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आपत्ति-विपत्ति के चक्रव्यूह से निकाले ? चमत्कारिक मंत्र



 आप धार्मिक हें | दयालु हें | कभी किसी को कोई कष्ट नहीं दिया | फिर भी प्रारब्ध प्रबल हे ओर आप परेशान हें | भाग्य साथ नहीं दे रहा | आपत्ति-विपत्ति साथ 2 चलते हें |
 ब्रह्माण्ड पुराण मे वर्णित ,ग्रह प्रसन्नताके लिए सरल उपाय करे- केवल  10मिनट रोज या आपके शक्ति श्रद्धा के अनुसार ,प्रत्येक 15 वे दिन हवन भी स्वयं ही कर सकते हें | |
ज्ञातव्य-अपने इष्ट देव ,कुल देवता ,कुल देवी ओर गुरु के मंत्र प्रभाव  शील होते हें ,परंतु ग्रहों के मंत्रो का जितना प्रभाव कष्ट,बाधा,परेशानियों को रोकने के लिए होता है उतना किसी इष्ट देव या देवी की पुजा का तुलनात्मक रूप से नहीं होता हे |
हिन्दू धर्म ही विश्व का एसा वैज्ञानिक धर्म है,जिसमे करी या उद्देश्य के अनुसार देवी देवता निर्धारित हें |धन के लिए लक्ष्मी,ज्ञान के लिए सरस्वती,अपप्ति-विपत्ति नाश के लिए दुर्गा ,शत्रुनाश ,भूत बाधा नाश के लिए हनुमान आदि| चिकित्सा विज्ञान की भाषा मे ये अपने 2 कार्य के एम॰डी ॰ हें ।विश्व के अन्य कसी धर्म मे इतनी विविधता अनेकता मुझे ज्ञात नहीं  |
फिर भी ग्रह के मंत्र ही श्रेष्ठ हें यदि आपको ज्ञात हो कि कष्ट किस ग्रह के कारण होरहा है |
इस लेख मे एसी ही जानकारी दे रहे हैं -
ध्यातव्य-
1-सर्वप्रथम प्रतिदिन अपने पूर्वजो का स्मरण कर उनसे याचना सुख समृद्धि प्रगति की करना चाहिए | अन्यथा ये रुष्ट होकर बाधक होते हें |
2-पितर स्मरण पश्चात दिन विशेष मे उस से संबन्धित  ग्रह विशेष (जेसे शुक्र की शुक्रवार को )मंत्र पढ्न चाहिए |
3- दान करने के पूर्व ज्ञात हो की वह ग्रह अनिष्टकारी है या नहीं |यदि अनिष्टकारी नहीं तो दान नहीं करे |
4- मंत्र प्रिंट कर अपने पूजा कक्ष मे लगा ले |
5- यदि संस्कृत भाषा पर अधिकार हे तो वेदिक मंत्र का भी प्रयोग कर सकते हें | दोनों प्रभावी उपलब्ध हें लेख मे |
6- जिस ग्रह की अंतर्दशा या प्रत्यंतर दशा चल रही हो उसका मंत्र अवश्य पढ़्ना चाहिए |
7- दिन से संबन्धित ग्रह का मंत्र, कई समस्याओं को आने से पहले रोक देता है |
(अशुभ ग्रह को प्रसन्न करने का मंत्र – ब्रह्माण्डपुराणोक्त या वेदिक कोई एक मंत्र प्रयोग करिए |)

अनिष्ट कारी  ग्रह  के मंत्र स्वयं पढे ,ग्रह प्रसन्न करे |
मंत्र  पढ़ने का श्रेष्ठ समय-
1-प्रातः पूर्व 4.30 से 09।:बजे तक |
2- दोपहर -11.30-01तक;
3-सूर्यास्त से 48 मिनट पूर्व से 48 मिनट पश्चात तक |
4-रात्रि 11:45-01:00 के मध्य |
मंत्र संख्या -01-05,11.21.54.108 मे से कोई भी |
ब्रह्माण्ड पुराण मे ग्रहों के मंत्र लिखे हैं जो शीघ्र फल देते हैं |आपके लिए कौनसे ग्रह के मंत्र पढ्ना उचित होगा | वेदिक मंत्र भी सुलभ हें |
मंत्र पढ़ने से पूर्व-
1-दीपक जलाए ,उसको नमस्कार करे | इसके बाद ,हाथ धो ले |
2-पूर्व की ओर मुह कर हाथ मे जल लेकर अपना नाम ,पिता का नाम ,स्थान नाम लेकर अपनी परेशानी वर्णन  करते हुए, जिस ग्रह का मंत्र पढे –“हे देव आपकी कृपा के लिए यह मंत्र पढ़ रहा हूँ “-बोल कर हथेली का जल पृथ्वी पर छोड़ दे |
1-खंड अ-
!- आपके लिए कौन से  मंत्र हें या आप किन मंत्रों का प्रयोग करे -                                                  लग्न- वृष,मिथुन,कन्या,तुला, मकर,कुम्भ(2,3,6,7,10,11,) लग्न मे जन्म हुआ हो तो या राशि ज्ञात हो अथवा राशि या लग्न ज्ञात न हो तो इन अपने  नाम अक्षर के प्रथम अक्षर से निम्नलिखित मे कोई एक होने पर –
, ,,वा ,वी, वू ,वे ,वो ,का ,की ,कू ,,, के ,को , पा पी, पू पे,पो, था,ठा ।रा,री,रू, रे ,रो ,ता ,ती ,तू ,ते जा,जी, जू जे, जोखा ,खी, खू ,खे खो ,,गी,गु,गे, गो,,सी,से,सो, ,दी।।

किन मंत्रो को पढे -

1-सूर्य(रविवार ) –
ग्रहाणामा दिरात्यो लोक रक्षण कारक:। विषम स्थान सम्भूतां पीडां हरतु मे रवि: ।।
अर्थ-ग्रहों में प्रथम परिगणित, अदिति के पुत्र तथा विश्व की रक्षा करने वाले,
 भगवान सूर्य विषम स्थानजनित मेरी पीड़ा का हरण करें ।।
वेदिक मंत्र -सूर्य- ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च। हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् (यजु. 3343, 3431)


2-चंद्रमा-सोमवार -
रोहिणीश: सुधा‍ मूर्ति: सुधा गात्र: सुधाशन:। विषम स्थान सम्भूतां पीडां हरतु मे विधु:
अर्थ-दक्ष कन्या नक्षत्र रूपा देवी रोहिणी के स्वामी, अमृतमय स्वरूप वाले, अमतरूपी शरीर वाले
तथा अमृत का पान कराने वाले चंद्र देव विषम स्थान जनित मेरी पीड़ा  दूर करें ।।
वेदिक मंत्र चन्द्र- ॐ इमं देवा असपत्नं सुवध्यं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय। इमममुष्य पुत्रममुष्ये पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानां राजा।।(यजु. 1018) 


 3-मंगल (मंगलवार )-
भूमि पुत्रो महातेजा जगतां भयकृत् सदा। वृष्टि कृद् वृष्टि हर्ता च पीडां हरतु में कुज: ।।
अर्थ-भूमि के पुत्र, महान् तेजस्वी, जगत् को भय प्रदान करने वाले, वृष्टि करने वाले
तथा वृष्टि का हरण करने वाले मंगल (ग्रहजन्य) मेरी पीड़ा का हरण करें ।। ब्रह्माण्डपुराण
वेदिक मंत्र भौम- ॐ अग्निमूर्धा दिव: ककुत्पति: पृथिव्या अयम्। अपां रेतां सि जिन्वति।। (यजु. 312)


बृहस्पति –(गुरुवार)
देव मन्त्री विशालाक्ष: सदा लोक हिते रत:। अनेक शिष्य सम्पूर्ण: पीडां हरतु मे गुरु: ।।
अर्थ-सर्वदा लोक कल्याण में निरत रहने वाले, देवताओं के मंत्री, विशाल नेत्रों वाले
तथा अनेक शिष्यों से युक्त बृहस्प ति मेरी पीड़ा को दूर करें ।। ब्रह्माण्डपुराण
वेदिक मंत्र गुरु- ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु। यद्दीदयच्छवस ऋतुप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।। (यजु. 263) 


राहू- रविवार संध्या  या शनिवार
महाशिरा महावक्त्रो दीर्घदंष्ट्रो महाबल:। अतनुश्चोर्ध्वकेशश्च पीडां हरतु मे शिखी: ।।
अर्थ-महान् शिरा (नाड़ी)- से संपन्न, विशाल मुख वाले, बड़े दांतों वाले, महान् बली, बिना शरीर तथा ऊपर
की ओर केश वाले शिखास्वरूप केतु मेरी पीड़ा का हरण करें।। ब्रह्माण्डपुराण
वेदिक मंत्र राहू - ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृध: सखा। कया शचिष्ठया वृता।। (यजु. 364) 


 केतू- सोमवार प्रातः या मंगलवार |
महाशिरा महावक्त्रो दीर्घदंष्ट्रो महाबल:। अतनुश्चोर्ध्वकेशश्च पीडां हरतु मे शिखी: ।।
अर्थ-महान् शिरा (नाड़ी)- से संपन्न, विशाल मुख वाले, बड़े दांतों वाले, महान् बली, बिना शरीर वाले
 तथा ऊपर की ओर केश वाले शिखास्वरूप केतु मेरी पीड़ा का हरण करें।। ब्रह्माण्डपुरा
 वेदिक मंत्र केतु- ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथा:।। (यजु. 2937) 

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