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सर्व बाधा नाशक रहस्य ,द्वार पूजा सप्तमी :अष्टमी 31 मार्च -01 अप्रेल




31 मार्च -01 अप्रेल सर्व बाधा नाशक  रहस्य ,सप्तमी अष्टमी |
सप्तमी द्वार पूजा एवं अष्टमी भद्रा काल मे पूजा
भद्रा एवं राहूकाल में दुर्गा पूजा  : आपत्ति-विपत्ति दूर करे|
  • भद्रा में दुर्गा जी के पूजा का विशेष महत्व है। स्मृतिएवं  समुच्य ग्रंथ में लेख है 'भौमेति प्रशस्ताअर्थात मंगलवार को सप्तमी होना अति उत्तम है31march को मंगलवार का दिन सप्तमी तिथि को है।
  • देवी पूजा भद्रा के समय 01 aprel को अवश्य करें।suryodayसे 03:49 तक  भद्रा समय|
  • देवी की पूजा भद्रा में होना श्रेष्ठ परिणाम प्रद माना गया है। देवी पुराण में उल्लेख है- देवी कहती हैं' "मैं भद्रा रूप हूं ,भद्रा मेरा स्वरूप हैहम दोनों में कुछ अंतर नहीं है ,भद्रा काल मे पूजा करने परमैं सब सिद्धि को देने वाली होंउगी 
"अहम भद्रा ,च भद्राहं नावयोरतरं क्वचित।सर्व सिद्धिं प्रदास्यामी भद्रायां अर्चिता ।
निर्णय अमृत ग्रंथ - भद्रा को छोड़कर जो महाष्टमी को मेरी पूजा करता है ।उसने मेरा अपमान किया है ।उसको पूजा का फल नहीं मिलेगा।("विष्टीं त्यक्त्वा महाअष्टंयाम मं 

पूजां करोति य:। तस्य पूजा फल्ंन स्यात्तेनाहं अवामनीता।")
अश्वनी मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को अर्ध रात्रि में पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में भद्रकाली देवी अवतरित हुई थी। इसलिए अष्टमी की रात्रि को दुर्गा उत्सव किया जानाजागरण किया जाना विशेष उपयोगी सिद्ध होता है। अष्टमी एवं नवमी को दुर्गा का पूरा पाठ या दुर्गा सप्तशती सप्तश्लोकी का पाठ अवश्य करें।

राहुकाल में पूजा करे आसुरी शक्ति /शत्रु दमन करे -
शुभ कार्यों के मुहूर्त में अनेक दोष होते है |सर्वाधिक प्रचलित राहुकाल है जबकि शनि का गुलिक काल एवं अन्य अनेक गृह जन्य दोष जैसे काल,यमघण्ट,कुलिक ,कालबेला ,आदि भी दोष है |
राहु काल में देवी पूजा श्रेष्ठ फलदायिनी होती है |दुर्गा देवी का एक स्वरूप छिन्नमस्ता या प्रचंड चंडिका  देवी भी है |राहुकाल की अधिष्ठात्री छिन्नमस्ता या प्रचंड चंडिका  देवी है |

"ॐ एम् ह्रीं क्लीम चामुण्डायै विच्चै |"मन्त्र द्वारा भी राहुकाल में पूजा की जासकती है | अशुभ काल मे पूजा से संकट नाश होते हें एवं अशुभ मुहूर्त के बुरे परिणाम से सुरक्षा होती है |
(श्री दुर्गा सप्तशती सर्वस्वं )
भोपाल-राहूकाल-31मार्च दिनांक-15:29-17:00
शनि दोष नाशक गुलिक काल--12:17-13:57;
बुध ग्रह का हवन बुध दोष नाशक योग |
दुर्मुहूर्त-08:45-09:30;

सप्तमी तिथि को द्वार पूजा

षष्ठी तिथि तक अर्थात 30 मार्च  तक दुर्गा जी का कलश में उपस्थित रही  हैं इसके पश्चात सप्तमी तिथि 31 मार्च से  से उनकी मूर्ति में पूजा की जाना चाहिए
सप्तमी तिथि को द्वार पूजा की जाना चाहिए इससे आगामी माह तक आकस्मिक सुख बाधा एवं परेशानियों से मुक्ति मिलती है मुख्य द्वार या प्रवेश द्वार पर कलश या घट लाल वस्त्र से लपेट लें। आम के पत्ते एवं दुर्बा लगाकर घट के पीछे नारंगी वर्तिक या मौली युक्त दीपक जलाएं। घट बिल्वपत्र सहित आम अशोक ,पीपल ,आंवलाशमीअपराजितापारिजात के पत्तों का पूजन कर कलश में स्थापित करें ,तथा आम के पत्तों का बंदनवार बनाएं। यह पूजा प्रातः एवं अभिजित मुहूर्त में की जाना विशेष उपयोगी है।

अभिजीत काल bhopal-31 मार्च दिनांक-12:00 - 12:49
भोपाल के समय मे (-/+मिनट) ग्वालियर—03;बंगलोर -01;रायपुर-7;हेदरबाद-04;कानपुर-02;मिनट समय रहेगा |
प्रार्थना -"सर्व मंगल मांगल्ए शिवे सर्वार्थ साधिके शर्ण्ड्ये त्रयंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।
ओम महिश्घ्न महामाये चामुंडे मुंडमालिनी ।
आयु आरोग्यम ऐश्वर्यम देहि देवी नमोस्तुते।।
कुमकुमें समालब्धे चंदनेन विलेपिते |
बिल्वपत्र कृता पिडे दुर्गे अहम शरणं गत :।"


दुर्गा स्तुति
दुर्गम शिवम शांति करीम ब्रह्माणी ब्राह्मण प्रियाम।
सर्वलोक प्रणनेत्रीम च प्रणामी सदाशिवाम।।
"
मंगलाम शिवाम शुद्धां निष्कलाम परमाम कलाम।
,
विश्वेश्वरीम विश्वमाताम चंडिकाम प्रणमाम्य अहं।
सर्व देवमयिं देवीं सर्व रोग।भयापहाम ।
ब्रह्मश विध्णु नमिताम प्रणमामी सदा उमाम्ं।"
मंगलाशिवा,शुद्धानिश्कलापरमाकला।
विश्वेश्वरीविश्वमाता,चंडिका,को।मैं प्रणाम ।सर्व देव युक्त,सर्व रोग नाशिनी,ब्रह्मा,विष्णू,शिव जिनकी पूजा करते हैं,उनको मैं नमस्कार करता हुँ।

हवन 
अष्टमी तिथि को सफेद तिल खीर सरसों ,सुपारीलावादुर्वांकुर ,जोनारियल ,लाल चंदन ,गूगलजायफल आदि मिलाकर हवन करना श्रेष्ठ माना गया है।


02 अप्रेल नवमी तिथि बलि-तिथी श्रेष्ठ मानी गई है-
कालिका पुराण कामरूप निबंध आदि ग्रंथ में अष्टमी तिथि को बलिदान करने के लिए वर्जना का उल्लेख ग्रंथो मे है।
नवमी तिथि पापनाशिनी हैएवं महान पुण्य प्रदान करने वाली है ।
बलि-नारियल या कुम्हडा या उड़द पिण्ड की दी जाना चाहिये ।
उत्तर दिशा मे आपका मुह एवं बलि वस्तु का मुह पूर्व की और हो।



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