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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी ;- 18 अगस्त को 21:20 बजे तक सप्तमी

                         

          श्रीकृष्ण जन्माष्टमी ;- 18 अगस्त को  21:20 बजे तक सप्तमी
                18 अगस्त को  ,स्मार्त (अर्थात जो सर्व देव पूजक ) ;

                19 को वैष्णव जो केवल विष्णु स्वरूप (श्रीकृष्ण )पूजक ।

            जन्म तिथि से जन्म पर्व मान्य। 20 अगस्त को नन्द उत्सव रोहणी नक्षत्र  ;

                              वैष्णव कौन -स्मार्त कौन ?

         (एकादशी या जन्माष्टमी गृहस्थ कौनसी व्रत –उपवास के लिए माने ?)

अनेक समय या वर्ष में विशेष एकादशी या जन्माष्टमी  व्रत उपवास में समस्या उत्पान्न हो जती है , क्योकि  वैष्णव और स्मार्त के लिए अलग अलग व्रत तिथि बताई जाती है. सामान्य वर्ग के लिए मुश्किल होती है कि वह किस तिथि को व्रत करे ?या समझ ही नहीं आता है कि वह किस तिथि को व्रत करें.भारत में पंचांगों में स्पस्ट न लिखने के कारण 80 प्रतिश्त से अधिक गृहस्थ “वैष्णव “ एकादशी या जन्माष्टमी मानते हैं .जो की गृहस्थ वर्ग के लिए है ही नहीं ,तो व्रत दान पुण्य का फल इश्वाराधीन ,शस्त्र निदेशित या विहित नहीं ?

                   वैष्णव कौन ? स्मार्त कौन ?यह अर्थ,मंतव्य,अभिप्रेत को निर्मूल करना अपरिहार्य हो ने के कारण प्रस्तुति एवं भ्रम / शंका निर्मूलन लेख -

                             धर्म और संप्रदाय क्या है?

एक ही धर्म की अलग अलग विचारधारा वालो को सम्प्रदाय कहते है। सम्प्रदाय हिंदू, बौद्धधर्मों में है। 

शैवाश्च वैष्णवाश्चैव शाक्ताः सौरास्तथैव च |

 गाणपत्याश्च ह्यागामाः प्रणीताःशंकरेण तु || -देवीभागवत ७ स्कन्द

 -वैष्णव जो विष्णु को ही परमेश्वर मानते हैं, शैव जो शिव को परमेश्वर ही मानते हैं, शाक्त जो देवी को ही परमशक्ति मानते हैं और स्मार्त जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं। अंत में वे लोग जो ब्रह्म को निराकार रूप जानकर उसे ही सर्वोपरि मानते हैं।

सभी सम्प्रदाय के अनुयायी एकेश्वरवादी (स्मार्त सम्प्रदाय छोड़ कर ) होते हैं –

                    1वैष्णव संप्रदाय- सन्यासी ,गृहस्थ नहीं .

केवल विष्णु जी को मानने वाले ; जो विष्णु और उनके अवतारों को परमात्म तत्व मानते वैष्णव संप्रदायी है जो श्रीहरि समर्पित और संन्यास ग्रहण कर लेते है. वैष्णव सम्प्रदाय में गुरु विधिवत दीक्षा लेते है. गुरु से प्राप्त कंठी या तुलसी माला गले में धारणीय है. वैष्णव शंख चक्र गुदवाते है. ऐसे विष्णु निष्ठ व्यक्ति ही वैष्णव है.  

चार- प्रमुख सम्प्रदाय

 (१) श्री सम्प्रदाय- रामानुजसम्प्रदाय  है।

(२) ब्रह्म सम्प्रदाय - प्रवर्तक चतुरानन ब्रह्मादेव और प्रमुख आचार्य माधवाचार्य । माध्वसम्प्रदाय है।

(३) रुद्र सम्प्रदाय जिसके आद्य प्रवर्तक देवादिदेव महादेव और प्रमुख आचार्य वल्लभाचार्य हुए जो वर्तमान में वल्लभसम्प्रदाय है।

(४) कुमार संप्रदाय जिसके आद्य प्रवर्तक सनतकुमार गण और प्रमुख आचार्य निम्बार्काचार्य ये निम्बार्कसम्प्रदाय है।

- ब्रह्ममाध्वगौड़ेश्वर(गौड़ीय) संप्रदाय -जिसके प्रवर्तक आचार्य श्रीमन्महाप्रभु चैतन्यदेव .

-श्री(रामानुज) संप्रदाय के अंतर्गत रामानंदी संप्रदाय जिसके प्रवर्तक आचार्य श्रीरामानंदाचार्य .

 

                     2 अद्वैत वाद- संप्रदाय-स्मार्त-

आदि गुरु शंकराचार्य प्रवर्तक -समग्रता का सम्प्रदाय,  ,सभी देव-देवी की -उपासना करनेवाले, गृहस्थों का सम्प्रदाय. जो वेद-पुराणों के पाठक, आस्तिक, पंचदेवों (गणेश, विष्णु,‍ शिव, सूर्य व दुर्गा) के उपासक और गृहस्थ धर्म का पालन करने वाले होते हैं. उन्हें स्मार्त कहा जाता है. स्मार्त श्रुति स्मृति में विश्वास रखता है. उसकी आस्था पांच प्रमुख देवताओं में होती है वह स्मार्त है. 

                           3-शैव संप्रदाय-

तीन मुख्य शैव संप्रदाय हैं जिन्हें " कैलासा परंपरा" ( कैलाश से वंश ) के रूप में जाना जाता है - नंदीनाथ संप्रदाय - 200 ईसा पूर्व   , आदिनाथ संप्रदाय और मयकंद संप्रदाय ।

केवल शिव जी को मानने वाले ; पाशुपत संप्रदाय शैवों प्राचीन संप्रदाय है। संस्थापक लकुलीश थे ये भगवान शिव के 18 अवतारों में से है।

शैव संप्रदाय नंदीनाथ जी महत्वपूर्ण है शिव, लिंग उपासना इनकी प्रमुख पहचान था। लिंगायत, शैव, काल्पलिक आदि उपसंप्रदाय इसके ही हैं।

-ऋग्वेद में शिव - रुद्र है। अथर्ववेद में शिव भव, शर्व, पशुपति और भूपति है।

-वामन पुराण ,मत्स्यपुराण- शिव -शिवलिंग है।महाभारत क अनुशासन शिवलिंग की पूजा का वर्णन है।

- पाशुपत संप्रदाय पंचार्थिक है. सैद्धांतिक ग्रंथ पाशुपत सूत्र है।

- कापालिक संप्रदाय के ईष्ट देव भैरव थे.,

-कालामुख संप्रदाय के अनुयायिओं को शिव पुराण में महाव्रतधर कहा जाता है। इस संप्रदाय के लोग नर-कपाल में ही भोजन, जल और सुरापान करते थे और शरीर पर चिता की भस्म मलते थे

                         4शाक्त संप्रदाय- केवल देवी को मानने वाले ;

 आज भी बंगाल, असम आदि जगहों पर देवी की ही उपासना का महत्व है। देवी स्वरूप शक्ति का है। लक्ष्मी और सरस्वती भी शक्ति हैं। देवी का अब तक का सबसे प्राचीन पीठ मध्य प्रदेश के सीधी में मिला हैजिसे वैज्ञानिकों ने 8000 से 9000 ई. पूर्व का पाया है। शक्ति की उपासना इससे भी पहले होती रही होगी। ऋग्वेद के देवी सूक्त को भी इसका मूल माना जाता है

             5-गाणपत्य संप्रदाय-

 केवल गणेश जी  मानने वाले ; मुद्गल पुराण और गणेश पुराण दो ऐसे ग्रंथ हैं, उनके 32 रूपों और 8 अवतारों का वर्णन भी इन्हीं पुराणों में मिलता है।

               6-सूर्य संप्रदाय-केवल सूर्य के उपासक / को मानने वाले ; महाभारत में युधिष्ठिर की सौर ब्राह्मणों से मिलन का उल्लेख है                 

               7- वैदिक संप्रदाय- केवल वेद मानने वाले .

            8-श्रोतवाद सम्प्रदाय- - प्रसिद्ध केरल के अति-रूढ़िवादी नंबूदिरी ब्राह्मण हैं । वेदांत के विपरीत "पूर्व-मीमांसा" (वेदों के पहले भाग) का पालन करते हैं। वे वैदिक बलिदान ( यज्ञ ) के प्रदर्शन को महत्व देते हैं । नंबूदिरी ब्राह्मण प्राचीन सोमयागम , अग्नियान अनुष्ठानों के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध हैं । 

             9- कौमारामि सम्प्रदाय-दक्षिण भारत और श्रीलंका में है जहां भगवान मुरुगा कार्तिकेय सर्वोच्च हैं। भगवान मुरुगा को त्रिमूर्ति से श्रेष्ठ माना जाता है।

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