पंडितों के अधिकांश कुंडली मिलान मे नाड़ी को विशेष स्थान
देते हैं ।उचित है ,परंतु किसी भी अधूरे ज्ञान या अपूर्ण ज्ञान के कारण कई विवाह ,अनावश्यक ही रुकवा देना पाप है ।
लगभग 13 नक्षत्र नाड़ी दोष मुक्त होते हैं| कन्या का जन्म नक्षत्र ब्राह्मण वर्ण का न हो तो नाड़ी दोष का प्रश्न हीनहीं | मानव जाति से नाड़ी नहीं देखि जाती |कन्या का जन्म नक्षत्र किस जाति का है यह ही नाड़ी का सिद्धान्त है |
लगभग 13 नक्षत्र नाड़ी दोष मुक्त होते हैं| कन्या का जन्म नक्षत्र ब्राह्मण वर्ण का न हो तो नाड़ी दोष का प्रश्न हीनहीं | मानव जाति से नाड़ी नहीं देखि जाती |कन्या का जन्म नक्षत्र किस जाति का है यह ही नाड़ी का सिद्धान्त है |
नाड़ी से अभिप्राय एवं प्रकार –
नाड़ी का पर्याय रज्जु अर्थात रस्सी । मानव शरीर मे व्याप्त
रक्त प्रवाहिनी , रोग निदान के लिए भी आउर्वेद चिकित्सा पद्दती मे नाड़ीका प्रमुख स्थान है । नारद पुराण मे 05 नाड़ियों के नाम –शिरो,कंठ,कुक्षि,कटि एवं पाद ।
शिरो-सिर(प्रभाव-मृत्यु ), कंठ-गला,दोष
होने वैधव्य , कुक्षि- नाभी, कुप्रभाव-संतान कष्ट,कटि-कमर,निर्धनता, रात पाद-पैर ,कुप्रभाव-यात्रा आधिक्य | उत्तर भारत मे तीन नाड़ी- आदि,मध्य,अंत्य का विवाह मिलान मे प्रयोग ।
नाड़ी दोष , उत्तर भारत मे 03
नाड़ी, दक्षिण भारत मे 05 नाड़ी ,कही कहीं 04 नाड़ी
से विवाह मिलान ,प्रचलन मे है । उत्तर भारत विषेश रूप
से उत्तरप्रदेश,बिहार या राजस्थान का क्षेत्र है।
विडम्बना है कि ये क्षेत्र मुस्लिम आक्रांताओं ,शासन का रहा है।
इसलिए वैदिक अनेकों परम्पराओं ने दम तोड़ दिया ओर नई वेद विरुद्ध परंपरा स्थापित हो
गई जैसे पर्दा प्रथा, रात्रि मे विवाह आदि ।
नाड़ी मूलतः 05 होती हैं। परंतु यहाँ 03 नाड़ी पर ही विचार
करे ।
नाड़ी दोष नियम कैसे लागू होता है –
सामान्य नियम -वर,कन्या के जन्म नक्षत्र यदि एक ही नाड़ी समूह
मे हो तो नाड़ी दोष होता है |
*किसी भी नियम के लागू होने की शर्ते (Conditionस) होती हैं ,उन विशिष्ट स्थितियोंमे ही कोई नियम लागू होता है ।
नाड़ी दोष देखने– कन्या के
नक्षत्र से प्रारम्भ करना चाहिए ।
ज्योतिष मे व्यक्ति की जाति का कोई स्थान नहीं है ,जन्म नक्षत्र किस
जाति,किस गोत्र,का है ?यह देखना महत्वपूर्ण है | कन्या का जन्म
नक्षत्र यदि ब्राह्मण जाति का है तो नाड़ी दोष पर विचार करना चाहिए |
जाति दोष- नक्षत्र के स्थान पर ”व्यक्ति” प्रचलन –भ्रामक-
ब्राह्मण मनुष्यों को नाड़ी दोष ,क्षत्रियों को वर्ण
दोष ,वैश्यों को गण दोष एवं शूद्रो को योनि दोष नहीं
होना चाहिए।
प्रमाण- नाड़ी दोषस्तु विप्राणां वर्ण दोषस्तु क्षत्रिये ।
गणदोषस्तु
वैष्येषु शूद्राणां योनि दूषणम्।। -शीघ्रवोध
यह भ्रामक है कि,ये दोष ब्राह्मण ,ये दोष क्षत्रिय,ये दोष बनिए,ये
दोष शूद्र पर लागू होगा । कुंडली मिलान मे यदि ब्राह्मण कि कुंडली है तो वे सभी
दोष ,जो क्षत्रिय,वैश्य,शूद्र,से संबंधित हैं ,उनको
विचार क्षेत्र से निकाल देना चाहिए ।या अन्य जातियों कि कुंडली मिलान मे नाड़ी दोष
पर विचार नहीं करना चाहिए ।परंतु एसा कोई पंडित या ज्योतिषी नहीं करता ।
यथार्थ मे जन्म नक्षत्र जिस गोत्र एवं जाति
का है ,यह महत्वपूर्ण है | मनुष्यकी
जाति कदापि नहीं |
सर्पाकार नाड़ी चक्र के पास के नक्षत्र विशेष हानिप्रद-
जैसे अश्वनी - आद्रा, पुनर्वसु-उफा, हस्त-ज्येष्ठा, मूल-शतभिषा, रोहिणी-अश्लेषा, मघा-स्वाति, विशाखा-उषा, श्रवण-रेवती, भरणी-मृगशिरा, पुष्य -पूषा, चित्रा-अनुराधा, पूषा-धनिष्ठा,
-
अनेक नक्षत्रों मे नाड़ी दोष नहीं । यह मेरा विचार
नहीं वरन अनेक ग्रंथो मे उल्लेखित है -
1- विशाखा, आद्र्रा, श्रवण, रोहिणी, पुष्य, भरणी, पू.भा. मघा में से किसी एक ही नक्षत्र में दोनों का जन्म है
तो नाड़ी दोष नहीं होगा। यदि स्त्री पुरूष की तारा भी एक हो तो श्रेष्ठ है। (कालनिर्णय)
विषाखिकाद्र्रा श्रवण प्रजेष, तिष्यांततत्पूर्वमघा प्रषस्तो।
स्त्रीपुंसतारैक्य परिग्रहे तु, शेषा विवत्र्या इति संगिरन्ते।। (ज्योतिर्निबन्धोक्त)
2- पूर्वा भाद्रपद, अनुराधा, धनिष्ठा, विषाखा, भरणी, कृत्तिका, हस्त, श्लेषा, पुष्य श्रवण में
भी किसी एक में वर व कन्या का जन्म हो तो भी नाड़ी दोष नहीं रहता है।
‘अजैकपान्मित्रवसुद्विदैव, प्रभंजनाग्न्यर्कभुजंगमानि।
मुकुन्द जीवान्तक भानि नूनं, शुभानि योषिन्नरजन्मभैक्ये।।‘
3- (म) भरणी, (अ) कृत्तिका, (अ) रोहिणी, (म) मृगाषिरा, (आ) आद्र्रा, (मे) पुष्य, (अ) मघा, (अ) विषाखा, (म) अनुराधा, (अ) श्रवण, (अ) धनिष्ठा, (अ) पू. भाद्रपद, (म) उत्तरा भाद्रपद, (अ) रेवती।किसी एक ही नक्षत्र
में जन्म होने पर नाड़ी दोष नहीं होता ।
4- शुक्रे जीवे तथा सौम्ये एकराषीष्वरो यदि ।
नाडीदोषो न वक्तव्यः
सर्वथा यत्नतो बुधैः।। (विवाह कुतूहल)
मिथुन, कन्या, धनु, मीन, वृष, तुला इन राशियों में से कोई एक राशि वर व कन्या की एक
साथ हो तो नाड़ी दोष नहीं लगेगा।
5- विवाह निसर्ग पुस्तक-शुभ ग्रह, बुध, गुरू, शुक्र यदि दोनां
की राशियों के स्वामी हों .नाड़ी दोष नही बनता है।
6- गोदावरी के दक्षिण की ओर स्थित शहरों, महाराष्ट्र, मैसूर, मद्रास, आन्ध्र प्रदेष
आदि प्रान्तों में नाड़ी दोष का विचार आवष्यक नहीं है।
प्रमाण- गोदावरी दक्षिणतो भावच्च मलयानिलः।
त्यजन्ति
तेषु देषेषु नाड़यैक्यं न करग्रहै।। (मुहूर्त दीपिका)
7 -यदि वर वधु की राशि एक ही हो किन्तु नक्षत्र चरण भिन्न्
हो तो नाड़ी दोष नहीं होता।
8- आ*परंतु 1-4 या 2-3 अर्थात प्रथम एवं चतुर्थ चरण दोनों
का हो या 2रा एवं 3रा चरण हो तो नाड़ी दोष मान्य ।
9- दोनां की राशि एक हो किन्तु
नक्षत्र अलग-अलग हो तो भी नाड़ी दोष नहीं होता
10 नाड़ी दोष मुक्त नक्षत्र:-
कृतिका, रोहिणी, मृगषिरा, आद्र्रा, पुष्य, ज्येष्ठा, श्रावण, उत्तराभाद्रपद
एवं रेवती इन नक्षत्रों में यदि वर-कन्या का जन्म हो तो भी नाड़ी दोष नहीं लगता ।
प्रमाण- रोहिण्याद्र्रामृगेन्द्राग्निपुष्य श्रवण पौष्णम्।
अहिर्बुध्न्यक्र्षमेतेषां
नाड़ीदोषो न विद्यते ।। -ज्यौतिष चिन्मामणि
11- नाड़ी दोष मुक्त राशि:- यदि वर एवं वधु के राशि स्वामी बुध गुरू अथवा शुक्र हो तो भी नाड़ी दोष
नहीं लगता। (3.6.9.12.2.7 राशि )
प्रमाण- शुकः सौम्यो तथा जीव एक राशिष्वरो यदि।
नाड़ी
दोषो न वक्तव्यः सर्वथा यत्नतो बुधैः।।
(कन्या तथा वर - मिथुन.कन्या/धनु. मीन/वृष. तुला राशि के
है।)
r यदि आवश्यक हो
तो महामृत्युंजय जप, गौदान ,स्वर्ण दान करिए तो भी नाड़ी दोष का परिहार होता है।
12- राहिण्याद्र्रा मृगेन्द्राग्नी पुष्य श्रवण
पौष्णभम्।
उत्तराप्रौष्ठपाच्चैव
नक्षत्रैक्येऽपि शोभनम् ।।
अर्थात् राहिणी, आद्र्रा, मृगाशिरा, पुष्य, विशाखा, श्रवण, उ.भा. रेवती इन आठ नक्षत्रों मे से किसी
एक नक्षत्र में चरण भेद न होते हुए भी वर-कन्या दोनों का जन्म हो तो नाड़ी दोष नहीं
है।
श्रेष्ठ-नियम -नाड़ी पश्येच्च
ताराणां शुद्धमुद्वाहनं शुभम्।
वर कन्या के नवांश स्वामियों में मित्रता तथा राशिनाथा
में शत्रुता रहने पर भी नाड़ी एवं तारा शुद्धि हो तो विवाह शुभ होता है|
(Vaastu Palmist,Horo, Since 1972,)
First Time in world Best New compability /match method
Match method -Match by Navmansh and Lagn
(30points Instead of 08 Ashtkoot method)
सुखद
जीवन के लिए -जन्म कुंडली विवाह मिलान- लग्न,नवमांश,जन्म पत्रिका के ग्रह एवं
नक्षत्रो से कुंडली मिलान करवाएँ |
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