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प्रदोष - व्रत ?13.5.22(Hindi-Eng Language )Lord shiv worship Method and auspicious time"effect

 

प्रदोष - व्रत ?13.5.22(Hindi-Eng Language ) शिव पूजा क्यों?

जिस दिन सूर्यास्त के पूर्व द्वादशी तिथि समाप्त हो एवं सूर्यास्त के समय त्रयोदशी तिथि उपस्थित हो या प्रारंभ हो अर्थात द्वादशी का समापन एवं त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ साय काल सूर्यास्त के समय या पूर्व हो वह तिथि प्रदोष तिथि कहलाती है और इस दिन को ही प्रदोष व्रत का नाम दिया गया है।

प्रदोष काल पौराणिक महत्व

  • समुद्र मंथन से उत्पन्न  विष  भगवान शिव  द्वारा प्रदोष काल मे प्राशन किया था। जगत जननी पार्वती जी ने विष ,शिव जी के कंठ में ही रोक दिया था। विष के प्रभाव से कंठ या गला नीलाभ हो गया था इस कारन शिव का नाम " नीलकंठ " नाम  पड़ा।
  •  तांडव नृत्य से सृष्टि संहार की  आशंका से ऋषि,मुनि देवता की याचना पर शिव जी ने  तांडव नृत्य रोक दिया था |यह समय भी प्रदोष काल था ।|

-प्रदोष काल में शिव पूजा का महत्व क्यों?

-कालकूट विष से सृष्टि /विश्व की सुरक्षा प्रदोष काल में ही, भगवान शिव जी द्वारा की थी ।इसलिए प्रदोष काल में शिव स्मरण करने से व्यक्ति आधी- व्याधि, मानसिक ,शारीरिक कष्टों से सुरक्षित होता है।

  विपत्ति-आपत्ति नाश एवं गृहस्थ कलह क्लेश रोकने के लिए -किस नाम एवं राशी वालों को प्रदोष व्रत या शिव पूजन करना चाहिए?

-म.ट,भ,ध,स.श.अक्षर से प्रारंभ नाम या कुम्भ,सिंह,धनु राशी वालों को प्रदोष व्रत या शिव पूजा अनिष्ट निवारक होगी।  

व्रत से महत्वपूर्ण है इष्ट देव की पूजा ।

प्रदोष व्रत में एक समय भोजन किए जाने का विधान है परंतु यदि किन्ही कारणों से व्रत किया जाना संभव नहीं है तो भी प्रदोष काल में शिव के दर्शन उनके प्रिय बिल्वपत्र धतूरा भांग आदि अर्पण करते हुए पूजा करना उपयोगी होता है ।

व्यावहारिक तथ्य है आप के भोजन नहीं करने से कोई भी देवता क्यों प्रसन्न होगा?

जब तक आप किसी देवता का ध्यान,स्मरण, जप,होम नहीं करेंगे उनकी कृपा क्यों मिलेगी?

प्रदोष काल में शिव पूजा

- रुद्राभिषेक,ओम नमः शिवाय  मंत्र का जाप, विलब पत्र अर्पण करना चाहिए।

सूर्यास्त समय त्रयोदशी एवम् दिन में द्वादशी का योग किसी भी दिन हो सकता है।दिन के अनुसार इनके फल भी पृथक् है। 

 1सोमवार को  प्रदोष -  सर्व  पापो का शमन  होता है।दांपत्य सुख,मनोरोग मुक्ती।

 2मंगलवार  प्रदोष  -ऋणमुक्ती ,भूमि ,वाद ,मुकद्दमा के लिए,विजय,साक्षात्कार में सफलता, चोट से सुरक्षा।

3 बुधवार को प्रदोष - . संतान सुख , विद्या , परिक्षा में सफलता ।

4 गुरुवार प्रदोष  -पितृ दोष निवारण ,धर्म ,कन्या वर्ग के विवाह के योग।

5शुक्रवार ,- शत्रु बाधा निवारण ,विवाह,दांपत्य सुख।

 6शनिवार - शनि कष्ट मुक्तिऋणमुक्ति,विजय ,शारीरिक कष्ट रोग से मुक्ति।

7 रविवार - आरोग्य ,पद,प्रभाव वृद्धि।

 - विभिन्न वार में प्रदोष व्रत शिव पूजन  फल-(सामवेदीय गोत्र वालो के देवता  “शिव” हैं 

*सामवेद गोत्र वाले ब्राह्मण द्वारा शिव पूजा अधिक प्रभाव शील होती है  

दीपक ,वर्तिका,दिशा,तिलक व्यवस्था-

दीपक वर्तिका श्वेत रंग की हो|

शिव जी कर अतिरिक्त किसी देवी देवता को कोरे सूत या

या श्वेत रंग की वर्तिका का प्रयोग उचित नहीं है |

दीपक की वर्तिका उत्तर मुखी हो |

श्वेत वस्त्र धारण कर पूजा |

भस्म या होम त्रिपुंड (गोल या लम्बा टीका /तिलक  नहीं )आवश्यक-

विधि-माथे पर कनिष्ठ ऊँगली लिटिल फिंगर छोड़ कर शेष 3 उँगलियों

से माथे (फ़ोरहेड par right se left ) पर लेफ्ट से राईट ,लगायें |

प्रदोष व्रत कथा-

प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी ह भिक्षा लेकर लौट रही थी ,तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया | ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया

 एक दिन देव योग से  मंदिर में  ऋषि शाण्डिल्य उसे मिले |ऋषि शाण्डिल्य ने बताया कि जो बालक उसे मिला है वह धर्मगुप्त है | यह युद्ध में मारे गए ,विदर्भ देश के राजा का पुत्र है | इसकी माता को मगरमच्छ  ने अपना भोजन बना लिया |

ऋषि शाण्डिल्य की  आज्ञा से ब्राह्मणी एवं बालकों ने प्रदोष व्रत शुरु किया

 एक दिन दोनों बालको को  वन में कुछ गंधर्व कन्याएं दिखीं | ब्राह्मण  बालक तो घर लौट आया|

राजकुमार धर्मगुप्त "अंशुमति" नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगा,दोनों परस्पर मोहित हो गए| कन्या ने विवाह हेतु अपने पिता श्री से विवाह हेतु आग्रह किया | धर्मगुप्त से मिलने पिता पुत्री पहंचे | कन्या के पिता ने योगबल से जान लिया यह साधरण बालक नहीं  वरन विदर्भ देश का राजकुमार है | भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कर दिया

 राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया |

यह  ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था |

स्कंदपुराण – प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा कर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती |

|| प्रदोष व्रतकथा समाप्तः || 

  दुर्लभ औघड शिव शाबर मंत्र

(- सर्व आपत्ति -विपत्ति  निवारक )

ॐ नमो आदेश गुरु जी को आदेश , धरती माता को आदेश , पौन पानी को आदेश, औघड़ फकर को आदेश, हे महेश जट्टा जूट, ज्ञान की भभूत आओ लहर में शिव योगी अवधूत ,घुंगरू , डोरियाँ ,मणि , शैंकरी , तड़ाम , जंजीर ,पैर पोसा , डंड का वाजू , हाथ का लोह लंगर , ज्ञान का पूरा ,पंथ सूरा , सेली ,सिंगी, नाद, मुँदरा, सिद्धक संधूरी , दिल दरिया के बीच में औघड़ फकर बोलिये , औघड़ फकर फूल माला बनाई , बाबा आदम माँ हवा करो रक्षा रखना बाल बाल सँभाल शिव गोरख की माया , नील गगन से उतरी छाया , भिक्षा दे नागर सागर की बेटी औघड़ फकर बचन सुनाया, आदेश आदेश आदेश औघड़ दानी शिव को आदेश।

श्री शिव पंचाक्षरस्तोत्रम्

(बुद्धि, विधां, पठनीय विद्या - दायिनी शिव कृपा स्त्रोत - }

नागेन्द्र हाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय। 

नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै न काराय नमः शिवाय। 

मन्दाकिनी सलिल चन्दन चर्चिताय नन्दीश्वर प्रमथ नाथ महेश्वराय। 

मन्दार पुष्प बहु पुष्प सुपूजिताय तस्मै म काराय नमः शिवाय।

शिवाय गौरी वदनाब्ज वृन्द सूर्याय दक्षाध्वर नाशकाय 

श्री नील कण्ठाय वृष ध्वजाय तस्मै शि काराय नमः शिवाय। 

वसिष्ठ कुम्भ उद्वभ   गौतमार्य मुनीन्द्र देवार्चित शेखराय 

चन्द्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै  व काराय नमः शिवाय।

यक्ष स्वरुपाय जटा धराय पिनाक हस्ताय सनातनाय। 

दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै य काराय नमः शिवाय।

रुद्राष्टक-

नमामि ईशम ईशान   निर्वाण रूपं ।विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं ।                           
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं । चिदाकाशम आकाश वासं भजेहं ।
निराकार ओम कारम मूलं तुरीयं ।गिराज्ञान गोतीतम ईशम गिरीशं
करालं महाकाल कालं कृपालं ।गुणागार संसार पारं नतोहं ।
तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं ।.मनोभूति कोटि प्रभा श्री शरीरं ।
स्फुरंमौली कल्लोलीनि चार गंगा ।लसद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा ।
चलत्कुण्डलं भू सुनेत्रं विशालं ।प्रसन्नाननम नीलकंठं दयालं ।

मृगाधीश चर्माम्बरम मुंडमालं ।प्रियम शंकरम् सर्व नाथं भजामि ।

प्रचंडम प्रकिष्ट्म प्रगल्भम परेशं ।अखंडम अजम भानु कोटि प्रकाशम ।
त्रयः शूल निर्मूलनम शूलपाणीम ।भजेहम भवानी पतिम भावगम्यं ।
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी ।सदा सज्ज्नानंद दाता पुरारी ।
चिदानंद संदोह मोहापहारी ।प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी
न यावत उमानाथ पादार विन्दम ।भजंतीह लोके परे वा नाराणं ।
न तावत सुखं शान्ति ,संताप नाशं ।प्रभो पाहि आपन्नम नमामीश (नमामि ईश) शम्भो  

 प्रदोष स्तोत्रम्-स्कन्द पुराण

Pradosha Stotram

जय देव जगन्नाथ जय शङ्कर शाश्वत । 
जय सर्व सुराध्यक्ष जय सर्व सुरार्चित ॥१॥ 

जय सर्व गुणातीत जय सर्व वरप्रद ॥ 
जय नित्य निराधार जय विश्वम्भर अव्यय ॥२॥ 

जय विश्वैक वन्द्येश जय नागेन्द्र भूषण । 
जय गौरीपते शम्भो जय चन्द्रार्ध शेखर ॥३॥ 

जय कोठ्यर्क सङ्काश जय अनन्त गुणाश्रय । 
जय भद्र विरूपाक्ष जया चिन्त्य निरञ्जन ॥४॥ 

जय नाथ  कृपा सिन्धो जय भक्तार्ति भञ्जन । 
जय दुस्तर संसार सागर उत्तारण प्रभो ॥५॥ 

प्रसीद मे महादेव संसार आर्तस्य खिद्यतः । 
सर्व पाप क्षयं कृत्वा रक्ष मां परमेश्वर ॥६॥ 

महा दारिद्र्यम अग्नस्य महापाप हतस्य च ॥ 
महा शोक निविष्टस्य महा रोग आतुरस्य च ॥७॥ 

ऋण भार परीतस्य दह्यम आनस्य कर्मभिः ॥ 
ग्रहैःप्रपीड्यम आनस्य प्रसीद मम शङ्कर ॥८॥ 

दरिद्रः प्रार्थयेद्देवं प्रदोषे गिरिजा पतिम् ॥ 
अर्थाढ्यो वाऽथ राजा वा प्रार्थये द्देवम ईश्वरम् ॥९॥ 

दीर्घमायुः सदा आरोग्यं कोश वृद्धि र्बलोन्नतिः ॥ 
ममास्तु नित्यम आनन्दः प्रसादात्तव शङ्कर ॥१०॥ 

शत्रवः संक्षयं यान्तु प्रसीदन्तु मम प्रजाः ॥ 
नश्यन्तु दस्यवो राष्ट्रे जनाः सन्तु निरापदः ॥११॥ 

दुर्भिक्षम अरि सन्तापाः शमं यान्तु महीतले ॥ 
सर्व सस्य समृद्धिश्च भूयात्सुखमया दिशः ॥१२॥ 

एवम आराधयेद्देवं पूजान्ते गिरिजा पतिम् ॥ 
ब्राह्मणान्भोजयेत् पश्चाद दक्षिणाभिश्च पूजयेत् ॥१३॥

सर्व पाप क्षयकरी सर्वरोग निवारणी । 
शिव पूजा मयाख्याता सर्व अभीष्ट फलप्रदा ॥१४॥

इति प्रदोष स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

 पूजा उपरांत  प्रदोष व्रत कथा-

                प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र के साथ ,भिक्षा लेकर संध्या समय घर लौट रही थी कि , नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया | ब्राह्मणी  उस बालक को अपने साथ ले आई  उसका पालन-पोषण करने लगी  

                   एक दिन देव योग से  मंदिर में  ऋषि शाण्डिल्य उसे मिले |ऋषि शाण्डिल्य ने बताया कि जो बालक उसे मिला है वह धर्मगुप्त नाम का है | विदर्भदेश के राजा जो युद्ध में मारे गए उनका पुत्र है | इसकी माता को मगर  ने अपना भोजन बना लिया | ऋषि शाण्डिल्य की  आज्ञा से ब्राह्मणी एवं बालकों ने प्रदोष व्रत शुरु किया

               एक दिन दोनों बालको को  वन में कुछ गंधर्व कन्याएं दिखीं | ब्राह्मण  बालक तो घर लौट आया| राजकुमार धर्मगुप्त "अंशुमति" नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगा,परस्पर मोहित हो गए| कन्या ने विवाह हेतु अपने पिता श्री से आग्रह विवाह हेतु किया | धर्मगुप्त से मिलने पिता पुत्री पहंचे | कन्या के पिता ने योगबल से जान लिया यह साधरण बालक नहीं  वरन विदर्भ देश का राजकुमार है | भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कर दिया

                 राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया | यह  ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था |

स्कंदपुराण – प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा कर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती |

|| प्रदोष व्रत कथा समाप्तः || 

 

Pradosh - fasting? Why Shiva Puja? -13.5.2022

 

Marital, debt, disease, and child happiness - Day

The day on which Dwadashi Tithi ends before sunset and Trayodashi Tithi is present or begins at the time of sunset, that is, the end of Dwadashi and Trayodashi Tithi begins at or before sunset, that date is called Pradosh Tithi and Pradosh fasting on this day itself. has been named.

Pradosh period mythological significance

The poison produced by the churning of the ocean was done by Lord Shiva during Pradosh period. Jagatani Parvati ji had stopped the poison in the throat of Shiva. Due to the effect of poison, the throat or throat became blue, due to which the name of Shiva was "Neelkanth".

Fearing the destruction of the universe by Tandava dance, Shiva stopped the Tandava dance on the request of the sage, Muni Devta. This time was also Pradosh Kaal.

Why is the importance of Shiva worship in Pradosh period?

The creation / world from Kalakoot poison was protected by Lord Shiva during the Pradosh period itself. Therefore, by remembering Shiva during the Pradosh period, the person is protected from half-disease, mental and physical sufferings.

  To prevent calamity-objection destruction and household strife, those with which name and zodiac sign should perform Pradosh fast or worship Shiva?

Names starting with the letters M,T, Bh, Dha, S.S. or Pradosh fasting or Shiva worship to those with Aquarius, Leo, Dhanu Rashi will be a bad deterrent.

Worship of Ishta Dev is more important than fasting.

There is a law to eat food at one time in Pradosh fast, but if fasting is not possible due to some reasons, it is useful to worship Lord Shiva during the pradosh period by offering his favorite bilvapatra, Dhatura Bhang etc.

The practical fact is why would any deity be pleased by not eating your food?

Unless you do meditation, remembrance, chanting, or home of any deity, why will you get his grace?

Marital, debt, disease, and child happiness - Day to worship Shiva in auspicious Pradosh time

 

- Rudrabhishek, chanting of Om Namah Shivaya Mantra, and offering of late leaves should be done.

Trayodashi at sunset and Dwadashi in the day can be combined on any day. According to the day, their results are also different.

 Pradosh on 1st Monday - all sins are quenched. Marital happiness, psychic liberation.

 2 Tuesday Pradosh - Debt, land, dispute, for the case, victory, success in interview, protection from injury.

Pradosh on 3rd Wednesday - . Child happiness, education, success in examination.

4th Thursday Pradosh - Redressal of father's defects, religion, yoga of marriage of girl child.

5 Friday, - Enemy obstacle removal, marriage, marital happiness.

 6th Saturday - Shani, freedom from suffering, freedom from debt, victory, freedom from physical ailments.

7 Sunday - Health, position, effect increase.

 - Pradosh Vrat Shiva worship fruit in various wars - (The deity of the people of Samvediya Gotra is "Shiva".

* Shiva worship by Brahmins of Samveda gotra is more effective.

Lamp, Vartika, Direction, Tilak Arrangement-

The lamp stick should be of white colour.

In addition to Shiva, any other deity was given a blank yarn or

Or the use of white color stigma is not appropriate.

The head of the lamp should be facing north.

Worship wearing white clothes.

Bhasma or Homa Tripunda (not round or long vaccine/tilak) is necessary-

Method - the junior finger on the forehead except the little finger and the remaining 3 fingers

From left to right, apply on the forehead (forehead par right se left).

Pradosh fasting story

In ancient times, a widow Brahmini was returning with alms, when she saw a beautiful child on the bank of the river. The brahmin adopted the child and brought him up.

 One day sage Shandilya met him in the temple through Dev Yoga. Sage Shandilya told that the child he met is Dharmagupta. He is the son of the king of Vidarbha, who died in the war. The crocodile made its mother its food.

On the orders of sage Shandilya, Brahmins and children started Pradosh fast.

 One day both the boys saw some Gandharva girls in the forest. The Brahmin boy returned home.

Prince Dharmagupta started talking to a Gandharva girl named "Anshumati", both of them were mutually fascinated. The girl requested for marriage to her father Shri. Father and daughter reached to meet Dharmagupta. The girl's father learned from the power of yoga that this is not an ordinary child, but a prince of Vidarbha country. On the orders of Lord Shiva, Gandharvaraj married his daughter to Prince Dharmagupta.

 Prince Dharmagupta regained control of Vidarbha with the help of Gandharva army.

This was the result of fasting Pradosh of Brahmani and Prince Dharmagupta.

Skanda Purana – One who listens or reads the story of Pradosh fast by worshiping Shiva on the day of Pradosh Vrat, never becomes poor for a hundred births.

, Pradosh Vratkatha ends: ||

 

 

 

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28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामान्य रूप से सभी मंगल कार्यों क

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नारंगी एवं लाल रंग के वस्त्र वस्तुओं का विशेष महत्व है। लाल पुष्प अक्षत रोली कलावा या मौली दूध द

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र हो | - क

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -