घटस्थापना का शुभ
मुहूर्त
07:52 तक प्रतिपदा | प्रतिपदा में ही घट स्थापना की
जाना चाहिए |इस शास्त्रोक्त नियम के अनुसार सुर्योदय से 10:32 प्रातः तक ही घट
स्थापना की जाना चाहिए | द्वितीया तिथि तो है ही .वर्जित |
गुप्त नवरात्र
में -9 देवियों की पूजा की जाती है |ये नवरात्र में पूज्य देवियों से पृथक
नाम की देवियाँ है |
नवरात्र में पूज्य देवी-?
नौ दुर्गा :
1.शैलपुत्री, 2.ब्रह्मचारिणी, 3.चंद्रघंटा,
4.कुष्मांडा, 5.स्कंदमाता, 6.कात्यायनी, 7.कालरात्रि, 8.महागौरी
और 9.सिद्धिदात्री।
गुप्त
नवरात्र में पूजनीय देवियाँ –प्रकट /उद्भूत ?
सति देहा समुदभवा दस महा विद्याणां शिवश्च प्रियम् |
सती देवी शिव प्रिय पार्वती जी के शरीर से प्रकट देवियाँ हैं |
गुप्त नवरात्र
में पूजनीय देवियों के नाम ?दश महाविद्या नाम संज्ञा -
काली तारा महाविद्या शोडषी भुवनेश्वरी ।
भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धुमावती तथा
बगला सिद्धविद्या च मातंगी कमलात्मिका।
एता दस महाविद्या सिद्धिविद्या प्रकृतिता
1.काली,
2.तारा, 3.त्रिपुरसुंदरी, 4.भुवनेश्वरी, 5.छिन्नमस्ता,
6.त्रिपुरभैरवी, 7.धूमावती, 8.बगलामुखी, 9.मातंगी
और 10.कमला |
दस
महाविद्या प्रकृति के तीन समूह
पहला:- सौम्य (त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी,
मातंगी, कमला),
दूसरा:-
उग्र (काली, छिन्नमस्ता, धूमावती,
बगलामुखी),
तीसरा:-
सौम्य-उग्र (तारा और त्रिपुर भैरवी)।
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दश
महा विद्या स्तुति शाबर -
सुनो
पार्वती हम मत्स्येन्द्र पूता, आदिनाथ नाती, हम शिव
स्वरुप उलटी थापना थापी योगी का योग, दस विद्या शक्ति जानो,
जिसका भेद शिव शंकर ही पायो ।
सिद्ध
योग मर्म जो जाने विरला तिसको प्रसन्न भयी महाकालिका ।
योगी
योग नित्य करे प्रातः उसे वरद भुवनेश्वरी माता ।
सिद्धासन
सिद्ध, भया
श्मशानी तिसके संग बैठी बगलामुखी ।
जोगी
खड दर्शन कोकर जानी,
खुल गया ताला ब्रह्माण्ड भैरवी ।
नाभी स्थाने उडीय्यान बांधी मनीपुर चक्र में
बैठी, छिन्नमस्ता रानी ।
ॐ कार ध्यान लाग्या त्रिकुटी, प्रगटी
तारा बाला सुन्दरी ।
पाताल
जोगन (कुंडलिनी) गगन को चढ़ी, जहां पर बैठी त्रिपुर सुन्दरी ।
आलस मोड़े, निद्रा
तोड़े तिसकी रक्षा देवी धूमावन्ती करें ।
हंसा
जाये दसवें द्वारे देवी मातंगी का आवागमन खोजे ।
जो कमला
देवी की धूनी चेताये तिसकी ऋद्धि सिद्धि से भण्डार भरे ।
जो
दसविद्या का सुमिरण करे । पाप पुण्य से न्यारा रहे ।
योग
अभ्यास से भये सिद्धा आवागमन निवरते ।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं क ए
ह ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं महाज्ञानमयी विद्या षोडशी मॉं सदा अवतु।।
ऐं ह्रीं श्रीं।।
हस्त्रौं हस्क्लरीं हस्त्रौं।।
(सिद्धि प्रद पठन समय
-मंगल ,गुरूवार एवं शनिवार को दिन में ,चतुर्दशी या शुक्रवार को को संध्या समय)
नमस्ते चण्डिके । चण्डि।चण्ड-मुण्ड-विनाशिनि
।नमस्ते कालिके । काल-महा-भय-विनाशिनी । 1
शिवे । रक्ष जगद्धात्रि
। प्रसीद हरि-वल्लभे । प्रणमामि जगद्धात्रीं, जगत्-पालन-कारिणीम् | 2
जगत्-क्षोभ-करीं
विद्यां, जगत्-सृष्टि-विधायिनीम्।करालां विकटा घोरां, मुण्ड-माला-विभूषिताम्|
3
हरार्चितां हरआराध्यां, नमामि
हर-वल्लभाम् । गौरीं गुरु-प्रियां गौर-वर्णअलंकार-भूषिताम् |4
हरि-प्रियां महा-मायां, नमामि
ब्रह्म-पूजिताम् । सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्ध-विद्या-धर-गणैर्युताम् |5
मन्त्र-सिद्धि-प्रदां
योनि-सिद्धिदां लिंग-शोभिताम् । प्रणमामि महा-मायां, दुर्गा दुर्गति-नाशिनीम्
|6
उग्राम उग्र मयीम
उग्र-ताराम उग्र गणैर्युताम् । नीलां
नील-घन-श्यामां,
नमामि नील-सुन्दरीम्| 7
श्यामांगीं
श्याम-घटिकां,
श्याम-वर्ण-विभूषिताम् । प्रणामामि जगद्धात्रीं, गौरीं सर्वार्थ-साधिनीम्| 8
विश्वेश्वरीं महा-घोरां, विकटां
घोर-नादिनीम् ।आद्याम आद्य-गुरोराद्याम आद्यानाथ-प्रपूजिताम् |9
श्रीदुर्गां
धनदामन्न-पूर्णां पद्मां सुरेश्वरीम् । प्रणमामि जगद्धात्रीं, चन्द्र-शेखर-वल्लभाम्
|10
त्रिपुरा-सुन्दरीं
बालाम बला-गण-भूषिताम् । शिवदूतीं शिवाराध्यां, शिव-ध्येयां सनातनीम् |11
सुन्दरीं तारिणीं
सर्व-शिवा-गण-विभूषिताम् । नारायणीं विष्णु-पूज्यां, ब्रह्म-विष्णु-हर-प्रियाम्
|12
सर्व-सिद्धि-प्रदां
नित्यामनित्य-गण-वर्जिताम् । सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्चितां सर्व-सिद्धिदाम् |13
विद्यां सिद्धि-प्रदां
विद्यां, महा-विद्या-महेश्वरीम् । महेश-भक्तां माहेशीं, महा-काल-प्रपूजिताम्
|14
प्रणमामि जगद्धात्रीं, शुम्भासुर-विमर्दिनीम्
। रक्त-प्रियां रक्त-वर्णां, रक्त-वीज-विमर्दिनीम् |15
भैरवीं भुवना-देवीं, लोल-जिह्वां
सुरेश्वरीम् । चतुर्भुजां दश-भुजाम अष्टा-दश-भुजां शुभाम् |16
त्रिपुरेशीं
विश्व-नाथ-प्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम् । अट्टहासामट्टहास-प्रियां
धूम्र-विनाशिनीम् |17
कमलां
छिन्न-मस्तां च, मातंगीं सुर-सुन्दरीम् । षोडशीं विजयां
भीमां, धूम्रां च बगलामुखीम् |18
सर्व-सिद्धि-प्रदां
सर्व-विद्या-मन्त्र-विशोधिनीम् । प्रणमामि जगत्तारां, सारं
मन्त्र-सिद्धये 19
केवलं
स्तोत्र-पाठाद्धि,
मन्त्र-सिद्धिरनुत्तमा । जागर्ति सततं
चण्डी-स्तोत्र-पाठाद्-भुजंगिनी |
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1प्रथम
देवी काली-
गुप्त नवरात्र -30 जून
प्रारंभ 2022
-(आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा )
-30 जून से जुलाई अष्टमी
एवं 8 जुलाई नवमी अंतिम दिन
गुप्त (दश महाविद्या
/ सावित्री ) नवरात्र
(वर्ष में चार नवरात्र
,दो गुप्त )
- साधको के लिए सिद्धि
,मन्त्र,तंत्र देवी की प्रसन्नता के लिए विशेष महत्व .
प्रकृति प्रमुख (शक्ति)
ब्रह्मा ,विष्णु एवं महेश की उत्त्पत्ति पृक्रति से हुई .दश दिशाएं हैं इनकी अधिष्ठात्री
प्रकृति के स्वरूप देवी के बिविन्न रूप हैं .
सर्वरूपमयी देवी सर्वभ् देवीमयम्
जगत। अतोऽहम् विश्वरूपा त्वाम् नमामि परमेश्वरी।।
अर्थात्
ये सारा संसार शक्ति रूप ही है. इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए.
अवतारों में पृक्रति शक्ति एवं ग्रह –
1-काली–कृष्ण-ग्रह-शनि
2-तारा–मत्स्य-राम,ग्रह-सूर्य3-त्रिपुर सुन्दरी षोडषी–परशुराम, ग्रह-बुध 4-भुवनेश्वरी–वामन,
ग्रह-चन्द्र 5-त्रिपुर भैरवी–बलराम-लग्न
6–छिन्नमस्ता–नृसिंह7-धूमावती–वाराह8-बगला–कूर्म9–मातंगी–राम10- कमला –बुद्ध
कल्कि - दुर्गाजी है।
संकल्प-हाथ में जल लेकर अपना नाम ,स्थान एवं किस कार्य के लिए पूजा कर रहे हैं कह कर जल पृथ्वी पर छोड़ दे. पूजा के समय पृथ्वी का स्पर्श नही हो .
-देवी के दो कुल एवं दिशा स्वामित्व उल्लेखित हैं
–
1- काली कुल-(तीन
देवी)
1काली-(महाकाली,श्मशान काली,दक्षिण काली, मात्रु काली) उत्तर दिशा( North)की और दीपक बात्ती एवं पूजा के समय मुह होना चाहिए .
दिन-शुक्रवार
,तिथि अमावस्या, पूजा पूर्व देवी के भैरव
स्मरण –महाकाल,
मन्त्र-- ॐ
क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिका क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ
ह्रीं ह्रीं स्वाहा।।
शक्ति का स्वरूपा ,कृष्ण वर्णा सिद्धिदात्री
भवतारणी
काली
हैं।
महाकाल,कृष्ण की कृपा प्रसन्नता प्राप्ति ,शनि
ग्रह दोष नाशनी )
भागवत – कल्प वृक्ष महाकाली ही प्रमुख हैं।
वीरभाव उच्च गर्जन स्वर से पूजा करना चाहिए | ये
काली रूप दैत्यों के संहार के लिए लिया था।
जीवन की हर परेशानी व दुःख दूर करने,सर्व कामना
पूरक देवी हें |
उत्तर दिशा में मुह कर पूजा की जाना चाहिए |
गायत्री- ॐ
कालिकायै विदमहे श्मशान वासिन्यै धीमही तन्नो अघोरा प्राचोदयात|
मन्त्र-'ॐ क्रीं
क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं
हूं हूं स्वाहा।
क्रीं
क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं
स्वाहा।
शाबर मन्त्र –
प्रथम
ज्योति महाकाली प्रगटली|
ॐ
निरंजन निराकार अवगत पुरुष तत-सार, तत-सार मध्ये ज्योत, ज्योत मध्ये परम-ज्योत, परम-ज्योत मध्ये उत्पन्न भई
माता शम्भु शिवानी काली ॐ काली काली महाकाली, कृष्ण वर्णी,
शव वाहिनी, रुद्र की पोषणी, हाथ खप्पर खडग धारी, गले मुण्डमाला हंस मुखी । जिह्वा
ज्वाला दन्त काली । मद्यमांस कारी श्मशान की राणी । मांस खाये रक्त पीवे ।
भस्मन्ती माई जहां पाई तहां लगाई।
सत की
नाती धर्म की बेटी इन्द्र की साली काल की काली जोग की जोगन, नागों
की नागन मन माने तो संग रमाई नहीं तो श्मशान फिरे अकेली चार वीर अष्ट भैरों,
घोर
काली अघोर काली अजर बजर अमर काली भख जून निर्भय काली बला भख, दुष्ट
को भख, काल भख पापी पाखण्डी को भख जती सती को रख,
ॐ
काली तुम बाला ना वृद्धा,
देव ना दानव, नर ना नारी देवीजी तुम तो हो
परब्रह्मा काली ।
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