गा
पाठे विनियोगः ।
ॐ ज्ञानिना मपि
चेतांसि देवी भगवती हिसा ।
बलाद आकृष्य
मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥1॥
दुर्गे
स्मृता हरसि भीतिम शेष जन्तोः
स्वस्थैः
स्मृता मति मतीव शुभां ददासि ।
दारिद्र्य दुःख
भय हारिणि त्वदन्या
सर्वोपकार करणाय
सदार्द्र चित्ता ॥2॥
सर्व मंगल मंगल्ये
शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये
त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते ॥3॥
शरणागत दीनार्त
परित्राण परायणे ।
सर्वस्यार्ति
हरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते ॥4॥
सर्वस्वरूपे
सर्वेशे सर्व शक्ति समन्विते ।
भयेभ्य स्त्राहि
नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते ॥5॥
रोगान शोषान पहंसि
तुष्टा रूष्टा
तु कामान्
सकलान भीष्टान् ।
त्वाम आश्रितानां
न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता
ह्माश्रयतां प्रयान्ति ॥6॥
सर्वा बाधा प्रशमनं
त्रैलोक्यस्य अखिलेश्र्वरि ।
एवमेव त्वया
कार्यमस्यद वैरि विनाशनम् ॥7॥
॥ इति
श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा जगदम्बा अर्पणम अस्तु ॥
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लघु सप्तशती प्रारंभ
"ॐ वीं वीं वीं वेणु हस्ते स्तुति विध
वटुके ,हां तथा तान माता स्वानन्दे नन्द रूपे, अविहत निरुते भक्तिदे मुक्तिदे
त्वम्।
हंसः सोहं विशाले वलय गति हसे सिद्धिदे वाममार्गे ह्रीं ह्रीं ह्रीं सिद्ध लोके कष कष विपुले वीरभद्रे नमस्ते॥"
"ॐ ह्रींकारं चोच्चरन्ती ,मम हरतु भयं ,चर्म मुण्डे प्रचण्डे, खां खां खां खड्ग पाणे ध्रक ध्रक ध्रकिते ,उग्र रूपे स्वरूपे।
हुं हुं हुंकार नादे ,गगन भुवि तथा व्यापिनी ,व्योम रूपे हं हं हंकार नादे सुरगण नमिते राक्षसानां निहंत्री॥"
"ऐं लोके कीर्तयन्ति, मम हरतु भयं ,चण्ड रूपे नमस्ते ,घ्रां घ्रां घ्रां घोररूपे घ घ घ घ घसिते घर्घरे घोर रावे।
निर्मांसे काक जङ्घे, घसित नख नखा धूम्र नेत्रे त्रिनेत्रे, हस्ताब्जे शुल मुण्डे कल कुल कुकुले श्रीमहेशी नमस्ते॥"
"क्रीं क्रीं क्रीं ऐं कुमारी, कुह कुहमखिले कोकिलेम अनुरागे ,मुद्रा संज्ञत्रि रेखां कुरु कुरु सततं श्रीमहामारी गुह्ये।
तेजोंगे सिद्धि नाथे, मन उपवन चले नैव आज्ञा निधाने
ऐंकारे रात्रि मध्ये शयित पशु जने तंत्र कांते नमस्ते॥"
"ॐ व्रां व्रीं व्रुं व्रूं कवित्ये, दहन पुरगते रुक्म रूपेण चक्रे, त्रिः शक्त्या युक्त वर्णादिक ,कर नमिते दादिवं पूर्ण वर्णे।
ह्रीं स्थाने कामराजे ,ज्वल ज्वल ज्वलिते ,कोशितै अस्तास्तु पत्रे, स्वच्छदं कष्ट नाशे सुरवर वपुषे गुह्य मुंडे नमस्ते॥"
"ॐ घ्रां घ्रीं घ्रूं ,घोर तुण्डे घ घ घ घ घ घ घे घर्घर अन्यांघ्रि घोषे ,ह्रीं क्री द्रं द्रौं च चक्र र र र र रमिते. सर्व बोध प्रधाने।
द्रीं तीर्थे द्रीं त्यज्येष्ठ ,जुग जुगज जुगे ,म्लेच्छदे काल मुण्डे सर्वाङ्गे, रक्त घोरा मथन करवरे वज्र दण्डे नमस्ते॥"
"ॐ क्रां क्रीं क्रूं,वाम भित्ते गगन गड गड़े गुह्ययो अन्याहि मुण्डे, वज्राङ्गे वज्र हस्ते सुरपति वरदे मत्त मातङ्ग रूढे।
सुतेजे शुद्ध देहे ल ल ल ल ललिते ,छेदिते पाश जाले, कुण्डल्य आकार रूपे वृष वृषभ हरे ऐन्द्रि मातर्नमस्ते॥"
"ॐ हुं हुं हुंकार नादे ,कष कष वसिनी ,माँसि वैताल हस्ते ,सुंसिद्धर्षैः सुसिद्धिर्ढ ढ ढ ढ ढ ढ ढ़ः सर्वभक्षी प्रचन्डी।
जूं सः सौं, शांति कर्मे मृत मृत निगडे निःसमे, सीसमुद्रे देवि त्वं साधकानां भव भय हरणे भद्रकाली नमस्ते॥"
"ॐ देवि त्वं तुर्य हस्ते. कर धृत परिघे, त्वं वराह स्वरूपे, त्वं चेंद्री त्वं कुबेरी त्वमसि च जननी त्वं पुराणी महेन्द्री।
ऐं ह्रीं ह्रीं कार भूते, अतल तल तले भूतले, स्वर्ग मार्गे पाताले ,शैल भृङ्गे हरि हरभुवने सिद्धि चंडी नमस्ते॥"
"हँसि त्वं शौंड दुःखं शमित, भव भये सर्व विघ्नान्त कार्ये ,गां गीं गूं गैंषडंगे गगन गटि तटे सिद्धिदे सिद्धि साध्ये।
क्रूं क्रूं मुद्राग जांशो गस पवन गते त्र्यक्षरे वै कराले
ॐ हीं हूं गां गणेशी गज मुख जननी त्वं गणेशी नमस्ते॥"
**अंत में, जल लेकर उसे पृथ्वी पर छोड़े
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