तुलसी न तोड़ें और न ही स्पर्श करें-
रविवार ,एकादशी ,अमावस्या, द्वादशी और चतुर्दशी चंद्र ग्रहण ,सूर्य ग्रहण
बुधवार, सूर्यास्त के 24 मिनट पहले से स्पर्श नहीं,पितृ पक्ष में तुलसी की पत्तियों को तोड़ना वर्जित है
तर्पण और पिंडदान करने वाले को तुलसी की पूजा-अर्चना नहीं करनी चाहिए।
-ब्रह्म मुहूर्त के दौरान- तुलसी की पत्तियों को तोड़ना शुभ माना जाता है.
रविवार के दिन तुलसी में जल अभिषेक वर्जित, पौराणिक मान्यताओं -, रविवार के दिन भगवान विष्णु के लिए तुलसी जी निर्जला व्रत रखती हैं। इसलिए रविवार के दिन तुलसी में जल अर्पण दीपक से व्रत खंडित हो जाता है।
- चुनरी गुरुवार के दिन तुलसी के पौधे पर लाल रंग की चुनरी चढ़ाना चाहिए।
-ब्रह्म मुहूर्त के दौरान- तुलसी की पत्तियों को तोड़ना शुभ माना जाता है.
पूजा करते समय मंत्र:
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्या विद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवी देव मन: प्रिया।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत।
जल चढ़ाते समय:
महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी
आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।
तुलसी जी का ध्यान करते समय:
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।
तुलसी नामाष्टक मंत्र
सुख-समृद्धि की प्राप्ति हेतु:
वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।
एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।
पत्ते तोड़ते समय मंत्र
ॐ सुभद्राय नमः
ॐ सुप्रभाय नमः
मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी
नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते।
इन मंत्रों का जाप करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और तुलसी जी की पूजा से भक्त के जीवन में शांति, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
पद्मपुराण के अनुसार
द्वादशी की रात को जागरण करने और तुलसी स्तोत्र का पाठ करने का अत्यधिक महत्व है। दिन भगवान विष्णु भक्त के सभी पाप क्षमा कर देते हैं। तुलसी स्तोत्र को सुनने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है। तुलसी का महात्म्य इतना महान है कि इसका पाठ और ध्यान करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
तुलसी स्तोत्रम्
(तुलसी स्तोत्र का पाठ करने से पुण्य मिलता है और भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।)
- जगद्धात्रि नमस्तुभ्यं विष्णोश्च प्रियवल्लभे। यतो ब्रह्मादयो देवाः सृष्टिस्थित्यन्तकारिणः ॥
- नमस्तुलसि कल्याणि नमो विष्णुप्रिये शुभे। नमो मोक्षप्रदे देवि नमः सम्पत्प्रदायिके ॥
- तुलसी पातु मां नित्यं सर्वापद्भ्योऽपि सर्वदा। कीर्तितापि स्मृता वापि पवित्रयति मानवम् ॥
- नमामि शिरसा देवीं तुलसीं विलसत्तनुम्। यां दृष्ट्वा पापिनो मर्त्या मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषात् ॥
- तुलस्या रक्षितं सर्वं जगदेतच्चराचरम्। या विनिहन्ति पापानि दृष्ट्वा वा पापिभिर्नरैः ॥
- नमस्तुलस्यतितरां यस्यै बद्ध्वाजलिं कलौ। कलयन्ति सुखं सर्वं स्त्रियो वैश्यास्तथाऽपरे ॥
- तुलस्या नापरं किञ्चिद् दैवतं जगतीतले। यथा पवित्रितो लोको विष्णुसङ्गेन वैष्णवः ॥
- तुलस्याः पल्लवं विष्णोः शिरस्यारोपितं कलौ। आरोपयति सर्वाणि श्रेयांसि वरमस्तके ॥
- तुलस्या सकला देवा वसन्ति सततं यतः। अतस्तामर्चयेल्लोके सर्वान् देवान् समर्चयन् ॥
- नमस्तुलसि सर्वज्ञे पुरुषोत्तमवल्लभे। पाहि मां सर्वपापेभ्यः सर्वसम्पत्प्रदायिके ॥
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