बारह देवी – तीर्थ स्मरण कांचीपुरे तु कामाक्षी मलये
भ्रामरी तथा ।
केरले तु कुमारी सा अम्बा अनर्तेषु संस्थिता।।
करवींरे महालक्ष्मीः कालिका मालवेषु सा।
प्रयागे ललिता देवी विन्ध्ये विन्ध्यनिवासिनि।।
वाराणस्यां विषालाक्षी गयायां मंगलावती ।
वंगेषु सुन्दरी देवी नेपाले गुह्यकेश्वरी ।।
(त्रिपुरारहस्य,
महात्म्य-खं.
अ. 48/72-75)
‘‘जगजननी भगवती महाषक्ति
कांचीपुरमे कामाक्षी, मलयगिरिपर भ्रामरी
(भ्रमराम्बा), केरल (मलावार) में कुमारी
(कन्याकुमारी ) आनर्त (गुजरात) में अम्बा, करवीर (कोल्हापुर) में
महालक्ष्मी, मालवा (उज्जैन) में कालिका,
प्रयाग
में ललिता (अलोपी) तथा विन्ध्यगिरिपर विन्ध्यवासिनीरूप से प्रतिष्ठित हैं। ये देवी
वाराणसी में विषालाक्षी, गया में मंगलावती,
बंगाल
में सुन्दरी और नेपाल में गुह्यकेश्वरी हैं। इस प्रकार मंगलमयी पराम्बा पार्वती इन
बारह रूपों में भारत में स्थित हैं।‘‘इन बारह देवी नामों का
स्मरण मात्र मंगलप्रद है।
(”ऐं” यह सरस्वती बीज है। ‘ऐ का
अर्थ सरस्वती है और ‘बिन्दु का
अर्थ है दु:खनाशक। अर्थात् सरस्वती
हमारे ज्ञान संबन्धित अर्थात
अज्ञान को दूर करें।
‘”ह्रीं” भुवनेश्वरी
बीज है और महालक्ष्मी का बीज मन्त्र है। बिन्दु का
अर्थ है दु:खनाशक। अर्थात् महालक्ष्मी
हमारे धन संबन्धित दु:ख अर्थात निर्धनता को दूर करें।
‘”क्लीं “ यह कृष्ण बीज काली
बीज एवं काम बीज माना गया है। बिन्दु का अर्थ है दु:खनाशक। अर्थात् महाकाली हमारे मन,शरीर के कष्ट दु:ख
को दूर करें।)
सिद्धकुंजिकास्तोत्रम्
|| 🕉
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
ऊं ग्लौं हुं क्लीं जूं स: ज्वालय
ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं
क्षं फट् स्वाहा।।
🕉 शिव उवाच :
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिका स्तोत्रम उत्तमम् ।
येन मन्त्र प्रभावेण चण्डी जापः भवेत् ॥१॥
न कवचं न अर्गला स्तोत्रं
कीलकं न रहस्यकम् ।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च
वार्चनम् ॥२॥
कुंजिका पाठ मात्रेण दुर्गा पाठ फलं
लभेत् ।
अति गुह्य तरं देवि देवानाम अपि दुर्लभम् ॥३॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति
।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भन उच्चाटन आदिकम् ।
पाठ मात्रेण संसिद्ध्येत् कुंजिका स्तोत्रम उत्तमम् ॥४॥
अथ मन्त्रः
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल
प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे
ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा
इति मन्त्रः॥
नमस्ते रुद्र रूपिण्यै नमस्ते मधु मर्दिनि।
नमः कैटभ हारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि
॥१॥
नमस्ते शुम्भ हन्त्र्यै च निशुम्भासुर
घातिन ॥२॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं
कुरुष्व मे ।
ऐंकारी सृष्टि रूपायै ह्रींकारी प्रति
पालिका ॥३॥
क्लीं कारी काम रूपिण्यै बीजरूपे
नमोऽस्तु ते ।
चामुण्डा चण्ड घाती च यैकारी वर दायिनी
॥४॥
विच्चे चा भयदा नित्यं नमस्ते मंत्र रूपिण
॥५॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं
वूं वागधीश्वरी ।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां
शीं शूं मे शुभं कुरु ॥६॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं
जम्भनादिनी ।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे
भवान्यै ते नमो नमः ॥७॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं
वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय
दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं
खूं खेचरी तथा ॥८॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्र सिद्धिं
कुरुष्व मे ॥
इदंतु कुंजिका स्तोत्रं
मंत्रजागर्तिहेतवे ।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष
पार्वति ॥
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्
भोग arpan-
1-शैलपुत्री - शुद्ध घी अर्पित करने से आरोग्य ।
2-ब्रह्मचारिणी- शकर भोग -आयु बढ़ोतरी ।
3-चंद्रघंटा - खीर भोग -दु:खों से मुक्ति|-
4कूष्मांडा -मालपुओं बुद्धि, ।
5-स्कंदमाता-केले का भोग -शरीर स्वस्थ ।
6-कात्यायनी -शहद भोग -आकर्षण शक्ति ।
7-कालरात्रि – भोजन- आकस्मिक – संकट|
8-महागौरी- नारियल दान- नि:संतानों – मनोकामना |
9- सिद्धिदात्री- तिल का भोग-- कल्याणकारी - मृत्यु - भय - अनहोनी घटनाओं से बचाता है।
दुर्लभ और लोगों को लाभान्वित करने वाली सामग्री।��
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