अनंत चतुर्दशी –विष्णु के अनंत स्वरूप पूजा-
पूजा का मुहूर्त एव रक्षासूत्र बंधने मुहूर्त
श्रेष्ठ मुहूर्त- धृति योगः 17 सितंबर को सुबह 07:48 बजे तक (शुभ योग)
रवि योगः मंगलवार सुबह 06:07 बजे से दोपहर 01:53 बजे तक
( योग निर्माण -सूर्य दसवें भाव में और दसवें भाव का स्वामी शनि के साथ तीसरे भाव में हो, यह अत्यंत शुभ योग )
शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार –
अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु, यमुना और शेषनाग की पूजा करनी चाहिए।
मान्यता है कि- यह पूजा से गुरु ग्रह के अशुभ प्रभाव से मुक्ति मिलती है ,
अविवाहित लोगों के विवाह की बाधा दूर होती है।
भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद बाह/भुजा बाजू में एक धागा रेशमी चौदह गांठें तुक्त बांधते हैं. जिसे अनंत सूत्र या रक्षासूत्र कहा जाता है. इस धागे में चौदह गांठें होती हैं. त्रिमुहूर्तापि ग्राह्यानन्तव्रते तिथि: ।
तथा भाद्रपदस्यान्ते चतुर्दश्यां द्विजोत्तम:।।
पौर्णमस्या: समायोगे व्रतं चानन्तकं चरेत् ।
• ज्ञान . धन की प्राप्ति होगी
• अनंत चतुर्दशी पर स्नानादि करके
• संकल्प
• "ममखिलपापक्षयपूर्वक शुभफलवर्द्धये श्रीमदनन्तप्रीतिकामनया अनन्तव्रत अहं करिष्ये ।।
• इस मंत्र जाप करते हुए व्रत का संकल्प लें.
• -कलश स्थापित कर उसपर अनंत स्वरूप भगवान श्री विष्णु की शेषनागमयी प्रतिमा स्थापित करें. आचमन कर पीले रंग का वस्त्र धारण करें। अब सबसे पहले भगवान भास्कर को जल का अर्घ्य दें। तत्पश्चात, पूजा गृह में चौकी पर वस्त्र बिछाकर भगवान नारायण की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। इसके समुख कलश स्थापित करें। कलश में अष्टदल कमल रखें। भगवान विष्णु के समक्ष अनंत रक्षा सूत्र रखें। घर में जितने लोग हैं, उतने रक्षा सूत्र रखें। अब भगवान नारायण के अनंत स्वरूप की विधि विधान से पूजा करें।
•
• रक्षा कवच –
• विष्णु मूर्ति के समक्ष चौदह ग्रन्थि से युक्त रेशम या कच्चे सूत की डोर.परिवार में जितने सदस्य हो उनके लिए एक एक रखें .
• पूजन के उपरान्त अनन्त सूत्र को पुरूष दाहिने और स्त्री बाएं भुजा पर बांध लें.
• भगवान विष्णु के 14 रूप –
• अनंत, ऋषिकेश, पद्मनाभ, माधव, वैकुण्ठ, श्रीधर, त्रिविक्रम, मधुसूदन, वामन, केशव, नारायण, दामोदर और गोविन् है.
• शास्त्रों - 14 गांठ वाले सूत्र को 14 लोक-
भूर्लोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपोलोक, ब्रह्मलोक, अतल, वितल, सतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल लोक है.
अनंत सूत्र के प्रत्येक गांठ प्रत्येक लोक एवं विष्णु के 14 स्वरूपं से सम्व्बंधित हैं.
.
• "ॐ अनन्ताय नमः"
• तिल, घी, खांड, मेवा एवं खीर इत्यादि से हवन करके यथासंभव दान का भी विधान है.
• - केले के वृक्ष का पूजन करें.
• नमक का सेवन न करें.
अनंत सूत्र बांधने का मंत्र
अनन्त संसार महासमुद्रे मग्नान् समभ्युद्धर वासुदेव।
अनन्तरूपे विनियोजितात्मा ह्यनन्तरूपाय नमो नमस्ते।।
अनंत चतुर्दशी की कथा -
-वशिष्ठ गोत्र मुनि , सुमंत का ,विवाह महा ऋषि भृगु की पुत्री दीक्षा से हुआ। इन की संतान का नाम शीला था। दीक्षा की मृत्यु के बाद सुमंत ने कर्कशा नामक कन्या से विवाह कर लिया। उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह कौंडिण्य मुनि से करवाया परंतु कर्कशा के क्रोध के चलते सुशीला एकदम साधन हीन हो गई कौण्डिन्य मुनि विवाह करके अपने घर लौट रहे थे .
मार्ग में नदी के तट पर स्त्रियों को अनन्त व्रत करते हुये देखकर शीला ने भी अनन्त का व्रत कर अपनी बाहु में अनन्त सूत्र बांध लिया , जिसके प्रभाव से थोड़े ही दिनों में उसका घर धन धान्य से परिपूर्ण हो गया.
एक दिन कौण्डिन्य मुनि ने अपनी पत्नी के बाहु में बँधे हुए सूत्र को देखा ,
मुनि ने शीला से कहा - क्या तुमने मुझे वश में करने के लिए यह बाँधा है?
शीला ने कहा स्वामी,नहीं नहीं, यह अनन्त भगवान का सूत्र है.
कौण्डिन्य मुनि ने उसे तोड़कर फेंक दिया. जिसके परिणाम स्वरूप कुछ ही समय में वे सुख वैब्हब हीन ,दीन हीन हो गए.
कौण्डिन्य मुनि को अपनी भूल का ज्ञान होने पर दोष का उपाय करने के लिए अनन्त भगवान से क्षमा मांगने हेतू घर छोड़कर वन में चले गये और वहां जाकर विष्णु स्वरूप भगवान श्री अनन्त को प्रसन्न करने के लिए उपासना करने लगे.
बहुत वर्ष उपासना के पश्चात् भी आशीर्वाद न मिलने से ,दुखी निराश होकर वृक्ष की शाखा से लटककर मृत्यु का वरण करने जा रहे थे,
तभी एक वृद्ध ब्राह्मण ने वहाँ उपस्थित होकर उन्हें रोक कर कहा कि चलो गुफा में तुम्हें अनन्त भगवान का दर्शन करता हूँ.
वृद्ध के भेष में भगवान श्री अनन्त ने गुफा में लेजाकर अपने चतुर्भुज स्वरूप में दर्शन दिया और कहा- तुमने जो अनन्त सूत्र का तिरस्कार किया है, उसकी भूल सुधारने के लिए तुम चौदह वर्षों तक अनन्त व्रत का पालन करो, इससे तुम्हारी नष्ट हुयी सम्पत्ति पुनः प्राप्त हो जाएगी.
कौण्डिन्य मुनि ने स्वीकार कर उप्पे प्रारंभ किया जैसे जैसे वर्ष बीतते गए भगवान श्री अनन्त की कृपा से कौण्डिन्य मुनि की संपत्ति और ऐश्वर्य उन्हें पुनः प्राप्त हो गया.
अनंत चतुर्दशी के व्रत से - धन, पद, प्रतिष्ठा लाभ -
-उदाहरण-
युधिष्ठिर अपने भाइयों और द्रोपदी के साथ वनवास में अनेक कष्टों को सहन कर रहे थे, - श्रीकृष्ण ने उन्हें कष्टों से मुक्ति के लिए अनन्त व्रत करने का उपदेश दिया था.
अनंत चतुर्दशी – दूसरी कथा
- पांडवों के राज्य हीन होने के बाद श्री कृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी का व्रत रखने का सुझाव दिया। इसके बाद पांडवों के युधिष्ठिर ने , राज्य वापस पाने के लिए श्री कृष्ण जी से उपाय पूछा. -,श्री कृष्ण से पूछा –
भगवान् श्री कृष्ण ने भाद्र चतुर्दशी को अनंत भगवन की पूजा –व्रत करने को कहा.
युधिष्ठिर ने पूछा- ये अनंत कौन है और इस का व्रत क्यों चाहिए.
-श्री कृष्ण ने कहा कि श्री विष्णु के स्वरूप को ही अनंत कहते हैं,भाद्र चतुर्दशी को अनंत स्वरूप की व्रत पूजा से संकट खत्म हो जाते हैं।
और वह अपने पति के साथ जब एक नदी पर पहुंची तो उसने कुछ महिलाओं को व्रत करते हुए देखा।
उसने भी अपनी समस्याओं के निवारण के लिए चतुर्दशी व्रत रखना शुरू किया और इस तरह व्रत रखने के बाद उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो गई।
अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति जी का विसर्जन
अनंत चतुर्दशी के दिन Ganesh Chaturthi का अंत होता है तथा गणेश जी का विसर्जन किया जाता है। इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा है। कथा के अनुसार जिस दिन वेदव्यास जी ने महाभारत अनंत सूत्र के 14 गांठ का रहस्य
• अनंत चतुर्दशी के दिन पूजा के बाद बाजू में बांधे जाने वाले अनंत सूत्र में चौदह गांठ होती है. शास्त्रों के अनुसार, ये 14 गांठ वाले सूत्र को 14 लोकों ( भूर्लोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपोलोक, ब्रह्मलोक, अतल, वितल, सतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल लोक) का प्रतीक माना जाता है. अनंत सूत्र के प्रत्येक गांठ प्रत्येक लोक का प्रतिनिधित्व करते हैं.
• साथ ही इसे भगवान विष्णु के 14 रूपों (अनंत, ऋषिकेश, पद्मनाभ, माधव, वैकुण्ठ, श्रीधर, त्रिविक्रम, मधुसूदन, वामन, केशव, नारायण, दामोदर और गोविन्द) का भी प्रतीक माना गया है.
• कहा जाता है कि,14 लोकों की रचना के बाद इनके संरक्षण व पालन के लिए भगवान 14 रूपों में प्रकट हुए थे और अनंत प्रतीत होने लगे थे. इसलिए अनंत को 14 लोक और भगवान विष्णु के 14 रूपों का प्रतीक माना गया है. इतना ही नहीं रेशम या कपास से बना यह सूत्र आपकी रक्षा भी करता है. इसलिए इसे रक्षा कवच कहा जाता है.
• पूजा के बाद इसे बाजू में बांधने से व्यक्ति को भय से मुक्ति मिलती है और पाप कर्म नष्ट हो जाते हैं. मान्यता है कि, जो व्यक्ति पूरे 14 वर्ष तक अनंत चतुर्दशी का व्रत करता है, पूजा-पाठ करता है और चौदह गांठ वाले इस अनंत सूत्र को बांधता है उसे भगवान विष्णु की कृपा से बैकुंठ की प्राप्ति होती है. Anant Chaturdashi
अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति जी का विसर्जन
अनंत चतुर्दशी के दिन Ganesh Chaturthi का अंत होता है तथा गणेश जी का विसर्जन किया जाता है। इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा है। कथा के अनुसार जिस दिन वेदव्यास जी ने महाभारत लिखने के लिए गणेश जी को महाभारत की कथा सुनानी शुरू की थी उस दिन भाद्र शुक्ल चतुर्दशी थी। कथा सुनाते समय वेदव्यास जी ने आंखें बंद कर ली थी और गणेश जी को लगातार 10 दिनों तक वह कथा सुनाते रहे थे। गणेश जी का काम कथा लिखना था और वह लगातार 10 दिनों तक तथा लिखते रहे। दसवे दिन जब वेदव्यास जी ने आंखें खोली तो उन्होंने देखा कि एक जगह बैठकर लगातार लिखते लिखते गणेश जी के शरीर का तापमान काफी ज्यादा बढ़ गया था। ऐसे में वेदव्यास जी ने गणेश जी को ठंडक प्रदान करने के लिए ठंडे जल में डुबकी लगाई; डुबकी लगाने के लिए वह उन्हें अलकनंदा और सरस्वती नदी के संगम पर ले गए। जिस दिन उन्होंने गणेश जी को डुबकी लगवाई उस दिन अनंत चतुर्दशी का दिन था। यही वजह है कि अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश चतुर्थी का अंत होता है और इस दिन गणेश जी का विसर्जन किया जाता है। 10 दिनों तक लगातार साधना करने के बाद उनका विसर्जन किया जाए तो इससे मनवांछित फल प्राप्त होते हैं। Anant Chaturdashi
अनंत चतुर्दशी व्रत नियम
कई भक्त भगवान विष्णु के प्रति भक्ति और कृतज्ञता के प्रतीक के रूप में अनंत चतुर्दशी पर व्रत रखते हैं। उपवास सूर्योदय से शुरू होता है और शाम की प्रार्थना के बाद समाप्त होता है। अनंत चतुर्दशी व्रत के दौरान, अनाज, दालों और कुछ सब्जियों का सेवन करने से बचना चाहिए। इसके बजाय फल, दूध और व्रत में खाई जाने वाली अन्य चीजों का सेवन किया जाना चाहिए। माना जाता है कि इस व्रत से आत्मिक शुद्धि और भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है। प्रार्थना और भक्ति पर ध्यान केंद्रित करते हुए पूरे दिन एक शांतिपूर्ण और सकारात्मक मानसिकता बनाए रखना महत्वपूर्ण है। इस दिन पूजा के बाद अनंत सूत्र बांधना न भूलें।
उपाय-
• अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करें।
• समस्या समाधान या सफलता-
• कलश पर 4या 14 जायफल रखें। पूजा के बाद
• जायफल को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें।
• बीमारी - अनंत चतुर्दशी के दिन अनार , सिर से वार कर भगवान विष्णु के कलश पर चढ़ाएं . किसी गाय को खिला दें। \ रोग जल्दी ही ठीक होगा।
धृति योगः 17 सितंबर को सुबह 07:48 बजे तक (शुभ योग)
श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें : १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे । २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए । ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं । श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते किस तिथि की श्राद्ध नहीं - १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चाहिए । पिता जीवित हो तो, गया श्राद्ध न करें । २. मां की मृत्यु (सौभाग्यवती स्त्री) किसी भी तिथि को हुईं हो , श्राद्ध केवल
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें