सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

नृसिंह ,आग्नेयी.सदाशिव,कदली चतुर्दशी-14.मई-कथा ,मन्त्र,महत्व,विधि

नृसिंह ,आग्नेयी.सदाशिव,कदली चतुर्दशी-14.मई वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी असाध्य रोग मुक्ति ,आकस्मिक म्रत्यु से रक्षा एवम समृद्धि दिवस एवं दीर्घायु दिवस पूजा-वृक्ष केला, सदाशिव,अग्नि नृसिंह एवं लक्ष्मी -नृसिंह जयंती, आग्नेयि शिव चतुर्दशी पर्व पूजा 1- नृसिंह जयंती-महत्व,पूजा.मन्त्र संदर्भ ग्रंथ वराह एवम नृसिंह पुराण एक वर्ष तक शारीरिक रक्षा एवम आवश्यकता के अनुसार धन ,नृसिंह ईश्वर की कृपा से मिलता है। वैशाख शुक्ल चतुर्दशी. कौनसी चतुर्दशी पूजा योग्य- सूर्यास्त काल मे चतुर्दशी हो, दो दिन संध्या समय न हो तो दुसरे दिन जब त्रयोदशी न हो, या शनिवार ओर स्वाति, सिद्ध योग चतुर्दशी हो. नृसिंह नर+सिंह अर्थात अर्ध सिंह एवं अर्ध मनुष्य का रूप विष्णु जी ने धारण किया था. संक्षेप कथा-वैशाख शुक्ल चतुर्दशी तिथि को ही ,राजा हिरण्यकश्यप को वरदान था कि “नर,पशु, अस्त्र-शस्त्र ,दिन या रात, घर के अंदर या बाहर, पृथ्वी , आकाश में कोई मार नहीं सकता है। अपने पुत्र प्रहलाद को भगवान विष्णु की भक्ति करने से रोकता था। भगवान विष्णु नरसिंह स्वरूप में , खंबा तोड़कर प्रकट होकर घर की दहलीज पर अपने दोनों पैरों पर हिरण्यकश्यप को लिटा कर , अपने नाखूनों से उसका वध किया था। पूजा समय-16:50 से 19:15 मन्त्र- अ- नृसिंह मंत्र : ''क्ष्रौं'': ''ॐ क्ष्रौं ॐ'' -: ''आं ह्रीं क्ष्रौं क्रौं हुं फट्'' गायत्री : ''ॐ उग्र नृसिंहाय विद्महे, वज्र-नखाय धीमहि। तन्नो नृसिंह: प्रचोदयात्। आपो ज्योति रसोमृतं ,परो रजसे सावदोम. गायत्री : ''ॐ वज्र-नखाय विद्महे, तीक्ष्ण-द्रंष्टाय धीमहि। तन्नो नारसिंह: प्रचोदयात्।।' आपो ज्योति रसोमृतं ,परो रजसे सावदोम. 1 नृसिंह पूजा विधि दोपहर मे,तांबे के लोटे में जल लेकर , स्नान जल मे तिल, आमला चूर्ण या मसल कर, चार लोटे जल से स्नान करे। संकल्प नृसिंह देव देवेश तब जन्मदिने शुभे, उपवासम च पूजाम करिश्यामि सर्व भोग विवर्जित:. वर्जित क्रोध, असत्य या अधिक बोलना,किसी जीव को कष्ट देना, आहत करना,भोजन तामसी , बाहर होटल, ढाबा मे निर्मित उचित नही। तिथि विशेष ग्रह संयोग के कारण,वैशाख शुक्ल चतुर्दशी के दिन यथासंभव भोजन का परित्याग करें . आवश्यक स्थिति में फल आदि का प्रयोग करें. सुविचार एवं सुभाचरण ,निद्रा का परित्याग करने मात्र से भी चतुर्दशी के देव नरसिंह की कृपा से 1 वर्ष तक शारीरिक कष्ट दुर्घटना आदि से रक्षा होती है एवं यथेष्ट मात्रा में धन प्राप्त होता है. संध्या समय पूजा स्थान स्वच्छ कर, गोबार से लीप कर या चौकी पर, आठ पंखुरी का कमल आटे या रंग से बनाए. उस पर नृसिंह , लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र, या मिट्टी से स्वरूप बनाए. दीपक प्रज्वलित कर, उसको नमस्कार करे. रोली लगाए. जल से हाथ धोए फिर चंदन, पुष्प, कुंकुम, तुलसी, फल (जो उपलब्ध ओर सामर्थ्य मे हो) अर्पित करते समय बोले चंदनम शीतलम दिव्यम चंद्र कुमकुम मिश्रितम ददामी तव तुष्टय अर्थम नृसिंह परमेश्वर . पुष्पाणी तुलस्या दीन वें प्रभु .पूजयामि नृसिंह त्वां लक्ष्म्या सह नमोस्तुते. हिंदी मे भी कह सकते हैजो वस्तु फल आदि अर्पण करे उनका नाम लेकर. हे नृसिंह परमेश्वर आपकी प्रसन्नता के लिए,चंदन,तुलसी, पुष्प , कुंकुम, धूप, सुगंध आदि अर्पित कर रहा हुं. आपको लक्ष्मी जी सहित नमस्कार. है महा विष्णु सभी कामनाएं,धन, समृद्धि, सुख सफलता दीजिए। रात्री मे धार्मिक ग्रंथ पढ़े या धर्म कथाएं सुने। संक्षेप मे हिरंड्यकश्यप का वध करने के पश्चात, जब क्रोध मुक्त नृसिंह हुए, प्रहलाद ने प्रश्न किया "हे देव आप की मुझ पर विशेष कृपा क्यो है?" नृसिंह जी ने कहापूर्व जन्म में वैशाख शुक्ल चतुर्दशी के दिन तुमने जल भोजन एवं निद्रा का त्याग कर ब्रह्मचर्य का निर्वाह किया .इस प्रकार स्वयं ही तेरा उपवास , जागरण हो गया . जिसके कारण मेरी प्रह्लाद तुम पर विशेष कृपा है. 2 कदली व्रत पूजा संदर्भ हेमाद्रि ग्रंथ चतुर्दशी जिस दिन प्रारंभ हो उस दिन किया जाता है। भारत के गुजरात प्रांत मे लोकप्रिय पर्व. केले के वृक्ष का रोपण, पूजा प्रति शुक्ल चतुर्दशी को फल आने तक की जाती है। 3आग्नेयी शिव या रौद्री चतुर्दशी पर्व यह प्रतिमाह चतुर्दशी तिथि को पर्व होता है. दीर्घायु ऐश्वर्य पर्व अग्नि पूजा विशेष महत्व अग्निदेव की प्रिय तिथि क्योंकि अग्नि को अपना स्थान इस तिथि को प्राप्त हुआ था। विशेष- आकस्मिक मृत्यु जैसे ( युद्ध मे मृत , सर्प दंश से मृत, आत्महत्या , दुर्धटना वाहन या पशु आघात, वृक्ष या ऊंचाई से गिर कर मृत) वालो के लिए दक्षिण दिशा मे मुंह कर, काले तिल लेकर,index फिंगर एवम thumb के मध्य से तीन बार जल देना चाहिए। ज्योतिष : किस राशि एवम नाम वालो को आपत्ति विपत्ति, दुर्घटना से सुरक्षा के लिए शिव एवम अग्नि देव स्मरण करना चाहिए? तुला एवम मकर राशि वालो को प्रत्येक चतुर्दशी को करना चाहिए। जिनके नाम ज, ख, र, त, ग अक्षर से प्रारंभ हों, उनके लिए विशेष उपयोगी। कुंडली मे क्षीण चंद्रमा, चतुर्दशी तिथि का जन्म, मार्केश की दशा या अंतर्दशा हो। पर्वतारोही, पर्यटन,वन अंचल मे निवास या कार्य करने वाले, वाहन चालक, अधिक यात्रा के कार्य से जुड़े व्यक्ति, जल के किनारे या जल पर आश्रित रोजगार, व्यापार वाले वर्ग के लिए विशेष उपयोगी है। भोजन तैल एवम नमक वर्जित। फल,सावां चावल,मोरधन, लाल चावल भोजन मे ले सकते है। हवन तिल की आहुति सदाशिव एवम nandi नन्दी पूजा। आग्नेयी चतुर्दशी कथा धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा भगवान श्री कृष्ण से प्रश्न किया गया कि, अग्नि देव के अदृश्य होने पर तत्कालीन समय अग्नि का कार्य कैसे और किसने किया तथा अग्नि देव को अपना स्थान स्वरूप किस प्रकार प्राप्त हुआ भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि यहां कथा उस काल की है जब अग्निदेव किसी कारण से विश्व से अदृश्य हो गए एवं वह कहां पर हैं इसका किसी देव यह सब को कोई ज्ञान नहीं था सभी अग्नि देव के लिए चिंतित थे . उस समय ही एक अग्नि की अनुपस्थी काल में एक दिन , उतथ्य मुनि व अंगिरा मुनि का परस्पर विवाद हुआ ,उन दोनों में श्रेष्ठ कौन है ? इस विवाद के निर्णय लिए ब्रह्मा जी के पास दोनों मूनि गए। ब्रह्मा जी ने सभी देव गणों गंधर्व आदि को आमंत्रित किया परंतु भगवान सूर्यदेव उपस्थित नहीं हुए। ब्रह्मा द्वारा सूर्य देव को बुलाने के लिए उतथ्य मुनि को भेजा परंतु सूर्य देव ने सभा में उपस्थित होने से असमर्थता व्यक्ति की एवं कहा कि मेरी अनुपस्थिति में सृष्टि का कार्य संपादन नहीं हो सकेगा । उतथ्य मुनि के पश्चात ब्रह्मा जी ने अंगिरा मुनी से कहा कि आप सूर्य देव को ब्रह्मलोक में लेकर आइए. सूर्य देव ने अंगिरा मुनि को भी उस प्रकार का ही उत्तर दिया. परंतु अंगिरा मुनि ने कहा" हे सूर्यदेव आप ब्रह्मलोक में जाएं ,मैं आपकी अनुपस्थिति में आपके द्वारा किए जाने वाले कार्य को अपने तप और तेज से निष्पादित करूंगा." अंगिरा मुनि के तेज से विश्व प्रकाश के साथ, प्रचंड ताप से दग्ध होने लगा. सूर्य देव मैं ब्रह्म लोक पहुंचकर ब्रह्मा जी से पूछा कि आपने मुझे किस लिए आमंत्रित किया है ? ब्रह्मा जी ने सूर्य देव से कहा "आप तत्काल अपने स्थान पर वापस जाइए क्योंकि अंगिरा मुनि के तेजबल से संपूर्ण विश्व दग्ध हो रहा है. विश्व भस्म हो जाएगा. आप शीघ्र अपना कार्य संभाल कर उनको विदा करिए . सूर्य देव ने वापस यथा स्थान पहुंचकर अंगिरा मुनि से निवेदन कर उन्हें ब्रह्मलोक वापस भेजा. अंगिरा मुनि ब्रह्म लोक में जब पहुंचे तो सभी उपस्थित देव ,गंधर्व, सुर ,असुर आदि ने उनकी वंदना करते हुए, निवेदन किया की"अग्नि देव अदृश्य हैं, उनकी अनुपस्थिति में आप कृपया अग्नि देव का कार्य संभाले . दैनिक कार्य एवम सभी धार्मिक कार्य, यज्ञ, हवन नियमित एवं विधिवत निष्पादित हो सके. अंगिरा मुनि ने आग्रह स्वीकार कर, अग्नि देव के कार्य प्रारंभ कर दिए। कुछ समय पश्चात ही अग्निदेव वापस अपने स्थान पर आए . उन्होंने देखा कि अंगिरा जी अग्निस्वरूप में सब कार्य कर रहे हैं . अग्निदेव ने अंगिरा मुनी से कहा "आप मेरा स्थान छोड़ दीजिए. मैं अपने स्थान पर आ गया हूं . अंगिरा मुनि ने कहा "सभी के एकमत सेआग्रह पर हमने ये कार्य शुरू किया है. आप अपना दायित्व एवम कार्य जानिए, अब यह संभव नहीं है।" अग्नि देव ने ,उन को प्रसन्न करने के लिए कहा "हे मुनि मैं आपके घर, आपकी पत्नी शुभा के जेष्ठ पुत्र , बृहस्पति नाम से जन्म लूंगा. यह मेरा वचन है. .अब आप कृपा करिए, अपने आश्रम पधारिए। यह वचन अग्निदेव ने अंगिरा मुनि को वैशाख शुक्ल पक्ष चतुर्दशी के दिन दिया था . मुनि अंगिरा हर्षित हो प्रस्थित हुए. अग्नि देव को अपना स्थान पूर्व वत प्राप्त हुआ था. इसलिए यह तिथि अग्निदेव को परम प्रिय है इस दिन अग्नि देव का स्मरण या उनका मंत्र पढ़ना या जप करना अग्नि देव की प्रसन्नता का कारण होता है . जिससे जीवन में बल,तेज, सौंदर्य, यश, प्रभाव मे वृद्धि होती है. स-अग्नि मन्त्र अग्नि' तत्सम शब्द है जिसका तद्भव है 'आग'। पिता भगवान ब्रह्मा और माता देवी सरस्वती हैं। पत्नी स्वाहा और स्वधा, स्वाहा ,पुत्र- पावक, पवमान और शुचि तीन पुत्र .वाहन-भेड, ।- अग्नि मंत्र- ॐ अग्नेय स्वाहा। इदं अग्नेय इदं न नम। -- ॐ सप्तजिह्वाय विद्महे अग्नि देवाय धीमहि तन्न अग्निः प्रचोदयात् ॥ ॐ वैश्वानराय विद्महे लालीलाय धीमहि तन्न अग्निः प्रचोदयात् ॥ - “ऊँ महाज्वालाय विद्महे अग्नि मध्याय धीमहि ।तन्नो: अग्नि प्रचोदयात ।।” मैं महान ज्योति की ओर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा हूं, अग्नि देवता मुझे बुद्धि प्रदान करें, हे अग्नि देव! अग्नि के तेजस्वी देव कृपा मेरे मन को अपने प्रकाश से आलोकित करें। ब- शिव या रौद्री चतुर्दशी (प्रत्येक माह शुक्ल पक्ष चतुर्दशी ) कार्य के पूर्व एवं घर से प्रस्थान पूर्व - देवदेवेश्वर सदाशिव की पूजा करके मनुष्य समस्त ऐश्वर्यों से समन्वित होजाता है तथा बहुत से पुत्रों एवं धन संपन्न होता है। - तुला,मकर राशी के लिए उपाय ,उपयोगी होंगे । - मदिरा, बाल नाख़ून काटना, बेल पत्र तोडना,चोलाई,पालक, कुंदरू, मसूर तिल का तेल लाल रंग (चुकंदर,लाल पत्ते की भाजी,कोई भी लाल रंग की सब्जी ) --काँसे के बर्तन में भोजन करना निषिद्ध है। - यात्रा प्रारंभ करना वर्जित है। अंग स्पर्श या प्रयोग - शुभ मस्तक ।- स्पर्श अशुभ वक्ष। आरती दीपक में लौंग जलाएं । - भात भोजन में शामिल करे । कार्य के पूर्व एवं घर से प्रस्थान पूर्व मन्त्र -ॐ विष्णवे नम: ।ॐ देव देवेश्वराय नम: । ओम वाम देवाय नम:।। ओम अघोराय नम:।। ओम तत्पुरूषाय नम:।। ओम ईशानाय नम:।। सदाशिव के शिवलिंग मंत्र - 'ऊं ह्रौं ह्रीं नम: शिवाय'। - ॐ हे गौरि शंकरार्धांगि यथा त्वं शंकरप्रिया। तथा मां कुरु कल्याणी कान्तकांता सुदुर्लभाम।। - ॐ ह्रीं नमः शिवाय ह्रीं ॐ ।। - ॐ साम्ब सदा शिवाय नम:।। - ॐ ऐं ह्रीं शिव गौरीमय ह्रीं ऐं ॐ।। - ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ ।। - ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।। ॐ तत्पुरुषाय विदमहे, महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।। आपो ज्योति रसोमृतं ,परो रजसे सावदोम. *********************************************************** Narasimha, Agneyi. Sadashiv, Kadali Chaturdashi-14.May Chaturdashi of Shukla Paksha of Vaishakh month Freedom from incurable diseases, protection from accidental death and prosperity day and longevity day Worship-tree Banana, Sadashiv, Agni Narasimha and Lakshmi Narasimha Jayanti, Agneyi Shiv Chaturdashi festival worship 1- Narasimha Jayanti-Importance, Worship. Mantra Reference texts Varaha and Narasimha Purana For one year, physical protection and wealth according to the need are obtained by the grace of God Narasimha. Vaishakh Shukla Chaturdashi. Which Chaturdashi is worthy of worship- If there is Chaturdashi in the sunset period, if there is no evening time for two days, then on the second day when there is no Trayodashi, or On Saturday and Swati, Siddha Yoga Chaturdashi should be there. Narsimha Nar + Singh i.e. half lion and half human form was assumed by Vishnu. Today- It is forbidden to eat sesame oil in red color (beetroot, red leafy vegetables, any red colored vegetable) and bronze utensils. Before work - By worshiping Devdeveshwar Sadashiv, man becomes integrated with all the opulence and is blessed with many sons and wealth. , Must do it to destroy the obstacles of Libra and Capricorn. Summary Story – On Vaishakh Shukla Chaturdashi date itself, King Hiranyakashipu had a boon that "No one can kill man, animal, weapon, day or night, inside or outside the house, earth, sky. He used to prevent his son Prahlad from worshiping Lord Vishnu. Lord Vishnu appeared in the form of Narasimha, breaking the pillar and had killed Hiranyakashipu with his nails on the threshold of the house, lying on both his feet. Worship time-16:50 to 19:15 Mantra- A- Narasimha Mantra: B- "Kshraun": "Om Kshraun Om" -: "Aan Hreem Kshron Kraun Hoon Fatt" Gayatri: "Om Ugra Nrisinhaya Vidmahe, Vajra-Nakhay Dhimahi. Tanno Narasimha: Prachodayat. You Jyoti Rasomritam, Paro Rajse Savdom. Gayatri: "Om vajra-nakhay vidmahe, sharp-drishtaya dhimahi. Tanno Narsingh: Prachodayat.' You Jyoti Rasomritam, Paro Rajse Savdom. 1 Narasimha Puja Vidhi In the afternoon, with water in a copper vessel, By making or mashing sesame seeds, amla powder in bath water, Take a bath with four lots of water. Oath Narasimha Dev Devesh then happy birthday, upvasam cha poojam karishyami, all enjoyment is prohibited:. Forbidden Anger, speaking untrue or excessive, hurting any living being, hurting, eating tamasic, Outside hotel, built in Dhaba is not proper. Due to date-specific planetary combination, avoid food as much as possible on the day of Vaishakh Shukla Chaturdashi. Use fruits etc. in necessary condition. Good thoughts and good conduct, abandonment of sleep By the grace of Lord Narasimha of Chaturdashi, physical pain for 1 year There is protection from accidents etc. and sufficient amount of money is received. Evening worship After cleaning the place, by leaping with cow dung or on the post, make eight-petalled lotus with flour or colour. Make an image or picture of Narasimha, Lakshmi, or form from clay on it. Light the lamp and salute him. Roll on. wash hands with water While offering sandalwood, flower, kumkum, tulsi, fruit (which is available and in capacity) said Chandanam Sheetalam Divyam Chandra Kumkum Mixtum Dadami Tava Tushtay Artham Narasimha Parameshwara. Pushpani Tulsya Deen th Prabhu.Pujayami Narasimha Twan Lakshmya cum Namostute. It can also be said as by taking the name of the object, fruit etc. O Lord Narasimha, for your happiness, sandalwood, basil, flowers, kumkum, incense, fragrance etc. I am giving Greetings to you with Lakshmi ji. May Maha Vishnu give all the wishes, wealth, prosperity, happiness and success. Read religious texts or listen to religious stories at night. In short After killing Hirandyakashyap, when Narasimha became angry, Prahlad questioned "Oh god why do you have special favor on me?" Narsingh ji said that in the previous birth, on the day of Vaishakh Shukla Chaturdashi, you took water and food. By renouncing sleep, he maintained his celibacy. In this way your fasting, awakening has become your own. Because of which my Prahlad has special grace on you. 2 Kadali Vrat Puja Reference Hemadri Granth Chaturdashi is performed on the day it begins. Popular festival in Gujarat province of India. Planting of Banana tree, worship is done on every Shukla Chaturdashi till the fruits come. Agnei Chaturdashi story Lord Krishna was asked by Dharmaraja Yudhishthira that, How and who did the work of fire at the time when the fire god was invisible And how did the god Agni get his place? Lord Shri Krishna told Yudhishthira that the story here is of that period. When Agnidev disappeared from the world due to some reason and where is he It was not known to any god, all were concerned for the god of fire. At that time only one day in the absence of fire, There was a dispute between Utthya Muni and Angira Muni, who is the best among them? Both the sages went to Brahma ji for the decision of this dispute. Lord Brahma All the gods invited Gandharvas etc. But Lord Suryadev did not appear. Utthya Muni was sent by Brahma to summon the Sun God, but the Sun God attended the meeting. The person's inability to be present and said that in my absence the creation Work cannot be edited. After Utthya Muni, Brahma told Angira Muni that you can worship the Sun God. Bring us to Brahmaloka. Surya Dev also gave the same type of answer to Angira Muni. But Angira Muni said " O sun god, you go to Brahmaloka, I will do what you did in your absence. I will execute the work going on with my tenacity and speed." With the world light from the brilliance of Angira Muni, he was enchanted by the scorching heat. After reaching Brahma Lok in the Sun God, I asked Brahma ji that for what have you invited me? Brahma ji said to the Sun God, "You should immediately go back to your place because the whole world is burning with the power of Angira Muni. The world will be burnt to ashes. After reaching the place where Sun God requested Angira Muni, sent him back to Brahmaloka. When Angira Muni reached Brahma Lok, all the present Devas, Gandharvas, Sur, Asuras etc. Worshiping him, pleaded that "the fire god is invisible, in his absence Please take over the work of Agni Dev. Daily work and all religious work, Yagya, Havan regular and be executed properly. Angira Muni accepted the request and started the work of Agni Dev. After some time Agnidev came back to his place. He saw that Angira Everything is working in the form of fire. Agnidev said to Angira Muni "You leave my place. I have come to my place. Angira Muni said, "We have started this work on the unanimous request of everyone. Know the responsibility and the work, now it is not possible." Agni Dev, to please them said, "O sage, I want to visit your house, your wife Shubha. The eldest son, I will take birth by the name Brihaspati. This is my promise. .Now you please, come to your ashram. This word Agnidev gave Vaishakh to Angira Muni. It was given on the day of Shukla Paksha Chaturdashi. Muni Angira left with joy. Agni Dev had got his place as before. Therefore, this date is very dear to Agnidev, on this day the remembrance of Agni Dev or his Reciting or chanting mantra is the reason for the happiness of Agni Dev. Due to which strength, speed, beauty, fame, influence increase in life. s-agni mantra Agni is a similar word which means 'fire'. Father is Lord Brahma and mother is Goddess Saraswati. Wife Swaha and Swadha, Swaha, son- Pavak, Pavaman and Shuchi three sons. Vehicle-sheep, .- Agni Mantra- Om Agney Swaha. Id agneya idm na nama. -- Om Saptjihvaya Vidmahe Agni Devaya Dhimahi Tanna Agniah Prachodayat. Vaishvanaraya Vidmahe Lalilaay Dheemah Tann Agniah Prachodayat. - "Om Mahajwalay Vidmahe Agni Madhyaya Dheemah. Tanno: Agni Prachodayat." I am turning my attention to the great light, may the fire god give me wisdom, O fire god! May the grace of the splendid God of fire illuminate my mind with your light. (b) Shiva or Raudri Chaturdashi (Shukla Paksha Chaturdashi every month) Ashta Shivling Mantra of Sadashiv - Shiva worship in the evening and midnight gives best results. - 'Om Hraum Hreem Namah Shivay'. - O Gauri Shankarardhangi yatva shankarpriya. And mother Kuru Kalyani Kantakanta Sudurlabham. - Om Hreem Namah Shivay Hreem Om .. - Om Samba Sada Shivaay Namah. - Aim Hreem Shiva Glorious Hreem Aim . - Om Haun Joon Saha Om Bhurbhuvah Swah Om Tryambakam Yajamahe Sugandhim Pushtivardhanam. Urvarukamiv bandhanan mrityormukshiyya mamritat om svah bhuvah bhuh sah loon ho .. - Om Hrim Hraum Namah Shivay. Om Tatpurushaya Vidmahe, Mahadevaya Dhimahi Tanno Rudra: Prachodayat. You Jyoti Rasomritam, Paro Rajse Savdom.

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्राद्ध की गूढ़ बाते ,किसकी श्राद्ध कब करे

श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चाहिए । पिता जीवित हो तो, गया श्राद्ध न करें । २. मां की मृत्यु (सौभाग्यवती स्त्री) किसी भी तिथि को हुईं हो , श्राद्ध केवल

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहि

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती है | अवि

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा जाता है   | पितृ पक्ष में अपने मित्रगण के मरण तिथि

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक होता है | पितृ श्राद्ध किस देव से स

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामान्य रूप से सभी मंगल कार्यों क

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नारंगी एवं लाल रंग के वस्त्र वस्तुओं का विशेष महत्व है। लाल पुष्प अक्षत रोली कलावा या मौली दूध द

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र हो | - क

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -