µ प्रतिदिन पूजा प्रारम्भ के समय सर्वप्रथम पढ़िये
नवग्रहाय
नमः।
ओम हृीं क्रीं क्रीं क्रां चंडिका देव्यै शाप नाश अनुग्रहं कुरू 2।
नमः
गणाधिपतये नमः।
ओम ब्रहम वशिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता
भव।
कुल्लुका
मंत्र - क्रीं हूं स्त्रीं ह्रीं फट्।
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मीन लग्न में विशेष शुभ| प्रातः घट स्थापना शुभ समय –भोपाल-06:23-07;20;बंगलोर-06:24-07;27;
हैदराबाद-06:20-07;20;रायपुर-06:00-06;55; मुंबई--06:42-07;40; ग्वालियर--06:19-07;15
जयपुर--06:23-07;20
आगरा-06:20-07;15लखनऊ-06:23-07;20
कानपुर- -06:23-07;20
कलकत्ता--06:23-07;20
देहली-06:23-07:1चंडीगढ़-06:24-07;15 कलकत्ता-05:39-6:35 लंदन-07:50-09:00 बजे
*एक ही देवी के अनेक नाम हैं इसलिए उनके विभिन्न
स्वरूप के पृथक पृथक मंत्र एक ही तिथि मे लिखे गए हैं
दिनांक
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मंत्र
25
मार्च से 02 अप्रैल 2020
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कामना पूर्ति हेतु देवी को अर्पण सामग्री
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हवन कमलगटा तिल,जौ़।गुगल तिल, जायफल
चावल
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25
बुधवार
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ऊँ जगतपूत्ये जगद् वन्द्ये शक्ति स्वरूपिणी
पूजाम ग्रहण कौमारी जगत्
मातर नमोस्तुते।
ऊँ शां शीं शूं शैलपुत्र्यै मे शुंभ कुरू 2
स्वाहा।
ब्राह्मी
ऊँ आं हौं ग्लूं क्रौ व्री फट् ।
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दांपत्य सुख
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रंग
बिरंगे वस्त्र, दूब चुनरी,खीर,दूध
कमलगटा
पताका
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गाय,घी, भजिया, शकर, पान
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26
गुरुवार
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ऊँ त्रिपुरां त्रिगुण धारां मार्ग ज्ञान
स्वरूपिणी्।
त्रैलोक्य वंदितां देवी त्रिमूर्ति पूजयाम्
अहम्।
ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रूं ग्रह्मचारिष्यै नमः।
महेष्वरी ऊँ ह्रीं नमो भगवती महाष्वर्ये- स्वाहा ।
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सफलता
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दही,शक्कर बताशा, इत्र, फल, विष्णुकांता पुष्प, पत्र उड़द
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शकर, शहद, खीर, पान
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27 शुक्रवार
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ऊँ कालिकां तु कालातीतां कल्याण हृदयाम्
षिवम्।
कल्याण जननीं नित्यं कल्याणीं पूजयाम्य अहम्।
ऊँ ह्रीं क्लीं श्रीं चंद्रघंटायै स्वाहा ।
क्रौं कौमार्ये
नमः।
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दूध, तिल, मेवा,बिंदी, कमल पुष्प, बिल्व पत्र
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पुआ, शहद, घी, पान
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28 शनिवार
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ऊँ अणिमादि गुणोदारां मकराकार चक्षुशम्।
अनंत शक्ति भेदाम ताम कामाक्षीम् पूज्ययाम्य हम्।
ऊँ ह्रीं नमो भगवती कूष्माण्डायै मम
शुभाशुभं स्वप्ने सर्व प्रर्दशय प्रर्दष्य।
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बाधा शमन
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दूध, चना, लड्डू, पान
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29
रविवार
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ऊँ चण्डवीरां चण्डमायां चण्डमुडं प्रभंजनीम्
तां नमामि च देवेर्षीं चण्डिकां पूजयाम्य
अहम्।
ऊँ ह्रीं सः स्कंदमात्र्यै नमः।
वाराही-ऐं ग्लौं ठं
ठं ठं हुं स्वाहा
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कामना-पूर्ण
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दही, मसूर, सिंदूर, बिल्वपत्र, फल, जायफल
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केला, चूड़ी, खीर, पान
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30
सोमवार
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ऊँ सुखानंद करीं शांतां सर्व देत्यै नमस्कृताम्।
सर्व भूतात्मिकां देवीं
शांभवी पूजयाम्य अहम्।
ऊँ ह्रीं श्रीं कात्यायन्यै स्वाहा।
ऊँ श्रीं ह्रीं ऐ सौः क्लीं इंद्राक्षि वज्र हस्तो फट् स्वाहा।
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दान विजय
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गायत्री, रिबिन, पीपल पत्र, शक्कर, हल्दी, फूल माला,
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शांक, शहद, लड्डू, पान
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31
मंगलवार
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ऊँ चण्डवीरा चंडमायां रक्तबीज प्रभंजनीम्।
तां नमामि च देवेषीं गायत्री पूजयाम्य अहम्।
ऊँ
ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्रि सर्व वश्यम |
ॐ कुरू 2
वीर्य देहि 2
गणेष्वर्ये नमः।
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आपदा-नाश
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दूब
पताका, चुनरी, खीर, दूध कमलगटा
यज्ञोपदीत
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गुड़, मिश्री, खीर, पान
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1अप्रेल
बुधवार
अष्टमी
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ऊँ सुन्दरी स्वर्ण वर्णागीम् सुख सौभाग्य दायिनीम्
संतोष जननीं देवीं सुभद्राम्
पूजां अहम्।
ऊँ
ह्रीं गौरी दयिते योगेष्वरि हुं फट् स्वाहा।
ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।
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धन वृद्धि
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दही,शक्कर इत्र, फल, विष्णुकांता पुष्प, उड़द
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फल, मुनक्का, पूड़ी, पान
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2अप्रेल
गुरुवार
नवमी
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ऊँ दुर्गमे दुस्तर कार्ये भव दुख विनाशिनीं।
पूजां अहम् सदा भक्तया दुर्गा दुर्गति नाशिनीम्।
ऊँ ह्रीं सः सर्वार्थसिद्धि दात्री स्वाहा।
क्षौं नारसिंहये नमः।
ॐ ह्रीं शिव दूत्यै नमः।
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संकल्प-पूर्ति
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तिल, शक्कर चूड़ी, गुलाल, शहद, पान,
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खीर, मीठी पूड़ी, पान
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%& ea= ghue~, fØ;k ghue~, Hkfä ghue~, lqjs’ofj% |rr~ loZa {E;rka, nsfo çlhn परमेश्वरीA
दुर्गति हारिणी देवी दुर्गा की आरती
जगजननी जय ! जय!! माँ जगजननी जय ! जय !! ।
भय हरिणी, भव तारिणि भव भामिनि
जय जय।। टेक ।।
तू ही सत्-चित-सुखमय शुद्ध
ब्रम्हरूपा ।
सत्य सनातन सुन्दर पर-शिव सुर-भूपा ।।1।। जग.
आदि अनादि अनामय अविचल अविनाशी ।
अमल अनन्त अगोचर अज आनॅदराशी ।।2।। जग.
अविकारी, अघ हारी, अकल कला धारी।
कर्ता
विधि, भर्ता
हरि, हर
सॅहार कारी ।।3।।
जग.
तू विधि, वघू, रमा,
तू उमा, महा माया।
मूल प्रकृति, विद्या तू, तू जननी, जाया।।4।। जग.
राम, कृष्ण तू, सीता,
ब्रजरानी
राधा।
तू वान्छा कल्प द्रुम, हारिणि सब बाधा।।5।। जग.
दश
विद्या, नव दुर्गा, नाना शस्त्र करा।
अष्ट मातृका, योगिनि, नव-नव-रूप-धरा ।।6।।
जग.
तू परधामनिवासिनि, महाविलासिनि तू ।
तू ही श्मशान विहारिणि,
ताण्डव-लासिनि
तू ।।7।। जग.
सुर-मुनि-मोहिनी सौम्या तू शोभा धारा।
विवसन विकट-सरूपा, प्रलय मयी, धारा।।8।। जग.
तू
ही स्नेहसुधामयि, तू अति गरलमना।
रत्न विभूषीत तू ही, तू ही अस्थि-तना ।।9।।
जग.
मूलाधार निवासिनी, इह-पर-सिद्धिप्रदे ।
काला तीता काली, कमला तू वरदे ।।10।। जग.
शक्ति शक्ति धर तू ही नित्य अभेद मयी ।
भदे प्रदर्षिनि वाणी विमले ! वेदत्रयी ।।11।। जग.
हम
अति दीन दुखी माँ ! विपत-जाल घेरे ।
हैं
कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे ।।12।।
जग.
निज स्वभाव वश जननी ! दया दृष्टि की जै।
करूणा कर करूणा मयि ! चरण-शरण दीजै ।।13।। जग.
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