ज्ञातव्य-अपने इष्ट देव ,कुल देवता ,कुल देवी ओर गुरु के
मंत्र पराभव शील होते हें ,परंतु ग्रहों के मंत्रो
जितना प्रभाव (कष्ट,बाधा,परेशानियों को रोकने के
लिए)तुलनात्मक रूप से नहीं होता हे |
ध्यातव्य-
1-सर्वप्रथम प्रतिदिन अपने पूर्वजो का स्मरण
कर उनसे याचना सुख समृद्धि प्रगति की करना चाहिए | अन्यथा ये रुष्ट होकर बाधक होते हें |
2-पितर स्मरण पश्चात दिन विशेष मे उस से
संबन्धित ग्रह विशेष (जेसे शुक्र की
शुक्रवार को )मंत्र पढ्न चाहिए |
3- दान करने के पूर्व ज्ञात हो की वह ग्रह
अनिष्टकारी है या नहीं |यदि अनिष्टकारी नहीं तो
दान नहीं करे |
4- मंत्र प्रिंट कर अपने पूजा कक्ष मे लगा ले |
5- यदि संस्कृत भाषा पर अधिकार हे तो वेदिक
मंत्र का भी प्रयोग कर सकते हें | दोनों प्रभावी उपलब्ध
हें लेख मे |
6- जिस ग्रह की अंतर्दशा या प्रत्यंतर दशा चल
रही हो उसका मंत्र अवश्य पढ़्ना चाहिए |
7- दिन से संबन्धित ग्रह का मंत्र, कई समस्याओं को आने से पहले रोक देता है |
(अशुभ ग्रह को प्रसन्न करने का मंत्र – ब्रह्माण्डपुराणोक्त या वेदिक कोई एक मंत्र प्रयोग करिए |)
अनिष्ट कारी ग्रह के
मंत्र स्वयं पढे ,ग्रह
प्रसन्न करे |
मंत्र
पढ़ने का श्रेष्ठ समय-
1-प्रातः पूर्व 4.30 से 09।:बजे तक |
2- दोपहर -11.30-01तक;
3-सूर्यास्त से 48 मिनट पूर्व से 48 मिनट पश्चात
तक |
4-रात्रि 11:45-01:00 के मध्य |
मंत्र संख्या -01-05,11.21.54.108 मे से कोई भी |
ब्रह्माण्ड पुराण मे ग्रहों के मंत्र लिखे हैं जो शीघ्र फल देते हैं |आपके लिए कौनसे ग्रह के मंत्र पढ्ना उचित होगा | वेदिक मंत्र भी सुलभ हें |
मंत्र पढ़ने से पूर्व-
1-दीपक
जलाए ,उसको नमस्कार करे | इसके बाद ,हाथ धो ले |
2-पूर्व की ओर मुह कर हाथ मे जल लेकर अपना नाम ,पिता का नाम ,स्थान नाम लेकर अपनी
परेशानी वर्णन करते हुए, जिस ग्रह का मंत्र
पढे –“हे देव आपकी कृपा के लिए यह मंत्र पढ़ रहा हूँ “-बोल कर हथेली का जल पृथ्वी
पर छोड़ दे |
1-खंड अ-
!- आपके
लिए कौन से मंत्र हें या आप किन मंत्रों का
प्रयोग करे -
लग्न- वृष,मिथुन,कन्या,तुला, मकर,कुम्भ(2,3,6,7,10,11,) लग्न मे जन्म हुआ हो तो या राशि ज्ञात हो अथवा राशि
या लग्न ज्ञात न हो तो इन अपने
नाम अक्षर के प्रथम अक्षर से निम्नलिखित
मे कोई एक होने पर –
इ, ए ,ओ ,वा ,वी, वू ,वे ,वो ,का ,की ,कू ,घ ,छ, के ,को , पा पी, पू पे,पो, था,ठा ।रा,री,रू, रे ,रो ,ता ,ती ,तू ,ते जा,जी, जू जे, जो, खा ,खी, खू ,खे खो ,ग,गी,गु,गे, गो,स,सी,से,सो, द,दी।।
किन मंत्रो को पढे -
1-सूर्य(रविवार ) –
ग्रहाणामा आदिरात्यो लोक रक्षण कारक:। विषम स्थान
सम्भूतां पीडां हरतु मे रवि: ।।
अर्थ-ग्रहों में प्रथम परिगणित, अदिति के पुत्र तथा
विश्व की रक्षा करने वाले,
भगवान सूर्य विषम
स्थानजनित मेरी पीड़ा का हरण करें ।।
वेदिक मंत्र -सूर्य- ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो
निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च। हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् (यजु. 33। 43, 34। 31)
2-चंद्रमा-सोमवार -
रोहिणीश: सुधा मूर्ति: सुधा गात्र: सुधाशन:। विषम स्थान सम्भूतां पीडां हरतु मे विधु:
अर्थ-दक्ष कन्या नक्षत्र रूपा देवी रोहिणी के स्वामी, अमृतमय स्वरूप वाले, अमतरूपी शरीर वाले
तथा अमृत का पान कराने वाले चंद्र देव विषम स्थान जनित मेरी पीड़ा दूर करें ।।
वेदिक मंत्र चन्द्र- ॐ इमं देवा असपत्नं सुवध्यं महते
क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय। इमममुष्य
पुत्रममुष्ये पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानां राजा।।(यजु. 10। 18)
3-मंगल –(मंगलवार )-
भूमि पुत्रो महातेजा जगतां भयकृत् सदा। वृष्टि कृद् वृष्टि हर्ता च पीडां हरतु में कुज: ।।
अर्थ-भूमि के पुत्र, महान् तेजस्वी, जगत् को भय प्रदान
करने वाले, वृष्टि करने वाले
तथा वृष्टि का हरण करने वाले मंगल (ग्रहजन्य) मेरी पीड़ा का हरण
करें ।। ब्रह्माण्डपुराण
वेदिक मंत्र भौम- ॐ अग्निमूर्धा दिव:
ककुत्पति: पृथिव्या अयम्। अपां रेतां सि जिन्वति।। (यजु. 3।12)
बृहस्पति –(गुरुवार)
देव मन्त्री विशालाक्ष: सदा लोक हिते रत:। अनेक शिष्य सम्पूर्ण: पीडां हरतु मे गुरु: ।।
अर्थ-सर्वदा लोक कल्याण में निरत रहने वाले, देवताओं के मंत्री, विशाल नेत्रों वाले
तथा अनेक शिष्यों से युक्त बृहस्पति मेरी पीड़ा को दूर
करें ।। ब्रह्माण्डपुराण
वेदिक मंत्र गुरु- ॐ बृहस्पते अति
यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु। यद्दीदयच्छवस ऋतुप्रजात तदस्मासु
द्रविणं धेहि चित्रम्।। (यजु. 26।3)
राहू- रविवार संध्या या शनिवार
महाशिरा महावक्त्रो दीर्घदंष्ट्रो महाबल:। अतनुश्चोर्ध्वकेशश्च
पीडां हरतु मे शिखी: ।।
अर्थ-महान् शिरा (नाड़ी)- से संपन्न, विशाल मुख वाले, बड़े दांतों वाले, महान् बली, बिना शरीर तथा ऊपर
की ओर केश वाले शिखास्वरूप केतु मेरी पीड़ा का हरण करें।।
ब्रह्माण्डपुराण
वेदिक मंत्र राहू - ॐ कया नश्चित्र आ
भुवदूती सदावृध: सखा। कया शचिष्ठया वृता।। (यजु. 36।4)
केतू- सोमवार प्रातः या मंगलवार |
महाशिरा महावक्त्रो दीर्घदंष्ट्रो महाबल:। अतनुश्चोर्ध्वकेशश्च
पीडां हरतु मे शिखी: ।।
अर्थ-महान् शिरा (नाड़ी)- से संपन्न, विशाल मुख वाले, बड़े दांतों वाले, महान् बली, बिना शरीर वाले
तथा ऊपर की ओर केश वाले
शिखास्वरूप केतु मेरी पीड़ा का हरण करें।। ब्रह्माण्डपुरा
वेदिक मंत्र केतु- ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथा:।। (यजु. 29।37)
2-खंड ब-
यदि उक्त उपरिलिखित मे आपकी लग्न,राशि या
नाम नहीं हे तो निम्न उपयोगी होंगे| अर्थात आपके लिए कौन से
मंत्र उपयोगी हें या आप किन मंत्रों का प्रयोग करे -
अ -लग्न- मेष,कर्क,सिंह,वृशिच्क,धनु,मीन (1.4.5.9.12।) लग्न मे जन्म हुआ हो
ब-आपकी राशि
ये राशि ,कर्क,सिंह,वृशिच्क,धनु,मीन ज्ञात
हो |
स- अथवा राशि या लग्न ज्ञात न हो तो अपने नाम के प्रथम अक्षर से निम्नलिखित मे कोई एक
होने पर –
कौन मंत्र का प्रयोग करे - चू ,चे, चू ,ला ,ली लू ले ,लो ,आ हा ,ही हू ,हे हो ,डा ,डी, डू ,डे डो , मा,मी ,मुं, में, मो,टा ,टी,टू , टे,टो, तो ,ना ,नी ,नू ,ने, नो ,या,यू,ये, यो,भा,भी ,भू ,भे, भो, ढा,ध, दु,दे,दी,था,झ,च,ची, ।
बुध –(बुधवार)
उत्पात रूपो जगतां चन्द्र पुत्रो महाद्युति:। सूर्य प्रिय करो विद्वान् पीडां हरतु मे बुध: ।।
अर्थ-जगत् में उत्पात करने वाले, महान द्युति से
संपन्न, सूर्य का प्रिय करने वाले,
विद्वान तथा चन्द्रमा के पुत्र बुध मेरी पीड़ा का निवारण करें ।।
ब्रह्माण्डपुराण
वेदिक मंत्र बुध- ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने
प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते सं सृजेधामयं च। अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन्
विश्वे देवा यशमानश्च सीदत।। (यजु. 15।54)
शुक्र – (शुक्रवार)
दैत्य मन्त्री गुरुस्तेषां प्राणदश्च महामति:। प्रभु: तारा ग्रहाणां च पीडां हरतु मे भृगु: ।।
अर्थ-दैत्यों के मंत्री और गुरु तथा उन्हें जीवनदान देने वाले, तारा ग्रहों के
स्वामी,
महान् बुद्धिसंपन्न शुक्र मेरी पीड़ा को दूर करें ।। ब्रह्माण्डपुराण
वेदिक मंत्र शुक्र- ॐ
अन्नात्परिस्त्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपित्क्षत्रं पय: सोमं प्रजापति:। ऋतेन
सत्यमिन्द्रियं विपानं शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु।। (यजु. 19।75)
शनि –(शनिवार)
सूर्य पुत्रो दीर्घ देहा विशालाक्ष: शिवप्रिय:। मन्दचार: प्रसन्नात्मा पीडां हरतु मे
शनि: ।।
अर्थ-सूर्य के पुत्र, दीर्घ देह वाले, विशाल नेत्रों वाले, मंद गति से चलने
वाले,भगवान्
शिव के प्रिय तथा प्रसन्नात्मा शनि मेरी पीड़ा को दूर करें ।।
ब्रह्माण्डपुराण
वेदिक मंत्र शनि- ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शं योरभि स्त्रवन्तु न:।। (यजु. 36।12)
राहू- अनेकरूपवर्णेश्च
शतशोऽथ सहस्त्रदृक्। उत्पातरूपो जगतां पीडां हरतु मे तम: ।।
महाशिरा महावक्त्रो दीर्घदंष्ट्रो महाबल:। अतनुश्चोर्ध्वकेशश्च
पीडां हरतु मे शिखी: ।।
विविध रूप तथा वर्ण वाले, सैकड़ों तथा हजारों आंखों वाले, जगत के लिए
उत्पातस्वरूप, तमोमय राहु मेरी
पीड़ा का हरण करें ।। ब्रह्माण्डपुराण
केतू- महाशिरा महावक्त्रो दीर्घदंष्ट्रो महाबल:। अतनुश्चोर्ध्वकेशश्च
पीडां हरतु मे शिखी: ।।
अर्थ-महान् शिरा (नाड़ी)- से संपन्न, विशाल मुख वाले, बड़े दांतों वाले, महान् बली, बिना शरीर वाले
तथा ऊपर की ओर केश वाले
शिखास्वरूप केतु मेरी पीड़ा का हरण करें।। ब्रह्माण्डपुरा
केतु- ॐ केतुं
कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथा:।। (यजु. 29।37)
मैं वास्तव में आपके दृष्टिकोण से प्यार करता हूं। अच्छा कार्य!
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