सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

-दुर्लभ मंत्र : आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा




स्वयं प्रयोग करिए |सरल सटीक फलदायी-परेशान हें तो ग्रह नियंत्रण -दुर्लभ मंत्र : केवल10 मिनट 

ज्ञातव्य-अपने इष्ट देव ,कुल देवता ,कुल देवी ओर गुरु के मंत्र पराभव शील होते हें ,परंतु ग्रहों के मंत्रो जितना प्रभाव (कष्ट,बाधा,परेशानियों को रोकने के लिए)तुलनात्मक रूप से नहीं होता हे |


ध्यातव्य-

1-सर्वप्रथम प्रतिदिन अपने पूर्वजो का स्मरण कर उनसे याचना सुख समृद्धि प्रगति की करना चाहिए | अन्यथा ये रुष्ट होकर बाधक होते हें |

2-पितर स्मरण पश्चात दिन विशेष मे उस से संबन्धित  ग्रह विशेष (जेसे शुक्र की शुक्रवार को )मंत्र पढ्न चाहिए |

3- दान करने के पूर्व ज्ञात हो की वह ग्रह अनिष्टकारी है या नहीं |यदि अनिष्टकारी नहीं तो दान नहीं करे |

4- मंत्र प्रिंट कर अपने पूजा कक्ष मे लगा ले |

5- यदि संस्कृत भाषा पर अधिकार हे तो वेदिक मंत्र का भी प्रयोग कर सकते हें | दोनों प्रभावी उपलब्ध हें लेख मे |

6- जिस ग्रह की अंतर्दशा या प्रत्यंतर दशा चल रही हो उसका मंत्र अवश्य पढ़्ना चाहिए |

7- दिन से संबन्धित ग्रह का मंत्र, कई समस्याओं को आने से पहले रोक देता है |

(अशुभ ग्रह को प्रसन्न करने का मंत्र – ब्रह्माण्डपुराणोक्त या वेदिक कोई एक मंत्र प्रयोग करिए |)

अनिष्ट कारी  ग्रह  के मंत्र स्वयं पढे ,ग्रह प्रसन्न करे |

मंत्र  पढ़ने का श्रेष्ठ समय-

1-प्रातः पूर्व 4.30 से 09।:बजे तक |

2- दोपहर -11.30-01तक;

3-सूर्यास्त से 48 मिनट पूर्व से 48 मिनट पश्चात तक |

4-रात्रि 11:45-01:00 के मध्य |

मंत्र संख्या -01-05,11.21.54.108 मे से कोई भी |

ब्रह्माण्ड पुराण मे ग्रहों के मंत्र लिखे हैं जो शीघ्र फल देते हैं |आपके लिए कौनसे ग्रह के मंत्र पढ्ना उचित होगा | वेदिक मंत्र भी सुलभ हें |

मंत्र पढ़ने से पूर्व-

1-दीपक जलाए ,उसको नमस्कार करे | इसके बाद ,हाथ धो ले |

2-पूर्व की ओर मुह कर हाथ मे जल लेकर अपना नाम ,पिता का नाम ,स्थान नाम लेकर अपनी परेशानी वर्णन  करते हुए, जिस ग्रह का मंत्र पढे –“हे देव आपकी कृपा के लिए यह मंत्र पढ़ रहा हूँ “-बोल कर हथेली का जल पृथ्वी पर छोड़ दे |

1-खंड अ-

!- आपके लिए कौन से  मंत्र हें या आप किन मंत्रों का प्रयोग करे -                                                  लग्न- वृष,मिथुन,कन्या,तुला, मकर,कुम्भ(2,3,6,7,10,11,) लग्न मे जन्म हुआ हो तो या राशि ज्ञात हो अथवा राशि या लग्न ज्ञात न हो तो इन अपने  नाम अक्षर के प्रथम अक्षर से निम्नलिखित मे कोई एक होने पर –

, ,,वा ,वी, वू ,वे ,वो ,का ,की ,कू ,,, के ,को , पा पी, पू पे,पो, था,ठा ।रा,री,रू, रे ,रो ,ता ,ती ,तू ,ते जा,जी, जू जे, जोखा ,खी, खू ,खे खो ,,गी,गु,गे, गो,,सी,से,सो, ,दी।।


किन मंत्रो को पढे -

 

1-सूर्य(रविवार ) –

ग्रहाणामा दिरात्यो लोक रक्षण कारक:। विषम स्थान सम्भूतां पीडां हरतु मे रवि: ।।

अर्थ-ग्रहों में प्रथम परिगणित, अदिति के पुत्र तथा विश्व की रक्षा करने वाले,

 भगवान सूर्य विषम स्थानजनित मेरी पीड़ा का हरण करें ।।

वेदिक मंत्र -सूर्य- ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च। हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् (यजु. 3343, 3431)

 

2-चंद्रमा-सोमवार -

रोहिणीश: सुधा‍ मूर्ति: सुधा गात्र: सुधाशन:। विषम स्थान सम्भूतां पीडां हरतु मे विधु:

अर्थ-दक्ष कन्या नक्षत्र रूपा देवी रोहिणी के स्वामी, अमृतमय स्वरूप वाले, अमतरूपी शरीर वाले

तथा अमृत का पान कराने वाले चंद्र देव विषम स्थान जनित मेरी पीड़ा  दूर करें ।।

वेदिक मंत्र चन्द्र- ॐ इमं देवा असपत्नं सुवध्यं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय। इमममुष्य पुत्रममुष्ये पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानां राजा।।(यजु. 1018) 

 

 3-मंगल (मंगलवार )-

भूमि पुत्रो महातेजा जगतां भयकृत् सदा। वृष्टि कृद् वृष्टि हर्ता च पीडां हरतु में कुज: ।।

अर्थ-भूमि के पुत्र, महान् तेजस्वी, जगत् को भय प्रदान करने वाले, वृष्टि करने वाले

तथा वृष्टि का हरण करने वाले मंगल (ग्रहजन्य) मेरी पीड़ा का हरण करें ।। ब्रह्माण्डपुराण

वेदिक मंत्र भौम- ॐ अग्निमूर्धा दिव: ककुत्पति: पृथिव्या अयम्। अपां रेतां सि जिन्वति।। (यजु. 312)

 

बृहस्पति –(गुरुवार)

देव मन्त्री विशालाक्ष: सदा लोक हिते रत:। अनेक शिष्य सम्पूर्ण: पीडां हरतु मे गुरु: ।।
अर्थ-सर्वदा लोक कल्याण में निरत रहने वाले, देवताओं के मंत्री, विशाल नेत्रों वाले

तथा अनेक शिष्यों से युक्त बृहस्पति मेरी पीड़ा को दूर करें ।। ब्रह्माण्डपुराण

वेदिक मंत्र गुरु- ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु। यद्दीदयच्छवस ऋतुप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।। (यजु. 263) 

 

राहू- रविवार संध्या  या शनिवार

महाशिरा महावक्त्रो दीर्घदंष्ट्रो महाबल:। अतनुश्चोर्ध्वकेशश्च पीडां हरतु मे शिखी: ।।

अर्थ-महान् शिरा (नाड़ी)- से संपन्न, विशाल मुख वाले, बड़े दांतों वाले, महान् बली, बिना शरीर तथा ऊपर

की ओर केश वाले शिखास्वरूप केतु मेरी पीड़ा का हरण करें।। ब्रह्माण्डपुराण

वेदिक मंत्र राहू - ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृध: सखा। कया शचिष्ठया वृता।। (यजु. 364) 

 

 केतू- सोमवार प्रातः या मंगलवार |

महाशिरा महावक्त्रो दीर्घदंष्ट्रो महाबल:। अतनुश्चोर्ध्वकेशश्च पीडां हरतु मे शिखी: ।।

अर्थ-महान् शिरा (नाड़ी)- से संपन्न, विशाल मुख वाले, बड़े दांतों वाले, महान् बली, बिना शरीर वाले

 तथा ऊपर की ओर केश वाले शिखास्वरूप केतु मेरी पीड़ा का हरण करें।। ब्रह्माण्डपुरा

 वेदिक मंत्र केतु- ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथा:।। (यजु. 2937) 


2-खंड ब-

यदि उक्त उपरिलिखित मे आपकी लग्न,राशि या नाम नहीं हे तो निम्न उपयोगी होंगे| अर्थात आपके लिए कौन से  मंत्र उपयोगी हें या आप किन मंत्रों का प्रयोग करे -                                                 

अ -लग्न- मेष,कर्क,सिंह,वृशिच्क,धनु,मीन (1.4.5.9.12।) लग्न मे जन्म हुआ हो

ब-आपकी राशि  ये राशि ,कर्क,सिंह,वृशिच्क,धनु,मीन ज्ञात हो |

स- अथवा राशि या लग्न ज्ञात न हो तो अपने  नाम के प्रथम अक्षर से निम्नलिखित मे कोई एक होने पर –

कौन मंत्र का प्रयोग करे -  चू ,चे, चू ,ला ,ली लू ले ,लो , हा ,ही हू ,हे हो ,डा ,डी, डू ,डे डो , मा,मी ,मुं, में, मो,टा ,टी,टू , टे,टो, तो ,ना ,नी ,नू ,ने, नो ,या,यू,ये, यो,भा,भी ,भू ,भे, भो, ढा,, दु,दे,दी,था,,,ची,


बुध (बुधवार)

उत्पात रूपो जगतां चन्द्र पुत्रो महाद्युति:। सूर्य प्रिय करो विद्वान् पीडां हरतु मे बुध: ।।

अर्थ-जगत् में उत्पात करने वाले, महान द्युति से संपन्न, सूर्य का प्रिय करने वाले,

विद्वान तथा चन्द्रमा के पुत्र बुध मेरी पीड़ा का निवारण करें ।। ब्रह्माण्डपुराण

वेदिक मंत्र बुध- ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते सं सृजेधामयं च। अस्मिन्त्सधस्‍थे अध्‍युत्तरस्मिन् विश्वे देवा यशमानश्च सीदत।। (यजु. 1554) 

 

 

 शुक्र (शुक्रवार)

दैत्य मन्त्री गुरुस्तेषां प्राणदश्च महामति:। प्रभु: तारा ग्रहाणां च पीडां हरतु मे भृगु: ।।
अर्थ-दैत्यों के मंत्री और गुरु तथा उन्हें जीवनदान देने वाले, तारा ग्रहों के स्वामी,

महान् बुद्धिसंपन्न शुक्र मेरी पीड़ा को दूर करें ।। ब्रह्माण्डपुराण

वेदिक मंत्र शुक्र- ॐ अन्नात्परिस्त्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपित्क्षत्रं पय: सोमं प्रजापति:। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानं  शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु।। (यजु. 1975) 

 

 

शनि (शनिवार)

सूर्य पुत्रो दीर्घ देहा विशालाक्ष: शिवप्रिय:। मन्दचार: प्रसन्नात्मा पीडां हरतु मे शनि: ।।
अर्थ-सूर्य के पुत्र, दीर्घ देह वाले, विशाल नेत्रों वाले, मंद गति से चलने वाले,भगवान्

शिव के प्रिय तथा प्रसन्नात्मा शनि मेरी पीड़ा को दूर करें ।। ब्रह्माण्डपुराण

वेदिक मंत्र शनि- ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्त्रवन्तु न:।। (यजु. 3612)

 

राहू- अनेकरूपवर्णेश्च शतशोऽथ सहस्त्रदृक्। उत्पातरूपो जगतां पीडां हरतु मे तम: ।।

महाशिरा महावक्त्रो दीर्घदंष्ट्रो महाबल:। अतनुश्चोर्ध्वकेशश्च पीडां हरतु मे शिखी: ।।

विविध रूप तथा वर्ण वाले, सैकड़ों तथा हजारों आंखों वाले, जगत के लिए

 उत्पातस्वरूप, तमोमय राहु मेरी पीड़ा का हरण करें ।। ब्रह्माण्डपुराण

 

केतू- महाशिरा महावक्त्रो दीर्घदंष्ट्रो महाबल:। अतनुश्चोर्ध्वकेशश्च पीडां हरतु मे शिखी: ।।

अर्थ-महान् शिरा (नाड़ी)- से संपन्न, विशाल मुख वाले, बड़े दांतों वाले, महान् बली, बिना शरीर वाले

 तथा ऊपर की ओर केश वाले शिखास्वरूप केतु मेरी पीड़ा का हरण करें।। ब्रह्माण्डपुरा

 केतु- ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथा:।। (यजु. 2937) 



टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्राद्ध की गूढ़ बाते ,किसकी श्राद्ध कब करे

श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चाहिए । पिता जीवित हो तो, गया श्राद्ध न करें । २. मां की मृत्यु (सौभाग्यवती स्त्री) किसी भी तिथि को हुईं हो , श्राद्ध केवल

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहि

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती है | अवि

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा जाता है   | पितृ पक्ष में अपने मित्रगण के मरण तिथि

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक होता है | पितृ श्राद्ध किस देव से स

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामान्य रूप से सभी मंगल कार्यों क

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नारंगी एवं लाल रंग के वस्त्र वस्तुओं का विशेष महत्व है। लाल पुष्प अक्षत रोली कलावा या मौली दूध द

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र हो | - क

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -