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16दिन श्राद्ध: उपयोगिता, पिता की मृत्यु तिथि एवं माता का नवमी तिथि को करें-

 


16दिन श्राद्ध: उपयोगिता, पिता की मृत्यु तिथि एवं माता का नवमी तिथि को करें-

श्राद्ध कर्म उचित समय-दोपहर 11:30 से 12:30 बजे तक श्राद्ध कर लेना चाहिए।

दैनिक जल एवं टिल तर्पण प्रातः, पहले पितृ,-दक्षिण दिशा,ऋषि उत्तर दिशा एवं अंत में पूर्व दिशा में देवताon को अर्पण करे.

चाहिए।हमारे धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में कहा गया है हैं कि इन दिनों में पृथ्वी लोक के सबसे नजदीक होता है पितर लोक। जहां हमारे पितर निवास करते हैं जिनका पुर्नजन्म नहीं होता है। वो सभी अपने रिश्ते-नातेदारों से मिलने आते हैं। नियमित रूप से उनकी पूजा-पाठ कैसे किया जाए, इसके लिए ही यह श्राद्ध की व्यवस्था की गई है। श्राद्ध - श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म

वर्ष के किसी भी पक्ष में जिस तिथि को घर के पूर्वज का देहांत हुआ हो उनका श्राद्ध कर्म पितृपक्ष की उसी तिथि को करना ।

ये कर्म- तर्पण, पिंडदान, ब्राह्मण भोज है। इसके अलावा कुछ जीवों को भोजन कराना भी इस कर्म में शामिल है। ये जीव हैं गाय, कुत्ता, कौआ, चींटी आदि।

पूर्णिमा श्राद्ध  - निधन वर्ष की किसी भी पूर्णिमा को हुआ हो।

शास्त्रों में भाद्रपद पूर्णिमा के दिन देह त्यागने वालों का तर्पण आश्विन अमावस्या को होता  है

पहला श्राद्ध ननिहाल पक्ष के पूर्वजश्राद्ध
-मृत्यु किसी भी माह के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन हुई हो उनका श्राद्ध पितृ पक्ष की इसी तिथि को किया जाता है।

प्रतिपदा श्राद्ध - ननिहाल के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला नहीं हो या उनके मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो तो भी आप श्राद्ध प्रतिपदा तिथि में उनका श्राद्ध कर सकते हैं।

* द्वितीय श्राद्ध – 1 अक्टूबर 2023
जिन पूर्वज की मृत्यु किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है।

* तीसरा श्राद्ध महाभरणी श्राद्ध
जिनकी मृत्यु कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन होती है, उनका श्राद्ध तृतीया तिथि को करने का विधान है. इसे भी कहा जाता है।
* चौथा श्राद्ध – 3 अक्टूबर 2023
- चतुर्थी तिथि में जिनकी मृत्यु होती है, उनका श्राद्ध पितृ पक्ष की चतुर्थ तिथि को किया जाता है।

* पांचवा श्राद्ध अविवाहित श्राद्ध
-जिनकी मृत्यु अविवाहित के रूप में होती है उनका श्राद्ध पंचमी तिथि में किया जाता है। यह दिन कुंवारे पितरों के श्राद्ध के लिए समर्पित होता है।
पंचमी तिथि को भरणी श्राद्ध करा जाता है इस दिन उन लोगों के लिए श्राद्ध होता है जो अविवाहित
* छठा श्राद्ध
किसी भी माह के षष्ठी तिथि को जिनकी मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है। इसे छठ श्राद्ध भी कहा जाता है।

* सातवां श्राद्ध
- माह के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को जिन व्यक्ति की मृत्यु होती है, उनका श्राद्ध

* आठवां श्राद्ध-
- पितर जिनकी मृत्यु पूर्णिमा तिथि पर हुई हो तो उनका श्राद्ध अष्टमी, द्वादशी या पितृमोक्ष अमावस्या पर किया जाता है।

* नवमी श्राद्ध-मातु श्राद्ध
माता की मृत्यु तिथि के अनुसार श्राद्ध न करके नवमी तिथि पर उनका श्राद्ध करना चाहिए।
माता, दादी, नानी पक्ष का श्राद्ध किया जाता है
नवमी तिथि को माता का श्राद्ध करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती हैं।

जिन महिलाओं की मृत्यु तिथि याद न हो उनका श्राद्ध भी नवमी तिथि को किया जा सकता है।

* दशमी श्राद्ध -दशमी तिथि को जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई हो, उनका दसवीं तिथि के दिन किया जाता है।

* एकादशी श्राद्ध
- जो संन्यास लिए हुए होते हैं, उन पितरों का श्राद्ध एकादशी तिथि को करने की परंपरा है।
* द्वादशी श्राद्ध सन्यासी श्राद्ध
पिता संन्यास - मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो. इसलिए तिथि को संन्यासी श्राद्ध भी कहा जाता है।
त्रयोदशी- कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को बच्चों का श्राद्ध किया जाता है।

* चतुर्दशी तिथि - अकाल मृत्यु हुई हो जैसे आग से जलने, शस्त्रों के आघात से, विषपान से, दुर्घना से या जल में डूबने से हुई हो, उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को करना चाहिए।
* अमावस्या तिथि पितृ पक्ष के अंतिम दिन सर्वपितृ अमावस्या पर ज्ञात-अज्ञात पूर्वजों के श्राद्ध किए जाते हैं। इसे पितृ विसर्जनी अमावस्या, महालय समापन भी कहा जाता है।

महत्वपूर्ण बातें
हर व्यक्ति को अपने पूर्व की तीन पीढ़ियों (पिता, दादा, परदादा) और नाना-नानी का श्राद्ध करना चाहिए।

ब्रह्मपुराण - शाक के द्वारा , श्रद्धा-भक्ति श्राद्ध कने वाले के  परिवार   में कोई भी दुखी नहीं होता.

मार्कण्डेय पुराण - श्राद्ध से तृप्त पितृगण .श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, संतति, धन, विद्या सुख, राज्य, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करते हैं.

देवस्मृति - श्राद्ध करने वाला निरोगी, स्वस्थ, दीर्घायु, योग्य संतति वाला, धनी तथा लक्ष्मी की प्राप्ति करता है.

वर्जित भोज्य पदार्थ-पितृ पक्ष में चना, मसूर, बैंगन, हींग, शलजम, मांस, लहसुन, प्याज और काला नमक

तुलसी पूजा करने वाले को श्राद्ध और तर्पण से जुड़ा कार्य नहीं कराना चाहिए. पितृपक्ष में तुलसी की माला पहनना, तुलसी के पत्‍ते दान करने और पौधे की देखभाल करने से लाभ होता है

कथा

रूची नाम का ब्रह्मचारी साधक ऋषिवत वेदों के अनुकूल साधना नियमित करता था,

40 वर्ष की आयु में उसको  उसे अपने चार पूर्वज जो अनिचित आचरण व शास्त्र विरुद्ध कार्य जीवन में करते रहे, म्रत्यु उपरांत  पितर बन कष्ट भोगते  दिखाई दिए।

पितरों ने उससे कहा कि बेटा रूची शादी करवा कर हमारे श्राद्ध निकाला करो, हम अत्यंत पीड़ित  दुःखी हो कर कष्ट भोगने को विवश हैं।

- रूची ऋषि - पितरों वेद में क्रिया या कर्म काण्ड कार्य (श्राद्ध, पिण्ड भरवाना आदि) को मूर्खों का कार्य कहा गया  है।

आप मुझे क्यों वेद विरुद्ध शास्त्र विधि रहितकार्य करने के लिए कह रहे हो। आप अपने स्वार्थ की बाते क्यों कर रहे हो .जिन कारणों से आप कष्ट भोग रहे हो वे आपके कर्म फल ही हैं.

- पितरों ने कहा - बेटा बात असत्य है कि” वेदों में पितर पूजा, भूत पूजा , देवी देवताओं की पूजा को भी अज्ञानता मुर्खता या व्यर्थ कहा गया  है.ved bhasha dev bhasha jisko samnya log samjh nahi pate islie esa kahte hain.

पूर्वज पूजा वैदिक काल से प्रचलित रही है।

- वैदिक ऋचाओं में पितरों की प्रशस्ति हैं। पितरों का आह्वान कर,उनसे  पूजकों (वंशजों) को धन, समृद्धि एवं शक्ति प्रदान करने का लेख  है,।

-ऋग्वेद की ऋचा (१०.१४.१) में पितरों को आराधना के साथ  यम तथा वरुण का भी उल्लेख है।

-ऋग्वेद (१०.१५) के द्वितीय छंद - सर्वप्रथम और अंतिम दिवंगत पितृ तथा अंतरिक्षवासी पितृ श्रद्धेय हैं।

- मृतात्मा की यात्रा - तीन विभिन्न लोकों से होकर पूर्ण होती है।

-ऋग्वेद (१०.१६) - अग्नि से अनुरोध है  कि वह मृतकों को पितृलोक तक पहुँचाने में सहायता करे .।

अग्नि प्रार्थना की वे, वंशजों के दान पितृगणों तक पहुँचाकर उनको कष्टदायी  भटकने से बचाए, करें।

- वंशज सुख समृद्धि की प्राप्ति के हेतु पिंडदान देते

अपने वंशजों के निकट आएँ, आसन ,, पूजा स्वीकार करें और वंशजों के अपराधों से अप्रसन्न न हों।

मृत्यु पश्चत . आत्मा चंद्रलोक जाती है या  ऊंची हो  पितृ लोक में पहुंचती है. मृतात्मा को अपने स्थान तक पहुंचने की शक्ति ,सहायता के लिए पिंडदान और श्राद्ध का विधान है.

- कौशीतकी ग्रन्थ तीन जन्म वर्ण -1-पिता की मृत्यु के उपरांत पुत्र में ओर पुत्र के बाद पौत्र में जीवन की निरंतरता बनी रहती है. पौत्र का जन्म  दूसरे प्रकार का जन्म है। मृत्युपरांत पुनर्जन्म तीसरे प्रकार का जन्म है।

तीन पीढ़ियां हमारे शरीर में हैं. हमारे माता-पिता,दादा-दादी,परदादा-परदादी, वृद्ध परदादा वृद्ध परदादी इन तीन का शरीर/प्रभाव  शरीर में रहता है

2- पितृ जो मृत्यु के पश्चात् चंद्रलोक जाते हैं .वे अपने कर्म के अनुसार , वर्षा के माध्यम से पृथ्वी पर कीट पशु, पक्षी अथवा मानव रूप में जन्म लेते हैं।

अन्य पितृ  देवयान द्वारा अग्निलोक में चले जाते हैं।

छांदोग्य –मृत्युपरांत ज्ञानी सद पुरुष. देवयान द्वारा ब्राह्मण पद प्राप्त करते हैं।

पूजापाठ एवं जनहित कार्य करने वाले मृत्युपरांत - पृथ्वी पर लौट आते हैं और उसी नक्षत्र में जन्म लेते हैं,जिनमे म्रत्यु हुई,।

-मृतक के लिए ,दान द्वारा श्राद्ध संस्कारों की कुल संख्या १६ है। श्राद्ध संस्कारों के पश्चत  पहला शरीर नष्ट हो जाता है .

नए शरीर का निर्माण होता. श्राद्ध संस्कार  कार्य का . वेद वर्णित कर्तव्यों में विशेष महत्व है।

आत्मा के संसरण - मार्ग पूर्व कर्मों पर निर्भर  है तथापि वंशजों द्वारा संपन्न श्राद्ध क्रियाओं से ये परिवर्तित भी होता है.

हिंदू, बौद्ध तथा जैन तीनों में  पुनर्जन्म एवं पितरों की सत्ता में है।

मुंबई के ढोर कठकरी तथा अन्य - बिना छिले नारियलको  पूर्वज मानकर उसकी पूजा करते हैं।सभी वर्गों में मृतक की आत्मा के लिए अलग २विधि  एवं कर्म हैं.

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janhit me bivinn star par sanklit-sabhar- prastut-avshyak bidu shraddh sambandhit 

पितृ पक्ष के दौरान जानने योग्य आवश्क बाते:-
- पितृपक्ष-वी- देवताओं की पूजा की सकती है.
-. पितृ पक्ष में पूजा-पाठ बंद नहीं करना चाहिए

-पक्ष -पितरों की पूजा और पिंडदान का विशेष महत्व है

-गाय के गोबर से बने कंडे जलाकर उस पर धूप देनी चाहिए
- तर्पण और पिंडदान करना चाहिए
- दान- दक्षिणा देनी चाहिए  
  
पितृपक्ष का पालन करते हुए दैनिक पूजा-पाठ कर सकते हैं?
-पितरों के तर्पण के पश्चात् भगवान् सूर्य को अर्घ्यदान करने का विधान है ।

-यहाँ प्रतिदिन (पूरे वर्ष ) तर्पण एवं सन्ध्या-वन्दन एवं जप-पूजन करने का विधान .वी- देवताओं की पूजा के बिना पितृपक्ष में श्राद्ध, पिंडदान इत्यादि का फल नहीं मिलता है, इसलिए पितृपक्ष- प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में स्नान ध्यान करने के बाद नित्य की तरह देवी देवताओं की पूजा करना शुभ माना गया है|  पितृ पक्ष में मंदिर जा सकते हैं।

- स्नान- पूजन के बाद पितरों को तर्पण के साथ पिंडदान करना
चाहिए। हथेली भर अना-इसके अलावा गंगाजल, कुश, काले तिल, फूल-फल औरऔर दूध व उनसे बने पकवान अर्पण करना चाहिए।
-पितृपक्ष अवधि में गर्भ धारण करने से संतान को सेहत से जुड़ी समस्याएं हो सकती है। यही नहीं पैदा होने वाली संतान विकृत हो सकती है। 

-पितृ पक्ष में उनका तर्पण, पिंडदान, और श्राद्ध कर्म से पितरों की नाराजगी से मुक्ति मिलती है। 

पितरों की शांति के लिए उनके नाम का भोजन, जल जरूर निकालें। 

यमपूजा के उपरांत"पितृ आवाहन'

  -चौकी पर पीला वस्र बिछाकर उस पर चावलों की ढेरी पर एक दीपक प्रज्वलित किया जाता है।

 में अक्षत लेकर मृतात्मा का आवाहन किया जाता है 

"पितृ आवाहन' नामक अनुष्ठान किया जाता है, जिसमें एक चौकी पर पीला वस्र बिछाकर उस पर चावलों की ढेरी पर एक दीपक प्रज्वलित किया जाता है।

हाथ में अक्षत लेकर मृतात्मा का आवाहन किया जाता है

 पितृ के मंत्र है:-
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । ...
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।
ॐ पितृ देवतायै नम:।
ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो
प्रचोदयात्।
ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च ...
  ladies तर्पण कर सकती हैं?  

 हां।  महिलाएं भी पुरुषों की तरह ही पितृ तर्पण कर सकती हैं

-. Pitra Dosh Symptoms:

 - कुंडली के प्रभाव से जीवन में हमेशा मुश्किलें आती रहती हैं.

 घर में किसी का बीमार रहना, 

मान-सम्मान की हानि, पिता से विवाद, 

सफलता न मिलना या फिर बने बनाए काम का बिगड़ जाना. 

ह लक्षण कुंडली में सूर्य के कमजोर होने का संकेत हैं.|
 

वी-देवताओं की पूजा के बिना पितृपक्ष में श्राद्ध, पिंडदान इत्यादि का फल नहीं मिलता है, 

पक्ष - काल ब्रह्म मुहूर्त में स्नान ध्यान करने के बाद नित्य की तरह देवी देवताओं की पूजा करना शुभ माना गया है.|

 -सुबह स्नान-पूजन के बाद पितरों को तर्पण के साथपिंडदान करना  चाहिए।

 हथेली भर अनाज का पिंड (जौ के आटे, खीर या गाय का दूध के खोआ) बनाकर उसे पितरों को अर्पण करना चाहिए। इ

गाजल, कुश, काले तिल, फूल-फल और दूध व उनसे बने पकवान अर्पण करना चाहिए।
- परिजन की मृत्यु के एक साल बाद भरणी श्राद्ध करना बहुत जरूरी होता है. 

 अविवाहित मरने वालों का भरणी nakshtra

 पितरों को पानी देने के लिये इनके पुत्र, पौत्र, भतीजा, भांजा कोई भी श्राद्ध कर सकता है. 

इसके अलावा, जिनके घर में कोई पुरुष सदस्य नहीं है लेकिन पुत्री के कुल में है तो धेवता और दामाद भी श्राद्ध कर सकते हैं. यदि यह भी संभव न हो तो पुत्री अथवा बहू भी श्राद्ध कर सकती है.
-पितरों की उम्र धर्मशास्त्रों के अनुसार 

पितरों का निवास चंद्रमा के उर्ध्वभाग में माना गया है। 

ये आत्माएं मृत्यु के बाद 1 से लेकर 100 वर्ष तक मृत्यु और पुनर्जन्म की मध्य की स्थिति में रहती हैं। 

पितृलोक के श्रेष्ठ पितरों को न्यायदात्री समिति का सदस्य माना जाता है।
-वस्त्र सफेद हो ,क्षिण दिशा की तरफ मुख कर .हाथ में कुशा बांध लें।

 खाली बड़ा वर्तन लें और उसमें गंगाजल, सफेद फूल, कच्चा दूध और काले तिल डाल लें।
-पितृ दोष निवारण मंत्र 

'ॐ श्री सर्व पितृ देवताभ्यो नमो नमः', ॐ प्रथम पितृ नारायणाय नमः, ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ये सभी मंत्र आपको पितृ दोष से मुक्ति दिलाने में मदद करते हैं और यदि आप इन मंत्रों का जाप विधि-विधान से करते हैं तो पितरों को मुक्ति मिलती है और उनका आशीर्वाद मिलता है।
   पितरो की स्तुति :-

प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च । योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।। हिन्दी अर्थ– प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ । नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।

-  पितृ दोष के लक्षण- 

शास्त्रों के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति पितृ दोष से पीड़ित है तो भरसक प्रयासों के बाद भी उसका वंश आगे नहीं बढ़ता है। ...
घर में पीपल के पौधे का बार बार उगना भी पितृ दोष का एक लक्षण माना गया है।

 पितृ दोष निवारण के लिये 

ये  पीपल के वृ्क्ष की पूजा करने से पितृ दोष की शान्ति होती है . इसके साथ ही सोमवती अमावस्या को दूध की खीर बना, पितरों को अर्पित करने से भी इस दोष में कमी होती है .

 या फिर प्रत्येक अमावस्या को एक - श्राद्ध कर्म, इस दौरान किया गया पिंडदान सात पीढ़ियों का करता है 

-पितरों के लिए तर्पण के उत्तम कुतुप काल, रोहिण काल और अपराह्न काल कहा जाता है। 

कुतुप काल में 11:36 से 12:25 बजे तक का समय होता है। 

रोहिण काल में 12:25 से 1:14 बजे तक का समय होता है। 

अपराह्न काल में 1:14 - जल देते समय 

ॐ पितृ देवतायै नम: मंत्र का जाप करने से भी पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। 'ओम आगच्छन्तु में पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम' पितरों को जल देते समय इस मंत्र का जाप करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है
-पितरो की शाँति के लिये 

अर्यमा पितरों के देवता माने जाते हैं। 

 अर्यमा महर्षि कश्यप और देवमाता अदिति के पुत्र हैं। पितृ पक्ष में अयर्मा देव की पूजा का विधान है। 

अर्यमा देवता की उपासना करने से पितरों को मुक्ति मिलती है
-.  यमपूजा के उपरांत 

"पितृ आवाहन' नामक अनुष्ठान किया जाता है, जिसमें एक चौकी पर पीला वस्र बिछाकर उस पर चावलों की ढेरी पर एक दीपक प्रज्वलित किया जाता है। तदनंतर हाथ में अक्षत लेकर मृतात्मा का आवाहन किया जाता है और -  स्नान-पूजन के बाद पितरों को तर्पण के साथ पिंडदान  करना चाहिए। 

हथेली भर अनाज का पिंड (जौ के आटे, खीर या गाय का दूध के खोआ) बनाकर उसे पितरों को अर्पण करना चाहिए। इसके अलावा गंगाजल, कुश, काले तिल, फूल-फल और दूध व उनसे बने पकवान अर्पण  करना चाहिए।
३६.  गीता का पाठ करने से होता है पितरों का उद्धार होता है
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पितरों से प्रार्थना कैसे करें?

 पितृ पक्ष में सुबह जल्दी उठें और स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें।
अब एक लोटे में जल, फूल, कुश, अक्षत और तिल डाल ले और  पितरों को जल अर्पित करें।
इसके बाद पितृ मंत्र का जप करें और पितृ चालीसा का पाठ करें।
तर्पण के दौरान dakshinदिशा की ओर मुख होना चाहिए।
पितरों की शांति के लिए प्रार्थना करें 

-पितरों को कैसे बनाएं?
पितरों को प्रसन्न करने के 10 अचूक उपाय gita ka path shreshth  श्राद्ध पक्ष में  करें  श्राद्ध । ...
 पितृदोष का  असर, जानिये लक्षण
तेरस, चौदस, अमावस्या और पू

गया में जाकर तर्पण पिंडदान करें।
३९.  धार्मिक ग्रंथो के अनुसार पितृपक्ष के दिनों में अपने पितरों और पूर्वजों के श्राद्ध कर्म, पिंडदान, तर्पण आदि करने से उन्हें शांति और मोक्ष आदि की प्राप्ति होती है. अपने पितरों की आत्मा को मोक्ष देने के लिए व्यक्ति उनका श्राद्ध कर्म विधि विधान के साथ करता है
४०.दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष के महीने में श्राद्ध करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है। श्राद्ध पक्ष वास्तव में पितरों को याद करके उनके प्रति श्रद्धा भाव प्रदर्शित करने का अवसर है।.
🙏🙏🙏🌹🙏
पितृ पक्ष में महिलाओं को क्या करना चाहिए?
इस दिन उन महिलाओं के लिए श्राद्ध कर्म, पिंडदान, तर्पण और धूप-ध्यान किया जाता है, जो मृत्यु के समय सुहागिन थीं। ...
रूठे हुए पितरों को कैसे मनाना चाहिए?
👌💐👌💐👌💐👌💐
पितरों को मनाने के लिए आपको पितृ पक्ष में उनका तर्पण, पिंडदान, और श्राद्ध कर्म जरूर करना चाहिए। इससे पितरों की नाराजगी से मुक्ति मिलती है। पितरों की शांति के लिए उनके नाम का भोजन, जल जरूर निकालें। भोजन अलग से निकालकर पितरों का आह्वान करके उन्हें चढ़ा दें।
पितरों का आवाहन कैसे किया जाता है?
👌✍👏🏻🙏🏻👏🏻✍👌
यमपूजा के उपरांत "पितृ आवाहन' नामक अनुष्ठान किया जाता है, जिसमें एक चौकी पर पीला वस्र बिछाकर उस पर चावलों की ढेरी पर एक दीपक प्रज्वलित किया जाता है।  तदनंतर हाथ में अक्षत लेकर मृतात्मा का आवाहन किया जाता है और वैदिक मंत्रों के साथ उसका षोडशोपचार पूजन किया जाता है।
पितरों को खुश करने के लिए कौन सा मंत्र बोलना चाहिए?
पितृ के मंत्र है
👌👌👌👌👌👌
    ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।...
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।
ॐ पितृ देवतायै नम:।
ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।
ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य...
पितृ गायत्री मंत्र
🌹👌👌👌👌👌 पितृ पक्ष मे श्रद्धा से किया गया प्रत्येक कार्य शुभ होता है
इसे पढें अपने मित्रों को भेजें व स्वयं पालन करे | ब्राह्मण एकता मंच कटनी से पंडित लूकेश पाण्डेय
पितृ पक्ष में महिलाओं को क्या करना चाहिए?
इस दिन उन महिलाओं के लिए श्राद्ध कर्म, पिंडदान, तर्पण और धूप-ध्यान किया जाता है, जो मृत्यु के समय सुहागिन थीं। ...
रूठे हुए पितरों को कैसे मनाना चाहिए?
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पितरों को मनाने के लिए आपको पितृ पक्ष में उनका तर्पण, पिंडदान, और श्राद्ध कर्म जरूर करना चाहिए। इससे पितरों की नाराजगी से मुक्ति मिलती है। पितरों की शांति के लिए उनके नाम का भोजन, जल जरूर निकालें। भोजन अलग से निकालकर पितरों का आह्वान करके उन्हें चढ़ा दें।
पितरों का आवाहन कैसे किया जाता है?
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यमपूजा के उपरांत "पितृ आवाहन' नामक अनुष्ठान किया जाता है, जिसमें एक चौकी पर पीला वस्र बिछाकर उस पर चावलों की ढेरी पर एक दीपक प्रज्वलित किया जाता है।  तदनंतर हाथ में अक्षत लेकर मृतात्मा का आवाहन किया जाता है और वैदिक मंत्रों के साथ उसका षोडशोपचार पूजन किया जाता है।
पितरों को खुश करने के लिए कौन सा मंत्र बोलना चाहिए?
पितृ के मंत्र
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ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।
ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च ...
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16-Day Shraddha Ritual: Importance, Father's Death Anniversary & Mother's Navami Ritual

During the 16-day period of Shraddha (Pitru Paksha), it is customary to perform rites for one's ancestors, ensuring their peace in the afterlife. The ritual should be conducted between 11:30 AM to 12:30 PM.

A daily water and sesame offering (Tarpan) should be made in the following manner:

  • First to the ancestors (Pitru) facing south.
  • To the sages facing north.
  • Finally, offerings to the gods facing east.

According to our sacred texts and Puranas, during this period, the realm of ancestors (Pitru Lok) is closest to Earth, and ancestors, who have not been reborn, visit their descendants. The Shraddha ritual is a means of showing devotion and ensuring their peace. The word Shraddha itself signifies a task performed with faith.

The Shraddha ritual includes offerings such as Tarpan, Pind Daan (offering of rice balls), and feeding Brahmins. Additionally, certain animals like cows, dogs, crows, and ants are also given food during this time.

Types of Shraddha

  1. Purnima Shraddha: For those who passed away on any full moon (Purnima), their Shraddha is observed on the Amavasya of Ashwin.

  2. First Shraddha: For maternal ancestors, if the death occurred on Pratipada (first day of the lunar month), the Shraddha is performed on the same day during Pitru Paksha.

  3. Second Shraddha –: For ancestors who died on Dwitiya (second day of the lunar month), their Shraddha is observed on this date.

  4. Third Shraddha (Maha Bharani Shraddha): For those who passed away on Tritiya (third day of the lunar cycle), their Shraddha is done on Tritiya.

  5. Fourth Shraddha – : For those who died on Chaturthi (fourth day), their Shraddha is observed on the fourth day of Pitru Paksha.

  6. Fifth Shraddha (Unmarried Ancestors’ Shraddha): For those who passed away unmarried, their Shraddha is performed on Panchami (fifth day). This day is specifically dedicated to unmarried ancestors.

  7. Sixth Shraddha: For those who died on the Shashthi (sixth day of the lunar month), their Shraddha is done on this day, also called Shasthi Shraddha.

  8. Seventh Shraddha: For those who passed on Saptami (seventh day), their Shraddha is conducted on this day.

  9. Eighth Shraddha: If someone died on Purnima (full moon), their Shraddha is conducted on Ashtami or Dwadasi or on Amavasya for Pitru Moksha.

  10. Navami Shraddha (Mother’s Shraddha): For mothers, grandmothers, or maternal ancestors, their Shraddha is performed on Navami. It is believed that conducting this ritual on Navami relieves one from all kinds of difficulties. If a woman's death date is unknown, her Shraddha can still be performed on Navami.

  11. Dashami Shraddha: For those who died on Dashami (tenth day), their Shraddha is done on the same day during Pitru Paksha.

  12. Ekadashi Shraddha: Those who took Sannyasa (renounced worldly life) have their Shraddha conducted on Ekadashi.

  13. Dwadashi Shraddha (Sannyasi Shraddha): For a father who became a Sannyasi (renunciate), his Shraddha is performed on this day regardless of his actual death date.

  14. Trayodashi Shraddha: Shraddha for children who passed away on Trayodashi.

  15. Chaturdashi Shraddha: For those who died an untimely death, such as by fire, weapons, poisoning, accidents, or drowning, their Shraddha is done on Chaturdashi.

  16. Amavasya Shraddha: On the final day of Pitru Paksha, also known as Sarva Pitru Amavasya, Shraddha is performed for known and unknown ancestors. It is also called Pitru Visarjani Amavasya or Mahalaya.

Important Points:

  • Every person should conduct Shraddha for their three preceding generations (father, grandfather, and great-grandfather), as well as for maternal ancestors.
  • Brahma Purana: Shraddha performed with devotion ensures no one in the family remains sorrowful.
  • Markandeya Purana: Satisfied ancestors bless the Shraddha performer with longevity, wealth, education, happiness, and moksha (liberation).
  • Deva Smriti: One who performs Shraddha remains healthy, wealthy, and long-lived.

Prohibited Foods: During Pitru Paksha, avoid eating chickpeas, lentils, brinjal, asafoetida, turnips, meat, garlic, onion, and black salt.

Tulsi Worship: Those performing Shraddha should not worship Tulsi. However, wearing a Tulsi garland, donating Tulsi leaves, or caring for the Tulsi plant brings benefits during Pitru Paksha.

Shraddha for Women: Women are also allowed to perform Tarpan, similar to men.

Pitra Dosh Symptoms:

  • Continuous problems in life.
  • Family illnesses or disputes.
  • Failure in endeavors or disruption of plans.

These symptoms indicate the weakening of the Sun in one's horoscope.

Pitra Dosh Remedies:

  • Offer water to a Peepal tree.
  • Perform Shraddha and Pind Daan on every Amavasya.
  • Recite the mantra "Om Pitrudevayai Namaha" or "Om Pratham Pitr Narayanaya Namaha" to pacify ancestral spirits.

It is believed that by adhering to the rituals of Pitru Paksha, we can ensure the peace of our ancestors and seek their blessings for a prosperous life.

 

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