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अंगूठे के पास से जल तर्पण (पितरों को) का रहस्य क्या है ? (संदर्भ ग्रन्थ –नित्य कर्म पूजा प्रकाश )

    अंगूठे के पास से जल तर्पण (पितरों को) का रहस्य क्या है   ? (संदर्भ ग्रन्थ –नित्य कर्म पूजा प्रकाश ) हमारी हथेली में देव,.पितृ,ऋषि आदि 5 प्रकार के पूज्य वर्ग के   नियत स्थान है | तर्पण(तिलक,यव.जल) कार्य दोनों हाथो से किया जाता है |यह दैनिक रूप से पित्री,देवता,एवं ऋषि वर्ग को दिया जाता है |उनके प्रति श्रद्ध एवं आभार   स्वरूप ,अपने भावी कल्याण के लिए | - श्राद्ध कर्म के समय पितरों का तर्पण भी किया जाता है “ पिंडों पर अंगूठे के माध्यम से जलांजलि” दी जाती है। -क्योकि पौराणिक निदेश- पितृ तीर्थ से होता हुआ जल जब अंगूठे के माध्यम से पिंडों तक पहुंचता है तो पितरों की पूर्ण तृप्ति होती है। -क्योकि तर्जनी (पहली उंगली) और अंगूठे के बीच के स्थान को पितृतीर्थ (पितरों का निवास ,आश्रय स्थल )कहते हैं। इस स्थान से   पितरों को जल अर्पित किया जाता है। पितृ तीर्थ( पितरों की प्रतीकात्मक उपस्थिति ) दक्षिण दिशा की और मुख कर तर्पण कार्य पितरों की प्रसन्नता के लिए किया जाता है | इसलिए पितरों का तर्पण करते समय अंगूठे के माध्यम से जल देने का नियमन किया गया   है। अंगूठे से पितरों को जल देन

श्राद्ध :त्रेता(द्वापर:श्राद्ध - 864000वर्ष+ :त्रेता 1296,000वर्ष=20,60,000 पूर्व ) में भी प्रचलित था |

  श्राद्ध :त्रेता(द्वापर:श्राद्ध   - 864000वर्ष+ :त्रेता 1296,000वर्ष=20,60,000 पूर्व ) में भी प्रचलित था |   (नारद पुराण) भगवान श्रीराम जब पितृ तीर्थ गया जी के रुद्र पद में गए थे | भगवान श्रीराम जब पितृ , मनु /कालान्तर दशरथ   जी   को पिंडदान करने लगे । गोलोक वासी महाराजा दशरथ स्वर्ग से उपस्थित हुए “भगवान श्रीराम से हाथ फैलाए हुए कहा “मेरे हाथो में ये पिंड दो “ | श्री राम ने अनसुना करते हुए हाथो में पिंडदान नहीं किया | दशरथ रोकते रहे परन्तु श्री राम ने उस पिंड को रुद्रपद पर ही रख दिया। महा राजा दशरथ जी ने कहा ‘है पुत्र तुम्हारे इस कार्य से मोह्वाशत पितृलोक से अब मेरा उद्धार हो गया एवं मुझे रुद्रलोक की प्राप्ति हुई है। मैं तुमको आशीर्वाद देताहूँ की-तुम अनंत काल तक राज्य , प्रजा का पालन करोगे तथा जीवन काल में यज्ञों का अनुष्ठान करने से विष्णु लोक को में रहोगे । अयोध्या के सभी नागरिक , पशु पक्षी विष्णु लोक जाएंगे।   देवव्रत भीष्म से उनके पिता शांतनु ने पिंड माँगा - -सर्वप्रथम श्राद्ध कर्म ज्ञान किसे हुआ ? ( महाभारत-अनुशाशन पर्व) ऋषि अत्रि के नाम का उल्लेख मिलता है | -किसके

त्रेता में श्राद्ध भोज-देवी सीता ने परोसा ,स्वसुर दशरथ उपस्थित

  त्रेता में श्राद्ध भोज-देवी सीता ने परोसा ,स्वसुर दशरथ उपस्थित (श्राद्ध में पितर उपस्थित होते है |गरुण पुराण ) पक्षीराज गरुड़ ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा- हे प्रभु ! लोग पितरों का श्राद्ध भोज   करते है| क्या पितृ लोक से आकर श्राद्ध में भोजन करते पितर के दर्शन किसी को हुए है? भगवान श्रीकृष्ण - हे गरुड़ ! तुम्हारी शंका समाधान के लिए त्रेता की घटना   सुनिए | पुत्र के वियोग   में महाराजा दशरथ निष्प्राण हो गए | संयोग वश ,वनवास काल में श्राद्ध पक्ष में   श्रीराम ने पुष्कर तीर्थ में पुष्कर में पहुँच गए | पिता का श्राद्ध का उत्तम अवसर था,इसलिए राम ने श्राद्ध क्रिया संपन कर भोज की सामग्री एकत्र की |देवी सीता ने जी ने भोजन तैयार किया| फल को सिद्ध करके श्रीराम जी के सामने उपस्थित किया -‘कुतुप मुहूर्त ‘ दिन का आठवां मुहूर्त अथवा दोपहर हो चुकी थी| निमंत्रित ऋषि पधार चुके थे| सीता देवी भोजन परोसने लगी |भोजन परोसते –परोसते अचानक ही सीता जी , वहां से दूर जा लज्जित एवं दुखी भाव से लताओं के मध्य चली गयीं | श्रीराम ने देखा   – ऋषि गण एवं ब्राह्मणों को भोजन परोसते परोसते ,अचानक   सीता जी ए

श्राद्ध पक्ष: कौवों के रूप में आते हैं पितर,भगवन श्री राम का वरदान ?

  श्राद्ध पक्ष: कौवों के रूप में आते हैं पितर,भगवन श्री राम का वरदान   ? त्रेता काल में एक कौवे (देवराज इंद्र के पुत्र जयंत) ने सीता देवी   के पैर में चोंच मार कर   उनके पैर से रुधिर प्रवाह   प्रारंभ कर दिया था |यह देखकर रुष्ट श्रीराम ने अपने बाण से उस कौवे की आंख फोड़ दी थी। देवराज इंद्र के पुत्र जयंत ने अपना परिचय देते हुए ( कौवे केरूप में   )पश्चाताप , खेद एवं क्षमा याचना की ,मर्यादा पुरुषोत्तम   श्रीराम ने वरदान   दिया - ” तुमको जो भोजन देगा उसके पितृ तृप्त होंगे।“ इस घटना के पश्चात् से   कौवों को भोजन खिलाने का प्रचलन   बढ़ गया। -कौओं की विशेषता होती है – 1-हमारी तरह ही दुःख मनाता है , जिस दिन किसी कौए की मृत्यु होती है उस दिन उसका कोई कौआ भोजन नहीं करता है 2- अकेले भोजन कभी नहीं कर , किसी साथी के साथ ही भोजन ग्रहण करता है।एक से अधिक तीन पीढ़ी के पितरो को भी हम आमंत्रित करते है |वे भी एक साथ ही शरद्ध भोजन ग्रहण करते हैं |   -अर्थात कौए को भोजन कराने से पितृ और कालसर्प दोष से भी मुक्ति मिलती है। पौराणिक कथन के अनुसार कौए पक्षी को अमृत का अंश मि

त्रेता में श्राद्ध भोज-देवी सीता ने परोसा ,स्वसुर दशरथ उपस्थित (श्राद्ध में पितर उपस्थित होते है |गरुण पुराण )

 त्रेता में श्राद्ध भोज-देवी सीता ने परोसा ,स्वसुर दशरथ उपस्थित  (श्राद्ध में पितर उपस्थित होते है |गरुण पुराण )  पक्षीराज गरुड़ ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा- हे प्रभु ! लोग पितरों का श्राद्ध भोज  करते है| क्या पितृ लोक से आकर श्राद्ध में भोजन करते पितर के दर्शन किसी को हुए है? भगवान श्रीकृष्ण - हे गरुड़ ! तुम्हारी शंका समाधान के लिए त्रेता की घटना  सुनिए | पुत्र के वियोग  में महाराजा दशरथ निष्प्राण हो गए | संयोग वश ,वनवास काल में श्राद्ध पक्ष में  श्रीराम ने पुष्कर तीर्थ में पुष्कर में पहुँच गए | पिता का श्राद्ध का उत्तम अवसर था,इसलिए राम ने श्राद्ध क्रिया संपन कर भोज की सामग्री एकत्र की |देवी सीता ने जी ने भोजन तैयार किया| फल को सिद्ध करके श्रीराम जी के सामने उपस्थित किया -‘कुतुप मुहूर्त ‘ दिन का आठवां मुहूर्त अथवा दोपहर हो चुकी थी| निमंत्रित ऋषि पधार चुके थे| सीता देवी भोजन परोसने लगी |भोजन परोसते –परोसते अचानक ही सीता जी , वहां से दूर जा लज्जित एवं दुखी भाव से लताओं के मध्य चली गयीं | श्रीराम ने देखा  – ऋषि गण एवं ब्राह्मणों को भोजन परोसते परोसते ,अचानक  सीता जी एकान्त में जा बैठी |.

कर्ण को म्रत्यु के बाद श्राद्ध भोजन दान करना पड़ा (महाभारत) महाभारत कालीन , सूर्यपुत्र योद्धा कर्ण की मृत्यु होने के बाद , कर्ण का मृत्यु संस्कार भगवान् श्री कृष्ण द्वारा किया गया |जब कर्ण की आत्मा स्वर्ग पहुंची तो उन्हें बहुत सारा स्वर्ण परोसा गया । कर्ण की आत्मा ने देवराज इंद्र से पूछा मैं स्वर्ण कैसे खा सकता हूं। मुझे भी भोजन में अन्य देवात्माओं की तरह सुस्वद्पूर्ण भोज्य पदार्थ दिए जाना चाहिए । .. . देवता इंद्र ने कर्ण को कहा कि “तुमने अपने जीविन में सदैव ही सोना दान किया |इसलिए जो दान किया वही मिलेगा | अपने पूर्वजों को कभी भी भोजन का दान नहीं दिया। कर्ण ने इंद्र से कहा “जब मुझे यह ज्ञात नहीं था कि मेरे पूर्वज कौन थे तो मै किसको क्या देता ? कर्ण ने विनम्रता पूर्व कातर शब्दों में कहा, प्रभु जो हुआ, वह मेरी मुर्खता अज्ञानता थी, सामाजिक कार्य से विमुख रहा अब इसका क्या उपाय है, जिससे मुझे भी भोजन मिल सके। - इंद्र ने कर्ण की प्रार्थना स्वीकार करते हुए व्यवस्था दी कि आगामी 16 दिन अपने पूर्वजों को स्मरण कर शास्त्रीय विधि से श्राद्ध कर उन्हें उत्तम पकवान आहार दो । कर्ण ने अपने कल्याण एवं तृप्ति के लिए सहर्ष स्वीकार किया ,फलस्वरूप कर्ण को 16 दिन के लिए अपने पितरों की सेवा का अवसर दिया | पितरों को आमंत्रित कर्ण के लिए किया गया | पृथ्वी पर आकर कर्ण ने गाय, ब्राह्मण, साधु-संतो और नारायण की सेवा की और उनको अन्न दान किया। इसके पश्चात् कर्ण स्वर्ग पुनः पहुंचे | 15 दिनों के लिए समस्त पितृ आत्माएं तृप्ति के लिए अपने वंशजो /कुल ,परिवार के घर , कुल से तर्पण और अन्न की अपेक्षा आती हैं। ये ही 16 दिन की अवधि को पितृ पक्ष कालांतर में कहा जाने लगा | इन 16दिनों में पितरों के नाम से तर्पण, यज्ञ, दान आदि करने से पितृदेव प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

              कर्ण को म्रत्यु के बाद श्राद्ध भोजन दान करना पड़ा (महाभारत) महाभारत कालीन , सूर्यपुत्र योद्धा कर्ण की मृत्यु होने के बाद , कर्ण का मृत्यु संस्कार भगवान् श्री कृष्ण द्वारा किया गया | जब कर्ण की आत्मा स्वर्ग पहुंची तो उन्हें बहुत सारा स्वर्ण परोसा गया   । कर्ण की आत्मा   ने देवराज इंद्र से पूछा मैं स्वर्ण कैसे खा सकता हूं। मुझे भी भोजन में अन्य देवात्माओं की तरह सुस्वद्पूर्ण भोज्य पदार्थ दिए जाना चाहिए । .. . देवता इंद्र ने कर्ण को कहा   कि “तुमने अपने जीविन में सदैव ही   सोना दान किया |इसलिए जो दान किया वही मिलेगा | अपने पूर्वजों को कभी भी भोजन का   दान नहीं दिया। कर्ण ने इंद्र से कहा “जब मुझे यह ज्ञात नहीं था कि मेरे   पूर्वज कौन थे तो मै किसको क्या देता ? कर्ण ने विनम्रता पूर्व    कातर शब्दों में   कहा , प्रभु जो हुआ , वह मेरी मुर्खता   अज्ञानता थी , सामाजिक कार्य से विमुख रहा अब इसका क्या उपाय है , जिससे मुझे   भी भोजन मिल सके।   - इंद्र ने कर्ण की प्रार्थना स्वीकार करते हुए व्यवस्था दी कि आगामी 16 दिन अपने पूर्वजों को स्मरण कर शास्त्रीय विधि से   श्राद्ध क

श्राद्ध शब्द वैदिक नहीं परन्तु पितृ कर्म कल्याणकारी अवश्य है |

  श्राद्ध शब्द वैदिक नहीं परन्तु पितृ कर्म कल्याणकारी अवश्य है |                             (अनेकानेक ग्रथो में हजारो वर्ष से वर्णित ) (आज सोशल साईट पर अनर्गल टीका,टिप्पणी, व्यग्य ,उपहास घटना,कथा,चुटकुले बना कर परोसने का प्रमुख विषय - श्राद्ध कर्म विषय है | नास्तिक,धर्म-संस्कार हीन विचार के उत्प्रेरक ,सामाजिक (परम्परा,रीति-रिवाज ) कर्तव्य विहीन वर्ग ,विश्व के विश्व का प्राचीनतम एवं   एक मात्र एसे धर्म जो (विज्ञानं सम्मत भी है ) ग्रह ,नक्षत्रो पर आधारित है (जिनके प्रभाव से चर अचर समस्त जगत प्रभावित है “सनातन धर्म “ ) पर व्यग्य लिख कर अपने अल्प ज्ञान का प्रदर्शन करने में लगा है | उनको ज्ञात नहीं है कि उच्च कोटि के   विज्ञानं सम्मत धर्म में ‘श्राद्ध कर्म “ मृत्यु उपरांत आत्मा की स्थति का ज्ञान प्रदान करता है | विज्ञानं भी आत्मा जैसा कुछ है जो निष्प्राण होने पर निकल जाता है ,मानता है | -श्राद्ध कर्म –पितरों के लिए उनकी तृप्ति,संतुष्टि के लिए वर्णित है परन्तु इसके मूल में महत्वपूर्ण है इस कर्म के द्वारा ,श्राद्ध कर्ता अपनी अनेक -अनेक आपत्ति,विपत्ति,संकट से मुक्ति प्राप्त करता है |