अशुभ
भवितव्यता की,किसी भी
राशि को चिंता नही करना चाहिए-
ग्रहण में सूर्य तारे एवं राहु छाया ग्रह का प्रभाव है ।
ग्रहण
मिथुन राशि पर है ।इसका यह अर्थ कदापि नहीं की
मिथुन
राशि को बहुत अधिक कोई चिंता करना चाहिए
कारण स्पष्ट है कि ,पृथ्वी के चराचर पर नौ ग्रहों एवं
इसी
प्रकार 9 उपग्रहों
का प्रभाव होता है ।
कोई एक ग्रह अकेला चाह कर भी किसी भी प्रकार का
अनिष्ट
नहीं कर सकता है ।हां, यदि कोई
ग्रह महादशा में
अंतर्दशा में या गोचर में अदुभ या कष्टकारी स्थिति में है
तो अन्य कौन-कौन से ग्रह विशेष रूप से सूर्य
मंगल राहु
शनि उस
ग्रह के द्वारा किए जाने वाले अशुभ या खराब फल
कुप्रभाव को और बढ़ाने में मदद कर समस्या
उत्पन्न करते हैं ।
इसके
साथ ही राशि बहुत बृहद स्वरूप है,लगभग54 घण्टे में
जन्म
लेने वाले एक ही राशि के होंगे। जिनमे किसी प्रकार का
साम्य होना 15 प्रतिशत ही सम्भव है।
राशि का अर्थ ग्रुप ,एकत्र , समूह इसलिए राशि के आधार पर कोई
चिंतनीय
स्थिति नहीं होना चाहिए
नक्षत्र अधिक महत्वपूर्ण,इसके चरण प्रमुख भविष्य ज्ञान के लिए- नक्षत्र महत्वपूर्ण है लगभग 23 घंटे अवधि।इसमे भी इसके
चरण
(लगभग 6घंटे)।एक
राशि में किन्हीं तीन नक्षत्रों के 10 चरण आते हैं ।
राशि की तुलना में नक्षत्र अधिक प्रभावशाली होता है ।
जब किसी
नक्षत्र पर कोई अशुभ ग्रह प्रस्तुत होता है तो इसका
यह अर्थ
नहीं है कि वह समूची राशिको अशुभ होगा।
जन्म एवं नाम राशि के अनुसार फल- दोनों ही सही फल के लिए विचारणीय- 1-जन्म राशि २- प्रचलित नाम राशि। इस लेख के द्वारा यदि हम राशि की बात करें तो - कर्क के स्वास्थ्य व्यय एवं यात्रा में वृद्धि हो सकती है। वृश्चिक -को शारीरिक कष्ट या रोग वृद्धि हो सकती है। मीन- मतभेद विवाद या संपत्ति की हानि हो सकती है. मेष राशि- लंबित कार्य में पूर्णता एवं विजय विवाद में प्राप्त होगी. कन्या राशि- पद प्रतिष्ठा व्यापारिक लाभ.
सिंह
राशि -
नेतृत्व आय वृद्धि व्यवसायिक लाभ होंगे.
मकर राशि का स्वास्थ्य उत्तम होगा. शत्रु पराजित होंगे . वृषभ राशि को परिवार के सदस्यों की ओर से चिंता या धन का व्यय होगा . मिथुन राशि को शरीर ,मन, यश कुप्रभाव अधिक प्राप्त होंगे । धनु राशि बालों के दांपत्य साथी का स्वास्थ्य या रोजगार में समस्या आ सकती है। कुंभ राशि को संतान पक्ष से चिंता की स्थिति बन सकती है ।
तुला राशि= करी बीओल्म्ब,भागी
या संतान सुख मे कमी बढ़ा |
2-जन्म राशि के बाद विचार करे अपने नाम के प्रथम अक्षर से बनने वाली राशि।
मेष- चू
,चे, चू ,ला ,ली लू ले ,लो आ
वृषभ- इ, ए ,ओ ,वा ,वी, वू ,वे ,वो , मिथुन -का ,की ,कू ,घ ,छ, के ,को , कर्क -हा ,ही हू ,हे हो ,डा ,डी, डू ,डे डो , सिंह -मा,मी ,मुं, में, मो,टा ,टी,टू , टे,टो। कन्या -पा पी, पू पे,पो, था,ठा । तुला -रा,री,रू, रे ,रो ,ता ,ती ,तू ,ते । वृश्चिक -तो ,ना ,नी ,नू ,ने, नो ,या,यू,ये, यो। धनु -भा,भी ,भू ,भे, भो, ढा,ध, । मकर जा,जी, जू जे, जो, खा ,खी, खू ,खे खो ,ग,गी,। कुम्भ- गु,गे, गो,स,सी,से,सो, द,दी। मीन-दु,दे,दी,था,झ,च,ची,थ। जैसे- जन्म राशि मेष ,शुभ फल मिलेंगे।परंतु नाम यदि कमल, कमला तो
व्यवहार
में, मित्रता, कार्यालय, मुकद्दमे में अशुभ फल मिलेंगे।
दान सोच समझ कर करे- जन्म कुंडली में राहु यदि शुभ स्थिति में अथवा अच्छी स्थिति में है
तो ऐसी
स्थिति में राहु से संबंधित दान नहीं करना चाहिए।
अन्यथा
राहु के शुभ फलों में कमी हो जाएगी।
सुरक्षित उपाय यह है कि जिनको अपनी जन्म कुंडली
आदि का
ज्ञान नहीं है, वे दान
ही ना करें ।
क्या दान सभी राशि वाले कर सकते है? केवल फटे पुराने वस्त्र गहरे रंग के काले या नीले वस्त्र
परंतु
विशेषता है कि फटे पुराने हो उनका दान किया जा सकता है ।
काले तिल अवश्य दान किया जाए। जौ भी दान किया जा सकता है। काले तिल अवश्य दान करना चाहिए एवं तिल के तेल का
दीपक
एवं उस दीपक से अपनी याचना प्रार्थना करना भी उचित होता है।
|
राहू का ध्यान
राहु मुख अत्यन्त भंयकर है। ये सिर पर
मुकुट, गले में माला और शरीर पर काले रंग का
वस्त्र धारण करते हैं। इनके हाथों में तलवार, ढाल, त्रिशूल व वरमुद्रा है। ये सिंह के आसन पर आसीन हैं। ध्यान में
ऐसे ही राहु प्रशस्त माने गए हैं। राहु का रथ अंधकार रूप है। इसे कवच आदि से सजाए
हुए काले रंग के आठ घोड़े खींचते हैं। राहु के अधिदेवता काल और प्रत्यधिदेवता सूर्य
हैं। नव ग्रह मंडल में इनका प्रतीक वायव्य कोण मे काला ध्वज है। राहु की महादशा 18 वर्ष की होती है।
6. एक नारियल ग्यारह साबुत बादाम काले वस्त्र
में बांधकर बहते जल में प्रवाहित करें।
1.
ॐ रां राहवे नमः
2.
ऊँ शिरोरूपाय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो
राहु प्रचोदयात्।
3.
ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:
4.
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल, ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं
क्षं फट् स्वाहा।।
5.
शनैश्चर नमस्तुभ्यं नमस्तेतवथ राहवे।
केतवेथ नमस्तुभ्यं सर्वशांति प्रदो भाव।।
ॐ ऊर्ध्वकायं महाघोरं चंडादित्यविमर्दनम्।
सिहिंकाया: सुतं रौद्रं तं राहुं प्रणमाम्यहम्।
ॐ पातालधूम संकाशं ताराग्रहविमर्दनम्।
रौद्रां रौद्रात्मकं क्रूरं तं केतु प्रणमाम्यहम्।।
- मंत्र स्मरण के बाद शनि, राहु व केतु की कस्तुरी धूप व तेल के दीप से आरती करें। वह ग्रहों से संबंधित वस्तुओं का दान ब्राह्मण या गरीबों को करें। जैसे काले कपड़े, लोहा, काला तिल, सोना काली उड़द आदि। इससे राहु, केतु व शनि के बुरे असर से होने वाली पीड़ाओं का अंत होता है।
केतवेथ नमस्तुभ्यं सर्वशांति प्रदो भाव।।
ॐ ऊर्ध्वकायं महाघोरं चंडादित्यविमर्दनम्।
सिहिंकाया: सुतं रौद्रं तं राहुं प्रणमाम्यहम्।
ॐ पातालधूम संकाशं ताराग्रहविमर्दनम्।
रौद्रां रौद्रात्मकं क्रूरं तं केतु प्रणमाम्यहम्।।
- मंत्र स्मरण के बाद शनि, राहु व केतु की कस्तुरी धूप व तेल के दीप से आरती करें। वह ग्रहों से संबंधित वस्तुओं का दान ब्राह्मण या गरीबों को करें। जैसे काले कपड़े, लोहा, काला तिल, सोना काली उड़द आदि। इससे राहु, केतु व शनि के बुरे असर से होने वाली पीड़ाओं का अंत होता है।
6. राहु ग्रह हवन –
7. हवन सामग्रीः- गौघृत
तथा दूर्वा की लकड़ी ।
8. दिशाः- पूर्व, मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या
१०८ बार ।
9. गुरु गोरख नाथ का राहू का
शाबर मंत्र -
मन्त्रः- “ॐ गुरुजी, राहु साधे अरध शरीर
। वीर्य का बल बनाये वीर ।। धुंये की काया निर्मल नीर । येता गुण का राहु वीर ।
राहु जाति का शूद्र । कृष्ण काला पैठीनस गोत्र ।। राठीनापुर क्षेत्र स्थापना थाप
लो । लो पूजा करो काल भैरो ।।
सत फुरै सत वाचा
फुरै श्रीनाथजी के सिंहासन ऊपर पान फूल की पूजा चढ़ै । हमारे आसन पर ऋद्धि-सिद्धि धरै, भण्डार भरे । ७ वार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशि, १५ तिथि । सोम-रवि
शुक्र शनि । मंगल केतु बुध-गुरु सुख करै, दुःख हरै । खाली
वाचा कभी ना पड़ै ।। ॐ राहु मन्त्र गायत्री जाप । रक्षा करे श्री शम्भुजती गुरु
गोरखनाथ । नमो नमः स्वाहा ।”
राहुकवचम्
अस्य श्रीराहुकवचस्तोत्रमंत्रस्य चंद्रमा ऋषिः ।
अनुष्टुप छन्दः । रां बीजं I नमः शक्तिः ।
स्वाहा कीलकम्। राहुप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ।।
अनुष्टुप छन्दः । रां बीजं I नमः शक्तिः ।
स्वाहा कीलकम्। राहुप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ।।
प्रणमामि सदा राहुं शूर्पाकारं किरीटिन् ।।
सैन्हिकेयं करालास्यं लोकानाम भयप्रदम् ।। १।।
निलांबरः शिरः पातु ललाटं लोकवन्दितः।
चक्षुषी पातु मे राहुः श्रोत्रे त्वर्धशरीरवान् ।। २ ।।
नासिकां मे धूम्रवर्णः शूलपाणिर्मुखं मम।
जिव्हां मे सिंहिकासूनुः कंठं मे कठिनांघ्रीकः ।। ३ ।।
भुजङ्गेशो भुजौ पातु निलमाल्याम्बरः करौ ।
पातु वक्षःस्थलं मंत्री पातु कुक्षिं विधुंतुदः ।।४ ।।
कटिं मे विकटः पातु ऊरु मे सुरपूजितः ।
स्वर्भानुर्जानुनी पातु जंघे मे पातु जाड्यहा ।।५ ।।
गुल्फ़ौ ग्रहपतिः पातु पादौ मे भीषणाकृतिः ।
सर्वाणि अंगानि मे पातु निलश्चंदनभूषण: ।।६ ।।
राहोरिदं कवचमृद्धिदवस्तुदं यो।
भक्ता पठत्यनुदिनं नियतः शुचिः सन् ।
प्राप्नोति कीर्तिमतुलां श्रियमृद्धिमायु
रारोग्यमात्मविजयं च हि तत्प्रसादात् ।।७ ।।
।।इति श्रीमहाभारते धृतराष्ट्रसंजयसंवादे द्रोणपर्वणि राहुकवचं संपूर्णं ।।
सैन्हिकेयं करालास्यं लोकानाम भयप्रदम् ।। १।।
निलांबरः शिरः पातु ललाटं लोकवन्दितः।
चक्षुषी पातु मे राहुः श्रोत्रे त्वर्धशरीरवान् ।। २ ।।
नासिकां मे धूम्रवर्णः शूलपाणिर्मुखं मम।
जिव्हां मे सिंहिकासूनुः कंठं मे कठिनांघ्रीकः ।। ३ ।।
भुजङ्गेशो भुजौ पातु निलमाल्याम्बरः करौ ।
पातु वक्षःस्थलं मंत्री पातु कुक्षिं विधुंतुदः ।।४ ।।
कटिं मे विकटः पातु ऊरु मे सुरपूजितः ।
स्वर्भानुर्जानुनी पातु जंघे मे पातु जाड्यहा ।।५ ।।
गुल्फ़ौ ग्रहपतिः पातु पादौ मे भीषणाकृतिः ।
सर्वाणि अंगानि मे पातु निलश्चंदनभूषण: ।।६ ।।
राहोरिदं कवचमृद्धिदवस्तुदं यो।
भक्ता पठत्यनुदिनं नियतः शुचिः सन् ।
प्राप्नोति कीर्तिमतुलां श्रियमृद्धिमायु
रारोग्यमात्मविजयं च हि तत्प्रसादात् ।।७ ।।
।।इति श्रीमहाभारते धृतराष्ट्रसंजयसंवादे द्रोणपर्वणि राहुकवचं संपूर्णं ।।
गोमेद, सोना, सीसा, तिल, तिल तेल, नीला कपड़ा, काला फूल, तलवार, कंबल, घोड़ा, सूप
आदि चीजों का
दान कर सकते हैं|
ॐ नमो नारायणय |
(विशेष जानकारी के लिए -https://ptvktiwari.blogspot.com/2020/05/21-2020.html )
(विशेष जानकारी के लिए -https://ptvktiwari.blogspot.com/2020/05/21-2020.html )
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