श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -क्यों, कब ,कोन,किन 2वस्तु से, श्राद्ध करे एवं किसको दान-भोजन हेतु आमंत्रण करे ?
श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य
-क्यों, कब ,कोन,किन 2वस्तु से, श्राद्ध करे एवं किसको दान-भोजन हेतु आमंत्रण करे ?
Jyotish shiromani-pandit vijendr kumar Tiwari kanya kubj brahman ,samved,kashyap gotr,Gita granth shaiv-560102-9424446706
तथ्य विवरण संकलन ग्रन्थ-
मनुस्मृति ,विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण, ब्रह्मांड पुराण, वायु पुराण, कूर्म पुराण, श्राद्ध कल्प, मनुस्मृति, श्राद्ध चंद्रिका ,श्राद्ध संग्रह, साध्य विवेक, पद्मपुराण, श्रीमद् भागवत आदि ग्रंथों में उपलब्ध निर्देशों वचनों या बातों को संकलित कर जनहित में सर्वसामान्य के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है|
श्राद्ध क्या है?
“श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “
अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है |
अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है |
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष /श्राद्ध पक्ष बहुत महत्व है।
पितरों से आशीर्वाद लिया जाता है। महाभारत - भीष्म पितामाह ने युधिष्ठिर को श्राद्ध के श्राद्ध के विषय में जानकारी देने का उल्लेख है.
श्राद्ध की परंपरा कैसे शुरू हुई ?…
श्राद्ध के बारे में सबसे पहले
महाभारत – सर्व प्रथम तपस्वी अत्रि ने महर्षि निमि को श्राद्ध के बारे में ज्ञान दिया । इसके बाद महर्षि निमि ने श्राद्ध करना शुरू किया.
श्राद्ध का भोजन करते-करते देवता और पितर पूर्ण तृप्त हो गए।
अग्निदेव ko bhojn arpn kyo -
निरंतर श्राद्ध - भोजन से देवताओं पितरों को अजीर्ण हो गया .
अग्निदेव ने देवातओं और पितरों से कहा कि मेरे पास रहने से आपका अजीर्ण भी दूर हो जाएगा। श्राद्ध में आप सभी मेरे साथ भोजन किया करें।
इसके बाद से ही सबसे पहले श्राद्ध का भोजन पहले अग्निदेव को दिया जाता है, उसके बाद ही देवताओं और पितरों को दिया जाता है।
ब्रह्म राक्षस भी दूर
- हवन में जो पितरों के लिए पिंडदान दिया जाता, उससे ब्रह्मराक्षस भी दूर रहते हैं, ,
पिंडदान - गायत्री मंत्र का जाप तथा सोमाय पितृमते स्वाहा का जप ।
- तीन पिंडों का है विधान
महाभारत - श्राद्ध में तीन पिंडों का विधान है।
पहले पिंड जल में दें, दूसरा पिंड को गुरुजनों को दें और तीसरा पिंड अग्नि को दें।
श्राद्ध रहस्य - क्यों करे ,न करे ? पिंड रहित ,महालय ?
श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि-
श्राद्ध क्यों करना चाहिए ?
पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है|
पितृ मुक्त भी हो गये हैं तो भी वे , देव की तरह वरदान देकर , सुखी और समृद्ध बनाते हैं.
श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ?
यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश (रक्त,जींस) है ,यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं, तो उनकी आत्मा को कष्ट होता है, वे रुष्ट होकर ,
अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |
वर्ष में कितने अवसर पूर्वज निमित्त दान या श्राद्ध के होते हैं?
वर्ष में श्राद्ध के 96 अवसर होते हैं जैसे 12 अमावस्या चार युग तिथि 14 मनुवादी तिथि 12 संक्रांति 12 विद्युत योग 12 व्यतिपात योग 15 महालय श्राद्ध 5 अगस्त का 5 अगस्त का तथा पांच पर्व वेद्य |
श्राद्ध अपरिहार्य –
अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष –
कष्ट की स्थिति में पितर जल,तिल की अपेक्षा प्रतिदिन संतान से करते है| अपेक्षा पूर्ण न होने पर दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं |
श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान को मंद बुद्धि,दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है |
कब ,क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है ?
यदि हम 96 अवसर पर श्राद्ध नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह भी कहा जाता है | पितृ पक्ष में अपने मित्रगण के मरण तिथि के दिन साथ अवश्य करना चाहिए|
पितरों के लिए वर्ष में एक बार अवश्य श्राद्ध कब करे
हेमाद्रि ग्रन्थ –
आषाढ़ - माह पूर्णिमा से अश्वनी माह अमावस्या तक या कन्या के सूर्य की अवधि में , पित्र पक्ष में एक दिन एसा अवश्य होता है पितरों को अति प्रिय-एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो ,पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं |
पितरों को अति प्रिय श्राद्ध कब?-
पित्र पक्ष में एक दिन एसा अवश्य होता है
1-भाद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र,
2-तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र
3-या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र-23.9.2024
4-या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पितरों को प्रिय है,
इनमे से किसी दिन व्रत,सूर्य पूजा, गौ -दान श्रेष्ठ |
- श्राद्ध का गया तुल्य फल-
5- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र हो | -
6-कन्या के सूर्य वर्षा ऋतू- अश्वनी माह की पंचमी शुक्ल से कृष्ण पंचमी तक शाक से श्राद्ध करना चाहिए |
मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं हो या भूल गए हो तो अमावस्या को श्राद्ध करना चाहिए |
. पुत्रवान गृहस्थ कब श्राद्ध नहीं करे-
-1.6.11..14 तिथि,
दिन-शुक्रवार,
-संतान या ,पत्नी के जन्म नक्षत्र के दिन
-या संतान या ,पत्नी के जन्म नक्षत्र जन्म नक्षत्र से 10वे या 19 वे नक्षत्र के दिन
-या (गर्गमत) – जिनके पुत्र हो उनको
रोहणी,रेवती,मघा नक्षत्र के दिन श्राद्ध करने से धन एवं वंश नाश होता है |
-जिनके पिता जीवित हो वे गया,महालय,तीर्थ,भाद्र माह,मघा नक्षत्र में श्राद्ध -नहीं करे. सन्दर्भ ग्रन्थ- पृथ्वी चंद्रोदय ,प्रयोग पारिजात,वशिष्ठउल्लेख /मत.
-एक वर्ष तक श्राद्ध वर्जित- पिंडदान ,तिल ,तर्पण आदि वर्जित
-विवाह-के बाद एक वर्ष तक,
-जनेऊ,के बाद ६ माह तक,
-चूड़ाकरण के बाद तीन माह तक पिंडदान ,तिल तर्पण वर्जित |
श्राद्ध -नहीं करना चाहिए|
बच्चो की मृत्यु पर विधान- 6 वर्ष तक के बालक एवं 10 वर्ष तक की कन्या का श्राद्ध नहीं किया जाना चाहिए |केवल मृत्यु के 10 दिन में 16पिंड का दान (मलिन षोडशी)या की जाना शास्त्रोक्त है |
- पिंड रहित श्राद्ध ` कब करना चाहिए
शास्त्रों के अनुसार करना चाहिए ,यह जानना आवश्यक है |
पिंड रहित श्राद्ध कब करना चाहिए-
समान्यतः पिंड सहित श्राद्ध करने का विधान है |
पिंड रहित श्राद्ध किन स्थितियों में किया जाना भद्रमाह के कृष्ण पक्ष में होता है
-भरणी नक्षत्र किसी भी दिन हो | (गाय दान श्रेष्ठ होता है |
-तृतीया तिथि को कृत्तिका नक्षत्र हो |
-षष्ठी को मंगलवार एवं व्यतिपात योग हो |
-अश्वनी कृष्ण ,चतुर्दशी को हस्त नक्षत्र में सूर्य या चंद्र मघा नक्षत्र में हो |
-अश्वनी शुक्ल पक्ष.प्रतिपदा को मातामह का पार्वण श्राद्ध |
तर्पण श्राद्ध से पहले किस ग्रह नक्षत्र की स्थिति में करे ?
-अमावस्या को व्यतिपात एवं मृगशिरा,श्रवण,अश्वनी,धनिष्ठा,अश्लेषा, नक्षत्र में हो | इसमें तर्पण श्राद्ध से पहले किया जाता है |
-अमावस्या को -अनुराधा,विशाखा,स्वाति,पुष्य,आर्द्र,पुनर्वसु नक्षत्र हो |
इसमें तर्पण श्राद्ध से पहले किया जाता है |)
ज्ञातव्य -महालय श्राद्ध- विष्णु धर्म ग्रन्थ
-महालय माता श्राद्ध श्रेष्ठ |
गया,महालय,तीर्थ,भद्रमाह,मघा श्राद्ध में द्वादश देव (कुश 12पितर देव प्रतीक }श्राद्ध करना चाहिए ||
-त्रयोदशी मृत तिथि हो उसको महालय श्राद्ध करने का दोष नहीं |
- -महालय के दिन यदि तिथि कम या अधिक हो तो २ श्राद्ध करने का विधान है
-महालय तक या कार्तिक कृष्ण अमावस्या
या वृश्चिक संक्रांति के प्रवेश के दिन कर सकते हैं |
-महालय अर्थात अंतिम दिन अमवस्या को किया जाने वाला,श्राद्ध पके हुए अन्न से अर्थात तले हुए अन्न से किया जाना चाहिए |
- -महालय में पिंड दान नहीं किया हो तो कार्तिक अमावस्या एवं पूर्णिमा को पिंड दान कर ही देना चाहिए |
क्योकि वृश्चिक के सूर्य अर्थात १७ नवम्बर से १६दिसंबर लगभग के पश्चात पितर पिंड न करने वाले को क्रोधित होकर श्राप देकर चले जाते हैं |
पितरों के मोक्ष के लिए -क्या करे
भागवत - गौकरण ने घुंधकारी के न जाने कितने श्राद्ध किये जिसमें गया का श्राद्ध भी शामिल था लेकिन धुंधुकारी की मुक्ति नहीं हुई तब अंत में उनकी मुक्ति भागवत कथा सुनने से ही हुई।
मोक्षदा श्री मदभगवद गीता - (पद्म पुराण )
1-श्री मदभगवद गीता के तीसरे अध्याय का पाठ |
2- मृत्यु तिथि को श्राद्ध के दिन, पूर्वजो को मोक्षद .गीता के सातवे अध्याय का पाठ|
3-पूर्वजो के जन्म योनि मोक्ष के लिए आठवां अध्याय का पाठ कर एक ब्राह्मण को भोजन |
श्राद्धपक्ष में दस महादान –
पितर संतुष्ट होकर अपने आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
दस महादान-
1. गाय 2. भूमि 3. तिल 4. स्वर्ण 5. चांदी 6. वस्त्र 7. गुड़ 8. नमक 9. घी 10. धान्य
i “jyotish shiromani”,jyotish9999@gmail.com,9424446706) (Pandit vijendra kumar Ttiwar
वर्ष में कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं ?
वर्ष में श्राद्ध के 96 अवसर होते हैं, जैसे 12 अमावस्या, चार युग तिथि ,14 मनुवादी तिथि ,12 संक्रांति 12 , 05पांच पर्ववेध |
पितृ पक्ष /श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध राहु दोष का निवारक होता है ?
मत्स्य पुराण (14 अध्याय): गृहस्थों को देवपूजा से पूर्व पितर पूजा करना चाहिए।
पितर - पूर्वज मनुष्यो, देवो, ऋषियो के होेते है।
यथा मारीच पुत्र देवताओ के पितर कहलाए श्राद्ध जानकारी संदर्भित ग्रंथ -
श्राद्ध के लिए उपयुक्त श्रेष्ठ समय कौन से होते हैं ?
जल अर्पण के लिए यह श्राद्ध करने के लिए कुतुप काल दिन में 11: 36 बजे से लेकर 12:24 तक होता है| किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है |
श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |(विष्णु पुराण ) |
श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य मिलाये एवं प्रयोग करे
अपराहन काल 1:12 से 3: 36 मिनट तक होता है
पितरों को जल देते समय मुंह किस दिशा में होना चाहिए|
पितरों को जल देते समय हमारा मुंह दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए तथा अंगूठे एवं तर्जनी इंडेक्स फिंगर के मध्य उसे जलधार अर्पित की जाती है|
महाभारत ,अग्निपुराण- जल देने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है. अंगूठे वाला हिस्सा पितृ तीर्थ है.जल चढ़ाया जाता है तो वो पितृ तीर्थ से होता हुआ पिंडों तक जाता है. कहते हैं इससे पूर्वजों की आत्मा पूर्ण रूप से तृप्त हो जाती
श्राद्धके समय भोजन के लिए किस प्रकार के पात्र /बर्तनों का प्रयोग करना चाहिए|
सोने चांदी कांसे तांबे के पात्र श्रेष्ठ माने गए हैं
इनके अभाव में पलाश या अन्य वृक्ष के दोना पत्तल काम में ला सकते हैं
- यह ध्यान रखा जावे कि केले के पत्ते या मिट्टी या लोहे के बर्तन का प्रयोग श्राद्ध कार्य में वर्जित माना गया है|
- सफ़ेद बाती.दीपक में बत्ती/वर्तिका तथा तिल तैल का ही दीपक प्रयोग करे।
श्राद्ध कार्य के समय पत्नी को किस दिशा में होना चाहिए?
इस कार्य के लिए पत्नी को हमेशा अपने दाहिनी ओर खड़ा किया जाना चाहिए| वाम भाग मैं पत्नी को रखकर जल अर्पण देना या अतिथियों का स्वागत करना अशुभ माना गया है|
श्राद्ध में वर्जित पुष्प एवं वस्तु?
श्राद्ध में लाल चंदन, गोरोचन, केवड़ा. कदंब , मौलश्री ,बेलपत्र ,कनेर, लाल तथा काले रंग के सभी फूल, तेज गंध वाले फूल या गंध रहित फूल यह भी वर्जित है|
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मृत्यु तिथि पर सभी का श्राद्ध उचित नहीं -
,किसका श्रद्ध मृत्यु तिथि पर नहीं किया जाता है
1 नाना-नानी -आश्विन कृष्ण प्रतिपदा: इस तिथि को नाना-नानी के श्राद्ध के लिए है।
2 अविवाहित -पंचमी: जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि को किया जाना चाहिए।
3- सौभाग्यवती -नवमी: सौभाग्यवती nari यानि पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गई हो, उन स्त्रियों का श्राद्ध नवमी को किया जाता है।
इस तिथि पर श्राद्ध कर्म करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।
4- वैष्णव साधू- एकादशी: एकादशी में वैष्णव sanyasi का श्राद्ध करते हैं।
5-सन्यासी साधू- द्वादशी :इस तिथि को श्राद्ध - जिन्होंने संन्यास लिया हो।
5आकस्मिक म्रत्यु -चतुर्दशी: इस तिथि में शस्त्र, आत्म-हत्या, विष और दुर्घटना से जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध किया जाता है
6- बच्चों का श्राद्ध कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को ।
7-सर्वपितृमोक्ष अमावस्या:
इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है।
इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है।
- 8- जिनका - मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो, उनका भी अमावस्या तिथि को ही श्राद्ध करना चाहिए।
श्राद्ध कौन कर सकता
- - जिस घर में कोई पुत्र नहीं होता, उस स्थिति में कन्याएं और महिलाएं अपने पितरों का पिंडदान कर सकती हैं।
-कन्या बहु या पत्नी के द्वारा - पिंडदान पितृ स्वीकार करते हैं सीताजी से दशरथ जी ने श्राद्ध स्वीकार किया था ।
श्राद्ध समय वस्त्र रंग--
-श्राद्ध और पिंडदान करते समय महिलाओं को सफेद या पीले रंग के ही कपड़े प्रयोग करना चाहिए ।
-पुरुष वर्ग को सफ़ेद ही प्रयोग करना चाहिए .
-कन्या के अलावा बहु या पत्नी के द्वारा भी श्राद्ध और पिंडदान किया जा सकता है।
4-श्राद्ध किन स्थितियों में नहीं करना चाहिए ?
१. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।
२. पूर्वान्ह (दोपहर(BeforeNoon)पूर्व , समय में),शुक्ल्पक्ष में, रात्री में और अपने जन्म तिथि में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।
३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध, तर्पण का विधान नहीं है ।
४. चतुदर्शी तिथि को श्राद्ध नहीं करना चाहिए, इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है ।
५. जिनके पितृ युद्ध ,एक्सीडेंट में, शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।
बच्चों, अविवाहित, विवाहित कन्या का श्राद्ध?
१. दो या उससे कम आयु के बच्चे की वार्षिक तिथि और श्राद्ध नहीं किया जाता है ।
२. यदि मृतक दो सै छह वर्ष आयु का है तो भी उसका श्राद्ध नहीं किया जाता है । उसका केवल मृत्यु के १० दिन के अन्दर सोलह पिण्डो (मलिन षोडशी) का दान किथा जाता है ।
३. छह वर्ष से अधिक आयु में मृत्यु होने पर श्राद्ध की सम्पूर्ण प्रक्रिया की जाती है ।
४. कन्या की दो से दस वर्ष की अवथि में मृत्यु होने की स्थिति में उसका श्राद्ध नहीं करते है । केवल मलिन षोडशी तक की क्रिया की जाती है ।
५. अविवाहित कन्या की दस बर्ष से अधिक आयु में मृत्यु होने पर मलिन षोडशी, एकादशाह, सपिण्डन आदि की क्रियाएं की जाती हैं ।
६. विवाहित कन्या को मृत्यु होने पर माता पिता के घर में श्राद्ध आदि की क्रिया नहीं की जाती है ।
5-प्रत्येक माह श्राद्ध कब कर सकते एवं करने का क्या फल
अष्टमी चर्तुदशी, अमावस्या/पूर्णिमा, संकांति को सुगंध, जल व तिल पितरों कों दे।
रविवार-आरोग्य, सोमवार-सौभाग्य , मंगलवार- विजय , बुघ-मनोकामना , गुरूवार -ज्ञान , शुक्रवार धन , शनवार- आयु |
माघ में शुक्ल दशमी - घी, तिल मिश्रित जल से स्नान ।
रविवार को पुष्प, इत्र, पुनवर्सु, नवग्रह औषधियों से मिश्रित जल से स्नान करे ।
श्राद्ध में क्या नहीं करें /वर्जित -
१. सामाजिक या व्यापारिक संबंध स्थापित न करें ।
२. श्राद्ध के दिन दही नहीं
२ श्राद्धकर्ताके_नियम—
दन्तधावनताम्बूलं स्नेहस्नानमभोजनम्। रत्यौषधं परान्नं च श्राद्धकृत् सप्त वर्जयेत्।। (व्याघ्रपादस्मृति:-155)
अर्थ— 1 दंतधावन करना 2 तांबूल/ तंबाकू खाना 3 तेलमर्दन पूर्वक स्नानकरना 4 उपवास करना 5 स्त्री संभोग करना 6 औषधि खाना 7 परान्नभक्षण/ दूसरेका भोजन करना ये सब 7कार्य श्राद्धकर्ताको श्राद्ध वाले दिन नहीं करना चाहिए। श्राद्धं कृत्वा परश्राद्धे योऽश्नीयाज्ज्ञानवर्जित:। दातु: श्राद्धफलं नास्ति भोक्ता किल्बिषभुग्भवेत्।। (स्कन्दपुराण_ब्रह्म_धर्मा.6/65) ३ श्राद्धमें_तन्तधावनका_प्रायश्चित्त— श्राद्धोपवासदिवसे खादित्वा दन्तधावनम्। गायत्रीशतसम्पूतमम्बु प्राश्य विशुध्यति।। (विष्णुरहस्ये) अर्थ— श्राद्धवाले दिन या उपवास वाले दिन यदि कोई वृक्षकी दातुन करता है तो उसे 100 बार गायत्री मंत्रसे अभिमंत्रित जलपीना चाहिए तभी वह शुद्ध होता है। ४ श्राद्धकर्कताके_द्वारा_नियमोंका_पालन_न_करनेपर_दोष— आमन्त्रितस्तु यः श्राद्धे अध्वानम्प्रतिपद्यते। भ्रमन्ति पितरस्तस्य तं मासं पांसुभोजिनः।। (यमः) अध्वनीनो भवेदश्वःपुनर्भोजी तु वायसः।। होमकृन्नेत्ररोगी स्यात्पाठादायुः प्रहीयते।। दानान्निष्फलतामेति प्रतिग्राही दरिद्रताम्। कर्मकृज्जायते दासो मैथुनी शूकरो भवेत्।। (याज्ञवल्क्य:) अर्थ— श्राद्ध करके... यात्राकरने वाला- घोड़ा होता है दोबारा खानेवाला- कौआ बनता है हवन करने वाला- नेत्ररोगी होता है अध्ययन करने वाला- आयुहीन होता है दान देने वाला- फलसे रहित होता है दान लेने वाला- दरिद्र होता है अन्यकार्य करनेवाला- दास बनता है मैथुन करने वाला- शूकर होता है। इसलिए ये सब कार्य श्राद्ध वाले दिन नहीं करना चाहिए। ५ श्राद्धकर्ता के_नियम_— तीर्थश्राद्ध करनेके बाद— यात्रा और उपवास कर सकते हैं। गर्भाधान निमित्तक वृद्धि श्राद्धके बाद— मैथुन करने में दोष नहीं है । अग्निहोत्रके निमित्तश्राद्धके बाद— होम हो सकता है । अपने दूसरे विवाहमें जहां नांदीश्राद्ध करनेका वर को ही अधिकार है ऐसा वृद्धि श्राद्ध करनेके बाद— कन्या प्रतिग्रह करनेमें दोष नहीं है। कन्यादानके निमित्त नांदीश्राद्धके बाद— कन्यादान हो सकता है । तीर्थयात्रा आरंभ और समाप्तिपर श्राद्धके बाद— यात्रा हो सकती है, उसमें दोष नहीं है। ६ श्राद्धभोक्ताके_नियम— पुनर्भोजनमध्वानं भाराध्ययनमैथुनम्। दानं प्रतिग्रहो होम: श्राद्धभुगष्ट वर्जयेत्।। (व्याघ्रपादस्मृति-156) अर्थ— 1 दुबारा भोजन करना 2 यात्रा करना 3 भार ढोना 4 परिश्रम करना 5 मिथुन /स्त्री संभोग करना 6 दान देना 7 दान लेना 8 हवन करना ये 8 कार्य श्राद्धान्न भोजन करने वालेको नहीं करना चाहिए। ७ श्राद्धमें_भोजन_करने_व_करानेके_नियम— - श्राद्धमें पधारे हुए ब्राह्मणोंको कुर्सी आदि पर बिठाकर पैर धोना चाहिए। खड़े होकर पैर धोनेपर पितर निराश होकर चले जाते हैं। पत्नी को दायिनी और खड़ा करना चाहिए । उसे पतिके बाएं रहकर जल नहीं गिराना चाहिए, अन्यथा वह श्राद्ध आसुरी हो जाता है और पितरोंको प्राप्त नहीं होता। (स्मृत्यन्तर) यावदुष्णं भवत्यन्नं यावदश्नन्ति वाग्यता:। पितरस्तावदश्नान्ति यावन्नोक्ता हविर्गुणा:।। (मनुस्मृति- 3/237) अर्थ— - जब तक श्राद्धान्न गर्म रहता है। जब तक ब्राह्मण लोग मौन होकर भोजन करते हैं। जब तक वे भोज्य पदार्थोंके गुणोंका वर्णन नहीं करते। तभी तक पितर लोग भोजन करते हैं अर्थात् ये नियम भंग होने पर पितर भोजन करना बंद कर देते हैं। इसलिए श्राद्धमें भोजनके समय मौन रहना चाहिए। मांगने या प्रतिषेध करनेका संकेत हाथ से ही करना चाहिए। (श्राद्धदीपिकायाम्) • भोजन करते समय ब्राह्मणसे अन्न कैसा है, यह नहीं पूछना चाहिए तथा भोजनकर्ताको भी श्राद्धान्नकी प्रशंसा या निंदा नहीं करनी चाहिए। • श्राद्धके निमित्त जो भी भोजन पदार्थ बने हैं उन सभीको प्रथम बारमें ही रख देना चाहिए, कुछ भी पदार्थ छूटना नहीं चाहिए, यदि कुछ छूट जाए या नमक आदि भी जो पहले नहीं रखा था उसे मध्यमें नहीं देना चाहिए जो पहले नहीं दिया था, परन्तु जो पहले भोजन थालीमें परोस दिया है उन पदार्थोंको तो दोबारा तिबारा परोसते रहना चाहिए। -श्राद्धभोजन करते समय भोजन विधिमें बताई गई चित्राहुति भी नहीं देना चाहिए। न स्त्री प्रचालयेत्तानि ज्ञानहीनो न चाव्रत:। स्वयं पुत्रोऽथवा यस्य वाञ्छेदभ्युदयं परम् ॥ (स्कन्दपुराण_प्रभास-206/42 श्राद्ध भोजनके बाद ब्राह्मणोंके जूठे पात्रोंको .स्त्रियों द्वारा नहीं हटाना चाहिए, - पुरुषोंको ही वहांसे हटाकर प्रक्षालनस्थानपर रखना चाहिए— ) - श्राद्धमें ब्राह्मण भोजनके अनंतर ब्राह्मणको तिलककर तांबूल तथा वस्त्रादि दक्षिणा प्रदान करें और ब्राह्मणदेवकी चार परिक्रमा कर प्रणाम करें । - अंतमें— शेषान्नं_किं_कर्तव्यंम्। (बचे हुए अन्नका क्या किया जाए) इस प्रकार ब्राह्मणसे पूछे . ब्राह्मण उत्तरमें कहे— इष्टैः_सह_भोक्तव्यम्। (अपने इष्ट जनोंके साथ भोजन करें) फिर ब्राह्मणकी विदाई करने अपने घरसे बाहर किसी देवालय या जलाशय तक ब्राह्मणको छोड़ने जाए उसके बाद श्रद्धाङ्ग तर्पण करें। फिर हरिस्मरणपूर्वक श्राद्धकर्मको पितृस्वरूपी जनार्दन वासुदेवको समर्पित कर दें। |
देव या पितर पहले किसकी पूजा करे ?
ग्रहस्थ जीवन में पितर (पूर्वज) प्रथम पूज्य है।
सूर्य ग्रह स्वधा के द्वारा पूर्वजो का (पितर) पोषण करते है।
मनुष्यानो स्नेह स्वधया च पितृ न |
श्राद्ध में दान करने एवं दान लेने योग्य महत्वपूर्ण वस्तु /व्यकित कौन है|
दूध, शहद , कालेतिल, गंगाजल,तसर का कपड़ा, दान के लिए विशेष उपयोगी हैं |
श्राद्ध प्रमुख पुष्प वास्तु एवं श्राद्ध भोजन के लिए उपयुक्त कौन –
-श्राद्ध कार्य श्रेष्ठ समय कुतुप काल,
-श्राद्ध भोजन के लिए- -भांजा,
- श्राद्ध कार्य में पुष्प आदि -तुलसी, सफेद पुष्प, तिल के पुष्प, चंपा, चमेली, भ्रंगराज ,शत पत्रिका ,अगस्तय पुष्प पर महत्वपूर्ण है|
श्राद्ध में दान करने एवं दान लेने योग्य महत्वपूर्ण वस्तु /व्यकित कौन है|
वृद्धाश्रम या बालिका आश्रम या भिखारी ,लंगर ,मंदिर में दान का श्राद्ध देने का औचित्य नहीं है |
-भांजा ,दामाद ,बहनोई ,साधू सन्यासी को देना चाहिए | |
दान वस्तु-दूध, शहद , काले तिल गंगाजल,टसर का कपड़ा, दान के लिए विशेष उपयोगी हैं |
तुलसी, सफेद पुष्प, तिल के पुष्प, चंपा, चमेली, भ्रंगराज ,शत पत्रिका ,अगस्तय पुष्प पर महत्वपूर्ण है|
श्राद्ध में किस प्रकार के ब्राह्मणों को आमंत्रित नहीं करना चाहिए?
चोर ,पतित, निष्कर्म ,नास्तिक, धूर्त ,मांस विक्रेता, व्यापारी ,नौकर, काले दांत व मसूड़े वाला ,गुरु विद्रोही, शुद्रा का पति ,अध्यापक, ज्योतिष, काना व्यक्ति, जुंआरी अंधा ,पहलवानी सिखाने वाला, तथा पैसे लेकर पूजा कराने वाले ब्राह्मण को भी आमंत्रित नहीं करना चाहिए|
भांजा ,दामाद ,बहनोई ,साधू सन्यासी उत्तम
श्राद्धमें यतियों/सन्यासियोंको निमंत्रित करना चाहिए, उसका शास्त्रोंमें फल भी लिखा है देखिए—
एके_यतीन्_निमन्त्रयन्ति ।
(कात्यायनप्रणीत पारस्कर श्राद्धपरिशिष्ट सूत्र)
तदुक्तम्-
सम्पूजयेद्यतिं श्राद्धे पितॄणां पुष्टिकारकम् ।
ब्रह्मचारी यतिश्चैव पूजनीयो हि नित्यशः।।
तत्कृतं सुकृतं यत्स्यात्तस्य षड्भागमाप्नुयात् ।
मार्कण्डेयोऽपि - भिक्षार्थमागतान्वाऽपि काले संयमिनो यतीन् ।
भोजयेत्प्रणताद्यैस्तु प्रसादोद्यतमानसः ।।
इति।
उत्तरपक्ष (समाधान)—
यतिस्तु= त्रिदण्डी।
एकदण्डिनां श्राद्धे निरस्तत्वात् ।
तथाहि —
मुण्डान् जटिलकाषायान् श्राद्धे यत्नेन वर्जयेत् ।
शिखिभ्यो धातुरक्तेभ्यस्त्रिदण्डिभ्यः प्रदापयेत् ।।
(गदाधरकृत_श्राद्धसूत्र_भाष्ये)
अर्थ— जहां श्राद्धसंबंधी शास्त्रवचनोंमें यति/सन्यासियोंका ग्रहण किया गया है वहां यतिका अर्थ है त्रिदंडी सन्यासी।
क्योंकि एकदंडी- मुंडित शिर, काषाय वस्त्र धारी सन्यासियोंका श्राद्धमें निषेध है।
त्रिदंडी,शिखाधारी,सन्यासियोंको श्राद्धमें निमंत्रित किया जा सकता है।
- श्राद्धमें_द्विर्नग्न (दोबार_नंगा)का_निषेध—
यस्य वेदश्च वेदी च विच्छिद्येत त्रिपूरुषम्।
द्विर्नग्न: स तु विज्ञेयः श्राद्धकर्मणि निन्दितः।।
(गदाधरकृत_श्राद्धसूत्र_भाष्ये)
अर्थ— जिन द्विजातियों के परिवारमें तीन पीढ़ीसे न वेद पढ़नेकी परंपरा है
ना ही अग्निहोत्र करने की,
तो उन्हें शास्त्रोंमें द्विर्नग्न/ दोनों प्रकारसे नंगा कहा गया है। ऐसे ब्राह्मण श्राद्धमें निन्दित कहे गए हैं।
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