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मंगली दोष (राहू –शनि से डरे) के अपवाद / निरर्थक –पंडित वी.के.तिवारी


मंगली दोष (राहू –शनि से डरे) के अपवाद / निरर्थक –पंडित वी.के.तिवारी
 आर्ष मनीषियों ने अशुभ वचन कथन के लिए वर्जना की है .मंगल ग्रह के अमंगल कारी प्रभाव को भी मांगलिक अर्थात शुभ कहा जाता है .ज्योतिष ज्ञान वाला ज्योतिषी जितना देवता जन सकते हैं उतना ही जान सकता है अर्थात देवज्ञ ही हो सकता है सर्वज्ञ अर्थात ईश्वर नहीं ,इसलिए अशुभ कथन का कोई अधिकार नहीं है . 
                                            मंगल युवा ग्रह की अमांगलिक स्थिति – 
 चन्द्र,शुक्र,एवं जन्म लग्न से 1.4.2.7.8 12 (अर्थात 12से 6 भाव प्रतिदिन अधिकतम 12 कुंडली निर्मित हो सकती हैं जिनमे 6 कुंडली में अमंगल कारी मंगल की स्थिति होती है )भाव में मंगल होने पर अमंगल करी दाम्पत्य सुख के लिए कहा गया है | 
                                                   दाम्पत्य सुख के लिए ही क्यों? 
 09 ग्रहों में सूर्य,मंगल ,शनि एवं राहू को पाप/क्रूर ग्रह माना गया है .इन चारो ग्रहके प्रभावी अनिष्टकारी काल के वर्ष या आयु निर्धारित हैं . विवाह युवा काल में करने की परम्परा समाज हित में स्थापित की गयी है .ध्यातव्य -मंगल युवा ग्रह है जिसका अनिष्ट प्रभाव तत्कालीन समाज में या तीन दशक पूर्व तक विवाह 12-24 वर्ष की आयु में ही होते रहे | 
जब मंगल ग्रह को दाम्पत्य जीवन के लिए अशुभ लिखा गया,उस समय कन्या 22 वर्ष एवं पुरुष 24 वर्ष के पश्चात् ओज , सुंदर या और युवा शक्ति शारीरिक रूप से नहीं हो सकते |,युवा काल कन्या के लिए रजोदर्शन प्रारंभ से अर्थात लगभग 12 वर्ष से 22 वर्ष एवं पुरुष के लिए 14 से 24 वर्ष माना गया है . आज का काल में मंगल विचार अर्थ हींन- मेरा अभिमत- 
                                      1आज की जीवन शैली में विवाह आयु 24-30 वर्ष स्थापित हो चुकी है अर्थात युवा ग्रह मंगल का दुष्प्रभाव अत्यल्प अंतिम स्थिति में रह गया . आज मगल के अनिष्ट प्रभाव दाम्पत्य जीवन के लिए विचारणीय नहीं रहे .                             
                                      2 दाम्पत्य जीवन को प्रभावित करने वाले अन्य पाप ग्रह शनि एवं राहू के अनिष्टद वर्ष ,जीवन की मध्य आयु के(45 वर्ष ) उपरांत आते हैं ,जिनकी उपेक्षा करना( अर्थात जीवन साथी से पृथकता या जीवन साथी के स्वर्गारोहण के उपरांत एकाकी रहने की दुस्थिति बन सकती है .इसलिए 1.4.2.7.8.भावो में शनि ,राहू की स्थिति एवं दशा का ,.
राहू विशेष रूप से पृथकता कारी, अलगाव वादी या विवाह विच्छेदक /तलाक प्रदायक भी है .तलाक की स्थिति उत्तरोत्तर बढ़ रही है . ज्योतिष ग्रन्थों में दिये गए मंगल दोष ,परिहार मंगल दोष को नष्ट नहीं करते, केवल अशुभ में कमी लाते हैं। विशेष परिस्थितियों में मंगल दोष स्वत: न्यून या निरस्त हो जाता है – गुरु,शुक्र ,शनि,बुध,सूर्य ग्रह भी मंगल के कुप्रभाव विशेष स्थिति में अतिअल्प या अविचारणीय करते हैं -कुंडली में कोई एक ग्रह(सूर्य,गुरु के अतिरिक्त ) विशेष प्रभाव नहीं कर सकता . -मंगल युवा ग्रह,युवा काल तक विशेष प्रभाव ,आजीवन नहीं .युवाकाल 12 से 24 वर्ष  विवाह रुकवाना ज्योतिषी केलिए भी पाप पूर्ण एसा मेरा अभिमत है .
                                 आलेख में प्रस्तुत सामग्री में समस्त बिभिन्न ग्रंथों से साभार संकलित जनहित एवं ज्योतिष के नवांकुरों के लिए सस्नेह- मंगली दोष के अपवाद - मूल नियम मंगली दोष नहीं है क्योकि – 
                           1- अर्केन्दु क्षेत्र जातानां कुज दोषो न विद्यते। स्वोच्छ मित्रम्जातानां तत् दोषं न भवेत्किल।।
 अर्थात यदि मंगल अपने मित्र सूर्य की राशि, सिंह में हो या चन्द्रमा की राशि, कर्क में हो या स्वयं अपनी राशि, मेष व वृश्चिक में हो अथवा अपनी उच्च राशि मकर में हो तो वहाँ मंगली दोष स्वत: निष्प्रभावित हो जाता है।
                          2 अष्टमे भौम दोषस्तु धनु मीन द्वयोर्विना। अष्टमे कुज दोषस्यात् कर्कट मकरयोर्विना।।
 यदि अष्टम में मंगल बृहस्पति की राशि या अपनी नीच या उच्च राशि (9, 12, 4, 10) में हो तो मंगली दोष नहीं होता। अर्थात वृष, मिथुन, सिंह, धनु लग्न वालों को अष्टम में मंगल दोष नहीं करता।
                          3 भौम तुल्यो यदा भौमो पापो वा तादृशो भवेत्। वर बध्वोर्मिथस्तत्र भौम दोषो न विद्यते। 
यदि 1, 4, 7, 8, 12 आदि स्थानों में किसी भी स्थान पर वर तथा कन्या दोनों की कुण्डली में मंगल हो तो परस्पर दोषों का नाश होकर विवाह संम्बन्ध शुभप्रद हो जाता है।
                        4 उक्त स्थानेषु चन्द्राच्च गणयेत् पापखेचरान्। पापाधिक्ये वरे श्रेष्ठ विवाहं प्रवदेद् बुध:।। 
लग्न तथा चन्द्रमा से उक्त स्थानों (1, 4, 7, 8, 12) में पापग्रहों की संख्या गिनें, यदि कन्या से 
                      5 भौम स्थितेशे यदि केन्द्रकोण तद्दोषनाशं प्रवदन्ति सन्त:। 
यदि मंगल स्थित राशि का स्वामी लग्न अथवा चन्द्रमा से केन्द्र या त्रिकोण में स्थित हो तो मंगली दोष समाप्त हो जाता है।                  6 दोषकारी कुजो यस्य बलीचे दुक्त दोष कृत्। दुर्बल: शुभ दृष्टोवा सूर्येणस्म-गतोपिवा।।
 जन्म कुण्डली में मंगल अनिष्ट स्थानों में बलवान होकर पड़ा होगा तभी वह दोषकारी होगा अन्यथा दुर्बल होने, शुभग्रह दृष्ट होने या सूर्य के साथ अस्त होने पर दोषकारी नहीं होगा। 
                      7 चन्द्र केन्द्र गते वापि तस्य दोषो न मंगली।
 यदि चन्द्रमा केन्द्र में हो तो मंगली दोष नहीं होता।
                      8 वाचस्पतो नवम पंचम केन्द्र संस्थे जाता-गंना भवति पूर्ण विभूति युक्ता। 
साध्वी सुपुत्र जननी सुखिनी गुणाड्ढया सप्ताष्टक यदि भवेद् शुग्रहो-पि।। 
यदि कन्या की कुण्डली में 1, 2, 4, 7, 8, 12वें भाव में मंगल हो और शुभ ग्रह बृहस्पति केन्द्र या त्रिकोण (1, 4, 7, 10, 5 या 9) में हो तो मंगली दोष न होकर वह कन्या साध्वी, सुपुत्र को जन्म देने वाली, सब तरह से सुखी, गुणों से सम्पन्न, ऐश्वर्ययुक्ता सौभाग्यशालिनी होती है।
                          9 चतुस्सप्तमगे भौमे मेषकर्क्यालि नक्रगे। यदा राशौ शुभं प्रोक्तं कुजदोषो न विद्यते।। 
यदि मंगल चतुर्थ या सप्तम में मेष, कर्क, वृश्चिक या मकर में हो तो मंगली दोष नहीं होता, यह शुभ स्थिति है।
                         10 चर राशि गते भौमे चतुरष्ट व्यये धने। लग्ने पापविनाशस्स्यात् शेषे पाप विशेषत:।।
 यदि मंगल चतुर्थ, अष्टम, द्वादश, द्वितीय और प्रथम भाव में चर राशि में हो तो हानिकारक नहीं होता।
                          11 चतुर्थे कुज दोषस्यात् तुला वृषभयोर्विना। पाताले भौम दोषस्तु मेषवृश्चिकयोर्विना।। 
यदि चतुर्थ भाव में मंगल स्वराशि या शुक्र की राशि (1, 8, 2, 7) में हो तो मंगली दोष नहीं होता। अर्थात कर्क, सिंह, मकर, कुंभ लग्न वालों को चतुर्थ में मंगल, मंगली दोष नहीं करता। 
                           12 व्यये कुज दोषस्यात् कन्या मिथुनयोर्विना। द्वादशे भौम दोषस्तु वृष धौलिकयोर्विना।।
 यदि मंगल द्वादश में बुध या शुक्र की राशि (3, 6, 2, 7) में हो तो मंगली दोष नहीं होता। अर्थात मिथुन, कर्क, तुला, वृश्चिक लग्न वालों को द्वादश भाव का मंगल, दोषमुक्त होता है। भौम स्थितेशे यदि केन्द्रकोण तद्दोषनाशं प्रवदन्ति सन्त: 
                             13 पंचक स्थानगे भौमे लग्नेन्दु गुरु संस्थिते। बुधे स्थिते न दोषो-स्तिे दृष्टं दोष न चिन्तयेत्।।
 यदि मंगल पाँच स्थानों - 1, 2, 4, 8, 12 भावों में चंद्रमा, बृहस्पति या बुध के साथ हो तो 
                           14 स्वक्षेत्रे उच्च राशि स्थिते उच्चांशे स्वांशगे-पि वा। अंगारको न दोषस्स्यात् कर्क्यां सिंहे न दोषभाक्।।
 यदि मंगल स्वराशि या उच्च राशि में हो अथवा स्व या उच्च नवांश में हो अथवा कर्क और सिंह में हो तो अहानिकर होता है। 
                            15 सप्तमे यदा सौरिर्लग्ने वापि चतुर्थके। अष्टमे द्वादशे चैव तदा भौमो न दोषकृत।। 
यदि वर कन्या की कुण्डली में एक में पूर्वोक्त प्रकार से मंगल हो दूसरी में सप्तम, लग्न, चतुर्थ, अष्टम, द्वादश इन भावों में शनैश्चर हो तो परस्पर भौम का दोष नहीं रहता। 
                            16 सबले गुरौ मृगौ वा लग्ने धूने-पि वा-थवा भौमे। सक्रिणो नीचारिगृहे वार्कस्थेपि वा न कुज दोष:।। 
अर्थात् यदि बली गुरु या शुक्र लग्न या सप्तम स्थान में हो या मंगल वक्री हो या नीच का हो या शत्रु राशि में स्थित होकर कमजोर हो तो कुज, दोष नहीं रहता। 
                         17 बुधाश्युक्तेप्यथवा निरीक्षते तद्दोष नाशं प्रवदन्ति सन्त:। 
यदि मंगल बुध से युत या दृष्ट हो तो मंगल दोष नहीं रहता। 
                            18 मंगल राहु योगे। न मंगली चन्द्र भृगु द्वितीये।। न मंगली केन्द्र गते च राहु। न मंगली पश्यतियस्य जीव।। 
यदि मंगल व राहु का योग हो या चन्द्रमा व शुक्र द्वितीय में हो, या केन्द्र में राहु हो या बृहस्पति की मंगल पर दृष्टि हो तो मंगली दोष नहीं होता है। 
                भावार्थ- वर कन्या दोनों के मांगलिक होने पर विवाह शुभ है।
                       1- शनि भौमो-थवा कश्चित् पापो व तादृषो भवेत्। तेष्वेव भवनेष्वेव भौमदोष विनाश कृत्।। भावार्थ - यदि एक की जन्म कुण्डली में मंगल दो हो और दूसरे की कुण्डली में उन्हीं स्थानों में मंगल, षनि, सूर्य, राहू, केतू, पाप ग्रह हो तो मंगल दोष भंग हो जाता है।
                         2- राशि मैत्रं यदा याति गणैक्यं वा यदा भवेत्। अथवा गुण वाहुल्ये भौमः दोषो न विद्यते।। 
भावार्थ- यदि एक राशि एवं एक ही गण हो या तीन नाडी विधि 36 गुण में -26से अधिक गुण मिले हों या काल प्रक्सशिका विधि पांच नाडी विधि में 25 गुण मिले हो तो मंगल दोष अविचारणीय है। 
                        3- अस्त नीचस्थ संधिष्च, वल हीनं भौमः यदा। जीव पर्ष्योयुर्तिराहु भौम दोषो तदा नहि।।
 भावार्थ - अस्त, संधिगत या नीच राशि गत, इस प्रकार वलहीन मंगल का दोष नगण्य होता है, अथवा गुरू से या राहू से युत मंगल की स्थिति में भी मंगल दोष नहीं होता है। 
                      4- जातक पारिजात के अनुसार ष्मूल स्वतुंग मित्रस्थोभाव वृद्धि करोत्यलम।
 मेषए वृश्चिक, मकर सिंह, धनु व मीन राशियों में मंगल हानिकारक नहीं होता। 
                     5- जातक चन्द्रिका के अनुसार केतु के नक्षत्रों ;अश्विनी, मघा, मूल, में स्थित मंगल दोष रहित होता है।                     6- 26 गुण या अधिक गुण से कुंडली जिस जातक की मिलती हो, उसे मंगलीक दोष नहीं लगता।
                      7- - चतुर्थ भाव में मेष अथवा वृश्चिक राशि होने से चतुर्थ भाव में मंगल दोषपूर्ण नहीं होता।
                      8- यदि मंगल वक्री, नीच या अस्त हो तो मंगल दोष नहीं माना जाता। 
                       9- यदि वर-कन्या के रषिफल तथा अंषाधिपतियों में मित्रता हो तो मंगल दोष नहीं होता।
                                         11- यदि कन्या की कुडंली में जिस भाव में मंगल हो, वर की कुंडली में भी उसी भाव में बलवान पापी ग्रह (सूर्य,षनि,राहू,केतु) हो तो मंगल का दोष समाप्त हो जाता है।
                     12- दूसरे भाव में चन्द्रमा-शुक्र हों या मंगल-गुरू की युति हो अथवा गुरू की पूर्ण दृष्टि या केन्द्र में राहु हो अथवा मंगल-राहु की युति हो तो मंगल दोषपूर्ण नहीं होता 
                   13- 8वें और 12वें भाव का मंगल कष्टदायी होता है।
       उपरिलिखित नियमों को बिभिन्नत दृष्टिकोण से लागू या उनकी प्रभावशीलता कुंडली में किस प्रकारसे होगी का विवेचन प्रस्तुत- 
                                 भाव एवं राशियों मे मंगल दोष नाशक स्थितियाँ -
 1- मेष राशि का मंगल लग्न में , वृश्चिक राशि का मंगल चतुर्थ भाव में, मकर राशि का मंगल सप्तम भाव में, कर्क राशि का अष्ठम भाव , धनु राशि का मंगल द्वादश भाव में हो तो मंगल दोष नहीं रहता।
  2- चतुर्थ भाव में स्वराशिस्थ ;मेष या वृश्चिक राशि में मंगल । 
 3- यदि 1,2,4,7,8 व 12 में मंगल चर राशि ;मेष, कर्क, तुला, मकर, में हो
 4- सप्तम में मंगल उच्च ;मकर व नीच ;कर्क राशि में हो ।
 5- सिंह या कुम्भ राशि में मंगल दोषप्रद नहीं होता। 
 6- अष्टम में मंगल गुरु की राशियों ;धनु या मीनद्ध में हो
7 यदि लग्न में मेष मकर सिंह व वृश्चिक राशि हो तो मंगलदोष नहीं होता। 
 8- शुक्र.मंगल दोष नाशक.
 9- शुक्र लग्न में हो तो मंगल दोष नहीं रहता।
 10- द्वितीय भाव में मंगल बुध की राशियों ;मिथुन या कन्या में हो 
 11- द्वादश भाव में शुक्र की राशियों ;वृषभ या तुला में मंगल हो तो मंगल दोष नहीं होता।
 12- चतुर्थ भाव में शुक्र की राशि ;2ए 7द्ध में मंगल । 
 13 मंगल शुक्र की राशि में हो तथा बलि सप्तमेश केंद्र या त्रिकोण में हो तो मंगल दोष रहित होता है 
14- मांगलिक कुंडली में सप्तमेश तथा कलत्र कारक शुक्र बली होए सप्तम में हो अथवा सप्तम को देखते हों तो मंगल दोष समाप्त हो जाता है। 
 15- यदि सप्तम भाव में शनि व शुक्र हो तो मंगलदोष नहीं होता।
 16- द्वितीय भाव में मंगल बुध की राशि मे . कन्या या मिथुन राशि हो तो मंगल दोष नहीं होता।
 17- - मंगल की युति बलि चंद्र बुध या गुरु के साथ हो । 
                                                       - गुरु,शनि.-मंगल दोष नाशक. 
1- शनि 1,4,7,8,12,2 भाव में शनि वक्री हो । मंगल दोष नाशक.
 2- मंगल व शनि का परस्पर राशि परिवर्तन योग हो तो हो जाता * गुरु. मंगल दोष नाशक 1गुरु केंद्र ;1, 4, 7, 10, या त्रिकोण में हो । 2- गुरु लग्न में हो तो मंगल दोष नहीं रहता।
 3- सप्तमस्थ मंगल पर गुरु की दृष्टि हो ।
 4- मंगल 1,2,4,7,8, 12 में हो तथा बली चन्द्रमा केंद्र में हो ।
 5- मंगल की युति मित्र,uchh,स्वराशी चंद्र 
 6- यदि गुरु सप्तम भाव में हो तो मंगल दोष नहीं होता।
 7- मांगलिक कुंडली में मंगल व गुरु परस्पर राशि परिवर्तन योग हो ।
                                          मंगली दोष के अपवाद 
                                 -2 लग्न मे .मंगल दोष नाश स्थितियाँ 
                          (बिभिन्न लग्न में मंगल की विशेष स्थिति दोष नाशक ,अधिक स्पष्टता के लिए )
 - 1.मेष लग्न- मेष राशि का मंगल लग्न में हो तो 8 वृश्चिक का, चौथा भाव में हो तो 10 मकर राशि का, सप्तम भाव में हो तो 4 कर्क राशि का तथा अष्टम भाव में धनु राशि का 12वें स्थान में होने पर मंगल दोष रहित होता है।
 मेष लग्न कर्क लग्न व सिंह लग्न का जातक मंगल दोष रहित होता है। 
 1. वृषभ लग्न वृषभ लग्न में प्रथम चतुर्थ व द्वादश भाव में मंगल दोषपूर्ण नहीं होता। इसी प्रकार तुला लग्न में भी द्वादशए चतुर्थ व प्रथम भाव में मंगल दोष नहीं होता मिथुन लग्न के लिये द्वादष व अष्टम भाव का मंगल शुभ फल देता है।
 2. कर्क-सिंह लग्न कर्क-सिंह लग्न के जातक मिथुन-कन्या लग्न के जातकों से वैवाहिक संबंध करके भयंकर एवं दुःखद परिणामों से बच सकते हैं। 
 3. कर्क लग्न का मंगल विषेष उपयोगी तथा परिणाम दायक होता है।
 4 सिंह लग्न वालों के लिये मंगल सबसे अधिक शुभ माना गया है। लग्न और चतुर्थ का मंगल भौतिक सुख देता है। मगर 8वें और 12वें भाव का मंगल कष्टदायी होता है। 
 5. कन्या लग्न का अष्टम एवं द्वादष भावस्थ मंगल अच्छे परिणाम, विजय एवं दीर्घायु की ओर इंगित करता है। मगर चतुर्थ व सप्तम का मंगल अति कष्टदायी होता है। 
 6 तुला लग्न के लिये लग्न से सप्तम भाव का मंगल उत्तम होता है और अनेकोनेक प्रकार से सुख देता है। परन्तु अगर 12 वें भाव में हो तो सुखों का नाष करता है।
 7 वृश्चिक लग्न .’ मंगल लग्न से सप्तम भाव में हो तो कोई हानि नहीं होती। लेकिन मंगल अष्टम व द्वादष भाव में हो तो सावधानी पूर्वक देखें। लग्न में कर्क या सिंह राशिस्थ मंगल हानिकारक नहीं होता।
 8 कुम्भ लग्न के लिये अगर मंगल 12वें स्थान मंे हो तो शुभ फलदायक होता है।
 9- मीन लग्न के लिये लग्न, चतुर्थ तथा सप्तम भाव का मंगल हानिकारक नहीं होता, किन्तु गुरु की दृष्टि मंगल पर हो या गुरु मंगल के साथ हो या मंगल की युति राहु के साथ होए या शुक्र द्वितीय भाव में हो या बलि चन्द्रमा केंद्र में हो तो मंगल का दोष नष्ट हो जाता है। है।
 10- वर की पाप ग्रहों जी संख्या उक्त स्थानों में अधिक हो तो विवाह सम्बन्ध श्रेष्ठ समझना चाहिए।
 11- यदि मंगल स्थित राशि का स्वामी लग्न अथवा चन्द्रमा से केन्द्र या त्रिकोण में स्थित हो तो मंगली दोष समाप्त हो जाता है। 

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श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा जाता है   | पितृ पक्ष में अपने मित्रगण के मरण तिथि

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक होता है | पितृ श्राद्ध किस देव से स

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामान्य रूप से सभी मंगल कार्यों क

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नारंगी एवं लाल रंग के वस्त्र वस्तुओं का विशेष महत्व है। लाल पुष्प अक्षत रोली कलावा या मौली दूध द

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र हो | - क

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -