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मांगलिक दोष है या नहीं?विवाह मिलान सर्व दोष परिहार ,




ग्रह मैत्री राशि से लेना स्थूल सतही ,अनुचित |
ज्योतिष ग्रंथों के आधार पर नाड़ी को छोड़कर सभी दोषों का परिहार केवल राशि के स्वामी में मित्रता ,लग्नेश के स्वामी मित्रता, नवांश राशि के स्वामी में मित्रता होने पर परिहार हो जाता है |- 
राशि लगभग 60 घंटे अबधि की होती है । राशि अर्थात  समूह Group ,दो से अधिक नक्षत्र का समूह।जैसे मेष राशिअश्वनी,भरणी एवं कृत्तिका नक्षत्र का आधा भाग।
 जब नक्षत्र ले रहे तो उसका स्वामी भी लेना चाहिए।प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं । 06 घंटे लगभग एक चरण की अवधि होगी ।


नक्षत्र का स्वामी पृथक होता है और उसके चारों चरणों के स्वामी भी पृथक पृथक होते हैं।

विशेष-   जन्म नक्षत्र के द्वारा अभी तक किसी भी सॉफ्टवेयर में ,जन्म नक्षत्र के स्वामी कौन हैं ?नक्षत्र के चरणों के स्वामी कौन हैं?,गणना नहीं की जाती है ।न ही ज्योतिषियों का अधिकांश क्षत्र के चरणों के आधार पर मैत्री का प्रयोग करता है |

ग्रह मैत्री जैसी बड़ी बात को राशि का आधार पर लिया जाता है | इसकी तुलना में जब नक्षत्र के चरणों के स्वामी को ,ग्रह मैत्री के लिए प्रयोग किया जाना उचित है।सिद्धांत है कि अंतिम निर्णय नवमांश द्वारा  करना चाहिए |


भकूट विचार  नक्षत्र दोष विचार
वर-कन्या की एक ही राषि होने पर अत्यन्त शुभ होता है। सद्भकूट सभी दोषों को नाष करने वाला होता है। सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर एक राशि के चार भेद होते हैं।
1.    एक ही राषि व नक्षत्र अंतर/भेद |
2.    एक ही नक्षत्र किन्तु राशि अंतर/भेद|
3.    राशि व नक्षत्र एक किन्तु चरण अंतर/भेद|
4.    परन्तु एक ही राशि और एक ही चरण।

इन चार प्रकार के भेदों में समान राशिसमान नक्षत्र तथा समान नक्षत्र चरण हों तो त्याज्य है।
प्रमाण
दम्पत्योरेकनक्षत्रे भिन्न्पादेशुभावहम्।
दम्पत्योरेकपादे तु वर्षान्ते मरणं ध्रुवम।।                     
कालनिर्णय
रोहिणीआद्र्रापुष्यमघाविषाषाश्रवणउत्तरा भाद्रपद तथा रेवती आदि 8 नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र वर-वधु का हो तो एक नक्षत्र का दोष नहीं होता।
प्रमाण - रोहिण्याद्र्रा मछेन्द्राग्मोविषिषा-श्रवण-पौष्णमम्।
              उत्तरा प्रोष्ठपाच्चैव नक्षत्रैपयेपि शोभनाः।।
ज्योतिर्निबन्ध
(तुलामकर), (वृषसिंह), (मेषकर्क), (मिथुन,मीन), (धनु,कन्या) एवं (कुंभ व वृष्चिक) राषियां वर कन्या की होने पर शुभ होते हुए भी दरिद्रता कारक हैं।
प्रमाण-     तुला मृगेणाय वृषेण सिहो मेषेण कीटो मिथुनेन मीनः।
          चापेन कन्या घटमेन चालिदौंभाग्येदैन्ये दषतुर्यकेऽस्मिन्।। 
(मुहूर्त दीपक)
उपरोक्त चतुर्थ दषम् का यथासंभव त्याग करना चाहिए।
मैत्र्यां राषिस्वामिनोरंषनाथद्वन्द्वस्यापि स्याद् गणानां न दोषः ।
खेटारित्वं नाषयेत् स˜कूटं खेटप्रीतिष्चापि दूष्टं भकूटम्।।                    
(मुहूर्त चिन्तामणि)

भाषा:- वर और कन्या के राषीष में तथा अंषाधिपतियों में मित्रता होने पर गण-दोष नहीं होताशुभ भकूट होने पर ग्रहों की शत्रुता को नाष  करता है ध् ग्रहों में परस्पर मैत्री होने पर भकूट के दोष को नाष करता है।

शुभ भकूट:-गुण
(1) राषि एक भिन्न्ाचरण वा भिन्न् नक्षत्र इनके गुण -7  
(2) तृतीय एकादष इनके भिन्न् राशि  नक्षत्र एक इनके गुण- 5
(3) प्रीति षडष्टक अथवा द्विद्वदिष वा नव पंचम (इनमें वर दूरत्व योनि शत्रुता होने पर भी)
भकूट के गुण 6 होते हैं।
(ज्योतिषसार)
(6) अशुभ भकूट:-
वर योनि मैत्र व स्त्रीदूरत्व हो तो षडष्टक ,द्विद्वदिष, नवपंचमादि ,दुष्ट कूटों के गुण -4   
(ज्योतिषसार)
(7)        मैत्र्या चोद्वाहनं श्रेष्ठं ह्येकनाडी न चेत्तयोः। 
             राषिपौ वैरभावेऽपि मैत्रो चेत् स्यात्तदंषयोः।।
भाषा:- यदि वरकन्या की राशियों के स्वामी एक ग्रह हो या परस्पर मित्रता हो या दोनों की नाड़ी एक न हो तो दुष्टकूट दोष न  होकर मिलान शुभ होता है।
वर कन्या की एक ही राशि होना श्रेष्ठ हैपरंतु एक ही राशिएक ही नक्षत्र तथा एक ही चरण सर्वथा त्याज्य है।
दम्पत्योरेकनक्षत्रे भिन्न्पादेशुभावहम्।
दम्पत्योरेकपादे तु वर्षान्ते मरणं ध्रुवम।।  !! कालनिर्णय!!
रोहिणीआद्र्रापुष्यमघाविशाषाश्रवणउत्तरा भाद्रपद तथा रेवती आदि 8 नक्षत्रों में वर वधु हो तो एक नक्षत्र का दोष होता ।
   रोणिण्याद्र्रा मछेन्द्राग्मोविशिषा-श्रवण-पौष्णमम्
   उत्तरा प्रोष्ठपाच्चैव नक्षत्रैपयेपि शोभनाः।।
!!ज्योर्तिनिबन्ध!!


मंगल दोष परिहार सिद्धान्त/मांगलिक दोष निवारण स्थितियाँ-

2,4,7,8,12 भाव मे मंगल ,सदैव अमंगलकारी / अशुभ नही-

दांपत्य जीवन :नवमांश कुंडली (प्रकार के  )दाम्पत्य भाग्य को बताती है।

     *यदि लग्न कुंडली में मंगल दूसरे साथ में चौथे आठवें या बारहवें स्थान पर है तो अमंगल कारी स्थिति मानी जाती है परंतु नवमांश कुंडली में इन स्थानों पर नहीं है तो इसका सीधा सा अर्थ है कि उस कुंडली में मंगल दोष नहीं है या अतिसामान्य भय चिंता विहीन है।

मंगल को मांगलिक कहने के पूर्व नवमांश कुंडली का अवलोकन भी अति आवश्यक उल्लिखित है । नवमांश कुंडली लगभग 12 मिनट की होती है ।इस प्रकार एक लग्न कुंडली से नवमांश कुंडली बनेगी।

सभी लग्नो में 2,4,7,8,12 भाव मे मंगल अशुभ नही-

 विभिन्न लग्न में विशेष स्थिति में ही मंगल अशुभ -

जैसे सिंह लग्न में आठवें या बारहवें भाव का मंगल,

कन्या लग्न में चतुर्थ सप्तम भाव का मंगल ,

तुला लग्न में बारहवें भाव का मंगल,

वृश्चिक लग्न में अष्टम या द्वादश भाव का मंगल ,

मीन लग्न में आठवें या बारहवें भाव का मंगल ,

अशुभ होता है। सभी स्थानों पर मंगल अशुभ नही होता।



26 वर्ष ,26 गुण एवं अनेक स्थिति में मंगल अशुभ नही-(निर्दोषनिष्प्रभावी मंगल के नियम



कंप्यूटर द्वारा निर्मित कुंडली निश्चय ही हाथ से बनी हुई कुंडली की तुलना में श्रेष्ठ एवं सत्यता के निकट है । क्योंकि इसमें गणना की त्रुटि की कोई संभावना नहीं है । 
कंप्यूटर के सॉफ्टवेयर के द्वारा कुंडली मिलान की जानकारी मोटे तौर पर या सामान्यता तो ठीक है परंतु सटीक एवं सत्यता के निकट कोई विशेष अर्थ नहीं रखती । नियम,उपनियम अपवाद समावेशित नहीं |         

मंगल की अंमंगलता को निष्प्रभावी करने वाली स्थितयां-
इतनी स्थितया है मांगलिक मंगल कि औचित्य हींनत प्रतीत होगी एवं  अधिक आयु मे देखना सोचना ही व्यर्थ है |



जन्म कुंडली में मंगल अकेला ग्रह नहीं होता अन्य 08  ग्रह भी  होते हैं उनकी उपस्थिति भी मंगल के अशुभ प्रभाव को समाप्त करने के लिए पर्याप्त होती है ।



1 -26 से अधिक गुण मिलते हो तो मंगल का दोष नहीं लगता

2-  26 वर्ष के आयु हो जाए तो मंगल का दोष लगभग समाप्त होता है 3- जन्म कुंडली में मंगल वक्री ,अस्त हो.

4- वर कन्या की राशि के स्वामी आपस में मित्र हो तो मंगल दोष नहीं होता .

5-नवांश राशियों के स्वामियों में मित्रता हो तो भी मंगल दोष नहीं माना जाता या वर कन्या दोनों की राशि जैसे वृषभ मिथुन कन्या तुला मकर कुंभ हो तो भी मंगल दोष निष्प्रभावी होता है 

6-  कन्या की कुंडली में जिस भाव में मंगल हो वर की कुंडली में भी उसी भाव में पापी ग्रह अर्थात सूर्य शनि राहु केतु हो तो मंगल का दोष समाप्त हो जाता है ।



अर्थात मंगल के दोष को समाप्त करने के लिए सूर्य शनि राहु केतु भी यदि साथी की कुंडली में हैं उन्हीं स्थितियों में तो यह दोष समाप्त हो जाता है।

7-  दूसरे भाव में चंद्रमा शुक्र हो

8- मंगल गुरु साथ हो अथवा गुरु की पूर्ण दृष्टि हो ।

9- केंद्र में राहु हो अथवा मंगल राहु की युति हो तो भी मंगल दोष प्रभावी नहीं होता ।

10- केंद्र या त्रिकोण में शुभ ग्रह हो चंद्र बुध गुरु शुक्र एवं 3,6,11 ग्यारहवें भाव में पाप ग्रह शनि सूर्य राहु हो ।

11-  सप्तमेश कुंडली में अपनी राशि याहो या उच्च का हो तो मंगल दोष नहीं रहता ।

12 - जिस भाव में मंगल बैठा है उस भाव का स्वामी ज्योतिष की दृष्टि से बलवान हो या उसी भाव में बैठा होउस भाव पर उसकी दृष्टि पड़ रही हो ।

13 सप्तमेश या शुक्र दोनों में से कोई तीसरे भाव में बैठा हो तो मंगल दोष नहीं होता है ।

14 उच्च का गुरु लग्न में स्थित हो तो भी मंगल दोष निष्प्रभावी माना गया है।
15- 1,4,7 10 ,5 9 भाव में शुभ ग्रह होएवं सातवें भाव में सप्तमेश  , मंगल दोष नहीं होता है।
16-1,4,7,8 ,12 भाव में मंगल यदि मेष ,कर्क ,मकर का हो तो मंगल दोष नहीं होता है।
17   -ज्योतिष शास्त्र के प्रमुख नियम के अनुसार फलित ज्योतिष के महान ग्रंथों का कहना है जो ग्रह अपनी उच्च मूल्य त्रिकोण स्वराशि मित्र राशि नवांश में स्थित हो या वर्गोत्तम हो शर्डबली हो शुभ ग्रहों से दृष्ट हो वे सदैव शुभ फलदायक होते हैं
18-  जातक पारिजात प्रसिद्ध ग्रंथ- में स्पष्ट इस प्रकार का उल्लेख है पाप ग्रह भी यदि स्व ,उच्चमित्र राशि ,नवांश ,वर्गोत्तम ,शुभ दृष्ट हो तो शुभ कारक होते हैं.
इस प्रकार जन्म कुंडली के 1,4,7,8 बारहवें भाव में स्थित मंगल यदि मेषवृश्चिक ,मकर ,धनु ,मीन राशि आदि मित्र राशियों पर या नवांश का ,वर्गोत्तम, shadbali  हो तो मांगलिक दोष नहीं ।
19 - मंगल 1478 12 भाव में वर्गोत्तम हो या मंगल पर बलवान शुभ ग्रह की दृष्टि हो आदि स्थिति में मंगल दोष का विचार व्यर्थ है .
20-मांगलिक दोष का विचार भाव कुंडली से भी करना आवश्यक होता है क्योंकि ,चलित कुंडली में संधि स्थान पर स्थित मंगल भाव से संबंधित फल शून्य होता है सप्तम भाव का स्वामी बलवान हो एवं अपने भाव को पूर्ण दृष्टि से देख रहा हो तो भी मंगल दोष का प्रभाव समाप्त हो जाता है।।


लग्नो में मंगल शुभकारी-

लग्न के आधार पर भी अनेक स्थितियां मंगल के प्रभाव को या मंगल के कुप्रभाव से परे होती हैं –


 जिनमें मंगल अशुभ हो ही नहीं सकता जैस-

1-मेष लग्न में मंगल हो।

2- सिंह लग्न में चौथे भाव में वृश्चिक राशि में ,मंगल का दोष नहीं होगा .

3-कर्क लग्न में सप्तम भाव में मकर का मंगल .

4-धनु लग्न में अष्टम भाव में कर्क का मंगल.

5- मकर लग्न में धनु राशि का 12 स्थान में मंगल .

6-वृश्चिक लग्न में सप्तम भाव में वृष राशि का मंगल

7-मिथुन लग्न में द्वादश भाव में वृष राशि का मंगल या अष्टम भाव में मकर राशि का मंगल 

8-कन्या लग्न में अष्टम भाव में मेष राशि या द्वादश भाव में सिंह राशि का मंगल .
9-तुला लग्न में लग्नेश सप्तम मेष राशि का मंगल .
यह सब मंगल के अशुभ प्रभावों को नकारते हैं अर्थात मंगल के अशुभ प्रभाव रोक देते हैं ।
10-  इसके अतिरिक्त मंगल अस्त ,संधि गत नीच हो .
11-.  गुरु राहु से दृष्ट या उनकी युति वाला हो तो भी मंगल दोष की बात करना ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार तर्कसंगत नहीं है अर्थात व्यर्थ है.
      

 (1976 से सक्रीय रूप से ज्योतिष में हूँग्रंथ एवं अनुभव  के आधार पर लिखता हूँ कि ,प्रत्येक ग्रह की फल देने की अवधि निर्धारित है। बड़ी उम्र में मंगल दाम्पत्य में बाधक नही होता हैं

कुंडली मे जब तक बिष कन्या,विधुूरता,आकस्मिक आयु हानि योग या मृत्यु योग नही होंगेया मारक मंगल या मारकेश की स्थिति गोचर में नही होगी तब तक मंगल कुछ नही कर सकता।)

Pt. V K Tiwari   Astrologer Vastu
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विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -