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नवदुर्गा 25 मार्च-02अप्रेल कलश घट स्थापना मुहूर्त नवदुर्गा पूजा विधि 2020




कलश स्थापना नवदुर्गा पूजा सरल विधि 2020
      देवी दुर्गा  दुर्गतिहारणी की  नव दिन  संक्षिप्त पूजा विधि    .
      किस दिन देवी के किस स्वरूप का स्मरण कौनसा मन्त्र  क्या अर्पण करे
मुहूर्त मर्मज्ञ .पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी द्वारा संकलित संशोधित परिवर्धित प्रस्तुत

है घट स्थापना मीन लग्न में विशेष शुभप्रातः घट स्थापना शुभ समय भोपाल-06:23-07;20;बंगलोर-06:24-07;27;हैदराबाद-06:20-07;20;रायपुर-06:00-06;55; मुंबई--06:42-07;40; ग्वालियर--06:19-07;15 जयपुर--06:23-07;20 आगरा-06:20-07;15लखनऊ-06:23-07;20 कानपुर- -06:23-07;20 कलकत्ता--06:23-07;20 देहली-06:23-07:17
 चंडीगढ़-06:24-07;15 कलकत्ता-05:39-6:35 लंदन-07:50-09:00 बजे तक |
 कलश स्थापना अभिजित मुहूर्त-11.58--12.48am
  
कलश स्थापना/घट स्थापना:-
दुर्गा पूजा जानने योग्य बाते.  
.घट स्थापना के पहले.
मंडल निर्माण-
 इनमे विभिन्न रंगों से आकृति निर्माण.ईशान दिशा मे रूद्र मंडलउस अपर एक कलश रखे |उसके साथ नवग्रह रूद्र मंडल के बाद ,दाहिने सर्वतोभद्र मंडल सर्वतोभद्र मंडल के मध्य मे कलश ;कलश मे पञ्च पल्लव अर्थात 5 वृक्षों केपत्ते जेसे . पीपल गूलर अशोक आम और वट के पत्ते अथवा इनके साथ 2 या अभाव मे पारिजात आवला अपराजिता शमी तथा मोती या कोई रत्न सोने चांदी के सिक्के नर्मदा गंगा  तीर्थ जल इसके ऊपर एक प्लेट मे दुर्गा यन्त्र हल्दी या पीले रंगसे बना कर उस पर दुर्गा प्रतिमा द्इसके बाद 16 मातृका योगिनी क्षेत्रपाल वास्तु तथा पूजा स्थल की अग्नी दिशा ; दीपक रखे

प्रारंभिक तैयारी:-व्रत - 
प्रतिपदा सप्तमी अष्टमी का व्रत विशेष महत्व रखता है। पुरूष श्वेत वस्त्र वं महिला नारंगी/लाल वस्त्र धारा कर पूजा करें। प्रतिदिन क कन्या को भोजन कराना उत्तम। अष्टमी ध् नवमी को 9 कन्या व क बच्चे को भोजन कराकर उपहार दें।
 व्रत या उपवास नवमी तक ही कर सकते हैं दशमी को व्रत  अशुभ कष्टद होता है;दर्गा सर्वस्व पुस्तक 42 पृष्ठद्धप्रथम अष्टमी एवं नवमी तिथि व्रत आवश्यक है।
पूजा आवश्यक. सप्तमीअष्टमी एवं नवमी तिथि को करे
    कलश - 
रूद्र मंडल इशान कोण में नवग्रहमध्य में सर्वतोभद्र मंडलइसके बाद क्षेत्रपाल इसके नीचे वास्तु आग्नेयकोण में ऊपर दीपक नीचे स्वस्तिक ;1) सर्वतोभद्र मंडल के मध्य में दुर्गा यत्र बनाकर उस पर कलष रखे।
2) कलश जलः में आम वटपीपलमोर पंखी  के  पत्ते डालें।
3) कलश में मोंती-धन  दायकःकमल-अभिलाषा पूरकअपराजिता-विजयः। पंच रत्न बाधा सुरक्षा हेतु उपयोगी ळें
 4) कलश पर कटोरी में चावल (या जौ बिना टूटे हु) रखेंउस पर दुर्गा जी रखे | प्रथक  कटोरी पर आढ़ा नारियल, (पूछवाला भाग देवी की ओर हो) रखें।
नारियल रुद्र तथा दुर्गा कलश पर किस प्रकार रखना चाहिए .
नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर मौली बांध दें। नारियल को कलश पर रखें। नारियल का मुँह आपकी तरफ होना चाहिए।नारियल का मुँह ऊपर की तरफ . रोग बढ़ाने वाल नीचे की तरफ हो तो शत्रु बढ़ाने वाला पूर्व की धन को नष्ट करने वाला है।
      पुष्प.  बिल्वचमेलीगुड़हल सुगंधित वाले पुष्प/श्वेत पुष्प कनेर चांदनी आदि।
     दीपक   .अखंड दीपक 9 दिन जलना श्रेष्ठ फलदायी ।    
.यशपदप्रभावआयु के लिये दीपक वर्तिका पूर्व या इषान (छम्) दिशा की ओर हो।
. धन वं संपदा तथा ेश्वर्य के लिये उत्तर की ओर दीप वर्तिका हो वं वर्तिका रंग लालनारंगीपीली हो सकती है
मनोकामना र्पूाति हेतु:- सर्व बाधा शमन हेतु अष्टमी-नवमी को पूरा पाठ करें
ग्रह दोष वं बाधाओं में कमी हेतु ..... द्वादश अध्याय पढ़े/हवन करें ।
    भौतिक सुख समृद्धि के लिये चतुर्थ अध्याय के 34-37 श्लोक से हवन करें ।
     धन हेतु 11वें अध्याय का पाठ वं खीर से हवन करें ।
     विद्यार्थियों को 5वें अध्याय को पढ़कर हवन करें तो सरस्वती प्रसन्न होंगी ।
    लक्ष्मी प्रसन्नता द्वितीय अध्याय पठन से होती है ।
दीप वर्तिका- कलावा की (रूई से) श्रेष्ठपांच वर्तिका दीपक श्रेष्ठक वर्तिका का मुंह पूर्वईषानउत्तर दिषा में उत्तरोत्तर श्रेष्ठ। 
प्रतिदिन अर्पणीय- गोरोचनश्वेत सरसोंचंदनधूपगंधकपूरशंख से अधर््य दें,कुष्मांड (सफेदकुहिज) बलिआहुति 1,4,16प्रतिदिन। 
नवरात्र दुर्गा पूजा प्रारंभ कब से करे.
1.उग्रचंडा कल्प विधि.अश्वनि कृष्ण नवमी ;श्राद्ध पक्षद्ध को अभिजित काल मे ;आर्द्रा नक्षत्र श्रेष्ठ द्ध देवी का प्रबोधन करे ॐ एम् ह्रीम कलीम चामुंडाये विच्चे मंत्र से अमावस्या तक प्रातः मध्य एवं अर्धरात्रि पूजन करे
नव दुर्गा स्मरण के मंत्र.

  हृीं क्लीं रूद्र चडायै विच्चै नमः ।

ॐ हृीं क्लीं प्रचडायै विच्चै नमः ।

   हृीं क्लीं चंडोग्रायै विच्चै नमः । 

ॐ हृीं क्लीं चड नायकै विच्चै नमः ।

ॐ हृीं क्लीं चडायै विच्चै नमः । 
ॐ हृीं क्लीं चड वत्येै विच्चै नम 
 ॐ हृीं क्लीं चडरूपाायै विच्चै नमः ।

 ॐ हृीं क्लीं अतिचंडकै विच्चै नमः ।

 ॐ हृीं क्लीं प्रचडायै विच्चै नमः । 

ॐ हृीं क्लीं उग्रचडायै विच्चै नमः ।

2. भद्रकाली कल्प विधान. ;16 भुजा
 ॐ एम् ह्रीम कलीम चामुंडाये विच्चे
3 . कात्यायनी कल्प विधान  10भुजा  
नव दुर्गा पूजा
सप्तमी तिथि- प्रवेष द्वार पर दो घट लाल वस्त्र में लपेट कर आम 
पत्ते वं दुर्वा लगाकर रखें घट के पिछे दीपक जलां तथा बिल्व पत्र सहित (आमअषोकतुलसीपीपलवटआंवलाशमीअपराजितापारिजात) पत्तों का पूजन कर द्वार पूजा करें। 
मनोकामना पूर्ति हेतु:- 
सर्व बाधा शमन हेतु अष्टमी-नवमी को पूरा पाठ करें
ग्रह दोष वं बाधाओं में कमी हेतु ..... द्वादश अध्याय पढ़े/हवन करें ।
हवन समाग्री- तिलजायफलसुपारीजौबेलफल मेन फल लोंग इलायचीचावलशहदघीकपूर।
काले तिल का आधा जौ ढ जौ का आधा चावल झचावल का आधा शकर
प्रारंभ-  
नवग्रहेभ्यो नमः। ओम हृीं क्रीं क्रीं क्रां चंडिका देव्यै शाप नाश अनुग्रहं कुरू 2। नमः गााधिपतये नमः। ओम ब्रहम वशिष्ठ विश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव।
   कुल्लुका मंत्र...... .क्रीं हूं स्त्रीं ह्रीं फट्।
पूजा प्रारंभ के पूर्व अंगों को स्पर्श करते हु पढ़े:-9बार ॐ मूलं बोले
ओम  हृीं क्लीं चामुडायै विच्चै नमः ।
ओम मूलं 9 नमः शिरसे स्वाहा। ओम मूलं 9 नमः शिखायै वषट्।
ओम मूलं 9 नमः कवचाय हुम्। ओम मूलं 9 नमः नेत्र त्रयाय वौषट्।
ओम मूलं 9 नमः अस्त्राय फट्। हृदयाय नमः।
   दीप नमस्कार  मंत्र.
दीप ज्योति पर ब्रह्मदीप ज्योति जनार्दन।दीपो हरतु मे पापम,  पूजा दीपं नमोस्तुतेः।
शुभं करोति कल्याांआरोग्ंय सुख संपदामः।शत्रु बुद्धि विनाशायमम् सर्व बाधा हराम दीपो ज्योति नमोस्तुतेः।
शीघ्र फलदायी षडाक्षरी मंत्र. 
ॐ चामुडायै विच्चै । ;चामुडा देवी के दोनों ओर नागराज की उपस्थिति होती है इस मन्त्र से नागराज का जागरण होता है चामुडा की शिवा रूप मे पूजा होती है
.प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्माचारिणी। तृतीय चंद्रघण्टेति कुष्माण्डेति चतुर्थकम्।
.पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रि महागौरीति चाऽष्टम्।
.नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिताः।

सप्तमी तिथि द्वार पूजा:- प्रवेष द्वार पर दो घट लाल वó में लपेट कर आम पत्ते वं दुर्वा लगाकर रखें घट के पिछे दीपक जलां तथा बिल्व पत्र सहित (आमअषोकतुलसीपीपलवटआंवलाशमीअपराजितापारिजात) पत्तों का पूजन कर द्वार पूजा करें।
बिल्ब पत्र शाखा के सहित लाकर पूजा गृह मे देवी के समीप रखे
 मंत्रः- ‘‘ऊँ ें ह्रीं श्रीं क्लीं भगवति महोग्र चंडिके दुर्गे उत्तिष्ठ-उत्तिष्ठ निद्रां जहि जहि प्रति बुध्यस्व-बुध्यस्व मम शत्रून् हन् हन् पात्तय- पात्तय स्वाहा।‘‘
 सुगंधहल्दीतैल दवी के शस्त्र या अंगों में लगों।  देवी के बांे हाथ में धागा बांधे।  श्वेत सरसों आठों दिषाओं में फेंकर रक्षा मंत्र पढ़े।
25 मार्चसे 02 अप्रेल 2020
25 मार्च
मंत्र. . ऊँ जगतपूत्ये जगद् वन्े शक्ति स्वरूपिाी पूजंा ग्रहा कौमारी जगत् मातर नमोस्तुते। 
ऊँ शां शीं शूं शैलपुत्र्यै मे शुंभ कुरू 2 स्वाहा
ब्राह्मी ऊँ आं हौं ग्लूं क्रौ व्रीफट् ।
अर्पणसामग्री.
गाय घी खीरलाल वं श्वेत पुष्पफलमिठाई सिंदूरलाजा अक्षत
हवन सामग्री .
तिलजौ़ सामग्री गायघी भजिया शकर
26
 मंत्र .  ऊँ त्रिपुरां त्रिगुा धारां मार्ग ज्ञान स्वरूपिाी्। त्रैलोक्य वंदितां देवी त्रिमूर्ति पूजयाम् अहम्।
ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रूं ब्रह्मचारियै नमः।
महेष्वरी ऊँ ह्रीं नमो भगवती महाष्वर्ये- स्वाहा ।
4.वन्दे वांदधानाक पद्माभ्यामक्ष माला कमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रहमचारिण्यनुत्तमा।
अर्पण सामग्री . रक्तचंदन,दुर्वाजायफल,केला,ó नील कमल,
इत्रफलकपूरघीकाली लाल  पुष्परिबिनगुड
27
 मंत्र 1 ऊँ कालिकां तु कालातीतां कल्याा हृदयाम् षिवम्। कल्याा जननीं नित्यं कल्यााीं पूजयाम्य अहम्।
ऊँ ह्रीं क्लीं श्रीं चंद्रघंटायै स्वाहा ।
क्रौं कौमार्ये नमः। महेष्वरी ऊँ ह्रीं नमो भगवती महाष्वर्ये- स्वाहा । अर्पा सामग्री .रत्न,औषधियुक्तजल,हल्दी,ईख,खीर,केसर,श्रीखंडबिल्वपत्र
दर्पासिंदूरचनागुड़लाल वस्त्र
हवन तिलजौ़ सामग्री फलपूड़ी मुनक्का,

28
मंत्र .1. ऊँ अणिमादि गुणोदरां मकराकार चक्षुषम्।
    .अनंज शक्ति भेदाम ताम कामाक्षीम् पूज्ययाम्य हम्।
    2.ऊँ ह्रीं नमो भगवती कूष्माडायै मम शुभाषुभं स्वप्ने सर्व प्रर्दषय प्रर्दष्य।
3.सुरा सम्पूर्ण कलशं रूधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्त पद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तुमे।।
अर्पणसामग्री.
सिंदूरलाजा अक्षत खीर,पूड़ी केसरहींगजायफल
शहदचंदनश्वेत पुष्पदूधखीर ।
हवन तिलजौ़ सामग्री लाल वं श्वेत पुष्पफलमिठाई,
29
मंत्र 1..ऊँ चडवीरां चडमायां चडमुडं प्रभंजनीम्
      तां नमामि च देवेर्षीं चडिकां पूजयाम्य अहम्।
 2. ऊँ ह्रीं सः स्कंदमात्र्यै नमः।
3. वाराही- ें ग्लौं ठं ठं ठं हुं स्वाहा।     
4.सिंहासान गता नितयं पद्माश्रित कर द्वया।शुभदास्तु सदादेवी स्कन्द माता यशस्विनी।।.
अर्पणसामग्री.
अंगूरखीरकाजलमहावरगुड़चूड़ीपुष्पलालवó
हवन तिलजौ़ सामग्रीशकरशहदखीर

30
मंत्र . 1 ऊँ सुखानंद करीं शांतां सर्व देत्यै नमस्कृताम्।
        सर्व भूतात्मिकां देवीं शांभवी पूजयाम्य अहम्।
2ऊँ ह्रीं श्रीं कात्यायन्यै स्वाहा।
3ऊँ श्रीं ह्रीं े सौः क्लीं इंद्राक्षि वज्र हस्तो फट् स्वाहा।
4चन्द्रहासोज्जवल करा शाईल वर वाहना। कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानव घातिनी।।
अर्पणसामग्री.
लालचंदन,पुष्पदर्पासिंदूरअनारपानशहदचंदनश्वेत पुष्पदूधखीर
हवन तिलजौ़ सामग्री पुआशहदघी
31
मंत्र . 1 ऊँ चडवीरा चंडमायां रक्तबीज प्रभंजनीम्।
       तां नमामि च देवेषीं गायत्री पूजयाम्य अहम्।
     2 ऊँ ें ह्रीं क्लीं कालरात्रि सर्व वष्यं कुरू 2 वीर्य देहि 2 गोष्वर्ये नमः।
3 श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बरा धरा शुचिः। महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा।।
अर्पणसामग्री.
जायफलगेहूँदहीशहद,गूगल तिलजौउड़दविषुकांता पुष्प
हवन तिलजौ़ सामग्रीशांकशहदलड्डू
01अप्रेल
1 ऊँ सुन्दरी स्र्वार्वाागीम् सुख सौभाग्य दायिनीम्
संतोष जननीं देवीं सुभद्राम् पूजां अहम्।
2 ऊँ ह्रीं गौरी दयिते योगेष्वरि हुं फट् स्वाहा।
3  ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।
4 श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बरा धरा शुचिः। महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा।।
मंत्र जायफलगेहूँदहीशहद,गूगलश्रीफलमोदकखीरखजूर कलावा .
अर्पणसामग्री.
तिलजौउड़दविषुकांता पुष्प
हवन तिलजौ़ सामग्रीशांकशहदलड्डू

02अप्रेल ;
मंत्र 1 ऊँ दुर्गमे दुस्तर कार्ये भव दुख विनाषिनीं।
पूजां अहम् सदा भक्तया दुर्गा दुर्गति नाषिनीम्।
 2.ऊँ ह्रीं सः सर्वार्थसिद्धि दात्री स्वाहा। क्षौं नारसिंहये नमः।
3  ह्रीं षिव दूत्यै नमः। 
4 सिद्ध गंधर्व यक्षाद्यैर सुरैररमरैरपि। सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धि दायिनी।।
अर्पण सामग्री .रक्तचंदन,दुर्वाजायफल,केलाó नील कमल लल पुष्परिबिनगुड़
हवन तिलजौ़ सामग्री गुड़मिश्रीखीर

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28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामान्य रूप से सभी मंगल कार्यों क

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नारंगी एवं लाल रंग के वस्त्र वस्तुओं का विशेष महत्व है। लाल पुष्प अक्षत रोली कलावा या मौली दूध द

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र हो | - क

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -